________________ रहा है / यह ऐसी बेतुकी बातें किया करता है कि जिन्हें सुनते ही हँसी माती है / १८-मैं तुम्हें इतने समय से ढूँढ़ रहा हूँ। तुम कहाँ गुम हो जाते हो। __संकेत-इस अभ्यास का और इस अंश में दिये गये दूसरे अभ्यासों का लक्ष्य यह है कि विद्यार्थी को धातुरूपावलि का यथेष्ट परिशीलन हो जाय / सभी धातुओं के भिन्न 2 लकारों के रूप एक समान मधुर और मञ्जुल नहीं होते, इसलिये यहाँ यह नियम नहीं किया गया है कि किसी एक धातु का ही प्रयोग किया जाय और उसी अर्थवाली दूसरी धातु का नहीं। हमारा प्रयोजन सुन्दर भाषा रचना में कुशलता उत्पन्न कराना है,व्याकरण के विविध रूपोंको सिखाना ही नहीं / अतः प्रथम वाक्य के अनुवाद में विद्यार्थी नमस्कार क्रिया को कहने के लिये नम्, प्र नम्, वन्द, अभिवादि, नमस्य धातुओं में से जौन सी चाहे प्रयोग कर सकता है। २-त्वरिततरां प्रभाषसे, नाहं किमपि त्वदुक्तमवबुध्ये / बोल रहा है, खा रहा है, पी रहा है, सुन रहा है, उड़ रहा है-इन सबके अनुवाद में लट का ही प्रयोग होता है-प्रभाषते, खादति,पिबति, शृणोति, उत्पतति। आजकल कई लोग इसके स्थान पर शतृ, शानच् प्रत्ययों का प्रयोग करते हैं और साथ में अस. का लटूलकारान्त रूप-प्रभाषमाणोऽस्ति, खादन्नस्ति, पिबन्नस्ति, शृण्वन्नस्ति, उत्पतन्नस्ति, यह प्रायिक व्यवहार के विरुद्ध है। वर्तमान काल की सन्तत क्रिया को भी लट लकार से ही कहना चाहिए, क्योंकि वर्तमान काल का लक्षण 'प्राख्योऽपरिसमाप्तश्च कालो वर्तमानः काल:' ऐसा किया गया है ४-मातृदर्शनल्योत्कण्ठते बालः ( मा तुराध्यायति डिम्भः, सोत्कण्ठं स्मरति मातुः शिशुकः) / ५-शीधुनि' (मधुनि) प्रसजति सः, भ्रश्यति [ भ्रंशते ] चाचारात् / ७-किं न पश्यसि स्वोक्ति विप्रतिषेधसीति स्वोक्त विरुणत्सीति, स्ववचो व्याहसीति / वदतो व्याघातों ह्य न्मत्तप्रलाप इव भवति [विप्रलापो aa न्मत्तप्रलपितमनुकरोति / न चेष भवादृशेषूपपद्यते / ८-आश्चर्यं यत्संकृतमतयो द्विजातयोऽप्येवं व्यवहरन्ति / नैततेषु संभाव्यते / ६-दिष्टया पुत्रलाभेन वर्धते भवान् / इस बात को कहने का यही शिष्टसंमत प्रकार है / 14 प्रातः प्रति वर्षति देवः, न चेष विरमति / 'वर्षा भवति' आदि प्रयोग व्याएरणसंमत होते हुए भी व्यवहार के प्रतिकूल हैं / संस्कृत में 'वर्षा' नित्य बहुबचनान्त है और इसका अर्थ 'बरसात' है सो 1-1 [यानि] शृण्वह एव जनस्य जायते हासः / 2 शीधु पु० भी है।