________________ 'वर्षा भवन्ति' संस्कृत होगी, पर अर्थ होगा-'बरसात है / ' देव = इन्द्र, पर्जन्य, मेघ / इन्द्रवाची या मेघवाची कोई न कोई शब्द 'वर्षति' का कर्ता होना चाहिए। १८-इमां वेलां त्वामन्विष्यामि [संवीक्षे] / क्व निलीयसे [ क्वान्तर्धत्से ] / यहाँ 'इमां वेलाम्' में अत्यन्त संयोग में द्वितोया हुई है / इसके स्पष्टतर बोध के लिए विषयप्रवेश में कारक प्रकरण देखो। अभ्यास-२ (लट ) १-*आज भी शिव हालाहल विष को नहीं छोड़ता, [आज भी कछुआ पीठ पर पृथिवी को उठाये हुए है, [ आज भी ] समुद्र दुस्तर वडवानल को धारण किये हुए है। पुण्यात्मा जिसे अंगीकार कर लेते हैं उसे पूरा करते हैं / २-मेंह बरसाने वाला है, अतः स्कूल बन्द हो गया है और विद्यार्थी अपने अपने घरों को जा रहे हैं / ३-जो जुमा खेलता है वह पछताता है / शिष्ट समाज जुए' को निन्दा की दृष्टि से देखता है। ४-निःसन्देह वह सच्चा नेता है जो ईश्वर से बताये हए अपने कर्तव्य की पूर्ति में प्राणों की बाजी लगा देता है। ५-*गौएँ पानी पीती हैं और मेंढक टर टर करते जाते हैं। ६-मैं तुम्हें युद्ध के लिए ललकारता हूं। अभी बल और प्रबल का निर्णय होता है। ७-कई लोग 'वैराग्य के प्रभाव में आकार' "छोटी अवस्था में ही संन्यास ले लेते हैं। ८-*जो पुरुष अपने आप से लजित होता है वह सबका गुरु बन जाता है। ह-मुनि हथेली में लिये हुए अभिमन्त्रित जल से आचमन करता है। १०-*नाच न जाने अंगन टेढ़ा। ११-देवदत्त तो यज्ञदत्त का पासम भी नहीं / कहाँ राजा भोज कहाँ कुबड़ा तेली। १२-*ये भाव जितेन्द्रिय पुरुष पर भी प्रभाव डालते हैं, इसीलिए नाच रंग और एकान्त में स्त्रीसंग आदि से परे रहना चाहिये / १३-मुझ पर व्यभिचार का दोष लगाने से मेरे मर्मों पर चोट लगती हैं और कोई मिथ्या अभियोग इतना दु:ख नहीं देता। १४-*मेरी दाई बाँह फड़कती है, इसका यहाँ कैसे फल हो सकता है। १५-जिसने ज्ञाना १--द्या, देवन, दुरादर-नपु। 2-2 नियोगानुष्ठाने प्राणानापपि पणते / ३-आह्वये / 4-4 वैराग्यावेशेन /