________________ गच्छेत् तदा मदर्थ कतिपयानि रसवन्ति जम्बूफलान्याहरेत् / ( रसवन्ति कतिपयानि जम्बूनि, कतिपयानि जाम्बानि ) १०-प्रस्वा अतिस्नेह एव पापशङ्की / १३-इमां कुतू कियद् घृतं समाविशति / एषा कुतूः कियद् घतमनुभवति / ह्रस्वा कुतूः कुतुपः = कुप्पी। १३–वासु ! काऽसि घोरप्रचारे निर्जनसंचारेऽस्मिन् कान्तारे किमर्थं पर्यटसि ? अभ्यास-२३ (संकीर्ण स्वरान्त शब्द ) १-*लक्ष्मी ( श्री स्त्री० ) को चाहने वाला उसे प्राप्त करे या न करे, पर लक्ष्मी जिसे चाहे वह उसके लिये कैसे दुर्लभ हो। २–'स्त्रियों ( स्त्री) का स्वभाव चिड़चिड़ा होता है। इनसे सदा मधुर व्यवहार करे / ३विरक्त तपस्वी ( तापस ) अपनी पवित्र बुद्धि (धी) से भविष्यत् का दर्शन करते हैं। ४-यह हमारे लिये लजा (ह्री स्त्री० ) की बात है कि हम हिन्दू होते हुए संस्कृत न पड़े। ५–विद्या भवसागर तरने के लिये नौका ( तरी स्त्री० ) है और सब साधन इससे उतर कर हैं / ६-वीणा ( वल्लकी स्त्री० ) सब वाद्यों में मुख्य है। इसकी मधुरता ( माधुरी स्त्री०) सुर असुर सभी को एक समान वश में कर लेती है / ७-लक्ष्मी के प्रति लोगों की ऐसी आसक्ति है कि इसकी चाह मिटती ही नहीं। ~भीष्म कौरवों के सेनापति (सेनानी) थे और भीम पाण्डवों के | ६-यह विश्व ब्रह्मा (स्वयम्भू) की सृष्टि है, जिसके विधि, वि धाता आदि अनेक नाम' हैं / १०-दूसरे लोगों के गुणों को पहचानने वाले ( विज्ञातृ ) बुद्धिमान ( सुधी) होते हैं और द्वोष करने वाले (द्वष्ट ) मूर्ख ( जडबी ) / ११--भंगी ( खलपू ) का काम समाज के लिये उतना ही उपयोगी और सम्मानित है जितना कि वेदपाठी ( श्रोत्रिय ) का। १२-कृपा करो हे विधाता, हमारे पाप क्षमा करो। "हमारे हृदय पश्चात्ताप से दग्ध हैं / १३—मैं माता ( मातृ) को बार 2 नमस्कार करता हूँ जिसने आप भूखी नंगी रहकर मुझे पाला पोसा और मेरे सुख के लिये अगणित कष्ट उठाये / १४–गौ ( गो स्त्री० ) का दूध बच्चों के १-५सुलभकोपाः स्त्रियः। 2-2 इदं हि नो ह्रियः पदम् / 3-3 समं वशे करोति ( आवर्जयति ) / ४-समाख्या, अभिधा, आह्वास्त्री० / ५–वृत्ति स्त्री० / 6-6 मर्षय, क्षमस्व / 7-7 अनुशयसन्तप्तानि हृदयानि नः / ८-अनावृत वि० /