________________ ( 36 ) (नपु) पर रहता हुआ, कौपीन मात्र धारण करता हुआ, मस्तक पर हाथ जोड़े हुए, हे गौरीनाथ, हे त्रिपुरहर, हे शम्भो हे त्रिनयन ! इस तरह चिल्लाता हुआ अपने दिनों को आँख की झपक की तरह बिताऊगा। 8-जब स्कन्द ने इन्द्र की सेनाओं का सेनापति बनकर युद्ध में तारक को मार दिया तो दोनों लोक ( रोदस् नपु० ) सुखी हो गये। १०-वृद्धों की आसीस ( प्राशिस् स्त्री०) से मनुष्य बढ़ता है / इसलिये आसीस प्राप्ति के लिये वृद्धों की सेवा करनी चाहिये / ११-इक्ष्वाकु वंश के राजाओं ने इस जगत् को स्वर्ग तक एक धनुष (नपु०) से ही जीता। १२--अग्निताप और दाह से रहित है यह वचन परस्पर विरुद्ध है / १३-चरित्र की रक्षा करने वाले इस ब्रह्मचारी का तो तेज [वर्चस नपुं०] सहा नहीं जाता। साक्षात् अग्नि है। संकेत-४-अग्निर्वै देवानां मुखम् / [अग्निमुखा वै देवाः] / एष हि तेषां हविषां वोढा / ६-उचिषोऽग्ने: [समिद्धस्य हिरण्यरेतसः] प्रदक्षिणमचिः शुभायेति निमितज्ञाः ।ह-यदा स्कन्दो वासवीयानां चमनां सैनापत्येऽभिषिक्त आहवे तारकमनीनशत्तदा रोदसी सुखभाजी अभूताम् / यहाँ 'वासवीनाम्' कहना प्रामाणिक न होगा / कवियों से प्रयुक्त हुआ 2 भी यह शब्द अपशब्द ही है / रोदस नपु० / द्विवचन - रोदसी = आकाश व भूमि / रोदसी (स्त्री०) इसका द्विवचन होगा-रोदस्यौ / अर्थ में कोई भेद नहीं। २२-अग्निर्नाम तापदाहाभ्यां रिहित इति संकुलं [क्लिष्ट] चः / अभ्यास-२६ . ___(संकीर्ण हलन्त शब्द) १-योपरु के नीतिज्ञ यह जानते हुए [द्विस] भी कि युद्ध का परिणाम कितना भयानक होता है, तीसरे शिव्यापी युद्ध की तैयारी में लगे हुए है / ऐसा प्रतीत होता है कि संसार पागल हो गया है / २-नगर के समीप ठहरे हुए [तस्थि स् ] मुनीन्द्र' के दर्शन के लिये दूर 2 से लोग आये / ३-सब मंगलों [श्रेयस नपुं०] को प्राप्त हुए 2 आप के लिये क्या प्रासीस हो सकती है। हां, इतना चाहते हैं कि चिरकाल तक धर्म से प्रजा का पालन करते रहो। 4-* वह अकेला सज्जनों में उत्तम है जिसके लिए दूसरे का प्रयोजन ही अपना प्रयोजन है / ५–देवदत्त का छोटा भाई [कनीयस् भ्रातृ] उससे अधिक चतुर [पटीयस, मेधीयस] है, और इसी 1-2 नगरोपकण्ठे / 2 मुनिग्रामणी, मुनिवृषन् / /