________________ ( 38 ) अभ्यास-३० (सर्वनाम) 1-* जो ठंडक है वह जल का स्वभाव है गरमी तो पाग और धूप के मेल से होती है / २-यमवह नित्य कर्म है जो शरीरसाध्य है और नियम वह भनित्य कर्म है जो बाह्य साधनों पर निर्भर है। ३-नौकर जब बड़े 2 कार्यों में सिद्धि को प्राप्त करते हैं उसे तू प्रभु लोगों के मादर' का ही फल' जान / ४-निश्चय ही वाणी का फोक है जो अशुद्ध शब्द है। ५*ऋषि लोग घमंडी और पागल की वाणी को 'राक्षसी' कहते हैं / वह सब वैरों का कारण और लोक के निवाश की देवता है / ६-क्या तुम सामने उस देवदारु को देखते हो? इसे शिव ने अपना पुत्र बनाया था। ७-देवता और असुर दोनों ही प्रजापति को सन्तान हैं / इनका आपस में लड़ाई झगड़ा होता आया है / ८-कोई जन्म से देवता होते हैं और कोई कर्म से / दोनों का दुबारा जन्म नहीं होता / --*हृदय वह है जो पहचान करता है, दूसरा चञ्चल मांसमात्र है / नहीं तो क्या कारण है कि सौ में कोई एक 'सहृदय' माना जाता है। १०-जनक ने कहा-* वह मेरा योग्य सम्बन्धी था, वह प्यारा मित्र था, वह मेरा हृदय था / महाराज श्री दशरथ मेरे लिये क्या न था। 11-* यद्यपि रघुनन्दन ने मेरी पुत्री के साथ अन्याय्य कर्कश व्यवहार किया तो भी मैं उसे चाप वा शाप से दण्ड देना नहीं चाहता, क्योंकि वह मेरा प्यारा पुत्र है। १२-जो सूत्र का उल्लङ्घन करके कहा जाय, उसका स्वीकार न होगा। १३-*सत्य से बड़ा धर्म नहीं और अनृत से बढ़कर पाप नहीं ऐसा पूर्व (प्रथम, पूर्व) मुनि कहते हैं / १४-थोड़े ही (अल्प) मनुष्य यह विश्वास करते हैं, कि अहिंसा का प्रभाव जीता नहीं जा सकता। १५इन (अदस्) प्राणों के लिये मनुष्य क्या 2 पाप नहीं करता / क्षीण हुए 2 लोग निर्दय होते हैं / १६-*जो जिसको प्यारा है वह उसके लिये कोई अपूर्व वस्तु है। क्योंकि वह कुछ भी न करता हुआ सुख देकर दुःख दूर कर देता है / १७–जो ये लोग घर आये हुए शत्रुओं का भी प्रातिथ्य करते हैं यह इनका कुलधर्म है। मंकेत- इस अभ्यास में सर्वनामों के प्रयोग के विषय में कुछ विशेष 1-1 संभानागुण पुं० / 2-2 ‘स यां वै दृप्तो दति यामुन्मत्तः व सा वै राक्षसी क' (ऐ० ब्रा० 2 / 7 / / ) /