________________ ( 36 ) वक्तव्य है। सामान्यतया 'सर्वनाम' का प्रयोग नाम के स्थान पर किया जाता है जबकि नाम को एक से अधिक बार प्रयोग करने की अपेक्षा होती है, क्योंकि एक ही शब्द की आवृत्ति अखरती है। इस प्रकार प्रयुक्त किये हुए 'सर्वनाम' 'नाम' के ही लिङ्ग, विभक्ति और वचन को ले लेते हैं और यह स्वाभाविक है / [यो यत्स्थानापन्नः स तद्धर्मा लभते / रामो राज्ञां सत्तमोऽभूत् / स पितुर्वचनमनुरुध्य वनं प्राव्रजदित्यनपायिनीं कीतिमाप्नोत् / वृत्तन वर्णनीया यज्ञदत्तसुता देवदत्ता नाम / तां परोक्षमपि प्रशंसति लोकः / ग्रामोपकण्ठे विमलापं सरोऽस्ति / तस्मिन्सुखं स्नान्ति ग्रामीणाः / इन वाक्यों में जहाँ नाम और सर्वनाम की विभक्ति में भेद दीखता है, वह ऊपरी दृष्टि से है। दुबारा प्रयुक्त होने पर 'नाम' की जो जो विभक्ति होती, वह 2 यहाँ सर्वनामों से हुई है / सो विभक्ति के विषय में भी सर्वनाम नाम के अधीन है यह निर्विवाद है। कई बार हम सर्वनाम को नाम के साथ ही प्रयुक्त करते हैं / वहाँ इसका प्रयोग विशेषण के रूप में होता है। और दूसरे विशेषणों की तरह यह भी विशेष्य के अधीन होता है। कस्यष आत्मनीनो हताशः कितवः / कल्याणाचारेयं कन्या कमन्ववायमलङ्करोति जनुषा। अन्ववायः= अन्वयः = कुलम् / पर जहाँ वाक्यों में उद्देश्य और विधेय की एकता [ अभेद ] को बताने वाले दो सर्वनामों [ यद्, तद् इत्यादि ] का प्रयोग होता है वहाँ लिङ्ग की व्यवस्था कैसी है यह कहना है / भाषामर्मज्ञ शिष्ट लोगों ने इस विषय में कामचार [] बताया है / यदि 'यद्'+ उद्देश्य के लिङ्ग को ले, तो तद् चाहे उद्देश्य के ही लिङ्ग को लेले चाहे विधेय के / इसमें नियम नहीं। तो 'तद्' का लिङ्ग प्रायः विधेयानुसारी देखा जाता है। जैसे [१]--शत्यं हि यत् सा प्रकृतिजलस्य / २६--यो हि यस्य प्रियो जनस्तत्तस्य किमपि द्रव्यम् / पर कहीं 2 'तद्' उद्देश्य के लिङ्ग को भी लेता है--[ 2 ] शरीरसाधनापेक्ष नित्यं यत्कर्म [] उद्दिश्यमानप्रतिनिर्दिश्यमानयोरेकत्वमापादयन्ति सर्वनामानि पर्यायेण तल्लिङ्गमुपाददते इति कामचार: ( केयट ) / सर्वनाम्नामुद्दिश्यमानविधीयमानयोलिङ्गग्रहणे कामचारः (क्षीरस्वामी)। +यद् शब्द कभी 2 विधेय के लिङ्ग को भी ले लेता है-श्लेष्म वा एतद्यज्ञस्य यद् दक्षिणा ( ताण्ड्य ब्रा० 16 / 1 / 13) / मुखं वा एतत्संवत्सरस्य यत् फाल्गुनी पौर्णमासी (शाङ्खायन ब्रा० 5 // 1) /