________________ ( 35 ) वो इन्होंने किया था। इनको आपने दण्ड नहीं दिया। 14 हे प्रभो ! मैंने बहुत उग्र पाप ( एनस् नपुं० ) किये हैं, 'अब ऐसी कृपा कीजिये कि निष्पाप हो जाऊँ। संकेत-१-उषस्येव ब्रह्मचारी प्रामानिष्क्रामेत् / ग्रामेन्तर्नेममभ्युदियात्सूर्यः / अन्यथा प्रायश्चित्तीयः स्यात् / ६–भारतवर्षकृषकाणां श्रमक्षुगणेषु कायेषु जीर्णानि शीर्णानि च वासांस्युच्चे?षयन्ति दारुणदारिद्रयोपहता अमी इति / १२-कश्चित्कंचित्पृच्छति किमस्य शिशोरायुरिति / स आह नाहमायुर्वेद, यस्तु वेनि। १३-प्रयमनागाः, किमित्येनं निगृहीत वानसि / एते ह्यागः कृत न्तः, नैनान् दण्डितवानसि ( नैनानशाः ) / शास्-लङ, म० पु० ए० / अभ्यास-२८ ( अस् , इस, उस् प्रत्ययान्त) 1-* युवावस्था ( अभिनवं वयः ) शरीर का स्वाभाविक भूषण है। चाहे कोई कितना ही विरूप क्यों न हो जवानी आते हो सुरूप प्रतीत होने लगता है / २-इन जल रहित (निरम्भस् ) रेतीले स्थानों में खेती बाड़ी नहीं हो सकती / हाँ, कहीं 2 खजूर आदि अपने आप उग पड़ते हैं। ३-~डरे हुए राक्षस (रक्षस् नपु०) दिशाओं में दौड़ रहे हैं / क्योंकि ये भगवान् के तेज को नहीं सह सकते / ४–अग्नि देवताओं का मुख है, क्योंकि यह उन के लिये हवियों (हविस् नपु०) को ले जाता है। ५--भारत में पद्य-रचना में इतनी अधिक रुचि हुई कि यहाँ अभिधानकोष और स्मृतियां तक भी छन्दों में रची गई।६-प्रज्वलित अग्नि की दक्षिण ओर उठती हुई ज्वाला (अचिस् स्त्री०. नपु०) शुभ होती है ऐसा निमित्त जाननेवाले कहते हैं / ७-ऋषि छिपे हुए तथा दूर देश में पड़े पदार्थों को भी एकाग्र चित्त (चेतस् नपुं०) से देख लेते हैं। इसी लिए उनका वचन (वचस् नपु०) कभी मिथ्या नहीं होता। 8-* कब मैं भगवती भागीरथी के तट (रोधस १-१इदानीमनेना यथा स्यां तथा दयस्व / 2 असंभृत, अनाहार्य, अविहित सिद्ध-वि० / 3 सिकतिल-वि० / 4-4 कृषिर्न संभवति / 5-5 छन्दसा बद्धाः / 6-6 प्रणिहितेन चेतसा / 7-7 अत ए न विप्लवते तद्वः च / /