________________ ( 32 ) दो वर्ष का ही था कि इसके माता पिता स्वर्ग सिधार गये। आप इसकी सहायता करें। ७-जिसके पैर फटे न बिवाई वह क्या जाने पीरपराई / ८-अर्जन (किरीटिन्) धनुर्धारियों (धन्विन्, धनुष्मत्) में उत्तम था, 'शक्ति चलाने वालों में नकुल बढ़िया था। ६-उत्तम रूप और शरीर वाला, बुद्धिमान् (मेधाविन्) यह नौजवान (वयस्विन्) देखने वालों के चित्त को ऐसे खोंचता है जैसे चुम्बक लोहे को। १०-माला पहने हुए (स्रग्विन्), रेशमी वस्त्र धारण किये हुए (दुकूलनिवासिन्), बिस्तर पर बैठे हुए अपने आपको पण्डित मानने वाले (पण्डितमानिन्), ये कौन हैं। ये सन्त जी हैं जो प्रायः स्त्रियों को धर्मोपदेश करते हैं। संकेव-५-महानुभाव: श्रीगान्धी जगति वर्तमानं नयं पर्यवर्तयत् / स इत्थमन्वशात्-मायिष्वपि ( मायाविष्वपि ) न मायया वर्तनीयम् / ७-दुःखमननुभूतवतो जनस्य परदुःखमविदितम् / (स्वयं दुःखमननुभूय कथमिव परदुःखं विद्यात् ) / ६-सिहसंहननो मेधावी चायं वयस्वी (वयःस्थः) द्रष्टणां चित्तमयस्कान्तो लोहमिव हरति / 'वराङ्गरूपोपेतो यः सिंहसंहननो हि सः (अमर) / संहनन ( नपु० )= शरीर। अभ्यास-२६ (अन् , इन् , मन् , वन्-प्रत्ययान्त) १--सरलता से जीविका कमानी चाहिये, लालच से प्रात्मा को गिराना नहीं चाहिये / यही अच्छा मार्ग (पथिन्) है, इसके विपरीत कुमार्ग है। २प्रजात्रों को प्रसन्न करने से भूपाल को आर्य लोग राजा (राजन् ) कहते थे। राजा अपने आप को प्रजात्रों का सेवक मानता था और उपज का छठा अंश लेकर निर्वाह करता था / ३-राजामों का प्रिय कौन है और अप्रिय कौन / ये लोग अपने प्रयोजन को देखते हैं और हृदय से किसी का आदर नहीं करते ४-प्रम (प्रमन्, पु०, नपुं०) बिना कारण और अनिर्वाच्य होता है ऐसा "शास्त्रकार कहते हैं। उनका कहना है कि स्नेह हो और निमित्त की अपेक्षा रखता हो यह परस्पर विरुद्ध है। ५-मैं श्वेत कमलों की इस माला (दामन् नपु०) को पसन्द करता हूँ। नील कमलों की इस माला (माल्य नपु) को नहीं। ६-अच्छे बुरे में भेद करने वाले विद्वान् ( सत् ) कृपया इसे सुनें / 1-1 द्विवर्ष, द्विहायन-वि० / पितरौ निधनं गतो, दिष्टान्तमाप्तौ, कालधर्मं गतो, देवभूयं गतो, स्वर्यातौ / 3-3 अभ्युपपत्तिरस्य कार्या। 4 शाक्तीक-वि० / 5-5 तल्प मासीनाः / 6-6 सस्यफलस्य षष्ठांशभूक / 7 तन्त्रकार-पु० / 8-8 पौण्डरीकं दाम / 1!