________________ ( 31 ) हुए दाभ के ग्रासों को मुख से गिरा दिया है और मानों मांसू बहा रही हैं। २३-मूर्ख लोग बाहिर के काम्य पदार्थों के पीछे जाते हैं / २४-इस समय पौ फटने को है / मोतियों की छवि वाले तारों से मण्डित आकाश (वियत् नपुं०) धीरे 2 निष्प्रभ हो रहा है। संकेत-१-अस्मदीये इतिहास एवंविक्रान्ता योषित उपणिता (कीर्तिताः) या अद्यापि स्मरति लोकः / ३–वर्षासु सरितां सलिलमाविलं भवत्यन्यत्र मानसात् / शरदि तु प्रसीदति / ५-विकृतिमत्तस्य यकृत् / अतः स ज्वरति, प्रकुप्यति चास्य कफः / ११--संकटेनानेन संचरेण यान्ति (संचरमाणानि) यानानि संघट्टन्ते / तस्माद्वर्तनिमनुवर्तस्व (पदवीमनुयाहि, एकपदीमनुसर)। १७-महान्तमनर्थमुपनमन्तमुत्प्रे क्षे। तेन प्रतिजागृहि / २२-सीतानिर्वासने वनसत्त्वा अपि समदुःखा (दुःखसब्रह्मचारिणः) / तथाहि निर्गलितार्धावलीढदर्भकवला मृगा अणि विमुञ्चन्तीव (विहरन्तीव)। २४-प्रभातकल्पा शर्वरी। मौक्तिकसच्छायेरुडुभिर्मण्डितं वियच्छनः शनैर्हतप्रभं भवति। उडु (तारा) स्त्री और नपु / वियत् (आकाश ) नित्य नपु है / अभ्यास-२५ (इन्, विन, मतुप, क्तवतु-प्रत्ययान्त) १-चांद के साथ ही चांदनी चली जाती हैं और मेघ के साथ ही बिजली (तडित् स्त्री०)। २-यद्यपि पानी के बिना भी जीना मुश्किल है, अतएव उसे 'जीवन' वा 'जीवनीय' कहते हैं, तो भी वायु से ही प्राणी प्राणवाले (प्राणवत् ) हैं / ३-*सात पैर साथ चलने से ही सत्पुरुषों के साथ मैत्री हो जाती है ऐसा बुद्धिमानों ( मनीषिन् ) का कथन है। ४-जिस प्रकार सुन्दर पक्षों से पक्षी (पतत्त्रिन्) सुन्दर होते हैं उसी प्रकार सुन्दर वेष' से ही मनुष्य सुन्दर नहीं बनते / ५-महात्मा गान्धो ने संसार (जगत् ) की नीति का रूप बदल दिया। उनका यह उपदेश था कि छली लोगों के साथ भी छल का व्यवहार नहीं करना चाहिये / ६-यह बेचारा (तपस्विन्) ब्राह्मणकुमार अभी - 1 सुन्दर, सुजात, सुरूप, अभिरूप, मनोज, पेशल-वि०। २–वेष, प्राकल्प----पु। नेपथ्य-न' / 3 पर्यवर्तयत्, पर्यणमयत् /