________________ ( 30 ) नया' 2 घास' दिया करती थी। ५-उसका जिगर ( यकृत् नपुं० ) विगड़ा हुप्रा है, अतः उसे ज्वर रहता है और कफ का भी प्रकोप है / ६-भद्रे प्राणियों (प्राणभृत् ) की ऐसी हो लोकयात्रा है, तेरा भाई जिसने स्वामी के ऋण को अपने प्राणों से चुका दिया शोक के योग्य नहीं। ७–मोर अपने पंखों और कलगी से कितना सुन्दर है / पर इसके पैर कितने भद्दे हैं / जहाँ फुल है वहाँ काँटा भी है / 8-* प्रजात्रों के कल्याण के लिए ही वह उनसे कर लेता था, क्योंकि सत्पुरुष देने के लिए ही लेते हैं, जैसे बादल / ६-युद्ध (युध स्त्री०) के परिणाम भयंकर हैं ऐसा जानते हुए भी लगभग समस्त संसार युद्ध की 'तयारी में लगा हुअा है। 10-* जो नित्य जप करते हैं और अग्निहोत्र करते हैं वे पतित नहीं होते / ११–इस संकरे मार्ग पर चलती हुई गाड़ियां टकरा जाती हैं, अतः पगडंडी के साथ 2 चलो। 12-* आकाश में उड़ते हुए पक्षियों (पतत् ) की गति भी जानी जा सकती है पर रक्षाधिकृत राजभत्यों की नहीं। १३--*गी जब बछड़े को दूध पिला रही हो तो उसे हटाये नहीं। १४-जब मैं परमात्मा का ध्यान कर रहा हूँ तो विघ्न मत करो। १५-जीविका की तलाश करते 2 (अन्विष्यत्, अन्वेषयत् ) लोगों का सारा जोवन लग जाता है, चतुर्वर्ग की सिद्धि अछूती रह जाती है। 16-* जो चलता है उसे प्रमाद वश ठोकर लग ही जाती है। दुर्जन उस समय हंसते हैं और सज्जन समाधान कर देते हैं। १७-मैं देखता हूँ कि एक महान् संकट आ रहा है। इस लिये तुम सजग हो जानो। १८-गालो देते हुए (प्राक्रशत् ) को भी गाली मत दो / अपकार करते हुए (अपकुर्वत्) का भी उपकार करो। यह सज्जन का मार्ग है / १६-हमारे पूर्वज (प्राञ्च् ) हम से कुछ कम सभ्य न थे कई अंशों में तो हम से सभ्यता में बढ़े हुए थे। २०नगर का पश्चिम (प्रत्यश्च ) द्वार' बन्द है तुम पूर्व (प्राञ्च ) द्वार से प्रवेश कर सकते हो।। २१--निचली भूमि (अवाञ्च प्रदेश ) में पानी खड़ा रहता है और वहाँ मलेरिया ज्वर बड़े जोर से होता है। २२-सीता के निर्वासन में वन के पशुओं ने दुःख मनाया। देखो हिरनियों ने प्राधे चबाये 1-1 शष्प-नपु० / २–मयूर, बहिण, भुजङ्ग भुजग पु / ३पिच्छ, बह-न। कलाप-०। ४-शिखा / ५-न हि कुसुमं कण्टक व्यभिचरति / 6-6 युद्धाय सजते / ७--गोपुर-नपु०1८-संवृत, पिहित / ६-शीतको ज्वरः /