________________ ( स्नायु ) हैं। 10- यहाँ स्र बदल कर पढ़ने से (काकु) प्रश्न अभिप्रेत है / ऐसा मानने से ही ग्रन्थ की सुन्दर संगति लगती है। संकेत-३-चटका चञ्च्वा सस्थकरणानुच्चिनोति / ४.--तनुरियं तनुरसहा सूर्यातपस्य / तन्वीयं तनुरसहिष्णुः सूर्यातपम् / इष्णुच प्रत्ययान्त 'सहिष्णु' के कर्म सूर्यातप में षष्ठी का निषेध होने से द्वितीया हुई / ६-अहो सुश्लिष्टं शरीरम् / अहो सुन्दर्यः स्नायवः / अभ्यास-२१ ( उकारान्त नपुं० ) १--शहद ( मधु ) श्लेष्मा को दूर करता और घी पित्त को। २-माँ ! मुझे जल (अम्बु) दो। मेरा गला प्यास से सूखा जाता है / २-देवदत्त का पिता बड़ा क्रोधी है, वह मामली सी भूलों को भी क्षमा नहीं करता ।३मारे गरमी के मेरी जीभ तालु ( तालु ) से चिपटी जा रही है / मुझे जल्दी से पानी दो। ४-ये खिलौने लकड़ी ( दारु) के नहीं, ये तो अग्निदाह्य लाख (जतु) के हैं / ५-ह धन (वसु) का स्वामी होता हुआ भी निर्धन की तरह कठिनता से निहि करता है। 6- हम लोगों को नये घर बनाने हैं, अतः खुली ऊँची, समतल भूमि (वास्तु) चाहिये / ७-बहुत लोग भोजन आच्छादन (कशिपु) का प्रबन्ध भी नहीं कर पाते, दूसरी साधन-सामग्री का तो क्या कहना ? --कच्चे (शलाटु) फल खाये हुए कई बार पेट में शूल उत्पन्न कर देते हैं, पर सुखाये हुए (नि) फल हानि नहीं करते / ६--कोई लोग खुशामद (चाटु) पसन्द करते हैं, दूसरे नहीं / रुचियाँ भिन्न 2 होती हैं / १०-यह कुछ चीज (स्तु) है और यह कुछ भी नहीं (प्रस्तु), इस बात का परिचय तुम्हें इसका प्रयोग करने पर होगा। संकेत-१-श्लेष्मघ्नं मधु / पित्तनं घतम् / २--अम्ब ! देहि मेऽम्बु / तृषयापरिशुष्यति मे कण्ठः / ५-नेमे दारुणो विकारा अलङ्काराः, वह्निभोज्यस्य जतुन इमे भवन्ति / ८--कशिपुनोऽप्यनीशा बहवः, किमुतान्यस्योपकरणजातस्य ? 1-1 ग्रन्थार्थः साधीयः संगतो भवति / २-क्रोधन, अमर्षण-वि० / 3 तनु, अणु-वि० / 4 स्खलित-नपु० / ५–सजति /