________________ ( 21 ) अभ्यास-१६ (इकारान्त पुं० ) 1- चुप्पी' मुनि का लक्षण है। जो जितना अधिक सोचता है उतना थोड़ा बोलता है। २--*काव्य रूपी अपार संसार में कवि ही प्रजापति है। यह विश्व जैसे उसे भाता है वैसे बदल जाता है / 3 - दो सिक्ख आपस में छोटो सी बात पर झगड़ पड़े। एक ने दूसरे को गाली दी तो दूसरे ने तलवार ( असि ) खोंच कर उसका हाथ (पाणि) काट दिया। ४-कहते हैं / पुराकल्प में पहाड़ (गिरि ) पक्षियों की तरह पंखवाले थे और उड़ा करते थे। यह बढई ( वर्धकि, स्थपति ) लकड़ी के सन्दर खिलौने बनाता है। वे सब हाथों-हाथ बिक जाते हैं। ६--कल खेलते 2 वह गिर पड़ा और उसकी कुहनी ( कफोरिप ) टूट गई और बेचारा दर्द के मारे रातभर नहीं सोया / ७यह हमने प्रत्यक्ष देख लिया कि कलियुग में शक्ति संघ में है / 8 - भौरे (अलि ) फूलों पर मडराते हैं, अनेक प्रकार का रसपान करते हैं और मानो गद्गद प्रसन्न हो भिनभिनाते हैं / ६-*व्यायाम से थके हुए शरीर वाले, पाओं से लताड़े हुए ( पुरुष ) के निकट बिमारियाँ नहीं आती, जैसे गरुड़ के निकट साँप / १०-मैंने अपना काम कर लिया है, अतः मुझे कुछ भी दुःख (आधि) नहीं। 11 कायर अपमान सहित सन्धि को अच्छा समझता है, युद्ध को नहीं। १२-आप जैसे-जिन्होंने अपने शरीर को दूसरे का साधन बना दिया है बहुत थोड़े ही संसार में उत्पन्न होते हैं / अपना पेट भरनेवाले तो बहुत हैं / १३वसन्त (सरभि ) में सभी कुछ सुहावना बन जाता है, कारण कि वसन्त वर्ष का यौवन काल है / १४-कौन-सा रत्न ( मणि) सूर्य ( घुमणि) से अधिक चमकीला है / सूर्य तो भगवान् का इस लोक में प्रतीक है / १५दैव (विधि ) की गति. ( विलसित, चेष्टित-नपु०) विचित्र है। आप जैसे शास्त्र जाननेवाले (अन्तर्वारिण) भी इस प्रकार दुःख पाते हैं। १६-विद्वान ( कवि ) का कहना है कि धर्म का मार्ग उस्तरे की तेज धार है, जिस पर चलनों १-मौन-न' / तूष्णीम्भाव-पु. / 2-2 उदपतन् / उत्पतिष्णव आसन् / 3-3 अलुनात् / 4-4 सर्वरात्रं नास्वपत्, निद्रां नालभत / 5-5 भास्वरतर-वि० / 6 प्रतीक पुं० है /