________________ ( 22 ) मुश्किल है / १७-अञ्जलि से पानी न पीये, ऐसा सूत्रकार कहते हैं / इस प्रकार पानी अधिक पीया जाता है जो स्वास्थ्य को बिगाड़ देता है / 18 कृष्ण के बाल्यकाल की लीलायें ( केलि ) अत्यन्त रसभरी हैं। १६-मित्र ( सखि ) से दिये हुए नन्हें उपहार को भी मैं आदर से स्वीकार करता हूँ। २०-यह कोरा कपड़ा (निष्प्रवाणिः पटः) है / धुलने पर यह गाढ़ा हो जायगा और चिर तक चलेगा। संकेत--३-द्वौ शिष्यो कुशं काशं वालम्ब्याकल हायेताम् / एकोऽपरमशपत् / ततोऽपरोऽसि निष्कृष्य पूर्वस्य पारिणमकृन्तत् / गाली देने अर्थ में शप् का अथवा पा-क्रश का ही प्रयोग शिष्ट-संमत है। शप् उभयपदी है। ५-अयं स्थपतिः सुजातानि दारुमयानि क्रीडनकानि करोति, यान्यहम्पूर्विकया क्रीणाति लोकः / यहाँ प्रातिपदिकान्तनुम् 0 सूत्र से वैकल्पिकणत्व होने से 'दारुमयारिण' भी कह सकते हैं। ८--कुसुमेषूभ्रमन्त्यलयः (कुसुमानि परिसरन्त्यलयः, कुसुमानि परिपतन्त्यलयः ) ११-भीरुकः सनिकारं सन्धिमभिरोचयते न संगरम् / १२-परोपकरणीकृतकायास्त्वादृशा विरला एव जगति जायन्ते; उदरम्भरयस्तु भूरयः / अभ्यास-१७ ( इकारान्त स्त्री० ) १--अहो इसकी कैसी शुभ प्रकृति है / नित्य ही सबका मङ्गल चाहता है / २-विद्या से भोग ( भुक्ति) और मोक्ष ( मुक्ति ) दोनों ही मिलते हैं / चित्त की शान्ति और कीर्ति तो साथ में ही आ जाती हैं। ३-मैं जब भी तुम्हें देखता हूँ तुम इधर उधर चक्कर काटा करते हो। अपना पेट कैसे पालते हो ? ४-तेरी बुद्धि भूतमात्र के कल्याण (भूति ) के लिए हो। तू कभी बुराई का चिन्तन मत कर / ५-अजी देवदत्त का तो क्या ही कहना, वह तो गुणों की खान (खनि ) है। ६-सीप (शक्ति) में चांदी की तरह यह नामरूपात्मक संसार मिथ्या है / ७-यह प्रोषधि तैया' ज्वर में बड़ा प्रभाव रखती है, पुराने ज्वरों में भी इसके लगातार प्रयोग से लाभ होता है। ८-मोर की गर्दन (शिरोधि ) पहले ही सुन्दर ( रम्य, कमनीय ) है, पर केका करने के १-आमनन्ति / 2-2 शरीरे विकारं जनयति / 3-3 प्रतीच्छामि।४ तृतीयको ज्वरः / 5 कालिक-वि० / 6 सुन्दर का स्त्रीलिंग सुन्दरी होता है, पर अधिक सुन्दर के लिए 'सुन्दरितरा' ऐसा स्त्रीलिंग में रूप होगा। घ-रूपकल्प० (6 / 3 / 43 ) से तरप, तमप् परे होने पर अनेकाच् ड्यन्त को ह्रस्व हो जाता है।