________________ ( 16 ) तृतीया सहार्थ में है, 'कामेन सह' यह अर्थ है। इसी लिए यहाँ द्वितीया नहीं हुई। ५-स्वादिः, दिवादिः, तुदादिः, चुरादि:-इमे क्रमात् प्रथमचतुर्थषष्ठदशमा गणा भवन्ति / यहाँ क्रमात् = क्रममाश्रित्य / ६-इतो हस्तदक्षिणोऽवक्र याहि,क्षिप्रं विश्वविद्यालयमासादयिष्यसि / अभ्यास-१२ (क्रियाविशेषण का काम करने वाले कुछ प्रत्यय आदि) १-वह कुछ अच्छा ही पकाती है (पचतिकल्पम् ) ! थोड़ा ही समय हुमा वह इस कला में प्रवृत्त हुई / २-यज्ञदत्त की बहिन उससे अधिक अच्छा माती है ( गायतितराम् ), यद्यपि दोनों ने एक साथ ( समम् ) गाना सीखना प्रारम्भ किया। ३-कहने को तो वह गाता है, पर वस्तुत: चिल्लाता है। ४-वह खाक पकाती है ( पचति पूति ) / सब रोटियाँ अधजली और सूखी हुई हैं। ५-वह गजब का पढ़ाने वाला है, एक बार सुनी हुई व्याख्या सदा के लिये मन में घर कर लेती है। ६-पकाती क्या है घर वालों का सिर / इसे तो रसोई में बैठने का भी अधिकार नहीं। ७-ये परले दर्जे के अध्यापक ही नहीं ( न केवलं काष्ठाध्यापकाः), सब शास्त्रों और कलामों में निपुण भी हैं। 8- यह बालक बहुत अच्छा पढ़ता है (पठतिरूपम् ), न बहुत जल्दी पढ़ता है और न ही कोई अक्षर छोड़ता है। मधुर और स्पष्ट उच्चारण करता है। 6- वह क्या पढ़ता है जो उदात्त के स्थान अनुदात्त उच्चारण करता है। संकेत-३-गायति 'वं' * क्रोशति चाञ्जसा / यहाँ 'नव' अच् प्रत्ययान्त प्रातिपदिक है, प्रत्यय नहीं। यह कुत्सा अर्थ में प्रयुक्त होता है। ४-पति पूति / सर्वा रोटिका अवदग्धाः कर्कशाश्च संवृत्ताः / 5- स दारुणमध्यापयति, सकृच् च ताऽपि व्याख्यात्यन्ताय हृदि पदं करोति / 6 - पचतिगोत्रम् / अनहेयं रस्वतीप्रवेशस्य / 8 - अयं माणवकः पठतिरूपम् / न निरस्तं पठति न च प्रस्तम् / मधुरमम्लिष्टं चोच्चारयति / 6 - स किमधीते य उदात्ते कर्तव्येऽनुदात्त करोति / यहाँ किम्'क्षेप में है,प्रश्न में नहीं। समास न होने से स्वतंत्र पद है। * 'अव' आदि के इन अर्थों में प्रयोग में 'तिङो गोत्रादीनि कुत्सनाभीक्ष्ण्ययोः ( 8 / 1 / 27), पूजनात्पूजितमनुदात्तम् (8 / 1 / 67), कुत्सने ख सुप्यगोत्रादौ ( 8 / 1 / 66 )- ये पाणिनीय सूत्र ज्ञापक हैं / 'पचति गोत्रम्' में पुराने व्याख्याकार पचति का अर्थ पञ्चति, पञ्चयति ( प्रपञ्चयति ) लेते हैं। पर यह अर्थ अन्यत्र कहीं भी नहीं पाया / कोषकारों को भी यह अविदित है।