________________ ( 18 ) अभ्यास में प्रकारान्त पुंलिंग शब्दों का ही प्रयोग करना चाहिये, उन्हीं के पर्याय इकरान्त आदि का नहीं। इन अभ्यासों का दूसरा प्रयोजन है विद्यार्थी के शब्दकोष को बढ़ाना और लिंग का विस्तृत बोध कराना / २--सत्यं मां वयम्, अभियोगेन तु शक्ताः स्मोऽम रभावमुपगन्तुम् / 'पुरुषार्थ' संस्कृत में 'उद्यम' अर्थ में नहीं आता / हाँ 'पौरुष' इसके लिये उचित शब्द है, पर वह नपु है। अद्य पुण्यो वासरो यद् भवादृशः शास्त्रज्ञो दृष्टः / दिवस और वासर दोनों पुं० और नपुं० हैं / ८–वसन्ते यदा पिकः पञ्चमेन स्वरेणापिकायति तदा विपञ्ची-स्वरा अपि (वीणानिक्वणा अपि) विरसीभवन्ति / के गे शब्दे भ्वादी 11 --यज्ञदत्त उग्रदर्शनो देवदत्तश्च सौम्यदर्शनः / उभावपि सोदर्यो। १५-ध्रियन्तां तावत्प्रग्रहाः, यावदवरोहामि / १७--एतावान् वाक्प्रपश्चः साक्षरस्य नागरकस्य जननिवहस्य प्रज्ञाधिक्षेप इव / (प्रवीणा नागरा नागरकाः / वुञ्) __ अभ्यास-१४ (अकारान्त नपुं० शब्द) 1- करणाद-शास्त्र तथा पाणिनि व्याकरण सब शास्त्रों के लिये उपयोगी हैं / 2- मनुप्रणीत मार्ग से घर के धन्धे को चलाती हुई पत्नी (कलत्र) घर को स्वर्ग बना सकती है। 3- बहुत थोड़े कालेज वास्तव में विद्या-मन्दिर अथवा सरस्वती-सदन कहे जा सकते हैं, क्योंकि इनमें ज्यों त्यों परीक्षा पास कराना लक्ष्य है / *महाराज ! इसी ने पहले मेरी निन्दा की यह कहते हुए कि आप में और मुझमें जौहड़ और समुद्र का सा भेद है / ५किसान दांतियाँ लेकर खेती काटने के लिये खेत को जा रहे हैं / ६-तुम सर्वथा निर्दोष चित्र (आलेख्य) बनाते हो ? यह तुम्हें किसने सिखाया ? 7 - इस कुएँ (उदपान) का जल (पानीय, सलिल, उदक) स्वादु (सुरस) है / जी चाहता है पीते ही जायें। --उनका सबका बर्ताव (वृत्त) घटिया (जघन्य) है। उसमें मिठास (दाक्षिण्य) कुछ भी नहीं, गँवारपन (ग्राम्यत्व) अक्खड़पन (प्रौद्धत्य) ज्यादा है / 6- तुम्हें अपनी जिह्वा पर कुछ भी वश नहीं / हर समय मनापशनाप (असमञ्जस) बकते रहते हो। इसका परिणाम अच्छा नहीं होगा। 10 - मैं उनका कुशल (सुख) पूछने जा रहा हूँ / कई दिन से उनके दर्शन नहीं हुए, अतः चित्त (चित्त, स्वान्त. मानस) प्रशान्त है। वहत् / 2-2 (गृहं ) स्वर्गीकर्तुमलम् /