________________ ( 17 ) अभ्यास-१३ (अकारान्त पुंलिङ्ग शब्द ) 1- यह काया क्षणभंगुर है / सभी आने वालों को जाना है। २यह सच है कि हम मर्त्य हैं, पर अपने पुरुषार्थ (उद्योग, उद्यम, अभियोग) से अमर हो सकते ।३-प्रातः काल के सूर्य (बालार्क, अरुण) की अमृत भरी किरणें (किरण, कर, मयूख) आंखों को तरावट देती हैं और शरीर में नई स्फूर्ति (परिस्पन्द) का संचार करती हैं / ४–आज एक पुण्य दिन है कि आप जैसे शास्त्र-वेत्ता के दर्शन हुए / ५-*सभी संग्रह समाप्त होने वाले हैं, मारी उन्नति का अन्त अवनति है और सभी संयोगों का अन्त वियोग है / ६–किया हुआ यत्न सफल होता है और समृद्धि (अभ्युदय) का कारण होता है / ७-पाकाश में पक्षो (पतग, पत्त्ररथ, शकुन्त) स्वेच्छा से विहार करते हैं और परमेश्वर को सुन्दर सृष्टि (सर्ग) का जी भर कर (मनोहत्य, निकामम्, पा तृप्तेः) दर्शन करते हैं / ८-वसन्त में कोयल (पिक) जब पञ्चम स्वर से गाती है तो वीणा के स्वर भी फीके पड़ जाते हैं / —सिंह(मृगेन्द्र, मृगाधिप) ने हाथी (गज, मतङ्गज, दन्तावल) पर धावा किया, पर पीछे से एक शिकारी ने विषले बाण से सिंह को मार दिया। १०-प्रकाश (पालोक) किसे नहीं भाता, अन्धेरा किसे पसन्द आता है ? ११-यज्ञदत्त को डरावनी आँखें हैं और देवदत्त की शान्त, दोनों सगे भाई हैं। १२-*कृपा करके मेरी प्रार्थना (प्रणय) को न ठुकराइये / मैं इसके लिये आप का जीवन भर आभारी रहूंगा। 13-* जो लोग अनन्यभक्त होकर मेरा चिन्तन करते हुए मेरी उपासना करते हैं, (मझ में) नित्य लगे हए उन लोगों के योगक्षेम का मैं प्रबन्ध करता हूँ। 14-* वेद का ज्ञान (वेदाधिगम) कामना के योग्य है वैसे ही वैदिक कर्मयोग भी। १५-आप जरा घोड़े की बागों को पकड़े, ताकि मैं उतर जाऊ / १६शिव इस लोक में हमारा कल्याण करे, वह हमारा सहारा (आलम्ब पु०) है। १७-इतने विस्तार से कथन करना लिखो पढ़ी नागरिक जनता की बुद्धि का तिरस्कार है। संकेत--इस अभ्यास में और इससे अगले अभ्यासों में सुबन्त रूपावलि का अभ्यास कराने के लिये वाक्य संगृहीत किये गये हैं / इस ( १३वें) प्र० क०२