________________ १६-ब्रह्मचारी गुरु से प्राज्ञा पा जंगल से समिधा' लाते हैं / २०-बच्चा अग्नि में हाथ डाल देता है और माता उसकी और दौड़ती है। ____संकेत-यहां छोटे-छोटे वाक्य दिये गये हैं, जिनमें क्रियापद कर्तृवाचक है। इनके अनुवाद में कर्ता में प्रथमा और कर्म में द्वितीया होती है। कर्ता के अनुसार ही क्रिया के पुरुष और वचन होते हैं। ७--रामः शाङ्करं धनुरानमय्य सीतां पर्यषयत् / यहां 'पानमय्य' (=पा-नम्-णिच् ल्यप) ही निर्दोष रूप है। 'पानाम्य' अथवा 'पानम्य' सदोष होगा। ८-धात्री स्तनन्धयस्य पोत्राणि धावति / 'पोत्रं वस्त्रे मुखाग्ने च शूकरस्य हलस्य च' इति विश्वः / १०मनोरमा च प्रागायत्, सभा च प्राशाम्यत् / यहां प्रागायात् में 'प्र' आदिकर्म (प्रारम्भ अर्थ) में है। यहां 'गीतं प्रागायत्' कहना ठीक न होगा। इसमें केवल पुनरुक्ति-रूप दोष होगा, लाभ कुछ भी नहीं। इसी प्रकार-वाचमवोचत्, शपथं शपते, दानं ददाति, भोजनं भुङ्क्ते-इत्यादि प्रयोगों का परिहार करना चाहिये। हां, विशेषण-युक्त कर्म का प्रयोग सर्वथा निर्दोष होगा। अर्थ्यामर्थगुर्वी वा वाचमवोचत् इत्यादि / १२-विश्वामित्रश्चिरं तपश्चचार ब्राह्मण्यं च जगाम / यहां चर 3 का प्रयोग अधिक व्यवहारानुकूल है, कृ का नहीं। 'तपः करोति' ऐसा बहुत कम मिलता है। तप का प्रयोग भी कर्मकर्ता अर्थ में आता है, शुद्ध कर्ता अर्थ में नहीं। देवदत्तस्तपस्तप्यते / 'देवदत्तस्तपस्तपति' ऐसा नहीं कह सकते / तपस्तयप्ते तपोऽर्जयति / १६--मम पुस्तक ( पुस्तकं मे ) नास्ति। यहां 'मम पार्वे, ममान्तिके' इत्यादि कहना व्यर्थ है। १७-तरकं पतिष्यसि, यद् गुरूनवजानासि / कर्ता अर्थ में युष्मद्, अस्मद् का प्रयोग न करने में ही वाक्य की शोभा है / पत् के गत्यर्थ में सकर्मक व अकर्मक प्रयोगों के लिये "विषय-प्रवेश" देखो। अभ्यास-२ १-देवापि, शन्तनु और वाल्हीक ये प्रतीक के पुत्र थे। २--कर्ण और अश्वत्थामा पाण्डवो के जानी दुश्मन थे। ३--अच्छा यही ठहरा कि राम, श्याम और मैं अपना झगड़ा गुरुजी के सामने रख देंगे। ४-तुम ने और तुम्हारे भाई ने परिश्रम से धन कमाया और योग्य व्यक्तियों को दे दिया। ५तू और मैं इस कार्य को मिल कर कर सकते हैं, विष्णमित्र और यज्ञ १-समिध-स्त्री, इध्म, इन्धन, एधस्-नपु० / एध-पुं० / 2 अनल ज्वलन, हव्यवाहन, प्राश्रयाश-पुं० / ३-इसमें अष्टाध्यायी का 'रोमन्थतपोभ्यां वर्तिचरो:' ( 3 / 1 / 15) सत्र ज्ञापक है। 4-4 प्रातीपाः / ५--अश्वत्थामन् नकारान्त है। 6-6 प्राणद्र हो दुई दो। 7-7 संभूय /