________________ ( 36 ) को पढ़ते हुए बार-बार रुकना पड़ता है। ध्यान से देखा जाए तो यह मालूम होगा कि उपर्युक्त वाक्यों में सन्धि न होने से लगभग प्रत्येक पद के बाद विराम है / ऐसा प्रतीत होता है कि हम पृथक् 2 पदों को कह रहे हैं न कि योग्यता, आकाङ्क्षा, और पासत्ति के कारण जुड़े हुए एक वाक्य बनाते हुए पदों को (विश्लिष्टानि पदानि पठाम इति प्रतीतिर्जायते; न तु संसृष्टार्थपदमेकं वाक्यम्) / निश्चय ही हमारे प्राचीन कवियों या ग्रन्थकारों की भाषा इस प्रकार नहीं थी। पौर इसके विपरीत हमें नई परिपाटी घड़नी भी नहीं // इति // संस्कृतेन परीवर्ते विशेषज्ञोऽपि मुह्यति / विनेयास्त्रत्र मुह्य युरिति नो विस्मयाय नः // 1 // तेनात्र पद्धतिः काचित्करणीया प्रबोधिनी / सरला सरसा चैव शिष्टलोकानुमोदिता // 2 // इति च्छात्रप्रबोधाय कोविदप्रमदाय च / प्रयोगशुद्धये साध्वी प्रकुर्मः सरणिं नवाम् // 3 // शिष्टजुष्टा सृतिर्वाचां न्यक्षेणेह प्रदर्शिता। तदत्ययाश्च संभाव्या भूयो भूयो विगर्हिताः // 4 // ये ये च प्रायिका वाचि विनेयानां मतिभ्रमाः। सर्वे ते समनुक्रम्य सोपस्कारं निदर्शिताः // 5 // यद्यषा कामितां कुर्याच्छात्राणां वाचि संस्कृमिम्। ननं फलेग्रहियंत्नस्तदास्माकं भवेदयम् // 6 //