________________ बोष होने से वह अधिक पद सा प्रतीत होता है। इसलिये भी उसे छोड़ देने की ही शेली है। ६-त्वं वा ते वा दुश्चेष्टितमिदमनुयोज्याः सन्ति / इसको यों भी कह सकते हैं-त्वं वा दुश्चेष्टितमिदनुयोज्योऽसि ते वा। निष्कर्ष यह है कि विकल्पार्थक वाक्यों में चाहे पूर्व वाक्य में क्रियापद रखें चाहे उत्तर वाक्य में वाग्व्यवहार में किञ्चित् भी क्षति नहीं होती। जहाँ क्रिया पद होगा वहीं के कर्ता के अनुसार पुरुष और वचन होंगे। १४–देवदत्तो वा तत्सहाया ( सहचराः ) वा ह्य इममुद्धममाचरन् / __ अभ्यास-३ (विशेषण-विशेष्य की समानाधिकरणता) १-विधाता' की यह सुन्दर सृष्टि उनकी महत्ता को प्रकट करती है, पर वह इससे बहुत बड़ा है / २-इस लड़की की वाणी मीठी और सच्ची है / यह कुलीन होगी। ३–ये अपने ' हैं, अतः विश्वास के योग्य हैं / ४-वह मनाड़ी' कारीगर है, जिस काम को हाथ लगाता है, बिगाड़ देता है / ५-मैं इस समय खाली नहीं हूँ, मुझे अभी बड़ा' आवश्यक कार्य करना है। ६-मेरा नौकर' पुराना होते हुए भी विनीत तथा उत्साही है और तुम्हारा नया होते हुए भी उद्धत और आलसी / ७–भारतवर्ष के लोग आवभगत के लिये प्रसिद्ध हैं, विदेश से आये हए यहाँ घर का सा सुख पाते हैं। ८-हिन्दूजाति न्यायप्रिय एवं धर्मभीरु है। ६-ये ऊँचे कद के सिपाही पंजाब के सिक्ख हैं और ये छोटे कद के नेपाल के गोरखा। १०-माज पिताजी अस्वस्थ हैं, अतः उन्होंने कालेज से दो दिन की छुट्टी ले ली है। ११-यह लुभाने वाली भेंट है, इसे अस्वीकार करना कठिन है। १२-तू बड़ा अनजान है, ऐसे बातें करता है मानों रामायण पढ़ी ही नहीं। १३–देवदत्त १.विधि, विरिञ्चि शतधृति-पुं० / 2-2 इमे स्वाः(सगन्धाः, प्राप्ताः ) / 3-3 कुकारुक-पुं० / 4 निर्व्यापार, सक्षण-वि०। 5-5 प्रात्ययिक-वि०। 6 भृत्य, प्रेष्य,किकर, अनुचर, परिचारक, भुजिष्य-पु. / 7 मलस, शीतक, मन्द, तुन्दपरिमृज-वि०। 8-8 प्रलम्ब, प्रांशु--वि० / 6--6 अल्पतनु, पृश्नि-वि० / 10 लोभनीय-वि० / 11 उपहार-पु. / उपदा-त्री० / उपायन, प्रादेशन, उपग्राह्य-नएँ /