________________ दत्त नहीं। ६-न तुझे और न मुझे भविष्यत् का ज्ञान है, क्योंकि हमें आर्षदर्शन प्राप्त नहीं। ७-न तुम और न ही तुम्हारा भाई जानता है कि स्वाध्याय में प्रमाद हानि' करता है। ८-इस समय न राजा और न ही प्रजा प्रसन्न दीखते हैं, कारण कि सभी कर्तव्य से विचलित हो रहे हैं। ६-इस दुश्चेष्टित का तुम्हें और उन्हें उत्तर देना होगा। १०-बहू' और सास' को खटपटी रहती है, इसलिये घर' में शान्ति नहीं / ११-यह बल का काम या तो भीम कर सकता है या अजेन; कोई और नहीं। १२-कहा नहीं जाता कि मैं उन्हें जीतू अथवा वे मुझे जीतें। १३-मैं जानता हूँ या ईश्वर जानता है कि मैंने तुम्हें धोखा देने की चेष्टा नहीं की। १४-देवदत्त ने या उसके साथियों ने कल यह ऊधम मचाया था। १५-भूमि पर पड़े हुए उस महानुभाव के शरीर को न कान्ति छोड़ती है, न प्राण, न तेज और न पराक्रम / संकेत-यहाँ ऐसे वाक्य दिये गये हैं जिनमें एक ही क्रिया के अनेक कर्ता हैं-युष्मद्, अस्मद् और इनसे भिन्न राम, श्याम, यद् तद् आदि / कर्ताओं के अनेक होने से क्रियापद से बहुवचन तो सिद्ध ही है। पुरुष की व्यवस्था करनी है / कर्ताओं में से यदि एक अस्मद् हो तो क्रिया से उत्तम पुरुष होगा, यदि अस्मद् न हो और युष्मद् हो तो मध्यमपुरुष होगा, राम, श्याम, यद् तद् के अनुसार प्रथमपुरुष नहीं। जैसे-इदं तावद् व्यवस्थितं रामः श्यामोऽहं च विवादपदं निर्णयाय गुरवे निवेदयिष्यामः / इस ( अभ्यास के सातवें) वाक्य में अस्मद् के अनुसार ही क्रिया से उत्तम पुरुष हुआ। इसी प्रकार चौथे वाक्य में युष्मद् के अनुसार क्रिया से मध्यम पुरुष होगा-त्वं च भ्राता च परिश्रमेणार्थमार्जयतं पात्रेषु च प्रत्यपादयतम् / ६-न त्वमायति प्रजानासि न चाहम् न ह्यावयोरा दर्शनं समस्ति ( सम्-अस्ति)। ऐसे वाक्यों में कुछ विशेष वक्तव्य नहीं। यहाँ दोनों वाक्य नगर्थक ( निषेधार्थक) हैं। पहले में कर्ता के अनुसार क्रियापद दे दिया जाता है और दूसरे में नहीं। वह गम्यमान होता है। वक्ता संक्षेप-रुचि होने से उसे नहीं कहता / विवक्षितार्थ का स्पष्ट 1-1 हिनस्ति, रेषति / २-वधू, स्नुषा / ३-३वत्र / 4-4 नित्यं कलहायेते। ५-निकेतन, निवेशन, शरण, सदन, गृह, गेह-नपु०। 6-6 वञ्चयितुम्, प्रतारयितुम्, अतिसन्धातुम्, विप्रलब्धुम् /