________________ त्वमी / निभसंकाशनीकाशप्रतीकाशोपमादयः' यह वचन इसका ज्ञापक है। 'उत्तरपद' शब्द समास के चरमावयव (अन्त्यपद) में रूढ है। अतः 'ताराधिपनिभाननम्' के स्थान में 'ताराधिपेन निभम् आननम्' 'आकाश-नीकाशम्' के स्थान में 'आकाशेन नीकाशम्' इत्यादि नहीं कह सकते / कहीं-कहीं हम समास से विवक्षित अर्थ को नहीं कह सकते / हम 'रामो जामदग्न्यः' तो कह सकते हैं, पर 'जामदग्न्यराम' नहीं। इसी प्रकार हमें-'सर्वनिजधनम्'* न कहकर 'सव निजं धनम् 'वालोत्तमः' न कहकर 'वालानामुत्तमः' 'पूर्वच्छात्रः' न कहकर 'पूर्वश्छात्राणाम्' 'लोकधाता' न कहकर, 'लोकस्य धाता', 'सर्वविदितम्' (सबको विदित) न कहकर 'सर्वस्य विदितम्', 'सूत्रकारपाणिनेः' न कहकर 'पाणिनेः सूत्रकारस्य' ही कहना चाहिये / संख्यावचनों का दूसरे सुबन्तों के साथ यत्र-तत्र समास नहीं हो सकता। जहां हम-विशतिर्गावः, शतं स्त्रियः, सप्तसप्ततिश्छात्राः, पञ्चाशतं पुस्तकानि क्रीणाति, त्रिंशता कर्मकरैः परिखां खानयति, द्वयशीतये विद्यार्थिभ्यः पारितोषिकाणि दीयन्ताम्, शतस्याम्राणां कियन्मूल्यम्, चतुःषष्टी कलासु नदीष्णः इत्यादि (समास न करते हुए) कह सकते हैं, वहाँ 'विंशतिगावः,' शतस्त्रियः, सप्तसप्ततिच्छात्राः, पवचाशत्पुस्तकानि क्रीणाति, त्रिंशत्कर्मकरैः परिखां खानयति, द्वयशीतिविद्यार्थिभ्यः पारितोषिकाणि दीयन्ताम्, शताम्राणां कियन्मल्यम्, चतु:षष्टिकलासु नदीष्णः, इत्यादि समास करके नहीं कह सकते / हाँ, जहाँ समास से संज्ञा का बोध हो वहाँ समास निर्दोष है, जैसे-सप्तर्षयः, पञ्चाम्राः / ___समासों के परस्पर पौर्वापर्य के विषय में वाक्यरचनाप्रकरण में प्रसङ्गवश कुछ कह आये हैं / इस विषय में कुछ अधिक वक्तव्य है। वाक्य के स्थान पर समास बनाते हुये जहां नसमास भी करना है और दूसरे समास भी, वहां पहले दूसरे समास किये जायेंगे, पीछे नञ्-समास होगा। 'बलि (कर) से जो पीड़ित नहीं', जो 'स्नेह से नहीं जीता जा सकता', 'सूर्य से छिन्न-भिन्न * सर्वनिजधनम्-त्रिपद तत्पुरुष है और तत्पुरुष प्रायः द्विपद ही होता है प्रतः यह दुष्ट प्रयोग है / देवदत्तस्य गुरोः कुलम्-यहाँ 'देवदत्तगुरुकुलम्' ऐसा समास नहीं हो सकता / इसी प्रकार 'पावनं स्वं जन्म' के स्थान में 'पावनस्वजन्म' ऐसा समास नहीं हो सकता। +समासान्त टच् करने पर विशतिगवाः' ऐसा अनिष्ट रूप होगा।