________________ ( 29 ) "मुझे जाने की प्राज्ञा दो" इस वाक्य का अनुवाद-'अनुजानीहि मां गमनाय' होना चाहिये, न कि 'अनुजानीहि मां गन्तुम्' / यहाँ तिङन्त क्रिया का कर्ता 'युष्मद्' है, और तुमुन्नन्त का 'अस्मद्। 'उसने अपने नौकर को कुएँ से जल लाने के लिये कहा। इस वाक्य का ‘स भृत्यं कूपाज्जलमाहर्तुमादिशत्' इस प्रकार का संस्कृत अनुवाद व्याकरण के विरुद्ध है। इस वाक्य का अनुवाद इस प्रकार होना चाहिए-स भृत्यं कूपाज्जलमाहरेत्यादिशत् / 'गुरु ने शिष्य को उपद्रव से रोका।' इसका यह संस्कृत अनुवाद है- गुरुः शिष्यं चापलेनालमित्युपादिशत् / (अथवा ‘मा स्म चापलं करोरित्युपादिशत्')। 'गुरुः शिष्यं चापलं कत्त न्यषेधत्'-ऐसा नहीं कह सकते। 'उसने स्वामी की हत्या के लिये नौकरों को प्रेरित किया' इसका अनुवाद-'स स्वामिनं हन्तुं भृत्यानचोदयत्' यह अनुवाद न होकर ‘स स्वामिहत्याय भृत्यानचोदयत्', इस प्रकार से होना चाहिये। यह स्मरण रखना चाहिए कि संस्कृत में 'तुमुन्नन्त' किसी क्रिया का कर्ता और कर्म बन कर प्रयुक्त नहीं हो सकता / 'प्रातः काल भ्रमण करना प्रारोग्यकारक है' इसका अनुवाद 'प्रातविहर्तुमारोग्यकरम्' न होकर 'प्रातविहार आरोग्यकरः' (प्रातविहरणमारोग्यकरम्) इस प्रकार होना चाहिए। यद्यपि तुमुन् 'भाव' में होता है जैसा कि 'ल्युट' व 'घन्' होते हैं। इसी प्रकार 'मैं गाना सीखता हूँ' इसका अनुवाद-'अहं गातुं शिक्षे' की अपेक्षा 'अहं गानं शिक्षे' इस प्रकार होना चाहिए। समास-छात्रों को जब तक समास विषयक अभ्यास न दिया जाय, तब तक साधारणतया समास का प्रयोग नहीं करना चाहिए। इसका यह कारण नहीं कि उनका समास सम्बन्धित ज्ञान बहुत संकुचित है (जैसा कि प्रायः देखा गया है) प्रत्युत यह भी उन्हें मालूम नहीं होता कि समास का कब प्रयोग करना चाहिये, और कब नहीं। प्रायः देखा गया है कि छात्र समास का प्रयोग करते करते शब्दों का बेढब सा जोड़ कर बैठते हैं, जिससे वाक्य का प्रसाद गुण नष्ट 'ददाति' का कर्ता 'वाष्प' है और 'द्रष्टुम्' का 'दुष्यन्त' है। पर 'दुष्यन्त' की सम्प्रदानता विवक्षित है, अतः भिन्नकर्तृकता रूपी दोष नहीं है। द्वितीय वचन में सुरसुन्दरियों की सम्प्रदानता शब्दोक्त है। अतः ‘स्मर्तुम्' की कर्तृता विवक्षित नहीं / एक काल में एक पदार्थ के विषय में एक कारक की ही विवक्षा हो सकती है /