________________ [ 27 ] जब हम लड का प्रयोग करते हैं तो वाक्य को बनाने वाले दोनों वाक्यांशों में करते हैं / परन्तु उपर्युक्त वाक्य का पहला वाक्यांश सोपाधिक (संकेतार्थक) नहीं है / यहाँ पूर्व वाक्य हेतुरूप नहीं है। अतएव इसमें कार्य के मिथ्यापन (-प्रसत्त्व) अथवा प्रसिद्धि का प्रश्न ही नहीं उठता / एवं इस वाक्य का हमें इस प्रकार अनुवाद करना चाहिए-'अक्षमोऽसि सितासिते विवेक्तुमिति व्यक्तम्, नो चेद् दग्धं रोटिकाशकलं नात्स्यसि'। यहाँ हमने लट् का प्रयोग किया है। इसके लिये हमारे पास लौकिक संस्कृत के कवियों का प्रमाण है-देखिए, 'त्वन्नियोगाद्रामदर्शनार्थ जनस्थानं प्रस्थितः कथमहमन्तरा प्रतिनिवतिष्ये' (प्रतिमा 6) (बीच में ही कैसे लौट आता है) / 'अन्यथा कथं त्वामर्चनीयं नार्चयिष्यामः' (मालविका) (नहीं तो पूजा के योग्य आपकी पूजा हम क्यों न करते) / 'अन्यथा कथं देवी स्वयं धारितं नूपुरयुगलं परिजनस्यानुज्ञास्यति' (मालविका०) / और देखिये यद्यहं गात्रसंस्पर्श रावणस्य गता बलाद् / श्लोकार्थ अनीशा किं करिष्यामि विनाथा विवशा सती / / (रामायण) शत्रन्त वा शानजन्त-लट् के स्थान में शतृ व शानच् प्रत्यय होते हैं। शत और शानच् प्रत्ययों से बने हुए कृदन्त (प्रातिपदिक) विशेषण वा विधेय रूप से प्रयुक्त होते हैं / इनके विधेय रूप से प्रयोग का विषय बहुत सीमित है। आचार्य पाणिनि के अनुसार शत्रन्त व शानजन्त शब्दों का प्रयोग उस समय होना चाहिये जब ये अप्रथमान्त कर्ता वा अप्रथमान्त कर्म के साथ समानाधिकरण (एक विभक्तिक) हों / 'पचन्तं चैत्रं पश्य' (पकाते हुए चैत्र को देख) / 'पच्यमानमोदनं पश्य' (पकाये जाते हुए चावलों को देख)। परन्तु 'चैत्रः पचन्' (अस्ति) -चैत्र पका रहा है-ऐसा नहीं कह सकते हैं। 'चैत्रः पचति' ऐसा ही कह सकते हैं / एवं 'कटं कुर्वाणोऽस्ति' नहीं कह सकते हैं। 'कटं कुरुते' (-चटाई बना रहा है)-ऐसा ही कह सकते हैं / 'रावणो हन्यमानोऽस्ति' (रावण मारा जा रहा है) नहीं कह सकते, 'रावणो हन्यते'-ऐसा ही कह सकते हैं / अतः 'वह जा रहा है', 'वे खा रहे हैं', 'मेह बरस रहा है' 'हम विचार कर रहे हैं' इत्यादि के ‘स गच्छन्नस्ति, ते भुञ्जानाः सन्ति, देवो वर्षन्नस्ति, वयं विचारयन्तः स्मः'-इत्यादि अाधुनिक संस्कृत अनुवाद सर्वथा हेय हैं / कृदन्त प्रातिपदिक होते हुए पचत् आदि शब्द तिङन्त क्रिया पदों के पूर्णरूप से स्थानापन्न कैसे हो