________________ ( 24 ) दिवादि (हिंसा, हानि, क्रोध) अर्थ में अकर्मक है, और रुष् रिष् भ्वा० (हिंसा अर्थ में) सकर्मक हैं / ‘मा वो रिषत् खनिता यस्मै चाहं खनामि वः' (ऋग् 10 / 67 / 20) / यहाँ 'रिषत्' दिवादि रिष् का लुङ् है / पुषादि होने से यहाँ प्रङ् प्रत्यय हुआ है / मा रिषत्-हिंसां मा प्रापत् = हानि को मत प्राप्त होवे / 'ततोऽरुष्यदनर्दच्च (भट्टि 17 // 40 // ) / मा मुहो मा रुषोऽधुना' (भट्टि 15 / 16 // ) / मी दिवादि प्रात्मनेपदी हिंसा अर्थ में पढ़ी है, यह अकर्मक है / 'न तस्य लोमापि मीयते / ' (उपनिषद्) / स्थाणु वर्छति गर्ने वा पात्यते प्रमीयते वा (=अथवा वेदोक्त आयु भोगने से पहले ही मर जाता है) (सर्वानुक्रमणी) मी कयादि सकर्मक है / मिनाति श्रियं जरिमा तननाम्' (ऋ 1176 / 1) / तुभ् दिवादि संचलन अर्थ में पढ़ी है। यह अकर्मक है / 'मन्थादिव सुम्यति गाङ्गमम्भः' (उत्तररामचरित) इसी अर्थ में क्रयादि गण में पढ़ी हुई भी यह अकर्मक ही है / यह पूर्वोक्त का अपवाद है / 'लीङ श्लेषणे' दिवा० अकर्मक है और कयादि सकर्मक / कयादि गण की प्रायः सभी धातुएं सकर्मक हैं। गृध् और लुभ् (लालच करना) ये दोनों दिवादि धातुएँ अकर्मक हैं / गृथ् का तिङन्त प्रयोग लौकिक साहित्य (काव्य नाटकादि) में बहुत कम मिलता है / हां, महाभारत में 'परवित्तेषु गृध्यतः' (उद्योग 72 // 18 // ) यह प्रयोग मिलता है / वेद में प्रचुर व्यवहार है, और वहाँ सर्वत्र यह अकर्मक ही है-'यस्यागृधवेदने वाज्यक्षः (ऋ० 10 // 34 // 4 // ) / 'लुम्' को अकर्मकता.में तनिक भी सन्देह नहीं हो सकता। 'लुब्ध' में कर्ता अर्थ में 'क्त' ही इस बात का सुलभ तथा दृढ़ प्रमाण है। "तथापि रामो लुलुभे मृगाय" / यहाँ प्रात्मनेपद व्याकरण-विरुद्ध है / चतुर्थी की अपेक्षा सप्तमी (मृगे) का प्रयोग अधिक अच्छा होगा। ____ कुछ धातुएं धातु पाठ में तो स्पष्ट ही अकर्मक पढ़ी हैं (उनका अर्थ निर्देश ही ऐसा हुआ है), पर साहित्य में सकर्मक रूप में प्रयुक्त हुई हैं / जैसेश्च्युत् स क्षर् स्यन्द् / श्च्युत् (अकर्मक)-एतास्ता मधुनो धाराः श्च्योतन्ति सविषास्त्वयि (उ० चरित)। सकर्मक-लोचनेनामृतश्चुता (कथासरित्सागर 101 / 304 / / ) / यहां अन्तर्भूतण्यर्थ समझना चाहिये। स्र, (अकर्मक) -'अवस्रवेदघशंसोऽवतरम् (ऋ० 11126 // 6 // ) / स्रवत्यनोङ कृतं पूर्व पश्चाच्च विशीर्यते ( मनु० 2 / 74 ) / धनाद्धि धर्मः स्रवति ___ * गृध् की अकर्मकता के अन्य लौकिक उदाहरणों के लिए शब्दापशब्दविवेक की भूमिका में धातु प्रकरण देखो।