________________ ( 18 ) अब यह विचार करना है कि वाक्य में उद्देश्य की कर्तृता मानी जावे या विधेय की। इसी प्रकार विवक्षानुसार उद्देश्य को कर्म माना जाय या विधेय को। अर्थात् तिङन्त पद का पुरुष और वचन उद्देश्य के अनुसार होना चाहिये अथवा विधेय के अनुसार और तन्त पद प्रयोग होने पर उद्देश्य के लिंग वचन होंगे या विधेय के / संस्कृत वाङ्मय को देखने से पता लगता है कि वैदिक लौकिक उभयविधि साहित्य में प्रायः उद्देश्य का कर्तृत्व और कर्मत्व माना गया है। समुद्रः स्थः कलशः सोमधान: (ऋग्वेद ) / अप्यर्थकामो तस्यास्तां धर्म एव मनीषिणः ( रघुवंश ) / प्राची बालबिडाललोचनरुचां जाता च पात्र ककुप् (बालरामायण ) / बालानां तु शिखा प्रोक्ता काकपनः शिखण्डकः ( हलायुध ) / भारः स्याद् विंशतिस्तुलाः (अमर)। इस विषय में उदाहरणों की कोई कमी नहीं। विधेय के कर्तृत्व वा कर्मत्व में हमें यत्न करने पर भी इने गिने ही उदाहरण मिले हैं। यस्मिन्त्सर्वाणि भूतान्यात्मवाभूद् विजानतः / तत्र को मोहः कः शोक एकत्वमनुपश्यतः // ( यजुः ) श्रुतिस्तु वेदो विज्ञेयो धर्मशास्त्र तु व स्मृतिः ( मनु० ) / सुवर्षपिडः खदिराङ्गारसवणे कुण्डले भवतः ( भाष्य ) * पणानां द्वे शते साधं प्रथमः साहसः स्मृतः ( मनु० 8 / 138 // ) / सप्तप्रकृतयो हताः सप्ताङ्ग राज्यमुच्यते ( मनु० 6 / 264 // ) / एको भिक्षुर्यथोक्तस्तु द्वौ भिजू मिथुनं स्मृतम् / त्रयो ग्रामः समाख्यात ऊध्वं तु नगरायते (दचस्मृति 7 // 34 // ) द्वौ द्वौ मासावृतुः स्मृतः ( खीर से उद्धृत कात्य का पचन ) / धाना चूष सक्तवः स्युः ( क्षीर ) / * इस पर नागेश का कहना है कि भाष्ये 'खदिराडार' इति प्रयोगादच्च्यन्ते विकृतेः कर्तृत्वं बोध्यम् /