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आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन
[ खण्ड : २
करते हैं। एक प्रकार से यह भाषा केवल मानव-समुदाय तथा देव-वृन्द तक ही सीमित नहीं है, पशु-पक्षियों तक व्याप्त है। प्राकृत-विद्वानों का अभिमत
जैन शास्त्रकारों या व्याख्याकारों ने ही नहीं, अपितु कतिपय उत्तरवर्ती जैन-अर्जन प्राकृत विद्वानों ने भी इस सम्बन्ध में इसी प्रकार के उद्गार प्रकट किये हैं। ग्यारहवीं शताब्दी के सुप्रसिद्ध अलंकार शास्त्री नमि साधु ने प्राकृत की व्याख्या करते हुए लिखा है : “प्राकृत, व्याकरण आदि के संस्कार से निरपेक्ष समस्त जगत् के प्राणियों का सहज वचन-व्यापार-- भाषा है ।............ प्राकृत का अर्थ प्राक् कृत = पूर्व कृत अथवा आदि सृष्ट भाषा है। वह बालकों, महिलाओं आदि के लिये सहजतया बोधगम्य है और सब भाषाओं का मूल है।"1
भोज-रचित सरस्वती कण्ठाभरण के व्याख्याकार आजड़ ने भी इसी प्रकार का उल्लेख किया है। उनके अनुसार प्राकृत समस्त जगत् के प्राणियों का स्वाभाविक वचन-व्यापार है, शब्दशास्त्रकृत विशेष संस्कारयुक्त है तथा बच्चों, ग्वालों व नारियों द्वारा सहज ही प्रयोग में लेने योग्य है। सभी भाषाओं का मूल कारण होने से वह उनकी प्रकृति है अर्थात् उन भाषाओं का वह (उसी प्रकार) मूल कारण है, जिस प्रकार प्रकृति जगत् का मूल कारण है।
प्रसिद्ध कवि वाक्पति ने गउडवहो काव्य में प्राकृत की विशेषताओं का उल्लेख करते हुए कहा है : "जैसे जल-नदियां समुद्र में मिलती हैं और उसी से ( वाष्प रूप में ) निकलती हैं, उसी तरह भाषाए प्राकृत में ही प्रवेश पाती हैं और उसी से निकलती हैं।" रोमन कैथोलिक मान्यता
ईसाई धर्म में भी भाषा के विषय में इसी प्रकार की मान्यता है। इस धर्म के दो सम्प्रदाय हैं-रोमन कैथोलिक और प्रोटेस्टेण्ट। रोमन कैथोलिक प्राचीन है। उनका सर्वमान्य ग्रन्थ ओल्ड टेस्टामेंट है, जो हिन में लिखा गया है। उनके अनुसार परमात्मा ने सबसे पहले पूर्ण विकसित भाषा के रूप में इसे आदम और हव्वा को प्रदान किया। उनका १. सकलगज्जन्तूनां व्याकरणादिभिरनाहित संस्कारः सहजो वचनव्यापारः प्रकृतिः, तत्र भवं
सैव वा प्राकृतम् । ............."प्राक् कृतं प्राकृतं बालमहिलादिसुबोधं सकलभाषानिबन्धनभूतं वचनमुच्यते । २. सकलबालगोपालांगनाहृदयसंचारी निखिलजगज्जन्तूनां शब्दशास्त्रीकृतविशेषसंस्कारः सहजो वचनव्यापारः समस्तेतरभाषाविशेषाणां मूलकारणत्वात् प्रकृतिरिवप्रकृतिः तत्र भवा सैव
या प्रकृतिः। ३. सयलाओ इयं वायाविसंति एतो य गति वायाओ। एति समुह चियःणेति सायराओ च्चिय जलाई ॥ ९३ ॥
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