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भाषा और साहित्य ]
विश्व भाषा प्रवाह
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महावंस के परिवर्द्धित अंश चूलवंस का भी इसी प्रकार का एक प्रसंग है । रेवत स्थविर के आदेश से आचार्य बुद्धघोष लंका गये । वहां उन्होंने सिंहली अट्ठकथाओं का मागधी में अनुवाद किया । उसका उल्लेख करते हुए वहां कहा गया है : "सभी सिंहली अटुकथाए मागधी भाषा में परिवर्तित - अनूदित की गयीं, जो ( मागधी ) समस्त प्राणी वर्ग की मूल भाषा है ।'' 1
मागधी या पाली के सम्बन्ध में जो सिंहली परम्परा का विश्वास है, वैसा ही बर्मी परम्परा का भी विश्वास है । इतना ही नहीं, पालि त्रिपिटक में विश्वास रखने वाले प्राय: सभी बौद्ध धर्मानुयायी अपनी धार्मिक भाषा पालि या मागधी को संसार की मूल भाषा स्वीकार करते हैं ।
जैन मान्यता
जैन परम्परा का भी अपने धर्म-ग्रन्थों की भाषा के सम्बन्ध में ऐसा ही विश्वास है । जैनों के द्वादशांगमूलक समग्र आगम अर्द्ध - मागधी में हैं । उनकी मान्यता है कि जैन आगम तीर्थंकर महावीर के मुख से निकले उपदेशों का संकलन हैं, जो उनके प्रमुख शिष्योंगणधरों द्वारा किया गया था । उनके अनुसार अद्ध मागधी विश्व की आदि भाषा हे | सूत्रकृतांग नियुक्ति पर रचित चूर्णि में उल्लेख है : " प्राकृत भाषा ( अर्द्धमागधी ) जीव के स्वाभाविक गुणों से निष्पन्न है । " " यही ( अद्धमागधी ) देवताओं की भाषा है, ऐसा जैनों का विश्वास है । कहा गया है : "अद्ध मागधी आषं एवं सिद्ध वचन है, देवताओं की भाषा है।"
तीर्थंकर जब धर्म देशना करते हैं, उनके समवसरण ( विराट श्रोतृ-परिषद् ) में मनुष्यों देवताओं आदि के अतिरिक्त पशु-पक्षियों के उपस्थित रहने का भी उल्लेख है। तीर्थंकरों की देशना अद्धमागधी में होती है । उस ( तीर्थंकर भाषित-वाणी ) का यह अतिशय या वैशिष्ट्य होता है कि श्रोतृ-वृन्द द्वारा ध्वन्यात्मक रूप में गृहीत होते ही वह उनकी अपनी भाषा के रूप में परिणत हो जाती है अर्थात् वे उसे अपनी भाषा में समझते हैं । उपस्थित तिर्यंच ( पशु-पक्षी - गण ) भी उस देशना को इसी ( अपनी भाषा में परिणत ) रूप में श्रवण
१. परिवत्त सि सव्वापि सीहलट्ठकथातदा । सव्वेसं मूलभासाय मागधाय निरूतिया || -चूलवंस, परिच्छेद, ३७ २. जीवस्स साभावियगुणेहिं ते पागतभासाए । ३. आरिस वयणो सिद्ध देवानं अद्धमागहा बाणी ।
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