Book Title: Shivkosha
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: Karunashankar Veniram Pandya
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पूज्य जैनाचार्य श्री घासीलालजी महाराज विरचित श्री शिवकोप पंडित करुणाशंकर वेणीराम पंडया काव्यतीर्थ बीर संवस २५०१ विक्रमसंवत् २०३३ इस्वीसन् १९७६ Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पूज्य जैनाचार्य श्री घासीलालजी महाराज विरचित र श्री शिवकोष IN प्रकाशक पंडित करुणाशंकर वेणीराम पंडया . काव्यतीर्थ वीर संवत् २५०१ विक्रमसंवत् ..२०३३ इस्वीसन् १९७६ Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्राप्तिस्थान ‘करुणाशंकर बेणोराम पंडया. ठि० डॉ० गगंधो की चाली नं. ९२।१० चमनपुरा असारवा अमदाबाद प्रत १००० कीमत रु. ६ श्री रामानन्द प्रिन्टिग प्रेस कांकरिया रोड महमदाबाद-२२ Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जयतु वीरः प्रकाशकीय निवेदन जैन समाज में जैनाचार्य जैनधर्म दिवाकर पूज्य आचार्य श्री घासीलाल महाराज से कोन अपरिचित है ? विश्व में जैसा सूर्य का प्रकाश फैल रहा है वैसा ही आचार्य महाराजका यशरूपिसुप्रकाश प्रकाशित हो रहा है, इसमेंभी श्रीस्थानकवासी जैन समाज पर महाराज सा. का. अवर्णनीय उपकार है कारण की जैन समाजमें जो बत्तीस आगम ग्रन्थ है उनके ऊपर स्थानक वासी समाज की मान्यता याने प्ररूपणा के अनुसार शास्त्रग्रन्थ में अर्थ घटन नहीं था । इस क्षति को दूर करने के लिये पूज्य आचार्य श्री ने बत्तीस आगम की स्थानक वासी समाजकी प्ररूपणानुसार का अर्थघटन कर के स्वतन्त्र संस्कृत टीका एवं उसका हिन्द। गुजराती भाषानुवाद सहित सामान्य वर्ग भो सरलता से समजसके इस प्रकार बत्तीस आगम ग्रन्थों की रचना की बत्तीस आगम ग्रन्थ पैकी कई ग्रन्थ म.. सा. की विद्यमानता में ही प्रकाशित हो गये थे और जिन ग्रन्थ का प्रकाशन कार्य अवशिष्ट रहा वह कार्य पूर्ण करने के लिए श्री. अ. भा. श्वे. स्था० जैन शास्त्रोद्धार समिति एवं म.सा. के सुशिष्य संस्कृत प्राकृतज्ञ पण्डित मुनि श्री कन्हैयालालजी म. सा. पूर्ण धगश से अविरत श्रम पूर्वक कार्य कर रहे हैं। पूज्य आचार्य श्री ने आगम ग्रन्थ से अलावा जैन जगतमें उपयोगी बने इस प्रकार के न्याय व्याकरण, साहित्य एवं कोषके & Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ग्रन्थों की रचना भी की है, जो अभि अप्रकाशित है एवं आगम ग्रन्थ का पूर्णतया प्रकाशन हो जाने के बाद इन ग्रन्थों के प्रकाशन के लिये योग्य विचारणा की जायेगी ऐसा उक समिति विचारणा में हैं ___ आगम ग्रन्थ के साथ साथ थोड़ा थोड़ा इन ग्रन्थों का भी प्रकाशन कार्य हो जाय तो आगम के साथ साथ बहुत सा कार्य को निवृत्ति सत्वर हो जाय इस उद्देश्य से आचार्य श्री रचित 'शिव कोष' का प्रकाशन करने को म. मा. कन्हैयालालजी म. ने मुझे उत्साहित किया. इस ग्रन्थ में आचार्य श्रीने संस्कृत शब्द एवं जैन पारिभाषिक शब्दो का संग्रह किया है एवं केवल संस्कृत जानने वालों को ही उपयोग में आवे ऐसा न करके साथ साथ हिन्दी भाषा के जानकार सर्व जनोपयोगी हो इस हेतु से हिन्दी अनुवाद दिया है जिससे कोष के पढने वाले भी सरलता से उपयोग कर सके. संस्कृत भाषा में कोष का अर्थ खजाना होता है जिस प्रकार राजा के चार अङ्ग में कोष (खजाना) को 'प्रधान गिना है कारण की कोष समृद्ध न होने पर अन्य सैन्यादि अङ्ग नहीं निभसकता उसी प्रकार जिस भाषा का कोष समृद्ध न हो वह भाषा असमृद्ध याने अल्पजीवि हो जाती है मतः आचार्य श्री का इस कोष ग्रन्थ को प्रकाशित करने का कार्य मैंने समुचित माना है आशा है कि आचार्य श्री के भक्त Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जन एवं सुज्ञजन इस कार्य को अपना कर के मेरे उत्साह को चढावें जिससे आचार्य श्री के अन्य अप्रसिद्ध ग्रन्थों को प्रकाशित करने कि विचारणा कर सके. इति शम् सुज्ञेषु किं बहुना और अधिक क्या कहें ? इस ग्रन्थ का प्रकाशन होने के पहले से सौ प्रत के ग्राहक बनने के लिये श्रीमती अ. सौ. पानकुवर बहेन घोंगडमलजी कानुंगा गढसिवाना वाले ने अपना नाम देकर मुझे प्रोत्साहित किया है अतः आपका सधन्यवाद आभार प्रकट करता हूँ । + पंडित करुणाशंकर वे पंडया, काव्यतीर्थ ता. क. - यह ग्रन्थ बहुजनोपयोगी हो इस भावना से केवल पडतर कीमत से ही देने को रखा है. प्राप्तिस्थान पंडित करुणाशंकर हि० डाँ० गांधी की चाल चमनपुरा न ० ९२/१० अहमदाबाद Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अशुद्ध गाद्वादिन कहने सृमन्त बर्हितुख उकरण नीलोहित भाया सप्तर्चिः हक्कावे ग्व बृहस्पतेः शदिश्यं. गणरत्रं काल्गुनस्य वसन्नस्य तस्त्रावे तृताया द्रोह द्व प्राक्ती ६. शुद्धि पत्र शुद्ध स्याद्वादिन् कहते समन्त बर्हिमुख उपकरण नीललोहित भार्या सप्तार्चिः क्कीबे ख बृहस्पतेः दिश्यं गणरात्रं फाल्गुनस्य वसन्तस्य स्त्रोत्वे तृतीया द्रोह द्वे प्रोक्तं पेज २ ४ 9 m १४ २० १५ १६ १७ २४ २७ ३१ ३४ 6 ३७ ३८ ३८ ४२ ४३ ४३ ४८ पंक्ति १८ १७ ९. १९ २. १० १ ४ ४७ ८ ६ Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अशुद्ध कठारस्य घोष कठोरस्य घोष त्रीणि - m4 পি 25 355 भरय भैरव मूळ POnce MNS . . G com. Mmm गुंजरा गुंजरी मोरहाडी मोरहाटी डिण्डिभो डिण्डिमो शङ्गारः शृङ्गार डिण्डिभ डिण्डिम भूर्जा धाण घोण त्रिषु कृष्छु दा जलाधान्याल वाला जलधानीस्या दालवालं ६८ वापोवालस्तु क्षुद्रजे लधकृतौ नास्तरिः स्तरिः कवर्त कैवर्त मुद्या मचा सवतः सर्वतः त्रिपु uru कृच्छ Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अशुद्ध डा कूरुचरा कणिकारः तान केनिल: भण्ड मत मूरिदुग्धा थनन्ता छिकके मुनिधोन्यं मोढकी रोन बालभूषिक, कत्या श्रद्वालु दोहदायिनी गुविणी पैतृष्वसृय स्वञ्ज रुक्तप्रकार शुद्ध V कूडा कचरा कर्णिकारः तीन फेनिल: भण्डी मतः भूरिदुग्धा अनन्ता छिक्किके मुनिधान्यं आढको रसोन बालमूषिक; कन्या श्रद्धालु दोहदार्थिनी गुर्विणी पैतृष्वस्रेय स्वञ्जे रुक्प्रतीकार पेज ९० ९९ १०३ १०४ ११३ ११६ ११६ १२१ १२३ १२७ १२७ १२८ १४३ १५२ १५५ १५५ १५५ १५६ १६२ १६३ पंक्ति २१ १ १.२ ४ १५. ३ १६ ८ ६ V १. १९ १४ ७ ४ ४ ཡ १ १३. Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंक्तिः अशुद्ध सिहतलः १११ ब्राह्मचारी गायंसं कसण्डलु सिंहतलः ११० ब्रह्मचारी पायसं कमण्डलु पेज १७३ १७८ १८३ १८६ १८९ १९४ का घाटा घोटी २०६ मर्गः मार्गः २०८ अवमर्दो २२३ क्षत्र वाधुकिन् वृद्धजीव छागी अवमंदों क्षेत्रं वार्धकिन् वृद्धयाजीव पछागी मेद तुर्या श वजन सुतः कल्पपाल रक्मकृत विक्रयी २२७ २२७ २२७ २३५ २३५ २३८ मेढू २३८ तुर्याश वजट सुरतः कल्पाल रुक्मकत् विक्रमी ० २४१ २४३ २४३ २४५ ० Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अशुद्ध महाधायः वींज्ञवेश -स्थाल्लों ताम विपर्यय मिथ्यामिति पाश्य जवातृक • अघान लोभा हृद्यअभीष्ट गुथे वागलङ्का मृ वत्र शीषक कृच्छ आसन रीति श्रुत शुद्ध क्षुराधारः वीरावेश स्याल्लोत्रं नाम विपर्यये मिथ्यामति पाश्या नैवातृक अघीन लोभी हृद्यमभीष्ट गूंथे वागलङ्कार मूर्ख वज्र शीर्षक कृच्छ्र आसव रीति : श्रुतं १० पेज २४६ २४९ २४८ २४९ २५४ २५९ २६१ २६३ २६५ २६५ २७५ २७८ २८७ २८९ २९० २९० २९३ २९४ ३०३ ३०४ पंक्ति ६ १९ १ १२ १३ १२ १६ १ २१ २३ १२ ११ १८ २१ १५ ms ३ ५ Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पातमें पीतमें मनाषि मनीषि भूमृत् भूभृत् कुलयघर कुलायघर मथुनं __ मैथुनं -स्त्र स्त्रो० माच्छदना माच्छादना क्लोब (४) लीब पेज . ३०५ ३०७ ३०७ ३१३ ३१८ ३१८ ३१९ ३२० क्षर अस्ति अस्थि शुल्कयोः शुक्लयोः कतन केतन शीला शील लला लीला प्रावृदकाल प्रावृह्काल कुङ्मलार्थाघ कुड्मलाधि परिबह परिबह अनुमान अनुनय ३२७ ३२८ ३३२ ३३४ ३३७ ३३७ ३४० ३४१ ३४५ ३५१ ३५४ मा _ मा । मा 'लिङ्गादान् लिङ्गादीन् ३५५ Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पेज पंक्ति जैसे ३५६ v दोन in n w अशुद्ध शुद्ध नसे स्वधी स्वधा, दोनों पुनर्भावः पुनर्भवः वाचाक वाचक छुरदा छुरा शाचः शोचिः सम शर्म सुगमम् संगमम् . अपत्यत्य अपत्य ३५७ ३५९ ३६० ३६० ३६४ ३६५ २६६ in a v a ३७० ३७० 5 समाप्त Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ श्री ॥ ॥ वीतरागाय नमः॥ जैनाचार्य-जैनधर्मदिवाकर-पूज्य श्रीघासीलालजी महाराजविरचितः शिवकोषः -11००।-॥ देववर्गः ॥ - मङ्गलाचरणम् ---- इन्द्रचन्द्रनरेन्द्राणां वन्धं वन्दे जिनेश्वरम् । प्रौव्योत्पादव्ययाधारं शब्दलिङ्गावबुद्धये ॥१॥ श्रीवर्धमानं च शिवस्वरूपं शिवप्रधानं शिवदं प्रणम्य । प्रयत्नतोऽहं व्रति घासीलालः करोमि कोषं च शिवाभिधानम् परिभाषा रूपभेदात् साहचर्यात् सुप्रसिद्धरपि कचित् । कचिद् विशेषनाम्नैव लिगमत्र निरूपितम् ॥३॥ त्रिविति स्यात् त्रिलिङ्गेषु द्विलिङ्गेषु द्वयोरिति निषिद्धलिङ्गं सर्वत्र शिष्टस्पष्टाबबुद्धये ॥४॥ द्वन्द्वाद्यभावो लिङ्गानां पार्थक्येन प्रतीयते । कचित्कचिद्यथायोगं बोद्धव्यः शुद्धबुद्धिभिः ॥५॥ तु शब्दान्तोऽथ शब्दादिः क्वापि पूर्वप्रनान्वितः । माय एकार्थकाः शब्दा एकत्रैव प्रपश्चिताः ॥६॥ Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ देवबह: प्रथमकाण्डम् जिननामानि २४ चतुर्विशतिः तोर्थङ्करो जिनेशोऽहन केवली बोधिदो जिनः । स्वयंभूर्भगवान् शम्भु जगत्पति-रधीश्वरः ::७॥ देव स्त्रिकालविच्चैव क्षीणकर्माऽथ पारगः । सर्वज्ञोऽभयदः सार्व: स्याद्वादी सर्वदर्शकः ॥८॥ आप्तस्तीर्थ करो देवाधिदेवः पुरुषोत्तमः । वीतरागः पुमांसोऽमी सर्वे ते जिनवाचकाः ॥९॥ अतोति २४ चतुर्विशतिः अतीतोत्सर्पिणी काले चतुर्विशोऽहंतां क्रमः । केवलज्ञानि निर्वाणि सागराश्च महायशाः ॥१०॥ विमल: सर्वानुभूतिः श्रीधरो दत्ततीर्थकृत् । दामोदरः सूतेजाश्च स्वामी च मुनिसुव्रतः ॥११॥ सुमतिश्च शिवगति रस्ताधश्च नमीश्वरः । हिन्दी-जिन भगवान् के चौवोस नाम-तीर्थकर १, जिनेश २, अर्हन् ३, केवलिन् ४, बोधिद ५,स्वयंभू ६, भगवत् ७, शम्भू ८, जगत्पति ९, अधीश्वर १०, देव ११, त्रिकालविद् १२ क्षीणकर्मन् १३, पराग १४, सर्वज्ञ १५, अभयद १६, सार्व १७ स्गाद्वादिन् १८, सर्वदर्शक १९, आप्त २०, तीर्थकर २१, देवा घिदेव २२, पुरुषोत्तम २३, वीतराग २४ सब पुं० हिन्दी-अतीतकाल की चौवीसी के नाम केवलज्ञानिन् १, निर्वाणिन् २, सागर ३, महायशस् ४, विमल ५, सर्वानुभूति ३, श्रीधर ७ दत्ततीर्थकृत् ८, दामोदर ९, सुतेजस् १०, स्वामिन् ११, मुनिमुव्रत १२, सुमति १६ शिवगति १४, अस्ताघ १५, नमीश्वर Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रथमकाण्डम् देववर्ग: अनिलो यशोधराख्यः कृतार्थश्च जिनेश्वरः ॥१२॥ शुद्धमतिः शिवकरः स्यन्दनः सतिस्तथा । वर्तमान २४ चतुर्विशतिः एतस्यामवसर्पिण्या मृषभाऽजितसम्भवाः ॥१३॥ अभिनन्दनश्च सुमतिः पद्मप्रभ सुपार्थको । चन्द्रप्रमश्च सुविधिः शीतलश्च ततः परम् ॥१४॥ श्रेयांसो बामुपूज्योऽथ विमलोऽनन्तनामकः । धमः शानिः कुन्थुऽररो मलिश्व मुनिसुव्रतः ॥१५॥ मिर्नेमिः पार्शवीरो सर्वेऽप्येते जिनेश्वराः । जिनानां नामान्त। णि श्रेयांस' इष्यते श्रेयान् अनन्तोऽनन्तजित्स्मृतः ॥१६॥ सुविधिः पुष्पदन्तः स्याद् ऋषभो वृषभो मतः । सदृशस्त्येक एकस्य मुनिसुव्रत सुव्रतौ । १७॥ अरिष्ठ नेमि नेमि वा वोरश्वरमतीर्थकृत् । वर्द्धमानो महावीरो देवार्यों ज्ञातनन्दनः ॥१८॥ १६, अनिल १७ यशोधर १८, कृतार्थे १९, जिनेश्वर २०, शुद्धमति २१. शिवकर २२, स्यन्दन २३, संप्रति २४ पु०। . हिन्दो-वर्तमान चौवीसी के नाम-ऋषभ १, अजित २, सम्भव ३, अभिनन्दन ४,सुमति ५,पद्मप्रभ ६, सुपार्श्व ७, चन्द्र प्रभ ८, सुविधि ९, शीतल १० श्रेयांस ११, वासुपूज्य १२, विमल १३, अनन्त १४, धर्म १५, शान्ति १६, कुन्थु १७, भर १८, मल्लि १९, मुनिसुव्रत २०, नमि २१ नेमि २२, पार्श्व २३, वीर २४ ये सर्व पुलिङ्ग हैं। Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रथमकाण्डम् देववर्ग: एकादश गणधरनामानिएकादश गणाधीशा स्त्रयो गौतम गोत्रजा । इन्द्रभू-त्यग्निभूतिः द्वौ वायुभूतिः क्रमादिमे ॥१९॥ व्यक्तः सुधर्ममण्डित मौर्यपुत्रा अकम्पितः । अचलभ्रातृमेतायौं प्रभासोऽमी पृथक्कुलाः ॥२०॥ श्रुत केवलिनः षट् नामानिचरमः केवली जम्बू स्वाम्यथ प्रभवः प्रभुः । शय्यम्भव यशोभद्रौ सम्भूति विजयस्तथा ॥२१॥ भद्रबाहु स्थूलभद्रो श्रुतकेवलिनश्च षट् । हिन्दी-(१)श्रेयांस के दो नाम-श्रेयांस १, श्रेयान् २ पु० । (२) अनन्त के दो नाम-अनन्त १, अनन्तजित् २ पु० । (३) सुविधि के दो नाम-सुविधि१, पुष्पदन्त२ पुं० । (४) ऋषभदेव के दो नाम ऋषभ १, वृषभ २ पुं० । (५) मुनि सुव्रत के दो नाम मुनिसुव्रत १, सुव्रत२ पु० । (६) नेमि के दो नाम-अरिष्टनेमि १, नेमि २ पु० । (७) वीरजिन भगवान् के छ नाम-वीर १, चरमतीर्थ कृत् २, बर्द्धमान ३, महावीर ४, देवार्य ५, ज्ञातनन्दन ६ पु० हिन्दी-मुनि समुदाय को गण कहने हैं, श्रीमहावीर स्वामी के नौ गण थे, जो सब के सब अनगार थे । ग्यारह गणधर थे-इन्द्रभूति १, अग्निभूति २, वायुभूति ३, ये तीनों गौतम गोत्री थे, व्यक्त ४, सुधर्मन् (सुधर्मा) ५, मण्डित (मण्डितपुत्र) ६, मौर्यपुत्र ७, अकम्पित ८, अचलभ्रातृ ९, मेतार्य १०, प्रभास ११ ये आठ गणधर पृथक् २ कुल के थे क्रमशः नाम जाने Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . ... प्रथमकाण्डम् देवधर्गः दशपूर्विणः नामानि महागिरिसुहस्त्याद्या वज्रान्ता दशपूर्विणः ॥२२॥ तीर्थकरकुलानि - इक्ष्वाकुकुलसंभूना स्याद् द्वाविंशतिरर्हताम् । मुनिसुव्रत नेमी तु हरिवंशसमुद्भवौ ॥२३॥ भविष्यत् चतुर्विशति जिन नामानिआगामिन्यां महापद्म सूरदेव सुपार्श्वको । स्वयप्रभश्च सर्वानु-भूति देवश्रुतो दयाः ॥२४॥ पेढालः पोट्टिलश्चोभौ शतकीर्तिश्च सुव्रतः । अममः सर्वभाववित् निष्कषायश्चतुर्दशः ॥२५॥ निष्पुलाको निर्ममश्च चित्रगुप्तः समाधिकः । संवरोऽनिवृत्तिश्चैव विजयो विमलस्तथा ॥२६॥ देवोपपातश्चानन्त-विजयश्वान्तिमः स्मृतः । हिन्दी-केवलियों में अन्तिमकेवली जम्बू स्वामी हुए, श्रुतकेवलियों के छ नाम-प्रभव १. शय्यम्भव २, यशोभद्र ३, सम्भूतिविजय ४, भद्रबाहु ५, स्थूलभद्र ६ पु० । हिन्दी-दशपूर्वियों के नाम-महागिरि १, सुहस्तिन् २, श्रीगुणसुन्दर ३, श्यामार्य ४, स्कन्दिलार्य ५, रेवतीमित्र ६, श्रीधर्मन् (श्रीधर्मा) ७, भद्रगुप्त ८, श्रीगुप्त ९, वज्र १० पु० । हिन्दी-चौवीस तीर्थङ्करों में बाईस तीर्थङ्कर तो इक्ष्वाकु कुलोत्पन्न थे और मुनिसुव्रत स्वामी तथा नेमीनाथ ये दोनों हरिवंश में उत्पन्न हुए थे। Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रथमकाण्डम् मुक्तेरेकादश नामानि— सिद्धालयश्च निर्याणं सिद्धिर्मोक्षोऽपवर्गकः ॥ २७॥ मुक्तिः कैवल्य निर्वाण श्रेयो निः श्रेयसाऽमृतम् । बुद्रस्य चतुर्विंशति नामानि सृमन्तभद्रः सर्वज्ञो धर्मराजो विनायकः ||२८|| सुगतो लोकजिबुद्धोऽद्वयवादी जिनो मुनिः । पइभिज्ञो मारजिच्च श्रीचनश्च तथागतः ॥ २९ ॥ बोधिसत्व मुनीन्द्रश्च शास्ता दशवलस्था । यं शाक्यसिंहः सर्वार्थ सिद्धः शौद्धोदनिस्तथा ||३०|| अर्कबन्धु गौतमश्च मायादेवी सुतो मतः । देववर्गः " हिन्दी- भविष्यत् चौविसी के नाम - महापद्म १, सुरदेव २, सुपार्श्व ३, स्वयंप्रभ ४, सर्वानुभूति ५, देवश्रुत ६, उदय ७, पेढाल८ पोट्टिल ९, शत कीर्ति १० सुत्रत ११, अमम १२, सर्व - भाववित् १३, निष्कषाय १४ निष्पुलाक १५, निर्मम १६, चित्रगुप्त १७ समाधि १८, संवर १९, अनिवृत्ति २०, विजय २१, विमल २२ देवोपपात २३, अनन्तविजय २४, ये सर्वपुलिङ्ग हैं | हिन्दी - मुक्ति के ग्यारह नाम - सिद्धालय १ मोक्ष २ अपवर्ग ३ पु० सिद्धि ४ मुक्ति ५ स्रो० निर्याण ६ निर्वाण ७ कैवल्य ८ श्रेयस् ९ निःश्रेयस १० अमृत ११ नपुंसकलिङ्ग । हिन्दी - बुद्ध के चौवीस नाम इस प्रकार - समन्तभद्र १ सर्वज्ञ २ धर्मराज ३ विनायक ४ सुगत ५ लोकजित् ६ बुद्ध ७ अद्वयवादी ८ जिन ९ मुनि १० षडभिज्ञ ११ मारजित् १२ श्री Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रथमकाण्डम् देववर्ग: -अथ सुरवर्गः प्रारभ्यते देवलोकस्य नव नामानि-- . देवलोकः स्वर्गनाको त्रिदिवस्त्रिदशालयः । क्लीबे त्रिविष्टपं स्त्रीत्वे धौ दिवौ द्वे स्वरव्ययम् ॥१॥ देवानां चतुर्विशति नामानि-- देवोऽस्वप्न स्त्रिदशौ निर्जरो विबुधोऽमरः । अनिमेषी दिवौकाश्च सुपर्वा सुमनाः सुरः ॥२॥ बृन्दार काऽदिति सुतौ देवतं पुं नपुंसकम् । बर्हितुख क्रतुभुजौ गीर्वाणो देवतास्त्रियाम् ॥३॥ आदित्यदिविषल्लेखा अमाऽमृत भोजनौ । दानवारिरिमे पुसि लेखादेवेस्त्रियां मता ॥४॥ धन १३, तथागत १४ बोधिसत्त्व १५ मुनीन्द्र १६ शास्ता १७ दशबल १८ शाक्यसिंह १९ सर्वार्थसिद्ध २० शौद्धोदनि २१ अर्कबन्धु २२ गौतम २३ मायादेवीसुत २४ पुलिङ्ग । हिन्दी-देवलोक के नौ नाम-देवलोक १ स्वर्ग २ नाक ३ त्रिदिव ४ त्रिदशालय ५ पु० त्रिविष्टप ६ नपुं० द्यौ ७ दिव ८ स्त्री० स्वर ९ अव्यय । , हिन्दी-देवताओं के चौवीस नाम-देव १ अस्वप्न २ त्रिदश ३ निर्जर ४ विबुध ५ अमर ६ अनिमेष ७ दिवौक ८ सुपर्वा ९ सुमन १० सुर ११ वृन्दारक १२ अदिति सुत १३ बर्हिमुख १४ क्रतुभुज् १५ गीर्वाण १३ आदित्य १७, दिविषद् १८ अमर्त्य १९ अमृतभोजन २० दानवारि २१ पु० दैवत २२ नपुं० Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रथमकाण्डम् देवानां भेद प्रदर्शनम् - देवाश्चतुर्विधाः प्रोक्ता आद्या भवनवासिनः । वानव्यन्तरज्योतिष्काः पुनर्वैमानिका मताः ||५|| असुराधा दशविधा देवा भवनवासिनः । व्यन्तराश्च पिशाचाद्या इमे षोडश संमता ||६|| पिशाचा भूत यक्षाश्च राक्षसाः किन्नरास्तथा । किं पुरुषा महोरगाः गन्धर्वा अप्रज्ञप्तिकाः ॥७॥ पंचप्रज्ञप्तिका ऋषि वादिनो भूतवादिनः । क्रन्दिता महाक्रन्दिताः कूष्माण्डाः पतगास्तथा ॥८॥ ज्योतिष्कदेवानां पञ्चनामानि - ज्योतिष्काः पञ्चचन्द्रार्क ग्रहनक्षत्रतारकाः । वैमानिकाः कल्पभवाः सौधर्मादि निवासिनः ||९|| देववर्गः देवता २३ स्त्री० लेखा २४ देव अर्थ में स्त्रीलिङ्ग । हिन्दी-भवनवासी वानव्यन्तर ज्योतिषी और वैमानिकके भेद से देव चार प्रकार के होते हैं । जिसमें असुरकुमार आदि के नामअसुरकुमार १ नागकुमार २ सुवर्णकुमार ३ विधुरकुमार ४ अग्निकुमार ५ द्वीपकुमार ६ उदधिकुमार ७ दिशाकुमार ८ वायुकुमार ९ स्तनितकुमार १० ये दश भवनवासी देव हैं और पिशाच आदि सोलह प्रकार के व्यन्तर है उनके नाम - पिशाच १ भूत २ यक्ष ३ राक्षस ४ किन्नर ५ किंपुरुष ६ महोरग ७ गन्धर्व ८ अप्रज्ञप्तिक ९ ( पणपन्निय) १० ऋषिवादी ११ भूतवादी १२ क्रन्दित १३ महाक्रन्दित १४ कृष्मांड १५पतग (पतंगदेव ) १६ पुल्लिङ्ग । Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुरवर्गः प्रथमकाण्डम् देवलोकस्य द्वादशभेदाः सौधर्म ईशान सनत्कुमारा माहेन्द्रको ब्रह्मततश्च लान्तकः । शुक्रः सहस्रारक आनतश्च, ततः परं प्राणत आरणाच्युतौ __ कल्पातीतदेवानां चतुर्दश भेदाः ग्रैवेयका अनुत्तराः कल्पातीताश्चतुर्दशः । . इन्द्रस्यैकत्रिंशद् नामानि इन्द्रस्तु मघवा शक्रः सुनासीरः पुरन्दरः ॥११॥ शतमन्यु विडोजाश्च पुरुहूतो दिवस्पतिः । जिष्णुर्वनी वृत्रहा च मरुत्वान् पाकशासनः ॥१२॥ सक्रन्दनः सुरपति गौत्रभिद् वासवो वृषा । सुरेश्वरो बलारातिः सहस्त्राक्षः शचीपतिः ॥१३॥ हरिहरिहयो मेघवाहनो जम्भभेदनः । आखण्डलो देवराजः स्वाराड् देवेन्द्र इत्यपि ॥ हिन्दी-ज्योतिष्क देवों के पांचभेद हैं-चन्द्र १ सूर्य २ ग्रह ३ नक्षत्र ४ तारक ५ पु० । हिन्दी-देवलोक बारह हैं उनके नाम-सौधर्म १ ईशान २ सनत्कुमार ३ माहेन्द्र ४ ब्रह्म ५ लान्तक ६ महाशुक्र ७ सहस्रार ८ आनत ९ प्राणत १० मारण ११ अच्युत १२ पुं। यहां के देव कल्पोपपन्न कहलाते हैं। ___ हिन्दी-प्रैवेयक देव के नौ नाम-भद्र १ सुभद्र २ सुजात ३ सुमानस ४ प्रियदर्शन ५ सुदर्शन ६ अमोघ ७ सुप्रतिबुद्ध ८ यशोधर ९ पु० । अनुत्तर देव के पांच नाम-विजय १ वैजयन्त २ जयन्त ३ अपराजित ४ सर्वार्थसिद्ध ५ पु० । Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रथमकाण्डम् १० इन्द्रपरिवारस्य नामानि - पुत्रो जयेन्त एतस्य प्रियेन्द्राणी शचीमता । उच्चैःश्रवा घोटकश्च नगरीमरावती ॥ १६ ॥ ऐरावेतो गजः प्रोक्तः स ऐरावण उच्यते । सारथि मातलिः पर्षत् सुधर्मा नन्दनं वनम् ॥ १६॥ कल्पवृक्षस्य पञ्चनामानि 'पारिजातश्च सन्तानो मन्दारः कल्प इत्यपि । पञ्चैते देवतरवः पुंसिवा हरिचन्दनम् ॥१७॥ सुरवर्ग: हिन्दी - इन्द्र के इकतीस नाम- इन्द्र, मघवा ( मघवन् ) २, शक्र ३, सुनासीर ४ पुरन्दर ५. शतमन्यु ६, बिडौना ( बिडौजस् ) ७, पुरुहूत ८, दिवस्पति ९, जिष्णु १०, वज्रो ( वज्रिन्) ११, वृत्रहा (वृत्रहन् ) १२ मरुत्वान् ( मरुत्वत्) १३, पाकशासन १४, संक्रन्दन १५, सुरपति १६, गोत्रभिद् १७, वासव १८, वृषा (वृषन् ) १९, सुरेश्वर २० बलाराति २१, सहस्राक्ष २२, शचीपति २३, हरि २४, हरिहय २५, मेघवाहन २६, जम्भभेदन २७, आखण्डल २८, देवराज २९, स्वाराट ( स्वराज्) ३०, और देवेन्द्र ३१ पुल्लिंग । हिन्दी - ( १ ) इन्द्र के पुत्र का नाम - जयन्त १ पु० । (२) प्रिया के दो नाम - इन्द्राणी १ शची २ स्त्री (३) घोड़े का एक नाम - उच्चैःश्रवा १ पु० । ( ४ ) नगरी का एक नाम - अमरावती १ स्त्री (५) हाथी के दो नाम - ऐरावत १ ऐरावण २ पु० । ( ६ ) सारथि का एक नाम मातलि - १ पु० । (७) सभा का एक नाम - सुधर्मा (सुधर्मन्) । १ स्त्री० । (८) वन का एक नाम - नन्दन १ नपुंसक । Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रथमकाण्डम् ११ दम्भोलिर्वत्रमस्त्रीस्याद् हादिनोभिदुरं पविः । शतकोटिः स्वरुः शंबः कुलिशमशनिर्द्वयोः । ब्रह्मणो अष्टाविंशतिनामानि ब्रह्मात्मभू व्योनि विधाता चतुराननः । परमेष्ठी सुरज्येष्ठः स्वयंभूः कमलासनः || १९ ॥ dar विरिचिर्लोकेशो विधिः खष्टा प्रजापतिः । विश्व सत्यको धाता सृष्टिकर्त्ता पितामहः ॥१०॥ नाभिजन्माण्डजो हंसवाहनः - कमलोद्भवः । हिरण्यगर्भो द्रुहिणो रजोमूर्तिश्चतुर्मुखः ॥२१॥ सुरवर्गः हिन्दी - (१) कल्पवृक्ष के पाँच नाम - पारिजात १ सन्तान २, मन्दार ३, कल्पवृक्ष : पुं० हरिचन्दन ५ पुं० (२) वज्र के दश नाम - दम्भोलि १ पुं०, वज्र २ अस्त्रि०, ह्रादिनी ३ पु. भिदुर ४ पुं. नपुं. पवि ५, शतकोटि ६, स्वरु ७, शंत्र ८ पुं. कुलिश ९ पुं. नपुं, अशनि १० स्त्री० पु० । हिन्दी - ब्रह्मा के अट्ठाईस नाम - ब्रह्मा (ब्रह्मन्) १, आत्मभू २, अन्योनि ३ विधाता ४ चतुरानन ५ परमेष्ठी (परमेष्ठिन् ) ६ सुरज्येष्ठ ७ स्वयंभू ८ कमलासन ९ वेधा ( वेधस् ) १० विरिञ्चि (विरञ्चि) ११ लोकेश १२ विधि १३ स्रष्टा ( स्रष्ट) १४ प्रजापति १५ विश्वसृट् (विश्वसृज् ) १६ सत्यक १७ धाता १८ सृष्टिकर्त्ता १९ पितामह २० नाभिजन्मा २१ अण्डज २२ हंसवाहन २३ कमलोद्भव २४ हिरण्यगर्भ २५ द्रुहिण २६ रजोमूर्ति २७ चतुर्मुख २८ ये सर्व पुलिङ्ग हैं । Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुरवर्गः प्रथमकाण्डम् विष्णोः एकोनचत्वारिंशद नामानिहरिविष्णु हृषीकेशः केशवो गरुडध्वजः । गोविन्दो माधवः कृष्णः स्वभूर्दामोदरोऽच्युतः ॥२२॥ नारायणश्चक्रपाणिः शौरिः श्रोशश्चतुर्भुजः । उपेन्द्रः पुण्डरीकाक्षो बासुदेवो जनार्दनः ॥२३॥ त्रिविक्रमः पद्मनाभः श्रीपति जगतीपतिः। देवकीनन्दनो विष्वक् सेनः श्रीवत्सलान्छनः ॥२४॥ वनमाली बलिध्वंसी कंसारि विश्वनायकः । अधोक्षजो मधुरिपु मुकुन्द पुरुषोत्तमः ॥२५॥ विश्वरूपः कैटभजिद् मुरारि मधुसदनः । कृष्णपितुद्वे नाम्नी जनको वसुदेवोऽस्य स एवाऽऽनकदुन्दुभिः ॥२६॥ हिन्दी-विष्णु के उन्चालीस नाम-हरि १ विष्णु २ हृषीकेश३ केशव ४ गरुडध्वज ५ गोविन्द ६ माधव ७ कृष्ण ८ स्वभू ९ दामोदर १० अच्युत ११ नारायण १२ चक्रपाणि १३ शौरि १४ श्रीश २५ चतुर्भुज १६ उपेन्द्र १७ पुण्डरीकाक्ष १८ वासुदेव १९ जनार्दन २० त्रिविक्रम २१ पद्मनाभ २२ श्रीपति २३ जगतीपति २४ देवकीनन्दन २५ विष्वक्सेन २६ श्रीवत्सलाञ्छन २७ वनमाली (वनमालिन्) २८ बलिध्वंसी (बलिध्वंसिन्) २९ कंसारि ३० विश्वनायक ३१ अधोक्षज ३२ मधुरिपु ३३ मुकुन्द ३४ पुरुषोत्तम ३५ विश्वरूप २६ कैटभ. जिद् ३७ मुरारि ३८ मधुसूदन ३९ ये सर्व पुलिङ्ग हैं। Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रथमकाण्डम् १३ बलदेवस्य एकोनविंशति नामानि स्याद् रामस्तु प्रलंबनो बलदेवो हलायुधः । बलभद्रो रौहिणेयो बली नीलाम्बरो हली ॥२७॥ रेवती रमणः काम-पालः संकर्षणः पुनः । कालिन्दी भेदन: सीरपाणिश्च मुलसी तथा ॥ २८॥ बलरामो हलधर स्तालाङ्कश्वाऽच्युताग्रजः । कामदेवस्य एकोनविंशति नमानि प्रद्युम्नो मदनो मारः कन्दर्पो मन्मथः स्मरः ॥२९॥ अनङ्गो दर्पकः कामः पञ्चवाणो मनोभवः । कुसुमेषुः पुष्पधन्वा शम्बरारिरनन्यजः ॥ ३०॥ आत्मभू मीनकेतुश्च रतीशो मकरध्वजः । सुरवर्ग: हिन्दी - कृष्ण के पिता के दो नाम - वसुदेव १ आनकदुन्दुभि २ पुलिङ्ग । हिन्दी -बलदेव के उन्नीस नाम हैं - राम १ प्रलम्बघ्न २ बल -- देव ३ हलायुध ४ बलभद्र ५ रौहिणेय ६ बली (बलिन् ) ७ नीलाम्बर ८ हली (हलिन् ) ९ रेवतीरमण १० कामपाल ११ संकर्षण १२ कालिन्दीभेदन १३ सीरपाणि १४ मुसली ( मुसलिन् ) १५ बलराम १ हलधर १७ तालाङ्क १८ अच्युताग्रज १९ ये सर्व पुलिङ्ग हैं | हिन्दी - कामदेव के उन्नीस नाम - प्रद्युम्न १ मदन २ मार ३ कन्दर्प ४ मन्मथ ५ स्मर ६ अनङ्ग ७ दर्पक ८ काम ९ पञ्चबाण १० मनोभव ११ कुसुमेषु १२ पुष्पधन्वा (पुष्पधन्वत् ) Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुरवर्गः प्रथमकाण्डम् १४ लक्ष्मा एकादश नामानि रमालक्ष्मी विष्णुकान्ता पद्मापद्मालयास्तथा ॥३१॥ इन्दिराकमला श्री मा भार्गवी कमलासना । गरुडस्य एकादश नामानि कृष्णस्य वाहनस्ताक्ष्यों गरुडः पन्नगाशनः ॥३२॥ नागान्तको वैनतयो गरुत्मांश्च खगेश्वरः। पक्षिराजो विष्णुरथः सुपणों भोगिभोजनः ॥३३।। कृष्णस्य उकरण नामानिश्रीपतेः पाञ्चजन्यः स्याद् शंखश्चक्रं सुदर्शनम् । गदा कौमोदैको खङ्गो नन्दकः कौस्तुभो मणिः ॥३४॥ १३ शबरारि १४ अनन्यज १५ आत्मभू १६ मीनकेतु १७ रतांश १८ मकरध्वज १९ ये सर्व पुलिङ्ग हैं। हिन्दी-लक्ष्मी के ग्यारह नाम -रमा १ लक्ष्मी २ विष्णुकान्ता ३ पद्मा ४ पमालया ५ इन्दिरा ६ कमला ७ श्री ८ मा ९. भार्गवी १० कमलासना ११ स्त्री० ।। हिन्दी-गरुड़ के ग्यारह नाम-तार्क्ष्य १, गरुड २, पन्न. गाशन ३, नागान्तक ४, वैनतेय ५, गरुत्मान् (गरुत्मन् )६,खगे म्वर ७, पक्षिराज ८, विष्णुरथ ९, सुपर्ण १०, भोगिभोजन ११ ये सर्व पुलिङ्ग हैं। हिन्दी-विष्णु के शंख का एक नाम-पाञ्चजन्य १ पुं० । (२) चक्र का एक नाम-सुदर्शन १ नपुं० । (३) गदा का एकनाम-कौमोदकी १ स्त्री०। (४) खङ्ग का एक नाम-नन्दक १ पुं० । (५) मणि का एक नाम-कौस्तुभ १पु० । Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुरवर्गः महादेवस्याष्टचत्वारिंशत् नमानिअथ शम्भुः शिवः शूली शर्व ईशो महेश्वरः । ईशानः शंकरश्चन्द्रशेखरो गिरिशो मृडः ॥३५॥ भूतेश ईश्वरः खण्ड- परशुः प्रमथाधिपः । मृत्युंजयः पशुपतिः कृत्तिवासाः कपालभृत् ॥ ३६॥ उग्रः कपर्दी श्रीकण्ठः पिनाकी नीललोहितः । शितिकण्ठो महादेवो वामदेव स्त्रिलोचनः ||३७| त्र्यम्बको धूर्जटिव्यम केशः स्मरहरो हरः । गङ्गाधरो विरूपाक्षो भर्गश्च वृषभध्वजः ||३८|| भूतनाथो भवो भीमो बुध्न्यः स्थाणुरुमापतिः । रुद्रो गिरिशोऽष्टमूर्ति नीलकण्ठो जटाधरः ॥ ३९॥ जटाजूटः कपर्दोऽस्य 'पिनाकोऽजंगवं धनुः । पार्षदाः प्रमथाः प्रोक्ताः कैलासः स्थानमव्ययम् ||४० प्रथमका डम् १ १५ हिन्दी - महादेव के अड़तालीस नाम -- शम्भु १, शिव २ शूली (शूलिन् ) ३, शर्व ४, ईश ५, महेश्वर ६, ईशान ७ शंकर ८, चन्द्रशेखर ९, गिरिश १०, मृड ११ भूतेश १२,, ईश्वर १३ खण्डपरशु १४, प्रमथाधिप १५ मृत्युञ्जय १६ पशुपति १७ कृतिवासा ( कृतिवासस् ) १८ कपालभृत् १९ उग्र २० कपर्दी ( कप - र्दिन् २१ श्रीकण्ठ २२ पिनाकी (पिनाकिन् ) २३ नीलोहित २४ शितिकण्ठ २५ महादेव २६ वामदेव २७ त्रिलोचन २८ त्र्यम्बक २९ धूर्जटि ३० व्योमकेश ३१ स्मरहर ३२ हर ३३गङ्गाघर ३४ विरूपाक्ष ३५ भर्ग ३६ वृषभध्वज ३७ भूतनाथ ३८ भव - - Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रथमकाण्डम् पुरवः पार्वत्याः षइविंशति नामानि - अथाऽस्य भाया रुद्राणी भवानी सर्वमङ्गला । गौरी कात्यायनी कालो शर्वाणी चण्डिकाऽम्बिका ॥४१॥ मृडानी पार्वती चण्डी श्यामा हैमवतीश्वरी । उमा माहेश्वरी तारा भद्रकाली च भैरवी ॥४२॥ चामुण्डा गिरजा दुर्गा सत्याऽऽर्या भुवनेश्वरी । कार्तिकेयस्य चतुर्दश नामानि - अथाऽस्य तनयः स्कन्दः कार्तिकेयः षडाननः ॥४३॥ पार्वतीनन्दनः क्रौञ्चदारण : शिखिवाहनः । पाण्मातुरो महासेनः शरजन्मा गुहोऽग्निभूः ॥४४॥ तारकारिः शक्तिधरः कुमारोऽ........... गणेशस्य त्रयोदशनामानि ................थ गाणाधिपः । ३९ भीम ४० बुध्न्य ४१ स्थाणु ४२ उमापति ४३ रुद्र ४४ गिरीश ४५ अष्टमूर्ति ४६ नीलकण्ठ ४७ जटाधर ४८ पुं। (१) शिवधनुष के दो नाम-पिनाक १ पुं० अजगव २ नपुं० (२) शिव अनुचर में प्रमथ आदि हैं । (३) शिव निवास स्थान को कैलास कहते हैं । हिन्दी-पार्वती के छब्बीस नाम हैं-रुद्राणो १ भवानी २ सर्व मङ्गला ३ गौरी ४ कात्यायनी ५ काली ६ शर्वाणी ७चण्डिका८ अम्बिका ९ मृडानी १० पार्वती ११ चण्डी १२ श्यामा १३ हैमवती १४ ईश्वरी १५ उमा १६ माहेश्वरी १७ तारा १८ भद्र Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रथमकाण्डम् सुरवर्ग: विनायको विघ्नहरो विघ्नराजो गजाननः ॥४५॥ हेरम्ब एकदन्तश्च लम्बोदर उमात्मजः । द्वैमातुरो गणाध्यक्षो गणेशो गणनायकः ॥४६॥ अग्नेः षडविंशति र्नामानि-- स्यादग्निरनलो वह्निः कृष्णवमा हुताशनः ॥४७॥ वैश्वानरो जातवेदा ज्वलनो हव्यवाहनः ॥४७॥ तनूनपादाश्रयाशः पावकश्च धनञ्जयः कृपीटयोनिः सप्तर्चिः कृशानुश्चाशुशुक्षणिः ॥४८॥ विभावसुश्चित्रभानु हुतभुग दहनः शुचिः। हिरण्यरेताः शुक्रश्च शिखी वायुसखः पुमान् ॥४९ काली १९ भैरवो २० चामुण्डा २१ गिरिजा २२ दुर्गा २३ सत्या (सतो)२४ आर्या २५ भुवनेश्वरी २६ ये सभी शब्द स्त्रीलिङ्ग हैं। हिन्दी-कार्तिकेय के चौदह नाम-स्कन्द १ कार्तिकेय २ षडानन ३ पार्वतीनन्दन ४ क्रोश्चदारण ५ शिखिवाहन ६ पाण्मतुर ७ महासेन ८ शरजन्मा (शरजन्मन्): गुह १० अग्निभू ११ तारकारि १२ शक्तिधर १३ कुमार १४ ये सर्व पुंलिङ्ग है। - हिन्दी-गणेश के तेरह नाम- गणाधिप १,विनायक २, विघ्नहर ३, विघ्नराज ४, गजानन २, हेरम्ब ६, एकदन्त ७, लम्बोदर ८, उमात्मज ९ द्वैमातुर १०, गणाध्यक्ष ११, गणेश१२ गणनायक १३ पु.। हिन्द-अग्नि के छब्बीस नाम -अग्नि १, अनल २, वह्नि ३, Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुरवर्ग:२ वडवाग्निप्रभृतीनां नामानि 'और्वो वाडवनामाग्निः सन्तापोऽग्नेस्तु संज्वरः । * उल्का प्रशान्तज्वाला स्यादिङ्गालं दग्धमिन्धनम् ॥५० “ की ज्वालौ द्वयोरचिः क्लीवे हेतिः शिखा स्त्रियाम् 'दावो दवश्व वन्याग्निः स्फुलिङ्गोऽग्निकणस्त्रिषु ॥ ५१ ॥ 'रक्षा भूतिः स्त्रियां क्षारः पुमान् भसितभस्मनी । यमस्य दश नमानि प्रथमकाण्डम् ७ १८ प्रेतराज् यमराट् कालः कृतान्तः शमनो यमः ॥ ५२ ॥ कृष्णवर्मा (कृष्णवर्त्मन्) ४, हुताशन५, वैश्वानर ६, जातवेदा ( जातवेदस् ) ७ ज्वलन ८ हव्यवाहन ९ तनूनपात् आश्रयाश ११. पावक १२, घनञ्जय १३, कृपीटयोनि १४, सप्तार्चि १२, कृशानु १६ आशुशुक्षणि ९७, विभावसु १८ चित्रभानु ९, हुतभुक् (हुत भुज् ) २०. दहन २, शुचि ५५, हिरण्यरेता (हिरण्यरेतस् ) २३, शुक्र २४ शिखो (शिखिन् ) २५, वायुसख २६ ये सर्व पु० । हिन्दी - (१) वडवानल के दो नाम और्व १ वाडव २ पु० ( २ ) संताप के दो नाम - संताप १ संज्वर २ पुं. (३) उल्काके दो नामउल्का १ प्रशान्तज्वाला २ स्त्री० । (४) कोयला - कोलसा का एक नाम - इङ्गाल १नपुं० । (५) अग्नि ज्वाला के पांच नाम - कील १ ज्वाल २ पु. नपुं., अर्चि (अर्चिष् ) ३ नपुं हेति ४ शिखा ५ स्त्रीलिङ्ग । ) ६) वनाग्नि के तीन नाम - दाब १ दव ३ वन्याग्नि ३ पुं । (७) अग्नि कण के दो नाम-स्फुलिङ्ग १, अग्निकण २ त्रीलिङ्ग । (८) राख के पांच नाम-रक्षा १ भूति २ स्त्री०, क्षार ३ पुं० भसित ४ भस्म ५ नपुंसकलिङ्ग । 10 Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रथमकाण्डम् १९ धर्मराजोऽन्तको वैव- स्वतो दण्डधरस्तथा । राक्षसस्य नव नामानि क्रव्यास्तु राक्षसो रात्रि - चरो रात्रिश्वरोऽसुपः ॥५३॥ क्रव्यादः कौणपो यातुधानो रक्षो नपुंसकः । वरुणस्य पञ्च नामानि - वरुणोऽप्पतिः प्रचेताश्च पाशी च यादसांपति ॥ ५४ ॥ बायोः सप्तदशः, जलयुक्तयोः एकम्, उमवायोर्द्वे नामानि - मारुतः पवनो वातो मातरिश्वाऽनिलो मरुत् । सदागति र्गन्धवहो गन्धवाहः समीरणः ॥५५॥ समीर आगो वायु जगत्प्राणः प्रभञ्जनः । नभस्वच्छ्वसनौ झंझा * वातस्तु प्राप्तवर्षणः ॥ ५६ ॥ प्रकम्पनस्तूग्रवातोऽथाऽसौ शारीरिको यथा । બ सुरवर्गः हिन्दी - यमराज के दश नाम- प्रेतराट् (प्रेतराज्) १, यमराट्र ( यमराजू ) २ काल ३, कृतान्त ४, शमन ५, यम ६ धर्मराज ७, अन्तक ८, वैवस्वत ९, दण्डधर १० पुलिङ्ग है । हिन्दी - राक्षस के नौ नाम - क्रव्यात् १, राक्षस २, रात्रिचर क्रव्याद ६, कौणप ७, यातुधान ३, रात्रिञ्चर ४' असुप ५, ८, पु०, रक्षसु ९, नपुं० । हिन्दी - वरुण के पांच नाम - वरुण १, अप्पति २, प्रचेता ( प्रचेतस् ) ३, पाशो ( पाशिन् ) ४, यादसांपति ५ पुलिङ्ग । हिन्दी - (१) वायु के सत्रह नाम - मारुत १, पवन २ वात ३ मातरिश्वा ( मातरिश्वन् ) ४, अनिल ५, मरुत ६, सदागति ७, Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रथमकाण्डम् सुरवर्गः प्राणवायोः पञ्च वेगस्य पञ्च, शीघ्रस्यैकादश, निरन्तरस्य, नवनामानि - ! २० व्यानः सर्वशरीरेऽन्तः प्राणोऽपानो गुदस्थळे ॥५७॥ समानो नाभिदेशेस्या, दुदानः कण्ठसंस्थितः । क्ल । वे रंस्तरः पुंसि जवो वेगो रयः स्यदः || ५८ || अथ शीघ्रमैंरं क्षिप्रं चपलं सत्वरं द्रुतम् । त्वरितं लघु तद्वत्स्या- तूर्णमाश्व विलम्बितम् ॥ ५९ ॥ संतताऽविरताऽश्रान्त सतताऽनारताऽनिशम् । नित्याऽनवरताऽनस्त्रं नस्त्री नैव पुमान् क्वचित् ॥ ६०॥ गन्धवह ८, गन्धवाह ९, समीरण १०, समीर ११, आशुग १२ वायु १३, जगत्प्राण १४, प्रभञ्जन १५, नभस्वान् ( नभस्वत्) १६, श्वसन १७ पु० (२) वर्षा के साथ चलते वायु का एक नाम - झंझावात १ पु० (३) उग्रवायु के दो नाम - प्रकम्पन १, उपवात २ पुलिङ्ग । (१) प्राण वायु के पांच मेद हैं-व्यान १ समस्त शरीर में, प्राण २ अन्तः शरीर में, अपान ३ गुद देश में समान ४ नाभिदेश में, उदान ५ कण्ठदेश में स्थित है पु० । (२) बेग के पांच नाम - रंह (रहस्) १ तर (तरस) २, नपुं० जब ३, वेग ४, रय ५, स्यद ६, पुंलिङ्ग । (३) शीघ्र के ग्यारह नाम - शीघ्र १, अर २ क्षिप्र ३, चपल ४, सत्त्वर ५, द्रुत ६, त्वरित ७, लघु ८, तूर्ण ९, आशु १०, अविलंबित ११ नपुं० । ( ४ ) निरन्तर के नौ नाम संतत १, अविरत २, अत्रान्त ३, सतत ४, अनारत ५, अनिश Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रथमकाण्डम् सुरवर्ग:२ अतीशयस्य चतुर्दश नामानिभरोऽतिशय एतौ द्वौ पुंस्युद्गादं च निर्भरम् ।। अतिमात्रं नितान्तं च गाढवाढदृढानि च ॥६॥ अत्यर्थमतिवेलं च भृशं तीव्रमुदाहृतम् । एकान्तमपि शीघ्रादि सत्वेनैव नपुंसकम् ॥६२।। वात्यायाः पञ्च नामानिवात्या स्त्री वातुलो बात ग्रन्थिस्तृणविघूर्णकः । वातुलो हूस्वमध्योऽपि क्षीरस्वामिमतं यथा ॥६३॥ स्वर्गवेश्याया द्वे नामानिउर्वश्याधादिवो वेश्या बहुत्वेऽप्सरसः स्त्रियाम् । बहुत्वेऽप्सरसो वादः प्राय आह पतञ्जलिः ॥६४॥ .६, नित्य ७, अनवरत ८ अजस्र ९ नित्यनपुंसक । हिन्दी-अतिशय के चौदह नाम-भर १, अतिशय २ पु०, उद्गाड़ ३, निर्भर ४, अतिमात्र ५, नितान्त ६, गाढ ७, बाढ ८, दृढ ९, अत्यर्थ १०,अतिवेल ११, भृश १२, तीव्र १३, एकान्त १४ शीघ्रादि असत्व में नपुसक हैं, सत्त्व में तत्तल्लिङ्ग है। हिन्दी-क्टोरिया वायु (ववण्डर) के पांच नाम-वात्या १, स्त्री० वातुल २, वातुल ३ (वातल) वातग्रन्थि ४, तृविघूर्णक ५, पुलिङ्ग । हिन्दी-उर्वशी आदि स्वर्ग की वेश्याएँ हैं, इनके साधारण दों नाम-स्वर्वेश्या १, अप्सरस् २ स्त्रो० अप्सरस् शब्द का प्रयोग Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रथमकाण्डम् सुरवर्ग:२ देवगायकानां 'हाहा हू हू' इत्यादीनि नामानिगन्धर्वा ये च हाहाद्याः सर्वे ते देवगायकाः । विश्वकर्मणश्चत्वारि नामानिविश्वकर्माऽथवात्वष्टा विश्वकृद देववर्धकः ॥६५॥ विमानस्य द्वे नारदस्य द्वे नाम्नी'विमानोऽस्त्री नभोयानं नारदः कलहप्रियः । किन्नरस्य चत्वारि नामानिकिन्नरोयस्तुरङ्गाऽऽस्यो मयुः किंपुरुषश्च सः कुबेरस्यैकादश नामानिकुबेरो यक्षराजः स्याद् धनदश्च धनेश्वरः । गुह्यकेश्वर पौलस्त्यौ राजराड् विश्रवः सुतः ॥६७॥ किं पुरुषेश्वर ईशान सखश्च नरवाहनः । बहुबचन में ही होता है पतञ्जलि इसको प्रायोवाद मानते हैं। हिन्दी-देवगायक गन्धर्वो के नाम-हाहा हू हू आदि पु०। हिन्दो-विश्वकर्मा के चार नाम-विश्वकर्मा (विश्वकर्मन्) १, त्वष्टा (त्वष्ट) २, विश्वकृत् ३, देववर्धकि ४ पु० । हिन्दी-(१)विमान के दो नाम-विमान १ अस्त्री०, नभोयान २, नपुं० (२)नारद के दो नाम-नारद १, कलहप्रिय २ पुलिङ्ग। हिन्दी-किन्नर के चार नाम-किन्नर १, तुरङ्गास्य २, मयु ३, किंपुरुष ४ पुलिङ्ग । ___ हिन्दी-कुबेर के ग्यारह नाम-कुबेर १, यक्षराज २, धनद Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रथमकाण्डम् २३ सुरवर्ग: कुबेरस्य स्थान पुरी सुत विमानोधानानामेकैकम्कैलासः स्थानमलकापूः सुतो नलकूबरः ॥६८॥ विमानं पुष्पकं चैत्र रथमुधानमुत्तमम् । निधि द्वे नाम्नी, तत्प्रभेदा नव निधिस्तु शेवधिः पुंसि प्रभेदा नव कीर्तिताः॥६९॥ तथाहि मकरः खर्वः शंखः पद्मश्च कच्छपः । महापद्मो मुकुन्दश्च कुन्दो नोलः क्रमादमी ॥७॥ इति सुरवर्गः समाप्तः ॥अथ व्योमवर्गः प्रारभ्यते ॥ -- आकाशस्योन विंशति मानिअथ व्योम वियद विष्णु पदं खं पुष्करं नमः । अन्तरीक्षाऽम्बराऽनन्त गगनानि नपुंसके ॥१॥ अस्त्री विहाय आकाशोऽन्तरिक्ष सुरवर्मनी । ३, धनेश्वर ४, गुह्यकेश्वर ५, पौलस्त्य ६, राजराद (राजराज्) ७ विश्रवसुत ८, किंपुरुषेश्वर ९, ईशानसखा १०, नरवाहन ११ पु. हिन्दी-कुबेर का स्थान-कैलास पु०, पुरी-अलका स्त्री०, पुत्र- नलकूबर पु०, विमान पुष्पक पुनपुं०, उद्यान-चैत्ररथ नपुंसकलिङ्ग । - हिन्दी-निधि के दो नाम-निधि १ शेवधि २ पु० इनके नौ मेदो का नाम-मकर १, खर्व २, शंख ३, पद्म ४, कच्छप ५, महापद्म ६, मुकुन्द ७, कुन्द ८, नील ९ पुलिङ्ग । ॥इति सुरवर्ग समाप्त ॥ Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रयाकाण्डम् २४ म्योमवन तारापथो धो दिवो स्त्री मेघमागों विहायसः ॥२॥ ___ मेघस्य त्रयोदश नामानि - धाराधरो जलधरो जीमूतो मुदिरोऽम्बुभृत् । जलमुग धूमयोनिश्च वारिदश्च बलाहकः ॥३॥ वारिवाहो घनो मेघ स्वभ्रमेव नपुंसकम् । मेघमालाया द्वे विद्युतोऽष्टो नामानिकादम्बिनी मेघपङ्क्ति विधत्सौदामिनी तडित् ॥४॥ हादिनी चञ्चला शम्पा चपला च क्षणप्रभा । हिन्दी-आकाश के उन्नीस नाम-व्योम (व्योमन्) १, वियत् २, विष्णुपद ३, ग्व ४, पुष्कर ५, नभ (नभस्) ६, अन्तरीक्ष ७. अम्बर ८,अनन्त ९, गगन १०, अन्तरिक्ष ११ सुरवर्त्म १२, नपुं०, विहायस् १३, आकाश १४, अस्त्रो० द्यो १५, दिव -१६, स्त्री०, तारापथ १७, मेघमार्ग १८ विहायस १९ पुलिङ्ग हिन्दी- मेघ के तेरह नाम-धाराधर १ जलधर २, जीमत ३, मुदिर ४, अम्बुभृत् ५, जलभुक् (जलमुच्) ६, घ्मयोनि ७, वारिद ८, बलाहक ९ वारिवाह १०, धन ११ मेघ १२ पु० अभ्र १३ नपुं०। .. हिन्दी- १ मेघमाला के दो नाम-कादम्बिनी १ मेघपङ्क्ति २, स्त्री० २ विजली के आठ नाम-विद्युत (त) १ सौदामिनी (सौदामि) २, तडित (त) ३, ह्लादिनी ४, चञ्चला ५, शम्पा ६, चपला ७, क्षणप्रभा ८, स्त्रीलिङ्ग Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रथमकाण्डम् - २५ व्योमवणः मेघध्वनेश्चत्वारि नामानिमेयध्वनिस्तु रसित-गर्जितस्तनितानि च ॥५॥ १ वज्रघोषस्य द्वे, २ घनज्योते ₹ ३ कारकाया द्वे, ४ दुर्दिनस्य द्वे ५ धारासंपातस्य द्वे ६ अम्बुकणस्य द्वे, ७ इन्द्रधनुषो द्वे नाम्नी वज्रघोषः स् थुः स्याद् धनज्योतिरिरं मदः । वर्षोत्पलस्तु करका मेघाच्छन्नं तु दुर्दिनम् ॥५॥ धाराप्रपात आसारः शीकरोऽम्बुकणः पुमान् । इन्द्रधनुः शक्रचापे दृश्यते वादलोद्गमे ॥७॥ अन्तर्धानस्य दश, चन्द्रस्य विंशतिःपुंस्यन्तधिनिलयने ह्यन्तर्धा व्यवधा स्त्रियाम् । पिधानमपिधानं च तिरोधानाऽपवारणे ॥८॥ निकोचनाऽऽच्छादने च चन्द्रस्त्विन्दुर्निशापतिः । सोमः सुधांशुः शुभ्रांशु हिमांशु चन्द्रमा विधुः ॥९॥ हिन्दी- मेघध्वनि के चार नाम-मेघध्वनि १ पुं०, रसित, २ गर्जित ३, स्तनित ४ नपुं० । हिन्दी-(१) विजलो कड़कने के दो नाम-वनघोष १, स्फूजेथुः २ पु० । (२) मेघज्योति के दो नाम-घनज्योति १ स्त्री०, इरंमद पु० । (३) वृष्टि से जो प्रस्तर (ओले) पडे उसके दो नामवर्षोत्पल १ पु०, कारका २ स्त्री० । (४) बादल से छाये हुए दिन का एक नाम-दुर्दिन १ नपुं० । (५) महावृष्टि के दो नाम-धाराप्रपात २, आसार२ पु० । (६) जलकण के दो नाम-शीकर१ अम्बुकण२ पुं०। (७) इन्द्रधनुष के दो नाम-इन्द्रधनुष् १ नपुं०, शकचाप २ पुल्लिंग। Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ૨૬ प्रथमकाण्डम् व्योमवर्ग शशी शशधरः शीतरश्मिः कुमुदबान्धवः । नक्षत्रेशो मृगाको ग्लौ रोषधीशः कलानिधिः ॥१०॥ क्षपाकर निशानाथौ विंशतिः केवलं पुमान् । सूर्यचन्द्रमण्डलस्य द्वे, चन्द्रकिरणानां षोडशांशस्यैकम् खण्डस्य चत्वारिमण्डेलं त्रिषु बिम्बोऽस्त्री षोडशांऽशः कला स्त्रियाम् ॥११॥ खण्डोऽस्त्री शकलेभित्तं पुस्यर्थोऽध समांशके । १ चन्द्रचन्द्रिकायाः पञ्च, २ प्रसन्नताया द्वे ३ चिह्नस्य षद १ शोभायाश्चत्वारि ५ अगस्त्यस्य चत्वारि ६ नक्षत्रस्य षद्, ७ मृगशिरसो द्वे हिन्दी-(१) अन्तर्घान के दश नाम-अन्तर्घि१ पु०, अन्तर्धा २. व्यवधा ३ स्त्रीलिङ्ग निलयन ४, पिधान ५, अपिधान ६, तिरोधान ७, अपवारण ८, निकोचन ०, आच्छादन १० नपु० । (२) चन्द्रमा के वीस नाम-चन्द्र १, इन्दु २, निशापति ३, सोम ४, सुधांशु ५, शुभ्रांशु ६, हिमांशु , चन्द्रमा (चन्द्रमस्) ८, विधु ९, शशी(शशिन्) १०, शशधर ११, शीतरश्मि १२, कुमुदबान्धव १३, नक्षत्रेश १४, मृगाङ्क १५, ग्लो १६, ओषधीश १७, कलानिधि १८, क्षपाकर १९, निशानाथ २० पुंलिङ्ग । हिन्दी-(१) सूर्यचन्द्रमण्डल के दो नाम-मण्डल १ त्रिलिङ्ग, बिम्ब २ अस्त्री० । (२) चन्द्रमण्डल के सोलहवें भाग का नामकला १ स्त्रीलिङ्ग । (३) खण्डमात्र के चार नाम-खण्ड १, शकल २, भित्त ३ अस्त्रो०, अर्घ ४ पु०, सम अंश में अर्घ नपुंसक । : Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रर्थमकाण्डम् व्योमवर्गः३ चान्द्रीस्याच्चन्द्रिका चन्द्र कला ज्योत्स्ना च कौमुदी ॥१२॥ प्रसन्नता प्रसादः स्यात् लाञ्छनं लक्ष्मलक्षणम् । चिह्नमङ्कः कलङ्कश्च चत्वार्याहु नपुंसके ॥१४॥ धुतिः कान्तिश्छवि शोभा सुषमा तु महाधुतिः। अगस्त्यो घटयोनिश्च. मैत्रावरुण कुम्भजौ ॥१४॥ उडु नक्षत्रमृक्षं में तारा स्त्री तारका न ना। मृगशीर्ष मृगशिर आह गोपालितः स्त्रियाम् ॥१५॥ १ बुइस्पतेः पञ्च, २ शुक्रस्य षट्, ३ मङ्गलस्य चत्वारि, ४ त्रीणि बुधस्य, ५ त्रीणि शनैः, राहोः पञ्च, ७ सूर्यत्रिशनाम'जीवोगुरुः सुराचार्यों वाचस्पति बृहस्पती । "भार्गवो भृगुजः काव्यः शुक्रो दैत्यगुरुः कविः ॥१६॥ मैङ्गलोऽङ्गारको भौमः कुजो भूमिसुतस्तथा । रौहिणेयो बुधः सौम्यः शनिः शौरिः शनैश्वरः ॥१७॥ (१) चन्द्र को चांदनी के पांच नाम-चान्द्री १, चन्द्रिका २ चन्द्रकला ३,ज्योत्स्ना ४, कौमुदी ५ स्त्री० । (२) प्रसन्नता के दो नाम-प्रसन्नता१ स्त्री०, प्रसाद २ पु० । (३) चिह्न के छ नामलाञ्छन १, लक्ष्म २, लक्षण ३, चिह्न ४ नपुं०, अङ्क ५, कलङ्क ६ पु० (४) शोभा के चार नाम-द्युति१ कान्ति२ छवि ३, शोभा ४ स्त्रीलिङ्ग । (५) अगस्त्यऋषि के चार नाम-अगस्त्य १, घटयोनि २, मैत्रावरुण ३] कुम्भज ४ पुलिङ्ग । (६) नक्षत्र के छ नाम-उडु १, नक्षत्र २, ऋक्ष ३, भ ४ नपुंसक, तारा ५, स्त्री. तारका ६ स्त्री० नपुंसक । (७) मृगाशिरा के दो नाम- मृगशीर्ष१ नपुं०, (मृगशिरस् ) मृगशिरा २ स्त्रो० नपुंसक । - Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रथमकाण्डम् २८ व्योमवर्गः ५ स्वर्भानुः सैंहिकेयोऽपि तमो राहु विधुन्तुदः । सूर्य: स्यादर्यमासुर आदित्यो भास्करो रविः ॥ १८ ॥ अर्को विभाकरी भास्वान् प्रभाकर दिवाकरौ । मार्तण्डो मिहिरो लोक चक्षुर्ग्रहपतिस्तथा ॥ १९॥ उष्णरश्मिश्च चण्डांशुः सप्ताश्वः पूषणोऽपि च । तरणिस्तपनः पूषा तमोहन्ता हर्पतिः ॥ २० ॥ विवस्त्रानंशुमान्भानु मित्रो धुमणि रुष्णगुः । हिन्दी - (१) बृहस्पति के पांच नाम - जीव १ गुरुर सुराचार्य ३, वाचस्पति ४, बृहस्पति ५ पु० । (२) शुक्र के छ नाम - भार्गव १, भृगुज २, काव्य ३, शुक्र ४, दैव्यगुरु ५, कवि ६ पु० । (३) मङ्गल के पांच नाम - मङ्गल १, अङ्गारक २, भौम ३, कुज ४, भूमिसुत ५, पु० (४) बुध के तीन नाम - रौहिणेय १, बुध २, सौम्य ३ पु० । (५) शनि के तीन नाम - शनि १, सौरि २, शनैश्वर ३, पु० । (६) राहु के पांच नाम - स्वर्भानु १, सैंहिकेय २, तम (तमस् ) ३, राहु ४, विधुन्तुद् ५ पु० । (७) सूर्य के तीस नाम - सूर्य १ अर्थमा (अर्यमन्) २, सूर ३, आदित्य ४, भास्कर ५, रवि ६ अर्क ७ विभाकर ८ भास्वान् (भास्वन्) ९ प्रभाकर १० दिवाकर ११, मार्तण्ड १२ मिहिर १३ लोकचक्षु (लोकचक्षुष) १४ प्रहपति १५ उष्णरश्मि १६ चण्डांशु १७ सप्ताश्व १८ पूषण १९ तरणि २० तपन २१ पूत्रा (पूषन् ) २२ तमोहन्ता (तमोहन्तृ) २३ अहर्पति २४ विवस्वान् २५ अंशुमान् २६ भानु २७ मित्र २८ घुमणि २९ उष्णगु ३० पुंलिङ्ग । Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रथमकाण्डम् २९ व्योमवर्गः ३ १ सूर्य तेजोमण्डलस्य द्वे २ सूर्यस्य पार्श्वचरा अष्टादश ३. सूर्यपत्न्याद्वे ४ उदयस्य द्वे ५ अस्तकालस्य द्वे ६ स रथेश्वत्वारि पेरिधिः परिवेषस्तु सूर्यमण्डलतः परे || २१ ॥ रवे पार्श्वचरानित्यं माठराधा उदाहृताः । सूर्यप्रिया तु छायास्यात् समस्त उदयोद्गमौ ॥२२॥ अस्तंगतेऽर्थेऽस्तमैन तथाऽस्तमयनं द्वयम् । अनूरुररुणः सूर-सूतश्च गरुडाऽग्रजः ||२३|| १ सूर्य किरणानामेकादश २ प्रभाया एकादश ३ आतपस्य त्रीणि ५ ईषदुष्णस्य चत्वारि ५ अत्युष्णस्य त्रीणि ६ मृगतृष्णया द्वे ७ राशयो द्वादश मयूखांऽश्वत्रकिरणा गभस्ति घृणि रश्मयः । भानुः करो मरीचिस्तु द्वयोः स्याद् दीधितिः स्त्रियाम् ||२४| भा भा : प्रभारुचिस्त्विहरुगू दीप्तयश्च द्युतिभ्छविः ॥ शोचिरोचिरमूक्लीबे प्रकाशो द्योत आतपः ॥ २५ ॥ हिन्दी - (१) सूर्य के चारों ओर गोलाकार तेजोमण्डल के दो नाम - परिधि १ परिवेष २ पु० । (२) सूर्य के पार्श्वचर अठारह हैं - माठर १ पिङ्गल २ दण्ड ३ राजा ४ श्रोथ ५ स्वर ६ द्वारिक ७ कल्माष ८ पक्षी ९ जातृकार १० कु ११ अपक १२ पिट्ङ्ग १३ गज १४ दण्डौं १५ पुरुष १६ किश १७ उरक १८ पु० । (३) सूर्यपत्नी के दो नाम - सूर्यप्रिया १ छाया (सूर्या) २ स्त्री० । ( 8 ) उदय के दो नाम-उदय १ उद्गम२ पु । ( ५ ) अस्तकाल के दो नाम - अस्तमन १ व्यस्तमयन २ पु० । (६) सूर्य सारथी के चार नाम - अनूरु १ अरुण, २ सूरसुत ३ गरुडाग्रज ४ पुलिङ्ग Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रथमकाण्डम् व्योमवर्गः३ कवोष्णं कोणमन्दोष्णे कदुष्ण त्रिषु तद्वति । तथा तीक्ष्णं खरं तिग्मं मृगतृष्णा मरीचिका ॥२६॥ *मेषो वृषश्च मिथुनं कर्क सिंहश्च कन्यका । तुला च वृश्चिको धन्वी मकरः कुम्भ मीनकौ ॥२७॥ १ राशीनामुदयस्यैकम्, २ हिमस्य सप्त, ३ हिमसमूहस्य द्वे, ४ गुणे नपुंसकं शोतं तद्वदर्था; सप्त ५ दिशायाः पञ्च ६ चतसृषु दिक्षु प्रत्येकदिशों द्वद्वे नाम्नी ७ दिश्यं त्रिलिङ्गम् । राशीनामुदयो लेग्नं द्वादश स्युः क्रमादमी । अवश्यायस्तुषार श्च नीहारस्तुहिनं हिमम् ॥२८॥ (१)स्य किरण के ग्यारह नाम-मयूख १ अंशु २ अन (उन) ३ किरण ४ गभस्ति ५ घृणि ६ रश्मि ७ भानु ८ कर ९ पु० मरीचि १० पुं० स्त्री० दीधिति ११ स्त्री० । (२) प्रभा के ग्यारह नाम- भा भास् २ प्रभा ३ रुचि ४ विह (विषू ) ५ रुद (रुष) ६ दीप्ति ७ धुति ८ छवि ९ स्त्री० रोचि (रोचिष) १० शोचि (शोचिष् ) ११ नपुंसक। (३) आतप के तीन नाम-प्रकाश १ द्योत २ आतप ३ पु० (४) ईषत् उष्ण के चार नाम-कवोष्ण १ कोष्ण २ मन्दोष्ण ३ कदुष्ण ४ त्रिलिङ्ग । (५) अति उष्ण के तोन नाम-तीक्ष्ण १ खर २ तिग्म ३ नपुं० । (६) मृगतृष्णा के दो नाम-मृगतृष्णा १ मरीचिका २ स्त्रो० (७) राशि के बारह नाम-मेष १ वृषभ २ पु० मिथुन ३ नपुं० कर्क ४ सिंह ५ पु० कन्या ६ तुला ७ स्त्रो० वृश्चिक ३ ८ धन्वी (धन्विन्) ९ मकर १० कुम्भ ११ मीन १२ पुलिङ्ग । Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रथमकाण्डम् ३१ व्योमवर्गः ३ प्रालेयं मिहिका वाऽपि हिमानी हिमसंचयः । शीतं गुणे तदर्था ये सुषीमः शिशिरो जडः ॥२९॥ तुषार शीतलौ शीत हिमौ तल्लिङ्ग वाचकाः । स्त्रियां दिक्hart काष्ठा हरिदाशाऽथ तद्भिदाः ||३०| पश्चिमादि प्रतीची स्या, दवाची दक्षिणा मता । पूर्वाप्राच्युत्तरोदीची शदिश्य तु दिग्भवे त्रिषु ॥३१॥ पूर्वे भवतु प्राचीन मर्वाचीनं ततः परम् । अर्वाचीन मुदीचीनं भवार्थे सर्व एव ते ॥ ३२॥ हिन्दी - (१) राशि के उदय का एक नाम - लग्न १ नपुं । (२) हिम के सात नाम - अवश्याय १ तुषार २, नीहार ३ पु०, तुहिन ४ हिम ५ प्राय ६ नपुं० मिहिका ७ स्त्री० । ( ३ ) हिम समूह के दो नाम - हिमानी १ स्त्री०, हिमसंचय २ पुं० । ( ४ ) गुणबाचक शोत नपुंसक है इस अर्थ में आने वाले सात नामसुषीम १ शिशीर २ जड ३, तुषार ४ शीतल ५ शीत ६ हिम ७ ये अन्यलिङ्ग हैं । (५) दिशा के पांच नाम - दिश (दिशा) १, ककुभ् २, काष्ठा ३ हरित् ४ आशा ५ स्त्रो० । (६) प्रत्येक दिशा के दो दो नाम-पश्चिम दिशा के पश्चिमा १ प्रतीची २ दक्षिण दिशा के - अवाची १ दक्षिणा २ पूर्वदिशा के प्राची १ पूर्वा २ उत्तर दिशा के - उत्तरा १ उदोची २ स्त्री० । (७) पहले या पूर्व में जो हुआ हो वह प्राचीन है, अभी २ या पोछे जो हो उसको अर्वाचीन कहते हैं; समुद्र के दक्षिण तीर की 'अर्वाचीन' और उत्तर तीर भव की 'उदीचन' • संज्ञा है त्रिलिङ्ग । Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२ प्रथमकाण्डम् व्योमवर्गः १ अष्टौ तिर्यग्दिशां पतयः अष्ट, २ र्यादयोऽष्टौ पूर्वादिदिशां क्रमशोग्रहाः, ३दिशोर्मध्यस्यैकम् ४ मण्डलस्य द्वे ५विदिशो द्वे तिर्यग्दिशां तु पतय इन्द्रोऽग्निर्यम नैतौ वरुणो वायु यक्षेशा वीशानश्च यथाक्रमम् ॥३३॥ "सूर्यः शुक्र: कुजोराहुः शनिश्चन्द्रो बुधो गुरुः । अष्टावते क्रमाज्ञयाः पूर्वादीनां दिशां ग्रहाः ॥३४॥ अन्तरालं दिशोर्मध्यं चक्रंवालं हि मण्डलम् । विदिक स्त्रियां दिशोमध्येऽपदिशं क्लीब मब्ययम् ॥३५ व्योमवर्गः समाप्तः ॥अथ समय वर्गः प्रारभ्यते ॥ समयस्य पञ्च २ तिथे ₹ ३ दिवसस्य पञ्च ४ प्रभातस्य पञ्च ५ सन्धाकालस्य पञ्च ६ एकं दिनाघन्तमध्यानाम् हिन्दी-तिर्यदिशाओं में प्रत्येक दिशा के अधिपति के आठ नाम-इन्द्र १ अग्नि २ यम ३ नैर्ऋत ४ वरुण ५ वायु ६ रक्षेश ७ ईशान ८ पुलिङ्ग । (२) पूर्व आदि दिशा ग्रहों के आठ नाम-सूर्य १ शुक्र २ कुज ३ राहु ४ शनि चन्द्र ६ बुध ७ गुरु ८ । (३) दो दो दिशाओं के मध्य का एक नाम-अन्तराल १ नपुं० वाल १ मडल २ नपुसक । ४ मण्डल के दो नामचक्रवाल १ मंडल२ नपुंसक (५) दो दिशाओं के मध्य में जो दिशा है उसके दो नाम-विदिक् १ स्त्री. अपदिश २ नपुंसक । ॥ इति व्योमवर्ग समाप्त ॥ Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रथमकाण्डम् समयवर्गः४ -अथ समयवर्गः प्रारभ्यते(१) समयस्य पञ्च २ तिथे ३ दिवसस्य पञ्च ४ प्रभातस्य पञ्च ५ संन्धाकालस्य पञ्च ६ एकं दिनाद्यन्तमध्यानाम् समयः कालदिष्टौ चाऽनेहा च क्षण उच्यते । पतिः प्रतिपत्स्त्रीत्वे तदाधास्तिथयो याः ॥१॥ दिवसो वासरो घस्त्रः पुंसि क्लीबे दिनाहनी ॥ प्रभातोऽहमुख कल्यं प्रत्यूष ऊष इत्यपि ॥२॥ सायं सन्ध्या दिनान्तश्च सायः पितृ प्रसूरपि । त्रिधा विभक्त दिवसे पूर्वाह्नः प्रथमस्ततः ॥३॥ १ द्वादश रात्रेः २ द्वे अन्धकाररात्रेः ३ एकं ज्योत्स्नावद् रात्रेः ४ एकं दिनद्वयमध्यगतरात्रेः ५ एकं रात्रिसमूहस्य ६ द्वेरात्रि प्रारम्भस्य ७ द्वे रात्रि मध्यस्य ८ द्वे प्रहरस्य ९ एक पर्वसन्धेः हिन्दी-(१) समय के पांच नाम समय १ काल २ दिष्ट ३ अनेहा (अनेहस् ) ४ क्षण ५ पु० । (२) प्रतिपत् (प्रतिपदा) । तिथि के दो नाम-पक्षति १ प्रतिपत् स्त्री० । इसो को आदि लेकर कृष्ण शुक्ल पक्षो में पन्द्रह २ तिथियाँ आती है तिथि पु० स्त्री० । (३) दिन के पांच नाम-दिवस १ वासर २ घन ३ पु० दिन ४ अहन् ५ नपु०। (४) प्रभात के पांच नाम-प्रभात १ पु० , अहर्मुख २ कल्य ३ नपुं० प्रत्यूष ४ ऊष ५ पु० (प्रत्यूषस् उषस् नपुं०)। (४) संध्याकाल के पांच नाम-सन्ध्या १ स्त्री० दिनान्त २ पितृ ३ प्रसु : पु० साय ५ पु. नपुं० । दिन के आदि अन्त मध्य का एक नाम-पूर्वाह्न अपराह मध्याह्न पु०, त्रिसन्ध्य नपुं० स्त्री० । Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रथमकाण्डम् ३४ समयवर्गः४ मध्याहोः ह्यपराह्नोऽन्त स्त्रि सन्ध्यी न पुमान्भवेत् । शर्वरी क्षणदा रात्रि स्त्रियामा च क्षपा निशा ॥ ४ ॥ तमस्विनी विभावय यामिनी रजनी तमी । fratfeat afमनाऽपि तामसी तिमिरेऽधिके ॥५॥ चन्द्रस्य कलया युक्ता रात्रि ज्योत्स्नी निगद्यते । पूर्वाssगामिदिनाभ्यां या युक्ता सा पर्क्षिणी निशा ॥ गणरैत्रं निशाबहूव्यः प्रदोषैः क्षणदामुखम् । अँधेरात्रौ निशीथः स्याद् यामस्तु प्रहरः समौ ॥७॥ कः पर्वसैन्धिः प्रतिपत् पञ्चदश्योर्यदन्तरम् । हिन्दी - १ रात्रि के बारह नाम - शर्वरी १ क्षणदा २ रात्र ३ त्रियामा ४ क्षपा ५ निशा ६ तमस्विनी ७ विभावरी ८ रजनी ९ यामिनी १० तमो ११ निशीथिनी १२ स्त्री० । (२) अंधेरी रात्री के दो नाम-तमिस्रा १ तामसी २ स्त्री० । (३) चन्द्रयुक्त रात्रि का एक नाम - ज्योत्स्नी १ स्त्री० । ( ४ ) वर्तमान आगामी दिन के बीच रात्रि का एक नाम-पक्षिणी १ स्त्री० । (५) रात्रि समूह का एक नाम - गणरात्र १ नपुं० । ( ६ ) रात्री प्रारम्भ के दो नाम - प्रदोष १ पु. क्षणदामुख २ नपुं. (७) रात्रि मध्य के दो नाम अर्धरात्र १ निशीथ २ पु. । (८) प्रहर के दो नाम -याम १ प्रहर २ पु० । (९) पर्वयुग्म का एक नाम पर्वसन्धि १ पुलिङ्ग । Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रथमकाण्डम् ३५ समयवर्ग:५ १ पूर्णिमायाः त्रीणि । तत्र पूर्णे निशाकरे राकाः, २ एकः, सानुमत्याः,३ दर्शस्य चत्वारि, ४एकं सिनीवाल्याः, ५एकं कुहाः, ६ वे पक्षान्तस्य, ७ वे ग्रहणस्य ८ पञ्चाssकाशादिश्वग्निविकारस्य, ९ एक समुच्चयितसूर्यचन्द्रयोः १० एकम् उच्छवासनिः श्वासयोः राका च पूर्णिमा पौर्ण-मासी पूर्णे निशाकरे ॥८॥ कलया हीयमाने तु चन्द्र सानुमतिः स्मृता । सूर्येन्दोः सङ्गमो दर्शोऽमावस्याऽप्यमामसी ॥९॥ अमावास्या सिनीवाली दृष्टेन्दुः कलया कुहः । नष्टेन्दुः कृष्णशुक्लेषु पक्षान्तः पञ्चदश्यपि ॥१०॥ उपरागो ग्रहो राहु प्रस्ते चन्द्ररवावपि । अजन्यमीतिरुत्पातो वन्युत्पात उपाहितः॥११॥ स्यातां सहोक्तौ चन्द्राको पुष्पेवन्तौ नचाऽन्यथा । उच्छवासेन च निश्वासे नैकैन प्रोण उच्यते ॥१॥ हिन्दी-(१) पूर्णिमा के तीन नाम-राका १, पूर्णिमा २, पौर्णमासी ३ वह है जब पूर्ण चन्द्र हो स्त्री० । (२) होन चन्द्र का एक नाम-सानुमती १ स्त्री० जब कलाहीन चन्द्र हो । (३ दर्श के चार नाम-दर्श १ पु०, अमावस्या २, अमामसी ३ अमावास्या ४ स्त्री० । (४) कला युक्त अमावस का एक नाम-'सिनीवाली' १ स्त्री. (५) कलाहीन अमावसका एक नाम-कुहू १ स्त्रा० । (६) पक्षान्त के दो नाम-पक्षान्त १ पु०, पंचदशी २ स्त्री० । (७) ग्रहण के दो नाम- उपराग १ ग्रह २ पु०, । (८) आकाशादि में अग्निविकार के पांच नाम-अजन्य १ नपुं०, ईति २ स्त्रो. Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रथमकाण्डम् समयवर्ग: १ एकं सप्तप्राणानाम्, २ एक सप्तस्तोकानाम्, एकं सप्तसतति लवानाम्, ४ एकं त्रिशद् मुहूर्तानाम्, ५ एक पंचदशाहोरात्राणाम्, ६ एकमेकं पक्षयोः, ७ एममेकं द्वयोर्द्वयोर्मार्गादि मासयोः, ८ एकम् ऋतुत्रयाणाम् ९एकम् अयनयोः, १० द्वे समरात्रेः, ११ एकं पुष्पयुक्त पौर्णमास्याः सप्तप्राणे भवेत्स्तोकः सप्तस्तोकै लंबी लवैः। सप्त सप्तति संख्यावान् मुहूर्तस्त्रिशता पुनः ॥१३॥ मुहूर्तेश्च दिवारात्रि स्ताभ्यां च दश पंचभिः । पाः शुक्लोऽथ कृष्णश्च ताभ्यां मासः प्रकीर्तितः॥१४॥ द्वाभ्यां मार्गादि मासाभ्या मृतुस्तैरयनं त्रिभिः । दक्षिणोदग्गतार्कस्य ह्ययने द्वे तु वत्सरः ॥१५॥ विषुवं विषुवद् यत्र समारात्रि दिवा समम् । पुष्येण संयुता पौर्ण-मासो पौषी" तया युतः ॥१६॥ उत्पात ३ वह्नयुत्पात ४, उपाहित ५ पु० । (९) चन्द्रसूर्य का साथ में एक नाम-पुष्पवन्त १ पु० । (१०) उच्छवासनिःश्वास, का एक नाम-प्राण १ पु० । हिन्दी-(१) सात प्राणो का एक नाम-'स्तोक' १ पु० । (२) सात स्तोको का एक नाम-'लव १ पु०। (३) सतहत्तर लवों का एक माम-'मुहूर्त' पु०। (४) तीस मुहूर्तों से 'दिवा रात्रि' दिवा अव्यय, रात्रि स्त्री । (५) पन्द्रह दिन रात्रि का एक 'पक्ष' पु०, शुक्ल वा कृष्ण । (६) दो पक्षो का एक मास पु० । (७) दो दो मार्गादि मासों का एक ऋतु पु० । (८) तीन ऋतुओं का एक Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३७ प्रथमकाण्डम् समयवर्गः४ १ एकं पोष्या परीतस्य, २ एकं तत्तद नक्षत्र युक्तानाम्, ३ षट् नाम मार्गस्य, ४ द्वे पोषमासस्य ५ढे माघस्य ६ द्वे काल्गुनस्य ७ त्रीणि चैत्रस्य ८ त्रीणि वैशाखस्य ९ द्वे ज्येष्ठस्य १० द्वे भाषाढस्य ११ त्रीणि श्रावणस्य १२ चत्वारि भाद्रस्य पौषो माघादेयोऽप्येवं तत्तन्नक्षत्रयोगतः। आग्रहायणिकोमार्गोऽग्रयणं चाऽऽग्रहायणः ॥१७॥ मार्गशीर्षः सहाः पौषे तैषो माघे तपा इति । फाल्गुनस्तु तपस्यः स्यात् चैत्रे तु चैत्रिको मधुः ॥१८॥ वशीखो माधवो राधो ज्येष्ठ शुक्रः शुचिः पुमान् । आषाढः श्रावणो मासो नभाः श्रावणिको मतः ॥१९॥ स्यु नर्भस्यो भाद्रपदो भाद्रः प्रौष्ठपदोऽपि च । 'अयन' नपुं० । (९) दो अयनों का एक 'संवत्सर' पु० । (१०) समरात्रि के दो नाम- विषुवं १ विषुवत् २ नपुं० । (१२) पुष्ययुक्त पौर्णमासी का एक नाम-पौषी स्त्री०। हिन्दो-(१) पौषो युक्त का एक नाम-पौष १ पु० । (२)उन उन नक्षत्रों के योग से एक नाम-माघादि पु० । (३) मार्गशीर्ष के छ नाम-आग्रहायणिक १ मार्ग २ आग्राहयण ३ मार्गशीर्ष ४ सहस् ५ (शब्दार्णव के अनुसार 'सह' भी पु०) अप्रयण ६ नपुं० । (४) पौष के दो नाम-पौष १ तैष २ पु० । (५) मायके दो नाम-माघ १ तपस् २ पु० । (६) फाल्गुन के दो नामफाल्गुन १ तपस्य २ पु० । (७) चैत्र के तीन नाम- चैत्र १ चैत्रिक २ मधु ३ पु० ।। (८) वैशाख के तीन नाम-वैशाख १ Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रथमकाण्डम् ३८ समयवर्गः ४ १ द्वे अश्विनस्य २ त्रीणि कार्तिकस्य ३ एकैकं हेमन्त शिशि रयोः ४ द्वे वसन्नस्य ५ चत्वारि ज्येष्ठाषाढयो ६ द्वे वर्षतः श्रावणः भाद्रयोः ७ एकं अश्विनकार्तिकयोः, ८ षट् संवत्सरस्य ९ पञ्च प्रलयस्य अश्विनाऽश्वयुजौ तुल्यौ बहुलोज तु कार्तिके ॥२०॥ हेमन्त शिशिरो न स्त्री वसन्ते सुरभी समौ । ग्रीष्मो निदाघ उष्णश्च तपः, भावृट् स्त्रियां स्मृता ॥२१॥ भूम्नि वर्षा: रत्नात्वे तवोऽमी प्रकीर्तिताः । हार्यनोऽब्दो वत्सरश्च संवत्सर इमेऽस्त्रियाम् ॥ २२ ॥ शरत् स्त्रियां समाचैव कल्प एभिः प्रवर्तते । संवतः प्रलयः कल्पः क्षयः कल्पान्त उच्यते ॥ २३ ॥ कालोऽवसर्पिणी नामोत्सर्पिणी सागरस्य यः । कोटीनां कोटयस्तासां विंशत्या स समाप्यते ॥ २४ ॥ पडराः पूर्वकालस्य विपरीताः परस्यते । कालचक्रमिदं लोको द्वादशैते विवर्तते ॥ २५॥ माधव २ राध ३ पु० । ( ९ ) ज्येष्ठ के दो नाम - ज्येष्ठ १ शुक्र २ पु ० । (१०) आषाढ के दो नाम - शुचि - १ आषाढ २ पु० । (११) श्रावण के तीन नाम - श्रावण १ नभस् २ श्रावणिक ३ पु० । (१२) भाद्रपद के चार नाम - नभस्य १ भाद्रपद २ भाद्र ३ प्रोष्ठपद ४ पुल्लिंग | हिन्दो - (१) आश्विन के दो नाम - आश्विन १ अश्वयुज २. पु० । (२) कार्तिक के तीन नाम - बाहुल १ ऊर्ज २ कार्तिक ३ Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रथमकाण्डम् ३९ समयवर्गः ४ १ पापस्य नाम एकादश २ पंच धर्मस्य ३ आनन्दस्य एकादश ४ कल्याणमात्रस्य द्वादश ५ द्रव्यवाचि पुण्यादि त्रिलिङ्गम् ६ पञ्च नामानि प्रशंसावाचकस्य ७ एकं शुभावह विधेः ८ एकं यौवनादेः ९ द्वे मायायाः पापे पक्षं पुमान् पाप्मा कल्मषं किल्बिषं च तत् । कलुषं दुरितं चाऽघ मेनो जिन दुष्कृते ॥२६॥ स्यावृषः सुकृतं श्रेयः पुण्यं धर्मस्तु न स्त्रियाम् । प्रमोदाऽऽमोदहर्षा स्युः प्रमदाऽऽनन्दसंमदाः ॥२७॥ मुत्प्रीतीस्तः स्त्रियां क्लीवे शातं शर्म सुखे अपि । कल्याणं मङ्गलं भद्रं शुभं खः श्रेयसं शिवम् ॥२८॥ कुशलं भवुकं भव्यं क्षेमं भविकमस्त्रियाम् । पु० । (३) एक एक नाम-हेमन्त, शिशिर पु० नपुं० । (४) वसन्त के दो नाम-वसन्त १ सुरभि २ पु० । (५) ज्येष्ठ अषाढ के चार नाम-ग्रीष्म १ निदाघ २ उष्ण ३ पु० । तपसू ४ नपुं० (६) श्रावण भाद्रपद के दो नाम-प्रावृष १ वर्षा २ स्त्री० । (७) जिन ऋतु में सस्य का पाक ले वह आश्विन कार्तिक के एक नाम-शरत् स्त्री० । (८) संवत्सर के छ नाम-हायन १ अब्द २ वत्सर ३ संवत्सर ४ अस्त्री० शरत् ५ समा ६ स्त्री०। (९) प्रलय के पांच नाम-संवत्तं १ प्रलय २ कल्प ३ कल्पान्त ४ क्षय ५ पु० । दश कोडा कोडी सागर की एक उत्सर्पिणी, दश कोडाकोडी सागर की एक अवसर्पिणी होती है वीस कोडा कोडी सागर का एक कालचक्र होता है। Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रथमकाण्डम् ४० समयवर्ग: ४ शस्तं च त्रिषु द्रव्ये चेत् पुण्यं पापं सुखादिकम् ॥२९॥ मतैल्लिका प्रकाण्डं च तल्लजो-द्धौ मचर्चिका । प्रशंसावचनान्येता न्ययस्तु सशुभो विधिः ॥३०॥ यौवनादि रवस्थास्या त्प्रधानं प्रकृतिः स्मृताः । हिन्दी-(१) पाप के ग्यारह नाम-पाप १ कल्मष ३ किल्विष ४ कलुष ५ दुरित ६ अघ ७ एनस् ८ वृजिन ९ दुष्कृत १० अस्त्र.. पाप्मन् ११पु० (२) धर्म के पांव नाम-वृष १पुं० सुकृत २ श्रेयस् ३ पुण्य ४ धर्म ५ अस्त्री० (३) आनन्द के ग्यारह नाम-प्रमोद १ आमोद २ हर्ष ३ प्रमद ४ आनन्द ५ सन्मद ६ पु० मुत् ७ प्रीति ८ स्त्री० शात ९ शर्म १० सुख ११ नपुं० । (४) कल्याण मात्र के बारह नाम-कल्याण १ मङ्गल २ भद्र ३ शुभ ४ श्वः श्रेयस (श्वोवसीयसम्) ५ शिव ६ कुशल ७ भावुक ८ भव्य ९ भविक १० क्षेम ११ शस्त१२ अस्त्री०। (५) द्रव्यवाची के तीन नाम-पुण्य १ पाप २ सुखादि ३ त्रिलिङ्ग । (६) प्रशंसावचन के पांच नाम-मतल्लिका १ मचर्चिका २ स्त्री० प्रकाण्ड ३ नपुं० पु० तल्लज ४ उद्घ ५ पु० (मतल्लिकादि नियत लिङ्ग है) (७) शुभावह विधि का एक नाम-अय १ पु०। (८) यौवमादि का एक नाम-अवस्था१ स्त्री० । (९) प्रकृति के दो नामप्रधान १ नपुं० प्रकृति २ स्त्री० । Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रथमकाण्डम् ४१ समयवर्गः . १ त्रीणि आत्मनः, २ त्रीणि गुणानाम्, ३ षद् भाग्यस्य ४ द्वे मूल कारणस्य, ५ कारणस्य त्रीणि, ६ षड् नामानि जन्मनः ७ पदनामानि प्राणिनः, ८ सप्त नामानि मनसः क्षेत्रज्ञ पुरुषावात्मा तमः सत्त्वं रजोगुणाः ॥३१॥ भाग्यं दिष्टं भागधेयं दैवं स्त्री नियति विधिः । स्यान्निदानं मूलबीजं हेतुर्ना बोजकारणे ॥३२॥ उत्पत्तौ जननं जन्म जनुर्जनि समुद्भवौ । शरीरी चेतनः प्राणी जन्तुर्जीवी च जन्मिनि ॥३३॥ हृदयं मानसं चित्तं हृन्मनः स्वान्त चेतसी । उक्तं कोषविदायत्तन्मयाप्यत्र प्रकीर्तितः ॥३४॥ ॥ इति समयवर्गः समाप्तः ॥ हिन्दी-(१) आत्मा के तीन नाम-क्षेत्रज्ञ १, पुरुष २, आत्मा ३ पु० । (२) गुण के तीन नाम-तमस् १, सत्त्व २, रजस् ३ नपुं० । (३) भाग्य के छ नाम-भाग्य १, दिष्ट २, भागधेय ३, दैव ४ नपुं०, नियति ५, स्त्री०, विधि० ६ पु. (४) मुख्यकारण के दो नाम-निदान १मूलबीज २नपुं० । (५) कारण के तीन नाम-हेतु १ पु०, बीज २, कारण ३ नपुं० । (६) जन्म के छ नाम-उत्पत्ति १, जनन २, जन्मन् ३ नपुं० (जन्म अदन्त अस्त्री०) जनुष् ४ नपुं०, जनि ५ स्त्री० समुद्भव ६ पु० । (७) शरीरी के छ नाम-शरीरिन् १, चेतन २, प्राणिन् ३, जन्तु ४, जोविन् ५, जन्मिन् ६ पु० । (८) मन के सात नाम--हृदय १, मानस २, चित्त ३, हृत् ४, मनसू ५, स्वान्त ६चेतस् ७ नपुं० ।। ॥समयवर्ग समाप्त ॥ Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ अथ मतिवर्गः प्रारभ्यते ॥ १ बुद्धेः सप्तनामानि २ बुद्धेश्व चत्त्वारो मेदाः, ३ मनोव्यापारस्यैकम्, ४ धारणावती बुद्धेः एकम् ५ तर्कस्य त्रीणि, ६ विचारस्यैकम् ७ सन्देहस्य त्रीणि, ८ द्वे समाधानस्य ९ " , भावनायास्त्रीणि मेतिर्धीधिषणाबुद्धिः शेमुषी चेतनाऽपि च । मनीषौ - त्पत्तिकी ज्ञेया ततो वैनयिकी मता ॥१॥ कर्मजा सा तृतीया तु चतुर्थी पारिणामिकी । मनसः कर्मसङ्कल्पो मेधा तु धारणा धियः ||२॥ disध्याहरऊहस्तु विचारे च विचारणा । संशय विचिकित्सा स्त्री सन्देहः पुंसि कीर्तितः ॥३॥ अवधानं समाधानं द्वयमुक्तं नपुंसके । विमेर्शो भावना चैव वासनापि निगद्यते ॥ ४ ॥ हिन्दी - ( १ ) बुद्धि के सात नाम-मति १, घी २, विषणा ३ बुद्धि ४ शेमुषी ५, चेतना ६, मनीषा ७ स्त्री० । (२) बुद्धि के चार भेदों का नाम - औत्पत्तिकी १, वैनयिकी २, कर्मजा ३. पारिणामिकी ४ स्त्री० । (३) मनोव्यापार का एक नाम - संकल्प नाम - मेधा १ अध्याहार ३५० १५० । ( ४ ) धारणा रखने वाली बुद्धि का एक स्त्री० । (५) तर्क के तीन नाम - तर्क १, ऊह २, (६) विचार का एक नाम - विचारणा १ स्त्री० । ( ७ ) सन्देह के तीन नाम - संशय १, सन्देह पु०, विचिकित्सा ३ स्त्री० । (८) समाधान के दो नाम - अवधान १ समाधान २ नपुं० । (९) भावना के तीन नाम-विमर्श १ पु०, भावना २, वासना ३ स्त्री० । Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रथमकाण्डम् - मतिवर्ग:४ १ असत् शास्त्रिनः एकम् , २ द्वे निश्चयस्य, ३ द्वे सिद्धान्तस्य, ४ एकं द्रोहचिन्तनस्य, ५ त्रीणि भ्रमरस्य, चत्वारि स्वोकारस्य, ७ एकं मोक्षबुद्धेः, ८ एकं लौकिककलायाः, ९ मोक्ष स्याष्टौ १०, पञ्चरसाः ११ इद्रियाणां विषयाः पञ्च १२ पञ्च कर्णादीनि इन्द्रियाणि-- मियादृष्टिरसच्छास्त्री निर्णयो निश्चयः पुमान् । उभौ सिद्धान्त राद्धान्तौ द्वेषोहि द्वोहचिन्तनम् ॥५॥ अतद् वस्तुनि तज्ज्ञाने भ्रान्तिर्मिथ्यामति भ्रमः। अंगीकारेऽभ्युपगमः स्वीकारः स्वीकृतिस्तथा ॥६॥ मोक्षबुद्धिर्भवेज्ज्ञानं विज्ञानं शिल्पशास्त्रता । पुंसि मोक्षोपवर्गश्च स्त्रियां मुक्तिनपुंसके ॥७॥ निर्वाणाऽमृतकैवल्य श्रेयो निःश्रेयसान्यपि । तिक्तः कटुः कषायोऽम्लो मधुरश्च रसा इमे ॥८॥ शब्दाधाविषयाः पञ्च कर्णादीनीन्द्रियाण्यिमौ । हिन्दी-(१) सत् शास्त्र को नहीं मानने वाले का एक नाममिथ्यादृष्टि १ पु० । (२) निश्चय के दो नाम-निर्णय १, निश्चय २ पु० । (३) सिद्धान्त के दो नाम-सिद्धान्त १ राद्धान्त २पु.। (४) द्रोहचिन्तन का एक नाम-द्वेष १ पु० । (५) भ्रान्ति के तीन नाम-भ्रान्ति १ मिथ्यामति २ स्त्री०, भ्रम ३पु० । (६) स्वीकार के चार नाम-अंगीकार १, अभ्युपगम २ स्वीकार ३ पु०, स्वीकृति ४ स्त्री० । (७) मोक्ष में बुद्धि को रखने का एक नाम-ज्ञान १ नपुं० । (८) लौकिक कला का एक नाम-विज्ञान १ नपुं० । (९) मोक्ष के आठ नाम-मोक्ष १, अपवर्ग २ पु०, मुक्ति ३ स्त्री० Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४४ प्रथमकाण्डम् मतिवर्गः ५ . १ द्वे घर्षणोत्थमन्धस्य, २ द्वे इष्टगन्धस्य, ३ वे दुर्गन्धस्य, ४ एकं मांसगन्धस्य, ५ एकादश शुक्लवर्णस्य, ६ द्वे कपोतवर्णस्य, ७ द्वे धूसरवर्णस्य ८ सप्तनामानि कृष्णवर्णस्य, ९ द्वे पीतवर्णस्य, १० त्रीणि हरितवर्णस्य गन्धौ परिमलाऽऽमोदौ मदनोत्थमनोहरौ ॥९॥ इष्टगन्धस्तु सुरभिः सुगन्धिरपि गीयते । दुर्गन्धौ पूतिगन्धस्तु विस्त्रं च मांसगन्धके ॥१०॥ अथ शुक्लोऽवदातश्च शुभ्रश्च धवल: सितः। श्वेतो गौरोऽवलक्षाश्चाऽर्जुन पाण्डरपाण्डवः ॥११॥ कापोतस्तु कपोताभः स्वल्पपीतस्तु धूसरः। कालेकृष्णाऽसितश्याम नीलश्यामलमेचकाः॥१२॥ हारिद्रः पीत आख्यातः पालाशे हरितो हरित् । निर्वाण ४, अमृत ५, कैवल्य ६, श्रेयस् ७, निःश्रेयस ८ नपुं०। (१०) रस के पांच नाम-तिक्त १, कटु २, कषाय ३ अम्ल ४, मधुर ५ पु० । (११) इन्द्रिय के विषय के पांच नाम-शब्द १ पु० रूप २ नपुं०, गन्ध ३, रस ४ स्पर्श ५ पु० । (१२) वही कर्ण आदि पांच इन्द्रियां है। हिन्दी-(१) घर्षण से उत्पन्न गंध के दो नाम-परिमल १, मामोद २ पु० । (२) इष्ट गंध के दो नाम-सुरभि १ सुगन्धि २ पु० । (३) दुर्गन्ध के दो नाम-दुर्गन्ध १, पूतिगन्ध २ पु० । (४) मांस के गंध का एक नाम-विस १ नपुं०। (५) शुक्ल वर्ण के ग्यारह नाम-शुक्ल १, अवदात २ शुभ्र ३ धवल ४ सित ५, - Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रथमकाण्डम् मतिवर्ग:५ १ त्रीणि रक्तवर्णस्य, २ एकं रक्तश्वेतस्य, ३ एकं पीतरतस्य ४ बालसन्ध्याप्रभस्यै कम् ५ कपिलवर्णस्य षट्र, ६ कृष्णलोहिताभ्यां संगतस्य द्वे, ७ नानावर्णवतः पञ्च, ८ विशेष्य नघ्नाः ९ गुणस्यैकम् रेक्ते लोहित शोणौ तु श्वेतरक्ते च पाटलः ॥१३॥ पिजरः पीतरक्तो यो बालसन्ध्या प्रभोऽरुणः । पिशङ्ग पिङ्ग कपिल कडाराः कद्रु पिङ्गलौ ॥१४॥ कृष्णलोहित वर्णे तु पुमांसौ धुम्र धूमलौ । कर्बुरे चित्रकिर्मीर कल्माष शवला त्रिषु ॥१५॥ गुणि लिङ्गा इमे प्रोक्ता गुणाः पुंसि तु केवलम् । ॥ इति मतिवर्गः समाप्तः ।। श्वेत ६. गौर ७, अवलक्ष ८, अर्जुन ९, पाण्डर १०, पाण्डु ११ पु० । (६) कपोतवर्ण के दो नाम-कपोताभ १ कापोत २ पु० । (७) धूसरवर्ण के दो नाम-स्वल्पपीत १, धूसर २ पु० । (८) कृष्ण वर्ण के सात नाम-काल १, कृष्ण २ (शिति) असित ३ श्याम ४ नील ५, श्यामल ६ मेचक ७ पु० । (९) पीतवर्ण के दो नाम-हारिद्र १ पीत २ पु० (१०) हरितवर्ण के तीन नाम-पलाश १ हरित २ हरित् ३ पु०। हिन्दी-(१) रक्त वर्ण के तीन नाम-रक्त १ लोहित २ शोण ३ पु०। (२) श्वेत रक्त का एक नाम-पाटल १ पु० । . (३) पीत रक्त का एक नाम-पिचर १ पु० । (४) बालसन्ध्या सदृशवर्ण का एक नाम-अरुण १ पु० । (५) कपिल वर्ण के छ: Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 'प्रथमकाण्डम् ४६ - ॥०० ॥ अथ वाणीवर्गः प्रारभ्यते ॥ ००॥ — १ वाण्याः सप्त, २ त्रीणि आगमस्य, ३ चत्वारि वचनस्य, ४ त्रीणि क्रियायाः ५ एकं सुबन्ततिङ्गन्तचयस्य, ६ द्व वेदस्य, ७ द्वे त्रय्याः, ८ षड्वेदाङ्गानि ९ द्वे प्रणवस्य अथ वाणी वर्गः प्रारभ्यते वाणीवर्गः ६ वाणीगीर्भारती भाषा ब्राह्मी वाकू च सरस्वती । आगमो वाक्यमाप्तानां सूत्रं शास्त्र प्रचक्षते ॥१॥ लपितं भाषितं लोके वचनं वच उच्यते । कृतिः क्रिया प्रयत्नश्च वाक्यं तु सुप्तिङां चयः ॥ २॥ ऋक् स्त्रियां सामयजुषी श्रुतिर्वेदास्त्रयस्त्रयो । शिक्षकल्पो व्याकरणं निरुक्तं छन्द ज्योतिषी ॥३॥ षडङ्गानि तु वेदस्य “ॐकारः प्रणवः स्मृतः । ८७ नाम - पिशङ्ग १ पिंग २, कपिल ३, कडार ४, कद्र ५, पिशङ्ग ६ पु० । (६) कृष्णलोहित वर्ण के दो नाम - धूम्र १ धूमल २ पु० । (७) नानावर्ण वाले के पांच नाम-कर्बुर १ चित्र २, किमर ३, कल्माष ४, शवल ५ पु० । (८) ये विशेष्य निघ्न हैं। (९) गुण का एक नाम - गुण १ पु . । ॥ मतिवर्गसमाप्त ॥ हिन्दी - (१) वाणी के सात नाम-वाणी १, गिर् २, भारतो ३, भाषा ४, ब्राह्मी ५, वाचू ६ सरस्वती ७ ये सब स्त्री० । (२) आगम के तीन नाम -आगम १ पु०, सूत्र २, शास्त्र ३ नपुं० । (३) वचन के चार नाम - लपित १ भाषित २ वचन ३ वचस् ४ नपुं० । (४) क्रिया के तीन नाम-कृति १ क्रिया २ स्त्री०, प्रयत्न Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रथमकाण्डम् ४७ वाणीवर्गः ६ 1 त्रीणि स्वरस्य २ द्वे इतिहासस्य ३ द्वे तर्कस्य, ४ द्वे मीमांसायाः ५ चत्वारि धर्मग्रन्थस्य, ६ पञ्चलक्षणं पुराणम्, ७ चतुर्दशविद्या भवन्ति, ९ अङ्गानि एकादश त्रयः स्वरा उदात्ताद्या इतिहासः पुरातनम् ||४|| आन्वीक्षिकी तर्कविद्या मीमांसा तु विचारणा । पुराणं धर्मशास्त्राणि स्मृतयो धर्मसंहिता ॥५॥ सर्गश्च प्रतिसर्गश्च वंशो मन्वन्तराणि च । भूम्यादेश्चैव संस्थानं पुराणं पञ्चलक्षणम् ॥६॥ षडङ्गानि चतुर्वेदा मीमांसाऽऽन्वीक्षिकी तथा । पुराणं धर्मशास्त्रं च विद्या एताश्चतुर्दश ||७| आचाराद्यागमा एकादशाङ्गानि जिनोदिताः । ३ पु० । (५) सुबन्ततिगन्तों के चय को 'वाक्य' कहते हैं । (६) वेद के दो नाम - श्रुति १ स्त्री०, वेद २ पु० । (७) त्रयो के दो नाम - त्रय १ पु०, त्रयी २ स्त्री० । यह ऋक् यजुष् सामन् रूप है ऋकू स्त्री, यजुष् सामन् नपुं० । (८) वेद के छ अङ्ग है उनके नाम - शिक्षा १ स्त्री०, कल्प २ पु०, व्याकरण ३, निरुक्त, ४ छन्दस् (छन्द) ५' ज्योतिष ६ नपुं० । (९) प्रणव के दो नामऊँकार १ प्रणव ०२ पु० । हिन्दी - - ( १ ) स्वर के तीन भेद - उदात्त १ अनुदात्त २ स्वरित ३ पु० । (२) इतिहास के दो नाम - इतिहास १ पु०, पुरातन २ नपुं० । ( ३ ) तर्कविद्या के दो नाम - आन्वीक्षिकी? तर्क विद्या २ स्त्री० । (४) मीमांसा के दो नाम - मीमांसा १, विचारणा Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रथमकाण्डम् वाणीवर्ग: उपाङ्गानि द्वादश, २ मुलानि चत्वारि, ३ छेदानि चत्वारि एकमावश्यकम् ५ एते द्वात्रिंशद् आगन, ६ एता अपि चतुर्दशा विद्या भवति ૪૮ औपपातिकमारभ्य द्वादशोपाङ्गकानि च ॥८॥ चत्वारि मूलसूत्राणि छेदान्यपि तथैव च । अन्त्यमवश्यकं प्राक्तं द्वात्रिंशेत्ते प्रकीर्त्तिताः ॥ ९ ॥ आकाशगामिनी विद्या परकायाप्रवेशिनी । रूपान्तरकरी नाम्नी चतुर्थी स्तम्भनी मता ॥१०॥ मोहिनी पञ्चमी षष्ठी स्वर्गसिद्धिकरी खलु । रौप्यसिद्धिकरो ख्याता रससिद्धिकरी तथा ॥ ११॥ दमनी नवमी ज्ञेया स्याद् वशीकरणी क्रमात् । भूतदमनी च नाग दमनी द्वादशी मता ॥ १२॥ २ स्त्री० । ५ लौकिक धर्मग्रन्थ के चार नाम- पुराण १ धर्मशास्त्र २ नपुं०, स्मृति ३, धर्मसंहिता ४ स्त्री० । ६) पुराण के पांच लक्षण -- सर्ग १, प्रतिसर्ग २ वंश ३ पु०, मन्वन्तर ४ भूम्यादि संस्थान ५ नपुं० । (७) चतुर्दशविद्या के नाम – वेदाङ्ग ६ नपुं०, वेद पु०, मीमांसा ११, आन्वीक्षिकी १२ स्त्री०, पुराण १३. ४ धर्मशास्त्र १४ नपुं० । (८) ग्यारह अङ्ग के नाम - आचाराङ्ग १,, सूत्रकृताङ्ग २, स्थानाङ्ग ३, समवायाङ्ग ४, भगवत्यङ्ग ५, ज्ञाताधर्मकथाङ्ग ६, उपासकदशाङ्ग ७ अन्तकृतदशाङ्ग ८, अनु .त्तरोपपातिकदशाङ्ग ९, प्रश्नव्याकरण १०, विपाकश्रुत ११ नपुं० ॥ Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वाणीवगः ६ सर्वसम्पत्री चान्त्या शिवदाख्या चतुर्दशी । लोकलोकोत्तराः सिद्धा विद्याश्चैता चतुर्दश ॥ १३ ॥ प्रथमकाण्डम् १ कथाया द्वे नाम्नो २ सत्यकथाया एकम् ३ गूढार्थस्य एकम् ४ द्वे समस्यायाः ५ द्वे संग्रहस्य ६ चत्वारि वार्तायाः ७ द्वे लोकप्रवादस्य ८ पञ्च नाम्नः ९ एकम् अनेककर [काह्वानस्य १०द्वे भूमिकायाः ११ द्वे विवादस्य १२ शपथस्यैकम् प्रबन्धकल्पनायान्तु कथा साssख्यायिका यदि । सत्यार्थेनोपलव्धा स्याद् गूढार्थे तु प्रहेलिका ॥ १४ ॥ चन्द्र · हिन्दी - (१) बारह उपात के नाम - औपपातिक : १, राजप्रश्नीय २, जीवाभिगम ३, प्रज्ञापना ४, जम्बूद्रोपप्रज्ञप्ति ५, प्रज्ञप्ति ६ सूर्यप्रज्ञप्ति ७, निरियावलिका ८ कल्पावर्तसिका ९ पुष्पिका १०, पुष्पचूलिका ११, वृष्णिदशा १२ ये बारहहुवे । (२) मूलसूत्र के चार नाम-नन्दी १, उत्तराध्ययन २, दशवै कालिक ३, अनुयोगद्वार ४ । (३) छेदसूत्र के चार नाम - निशीथ १, बृहत्कल्प २, व्यवहार ३, दशाश्रुतस्कन्ध ४ । ( ४ ) अन्तिम सूत्र - आवश्यक १ | ये बत्तीस आगम आचाराङ्ग से लेकर आवश्यक पर्यन्त प्रमाणभूत उपलब्ध है । इन बत्तीस आगमों के साथ सूत्रशब्द जोड़ने पर नपुंसक लिङ्ग होते हैं । (६) ये भी चौदह विद्याएं हैं उनके नाम - आकाशगामिनी १, परकायप्रवेशिनी २, रूपान्तरकरी ३, स्तम्भिनी ४, मोहिनी ५, स्वर्णसिद्धि ६, रौप्य - सिद्धि ७, रससिद्धि ८, रिपुदमनो ९, वशीकरण १० भूनदमनी ११, नागदमनी १२, सर्वसंपत्करी १३ शिवदायिनी १४ स्त्री० । ४ Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वाणीवर्गः ६ समासार्था समस्योक्ता संग्रहस्तु समाहृतिः । वार्ता प्रवृत्ति वृत्तान्त उदन्तोऽथ जनश्रुतिः ||१५|| किंवदन्ती भवेत्सत्या वाऽसत्या निर्णयो नहि । आख्यissa अभिधानं च नामधेयं च नाम च ॥ १६ ॥ बहुकर्तृकमाद्दानं संहेतिरथ भूमिका । उपोद्घातो विरुद्धार्थी विवादः शपैथः पुनः ॥१७॥ प्रथमकाण्डम् " " १ त्रीणि प्रश्नस्य २ द्वे उत्तरस्य, ३ द्वे घोषणायाः, ४ चत्वारि स्तुतेः ५ द्वे द्विरुके, ६ निन्दायाः सप्तनामानि ७ एकं नाम परोक्षनिन्दायाः, ८ एकं ध्वनिविकारस्य ९ चत्वारि कठारस्य, १० एकं संभाषणस्य, ११ एकं नाम अर्थहीन वचनस्य हिन्दी -- ( १ ) कथा के दो नाम - प्रबन्धकल्पना १ कथा २स्त्री० । (२) सत्य कथा का एक नाम - आख्यायिका १ स्त्री० । (३) गूढार्थ का एक नाम - प्रहेलिका (प्रवह्निका) १ त्रो० । ( ४ ) समस्या के दो नाम समासार्था १ समस्या २ स्त्री० । (५) संग्रह के दो नाम संग्रह १ पुं, समाहृत २ स्त्री० । (६) वार्ता के चार नाम-वार्ता १ प्रवृत्ति २ स्त्री, वृत्तान्त ३ उदन्त ४ पु० । (७) लोक प्रवाद के दो नाम - जनश्रुति १ किंवदन्ती २ त्रो० । (८) नाम के पांच नामआख्या १ आह्वा २ स्त्री० अभिधान ३ नामधेय : नाम ५ नपुं० । (९) अनेक जनों द्वारा आह्नान का एक नाम - संहूति १ स्रो० । (१०) भूमिका के दो नाम भूमिका १ खी० उपोद्घात २ पु० । (११) विवाद के दो नाम विरुद्धार्थ १ विवाद २ पु० । (१२) सौगंद का एक नाम - शपथ १ पु० । - Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रथमकाण्डम् वाणीवर्गः ६ प्रतिज्ञावचने प्रोक्तः शास्त्रविद्भिः पुमानयम् ।। पृच्छा प्रश्नोऽनुयोगश्च प्रतिवाक्योत्तरे समे ॥१८॥ घोषणोच्चैस्तु घोषो यः स्तुतिः स्तोत्रं स्तवोनुतिः। भानेडित द्विरुक्तं च पुनः पुनरुदाहृतम् ॥१९॥ परोक्षे निन्दनं लोके पृष्ठमासं नपुंसकम् । कुत्सा जुगुप्सानिन्दा स्त्री परिवादाऽपवादवत् ॥२०॥ आक्षेपो गर्हणायां स्यात् काकुः स्त्री विकृति व॑ने । कैठिनं च कठोरं च कर्कशं परुषं वचः ॥२१॥ स्यात्सम्भाषणमालापः प्रलापोऽनर्थभाषणम् । हिन्दी-(१) प्रश्न के तीन नाम-पृच्छा १ स्त्री०, प्रश्न २, अनुयोग ३ पु० । (२) उत्तर के दो नाम-प्रतिवाक्य १, उत्तर नपुं० । (३) घोषणा के दो नाम-घोषणा १ स्त्री०, घोष २ पु० । (४) स्तुति के चार नाम-स्तुति १ नुति २ स्त्री० । स्तोत्र ३ नपुं० स्तव ४ पु० । (५) दुवारा कथन के दो नाम-मानेडित १, द्विरुत २ नपुं० । (६) परोक्ष में निन्दा का एक नाम-पृष्ठमांस १ नपुं० । (७) निन्दा के सात नाम-कुत्सा १, जुगुप्सा २, निन्दा ३, गर्हणा ४ स्त्री० परीवाद ५ अपवाद ६, आक्षेप ७ पु० । (८) ध्वनि विकार का एक नाम-काकु १ स्त्रो० । ९) कठोर के चार नाम-कठिन १,कठोर २, कर्कश ३, परुष ४ नपुं० । १० सम्भापणका एक नाम-आलाप १ पुं० ।(११) अर्थशन्य वचन का एक नाम-प्रलाप १ पुं० । Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रथमकाण्डम् ५२ वाणीवर्गः६ १ एक मिथ्यावचनस्य २ द्वे विलापस्य ३ द्वे मिथ्यास्तुतेः, ४ एकम् अलिखितसंदेशस्य ५ एकं प्रियसत्यवचनस्य, ६ एकं हृदयग्राहि वचनस्य, ७. द्वे अनुचितवचनस्य, ८ एकं रतिसंभाषणवचनस्य ९ द्वे असभ्यशब्दस्य १० द्वे मत्यविरुद्धस्य ११ णि सत्यस्य १२ चतुर्दशशब्दपर्यायाः मिथ्यावागपलापः स्याद् विलापः परिदेवनम् ॥२२॥ मिथ्यास्तुतौ चटुश्चाटु वाचिक वचसाहृतम् । सूनृते स्यात् प्रियं सत्यं सङ्गत हृदयंगमम् ॥२३॥ अवक्तव्यमवाच्यं स्या दणितं रतिकूजितम् । ग्राम्येमश्लीलवचनं वितथं त्वनृतं वचः ॥२४॥ "ऋतं तथ्यं च सत्ये स्याबौन निस्वाननिस्वनाः । स्वः स्वानः स्वनोनादो निनादनिनदौ ध्वनिः ॥२५॥ आरवाऽरावसंराव विरावाः स्यूश्चतुर्दश ।। हिन्दी-१ मिथ्यावचन का एक नाम-अपलाप (१) निव पुं० । २ विलाप के दो नाम-विलाप १ पु०, परिदेवन २ नपुं० । (३) चालाकी के दो नाम-चाटु १ चटु २स्त्री० । (४) अलिखितसन्देश का एक नाम-वाचिक १ नपुं० । (५) प्रिय सत्य का एक नामसूनृत १ नपुं०। (६) हृदयग्राही वचन का एक नाम-संगत (आदेय) नपुं० । (७) अनुचितवचन के दो नाम-अवक्तव्य १ अवाच्य २ नपुं। (८) रति संभाषण का एक नाम-भणित (मणित) १ नपुं०। (९) असभ्य शब्द के दो नाम-ग्राम्य १ अश्लील २ नपुं० (१०) सत्यविरुद्ध वचन के दो नाम-वितथ १ अनृत २ नपुं० । (११) Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वाणीवर्गः ६ प्रथमकाण्डम् १ द्वे बहुभिः कृतस्य महाध्वनेः २ द्वे प्रतिध्वनेः ३ षट् भूषणध्वने ४ वीणाध्वनौ प्रकणादयः ५ द्वे गानस्य ६ एकं विवक्षितार्थबोधकवाक्यस्य कोलाहलः कलकलः प्रतिश्रुत् स्त्री प्रतिध्वनौ ॥२६॥ शिञ्जितं काण निकाण कण कणन निकणम् । भूषणानां ध्वनौ चापि वीणायाः प्रणादयः ॥ २७ ॥ गीतगाने विवक्षार्थबोधे चाssलापैको भवेत् । ।। इति वाणीवर्गः समाप्तः ॥ ॥ अथ नृत्यवर्गः प्रारभ्यते ॥ नाटेचं तु नटनं नृत्यं ताण्डवं नर्तनं च यत् । नाटयं तौर्यत्रिकं नृत्यगीतवाद्यत्रयं त्विदम् ॥ १॥ ५३ सत्य के तीन नाम ऋत १ तथ्य २ सत्य ३ नपुं० । (१२) शब्द पर्याय के चौदह नाम-ध्वान १ निस्वान २ निस्वन ३ (रव) ४ स्वान ५ स्वन ६ नाद ७ निनाद ८ निनद ९ ध्वनि १० आरव ११ आरोव १२ संराव १३ विराव १४ पु० । - हिन्दी – (१) एक समय में बहुतों से किये गये शब्द के दो नाम - कोलाहल १ कलकल २ पु० । (२) प्रतिध्वनि के दो नाम - प्रतिश्रुत् १ स्त्री० प्रतिध्वनि २ नपुं० । (३) आभूषण शब्द के छ नाम शिञ्जीत १ काण २ निक्काण ३ कण ४ क्वणन ५ निकण ६ नपुं । ( ४ ) वीणाध्वनि के नाम-प्रकण आदि मोपसर्गक उपकणादि पुं० । (५) गान के दो नाम-गीत १ गान २ नपुं० । (६) वक्ता के सङ्केतार्थ वाचक शब्द का एक नाम आलापक १ पुं० । ॥०० ॥ वाणीवर्ग समाप्त || ६ || Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नृत्यवर्गः ७ प्रथमकाण्डम् । रङ्गः स्थानं तु नाट्यस्य पूर्वरङ्ग उपक्रमः । निषाद ऋषभश्चैव गान्धारः षड्जमध्यमौ ॥२॥ धैवतः पञ्चमः सप्त स्वरास्तन्त्री गता इमे । भरतादिमते रोगाः षट् षडेषां च वल्लभाः || ३|| एकैकस्य च षट्त्रिंशद् रागिण्यो गुणिताश्च षट् । हिन्दोलकौशिकौ रागौ, रागो भैरवदीपकौ ॥४॥ श्रीरागो मेघरागश्च रागः षट् नामतः क्रमात् । ५४ हिन्दी - ( १ ) नृत्य के पांच नाम-नाट्य १, नटन २ नृत्य ३, ताण्डव ४, नर्तन ५ नपुं० । (२) नाट्य के दो नाम (नृत्य गीतवाद्य रूप) तौर्यत्रिक १ नाट्य २ नपुं० । ( ३ ) नृत्यस्थान का एक नाम - रङ्ग १ पु० । (४) नाटक के प्रारम्भ में स्तुति पाठ करने वाला का एक नाम - ऊपक्रम १ पु० । (५) तन्त्रीस्वरों के सात नाम - निषाद १ ऋषभ २ गान्धार ३ षड्ज ४ मध्यम ५ धैवत ६ पञ्चम ७ पु० । ( ६ ) भरत आदि गायनाचार्य के मत से राग छ होते हैं उनके नाम - हिन्दोल १, कौशिक २ भरव ३दीपक ४ श्रीराग ५ मेघराग ६ पु० । (७) प्रत्येक राग के छ छ रागिणियां वल्लभाएं है जैसे- भैरव रागकी धानसी १ मालसी २ रामकीरी ३ सिंबुडा ४ आशावरी ५ भैरवी ६ स्त्री० । मल्लारराग की वेलावरी १ पुरवी २ कानडा ३ माधवी ४ कोडा ५ केदारिका ६ स्त्री० । श्रीराग को गौरी १ कौमारिका २ गान्धारी ३ सुभगा ४ वैरागी ५ वेलियारी ६ त्रो० । दीपक राग को-ललिता १ पञ्चमी २ तोड़ी ३ पटमञ्जरी ४ विभाषा ५ गुंजरी ६ स्त्री० । Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रथमकाण्डम् नृत्यवर्गः ७ केचिन्मालवमल्लारौ श्रीरागश्च वसन्तकः ॥५॥ हिन्दोलश्चापि कर्नाट इति रागान् प्रचक्षते । उच्चस्तारोऽथ गम्भीरे मन्द्रः स्यान्मधुरेऽस्फुटे ॥६॥ कल स्तस्मिन् कले सूक्ष्मे काली स्वर ईर्यते । एकतालस्तु गीतस्य सामस्त्ये लयवाधयोः ॥७॥ विपश्ची वल्लकी वीणा सप्तभिः परिवादिनी। तन्त्रीमि धि वीणादि ततं स्यान्मुरजादिकम् ॥८॥ आनद्धं सुषिरं वेणुः कांस्यघण्टादिक धनम् । वाद्य वादित्रतोद्यानि चतुर्णा नाम गीयते ॥९॥ हिन्दोल राग की दीपिका १ देशकारी २ मायूरी ३ पाहिडी ४ मोरहाडी ५ वराडी ६ स्त्री० । कौशिक राग की कामोदा १ रामकेली २ भूपाली ३ नाटिका ४ गडा ५ कल्याणी ६ स्त्री० । हिन्दी-(१) कितनेक गायनाचार्यों के मत से छ राग हैं उनके नाम-मालव १, मल्लार २ श्रीराग ३ वसन्त ४ हिन्दोल ५ कर्नाट ६ । (२) उच्चस्वर को 'तार' कहते हैं पु० । (३) गम्भीर स्वर को 'मन्द्र' कहते हैं पु० । (४) मोठे और स्फुट स्वर को 'कल' कहते हैं पु० । (५) मीठा और अस्फुट सूक्ष्म कल को 'काकली' कहते हैं स्त्री० । (६) जिस गाना में गीतवाद्यलय समानरूप से संचारित हो उसे 'एकताल' कहते हैं पु० । (७) वीणा के तीन नाम-विपश्ची १ वल्लकी २ वोणा ३ स्त्री० । (८) साततार वाली वीणा को 'परिवादिनो' कहते हैं स्त्री० (९) वाचवीणादिको 'तत' कहते हैं नपुं० । मुरज आदि को 'आनद्ध' कहते. Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नृत्यवर्गः ७ आङ्गेयाऽऽलिङ्गयोर्ध्वका भेदा मृदेङ्गो मुरजः स्मृतः । नैकः पटोsस्त्री स्यात्कदाचित्पुं नपुंसकम् ॥१०॥ ढक्कास्त्रियां पुमान् ढोलः स्त्रीभेरी पुंसि दुन्दुभिः । झर्झरो' वाद्यभेदः स्याद डमरुर्मड्ड डिण्डिमौ ॥११॥ लय: साम्ये भ्रकुंसश्च भ्रूकुंसश्च भ्रकुंसकः । ७ नर्तकः पुरुषः स्त्रीणां वेषधारी रसा नव ॥ १२ ॥ | शृङ्गारं करुणा हास्याऽद्भुतरौद्रभयानकाः । बीभत्स वीर जन्ताश्च शङ्गारः शुचिरुज्ज्वलः ॥१३॥ प्रथमकाण्डम् ५६ है नपुं० । (११) वेणु को 'सुषिर' घण्टा अदि को 'धन' कहते हैं नपुं के तीन नाम - वाध १, वादित्र २, तोध ३ नपुं० । हिन्दी -- (१) चतुविध C वाद्यों के तीन नाम -आङ्गय १, आलिङ्गय २, ऊर्ध्वक ३ पु० । (२) मृदङ्ग के दो नाम- मृदङ्ग १, मुरज २ पु० । (३) पटह के दो नाम - आनक १, पटह २ अस्त्री० । ( ४ ) उत्सववाद्य के चार नाम-ढक्का १ भेरी २ स्त्री० ढोल ३, दुन्दुभि ४ पु० । (५) ये चार बाघ भेद है उनके नाम - शर्झर १, डमरु २ मड्डु ३ डिण्डिम ४ पु० । (६) गीतवाद्य पादादिन्यास और क्रियाकाल के समता को 'लय' कहते है पु० । (७) स्त्रीवेषधारी नाचने वाले पुरुष के तीन नाम - कुंस १, भ्रूकुंस २ कुंसक ३ पु० । (८) रस के नौ नाम - शृङ्गार १, हास्य २, अद्भुत ३. रौद्र ४, भयानक ५, वोभत्स ६, वीर ७, शान्त ८ करुणा ९ बी० । (९) गुहार के तीन नाम - शृङ्गार, शुचि २, उज्ज्वल ३ पु० । कहते हैं नपु ं० । १२ कांस्य । (१३) इन चारों वाजों · Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - प्रथमकाण्डम् नृत्यवर्ग:७ अनुक्रोशाऽनुकम्पा च कारुण्यं करुणा कृपा । दया चाऽप्यथ हास्यं च हसो हासोऽथ विस्मयः ॥१४ अद्भताऽऽश्चर्य चित्राणि रौद्रमुग्रं भयानके । भीषणं दारुणं भीष्मं भीमं घोरं भयङ्करम् ॥१५॥ भैरवं च प्रतिभयं त्रिष्वेते स्युश्चतुर्दश । त्रासाऽऽतङ्को भयं भोति (स्त्री क्लोबं तु साध्वसम् ।। मनो विकारे वैकृत्यं विकृतं विकृतिः स्त्रियाम् । गर्वे मानाऽभिमानाऽहङ्कारादर्पमदौ स्मयः ॥१७॥ अपैलेपस्तिरस्कारोऽनादरश्चाऽवमानना । अपमानः परिभव स्तथाऽवज्ञाऽवलेहना ॥१८॥ हिन्दी-(१) करुणा के छ नाम-अनुक्रोश १ पु० कारुण्य २ नपुं०, अनुकम्पा ३, करुणा ४, कृपा ५ दया ६ स्त्री० । (२) हास्य के तीन नाम-हास्य १ नपुं० हस २, हास ३ पु. । (३) अद्भुत के चार नाम-विस्मय १ पु०, अदभुत २, आश्चर्य ३, चित्र ४ । (४) रौद्र के दो नाम-रौद्र १, उग्र २ । (५) भयानक के नो नाम-भयानक १, भीषण २ दारुण ३, भीष्म ४, भीम ५, घोर ६ भयङ्कर ७, भैरव ८, प्रतिभय ९ ये चौदह त्रिलिङ्ग है (६) भय के पांच नाम-भय १ नपुं०. भीति २, भी ३ स्त्री०, त्रास ४ साध्वस ५ अस्त्री० । (७) मनोविकार के तीन नामवैकृत्य १, विकृत २ नपुं०, विकृति ३ स्त्री० । (८) अहङ्कार के सात नाम-गर्व १, मान २, अभिमान ३, अहङ्कार ४ दर्प ५, मद ६, स्मय ७ पु० । Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रथमकाण्डम् नृत्यवर्गः ७ हृीस्तु व्रीडा त्रपालज्जा सैवाऽन्यस्मादपत्रपा । तितिक्षायां क्षमाक्षान्ति रभिध्या तु परस्पृहा ॥ १९ ॥ ईर्षा त्वीय तितिक्षास्या दसूयाऽलीकदुषणम् । द्वेष वैरो विरोधेऽथ शोको मन्युः स्त्रियां तु शुक् ॥२०॥ पश्चात्तापोऽनुतापः स्याच्छीलं तु चरितेऽमले । क्रोधेऽमर्षस्तथा कोषो रोषो रुट् कृधू स्त्रियामुभे ॥ २१ ॥ ५८ हिन्दी - ( १ ) अनादर के आठ नाम- अवलेप १, तिरस्कार २, अनादर ३ अपमान ४ पग्भिव ५ पु .. अवमानना ६, अवज्ञा ७ अवलेहना स्त्री० । (२) लज्जा के चार नाम- ही १, व्रीडा २ लज्जा ३, त्रपा ४ स्त्री० । ( ३ ) पिता आदिके आगे लज्जा का एक नाम - अपत्रपा १ स्त्री । ( ४ ) क्षमा के तीन नाम - तितिक्षा' १ क्षमा २ क्षान्ति ३ त्रो० । (५) परद्रव्येच्छा का एक नामअभिध्या १ स्त्री० । ( ६ ) पर उन्नति नहीं सहने के तीन नामईर्षा १, इर्ष्या २ अतितिक्षा ३ स्त्री० । (७) मिथ्यादोषारोपण का एक नाम - असूया १ स्त्री० । (८) वैर के तोन नाम - द्वेष १ पु .. वैर नपुं २ विरोध ३ पुं० । (९) शोक के तीन नाम-शोक १ मन्यु २ पुं. (मन्यु शब्द दैन्य ऋतु क्रोथ बोधकनानार्थ हैं), शुच् ३ स्त्री. । (१०) पश्चात्ताप के दो नाम - पश्चात्ताप १, अनुताप २ पु० । (११) अमल (विमल ) चरित्र को 'शील' कहते हैं पुं० । (१२) क्रोध के छ नाम - क्रोध १, अमर्ष २ कोप ३, रोष. ४. पु०, रुष् ५ क्रुध ६ स्त्री० । Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रथमकाण्डम् पुंसि प्रेमी तथा स्नेहः प्रेम हार्दे तु न द्वयोः । चित्त विभ्रान्ति रुन्मादः स्यादाधिर्मनसो व्यथा ||२२|| कामे तर्षोऽभिलाषश्चाऽत्यभिलाषस्तु लालसा । वाञ्छा स्पृच्छाकांक्षेहा लिप्सा दोहो मनोरथः ॥ २३ तृड़थोत्कलिकोत्कण्ठाssध्यानं तूत्कण्ठ्या स्मृतिः । दम्भो व्याज छलं छद्म कैतवं कपटोऽस्त्रियाम् ॥२४॥ निकृति: कुसृतिश्चापि शठतायां तु केचन । कुतुकं कौतुकं चित्रं कौतूहल कुतूहले ॥२५॥ उत्साहोऽध्यवसायः स्यात्प्रमादोऽनवधानता । स्वेदे' घर्मो निदाघश्चावैहित्थाऽऽकारगोपने ॥ २६ ॥ हिन्दो - ( १ ) प्रेम के चार नाम - प्रेमन १ स्नेह २ पु० प्रेमन् ३ हार्द ४ नपुं० । ( २ ) चित्तभ्रान्ति को 'उन्माद' कहते हैं पु० । (३) मन के व्यथा को 'आधि' कहते पु० हैं । (४) काम के तीन नाम - काम १ वर्ष २ अभिलाष ३ पुं० । (५) अति अभिलाषा को 'लालसा' कहते हैं त्रो० । (६) वाञ्छा के नौ नाम - वाञ्छा १स्पृहा २, इच्छा ३ आकांक्षा (कांक्षा ) ४, ईहा ५, लिप्सा ६, तृष् ७ स्त्री०, दोह ८, मनोरथ ९ पु० । (७) उत्कण्ठा के दो नाम उत्कलिका १ उत्कण्ठा २ स्त्री० । (८) उत्कण्ठा के साथ स्मृति को 'आध्यान' कहते हैं नपुं. । ( ९ ) कपट के नव नाम - दम्भ १, व्याज २ छल ३, छद्म ४, कैतव ५, कपट ६ अस्त्री०, निकृति७ कुसृति ८, शठता ९ स्त्री । (१०) कुतुहल के पांच नाम - कुतुक १, कौतुक २ चित्र ३, कौतुहल ४ कुतूहल ५ नपुं० । Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - प्रथमकाण्डम् ६० नृत्यधर्ग:७ मृच्छयां कश्मलं मोहः कल्पान्तः प्रलयो मतः। संवेगश्चैव निर्वेदो वैराग्यं तु नपुंसकम् ॥२७॥ क्रर्दनं रोदने जम्मा जम्मा जम्भश्च जम्भणे । स्वाः स्वप्नश्च निद्रायां शयनं च निगद्यते ॥२८॥ असम्यक्त्वं विसंवादं" समे स्खलनरिङ्गणे । तन्द्री तन्द्रा प्रमीला स्याद् भ्रुकुटि भ्रकुटी समे ॥२९॥ कैम्पो वेपथु रुदर्षे तु क्षणो मह उत्सवः । स्वभावे प्रकृतिः स्त्रीस्या निसर्गः पुंस्युदाहृतः ॥३०॥ सन्तुष्टस्य च गुर्वादे कृपादृष्टिः प्रसन्नता । ॥ इति नृत्यवर्गः समाप्तः ॥७॥ हिन्दी-(१) उत्साह के दो नाम-उत्साह १, अध्यवसाय २ पुं० । (२) प्रमाद के दो नाम-प्रमाद १ पुं०, अनवधानता २स्त्री. (३) पसीना के तीन नाम-स्वेद १, धर्म २ निदाघ ३ पुं० । आकारगोपन के दो नाम-अवहित्था १ स्त्री. आकारगोपन २ नपुं. (५) मूर्छा के तीन नाम-मूर्छा १ स्त्री९ कश्मल २ नपुं० मोह ३ पु०। (६) प्रलय को कल्पान्त कहते हैं। (७) वैराग्य के तीन नाम-संवेग १, निर्वेद २ पु० वैराग्य ३ नपुं० । (८) रोदन के दो नाम-क्रन्दन १ रोदन २ नपुं९ । (९) जम्भाई के चार नामजम्मा १, जुम्भा २ स्त्री०, जृम्भ ३ पु०, जम्भण ४ नपुं० । (१०) निद्रा के चार नाम--- स्वाप १, स्वप्न २, पु० शयन ३ नपुं०, निद्रा ४ स्त्री० । असम्यक्त्व को 'विसंवाद' कहते है पु० । पिच्छिल (कर्दम) भूमि से छिछलने के दो नाम-स्खलन १, रिङ्गण २ नपु० । Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - प्रथमकाण्डम् नृत्यवर्गः ७ ॥अथ पातालवर्गः प्रारभ्यते ॥०॥ पातालस्यादधो लोको बलिस रसातलम् । बिलं तु सुषिरं क्लीबं कुहरं विवरं स्मृतम् ॥१॥ रोक छिद्रं रन्ध्रमथ श्वभ्रे गर्ताऽऽवटावुभौ । ध्वान्ते तमिस्रं तिमिर मन्धकारोऽस्त्रियां तमः ॥२॥ अल्पे ध्वान्तेऽवतमसं घोरेऽन्धतैमसं तथा । सर्पस्तु भुजगो व्यालो द्विजिह्वोऽहिः सरीसृपः ॥३॥ चक्षुःश्रवाः फणी काकोदरो भोगी भुजंगमः । पन्नगः कुण्डली चक्री भुजंगः पवनाशनः ॥४॥ ॥ नृत्यवर्ग समाप्त ॥ - हिन्दी-(१) तन्द्रा के तीन नाम-तन्द्री १ तन्द्रा २ प्रमीला ३ स्त्री० । (२) भ्रकुटि के दो नाम--भृकुटि भ्रकुटि २ स्त्री० । ३ कम्प के द नःम-कम्प १ बेपथु २ पु० । (४) उत्सव के पांच नाम-उर्षे १ क्षण २ मुह ३ उत्सव ४ उद्धव ५ पु० । (५) स्वभाव के तीन नाम-स्वभाव १ निसर्ग २ पु०, प्रकृति ४ स्त्री० (६) प्रसन्नता को 'कृपादृष्टि' कहते हैं स्त्रो० । . हिन्दी-(१) पाताल के चार नाम---पाताल नपुं० अधोलोक २ पु०' वलिसद्म ३, रसातल ४नपुं० । बिल के सात नाम बिल १, सुषिर २, कुहर ३, विवर ४, रोक ५, छिद्र, ६, रन्ध्र ७ नपुं । (३) खड्ढे के तीन नाम--श्वभ्र १, गर्त, २, अवट ३ पु० । (४) सामान्य अन्धकार के पांच नाम --ध्वान्त २, तमिस्र २, तिमिर ३, समस् ४ नपुं०, अन्धकार ५ भबी० । (५) Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रथमकाण्डम् દર अशीविषो द्विरसनो लेलिहानश्च जिह्नगः । विलेयो दन्तशुको गूढपदुरगोऽपि च ॥ ५॥ गोकर्णः कञ्चुकी कुम्भी - नसो विषधरस्तथा । काद्रवेयास्तु नागास्युः शेषोऽनन्तस्तदीश्वरः ॥६॥ ति लित्सगोनसौ तुल्यौ सर्पराजस्तु वासुकिः अलगद दराधारोऽजैगरो वाहसः शयुः ॥७॥ स्याद् घोणो निर्विषः सर्प स्तुल्यौंधमेणधावनौ । राजीलो डुण्डुभो मालु- धानो मातुल पन्नगः ॥ ८ ॥ पतालवर्ग: अल्प अन्धकार का एक नाम अन्धकार का एक नाम अवलमस १ नपुं० । (६) घोर- अन्धतमस १ नपुं० । (७) सर्प के अट्ठाईस नाम सर्प १ भुजग २ व्याल ३ द्विजिह्न ४ अहि ५ सरीसृप ५ चक्षुःश्रवस् ७ फणिन् ८, काकोदर ९ भोगिन् १० भुजंगम ११ पन्नग १२ कुण्डलिन् १३ चक्रिन् १४ भुजंग १५ पवनाशन १६, हिन्दी - आशीविष १७, द्विरेसन १८, लेलिहान, १९ जिह्नग २०, बिलेशय २१, दन्तशूक २२ गूढपाद, २३, उरग २४, गोकर्ण २५, कञ्चुकिन्, २६, कुम्भीनस २७, विषधर २८, (हरि) पु० । (१) फणा और पूंछवाले नराकार सर्पों के दो नाम - काद्रवेय १ नाग २ पु० । (२) नागस्वामी के दो नाम - शेष १ अनन्त २ पु० । (३) सर्प विशेष के दो नाम- तिलित्स १ गोनस २ पु० । (४) नागराज के दो नाम सर्पराज, वासुकि २ पु० । (५) जलस्थायी सर्प के दो नाम - अलगर्द १, दराधार २ ५० । ( ३ ) Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रथमकाण्डम् पतालवर्ग: शरीरमस्य भोगःस्याद् दंष्ट्रा त्वाशी: फणास्फटा। विर्षे तु गरलक्ष्वेडो विषभेदा इमेऽस्त्रियाम् ॥९॥ हलाहलः कालकूटः काकोलश्च प्रदीपनः । शौक्लिकेयोब्रह्मपुत्रो वत्सनाभश्च दारदः ॥१०॥ कञ्चुकः स्यात्तु निर्मोक आहियं स्यात् त्रिलिङ्गकम् । व्यालग्राही जाङ्गुलिको विषेवैद्याऽऽहि तुण्ड कौ ॥११॥ नरको निरयः किश्च नारको दुर्गतिः स्त्रियाम् । तत्प्रभेदास्तु तैपनो महारौरवरौरवो ॥१२॥ अजगर के तीन नाम-अजगरे १, वाहस २, शयु ३ पु० । (७) निर्विष सर्पजाति वालों में एक जाति का नाम-'घोण पु० । (८) दू रे जाति के दो नाम- धर्मण १ धावन २ पु० । (१) निर्विष द्विमुख सर्पो के दो नाम-राजील १ डुण्डुभ २ पु० । (१०) चित्र सर्प के दो नाम-मालुधान १, मातुलपन्नग २ पु० । हिन्दी-(१) सर्प के शरीर का एक नाम-'भोग' पु० । (२) सों के ताल में दात होता है उनके दो नाम-दंष्ट्रा १, आशी २ (अशिष्) स्त्री., इन दांतों से काटने पर कोई नहीं जीता है । (३) सर्पफणा के दो नाम-फणा १ स्फटा २ स्त्री० । (४) विष के तीन नाम-विष १, गरल २ नपुं, श्वेड ३ पु० विष के ८ भेद उनके ८ नाम-हलाहल (हालाहल) कालकूट २, काकोल ३, प्रदीपन ४, ब्रह्मपुत्र ५, शौक्लिकेय ६, दारद ७, वत्सनाभ ८ पु. (६)सर्प से निकले हुए त्वचा के दो नाम-कञ्चुक १ निर्मीक २ पु०। (७) सर्प के मङ्गप्रत्यङ्ग विकारों को 'माहिय' कहते है बिलिन । (८) सर्प के Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रथमकाण्डम् पातालवर्ग: कालसूत्रं च सङ्घातोऽवीचि जीवास्तु नारेकाः । सिन्धुवैतरणी प्रेता यातना घोरवेदना ॥१३॥ कॅष्टं प्रसूति दुःख माभीलं कृच्छ्रमित्यपि । पीडाबाधा व्यथैतेषां त्रिपु ज्ञेयं विशेष्यगम् ॥१४॥ धर्मावंशा तृतीया तु शैला तुर्याऽञ्जना क्रमात् । रिष्टा षष्टी मघा माघ-वती नरकभूमयः ॥१५॥ ॥ इति पातालवर्गः समाप्तः ॥ पकड़ने वालों के दो नाम-व्यालग्राहिन् १ जागुलिक २ पु० । (९) विषवैद्य के दो नाम-विषवैद्य १, आहितुण्डिक २ पु० । (१०) नरक के चार नाम-नरक १, निरय २, नारक ३ पु० दुर्गति ४ स्त्र।। (११) नारक के भेद से नरक के ऊँचे छ नामतपन १, महारोरव २, रौरव ३, संघात ४, अवाचि ५ पु०, कालसूत्र ६ नपुं० । हिन्दी-(१) नरकवासी जीवों को 'नारक' कहते हैं । (२) नरक नदी के दो नाम--सिन्धु १, वैतरणी २, स्त्री० । (३) भयानक दुःख के तीन नाम- प्रेता १, यातना २, घोरयातना ३, स्त्री० । (४) दुःख के आठ नाम-कष्ट, प्रसूतिज २ ,दुःख ३ आभील ४, कृच्छ ५, नपुं०, पीडा ६, बाधा ७, व्यथा ८ स्त्री० ।। (५) नरक के ये सात नाम जैन शास्त्रों में प्रसिद्ध हैं उनके नामशैला १, रिष्टा २, अञ्जना ३, वंशा ४, धर्मा ५, माघवती ६ मधा ७ स्त्रो० । .. || पातालवर्ग समाप्त ॥०॥ | Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रथमकाण्डम् जलवर्गः९ ॥अथ जलवर्गः प्रारभ्यते॥ जल स्यात्सलिलं वारि मेघपुष्पं दकं च कम् । पानीयमुदकं नीरं क्षीरं जीवनमम्बु च ॥१॥ कीलालममृतं तोयं पाथोऽर्णोऽम्भश्च शंवरम् । क्लीबमापो बहत्वे स्त्री पयो वाः पुष्करं वनम् ॥२॥ नंदी निर्झरिणी स्रोतस्वती द्वीपवती धुनी । तरङ्गिव्यापगा कूलं कषा शैवलिनी सरित् ॥३॥ सरस्वती स्रवन्ती च तटिनी इदिनी तथा । निम्नगाऽमू:स्त्रियः सर्वा गङ्गा जहूनुसुताऽपिच ॥४॥ भागीरथी त्रिपथगा तथा विष्णुपदीति च । "सूर्यात्मजा तु यमुना कालिन्दी शमनस्वसा ॥५॥ हिन्दी- (१) जल के चोवीस नाम-जल १, सलिल २. वारि ३, मेघपुष्प ४, दक ५, क ६, पानीय ७, उदक, ८, नीर ९. क्षीर १० जीवन ११, अम्बु १२, कोलाल १३, अमृत १४, तोय १५ पाथस् १६, अर्णस् १७, अम्भस् १८, संवर, १९, पयस् २०, वार २१ पुष्कर २२, बन २३, नपुं०, आप २४. बहुवचनान्त स्त्रो० । (२) नदी के पन्द्रह नाम-नदी १. निर्झरिणी २ स्रोतस्वती ३, द्वीपवतो ४, धुनी, ५, तरङ्गिनी ६, भापगा ७. कलङ्कषा ८, शैवलिनी ९, सरित् १०, सरस्वती ११ सवन्ती १२ तटिनी १३ हादिनी १४ निम्नगा १५ स्त्री० । (३) गङ्गा के पांच नाम-गङ्गा • जनुसुता २ भागोरथी ३ त्रिपथगा ४, विष्णुपदी ५ स्त्री ! (४) यमुना के चार नाम-सूर्यात्मजा ३, यमुना २ कालिन्दी ३ शमनस्वसा ४ स्त्री० ।। - - Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रथमकाण्डम् ६६ जलवर्गः ९ सोमजा नर्मदा रेवा सैव मेकलकन्यका । करतोया सदा नीरा चन्द्रभागा सरस्वती ॥६॥ शरावती वेत्रवती कावेर्याद्याः अनेकशः । ब्रह्मपुत्रो नदः शोणः कुल्यैोऽल्पा कृत्रिमा सरित् ॥७॥ समुद्र उदधिः सिन्धु रब्धिर्जलधिरर्णवः । सरस्वान् सागरः पारा वारी रत्नाकरस्तथा ॥८॥ यादः पतिरुदन्वांश्च सरित्पति रपांपतिः । भेदा लवणक्षीराऽऽज्य सुरे-क्षु दधिवारयः ||९|| शरावती ३, वेत्र हिन्दी - (१) नर्मदा नदी के चार नाम - सोमजा १, नर्मदा ५, रेवा ३, मेकलकन्यका ४, स्त्रो० (२) करतोया नदी के दो नाम - करतोया १ सदानीरा २ स्त्रो० । (३) नदीविशेषों के पृथक् २ नाम - चन्द्रभागा १, सरस्वती २ वती ४ कावेरी २, स्त्री० । (४) नद के दो नाम- ब्रह्मपुत्र १ शोण (भद्र) (२) खोदकर बनाई गई नदी के तीन नाम कुल्या १, अल्पा २, कृत्रिमा स्त्री० । ( ६ ) समुद्र के चौदह नाम समुद्र १, उदधि १, सिन्धु ३, अब्धि ४, जलधि ५, अर्णव ६, सरस्वत् ७, सागर ८, पारावार ९, रत्नाकर १ १०, यादः पति ११ उदन्वम् १२ सरित्पति १३, समुद्र के अनेक भेद - लवण १, क्षीर २. इक्षु ५, दधि ६, पु. । (८) तरङ्ग के पांच २ पुं., लहरी ३ स्त्री वीचि ४, ऊर्मि ५ अपपति १४, पु. (७) आज्य ३, सुरा ४, नाम - तरङ्ग १, भङ्ग " पु. स्त्री. । Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६७ प्रथमकाण्डम् तरंङ्ग भङ्गौ लहरी वोचिरूर्मिर्द्वयोर्मतः । जलभ्रमिः स्यादावर्तः कल्लोलोल्लौ महोर्मिषु ॥ १० ॥ विमुँह स्त्रियां पृषत्की स्याद् बिन्दुः पृषतः पुमान् पुभेदो भ्रमः पुंसि चक्रं च जलनिर्गमे ॥ ११ ॥ स्यात् त्रिलिङ्ग तैंटक्लं प्रतीरं तीर रोधसी । परतीरं तु पारं स्या दवारमपरं तथा ।। १२ ।। सिन्धुमेले तु संभेद: प्रणाली जलपद्धतौ । अत्री द्वीपोऽन्तरीपंच जलाभ्यन्तस्तटे द्वयम् ॥१३ सैकतं सितापुब्जे द्वे सिक्ताऽसिकते त्रियौ । जलक्रमेण संजाते तटे पुर्लिंन मीरितम् ॥ १४॥ जलवर्ग: ९ (१) नलभ्रमि को 'आवर्त' कहते हैं पुं. (२) तरह के दो नामकल्लोल १ उल्ल २ पु. ( ३ ) बिन्दु के चार नाम - विप्रुष १ स्त्री, पृषत् २ नपुं., बिन्दु ३, पृषत् ४ पु. (४) चक्राकार से अधोगामी जल के तीन नाम-पुटभेद १ भ्रम २ पु., चक्र ३ नपुं. (५) तट के पांच नाम-तट १ कूल २, प्रतीर ३, तीर ४, रोधस् २ त्रिलिङ्ग (३) नदी आदि के परतट को 'परतीर' ३, और 'पार' कहते हैं. पूर्वतटको 'अवार ' और ' अपर' कहते है नपुं, ! (७) नदि संगम का एक नाम - संभेद १ पु . । ( ८ ) जलमार्ग का एक नाम - प्रणाली स्त्री. (९) जल के अन्तर्वर्त्ती दोष के दो नाम द्वीप १ अन्तरीप २ पु . । (१०) सिकता समूह के एक नाम सैकत १ नपुं, ११ रेती के दो नाम - सिक्ता १ सिकता २ स्त्री । (१२) जल घार से बने हुए तट को 'पुलिन' कहते है । Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रथमकाण्डम् जलवर्ग: परीवाहो जलोच्छ्वासः प्रवृद्धजलनिर्गतों । हैदोऽगाधजले पुंसि जलाधारो जलाशये ॥१५॥ उदपानं स्त्रियां नस्या दन्धुः कूपः प्रहि पुमान् । विदारको भवेत्कूपो गर्तेऽम्बु प्राप्तये कृतः ॥ १६ ॥ त्रिकातु नेमिः कूपस्य वीनाहो मुखबन्धनम् । देवखातमखातं स्यात्खातं पुष्करिणी स्त्रियाम् ॥ १७ ॥ पद्माकरस्तटाकोsस्त्री तडागः सरसी सरः । कासारः पवेल त्वल्प सरो वैशन्त इत्यपि ॥ १८ ॥ आधारो जलाधान्यालवाला वापोssवाळस्तु क्षुद्रजे । खेयँ स्यात्परिखा वाप्य दीर्घिक द्वे अमृ स्त्रियाम् ॥ १९ ॥ ॥ हिन्दी - (१) प्रवृद्ध जल निर्गम के दो नाम - परिवाह, १ जलोच्छ्वास २ पु० । (२) अगाध जल को 'हृद' कहते हैं । (३) जलाधार को ' जलाशय' कहते हैं । (४) कूप के पांच नाम उदपान १, अस्त्रो० अन्धुर २, कूप ३, प्रहि ४, विदारक ५ पु . । (५) कूप के अन्दर में डोरी आदि बन्धन यन्त्र के दो नामत्रिका १, नेमि २, स्त्री० । (६) कूप के मुखबन्धन का 'विनाह' कहते हैं पु० । (७) अकृत्रिम जलाशय के दो नाम - देवखात १, अखात २, पु. पद्माकर २, तटाक रिणी ६, सरसी ७ तालाव के तीन वेशन्त ३ पु० । ९ नाम - खात १, । (८) तालाव के आठ ३, तडाग ४, कासार ५, अस्त्री० पुष्कस्त्री०, सरस् ८ नपुं० । (९) अल्प (छोटे) नाम - पल्वल १, अल्पसरस् २, नपुं०, Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रथमकाण्डम् जलवर्ग: ९ जलनील्यान्तु शैवालः वारिपर्णी तु कुम्भिका । सौगन्धिकं सिताम्भोज कल्हारं यत् त्रिसन्ध्यकम् ॥२०॥ रक्तं तद् हल्लक ज्ञेयं कमलेषु कुशेशयम् । पद्मारविन्दे नलिनं शतपत्र स्त्रियं विना ॥२१॥ सहस्रपत्रमम्भोज-मजं राजीवमम्बुजम् । कजं पङ्केरुहं पुण्डरीकं तामरसोत्पले ॥२२॥ अम्भोरुहं सरसिजं सारसं सरसीरुहम् । रात्रीप कुवलयं कैरवं कुमुदं सिते ॥२३॥ हिन्दी-(१) बड़े बन्धों का एक नाम-जलधानी १, स्त्री० (आधार पु०)। (२) क्यारो के तीन नाम-आवाल १, आल. वाल २, नपुं०, आवाप ३ पु० । (३) नगर के चारों ओर बनाई हुई खाई के दो नाम-खेय १ नपुं०, परीखा २ (खाता) स्त्री० ।। बावडो के दो नाम-वापी १ दीर्घिका २ स्त्री० । (५) जलनाली का एक नाम-शैवाल (खेल, शैवल, शेवल) नपुं० पु० । (६) पत्तेवाले शैवाल के दोनाम-वारिपर्णी १, कुम्भिका २ स्त्री० । (७) श्वेत कमल के तीन नाम-सौगन्धिक १, सिताम्भोज २, कल्हार । (८) रक्त कमल का एक नाम 'हल्लक' । (९) कमल के बीस नाम-कमल१, कुशेशय २, पद्म३, अरविन्द ४, नलिन५ शतपत्र ६, सहस्रपत्र ७, अम्भोज ८, अब्ज ९, राजीव १०, अम्बुज ११, कञ्ज १२, पङ्केरुह १३, पुण्डरीक १४, तामरस । १५, उत्पल १६, अम्भोरुह १७, सरसिज १८, सारस १९, सरसोरुह २०, । (१०) रात्रि में खिलने वाले कमल के तीन नाम-कुवलय १, कुमुद २, कैरव ३ । Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रथमकाण्डम् जलवर्गः ९ नीले चेन्दीवरं कन्द स्त्वेषां शालूक मुच्यते । पद्ममूलं शिफाकन्दः करहाट उभौ पुमान् ॥२४॥ नलिन्यां बिसिनी प्रोक्ता कुमुदिन्यां कुमुद्वती । नालानालं स्त्रियां क्लीबे रक्तः कोकनदोऽम्बुजः ॥२५॥ मृणालं च मृणाली स्त्री बिसे किब्जेल्क केसरौ । वराटको बीजकोशे पगो रेणुरुच्यते ॥२६॥ पङ्कोऽस्त्री कदमः शादो जम्बालश्च निषद्धरः । हिन्दी-(१) नीलकमल के एक नाम-इन्दीवर १ । (२) रात्रिविकासी कमलकन्द का एक नाम-'शालूक' येउन्तीस अस्त्री०। (३) पद्मकन्द के दो नाम-शिफाकन्द १ करहाट २ पु० । (४) कुमुदिनी के तीन नाम-नलिनी बिसिनी२ पद्मिनी ३ स्त्री० (५) कुमुद युक्त देश वा कुमुदलता के दो नाम-कुमुदिनो १ कुमुदती २ स्त्रीः । (६) कमलनाल का एक नाम-नाला, श्री. नपुं० । (७) रक्त कमल के तोन नाम-कोकन्द १ पु०, रक्तसरोरुह २, रक्कोत्पल ३ पु. नपुं० । (८) जल जात कमल शैवाल मादि के तीन नाम-मृणाल १ नपुं० मृणाली २ स्त्री०, बिस ३ अस्त्री० । (९) कमल केसर के दो नाम-किजल्क १, केसर २ पु० नपुं. (१०)पद्मबीजके दो नाम-वराटक १ बीजकोश २ पु० । (११) कमल आदि पुष्प धूली के दो नाम-पराग १ रेणु २ पु० । (१२) कीचड़ के पांच नाम-कर्दम १ शाद २ जग्बाल ३ निषदर ४ पु०, पङ्क ५ अस्त्री० । Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रथमकाण्डम् ७१ . जलवर्गः ९ नौतार्य त्रिषु नाव्यं स्या-त्तरणिनीस्तरिः स्त्रियाम् ॥२७॥ पोतस्तु पुंसि वोहित्थं वहिन बहनं च तत् । स्रोतः स्वतोऽम्बुसरणे प्लबकोलौ तथोडुपः ॥२८॥ काष्ठाऽम्बुवाहिनीद्रोणी गुणवृक्षस्तु कूपकः । अरि केनिपाते ऽथ नौदण्डे क्षेपणीस्त्रियाम् ॥२९॥ आतराऽतितरौस्यातां तरपण्येऽथ सेचनम् । सेकपात्रेऽथ नावोऽर्धेऽर्धनावं ल्कीब लिङ्गकम् ॥३०॥ नावि कः कर्णधारः स्या स्पोतवाहो नियामकः । पारंग त्रिषु पारीणो ऽवारपारीण इत्यपि ॥३१॥ हिन्दी-(१) नौका से पार करने योग्य जलनदी आदि को 'नाव्य' कहते हैं त्रिलिङ्ग । (२) नौका के सात नाम-तरणि १ तरि २ नौ ३ स्त्री०, पोत ४ पु०, वोहित्थ ५ वहिन ६ वहन नपुं० । ३ अकृत्रिम जलप्रवाह को 'स्रोतस्' कहते हैं, नपुं । ४ तृणादि निर्मित नौका के तीन नाम-प्लब कोल २ उडुप ३ पुं. । काष्ठ आदि से नौकाकार बनाई गई जलसेचनी का एक नामद्रोणी १ स्त्री० । पाल जिसमें बांधे जाय उस काष्ठ के दो नामगुणवृक्ष १ कूपक २ पु० । नौका को चलाने वाले काष्ठ के दो नाम-अरति १ नपुं, केनिपातक २ पुं० । (८) नौका के किनारे में बाधे गये चालन काष्ठ के दो नाम–नौ दण्ड १ पु०, क्षेपणी (क्षिपणी) २ स्त्री० । (९) नौका उतराई मूल्य के दो नाम-आतर १ अतितर २ पु०। (१०) नौका से जल निकालने के पात्र के दो नाम-सेचन १ सेकपात्र २ नपुं०। Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रथमकाण्डम् जलवर्गः ९ सांयात्रिको द्वयोनका वणिक पोतवणिक्च सः । अभिः काष्ठस्य कुद्दाले प्रसन्नाऽच्छतु निर्मलः ॥ ३२ ॥ समलः कलुषोऽनच्छ अविलश्चेत्यमी समाः । निम्नं गभीरगम्भीरे अगाधेऽस्ताद्य इत्यपि ||३३|| धीरे दाश कैवर्ती मत्स्याधानी" कुवेणिका । मत्स्यवेधन यन्त्रे स्याद्वडिशं बडिशास्त्रियाम् ||३४|| आनायो ना च जालं स्यान्मीने वैसारिणो झषः । पृथुरोमा च मत्स्यश्च विसारः शकली पुमान् ॥३५॥ ७२ हिन्दी - (१) अर्ध नौकाकार सेचनी को 'अर्धनाव' कहते हैं नपुं० । (२) नौका के सूत्रधार 'नाव चलाने वाले' को 'नाविक और कर्णधार' कहते हैं पु० । (३) नौका व्यवस्था संचालक के दो नाम -- पोतवाह १, नियामक २ पु० । (४) पार जाने वाले के तीन नाम - पारग १ पारीण २, अवारपारीण ३ त्रिलिङ्ग । (५) नौका से पार करने वाले के तीन नाम - सांयात्रिक १ अस्त्री०, नौकावणिक् २, पोतवणिक्, ३ पु० । ( ६ ) नौका से कचरा निकालने के पात्र के दो नाम -अनि १ स्त्री०, काष्ठकुद्दाल २ पुं० । (७) निर्मल के तीन नाम प्रसन्न १, अच्छ २ निर्मल ३ त्रिलिङ्ग । (८) मलिन जल के चार नाम - समल १ कलुष २ अनच्छ ३, भविल ४ त्रिलिङ्ग । (९) गंभीर के पांच नाम - निम्न १, गभीर २ गम्भीर ३ अंगाव ४, अस्ताघ ५ त्रिलिङ्ग । (१०) धीवर के तीन नाम -- घीवर १, दाश २, कवर्त ३ पु० । (११) मछली रखने का जो पात्र है उसके दो नाम - मत्स्याधानी १ कुवेणिका २स्त्री. । " Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रथमकाण्डम् जलवर्ग: ९ सहस्त्रदंष्ट्र पाठीनौ प्रौष्ठी तु शफरी द्वयोः । मद्रः शालराजीवी शकुलस्तिमिरोहितौ ॥३६॥ झषास्तिमिङ्गिलोऽन्येतु यादांसि जलजन्तवः ॥ शङ्ख शिशुमाराः स्यु स्तद्धेदे मकरादयः ॥३७॥ कच्छपः कमठः में कुलीरः" कर्कटः पुमान् । ग्राहे ऽवहारो नैक्रस्तु कुम्भीरेऽथ महीलता ॥३८॥ - हिन्दी-(१) मत्स्यवेधन यन्त्र के दो नाम-बडिश १ नपुं०, बडिशा २ स्त्री०। (२) जाल के दो नाम-आनाय १ पु०, जाल २ नपुं० । (३) मत्स्यों के सात नाम-मीन, १ वैसारिण २ झष ३ पृथुरोमन् ४ मत्स्य ५ विसार ६ शकलिन् ७ पु० । (४) बहुत दांत वालि मछलियों के दो नाम-सहस्रदंष्ट्र १ पाठीन १ पु० । (५) मत्स्य विशेष के दो नाम-प्रोष्ठी १ शफरी २ स्त्री पु० । (६) पृथक पृथक् एक एक मत्स्य जाति के नाम-मद्गुर १ शाल . २ राजीव ३ शकुल ४ तिमि ५ रोहित ६ तिमिङ्गिल पु० । (७) जलचर मात्र 'यादस्' १ बहुवचन नपुं०, जलजन्तु २ पुं नपुं० । (८) जलचर के अनेक भेद-शंकु १ उद्र २ शिशुमार ३ मकर ४ पु० । (९) कच्छप के तोन नाम-कच्छप १ कमठ २ कूर्म ३ पु० । (१०) केवड़ा के दो नाम-कुलीर १ कर्कट २ पु० । (११) ग्राह के दो नाम-ग्राह अवहार २ पुं० । (१२) मगर मच्छके दो नाम-नक्र १ कुम्भीर पु० । (१३) केंचुवा (अलसिया) ये जमीन पर चलने वाले लघु सर्पाकृति द्वीन्द्रिय कीट हैं इनके तीन . नाम-महीलता १ स्त्री०, गण्डूपद २ किंचुलुक ३ पु० । Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जलवर्गः ९ प्रथमकाण्डम् गण्डूपद:- किंचुलको निहास्यात्तु गोधिका । मुक्तास्फोटः पुमान् शुक्तिः स्त्रिजलौका तु रक्तपा । ३९ | क्षुद्र शङ्खनखाः शङ्खः कम्बुर्न तु स्त्रियाम् । भेके मण्डूक शालूर वर्षाभू दर्दुर प्लवाः ॥४०॥ शृङ्गी मग्दुर पुंयोगे भेकी स्त्री कमठी डुलिः । ॥ इति नलवर्गः समाप्तः || ७४ ॥ अथ अव्ययवर्गः प्रारभ्यते ॥ प्रादुराविः प्रकाशले वैस्त्वनागत वासरे । परेद्यवि परश्वः स्यात्प्रपरश्वस्तदुत्तरे ||१| ॥१॥ दुष्ठु प्रोक्तं जुगुप्सायां सुष्ठु प्राशस्त्यवाचकम् | अधुना सम्प्रतीदानीं स्यादेतर्हि च साम्प्रतम् ॥ २ ॥ समया निकषाssसन्ने प्रभाते प्रातरुच्यते । सन्ध्याकाले स्मृतं सायं मुषा" रात्र्यन्तमीरितम् ॥ ३॥ हिन्दी - [१] जलगोधिका के दो नाम - निहाका १ गोधिका २ स्त्री० । [सीप के दो नाम - मुक्तास्फोट १ पु०, शुक्ति २ स्त्री० । [३] जलोका [जोंक] के दो नाम - जलौका १ रक्तपा २ स्त्री. [४] छोटे शंखों के दो नाम - क्षुद्रशङ्ख ९ शंखनख २ पु० । [ ५ ] शंख के दो नाम - शंख ९ कम्बु २ अस्त्री० [ ६ ] मेढ़क के छ नाम-भेक १ मण्डूक २ शालूर ३ वर्षाभू ४ दर्दुर ५ प्लव ६ पु० । [७] मद्गुर के पुंयोग में शृङ्गी १ भेककी भेकी, कमठ की कमठी, डुलि दो नाम स्त्रीलिङ्ग । ॥ जलवर्ग समाप्त ॥ Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रथमकाण्डम् . ७५ अव्ययवर्गः १० बैतहर्षे विषादे च स्याद् यथार्थे यथातथम् । कच्चित्कल्याण पृच्छाया मुधोऽस्मिन्नहनीष्यते ॥४॥ ह्यो' गतेऽहन्य द्रुतेतु शनैः प्रायस्तु भूमनि । अयि कोमल संबुद्धा वोमा मेवं च सम्मतौ ॥५॥ स्वीकृता वस्तु पर्याप्ते काम वा स्याद्विकल्पने । बाह्ये बहिरदृष्टे स्तं "स्यादनेके च निश्चये ॥६॥ उच्चै रूा सेनानित्ये,ऽध स्तान्नीचैः पुनर्मुहुः । मामास्माऽलं निरोधे स्युः पुरस्तादयतः पुरः ॥७॥ नैं नो नहि निषेधेऽर्थे ही खेदेऽ होतु विस्मये । संत्रा साकं समं साधं सहार्थेधिकच भर्सने ॥८॥ हिन्दी-[१] प्रकाश अर्थ में दो शब्द-प्रादुस् १ आविस् । २ आगामी दिन में 'श्वसू । [३] तीसरे दिन के बोधक परेधुः, परश्वः, दो शब्द हैं। [४] चौथे दिवस को 'प्रपरश्व' कहते हैं। [५] जुगुप्सा अर्थ में 'दुष्ठु' है। [६] प्रशस्तबोधक अर्थमें 'सुष्टु' है। [७] अभो अर्थ में 'अधुना, सम्प्रति, इदानीम्, एतहिं साम्प्रतम्, हैं। [८] आसन्न 'समीपवर्ती' अर्थ में 'समया निकषा' , है। [९] सवेरा अर्थ में 'प्रभात, प्रातर' हैं। [सन्ध्या अर्थ में 'सायम्' है । [११] रात्रि का अन्त बोधक 'उषा' है । [१२] हर्ष या विषाद अर्थ में 'बत' है। [१३] यथार्थबोधक 'यथातथम्' है। [१४] कल्याण सूचक प्रश्न में 'कच्चित्' है । [१५] आज के दिन में 'अद्य' है। (१) आज से अव्यवहित पूर्व दिन का बोधक 'ह्यस्' है । Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रथमकाण्डम् ७६ अव्ययवर्गः १० ४ यदि चेद् अन्यपक्षे द्वे : पूर्वेद्युः समावुभौ । एकदा युगपत्सद्यः सपत्रविहार्थकम् ॥९॥ तदानीं तदा तस्मिन्कालेऽत्र भवान्तरे । किंञ्चिदीषन्मनागल्पे, स्याद् व्यर्थेतु मुधावृथा ॥ १०॥ चिरं च चिररात्राय चिरस्य च चिराय च । I चिराच्चिरे चिरेणाऽपि चिरार्थे योजिताः पुरा ॥ १११ ॥ कदाचिज्जातु तुल्येद्वे सहे सातर्किते मतम् । विनामध्यार्थयोः प्रोक्ता व्यन्तरेणाऽन्तरेऽन्तरा ॥ १२ ॥ तिर्यगर्थे तिरः साचि दिष्टें याऽऽनन्देऽर्चने स्वैति । (२) मन्द अर्थ में 'शनैस्' है । (३) बाहुल्य अर्थ में 'प्रायस् है । (४) कोमल संबोधन में 'अयि' है । (४) स्वीकार अर्थ में 'ओम्, आम्, एवम्' हैं । (६) स्वीकृति अर्थ में 'कामं' है । (७) विकल्प में 'वा' है । (८) बाहिर अर्थ में 'बहिस्' है । (९) दृष्टि से परे को 'अस्तम्' कहते हैं । (१०) अनेक अर्थ में और निश्चय में 'स्यात् ' है । (११) ऊपर अर्थ में 'उच्चैस्' है । (१२) नित्य अर्थ में 'सना' है । (१३) नीचे अर्थ में 'अवसू, नोचैस्' है । (१४) फिर से अर्थ बोधक 'पुनर्मुहुस्' है । (१५) निरोध अर्थ में 'मामा स्म अलं' है । (१६) आगे अर्थ में 'पुरस्तात्, अग्रतस् पुरस्' है । (१७) निषेध अर्थ में 'न नो नहीं' हैं । (१८) खेद अर्थ में 'हा' है । (१९) विस्मय में 'अहो' के प्रयोग होते हैं । (२०) सह के अर्थ में 'सत्रा, साकं समं, सार्धम्' हैं । (२१) भर्त्सन में 'धिक्' है । Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रथमकाण्डम् अव्ययवर्गः १० सम्बोधनेऽङ्ग हे है भोः किल सम्भाव्य वार्तयोः॥१३॥ उताहो किमुताऽऽहोच तु विकल्पे निश्चये । नीचाहाने त्वरेरे च त्वराच सम्भ्रमः समौ ॥१४॥ प्रसह्य तु हठार्थे स्या प्रतिक्षण मनुक्षणम् । वर्जने स्तो हिरुक् नाना हेतौ यत्तद् यतस्ततः॥१५॥ मुदि शुक्ले दले कृष्णे वैदि संवत्तु वत्सरे । अह्रीत्यर्थे दिवा नक्त दोषा च रजनाविति ॥१६॥ स्वयं स्यादात्मनेत्यर्थे तत्त्वेऽद्धार्वाक तथाऽवरे । निश्चये पादपूतौं च तुहि च स्म ह वै इति ॥१७॥ (१) अन्य पक्ष के बोधक 'यदि, चेतू' है। (२) आज से अव्यवहित पूर्व दिन को 'ह्यसू , पूर्वेधुस्' कहते हैं । (२) किसी समय अर्थ में 'एकदा, युगपत् , सधस् सपदि' हैं । (४) यहां पर अर्थ में 'अत्र, इह' हैं । (५) उस समय का बोधक 'तदानीं, तदा' हैं। (६) परभव अर्थ में 'अमुत्र' है ।(७) अल्प अर्थ में 'किञ्चित्, ईषत्, मनाक्' हैं। (८) व्यर्थ (विना प्रयोजन के) अर्थ में 'मुधावृथा' हैं। (९) चिर (बहुत देर तक) अर्थ में सात शब्द हैं'चिरम् १, चिररात्राय २, चिरस्य३, चिराय ४, चिरात्५, चिरे६, चिरेण७, । (१०) किसी समय अर्थ में 'कदाचित् , जातु हैं। (११) अचानक (अतर्कित) अर्थ में 'सहसा है। (१२) विना अर्थ में और मध्य अर्थ में-'अन्तरेण, अन्तरे, अन्तरा' हैं । (१३) तिरछा अर्थ में 'तिर्यक्, तिरस् , साचि' हैं । (१४) आनन्द अर्थ में 'दिष्टया' है । (१५) सत्कार सम्मान अर्थ में 'सु, अति' हैं। Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७८ प्रथमकाण्डम् अव्ययवर्गः १० साम्ये यथा तथा वे वाऽतिशयेऽतीवे मुष्ठु च । झटित्यहाय मक्षुद्रा गजसा सपदि द्रुते ॥१८॥ हवि र्दाने स्वधा स्वाहाऽसाकल्पे चित् चनेत्युभे । तूष्णीं च तष्णिकां मौनेऽवश्यं नूनं च निश्चिते ॥१९॥ आम् एवं निश्चये प्रातः प्रभातार्थे प्रगेऽपि च । तके वितर्के हु° प्रश्ने ॐ ननु द्वे प्रयोजिते ॥२०॥ (१) सम्बोधन में- 'अङ्ग, हे, है, भोस् (पाट, प्याट्) हैं। (२) वार्ता संभाव्य (अनुनय, अरुचि) में 'किल' है । (३) विकल्प में 'उताहो, आहो, आहोस्वित् (किं किमूत) हैं । (४) निश्चय में 'नु' है। (५) नीच सम्बोधन में 'अरे, रे' हैं । (६)आवेग अर्थ में "त्वरा, संभ्रमसू' हैं । (७) हलात् (बलजोरी जबर्दस्ती) अर्थ में "प्रसह्य, प्रतिक्षणम् , अनुक्षणम्' हैं । (८) वर्जन (निषेध) अर्थ में "हिरुक, नाना' हैं । (९) हेतु अर्थ में 'यत्, तत् , यतस, ततसू' हैं। (१०) शुक्ल पक्ष अर्थ में 'सुदि' है . (११) कृष्ण पक्ष अर्थ में 'वदि' है । (१२) वत्सर (साल)अर्थ में 'संवत्' है । (१३) अह्नि (दिवस) अर्थ में 'दिवा' है । (१४) रात्रि अर्थ में 'नक्तं, दोषा' है। (१५) अपने अपने किया अर्थ में 'स्वयम्' है । (१६)नूतन काल में 'अद्धा, अर्वाक्, अवर' है। (१७) निश्चय अर्थ में 'तु, हि, च, स्म, ह, वै' हैं।। (१) साम्य अर्थ में 'यथा, तथा, व, वा, इव' है। (२) अतिशय अर्थ में 'अतीव, सुष्टु' हैं। (३) झटपट (द्रुत) अर्थ में "झटिति, अह्नाय, मंक्षु, द्राक, अञ्जसा, सपदि' हैं । (४) हविर्दान Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रथमकाण्डम् - अव्ययवर्गः १० एषमोऽस्मिन् परत पूर्वे परौर्यब्दे ततोऽपि च । पूर्वोत्तराऽपराऽन्याऽन्य-तरादितरतोऽधरात् ॥२१॥ पूर्वाद्यहःसु पूर्वेधु रादयः स्युः क्रमादिमे । रुद्रकोशे तु पूर्वेयुः प्रातर्वा पूर्ववासरे ॥२२॥ परेयवि परेऽह्निस्या दुभयेधुदिनद्वये । वितथेस्तोमृषा मिथ्या सत्त्वेऽस्ति नमने नमः ॥२३॥ अर्थ में 'स्वधा, स्वाहा' हैं । (५) असाकल्प अर्थ में 'चित् , चन' हैं। (६) मौन अर्थ में 'तूष्णी, तूष्णीकाम्' हैं । (७) निश्चित अर्थ में 'अवश्यं, नूनम्' हैं। (८) निश्चय अर्थ में- 'आम् , एवम्' हैं। (९) प्रभात अर्थ में 'प्रातः, प्रगे' हैं। (१०) तर्क वितर्क अर्थ में 'हुँ' है। (११) प्रश्नवाचक अर्थ में 'ऊं, ननु' है । (१२) इस वर्ष (चालु सोल संवत्) अर्थ में 'ऐषमस्' है । (१३) वीते हए (इस वर्ष से अव्यवहित पूर्व) वर्ष अर्थ में 'परुत्' का प्रयोग होता है। (१४) परत् से पूर्व वर्ष को 'परारि' कहते हैं। (१५) पूर्व १, उत्तर २, अपर ३, अन्य ४, अन्यतर ५, इतर ६, अधर ७ इन सात शब्दों से 'पूर्वे, अहनि' इत्यादि अर्थों में___'पूर्वेयुः, उत्तरेयुः, अपरेयुः, अन्येयुः, अन्यतरेयुः, इतरेयुः, अधरेयुः' निपातन से बनते हैं। (१)रुद्रकोष में 'पूर्वेद्यः' का प्रयोग 'प्रातः' अथवा 'पूर्वदिवस' अर्थ में माना गया है। (२)पर दिवस अर्थ में 'परेद्यवि' होता है । (३) जहां दोनों दिनों में ऐसा अर्थ हो, वहां 'उभयेधु (उभया)' होते हैं। (४) व्यर्थ (फिजूल) - Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीयं काण्डम् 'लोकवर्गः १० सवतः परितो विष्वक् समन्ता दभितस्तथा । अव्ययवर्गः समाप्तः ॥१०॥ अर्थ में 'मृषा, मिथ्या' है। (५) वर्तमान अर्थ में 'अस्ति' है। (६) प्रणाम अर्थ में 'नमः' है ! (७) सर्वतः अर्थ में 'सर्वतस् , परितस् , विश्वक, समन्तात्, अभितसू' ये पांच शब्द हैं। ॥ अव्ययवर्ग समाप्त ॥ ॥ इति प्रथमः काण्डः समाप्तः ॥ -०-० ॥श्री॥ ॥ अथ द्वितीयकाण्डम् ॥ ॥ अथ लोकवर्गः प्रारभ्यते ॥ लोकोऽयं जगती स्त्री स्याद् जगद् भुवनविष्टपम् । भरतैरवतानि स्यु विदेहाः कर्म भूमयः ॥१॥ अन्ये हैमवताद्याः स्युस्त्रिशच्चाऽकर्मभूमयः । और्यावों जन्मभूमिः सत्तीर्थङ्कर चक्रिणाम् ॥२॥ आचारवेदिः पूण्याभू दक्षिणार्धस्य मध्यमः । (१) लोक के पांच नाम- लोक १ पुं०, जगती २ स्त्री०, जगत् ३ भुवन ४ विष्टप ५ नपुं० । (२) पांच भरत वर्ष, पांच ऐरवत वर्ष, पांच महाविदेह हैं । ये पन्द्रह क्षेत्र कर्मभूमि हैं। पांच हैमवत, पांच हैरण्यवत, पांच हरिवर्ष, पांच रम्यक वर्ष, पांच देवकुरु, पांच उत्तरकुरु ये तीस अकर्मभूमि हैं, ये जुगलिक क्षेत्र ये Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीयकाण्डम् लोकवर्गः १ भूमि वसुमती क्षोणी रत्नगर्भा वसुन्धरा ॥३॥ जगती वसुधा गोत्राऽचलाऽनन्ता रसा च भूः । विश्वम्भरा च पृथिवी स्थिरा कुः सागरांबरा ॥४॥ महीधात्री च पृथ्वी च धरित्री धरणी क्षमा । धरा क्षोणिः क्षितिक्ष्मा गौरिला सर्वसहाऽवनिः ॥५॥ 'मृत्तिकामृत् प्रशस्ता चेत् मृत्सा मृत्स्ना च सामता । ऊपः स्यात्क्षारमृत् सर्व सस्याख्या योर्वरी च सा ॥६॥ स्थलं स्थलाऽकृत्तिमा तु स्थली चोषरमूषवत् । जो पांच पांच क्षेत्र है वे जम्बूद्वीप में एक एक और धातकीखण्ड द्वीप तथा पुष्कवरद्वोपार्ध में दो दो क्षेत्र होते है। [३] तीर्थङ्कर २४, चक्रवर्ती १२, वासुदेव ९, बलदेव ९, प्रतिवासुदेव ९, इन तिरसठ [६३] शलाका पुरुषों की जन्मभूमि के तीन नामआर्यावर्त १ पुं०, पुण्यभू २, आचारवेदी ३ स्त्री०, यह दक्षिण भरतार्थ का मध्यस्खण्ड वैताढ्य से दक्षिण लवणोदधि से उत्तर , गङ्गा से पश्चिम, सिंधु से पूर्व में है । हिन्दी-(१) भूमि के एकतीस नाम-भूमि १, वसुमति२, क्षोणो ३, रत्नगर्भा ४, वसुन्धरा ५, जगती ६, वसुधा ७, गोत्रा८, अचला ९, अनन्ता १०, रसा ११, भू १२, विश्वम्भरा १३, पृथिवी १४, स्थिरा १५, कु १६, सागराम्बरा १७, मही १८, धात्रो १९, पृथियो २०, घरित्री २१, धरणी २२, क्षमा २३, धरा २४, क्षोणि २५, क्षिति २६, क्षमा २७, गो २८, इला Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीयकाण्डम् निर्जले मरुधन्वानौ खिलमप्रहतं त्रिषु ॥७॥ निवृज्जनपदो देश विषयौ तूपवर्तनम् । शाद्वैल: स्यादहरिते सर्प पङ्किलः स्थळे ||८|| संवेतसे तु वेतस्वान् कुमुद्वान् कुमुदेर्युते । इवांस्तु नड्वलः प्रोक्तः समौ चिकण पिच्छिलो ॥९॥ स्थलं नद्यम्बु वृष्टयम्बु जातसस्य सुरक्षितम् । नदीमातृकमेकं तद् द्वितीयं देवमातृकम् ॥१०॥ सुराशि सति राजेन्वान् देशोऽन्यत्र तु रार्जेवान् । रजोयुक्ते सिकतिलः सैकतः शार्करोऽपि च ॥११॥ २९, सर्वसंहा ३०, अवनि ३१ स्त्री० । [२] मिट्टी के दो नाममृतिका १, मृत् २ स्त्री० । [३] प्रशस्त मिट्टी के दो नाम - मृत्सा १, मृत्स्ना २ स्त्री० । [४] खारी मिट्टी का एक नाम - ऊष १ पुं० । [५] उपजाऊ भूमि का एक नाम - उर्वरा त्रो० । [६] स्थल शब्द के स्रोलिङ्ग में दो भेद हैं कृत्रिमा में 'स्थला' और अकृत्रिमा में 'स्थली' इन भेदों से अन्यत्र नपुंसकलिङ्ग । [७] ऊष युक्त स्थल के दो नाम - ऊषर १ ऊषवत् २ त्रिलिङ्ग । ૮૨ लोकवर्गः १ हिन्दी -[१] मारवाड के दो नाम - मरु १, धन्वा [घन्वन् ] २ पुं. | [२] नहीं जोते गये भूमि के दो नाम - खिल १, अप्रहत २ त्रिलिङ्ग । [३] जननिवास स्थल के दो नाम - नीवृत् १, जनपद २ पु० । [४] ग्रामसमुदायरूप स्थानमात्र के तीन नामदेश १, विषय २ पु०, उपवर्तन ३ नपुं. । [4] नूतन हरितघाससे शोभित देश के दो नाम - शाइल [ शाड्वल] १, सादह Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीयकाण्डम् लोकवर्गः १ गोष्ठे स्याद्गोत्रजस्थानं गोष्ठीनं भूतपूर्वकम् । कच्छेः पुमान् जलप्राय प्रदेशेऽनूपमित्यपि ॥ १२ ॥ पुमान् परिसरः प्रान्ते पर्यन्तो जलबन्धने । सेतुः पुमान् स्त्रियामाळि वल्मीके पुं नपुंसकम् ॥ १३ ॥ चामलूरश्च नाकुश्च वर्त्मत्वयनमेकपात् । वर्तनी पद्धतिः पद्या पदवी सरणिः सृतिः ॥ १४ ॥ पुंसि मार्गाsध्व पन्थानः सत्पथस्त्वर्चितोऽध्वनिः । सुपन्था अतिपन्थाथ कापेथे विपथोऽपथः ॥ १५ ॥ अपन्थाश्च कदध्वाच दुरध्व व्यध्व कल्पथाः । रित २५० । [ ६ ] पङ्कयुक्त प्रदेश के दो नाम - सपङ्क १, पङ्किल २५० । ( ७ ) वेत्र प्रदेश के दो नाम - सवेतस १, वेतस्वान् २ नपुं० । [८] कुमुदवाले प्रदेश का एक नाम - कुमुद्वान् १ पु० । [९] नलतृण युक्त प्रदेश के दो नाम नड्वान् १, नड्वल २ पु० । [१०] फिसलने वाला स्थल के दो नाम-चिक्कण १, पिच्छिल २ पु० । [११] नदो जल से सस्यशाली स्थल का एक नाम - नदीमातृक १ त्रिलिङ्ग । [१२] दृष्टि जल से सस्यशाली स्थल का एक नाम - देवमातृक १ त्रिलिङ्ग । [१३] न्यायी राजा के देश का नाम - राजन्वान् ( राजन्वन् ) त्रिलिङ्ग । [१४] अन्य का राजवान् [राजवत् ] त्रिलिङ्ग । [१५] सिक्ता युक्त धुलिवाले प्रदेश के चार नाम - रजोयुक्त १, सिकतिल २, सैकत ३, शार्कर ४, पु० । : हिन्दी - (१) गोनिवास स्थान के दो नाम - गोष्ट १, गोत्रज स्थान २ नपुं० । [२] जहां भूतकाल में गाएं रहती थी उस प्रदेश का 8, ८३ Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीयकाण्डम् लोकवर्गः१ शङ्गाटेकं पथायोगे चतुर्णा स्याच्चतुष्पथः ॥१६॥ घण्टामार्गों राजमार्गे क्लीबं संसरणं विदुः । दुर्गे मार्गे तु कान्तारं प्रान्तर शून्यवमनि ॥१६॥ एक नाम- गोष्ठीन १ नपुं० । [३] जलासन्न प्रदेश के दोनामकच्छ १ पु०, अनूप २ नपुं० [नानार्थ] । [४] पर्वत प्रासाद आदि के समीपवर्ती प्रदेशके दो नाम-परिसर १, पर्यन्त २ पु० । (५) नदी के ऊपर पूल (वांध) के दो नाम-सेतु १ पु०, आलि २ स्त्री० । (६) वल्मीका (उढइ) के तोन नाम-वल्मीक १ पु०, नपुं० वामलूर २ नाकु २ पु०। (७) मार्ग के बारह नाम-वर्म(वर्मन्) १, अयन २ नपुं०, एकपात् (एकपदी) ३, वर्तनी ४, पद्धति ५, पद्या' ६, पदवो७, सरणि ८, सृति ९ स्त्री० । मार्ग १०, अध्या (अध्वन्) ११, पन्था (पथिन्) १२ पु० । (८) सुन्दर मार्ग के तीन नाम-सत्पथ १ सुपन्था (सुपथिन्) २, अतिपन्था (अतिपथिन्) ३ पु० । (९) अयोग्य मार्ग के आठ नाम-कापथ १, नपुं०. विपथ २, अपथ ३, अपन्था अपथिन् ४, कदध्वा कदध्वन् ५, दुरध्व ६, व्यध्व ७, कत्पथ ८ पु०। हिन्दी-(१) चार मार्ग जहां मिलते हैं उसके दो नामशृङ्गाटक १ नपुं., चतुष्पथ २ पु० । (२) राजमार्ग के तीन नामघण्टामार्ग १ राजमार्ग २ नपुं० । संसरण ३ नपुं० (३) विषम मार्ग के दो नाम-दुर्गमार्ग १ पुं०, कान्तार २ नपुं० । (४) छाया आदि विश्राम कारण शून्य मार्ग के दो नाम-प्रान्तर १, शून्यवर्त्म (शून्यवर्मन्) २ नपुं० । (५) दो हजार धनुष मानवाले Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीयकाण्डम् नगरवर्ग:२ द्वाभ्यां धनुःसहस्राभ्यां गव्यतं क्रोश उच्यते । क्रोशद्वयं स्त्री गंव्यति नल्वो हस्त चतुःशती ॥१८॥ भूद्यावौ रोदसी पुर्या अध्वास्यादुपनिष्करम् । ॥ इति लोकवर्गः समाप्तः ॥ ०॥ अथ नगरवर्गः प्रारभ्यते ॥०॥ नगर नगरी पू: स्त्री पुरी वा पत्तनं पुरम् । चणिजां सति वासेतु निगमः पुटभेदैनम् ॥१॥ सर्ववस्तृपलब्धौ तद भेदे ग्रामस्ततस्ततः। वसंतेर्वास भेदाः स्युः खेट कर्बटकादयः ॥२॥ मार्ग के दो नाम-गव्यूत १ नपुं०, क्रोश २ पु० । (६) दो कोश की 'गन्यूति' संज्ञा है स्त्रीलिङ्ग और 'गव्यूत' भी। (७) चार सौ हाथ के मान को 'नल्व' कहते हैं पु० । (८) पृथिवो सहित आकाश के दो नाम-धावाभूमी १ स्त्रीलिङ्ग द्विवचन, रोदसी २ नपुं० द्विवचनान्तः । नगर मार्ग का नाम-उपनिष्कर नपुं० (पुरोमार्ग पु०)। ॥ लोकवर्ग समाप्त ।। हिन्दी-(१) नगर के छ नाम-नगर १ नपुं०, नगरी २, पु. ३ पुरो ४ स्त्री०, पत्तन ५, पुर ६ नपुं० (२) व्यापारी निवासस्थान का एक नाम-निगम १ पु० । (३) जहां सब वस्तु मिले उसका एक नाम-पुटभेदन (पत्तन) १ नपुं० । (४) कण्टकादि बाड़वेष्टित जननिवास का एक नाम -ग्राम १ पु० (५) वसति मेद में-खेट (धूलि प्राकारयुक्त नगर) कर्बट (कुत्सितनगर) मडंब Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीयकाण्डम् नगरवर्गः २ लघुमिठिका ग्रामा वेशो वेश्यालयस्थलम् । द्विकानमापणो हट्टो विणिः पण्यवीथिका ॥३॥ प्रतोली विशिखा रथ्या वैः स्यान्मृच्चयोऽस्त्रियाम् । कृत्रिमेवेष्टने साल: प्राकारो वरणस्तथा ॥४॥ प्राचीरं चैव प्राचीनं प्रान्ततो वृत्तिरिष्यते।। कुंडथेभितिः स्त्रियामन्त-यस्तास्थन्येडूक मुच्यते ॥५॥ (अढाई २ कोश तक ग्रामान्तर रहीत) द्रोणमुख (जलस्थल मार्ग स्थल) आश्रम (तापसादि निवास) संबाह (कृषिवल द्वारा निर्मित धान्य रक्षा स्थल दुर्ग आदि) संनिवेश (सार्थवाहादि निवास स्थल) मादि हैं नपुं० । (६) छोटे ग्राम को-'ग्रामठिका' कहते हैं स्त्री० (७) वेश्यालय का एक नाम-'वेश' पु० । (८) दुकानों के तीन नाम-द्विकान १ नपुं०, आपण २ हट्ट ३ पु० । (९) दुकान पतियों के दो नाम-विपणि (विपणी) १, पण्यवीथिका २ स्त्री०। (१०) ग्राम वाले मध्यमार्ग के तोन नाम-प्रतोली १ विशिखा २ रथ्या ३ स्त्री० । (११) परिखा आदि के मिट्टी ढेर का एक नामवप्र १ अस्त्री। हिन्दी-(१) कृत्रिम घिरावे (कोट) के तीन नाम-साल १, प्राकार २, वरण ३ पु०। (२) प्रामादि के अन्त में कण्टक आदि वेष्टन (बाड) के तीन नाम-प्राचीर १, प्राचीन २ नपुं०, वृत्ति ३ स्त्री० । (३) भित्ति के दो नाम-कुड्य १ नपुं०, भित्ति २ स्त्री० । (४) अस्थि आदि से निर्मित्तभित्ति को 'एडूक' कहते हैं नपुं० । (५) गृह के तेरह नाम -गृह १, वेश्म २ (वेश्मन्), भवन Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीयकाण्डम् नगरवर्गः २ गृहं स्याद वेश्म भवनं गेहं सद्य च सादनम् । निकेतनमगारं चाssगारं च सदनं तथा ॥ ६ ॥ गृहाः पुंस्यपि भूम्न्येव निकाय्यो निलयाऽऽलयौ । कुटीरो यतिनां गेहं पर्णशालो-टजः कुटी ॥७॥ हैम्यं तु धनिनां वेश्म प्रासादो देवभूभृताम् । स्वस्तिकादीनि चिह्नानि गृहेष्वीश्वरवेश्मनाम् ॥८॥ टं सूतिका गेहूं मण्डपैस्तु जनाश्रयः । वस्त्रनिर्मित गेहं यद् उपकार्योपकारिका ॥ ९ ॥ क्षत्रियाणां स्त्रियावेश्म शुद्धान्तोऽन्तः पुरं तथा । ३, गेह ४, सद्म ( सद्मन्) ५, सादन ६, निकेतन ७, अगार ८, आगार ९, सदन १० नपुं० ( गृह का बहुवचन नित्य पुल्लिङ्ग रहता है ), निकाय्य ११, निलय १२, आलय १३ पु० । (६) तापसों के निवास स्थान के चार नाम - कुटीर १, उंटज २ पु० । पर्णशाला ३, कुटी (कुटि) ४ स्त्री० । (७) धनवानों के घर का एक नाम - हर्म्य १ नपुं० । (८) राजमहल को - 'प्रासाद' कहते हैं । हिन्दी - ( १ ) प्रासादभेद में ऐश्वर्यशालियों के भवन विशेष की - स्वस्तिक, सर्वतोभद्र, नन्द्यावर्त, बिच्छन्दक, रुचक, वर्षमान संज्ञाएं होती हैं पु० । (२) सूतिका गृह के दो नामअरिष्टे १, सूतिकागृह २ नपुं० । (३) मण्डप के दो नाम-मण्डप १ जनाश्रय २ पु० । ( ४ ) वस्त्रगृह करपट्टिका (रौटो) को - 'उपकार्या १, उपकारिका' २ कहते हैं स्त्री० । ( ५ ) अन्तःपुर गृह के दो नाम - शुद्धान्त १ पु०, अन्तःपुर २ नपुं० । (६) ऊपर महल Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीयकाण्डम् नगरवर्गः २ वलभी चन्द्रशाले द्वे तस्यैवोद्धे तु वेश्म यत् ॥१०॥ प्रपा पानीयशालायां गञ्जायन्मदिरागृहम् । ग्रामे गेहे च गोपस्य घोषः पल्लिरितिद्वयम् ॥११॥ धर्मशालं धर्मशाला शालान्तो न कचित्पुमान् । मन्दुरावाजिनः शालाऽऽवेशन शिल्पिवेश्मनि ॥१२॥ श्मशाने यज्ञशालायां चैत्यमायतनं गृहे । वातायनं गवाक्षोऽस्त्री क्षोममट्टः शिरोगृहम् ।।१३।। विष्कम्भोनाऽर्गलानान कपाट मररं त्रिषु । तालं च तालिका ताला मोचेनोद्धाटने समे ॥१४॥ के दो नाम-वलभी १ चन्द्रशाला २ स्त्रो० । (७) प्याऊ के दो नाम प्रपा १ पानोयशाला २ स्त्री० । (८) मदिरा (दारु) घर के दो नाम-गञ्जा १ स्त्री०, मदिरागृह २ नपुं० । (९) गोपाल के घर के और ग्राम के दो नाम-घोष १पु० । पल्लि (पल्ली) २ स्त्री० । (१०) धर्मशाला के दो नाम-धर्मशाल १ नपुं०, धर्मशाला २ स्त्री। हिन्दी-(१) घोड़सार (अस्तवल) के दो नाम-मन्दुरा १, वाजिशाला २ स्त्री० । (२) चित्रकारों के घर का एक नाम-आवेशन (शिल्पिशाला)१ नपुं० । (३) यज्ञशाला के दो नाम-आयतन १ चैत्य २ नपुं० । (४) खिड़की के दो नाम - वातायन १ नपुं०, गवाक्ष २ पु० । (५) ऊपर महल के दो नाम-क्षोम १, अ २ पु० नपुं०। (६) सांकल (कपाट बन्द करने वाला जंजीर वा कील) के दो नाम-विष्कम्भ १ पु०, अर्गला २ स्त्री० । (७) कपाट के Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीयकाण्डम् ८९ नगरवर्गः २ airat स्त्री कुंचिका कुची कुंजिकोद्घाटनीति च देहल्यै दुम्बरोऽपिस्याद् गृहावग्रहणी तु या || १५॥ स्तम्भादूर्ध्वमधस्ताद्वा दारुनासौ शिलमता । गोपानेसी च वलभी छादने वक्रदारुणि ॥ १६ ॥ fasisस्त्री स्त्रीकपोत पाली पारावतालये । attrai पटल प्रान्तेऽथो पलं छदिः ||१७|| प्राणः प्रघणोऽलिन्दो बाह्ये द्वारप्रकोष्ठके । दो नाम - कपाट १ अरर २ नपुं० । ( ८ ) ताला के तोन नामताल १, तालिका २, ताला ३ स्त्रो० । (९) खोलने की क्रिया के दो नाम -माचन १ उद्घाटन २ नपुं० । (१०) कुञ्जी के पांच नाम - च्यावी १ क्रुचिका २ कुंची ३ कुंचिका ४ उद्घाटिनी ५ स्त्रो० । (११) देहली के तीन नाम - देहली १ गृहावग्रहणी २ स्त्री०, उदुम्बर ३ पु० । (१२) खंभे के ऊपर तथा नीचे रक्खीं गई लकड़ी का क्रमशः एक एक नाम - नासा, शिला स्त्र1० । हिन्दी - ( १ ) छज्जा ( जिससे मकान पाटा गया हो उस लकड़ो के) के दो नाम - गोपानसी ? वलभी (वलभि) २ स्त्री० । (२) कबूतर खाना के तीन नाम - विटंक १ अस्त्री०, कपोतपालो २ स्त्री०, पारावतालय (३) पु० ३ पटल के किनारे के दो नाम - नीघ्र १ नपुं०, वलोक २ पुं० नपुं०, (४) गृह का आच्छादन (छप्पर छौनी) का दो नाम-पटल १ त्रिलिङ्ग, छदि २ पुं० (५) द्वारेले बाहिर द्वार चौकी के तीन नाम प्रघाण १ प्रघण २ अलिन्द ३ पुं०, (६) बाहिर की चोको अथवा यज्ञवेदी के दो नाम-वेदिका Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९० द्वितीयकाण्डम् नगरवर्गः २ वेदिस्तु वेदिका द्वारे द्वाः प्रतीहार इत्युभौ ॥१८॥ आरोहण तु सोपानं निःश्रेण्यामधिरोहिणी । गोपुरं स्यात्पुरद्वारं बहि रेऽस्त्रि तोरणम् १९॥ पुरोभागे समतले ह्यङ्गने चत्वरा जिरे । मतो हस्तिनखः कूटेऽवतारार्थे पुरादहिः ॥२०॥ वेश्मभूर्वास्तुरस्त्रीस्या दिल्लग्रामस्तु पक्वणः । संकराऽवकरक्षेप्त्यां सम्माजन्यैवशोधनी ॥२१॥ १ वेदि (वेदी) २ स्त्री० [पण्डित अथ में वेदिः पुं०] । (७) द्वारपाल के दो नाम- प्रतीहार १ द्वार [द्वाः २ स्त्रो.पुं०, । (८) सीढी के दो नाम-आरोहन १ सोपान २ नपुं० । (९) पङ्क्तिबद्ध सोपान के दो नाम-निःश्रेणी १ अधिरोहिणी २ स्त्री० । (१०) न र द्वार के दो नाम-गोपुर १, पुःद्वार २ नपुं० । (११) गृहद्वार से बाहर चौराहे आदि स्थल पर स्वागतार्थ द्वार का एक नाम 'तोरण १ अस्त्री० । हिन्दी-[१] गृह आदि के आगे के समतल भूमि के तीन नाम-अङ्गन [अङ्गण] १, चत्वर २, नपुं० । अजिर ३ नपुं० । [२] नगर के दरवाजे परे जो मृतक्ट है उसमें उससे उतरने के लिए क्रम बद्ध मृत्सोपान 'हो तो, उसका नाम 'हस्तिनख' नपुं० । [३] वांस भूमि के दो नाम-वेश्मभू१ स्त्री०, वास्तु २ अस्त्री० । मिल्ल ग्राम का एक नाम-'पक्कण' पु० । [५] डा कूकचरा के दो नाम-संकर १ अवकर २ पु० । [६] झाडू के दो नाम-संमार्जनो १ शोधनी २ स्त्री० [७] ग्राम Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीयकाण्डम् मैरुवर्ग: ३ उपर्कण्ठं तूपशल्ये सीमा सीमास्त्रियां द्वयम् । ॥ इति नगर वर्गः समाप्तः ॥ ॥ अथ मेरुवर्गः प्रारभ्यते ॥ मेरुर्हिमालयो विन्ध्यो निषदो माल्यवानपि । वैतान्यादय इत्येवं विशिष्टा भू भूधरौ ॥ १॥ पर्वतः शिखरी शैलो महीधोऽद्रि गिरिर्नगः । शिलोच्चयोऽचलः क्ष्माभृद्भूभृच्च सानुमानिति ॥ २ ॥ पाषाणोऽश्मो पलोग्रावा प्रस्तरः स्त्री शिला दृषत् । शृङ्गतु शिखरं कूटोsस्त्री प्रपातोऽतटो भृगुः ॥ ३॥ समीप के दो नाम - उपकण्ठ १ उपशल्य २ नपुं. । [८] सीमा के दो नाम - सीमा [ सीमन् ] सीमा [ डाबन्त ] दोनों स्त्री० । ॥ नगरवर्ग समाप्त ॥ ९१ हिन्दी - (१) मेरु १ हिमालय २ विन्ध्य ३ निषद ४ माध्य वान् ५ वैताढ्य ६ आदि राब विशिष्ट पर्वत है, जिन में मेरु के सोलह नाम हैं - मन्दर १, मेरु २, मनोरम ३, सुदर्शन ४, स्वयंप्रभ ५, गिरिराज ६, रत्नोच्चय ७, शिलोच्चय ८, मध्यलोक ९ नाभि १०, अर्थ ११, सूर्यावर्त १२ सूर्यावरण १३ उत्तम १४, दिशादि १५' वतंस १६, ( जं० ४ वक्ष०) । ( २ ) पर्वत के चौदह नाम - भूत्र १, भूधर २ पर्वत ३, शिखरी ४ शैल ५, महीघ्र ६ अदि ७, गिरि ८, नग ९ शिलोच्चय १० अचल ११, क्ष्माभृत् १२, भूभृत् १३, सानुमान् १४ । ( ३ ) पत्थर के सात नाम - पाषाण १ अश्मा (अश्मन्) २, उपल ३, ग्रावा (ग्रावन्) Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीयकाण्डम् मेरुवर्ग : ३ नितम्बे कटकोऽद्रेस्यात् प्रस्थः स्नुः सानुरस्त्रियाम् । गुहायां गहरः किञ्च कन्दरः कन्दरा दरी ॥४॥ स्थूलो पलो गण्डशैलो यच्युतः पर्वताद्भूवि । आकरः स्त्री खनिः खानिः पादः प्रत्यन्तपर्वते ||५|| उताऽऽद्याऽऽच्छादितस्थानं निकुञ्जः कुब्जइत्युभौ । अधिको र्ध्वभूर द्रे रासन्नाभूरुपत्यका ||६|| झरोत्स निर्झरावारि प्रवाहो गैरिकादयः । ९२ ४ प्रस्तर ५ पुं०, शिला ६, (दृषत् ) दृषद् ७, स्त्री० । (४) पर्वत शिखर के तीन नाम- शृङ्ग १ शिखर २, कूट ३, अत्रो० (५) उच्चस्थान से पतन के तीन नाम-प्रपात १, अतर २, भृगु ३ अत्रो० । (६) पर्वत के मध्य भाग अन्तिम भाग कटि प्रदेश के दो नाम - नितम्ब १ कटक २ अस्त्री० । (७) पर्वत समभूभाग के तीन नाम - प्रस्थ १ स्तु २ सानु ३ अत्रीं ० | O हिन्दी - (१) गुफा के पांच नाम-गुड़ा १ स्त्री०, गहर २, अस्त्री० | कन्दर ३, पु०, कन्दरा ४ दरी ५, बी० (२) पर्वत से टूटकर पृथ्वी पर पडे हुए पर्वतखण्ड का एक नाम - गण्डशैल १ पु० (३) आकर खान के तीन नाम - आकर १ पु०, स्वनि २ स्वानि ३ स्त्रो०। (४) प्रधान पर्वत से सटे हुए पर्वत माला का एक नाम - पाद १ पु० ) (५) वृक्ष लतादि वेष्टित स्थल के दाँ नामनिकुञ्ज १, कुञ्ज २ पु० । ( ६ ) पर्वत के उपरी प्रदेश का नामअधित्यका' हैं स्त्री० (७) पर्वत के नीची समतल भूमि का एक नाम - उपत्यका ' है स्त्री०। (८) झरना के चार नाम-झर १, Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितोयं काण्डम् वनस्पतिवगः । धातवो गिरिसम्भूताः सन्तितेऽन्यत्र विस्तराः ॥७॥ ॥ इति मेरुवगः समाप्तः!! ॥ अथ वनस्पतिवर्गः प्रारभ्यते ॥ अपुष्पैः फलवान् यः स वानस्पत्यो वनस्पतिः । फलैस्तु फलवांश्चेत्स पलाशी पादपस्तरुः ॥१॥ सालो महीरुहः शाखी विटपी च कुटोऽगमः । दुईमोऽनीकहो वृक्षः शिखरी पुष्पदो नगः ॥२॥ अबकेश्य फलो बन्ध्यः फैलिलः फलवान्फली। फलेग्रेहिः स्वकाले योऽबन्ध्यः पाकान्ततौषधिः॥३॥ उत्स२, निर्झर ३ वारिप्रवाह ४ पु०। ९ गैरिक आदि धातु हैं। मेरुवर्ग समाप्त । हिन्दी-(१) विना पुष्प ही फलने वाले का दो नामवानस्पति १ वनस्पति २ पु० । (२) वृक्ष के तेरह नाम-पलाशी (पलाशिन्) १, पादप २, तरु ३, साल ४, महीरुह (महीरह महीरुह) ५, शाखो (शाखिन्) ६, विटपी (विटपिन्) ७, कुट ८, अगम ९, द्रु १०, द्रुम ११, अनोकह १२, वृक्ष १३ पु० । (३) फलने वाले वृक्ष न फले तो उनके तीन नाम-अवकेशी (अवकेशिन्) १, अफल २, बन्ध्य ३ पु० । (४) फलवान् वृक्ष के तीन नाम-फलिन् २, फलवान् (फलवत्) २, फलो (फलिन्) ३ पु० । (५) अपने अपने ऋतु में अवश्य फलने वाले वृक्ष का नाम 'फलेपहि' पु० । (६) जिसका अन्त फलों के पकने पर हो जाय वह ओषधि (ओषधी) है ब्रीहि यवादि स्त्री० । (७) स्कन्ध रहित Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीयकाण्डम् वनस्पतिवर्गः गुल्मः स्तम्बोऽप्रकाण्ड द्रौ स्याद् वैल्ल्यां व्रततिर्लता। प्रतानिनीलताया सा भवेद् वीरुच्च गुल्मिनी ॥४॥ 'दैर्ये उत्सेध आरोह उच्छ्रायश्चोच्छ्यस्तरोः। स्कैन्धः प्रकाण्ड आमूलाच्छाखापर्यन्तमस्त्रियाम् ॥५॥ वृक्षमूलं तु बुध्नः स्या 'च्छिरोऽयं शिखरोऽस्त्रियाम् । शाखा लताद्रुमांशेस्या त्स्कन्धशाखा तु या पुरा ॥६॥ शिफाऽवरोहः शाखाया मूले मूले शिफाजटे। त्वच्ये स्त्री वल्कलो वल्क: सारो मज्जा समावुभौ ॥७॥ काष्ठमात्रे दारुकाष्ठं "शुष्क त्वन्धनैधसी । तरु के दो नाम-गुल्म १, स्तम्ब २ पु० । (८) लता के तीन नाम-वल्ली १, व्रतति २ लता ३ स्त्री० । (९) शाखा प्रशाखावाली लता के तीन नाम-प्रतानिनो, वीरुत् (वीरुध)२, गुल्मिनी ३ स्त्री० । हिन्दी-(१) ऊँचाई के अर्थ में पांच नाम-दैर्ध्य १, उत्सेध २, आरोह ३, उच्छ्राय ४, उच्छ्य ५ पु०। (२) मूल से शाखा पर्यन्त वृक्ष के दो नाम-स्कन्ध १, प्रकाण्ड २ पु. नपुं० । (३) वृक्षमूल का एक नाम-बुध्न १ पु. । (४) वृक्ष शिखर के दो नाम-शिरोग्र १ शिखर २ अस्त्री० । (५) वृक्षशाखा के दो नामशाखा १, लता २, स्त्री०, द्रुमांश ३ पु० । (६) वृक्ष के पहलो डाल का एक नाम-स्कन्धशाखा १ स्त्री० । (७) वट वृक्षादि की शाखा के मूल से लटकते हुए अवयव के दो नाम-शिफा १ स्त्री०, अवरोह २ पु० । (८) मूल में जो जड जाल के जैसे झोने २ हो उसके दो नाम-शिफा १, जटा, २ स्त्री० । ९ वृक्ष त्वचा के तीन Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीयकाण्डम् वनस्पतिवर्गः ४ पुमानेधः समित्त स्त्री वृक्षरन्ध्रे तु कोटरम् ॥८॥ निष्कुहो वल्लरिस्तस्यान्मञ्जरिमंजरी स्त्रियाम् । पलाशं छदनं पर्ण दलं पत्र पुमान् छदः ॥९॥ स्यात्पल्लवः किसलयं वृन्तं पुष्पादि वन्धनम् । ततौ विस्तारविटपौ कलिका कोरकः पुमान् ॥१०॥ आरामः कृतिमाऽरण्यं तथैवोपवनं मतम् । स्यात्पुंस्या क्रीड उद्यानं राजसाधारणं वनम् ॥११॥ नाम-त्वकू (त्वच्) १, वल्कल २, वल्क ३ पु० नपुं० । (१०) वृक्ष के भीतरी हिस्से के दो नाम-सार १ पु०, मज्जा २ स्त्री० । (११) काष्ठ मात्र के दो नाम-काष्ठ १, दारु २ नपुं० । (१२) सूखी लकड़ी के पांच नाम-शुष्क १, इन्धन २, एधस् ३ नपुं०, एध ४ पु०, समित् (समिध् ) ५ स्त्री० । (१३) वृक्षरन्ध्र के तीन नाम-वृक्षरन्ध्र १, कोटर २, नपुं०, निष्कुह ३ पु० । हिन्दी-- १ मञ्जरी के तीन नाम-वल्लरी (वल्लरि) १, मारि २, मञ्जरी ३ स्त्री० । (२) पत्र (पत्तों) के छ नाम-पलाश १, छदन २, पर्ण ३, दल ४, पत्र ५ नपुं०, उद ६ पुं०। (३) नूतन पत्र के दो नाम-पल्लव १, किसलय २ नपुं०। (४) पुष्प के आधार बन्ध के दो नाम-वृन्त १, प्रसवबन्धन २ नपुं० । (५) वृक्ष के शाखादि विष्कम्भ के तीन नाम-विस्तार १ विटप २ अस्त्री०, तति ३ स्त्री० । (६) पुष्पकली के दो नाम-कलिका १. कोरक २ पु० । (७) कृत्रिम वन के तीन नाम-आराम १ पु० कृत्रिमारण्य २, उपवन ३ नपुं० । (4) सर्वोपभोग्य राजवन के दो Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीयकाण्डम् ९६ वनस्पतिवर्गः ४ अमात्यादे गृहाssसन्न आरोमो वृक्षवाटिका | अन्तः पुरोचितयत्स्यात्प्रमदावनमुच्यते ॥ १२ ॥ ascar स्त्री विपिनाऽरण्ये गहनकानने । निष्कुटस्तु गृहारामोऽरण्यानी तु महावनम् ॥ १३ ॥ वनानां संहतिर्वन्या नूतनोद्भिदि वाऽङ्कुरैः । वीथी श्रेण्याबलिः पङ्क्ति रालि लेखा सुराजयः ॥ १४ ॥ व्याकोशो विकचः फुल्लः स्फुटो विकसिते द्रुमे । क्षुद्रशाखे क्षुपेः प्रोक्तः शङ्कौ स्थाणु ध्रुवः पुमान् ॥ १५ ॥ नाम - आक्रीड १५०, उद्यान २ नपुं० । ( ९ ) आमात्य आदि के उपवन के दो नाम -- आराम १ पु०, वृक्षवाटिका २ स्त्री० । (१०) रानियों के विहार वन का एक नाम - प्रमदावन नपुं० । हिन्दी- - (१) वन के छ नाम अटवी १ स्त्री०, वन २, विपिन ३, अरण्य ४, गहन ५, कानन ६ नपुं० । (२) गृह समीप वन के दो नाम - निष्कुट १, गृहाराम २ पु० । (३) महावन के दो नाम - अरण्यानी १ स्त्री०, महावन २ नपुं० । ( ४ ) वन समूह का एक नाम-वन्या १ स्त्री० । ( ५ ) उद्भिद के नवोद्गम का एक नाम - अङ्कुर १ पु० । ( ६ ) क्रमबद्ध पङ्क्ति के पांच नाम - वीथी १, श्रेणी २, आवलि ३, पंक्ति ४, आलि ५ स्त्री० । (७) पंक्ति में वा अपंक्ति में बद्ध वृक्षादि समूह का एक नाम - राजिः १ स्त्री ० बहुवचन | (८) प्रफुल्लितवृक्ष के पांच नामव्याक्रोश १, विकच २, फुल्ल ३, स्फुट ४, विकसित ५ पु० । ( ९ ) छोटी शाखावाला शास्त्रोट साहर वृक्ष का एक नाम-क्षुप १ पु० । (१०) शाखा Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीयकाण्डम् घनस्पतिवगः . आमे शैलौटुः शुष्केतु वानं सत्ये फले त्रिषु ।। विकसन्ती तु कलिको कुडमलो मुकुलोऽस्त्रियाम् ॥१६॥ वृक्षादेवल्कलाज्जातो रसोनिर्यास इष्यते । प्रसनं कुसुमं पुष्पं सुमं सुमनसः स्त्रियः ॥१७॥ रजः परागः पुष्पाणां मकरन्दो रसः स्मृतः। फले स्याज्जाम्बवं जम्बु वृक्षे जम्बूः स्त्रियां मता ॥१८॥ पुष्पे जातिः फले व्रीहिः विदारी पार्टलः पुमान् । वासन्ती मालती जातिश्चम्बेली" तूपजातिका ॥१९॥ पत्र रहित वृक्ष के तीन नाम-शकु १, स्थाणु २, ध्रुव ३ पु० । (११) अपक फल को 'शलाटु' कहते हैं पु० । (१२) सुखे फल का एक नाम- 'वान' नपुं० । (१३) खिले हुए कली के तीन नाम-कलिका १ स्त्री०, कुड्मल २ पु०, मुकुल ३ पु० नपुं० । हिन्दी--(१)वृक्षादि त्वचा से निकाले गये रस का एक नाम-निर्यास १ पु० । (२) पुष्प के पांच नाम-प्रसून, १, कुसुम २, पुष्प ३, सुम ४ नपुं०, सुमनस् ५, बहुवचन स्त्री० । (३). पुष्प के रजस् का एक नाम-पराग १ पु०। (४) पुष्प के रस का एक नाम-मकरेन्द १ पु० । (५) जम्बूफल के दो नाम-. बाम्बव १ जम्बु २ नपुं० । (६) जम्बूवृक्ष का एक नाम-. जम्बू १ स्त्री० । (७) जाति (जही) पुष्प स्त्री०, ब्रीहि पु०, विदारी स्त्री० (८) गुलाब का एक नाम-पाटल १ पु० । (९), मालती लतापुष्प के तोन नाम-वासन्ती १, मालती २, जाति Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीयकाण्डम् वनस्पतिवर्गः४ वार्षिकी मल्लिकाश्वेता हेमै पुष्पा तु यूथिका। चन्द्रेवल्यतिमुक्ता च वासन्ती माधवी लता ॥२०॥ लाक्षा'पुष्पातु सेवन्ती शतपुष्पा महासहा । चाम्पेयश्चम्पको हेम पुष्पको भ्रमरातिथिः ॥२१॥ बकुलो मुकुलो वृद्ध बकुलस्तु बुको वसुः । माध्यः कुन्दो मुकुन्देस्तु पालक्यां कुन्दकुन्दरु ॥२२॥ पुन्नागस्तिलको नीयू कदम्बौतु हरिप्रिये । (जाती) ३ स्त्री० । (१०) चम्बेली के पांच नाम-चम्बेली १, उपजातिका २, वार्षिकी ३, मल्लिका ४, श्वेता ५ स्त्रो० । (११) जूही के दो नाम- हेमपुष्पा १, यूथिका २ स्त्री० । (१२) कुन्द वनस्पति के पांच नाम-चन्द्रवल्लो १, अतिमुक्ता २ वासन्ती ३ माधवी ४ लता ५ स्त्रो० । हिन्दी-(१) कटहरो चम्पा के चार नाम-लाक्षापुष्पी १ सेवन्तो २ शतपुष्पा ३ महासहा ४ स्त्री० । (२) चम्पा पुष्प के चार नाम- चाम्पेय १ चम्पक२ हेमपुष्पक ३ भ्रमरातिथि ४ पु. (३) मौलसरी के दो नाम-बकुल १ मुकुल २ पु० । (४) बकुल पुष्प के तीन नाम-वृद्धबकुल १, बुक २, वसु ३ पु० । (५) कुन्द पुष्प के दो नाम-माध्य १, कुन्द २ पु० नपुं० । (६) पालक शाक के तीन नाम- मुकुन्द १, कुन्द २, कुन्दर ३ पु० । (७) पुंनाग (सन्देशरा) के दो नाम-पुंनाग १, तिलक २ पु० । (८) कदम्ब के तीन नाम-नीप १, कदम्ब २, हरिप्रिया ३ पु० । (९) कर्णिकार कठचंपा के दो नाम-कर्णिकार १, परिव्याध २ Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीयकाण्डम् वनस्पतिवर्गः४ कणिकारः परिव्याधः लिकुंचे लकुचोडहुः ||२३|| केकी पांशुला च स्त्री केतकः क्रककच्छदः । अशोको वजुलः पुंसि स्यात्पुंनागे तुङ्गकेसरौ ॥२४॥ झिंटी सैरीयकः सैव रक्तः कुरुर्वको मतः । दासी वाणाद्वयो रार्तगलो नीला भवेद्व्यदि ॥ २५ ॥ महासहा तथाssम्लानो झिण्टी भेदे बुधैःस्मृतौ । पीते कुरूण्टकः शोणे भवेत्कुरैवकः स च ॥ २६ ॥ बन्धुजीवोज्वरनश्च बन्धुको वन्धुजीवकः । पारिजातो निम्बभेदे ओड्रपुष्पे जपेाजवा ॥ २७॥ ९९ पु० । (१०) बडहर के तीन नाम लिकुच १ लकुच २ डहु ३ पु० । (११) केतकी पुष्प के चार नाम - केतकी १ पांसुला २ स्त्री० केतक ३, कककच्छद ४ पुं० । (१२) अशोकवृक्ष के दो नामअशोक १ वज्जुल २ पु० । (१३) पुंनाग के तीन नाम-पुंनाग १ तुङ्ग २ केसर ३ पुं० । -- हिन्दी - १ झिटी के सामान्य दो नाम - झिण्टी १ लो० सैरीयक ( २ ) पु० | २ रक्त कुरवक का एक नाम-कुरवक १ पु० (३) नीलकुरवक के तीन नाम - दासी १ खो०, बाणा २ पु० स्त्री आर्तगल ३ पु० । ( ४ ) कटसरेया (जो कि झिटी का भेद हैं) के सामान्य दो नाम - महासहा १ स्त्रो०, अम्लान २ पु०। (५) पीत झिण्टी के एक नाम - कुरूण्टक १ पु० । (६) रक्त झिण्टी के एक नाम - कुरवक १ पु० । (७) दोपहरिया पुष्प के चार नाम - बन्धुजीव १, ज्वरप्न २ बन्धूक ३, बन्धुजीवक ४ पु० । (८) निम्बविशेष Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीयकाण्डम् घनस्पतिवर्गः४ तुलैंसी पावनी वृन्दा मरुन्मरुवको समौ । गन्धोत्केटो दमनकोबर्बरी वनबर्बरी ॥२८॥ अन्यथाऽतिचरा पमा सारदा स्थल पद्मिनी । आम्रो रसालो माकन्दः सहकरोऽति सौरभः ॥२९॥ राजाम्रः कलभाम्रः स्या कोशाम्रस्तु मुकेशकः । पक्यस्याऽस्य रसो धर्मशुष्क आम्रातः स्मृतः ॥३०॥ आम्रातके पोतनः स्या त्समो दाडिम्बदाडिमो । का एक नाम--पारिजात १ पु०। (९) जपापुष्प अडहुल के दो नाम-जपा १ जवा २ स्त्री०। १० तुलसी के तीन नाम-तुलसी १. पावनी २, वृन्दा ३ स्त्री०। (११) मरुआ के दो नाम-मरुत् १ मरूवक २ पु०। (१२) वनतुलसी के चार नाम-गन्धोत्कट १ दमनक २ पु०, बर्बरी ३, वनबबेरो ४ स्त्रो०। हिन्दी-(१) स्थलकमलिनी के पांच नाम-अन्यथा १, अतिचरा २, पद्मा ३ सारदा ४, स्थलपमिनी ५ स्त्री०। (२) आम के पांच नाम-आम्र १, रसाल २, माकन्द ३, सहकार ४ अतिसौरभ ५ पु० (३) रस विना आम के दो नाम-राजाम्र १. कलभाम्र २ पु० । (४) रसवाले आम के दो नामकोशाम्र १ सुकेशक २ पु०। (५) पके हुए आम रस को धूप में सुखाकर जो पापड बनता है उसका एक नाम-आम्रातक १. पु० । (६) अंबाडा (अमड़ा) के दो नाम-आम्रातक १, पीतन २ (कपीतन) पु० । (७) दाडिम के दो नाम-दाडिम्ब १ दाडिम २ पु० । (८) केले के तीन नाम-रम्भा १ कदली २ मोचा ३ Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - द्वितीयकाण्डम् १०१ . वनस्पतिवर्गः४ रम्भायां कदली मोचा नारिकेलो जटाफलः ॥३१॥ स्त्री बँघुरो च खरः "छोहारा तत्प्रभेदभाक् । स्याद् वातादस्तु वादामो वदामः सुफलश्च सः ॥३२॥ नागरगोनागरूको नारगो नागरोऽपि च । बीजेपूरे मातुलुङ्ग कपोतो रुचकस्तथा ॥३३॥ जम्बोरो जम्भिरो जम्भो जम्भलश्चेत्यमी समाः । निम्बूकं निम्बुकं क्लोबे निम्बुनिम्बू उभे स्त्रियाम् ॥३४॥ चुमम्लं तिन्तिडीकं वृक्षाम्लं च द्वयोसमी । काल स्कन्धर्धास्तन्दुकः स्या-त्किम्पाकस्तु विषद्रुमः॥३५॥ स्त्री० । (९) नारियल के दो नाम-नारिकेल १ जटाफल२ पु० । (१०) खजूर के दो नाम-खजूरी १ स्त्री०, खजूर २ पु० । इसके भेद का एक नाम-छोहाग १, स्त्री । बादाम के चार नाम-वाताद १ वादाम २ वदाम ३ सुफल १ पु० । हिन्दी-(१) नारंगी के चार नाम-नागरङ्ग १, नागरूक २, नारङ्ग ३, नागर ४,पु० । (२) विजौरा के चार नाम-बोजपूर१, मातुलुङ्ग २, कपोत ३, रुचक ४, पु० । (३) जम्बीर के चार नामजम्बार १. जम्भिर२, जग्भ ३, जम्मल : पु० । (४) कागजा नीबू के चार नाम-निम्बूक १, निम्बुक२, नपुं०, निम्बु ३, निम्बू, स्त्री.। (५) इमली के चार नाम-चुक्र १, अम्ल२, तिन्तिडीक ३, वृक्षाम्ल ४ पुं० नपुं० । (६) तेंदू के दो नाम-कालस्कन्ध १, तिन्दुकर पु०। (७) विषवृक्ष के दो नाम-किम्पाक १, विषद्म२, पु०। (८) मधूक(महुड़ा) के चार नाम-मधुवार १. मधूक २, पोलु ३, गुडफल | Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - - - द्वितीयकाण्डम् वनस्पतिवर्ग:४ मधुारो मधुकः स्यात् पीलु गुंडपलो मतः । इम आक्षोट आखोट आखरोटः पुमंसकाः ॥३६॥ गुवाकः पूग गवाकौं क्रमुकः खपुरः क्रमुः । तृणराजः तलस्तालः कपित्थं तु कपिप्रियम् ॥३७॥ कारुकः कर्मरङ्गः स्यात् करम्लः करमर्दनः। विकतो यज्ञवृक्षो ग्रन्थिलः स्वादुकण्टकः ॥३८॥ राजादनं प्रियाकोऽपि प्रियाल: क्षीरिणीतरौ । म्रियेतकफलं सूत्वा तदनन्नासमुच्यते ॥३९॥ सीताफलं स्यादातृप्यं लवनी स्त्री मृदुफलम् । ४ पु० । (९) अखरोट के तीन नाम-आक्षोट१, आखोट२, आखरोट३ पु० । (१०) सुपारी(सोपारी) के छ नाम-गुवाक१, पूग२, गूवाक३, क्रमुक ४, खपुर५, क्रमु ६ पु० । हिन्दी-(१) तालवृक्ष के तीन नाम-तृणराज १, तल२, ताल ३, पु० । (२) कैंथ के दो नाम–कपित्थ१, कपिप्रिय२, नपुं० । (३) कमरख (जिसके फल खट्टे फॉक वाले लम्बे२ होते हैं) के दो नाम-कारुक१, कर्मरङ्ग२ पु० । (४) करोंदा के दो नाम-कराम्ल १, करमर्दन२ पु० । (५) विकंकत (कटेर) के चार नामविकंकत२, यज्ञवृक्ष२, ग्रन्थिल ३, स्वादुकण्टक४ पु० । (६) खीरी (रायण) के चार नाम-राजादन१ पु० नपुं० प्रियाल२, पियाल३ पु०, क्षीरिणो ४ स्त्री० । (७) अनानास (जिसका एक ही फल होता है और उसो फल के ऊपर दूसरा झाड़ रहता है) का एक नामअनन्नास२ नपुं० । (८) सरीफा (आँता) के पांच नाम-सोता Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - द्वितोयकाण्डम् १०३ वनस्पतिवर्गः४ तथा रामफलं प्रोक्तं स्यात्स्तिं तु निकोचकम्॥४०॥ तूत स्तुदस्तिन्दुकः स्या लघुद्राक्षा तु काफली। स्वाद्वी मधुरसा द्राक्षा मृद्वीका गोस्तनीति च ॥४१॥ लतानं तुवरं तद्वद् दृढबीजं च फेरुकम् । वटे जटालो न्यग्रोधो बहुपाद् दीर्घजीवनः ॥४२॥ विमश्चैत्यद्रुमोऽश्वत्थः पिप्पलः कुञ्जराशनः । जेटी स्यात्पर्कटि प्लक्षः काकोदुम्बरिका तु सः॥४३॥ उदुम्बरो वा क्षोरीवा शिरीषस्तु कपीतनः । शिर्शपा सारिणीपीता गजभेक्षा तु सल्लको ॥४४॥ फल१, आतृप्य२, मृदूफल ३, रामफल ४ नपुं०, लवना५ स्त्री० । (९) पिस्ता के दो नाम-पिस्त १, निकोचक२ नपुं० । (१०)तूंत के तान नाम-तूत १, तूद२, तिन्दुक३ पु० । (११) किसमिस के दो नाम-लघुद्राक्षा१, काकली२ स्त्री० । हिन्दी-(१) दाख के पांच नाम-स्वाद्वी१, मधुरसा२, द्राक्षा ३, मृद्वीका४, गोस्तनो५ स्त्रा० । (२) जाम्फल के चार नामलताम्र१, तुवर२, दृढ़बीज३, फेरुक ४ नपुं० । (३) वटवृक्ष के पांच नाम-वट१, जटाल२, न्यग्रोध३, बहुपात्४, दो जोवन५ पु० । (४) पोपल वृक्ष के पांच नाम-विप्र१, चैत्यद्रुमर, अश्वस्थ३, पिप्पल ४, कुञ्जराशन५ पु० । (५) पीपर (पाकड़ि) वृक्ष के तीन नाम-जटि (जटिन्)१ पु०, पर्केटी२ बी. प्लक्ष३ पु० । (६) उदुम्बर के तीन नाम-काकोदुम्बरिका१ स्त्री०, उदुम्बर२, क्षीरी (क्षीरिन् )३ पु. । (७) शिरीष के दो नाम-शिरीष१, कपी, Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 1 द्वितीयकाण्डम् १०४ वनस्पतिवर्ग:४ सालोsaकर्णकः सर्जः तत्प्रभेदेतु सर्जकः । जीवेोऽसनवन्धूकपुष्पाविन्द्रद्रुमोऽर्जुनः ||४५ || खदिरो रक्तसारः स्यात् प्लोरेशनौ तु रोहितः । तुल्यौ बबूलबम्बूलो स्यादेरिष्टे तु केमिलः ||४६ || इदस्तापसो वृक्षः पुत्रजीवस्तु गर्भदः । मण्डुकपर्णी मञ्जिष्ठा स्यात्पलाशस्तु किंशुकः ॥४७॥ स्थिiयुः पूरणोमोचा पिच्छिला शाल्मलिर्द्वयोः । तन२ पु० । (८) शीशम के तीन नाम - शिंशपा १, सारिणी २, पीता ३ स्त्री० । (९) कुन्दुरुष्क के दो नाम - गजभक्षा ( गजभक्ष्या) १, सल्लको२ स्त्री० । (१०) साल (शालवृक्ष) के चार नाम - साल १, अश्वकर्णक २, सर्ज ३, सर्जक४ पु० । • हिन्दी - (१) इन्द्रद्रुम के पांच नाम-जीवक १, असन २, बन्धूकपुष्प ३, इन्द्रद्रुम ४, अर्जुन ५, पु० (२) खैर ( कथा ) वृक्ष के दो नाम - खादर १, रक्तसार २ पु० । (३) रोहितक (रोहिड़) के दो नाम - ल्पोहशत्रु १, रोहित २ पु० । ( ४ ) बबूल के तीन नाम - बकूल १, बब्बूल, बबूर ३ पु० । (५) रीठा के दो नामअरिष्ट १ नपुं०, फेनिल २ पु० । ( ६ ) इंगुद ( हिंगोरा ) के दो नाम - इङ्गुद १ पु० स्त्री०, तापसवृक्ष २ पु० । (७) पितोशिया के दो नाम - पुत्रंजीव १, गर्भद २ पु० । (८) नाम - माण्डूकपर्णी १, मजिष्ठा २ स्त्री० 1 ( ९ ) के दो नाम - पलाश १, किंशुक २ पु० । ( सीमल) के पांच नाम - स्थिरायुः (स्थिरायुष ) मंजील के दो पलाश ( खाखडा) (१०) शाल्मलि १, पूरणी २, Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हितोपकाण्डम् १०५ वनस्पतिवर्गः ४ तापिच्छलश्च तमाल: स्यात् कालस्कन्धस्तमोऽपि च ।४८ धर्वलश्च धवोगौरः कैरीर कचौ समौ । भूतावासस्तु शाखोटो वरुणे सेतु सेतुको ॥४९॥ शैम्यैकाऽल्पा समीरोऽन्यः शिवा सक्तु फलीशमी। शमी शिम्बाफलं यस्या अग्निगर्भा शमीतरुः ॥५०॥ करवीरः शतप्राशो रथस्तिनिशे स्मृतः । शारदः सप्तपर्णःस्याद् विशालत्वगयुक्छदः ॥५१॥ मृगनाभौ मृगमदः कस्तूरी च द्रुमेष्वपि । मोचा ३, पिच्छिल ४ स्त्री०, शाल्मलि ५ स्त्री० पु० । (११) तमाल के चार नाम-तापिच्छ १, तमाल २, कालस्कन्ध ३, तम ४ पु० । (१२) धावड़ा के तीन नाम-धवल १, धव २ गौर ३ पु० । (१३) करील के दो नाम-करीर १, क्रकच २ पु० । . हिन्दी-(१) शाखोट के दो नाम-भूतावास १, शाखोट २ पु० । (२) वरण (पटुआसाग) के तीन नाम-वरुण (वरण) १, सेतु २, सेतुक ३ पु० । (३) शमी (खेजड़ी) के तीन नाम शमी १, अल्पा२ स्त्रो०, समीर ३ पु० (४) शमी के तोन नाम शिवा १, सक्तफला २ शमी ३स्त्री० । (५) फली के दो नामशिम्बा १, शमोर, स्त्री० । (६) खेजड़ी विशेष के दो नामअग्निगर्भा १, शमी २ स्त्री० । (७) करवीर के दो नाम-करवीर १, शतप्राश २ पु० । (८) तिनिश के दो नाम-रथद्रु १, तिनिश २ पुं० । (९) सप्तपर्ण (छतवतो) के चार नाम-शारद १, सप्त Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीयकाण्डम् वनस्पतिवर्ष घनसारस्तु करिश्चन्द्रः स्त्री हिमतालुका ॥५२।। लिके स्यादर्कमूला सुनन्दा च विषापहा । कुङ्कुम केसरे रक्तचन्दनन्तु कुचन्दनम् ॥५३॥ श्रीखण्डे चन्दनं गन्ध-सारं पाटीरमस्त्रियाम् । देवदाविन्द्रदारुस्यात् क्लोबेऽगरुकजोङ्गकम् ॥५४॥ धृपवृक्षश्च सरल स्तगरश्च महोरगः । पनकं पद्मकाष्ठे स्यात् समौ कोर्शिकगुग्गुलौ ॥१५॥ पर्ण २, विशालत्वक् ३, अयुक्छद ४ पु० । (१०) (कस्तूरो के तीन नाम-मृगनाभि १, मृगमद २ पु०, कस्तूरी ३ स्त्री. कस्तूरी मोषधीवृक्ष का फल भो है जिसे लता कस्तुरी कहते हैं)। (११) कपूर के चार नाम-धनसार १, कर्पूर २, चन्द्र ३ पु०, हिमवालुका ४ स्त्रो। (१२) पुलिक (इसरगत) के चार नाम-पुलिक १, पु०, अर्कमूला २, सुनन्दा ३, विषापहा ४ स्त्री० ।। हिन्दी-(१) कुंकुम के दो नाम-कुङ्कुम १ नपुं,०, केशर २ पु० नपुं । (२) रक्तचन्दन के दो नाम-रक्तचन्दन १, कुचन्दन २ नपुं । (३) श्रीचण्ड के चार नाम-श्रीखण्ड १, गन्धसार २, चन्दन ३, पाटीर ४ पु. नपुं० । (४) देवदारु के दो नाम-देवदारु १, इन्द्रदार २ नपुं० । (५) अगर के दो नाम-अगरु (अगर) १, जोङ्गक २ नपुं० । (६) धूपवृक्ष के चार नाम-धूपवृक्ष १, सरल २, तगर ३, महोरग ४ पु• । (७) पद्मकाष्ठ के दो नाम-पाक १, पाकाष्ठ२ नपुं० । (८) गुग्गुल के दो नाम-कोशिक १, गुग्गुल २ पु० । (९) धूप के पांच Jain. Education International Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीयकाण्डम् १०७ वनस्पतिवर्गः ४ रालेः सर्जरसो देव धूपो धूनक धूपने । श्रीवासे तिलपर्णः स्यात् पालके कुन्दु कुन्दुरू ॥५६॥ जोतीफल जातिफलं लवङ्गं तु लवङ्गकम् । जातीकोषा जातिपत्री स्थूलैला गर्भसम्भवा ।।५७॥ कैङ्कोलकं कोषफलं केशरो नागकेशरः । त्वक्त्रम् स्याहारुसिता सूक्ष्म अ द्राविडिस्त्रुटिः॥५८॥ तेजपत्र पत्रकं स्यात् पाकरञ्जनमित्यपि । लोमश जटिलाऽपिस्याज्जटामांसी तपस्विनी ॥५९॥ नाम-राल १, सर्जरस, देवध्प ३ पु०, धूनक ४, ध्पन ५ नपुं०। (१०) धूप विशेष के दो नाम-श्रीवास १, तिलपर्ण २, पु० । (११) पालक शाक के तीन नाम-पालङ्क १, कुन्दु २, कुन्दुरु ३ पु० । (१२) जायफल के दो नाम-जातोफल १, जातिफल २, नपुं० । (१३) लोंग के दो नाम-लवन (देवकुसुम) १, लवङ्गक २, नपुं० । हिन्दी-(१) जावत्री के दो नाम-जातीकोषा १, जातिपत्री २, स्त्री० । (२) बड़ी इलायची के दो नाम-स्थूलैला १, गर्भसंभवा २ स्त्रो० । (३) कवाव चीनी के दो नाम-कङ्कोलक कोषफल २ नपुं० । (४) नागकेशर के दो नाम-केशर १, नागकेशर २ पुं० । (५) दालचीनी के दो नाम-त्वपत्र १, नपुं०, दारुसिता २ स्त्रो० । (६) छोटी इलायची के तोन नामसूक्ष्मैला १, द्राविडि २, त्रुटि ३ स्त्री० । (७) तेजपात के तीन नाम-तेजपत्र १, पत्रक २, पाकरञ्जन ३, नपुं० । (८) जटा Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीयकाण्डम् वनस्पतिवर्गः प्रियङ्गुः फलिनी गुन्द्रा गौरी गोरोचनेऽस्त्रियाम् । उशीरे नलदं व्याघ्र-नखे व्याडायुधं स्मृतम् ॥६०॥ शैले यमश्मनो जातं कन्दं पुष्पं मधुद्रवः । मुस्ता नगरसुस्ता स्त्री वन्यं कैवर्तमुस्तकम् ॥६१॥ शंखिनी चोरपुष्पी स्यात् तस्करश्चोरके पुमान् । कुष्ठं तु जरणं रामं केचुरे कल्पकः स्मृतः ॥२॥ गन्धिनी तालपर्णीस्याद् दैत्या गन्धकुटी मुरा । मांसी के पांच नाम-लोमशा १, जटिला २, जटा ३, मांसो ४, तपस्विनी ५ स्त्री०। (९) प्रियंगु के तीन नाम-प्रियंगु १, फलिनी २, गुन्द्रा ३ स्त्री० । (१०) गोरोचन के दो नाम-गौरी १, गोरोचना २ स्त्री० । (११) खसखस की जड़ के दो नामउशोर १ पुं० नपुं० । नलद २ नपुं० । (१२) व्याघ्रनख (सुगन्धित) विशेष के दो नाम-ब्याननस्व १, व्याडायुव२ न. । (१३) शिलाजीत के चार नाम-शैलेय नपुं०, अश्मकन्द २, अश्मंपुष्प ३ पु० नपुं०, मधुद्रव ४ पुं० । हिन्दी-(१) नागरमोथा के पांच नाम-मुस्ता १, नगरमुस्ता २ स्त्री, वन्य३, कैवर्त ४, मुस्तक५ नपुं० । (२) शंखपुष्पी के दो नाम शंखिनी१, चोरपुष्पा२ स्त्रो० । (३) चौर पुष्पौषधि के दो नाम-तस्कर १, चोरकर पु० । (४) कूठ पुष्प के तोन नाम-कुष्ठ १, जरण २, राम३ नपुं० । (५) कचूर के दो नाम-(पोले रंग के द्रवविशेष) कचूर १, कल्पकर पु० । (६) मुरा औषधि के पांच नाम -गन्धिनी१. तालपर्णी२, दैत्या३, गन्धकुटी४, मुरा५ स्त्री० । For PM Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीयकाण्डम् घनस्पतिवर्ग: उक्त खसफलक्षीर माफूक महिफेनकम् ॥६॥ उच्यन्ते खसबीजानि ते खाखसतिला अपि । एला वालुकमैरेयं "स्पृक्का देवी लघुलता ॥६॥ शौण्डी कृष्णोपकुल्याच मागधी पिप्पली कणा। नली नटो कपोताघ्रिः पुदिनो वान्तिहारकः ॥६५॥ हरीतैक्य भयापथ्या कायस्था श्रेयसी शिवा । विभीतकः कलिदुर्ना भूतावासो बहेडुकः ॥६६॥ द्वयो रामलको धात्री स्त्रियां तिक्त फलाऽमृता । (७) अफोम के तीन नाम-खसफलक्षार १, माफूक २, अहिफेनक ३ नपुं० । (८) खसखस के दो नाम-खस बोज १ नपुं०. खाखसतिल २ पु० । (९) वालुका गन्धद्रव्य के तीन नाम-एला१ स्त्री०, वालुक२, ऐरेय३ नपुं० । (१०) स्पृक्का (अस्यर) के चार नामस्पृक्का १, देवी२, लघु३, लता ४ स्त्री० । (११) सामान्य पिप्पली के छ नाम-शौण्डी१, कृष्णा२, उपकुल्या ३, मागधी४, पिप्पली५, कणा६ स्त्री० । हिन्दी-(१) मालकंगुनी के तीन नाम-नटी१, नली२ स्त्री०, कपोताघि३ पु० । (२) पोदीना के दो नाम-पुदिन१, वान्तिहारकर पु० । (३) हर्डे (हिमज) के छ नाम-हरोतकी१, अभया२, पथ्या ३, कायस्था ४, श्रेयसी५, शिवा६ स्त्री० । (४) बेहेड़ा के चार नाम-विभीत१, कालीद्रु२, भूतावास३, बहेडुक ४ पु०। (५) आंवला के चार नाम-आमलक १ पु० नपुं०, धात्री२, तिक्तफला३, अमृता ४ स्त्री० । (६) अदरख के दो नाम-आईक १. Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीयकाण्डम् वनस्पतिवर्गः आद्रक शृङ्गवेरं स्या-दथ शुण्ठी महौषधम् ॥६७॥ कोलकं कृष्णमरिचं मरीचे शिग्रज सिते । श्रेयसी कपिवल्लीच वशिरो गजपिप्पली ॥६८॥ उणं पिप्पली मूलं ग्रन्थिलं चटकाशिरः । कामूलगुणचन्यं चविका गुदजापहम् ॥६९॥ चविकायाः फलं प्राज्ञैः कथ्यते गजपिप्पली । अतिच्छत्रा सितच्छत्राऽवाक्पुष्पी कारवीमिसिः ॥७॥ मधुरा शतपुष्पा च शालेयो वनजो यदि । मिश्रेयोऽसौशीतशितश्छत्रा मधुरिकामिसिः ॥७१॥ शतपुष्पा त्वहिच्छत्रा चित्रके व्यालपाठिनौ । शंगवेर २ नपुं० । (७) सोंठ के दो नाम-शुण्ठी१ स्त्री०, महौषध २ नपुं० । (८) काली मिर्च के दो नाम–कोलक १, कृष्णमरीच (मरीच) २ नपुं० । श्वेत मिर्च के दो नाम-श्वेतमरीच१, शिग्रज २ नपुं० । (१०) गजपिप्पली के चार नाम-श्रेयसो१, कपिवल्ली २ स्त्री०, वशिर३ पु०, गजपिप्पली ४ स्त्री० । (११) पिप्पल के चार नाम-ऊषण१, पिप्पलीमूल २, प्रन्थिल ३, चटकाशिर (स्)४ नपुं० । हिन्दी-(१) पिपरामूल के चार नाम-कणामूल १, गुण२, चन्य ३ नपुं०, चविका४ स्त्रो० । (२) शोफ (वरियाली) के सात नाम -अतिच्छत्रा १, सितच्छत्रा२, अवाक्पुष्पी३, कारवी४, मिसि५, मधुरा, शत पुष्पा७ स्त्री० । (३) वनशोफ के छ नाम-शालेय१, मिश्रेय२, शीतशित३ पु०, छत्रा४, मधुरिका५, मिसि६ स्त्री० । Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - द्वितीयकाण्डम् १११ वनस्पतिवर्गः४ चन्द्रिका चन्द्रशुरोऽपि पशुमेहनकारिका ॥७२॥ में थिका मेथिनी मेथी कालाजाज्यपि जीरकः । धान्यक तुवरं प्रोक्त-मजैमोदा यवानिका ॥७३॥ वैचा तीक्ष्णोग्रगन्धायां पारसीकवचा तथा। द्वीपान्तरवचा चाऽपि कुलिंजनमितः पृथक् ॥७४॥ हपुषर्षों पुष्पवस्ता च पराऽश्वत्थ फलामता । फिरङ्गजा चोपचोनी विडङ्ग बनिकृल्लघु ॥७५।। (४) सोआ के दो नाम-शतपुष्पा १, अहिच्छत्रा२ स्त्री०। (५) चित्रक के तीन नाम-चित्रक १, व्याल२. पाठी (पाठिन्)३ पु० । (६) अशेलिया (चनसूर) के तीन नाम-चन्द्रशर१ पु०, चन्द्रिका २, पशुमेहनकारिका ३ स्त्री० । (७) मेथी के तीन नाम-मेथिका १, मेथिनो२, मेथी३ स्त्री० । [८] कृष्ण जीरा के एक नामकृष्णा१ स्त्री० । [९] श्वेत जीरा के दो नाम-अजाजी१ स्त्री, जीरक२ पु० । [१०] धाना के दो नाम-धान्यक १, तुवर २ नपुं० । [११] अजमाइन के दो नाम-अजमोदा१, यवानिका २ स्त्री० । हिन्दी-(१) सफेद वच के तीन नाम-वचा १, तीक्ष्णा २, उग्रान्धा ३ स्त्री० । (२) खुरसानी वच का एक नाम-- पारसीक वचा १ स्त्री० । (३) चोपचीनी का एक नाम-द्वीपान्तरवचा १ स्त्री०। (४) महाभरी का एक नाम-कुलिञ्जन १ पुं० । (५) पलाशो वचा के दो नाम-हपुषा १, पुष्पबस्ता २ स्त्री० । (६) अश्वत्था (फारसदेशीया) के दो नोम-फिरङ्गजा १, Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीयकाण्डम् ११२ वनस्पतिवर्गः ४ यवजंतु तवक्षीरं त्वक् क्षीरी वंशलोचना | निचुल: सिन्धुफेनः स्या- दिज्ज लोहिज्जलस्तथा ७६ मधुकं मधुयष्टी यष्टीमधु मधुश्रवा । औरvar तु संपाक व्याधिघातसुवर्णकाः ॥७७॥ कटु का कटुकी कट्वी चिरर्तितः किरातकः । कुटजः कौटकः कौटः कलिङ्गेन्द्रयवो समौ ॥७८॥ मदेनो मुचुकुन्दः स्या द्रास्ना तु सुरसा रसा । चोपचीनो २ स्त्रो०] । ( ७ ) वाइभिरिंग ( बावडिंग) के तोन नामविडङ्क १, वह्निकृत् २, लघु ३ नपुं० । (८) वार्लिश के दो नाम यवज १, तवझीर २ नपुं० । ( ९ ) वंशलाचन के दो नामत्वक्क्षीरी १, वंशलोचना २ स्त्री० । (१०) समुद्र फेन के चार नाम – निचुर १, सिन्धुफेन २, इज्ज ३, हिज्जल, ४, पु० । (११) जेटोमध के चार नाम - मधुक १ नपुं० मधुयष्टी २, स्त्री०, यष्टीमधु ३ नपुं०, मधुत्रत्रा ४ स्त्री० । (१२) अमलतास (सोनामकखी) के चार नाम – आरग्वध १, संपाक २, व्याधिगत ३, सुवर्णक ४ पु० । 1 हिन्दी - (१) कुटकी के तीन नाम - कटुका १, कटुकी २, कट्ट्टी ३ खो० । (२) चिरायता के दो नाम-चिरतिक१, किरातकर पु० । (३) कुटज (कुरैया) के तीन नाम - कुटजे १, कौटक २, कौट ३ पु० । (३) इन्द्रयव के दो नाम - कलिङ्ग १, इन्द्रयव २ पु० । (५) मदनवृक्ष (मयनफल नामवाले) के दो नाम - मदन १, मुचुकुन्द२, पु० । (६) रासना के तीन नाम - रास्ना १, सुरसा२, Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीयकाण्डम् ११३ बनस्पतिवर्गः४ मत्स्याक्षी च वयस्थाच ब्राह्मी च सोमवल्लरी ॥७९॥ स्वर्णक्षीरी हिमावत्या समे काफल करले। घोषा कर्कटशृङ्गी स्याद् घातकी घातपुष्पिका ॥८०॥ मञ्जिष्ठा विकसा भण्डी कुसुम्भ ग्राम्यकुङ्कुमम् । पुमानलक्तोयावश्च स्त्री लाक्षा जतु न द्वयोः ॥८१॥ हरिद्राकाश्चनी पीता निशाहा वरवर्णिनी । दार्वी दारुहरिद्रायां बाकुचो सोमराजिका ॥२॥ काश्मीरं पौष्करे मूले दद्रुघ्नश्चक्रमर्दनः । रसा३ स्त्रो० । (१) ब्राह्मो के चार नाम-मत्स्याक्षी१, वयस्था२, ब्राह्मी३, सोमवल्ली४ स्त्रो० । (२) स्वर्णक्षीरी (सत्या माशी) के दो नाम-स्वर्ण झोरी १, हिमवती२ स्त्रा० । (३) कायफल के दो नामकाफल १, कट्फल२ नपुं० । (४) काकडासिंगो के दो नामघोषा१, कर्कटशङ्गा२ स्त्रा। (५) धाव के दो नाम-घातकी१. धातपुष्पिका २ स्त्रो० । (६) मजोठा के तीन नाम-मञ्जिष्ठा १, विकसा२, भण्ड'३ स्त्रो० । (७) ग्राम्य कुसुम के दो नाम - कुसुंभ१, ग्राम्यकुङ्कुम२ नपु' । (८) महावर के चार नामअलक्क १, याव२ पुं०, लाक्षा३ स्त्री० जतु४ नपुं० । (९) हल्दी के पांच नाम-हरिदा १, काश्चनी २, पीता३ , निशाहा ४, वरवर्णिनी ५ स्त्री० । (१०) दारुहल्दी के दो नाम - दा-१, दारुहरिद्रा २ स्त्री० । (११) बाकुची (बावची) के दो नाम-बाकुची१, सोमरा जिका स्त्री० । (१२) पुष्करमूल के दो नाम-काश्मीर१, पौष्कर२ नपुं०। (१३) पुआड़ (पुन्नाड) के दो नाम-दन१,चक्रमर्दन२पु०। Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीयकाण्डम् ११४ वनस्पतिवर्गः४ द्वयो भल्लातकोभल्लः वीरवृक्षो ह्यरुष्करः ॥८३॥ जयो च विजया भङ्गा गजा स्त्रीच रसः पुमान् । सेंजिंक्षारः सर्जिकाच यवक्षारो यवाग्रजः ॥८४॥ सैन्धवं माणिमन्थंच विंड द्राविड भासुरम् । सांभर रौमलवणं रुच्य सौवर्चलं लघु ॥८५।। लवणोदधि संजातं सामुद्रं वशिरं च तत् । 'औद्भिदं पांशुलवणं यज्जातं भूमितः स्वयम् ॥८६॥ सौभाग्यं टंकणं क्षारो नवसारो नसादरः । (१) भिलावा के चार नाम-भल्लातक १, भल्ल२, पु० श्री०, वीरवृक्ष ३, अरुष्कर४ पु० । (२) भङ्ग के तीन नामजया१, विजया२, भङ्गा३ स्त्री० । (३) गांजा का एक नाम-गञ्जा १, स्त्री० । (४) चरस का एक नाम-चरस १ पु० । (५) सज्जीवार के दो नाम-सर्जिक्षार १ पु०, सर्जिका२ स्त्री०। (६) जवखार के दो नाम-यवक्षार १, यवाग्रजर पु० । (७) सेंधानमक के दो नाम-सैधव१, मणिमन्थ२ नपुं. (८) काला नमक के तोन नाम-विड१, द्राविड़२, भासुर३ नपं० । (९) सांभर नमक के दो नाम - साम्भर १, रोमक२ न.। (१०) नमक के तीन नाम-रुच्य१, सौवर्चल२, लघु३ नपुं० । (११) सामुदी नमक के दो नाम-सामुद्र १, वशिर२ नपुं०। (१२) खारा नमक के दो नाम-ओद्भिद १, पांशुलवण २ नपुं० (१३) टंकणखार (सुहागा) के दो नाम-सौभाग्य१, टंकण२ नपुं० । (१४) नसादर के दो नाम-नवसार १, नसादर२ पु०। Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीयकाण्डम् ११५ वनस्पतिवर्गः ४ सूर्यक्षार स्तीक्ष्णरसः सर्वक्षारो मलापनुत् ॥८७॥ ताम्बूल्येवतु ताम्बूल वरली स्यान्नागवल्यपि । मालूरः श्रीफलो बिल्वो गम्भारी मधुपर्णिका ॥८८॥ अमोघा पाटलाकृष्ण वृन्तासैव फलेरुहा । अग्निमन्थस्तु कणिका श्रीपर्ण गणिकारिका ॥८९॥ मयूरः कारवीदीप्यः खराश्वालोचमस्तकः । ध्रुवा स्थिरा शालपर्णी लागली तोयपिप्पली ॥९॥ वार्ताकी बृहती सिंही कासघ्नी कण्टकारिका । (१) सोडा नमक के दो नाम-सूर्यक्षार १, तीक्ष्णरस२ पु० । (२) कास्टीक सोडा के दो नाम-सर्वक्षारे१, मलापनुतू२ पु० । (३) ताम्बूल (पान) के तोन नाम-ताम्बूली१, ताम्बूलवल्ली२, नागवल्ली३ स्त्री० । (४) विल्ववृक्ष के तोन नाम-मालूर १, श्रीफल २, विल्व३ पु० । (५) खंभारी के दो नाम-गम्भारो१, मधुपर्णिकार स्त्री० । (६) पाडली के चार नाम-अमोघा१, पाटला२, कृष्णवृन्ता३, फलेरुहा ४ स्त्री० । (७) अरणी के चार नाम-अग्निमन्थ१ पु०, कणिकार स्त्री०, श्रीपर्ण३ नपुं०,गणकारिका ४ स्त्री० । (८) मोरशिखा के पांच नाम-मयूर? पु०, कारवी२ स्त्री०, दीप्य३ पु०, खराश्वा४ स्त्री० लोचमस्तक५ पु० (९) सालपर्णी (शालपर्णी) के तीन नाम-ध्रुवा १, स्थिरा २, शालपर्णी ३, स्त्री० । (१०) जलपिप्पली के दो नाम-लागली १, तोयपिप्पली २ स्त्री०। (११) बैंगन के तीन नाम-वार्ताकी१, बृहती २, सिंही ३ स्त्री०। (१२) कटेरी के दो नाम-कासनी १, कण्टकारिकार स्त्री.। . Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -- द्वितीयकाण्डम् ११६ वनस्पतिवर्गः ४ गोकैण्टको गोक्षुरको जीवैन्ती स्यान्मधुव्रता ॥९॥ वनमुद्रा मुद्गपर्णी माषपर्णी तु पणिनी । एरण्डको व्याघ्रपुच्छः स्यान्मन्दारोऽर्कद्रुमो मत ॥१२॥ स्नु हा स्नुहो भूरिदुग्धा सत्तला सातलाऽमला । वज्रवल्यास्थि संहारी कालिकारी तु लागली ॥९३।। करवीरो दिव्यपुष्पो हयमारोऽश्वमारकः ।। कनकोमत्तधत्तूर धूर्तधत्तूर धुस्तुराः ॥९४।। वासकोऽटरुषो वासो वरतिक्तस्तु पर्पटः । "निम्बो नियमनो नेता पिचुमन्दः शुकप्रियः ॥९५॥ (१) गोखरु के दा नाम-गोकण्टक १, गोक्षुरकर पु० । (२) जीवन्तिका के दो नाम-जोवन्ती१, मधुवतार स्त्री० । (३) वनमठ (मोट) के दो नाम-वन मुद्गा१, मुद्गपर्णी२ स्त्री० । (४) मा. षपर्णी के दो. नाम-माषपर्णी १, पर्णिनी२ स्त्री० । (५) एरण्डिया के दो नाम-एरण्ड १, व्याघ्रपुच्छ२ पु० । (६) आकडा के दो नाम-मन्दार १, अर्कद्रुम २ पु० । (७) थूहर के आठ नाम -स्नुहा १, स्नुही२, मूरिदुग्धा३, सत्तला४, सातला५, अमला, वज्रवल्ली ७, अस्थिसंहारी ८ स्त्री० । (८) जलपिप्पलों के दो नाम-कलिकारी १, लाङ्गली २ स्त्री० । (९) कणेर के चार नाम-करवीर दिव्यपुष्प२, हयमार ३, अश्वमारक ४ पु० । (१०) घथूरे के पांच नाम-कनक१, मत्तधत्तूर२, धूर्त ३, धत्तूर ४, धुस्तुर५ पु. । (११) अडूसा (वासक) के तीन नाम-वासक १, अटरुष (अटरूषक)२, वास३ पु० । (१२) निम्ब (लीमडा) के सात नाम-वरतिक्त१, पर्पट२, निम्ब३, नियमन४, नेता (नेतृ)५, पिचुमन्द६, शुकप्रिय पु० । Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीयकाण्डम् वनस्पतिवर्ग:४ पाकारिः काञ्चनालश्च काश्चनो यमलच्छदः । कबूंदारः कोविदारो विष्णुक्रान्ताऽपराजिता ॥१६॥ शोभाञ्जनः शिगुरुग्रो मुखमोदः शुभाजनः । निर्गुण्डीन्द्राणिका सिन्धु-चारकः सिन्दुकस्तथा ।।९७॥ कुटेजः कुटकः शक्रः करेजः कलिमारकः । वल्लीकण्टकरजः स्यात्काकजा तु रक्तिका ॥९८॥ गुजाऽथ श्वेतेगुरुजायां स्याच्चूडालाभिरिण्टिका । आत्मगुप्तातु दुःस्पर्शा कपिकच्छूश्च कण्डुरा ॥९९॥ (१) कच नार के छ नाम-पाकारि १, काञ्चनाल२, काञ्चन३, यमलच्छद ४, कबूंदार५, कोविदार६ पु. । (२) विष्णुक्रान्ता पुष्प के दो नाम विष्णुक्रान्ता १, अपराजिता२ स्त्री० । (३) सुहिजन (सरगवा) के पांच नाम-शोभाञ्जन१, शिग्र२, उग्र३, मुखमाद४, शुभाञ्जन५पु० । (४) सिनुआर (स्यौं ठी) के चार नाम-निर्गुण्डी १, इन्द्राणिका २ स्त्री०, सिन्धुवारक ३ सिन्दुक ४ पु० । (५) तुरैया के तीन नाम-कुटज १, कुटक २, शक्र ३ पु० । (६) कांटेवाले करंज के चार नाम-करज १, कलिमारक २, कण्टकरज ३ पु०, वल्ली ४ स्त्री० । (७) काकजंघा (काकमाची) के दो नाम-काकजंघा १, रक्तिका २ स्त्री० । (८) घोचली (गुंजा) का एक नाम-गुञ्जा १ स्त्रो० । (९) श्वेत गुञ्जा के तीन नाम- वेतगुना १, चूडाला२, भिरिण्टिका ३ स्त्री०। (६) (१०) कवाच (खुजलाहट उप्तन्न करने वाला तृण) के चार नामआत्मगुप्ता १, दुःस्पर्शा २, कपिकच्छु ३, कण्डुरा ४ स्त्री० । Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीयकाण्डम् ११८ वनस्पतिवर्गः ४ समौ वेतसवानीरौ निचुलो हिज्जलोऽम्बुजे । वाटयालका बलायां स्या-दङ्कोट स्तु निकोचकः ॥१०॥ गाङ्गेरुकी नागबला पुत्रर्कन्दा तु लक्ष्मणा । कृष्णाभावनकासी नलपोटगलौ समौ ॥१०१॥ वंशस्तृणध्वजोवेणु स्त्वचिसारो बृहत्तणः । वंशोऽसौ कीचको यः स्या-द्रन्ध्रस्वानोऽनिलोद्धतेः १०२ स्थूलदण्डः मुरद्रुश्च देवनालो महानले । द्वयोर्मुजः शरो वाणो गुन्द्रोरच्छः पटेरकः ॥१०॥ (१) व्रत के दो नाम-वेतस १, वानीर २ पु० । (२) स्थल वेतस के तीन नाम-निचुल १, हिज्जुल २, अम्बुज ३ पु० (३) वलियार (बला) के दो नाम बाटयालका १, बला २ स्त्री० । (४) अकोल (डेरा) के दो नाम-अङ्कोट १, निकोचक २ पु० । (५) बला के दो नाम-गाङ्गेरुकी १, नागबला २ स्त्री० । (६) लक्ष्मणा कन्द के दो नाम-पुत्रकन्दा १, लक्ष्मणा २ स्त्री० । (७) विनौले के दो नाम-कृष्णभा १, वनकासी २ स्त्री० । (८) काश [इक्षुगन्धा] के दो नाम-नल १, पोटगल २ पु० । (९) वांस के पांच नाम-वंश १, तृणध्वज २, वेणु ३, त्वचिसार ४, वृहत्तण ५ पु०। (१०) वांसुरी वाले के दो नामकीचक १, रन्ध्रस्वान २ पु० । (११) मूज के दश नाम-स्थूल, दण्ड १, सुरद्रु २, देवनाल ३, महानल ४ पु०, मुञ्ज ५ स्त्री० पु०, शर ६, बाण ७ गुन्द्र ८, रच्छ ९, पटेरक १० । Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीयकाण्डम् वनस्पतिवर्गः ४ काशेकासः पुमान्काशी षीकाकाशाः स्त्रियामिमाः । गुन्द्रेरके समे दर्भों बहिः क्लोबे कुशोऽस्त्रियाम् ॥ १०४ ॥ कण श्यामकं परं स्याद्भूतैीकं तु भूतृणम् । बजा दृढपत्री स्यात्पण्यन्धा कङ्कनी दला ॥ १०५ ॥ सुनाला चणिका दुग्धा शूली तु महिषीप्रिया । अनन्ता दुर्भरा दूर्वा गोलोमी शकुलादनी ॥१०६॥ भूकूष्माण्डी विलाडो च विदारी वाजिवल्लभा । अन्याक्षेीरविदारीस्या दिक्षुगन्धा पयोलता ॥ १०७ ॥ ११९ (१) काम के पांच नाम - काशकाश १, पु०, काशी २, इषीका ४, काशा ४, स्त्री ० । (२) काश विशेष के दो नाम - गुन्द्र १, एरक २ नपुं. । (३) कुश के तीन नाम - दर्भ १ पु०, बर्हिष् २ नपुं, कुश ३ स्त्री० । (४) रौहिष (रोहिस) तृण के तीन नाम - कतृण १, श्यामक २ पौर ३ नपुं० । (५) रौहिषविशेष के दो नाम-भूतीक १ भूतृण २ नपुं० । ( ६ ) बल्वज (वगेर) के आठ नाम-बल्वज १, बहुवचन पुं०, दृढपत्री २ पु०, पण्यगन्धा ३, कङ्कुनी ४, दला ५, सुनाला ६, चणिका ७, दुग्धा ८ स्त्री (७) शूली (तृणविशेष) के दो नाम - शूलो १, महिषोप्रिया २ स्त्री० । (८) दूर्वा के तीन नाम - अनन्ता १, दुर्भरा २ दुर्वा ३ स्त्री० । (९) श्वेतदूर्वा के दो नाम - गोलोमी १, शकुलादनी २२ स्त्री० (१०) श्वेतकुष्माण्ड (कुम्हड़ा) के चार नाम - भूकूष्माण्डी १ विलाडी २, विदारी ३, वाजिवल्ला ४ स्त्री० । (११) कृष्णादिवर्णयुक्त भूकूष्माण्डी के तीन नाम - क्षीरविदारी १, इक्षुगन्धा २, पयोलता ३, स्त्री० Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२० द्वितीयकाण्डम् वनस्पतिवर्गः जी'मृतः कुक्कुटो वेणी देवदाली गरागरी । कर्कटी च खरस्पर्शा विषघ्नी गरनाशिनी ॥१०८॥ अशनी मुसलीताली तालमूली च तालिका । नारायणी परी दिव्या शतमूली शतावरी ॥१०९।। अश्वगन्धा हयावल्या पाठास्याद्विद्धकर्णिका । रेचनी मुवहाश्यामा दन्तीतु श्वेतघण्टिका ॥११०॥ जयपालश्च जैपालो विशालात्विन्द्रवारुणी । कल्याणी स्वर्णपात्री स्यादरेचिका मलधारिणी ।१११॥ (१) देवदालो (कूकडवेल-जोकि कुष्माण्ड का ही एक भेद है) के नौ नाम-जीमूत १, कुक्कुट २ पुं०, वेणो ३, देवदाली ४, गरागरी ५, कर्कटी ६, खरस्पर्शा ७ विषघ्नी ८ गरनाशिनी ९, स्त्रो० । (२) तालमूली के पांच नामअर्शोन्नी १, मुसला २, तालो ३, तालमूली ४, तालिका ५ स्त्री० । (३) शतावरी के पांच नाम-नारायणी १, वरी २, दिव्या ४, शतमूली ४, शतावरी ५ स्त्री० । (४) अश्वगन्धा के तीन नाम-अश्वगन्धा १, हया २, बल्या ३ स्त्री० (५) पाठाओषधी के दो नाम-पाठा १, विद्धकर्णी २, स्त्री० । (६) प्रियङ्गु के तीन नाम-रेचनी १, सुवहा २, श्यामा स्त्री०। (७) दन्ती (वज्रदन्ती के दो नाम-दन्ती १, श्वेतघण्टिका २ स्त्री०। (८) जमाल गोटा के दो नाम-जयपाल १, जैपाल २ स्त्री० । (९) इन्द्रवारुणी के दो नाम-विशाला १, इन्द्रवारुणी २खी०। (१०) सनायपत्ती के चार नाम-कल्याणी १, स्वर्णपत्री २. रेचिका ३, मलधारिणी ४ स्त्री० । Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीयकाण्डम् १२१ वनस्पतिवर्गः ४ रजनी नीलिका नीला काला नीली च नीलनी । दुरालभा समुद्रान्ता यासो बहुकण्टकः ॥११२॥ अपामार्गश्चमत्कारः श्वेते रक्ते क्षेवा स्मृतः। काण्डेक्षुः कोकिलाक्षः स्यादिक्षु गन्धे क्षुर क्षुरौ ११३ कन्या घृतकुमारी स्या-देलीयः कृष्णबोलकः । पार्टलिः पाण्डुफल्यां स्याद् वनप्सा तु ज्वरापहा ११४ नीलाऽसौ नीलिनी श्यामा राजपर्णी प्रसारिणी । थनन्ता सारिवा गोपी भृङ्गरोजस्तु मार्कवः ॥११५॥ (१) नीली औषधि के छ नाम-रजनी १, नीलिका २, नीला ३, काला ४ नीली ५, नोलिनी ६ स्त्री० । (२) घमासा के दो नाम-दुरालभा १, समुद्रान्ता २ स्त्री० । (३) यवास के दो नामयवास १, बहुकण्टक २ पुं०। (४) अपामार्ग (आम्वी झाडा,चिरचिरी) श्वेत के दो नाम-अपामार्ग १, चमत्कार २२ पुं० । (५) रक्तचिरचिरो के एक नाम-क्षव १, पुं० (५) ताल मरवाना के पांच नाम-काण्डेक्षु १, कोकिलाक्ष २, इक्षुगन्धा ३, इक्षुर ४, क्षुर ५ पुं० । हिन्दी-(७) घृतकुमारि के चार नामकन्या १, घृतकुमारी स्त्री०, एलीय ३, कृष्णबोधक ४ पुं० । (८) रक्तलोध्र के दो नाम-पाटलि १, पाण्डुफली २ स्त्री० । (९) वनप्सा के दो नाम-वनप्सा १, ज्वरापहा २ स्त्री । (१०) राजपर्णी के पांच नाम-नीला १, नीलिनी २ श्यामा ३, राजपर्णी ४, प्रसारिणी ५ स्त्री. । (११) उत्पलशारिवा (गुलीसर) के तीन नाम-अनन्ता १, सारिवा २, गोपी ३, स्त्री०। (१२) भृगराज (भङ्गरोहा) के दो नाम-भृङ्गराज १, मार्कव २, पु० । Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीयकाण्डम् १२२ वनस्पतिवर्गः . शणपुष्पी पीतपुष्पी त्रायमाणा तु पालिनी। शंखिनी यवतिक्ता स्या-ल्लिङ्गिनी शिवमल्लिका ११६ गोकर्णी मोरटा मूर्वा कार्कमाची तु वायसी । कार्कजंघा तु काकाक्षी मेषशङ्गी विषाणिका ।।११७॥ गुडूची त्वमृता सोमा सोमवल्ली त्रिदोषहा । वन्दा जीवन्तिका वृक्ष-रुहावृक्षादनी स्मृता ॥११८॥ लज्जावती तु लज्जालुः स्पर्शलज्जा प्रसारिणी। (१) झुनझुनियां (बनशण सदृश कलिकावलो) औषधि के दो नाम-शणपुष्पी १, पीतपुष्पी २ स्त्री० । (२) त्रायमाण औषधि के दो नाम-त्रायमाणा १, पालिनी २ स्त्री०। (३) शांखहुली (चोरवल्लो) के दो नाम-शंखिनी १, यवतिक्ता स्त्री० । (४) शिवलिङ्गी के दो नाम-लिङ्गिना १, शिवमल्लिका २ स्त्री० । (५) मुहार के तीन नाम-गोकर्णी १, मोरटा २, मूर्वा ३ स्त्री० । (६) कवप्रिया (पीलुडी जातवालो) के दो नाम-काकमाची १, वायसी२ स्त्री० । (७) काकजंघा (अघेडी कौवा ठोठी के चार नाम-काकजंघा १, काकाक्षी २, मेषशृङ्गी ३ विषाणिका ४ स्त्री० । (८) गिलोय के पांच नाम-गुडुची १ अमृता २ सोमा ३. सोम वल्ली ४, त्रिदोषहा स्त्रो० । कचूर (९) (वृक्ष के ऊपर की) औषधि के चार नाम-चन्दा १, जीवन्तिका २, वृक्षरुहा, ३, वृक्षादनी ४ स्त्री० । (१०) लजवंती (लजविज्जी) के चार नामलज्जावतो १, लज्जालु २, स्पर्शलज्जा ३, प्रसारिणी ४ स्त्रा० । Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीयकाण्डम् १२३ वनस्पतिवर्गः ४ द्रोणपुष्पी फले पुष्पाऽऽदित्यंभक्ता सुवर्चला ॥११९।। वैन्ध्या कर्कोटकी नागा-राति सर्पविषापहा । मार्कण्डिका पोतपुष्पी मार्कण्डी मृदुरेचनी ॥१२०॥ देवंदाली कोषफला लागली जलपिप्पली । भूम्यामली विषघ्नीस्या।द्वामी मण्डूकपर्णिका ॥१२१॥ गो जिह्वा दार्विका गोभी छिक्कनी छिक्कके समे । रक्तपुष्पीबलानाग-दमनी विषमर्दिनी ॥१२२॥ मुषाकर्णी मूषिका च द्रवन्ती शम्बरीवृषा । (१) दनूफ (गुल्म) के दो नाम-द्रोणपुष्पी १ फलपुष्पा २ स्त्री। (२) सूर्यमुखी पुष्प केदो नाम-आदित्यभक्का १ फलेपुष्पा स्त्री० । (३) हुरहुड़ का एक नाम-सुवर्चला १ स्त्री० । (४) तीन काँकड़ी (बाँझ ककोडा) के चार नाम-बन्ध्या १, कर्कोटकी २, नागराति ३, सर्पविषापहा ४ स्त्री० । (५) सनामकई (सनाय) के चार नाम-मार्कण्डिका १, पोतपुष्पी २, मार्कण्डी ३, मृदुरेचनी ४ स्त्री । (६) घघरबेल के चार नाम-देवदालो १, कोषफला २, लाङ्गनी ३. जलपिप्पली ४ स्त्री० । (७) भूम्यामल का (अमरोड़ा) के चार नाम-भूम्यामली १, विषघ्नी २, ब्राह्मी ३, मण्डूकपर्णि का (८) गोजिह्वा (वनगोभी) के तीन नाम-गोजिह्वा १, दार्विका २, गोभी, स्त्री० । (९)नाक छिकनी के दो नाम-छिक्कनो १, छिक्किका २ स्त्री० । (१०) नागदौन के चार नाम--रक्तपुष्पी १, बला ३ नागदमनी ३, विषमर्दिनो ४ स्त्रो० । (११) मूसाकरणी के पांच नाम-मूषाकर्णी १, मूषिका २, द्रवन्तो ३, शम्बरी ४,वृषा ५ स्त्री। Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीयकाण्डम् - १२४ . वनस्पतिवर्गः-४ शिखिंनी बर्हि चूडाच स्यान्मयूर शिखा शिखा ॥१२३॥ ब्रह्मदण्डयजदण्डी स्त्री रेवदचीनी तु गन्धिनी । चहि स्त्री चविका चाहा तमाखुस्ताम्रकुट्टकः ॥१२४॥ इष ग्दोलं स्निग्धबीजं सुधामूली तु जीवनी । शिलीन्धं गोमयच्छत्रं स्यादहिच्छत्रमित्यपि ॥१२५॥ कीटारिः कीटमारी स्त्री सर्पदंष्ट्रा विषापहा । उष्ट्रकण्टस्तु कण्टालु मदिको नखरञ्जिनी ॥१२६॥ सजीवनी रुदन्ती स्या-तोटी चिरपोटिका । (१) मोरशिखा के चार नाम-शिखिनो १, बर्हिचूडा २, मयूरशिखा ३, शिखा ४ स्त्री०। (२) उटकगारा के दो नामब्रह्मदण्डी १, अजदण्डो २ स्त्री० । (३) रेवतचानी के दो नाम-रेवटचीनी १, गन्धिनी २ स्त्री० । (४) चाय के तीन नाम-चहि १, चविका २, चाड़ा ३ स्त्रो० । (५) तम्बाकु के दो नाम-तमाखु १, ताम्रकुटक २ पु० । (६) सफगोल के दो नाम --ईषद्गोल १, स्निग्धबीज २ नपुं० । (७) सालम मिशरो के दो नाम-सुधामूलो १, जीवनी २ स्त्री० । (८) गोबरछत्ता के तीन नाम-शिलीन्ध्र १, गोमयच्छत्र २, अहिच्छत्र ३ नपुं० । (९) कीडामारी के चार नाम-कीटारि १ पु०, कोटमारी २, सर्पदंष्ट्रा ३, विषापहा ४ स्त्री० । (१०) ऊँट कटीरा के दों नाम-उष्ट्रकण्ट १, कण्टालु २ पु०। (११) मेहंदी के दो नाम मेदिका १, नखरञ्जनी२ स्त्रो० । (१२) लाणा के दो नाम-सञ्जो- वनी १, उदन्ती २ स्त्री० । (१३) पटकोना (वनसोखा) के दो नाम-पर्पोटी १, चिरपोटिका २ स्त्री० । Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीयकाण्डम् वनस्पतिवर्गः ४ चिंचोडकं चिचोर्डस्या - दर्जेगन्धातु कावरी ॥१२७॥ पुमान्स्यादण्डखर्जूरः स एवैरण्डचिर्भिटः । ॥ वनस्पतिवर्गः समाप्तः ॥ १२५ (१) चिचोट के दो नाम चिचोडक १, चिचोड़ २ नपुं० । (२) तिलवन के दो नामअजगन्धा १, कावरी २ स्त्री० । (३) पतीता (अणरनेवा) के दो नाम - अण्डखर्जूर १, एरण्डचिर्भिट २ पु० । ॥ वनस्पतिवर्ग समाप्त || Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीयकाण्डम् १२६ धान्यादिवर्गः १ -०॥अथ धान्यादिवर्गः प्रारभ्यते॥०धान्येस्तम्बकरिबीहिः कलमे शालितण्डुलौ । समौ गोधुमगोधूमौ यकस्तु यवो मतः ॥१॥ *जूर्णलो यावनालश्च जणी यवयवोऽपिच । स्त्री बर्जरी बर्जरिका नाली स्यात्पुंसि साजकः ॥२॥ पुंसि भुक्तिप्रदोमुद्गो हन्मुिद्गस्तु शारदः । माषे पित्र्यो धान्यवीरो मकुष्ठस्तु मकुष्ठके ॥३॥ बबेटश्चवलो राज-माषश्चपल इत्यपि । निष्पीवो वल्लको वार्जि-मन्थस्तु चणकश्वणः ॥४॥ हिन्दो- (१) सामान्य धान्य के तीन नाम-धान्य १ नपुं०, स्तम्बकरि २, व्रीहि ३ पु० । (२) गेहूं के दो नाम-गोधुम १, गोधूम २, पु० । (३) जौ के दो नाम-यवक १, यव २ पु. । (४) जनेर के (जुआर) के चार नाम-जूर्णल (जूनल) १, यावनाल २, जूर्ण ३, यवयव ४ पु० । (५) बजरो के चार नाम-बर्जरी १, बर्जरिका २, नाली ३ स्त्री०, माजक ४ पु० । (६) मुंग के दो नाम-भुक्तिप्रद १, मुद्ग २ पु०। (७) हरे मूंग के दो नामहरिमुद्ग १, शारद २ पु०। (८) उर्द के तीन नाम-माष१ पित्र्य २, धान्यवीर ३ पु० । [९] मठ के दो नाम-मकुष्ठ १, मकुष्ठक २ पु० । (१०) चवला के चार नाम-बर्बट १, चवल २, राजमाष ३, चपल ४ पु० । (११) भेटमास के दो नाम-निष्पाव१, वल्लक २ पु० । (१२) चना के तीन नाम-वाजिमन्थ१, चणक २, चण ३ पु० । Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीयकाण्डम् १२७ धान्यादिवर्गः ५ द्वयोमसूरमसुरौ तुर्वरीत्वाढकी स्त्रियाम् । कलायो मुण्डचणकः ख कारिस्तु सण्डिकः ॥५॥ कुलत्थिस्तु कुलत्थेः स्यात्तिलस्तैलसमन्वितः । निष्फले तिलपिजः स्यादारण्ये जतिलो मतः ॥६॥ राजीतु राजिका कृष्णे सिद्धार्थः श्वेतसर्षपः । 'क्षुमोमे अतसी कङ्गौ प्रियङ्गुः स्युः स्त्रियामिमाः ॥७॥ चीनकः काक कङ्कुश्च मण्डूकन्तु मलीयसः । मुनिधोन्यं तु नीवारः स्त्रिया मोडी तथौडिका ॥८॥ हिन्दी- (१) मसूर के दो नाम-मसूर १, मसुर २ पु० । (२) अरहर के दो नाम-तुवरी १, ओढको २ स्त्री० । (३) वटला के दो नाम-कलाय १, मुण्डचणक २ पु० । (४) खञ्जकारी के दो नाम-खञ्जकारी१, सण्डिक२ पु० । (५) कुलत्थ (कुरथी) के दो नाम–कुलत्थि १, कुलत्थ २ पु० । (६) तिलका, तेलहीन [निस्सार] तिलका, अरण्य तिलका क्रमशः एक एक नाम-तिल, तिलपिञ्ज, जतिल पु० । (७) राई [रैंची] के दो नाम-राजी १, राजिका २ स्त्री० । (८) सरसों [सरसिया] के दो नाम-सिद्धार्थ १. श्वेतसर्षप२ पु. । (९) अलसी के तीन नाम-क्षुमा१, उमा २, अतसी ३ स्त्री० । (१०) कौनो को गुणी] के दो नामकङ्ग १, प्रियङ्गु २ स्त्री० । (११) चीने के दो नाम-काककङकु १. चीनक २ पु० । (१२) मँडुआ के दो नाम-मण्डुक १ नपुं० मलीयस २ पु० । [१३] जंगली धान्य के चार नाम-मुनिधान्य १ नपुं०, नीवार २ पु०, ओडी ३, ओडिका ४ स्त्री० । Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीयकाण्डम् १२८ धान्यादिवर्गः ५ श्यामा श्यामक श्यामाः कोरर्दृषस्तु कोद्रवः । स्यान्मक्कायो महाकायः स्त्रीर्गवेधु र्गवेधुका ॥९॥ शाकैराड् वास्तु वास्तूकं लोणी लोण्यौ तु घोलिका । अम्लं रसाम्ल पत्राम्ले तुल्यौ वाक मारिषौ ॥ १० ॥ कञ्चैट: कञ्चुकीद्वेस्त उपोती स्यादपोदका । रसोनी लशुनोऽरिष्टं कलैम्बी तु कलम्बिका ॥ ११ ॥ नौडीक: पट्टशाकः स्यान्मत्स्यासी हिलमोचिका । हिन्दी [१] सामा के तीन नाम - श्यामाक १, श्यामक२, श्याम ३ पु० । [२] कोदो के दो नाम - कोरदूष १, कोद्रव २ पु० । [३] मक्का [मकइ ] के दो नाम - मक्काय १, महाकाय २ पु० । [४] गरहेडुआ [वनैया गेहुँ] के दो नाम - गवेधु १, गवेधुका २ स्त्री० । [२] बथुआ के तान नाम-शाकराद [शाकराज्] १ पु., वास्तु २, वास्तुक ३ नपुं० | [ ६ ] नोनाया शाक के तीन नामलोणा १, लोणी २, घोलिका ३ स्त्री० । [७] चूका [पथरचूर ] के तीन नाम-- अम्ल १, रसाम्ल २, पत्राम्ल ३ नपुं० । [८] मरुसा के दो नाम - बाक १, मारिष२ पु० । [९] : अरिकञ्चन [ चौलाईअरुमा के पत्ते जैसे पत्ते के दो नाम कञ्चट १ पु०, कञ्चुक २ स्त्री० [१०] पोईके दो नाम-उपोती १, उपोदका २ स्त्री० [११] लहसन के तीन नाम-र ेन १, लशुन २ पु०, अरिष्ट ३ नपुं० । [१२] कलमी [करभी] के दो नाम - कलम्बी १, कलम्बिका २ स्त्री० | [१३] तिक्त शाक के दो नाम - नाडींक १, पट्टशाक २ पु [१४] सरहौं ची के दो नाम - मत्स्याक्षी १ हिलमोचिका २ स्त्री० । -- O 9 - Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीयकाण्डम् १२९ धान्यादिवर्ग:५ प्रलम्बिका स्त्री करली शितिवारस्तु कुक्कुटः॥१२॥ पारुः कर्कटी मूत्र फलातोयफला स्त्रियाम् । त्रपुष कण्टकिफलं सुधावास: मुशीतलम् ॥१३॥ चिमिटं स्याच्चिटिका कुम्भसी कट्फला स्त्रियाम् । कृष्णबीजं कलिन्देस्या त्तद्भेदस्तु दशाङ्गुलम् ॥१४॥ कोषातकी सुघोषा स्त्रो जालिनी राजिमफला । घण्टेाली शोधनी क्ष्वेडा तिक्तकोशातकी स्त्रियाम् ॥१५॥ श्वेतराजिश्चिचिण्डः स्यात्पटोले कुलकौ समौ । हिन्दी-(१) करैला के दो नाम-प्रलम्बिका १, करली २ स्त्री० । (२) शिरियारि के दो नाम-शितिवार १, कुक्कुट २ पु०। (३) काकडो के चार नाम-एरुि १, कर्कटी २, मूत्राफला ३, तोयफला ४ स्त्रो० । (४) कर्कटोविशेष के चार नाम-त्रपुष १, कण्टकिफल २ नपुं०, सुधावास ३ पु०, सुशीतल ४, नपुं । (५) काचर के चार नाम-चिर्भिट १ नपुं०, चिर्भटिका २, कुम्भसी ३, कट्फला ४ स्त्री० । (६) तरबूज के दो नाम-कृष्णबीज १, नपुं०, कलिन्द २ पुं० । (७) खर्बुजा का एक नामदशाङ्गुल १ नपुं० । (८) तोरई के चार नाम-कोषातकी १, मुघोषा २, जालिनी ३, राजिमत्फला ४ स्त्री० । (९) झिंगा के दो नाम-घण्टाली १, शोधनो २ स्त्री०। (१०) कड़वो तोरई के दो नाम-क्ष्वेडा १ तिक्तकोषातकी २ स्त्री० । (११) चिचेड़ाफल के दो नाम-श्वेतराजि १ स्त्री०, चिचिण्ड २ पुं० । (१२), परवल के दो नाम-पटोल १, कुलक २ पु०।। Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीयकाण्डम् १३० धान्यादिवर्ग: ५ शितिवारः शितिवरः स्वस्तिकः सुनिषण्णकः ॥ १६ ॥ श्रीवारकः सूचिपत्रः पर्णकः कुक्कुटः शिखी । बिम्बं बिम्बफलं तुण्डी-केरी तुण्डी समाऽसमा ॥ १७ ॥ कर्केटकी पीतपुष्पी कारवेल्लः कठिल्लकः । भिण्डी भिण्डा पुमान् भिण्डः शिम्बिनी शिम्बिके समे ॥ १८ ॥ बार्कुची कलमेषी च शिम्बी तु फलिनी मता । वारिकण्टक शङ्गाटके स्त्री संघाटिका मता ॥ १९ ॥ गृज्जैनं गाजरं क्लीबे पलाण्डु मुखदूषणः । . हिन्दी - ( १ ) सुनिसण्ण (सुसना) के नौ नाम - शितिवार १ शितिवर २, स्वस्तिक ३, सुनिषण्णक ४, श्रीवारक ५ सूचिपत्र ६, पर्णक ७, कुक्कुट ८, शिखी (शिखिन् ) ९, पु० । (२) बिम्ब (तिलकोड) के तान नाम-बिम्ब १, बिम्बफल २ नपुं०, तुण्डिकेरी ३ स्त्री० । (३) गिलोडे का एक नाम - तुण्डी स्त्री० । ( ४ ) किकोडा (कंकोडा) के दो नाम - कर्कोटकी १, पीतपुष्पी २ बी० । (५) करेला के दो नाम - कारवेल्ल १, कठिल्लक २ पु० । (६) भिण्डी के तीन नाम - भिण्डी १, भिण्डा २ स्त्री०, भिण्ड ३ पु० । (७) पहाडी सिम के दो नाम - शिम्बिनी १, शिम्बिका २ स्त्री० । (८) गवारफली के दो नाम - बाकुची १, कालमेषी २ स्त्री० । (९) फली के दो नाम - शिम्बी १, फलिनी २ स्त्री० । (१०) सिंघाडे के तीन नाम-वारिकण्टक १, शृङ्गाटक २ नपुं०, संघाटिका ३, स्त्री० । (११) गाजर के दो नाम -गृञ्जन १, गाजर २ नपुं० । (१२) प्याज (डुंगली) के दो नाम - पलाण्डु १, मुखदूषण २ पुं० । Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीयकाण्डम् १३१ धान्यादिवर्गः ५ वानेयं स्थूलमूलं स्यान्मूलैकं हस्तिदन्तकम् ॥२०॥ ओल्लेओलःपुंसि पिण्डी तकस्तु स्वादुकन्दकः । आरवे स्यादाखी स्त्री राजालु स्वारु रारुकः ॥२१॥ कोलकन्दे पुटार्ना हस्तिर्कन्दोऽति कन्दके । स्तम्भालु धरणीकन्द स्तुल्ये रक्तोलुकाऽऽलुके ||२२|| सुन्दः स्यात्तु वाराही कन्दं क्लीवे महौषधम् । कन्दोलकं सुकन्दं स्यात् शोघ्नीतु पुनर्नवा ||२३|| पुष्पं गोभी पत्रगोभी ग्रन्थिगोभी च गोभिका । हिन्दी - ( १ ) सलगम के दो नाम - वानेय १, स्थूलमूल २ नपुं० । (३) मूलीके दो नाम-मूलक १, हस्तिदन्तक २ नपुं० । (३) सुरण के दो नाम - ओल्ल १, ओल २ पु० । (४) तेकुना के दो नाम - पिण्डीतक १, स्वादुकन्द २, पु० । (५) अरुवी (जिस के पत्ते अकिञ्चन हैं), के दो नाम - अरव १, आरवी २ पुंखी ० । ( ६ ) आरु (मोट अरवीकण्डा) के दो नाम - राजालु (१) आरु २, आरुक ३ पुं० । (७) कोलकन्द (रक्तवर्ण स्वम्भारु) के दो नाम - कोलकन्द १, पुटालु २ पु० । ( ८ ) सफेद खमहारु के चार नाम - हस्तिकन्द १, अतिकन्द २, स्तम्भारु ३, घरणीकन्द ४ ० । ( ९ ) सकरकन्द के दो नाम - रक्तालुका १, आलुका २ स्त्री० । (१०) वाराहीकन्द ( सुथनी उत्तर बिहार में होता है) के तीन नाम - सुकन्द १, वाराहीकन्द २ महौषध ३ नपुं० । (११) आलु के दो नाम कन्दालुक १, सुकन्द २ नपुं० । (१२) पुनर्नवा (गदह पुड़ैना, गजपुडैना) के दो नाम - शोथन्नो १, पुनर्नवा २, स्त्रो० (१३) गोभी के चार नाम - पुष्पगोभी १, पत्र Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीयं काण्डम् १३२ धान्यादिवर्गः ५ कासमर्दनकासारि मखान्नं वारिज फलम् ॥२४॥ कटु वीरा तीव्रशक्तिर्द्व रक्तमरिचे स्त्रियाम् । गुकन्दः कसेरुः स्यात्कशेरुश्च कसेरुकः ॥२५॥ पूपोऽपूपौ पिष्टकोऽपि वाटिकाऽङ्गारकर्पटी । दुग्य क्षोरं पयश्वाऽपि पयस्यं तु भवेदधि ॥२६॥ नव प्रसूते धेनोर्यत् प्रकृत्या स्फुटितं पयः । पीयूष मग्नियोगेन-घनीभूतं किलाटकः ॥२७॥ अपकमेव नश्येत क्षीरेशाकं तु तत्पयः । होनं तद् द्रव भागेन तक्रैपिण्ड उदाहृतः ॥२८॥ गोभी २, प्रन्थिगोभी ३, गोभिका ४ स्त्री० । हिन्दी-(१) कसोंदी के दो नाम-कासमदन १, कासारि २ पु० । (२) मखाने के दो नाम-मखान्न (मखान) १, वारिज २ नपुं०। (३) लालमिर्च के दो नाम-कटुवीरा १, तीव्रशक्ति २ स्त्री० । (४) केशोर के चार नाम-गुडकन्द १, कसेरु २, कशेरु ३, कसेरुक ४ पु०। (५) पूआ के तीन नाम-पूप १, अपूप २, पिष्टक ३, पु० । (६) वाटी के दो नाम-वाटिका १, अङ्गारकपटो २ स्त्री० । (७) दूध के तोन नाम-दुग्ध १, क्षीर २, पयसू ३ नपुं० । (८) दही के दो नाम-पयस्य १, दधि २ नपुं० । (९) तत्काल व्याई गाय का दूध का एक नाम-पोयुष (खिरसा) १ नपुं० । (१०) रवड़ी का एक नाम-किलाटक १ पु० । (११) छेना का एक नाम-क्षोरशाक १ नपुं० । (१२) दधिसार का (श्रोखण्ड) एक नाम-तक्रपिण्ड १ पुं० नपुं० । Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीयकाण्डम् धान्यादिवर्ग: ५ नष्टदुग्धस्य यनीरं मोरेटोजेज्जटोऽब्रवीत् । क्लीवे हैयङ्गवीनं तु नवनीतं नवोद्धृतम् ॥२९॥ दध्नः स्निग्धो घनोभागे उपरिष्टः सरः स्मृतः । मैस्तु स्याद् दधिजं मण्डं तैक्रघोले तु छच्छिका ३० घृतैमाज्यं हविः सर्पिर्गव्यादि दधिजं स्मृतम् । यस्तिलादि समृद्भूतः स्नेह्स्तत्तैल मुच्यते ॥३१॥ मयने स्यान्मधूच्छिष्टं मधुनि क्षौद्रमाक्षिके । गुडेंमूलं पुमानिक्षु स्तद्भेदाः " पौण्ड्रकादयः ||३२|| हिन्दी – (१) फाड़े गये दूध के पानी का एक नाम - मोरट १ पु० (जेजट का मत है) । (२) मक्खन के दो नाम हैयङ्गवीन १, नवनीत २, नपुं० । (३) मलाई का एक नाम-सर पु० । (४) दहीसे निकले पानो का एक नाम - मस्तु १ नपुं० । (५) छाछ (छास) के दो नाम तक १, नपुं० छच्छिका २ स्त्री० । (६) घी के चार नाम - घृत १, आज्य २, हविष ३, सर्पिष ४ नपुं० । (७) तेल के दो नाम - स्नेह नपुं० । (८) मोम के दो नाम - मयन १, शहद के तीन नाम - मधु १, क्षौद्र २, ईक्षु के दो नाम - गुडमूल १ नपुं०, विशेष के तेरह नाम -- पुण्डू १, इक्षु कान्तार ५, वेणुनिःसृत ६, पौण्ड्रक ७ ९ पुण्ड्रक १०, सेव्य ११, व्यतिरस १ पुं०, तैल २ मधूच्छिष्ट २ नपुं० । (९) माक्षिक ३ नपुं० । (१०) इक्षु २ पु० । (११) ईक्षु २, कर्कट ३, वंश ४, रसाल ८, सुकुमारक १२, मधु १३ पु० । १३३ -- Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीयकाण्डम् १३४ धान्यादिवर्गः ५ यन्त्रैर्निष्पीडितस्येक्षो विकारो यो रसः स्मृतः । पको रसो यदा गाढो रावे इत्युच्यते बुधैः ॥ ३३ ॥ ततो गाढतरे क्लीबं फौणितं गुडइष्यते । अस्त्रt खण्डोsति गाढस्यान्मैत्स्यण्डी स्त्री सिता भवेत् एकैकं नाम वक्ष्येऽथ पोलिकान्तं पृथक् पृथक् । संयावो मँठकः पक वटी च तिलेपर्पटी ||३५|| स्त्रियां पाटलैजम्बूः स्यात् शट्टकै मुद्गमोदकः । "यूषः पुमान् स्त्रियां "लोप्त्री चूर्णिको "दुग्धकूपिका ॥ १२ १३ (२) अग्निसंयोग से का एक नाम-राव २ स्त्री० । (१) रस का एक नाम - रस १ पु० । पकाये गये रस १ पु० । (३) राव से और अधिक पाक होने पर दो नाम - फाणित १ नपुं०, गुड २ पुं० । ( ४ ) चीनी का एक नाम - खण्ड १ अस्त्री० (५) मिसरी के दो नाम – मत्स्यण्डी १, सिता (६) हलुआ के एक नाम -संयाव १ पुं० । (७) माठा (पेठा ) का एक नाम - मठक १ पु० । (८) पकौड़ी का एक नाम पक्ववटी १ स्त्री० । ( ९ ) तिल पापड का एक नाम - तिलपर्पटी १ स्त्री० । (१०)) गुलाब जामुन का एक नाम - पाटलजम्बू १ स्त्री० । (११) चासनो का एक नाम - शहक १ नपुं० । (१२) मोतीचूर लड्डू का एक नाम - मुद्गमोदक १ पु० । (१३) दूध के मावा का एक नाम - यूष १ पुं० । (१४) लाई का (ममड़ा और गुड़ का लड्डू) एक नाम - लोप्त्री १ स्त्री० । (१५) चुरमे का एक नाम - चूर्णिका १ खो० । (१६) पेंडा का एक नाम दुग्धकूपिका खो । (१५) ---- Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीयकाण्डम् १३५ धान्यादिवर्ग:५ कलाकेन्दः कुण्डलिनी वटाका घृत पूंरकः । कार्थः प्रहेर्लकश्चम्ल-पानीयं शर्करोदकम् ॥३७॥ स्फुटितं चलिंक पेष्ठा स्त्रियां सेवनैमोदकः । पूर्णपोली वेट्टमिका पर्पटी वटकैस्तथा ॥३॥ काजीयवटकं खान-पानं सेविच पोलिको । (१) कलाकन्द का एक नाम-कलाकन्द १ पु० । (२) जलेवी का एक नाम-कुण्डलिनी १ स्त्री० । (३) बड़ा का एक नामवटाका १ स्त्री० । (४) घेवर का एक नाम-घृतपूरक १ पु०। (५) अदहन का एक नाम-काथ १ पु० । (६) दोपहर के पीछे का भोजन का एक नाम-पहेलक १ पु० । (७) मसाले संयुक्त खट्टे पानी का एक नाम-अम्लपानीय १ नपुं. । (८) शर्बत का एक नाम-शर्करोदक १ नपुं० । (९) भूजा (चवाणा) का एक नाम-स्फुटित १ नपुं. । (१०) घोमें गूंदे हुए आंटे का एक नाम-चलिक १ नपुं० । (११) पेठा का एक नामपेष्ठा १ स्त्री० । (१२) सेव के लड्डू का एक नाम-सेवनमोदक १ पु० । प्रणपोलो का एक नाम-पूर्णपोली १ स्त्री० । (१३) वेष्टन रोटी के एक नाम-वेमिका १ स्त्री० । (१४) पापड़ का एक नाम पर्पटी १ स्त्रो । (१५) चिलडे (बड़ा) के एक नामवटक १ पु० । (१६) दहीबड़ा का एक नाम-काजीयवटक १ नपुं. । (१७) खान पान के एक नाम-खानपान नपुंद । (१८) सेव का एक नाम-सेवि १ पु० । (१९) पुलाक का एक नामपोलिका १ स्त्री० । - Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीयकाण्डम् १३६ धान्यादिवर्गः ५ ओदें नोऽस्त्री भक्तमन्न मन्धोऽपि च नपुंसकम् ।३९। दोलिलीव्यजनं तु शाको लप्सी तु लप्सिका। निष्ठानं तेमनं 'चूर्ण क्षोदश्च वटिका वटी ॥४०॥ घार, वेशनं पिष्ट दालिकायां तु पिष्टिका । प्रातराशः कल्पजग्धिः "शष्कुली पुरिका पुरी ॥४१॥ समौ तु ग्रीस कवली ले हाँऽऽहारौ तु जेमनम् । स्याटुंदगिरणमुदगारः कचोरी"तु कचोरिका ॥४२॥ (१) ओदन के चार नाम-ओदन १ अस्त्री०, भक्त २, अन्न ३, अन्धस् ४ नपुं० । (२) दाल के दो नाम-दालि १, दाली स्त्री० । (३) व्यञ्जन के दो नाम ब्यञ्जन १, शाक २ पु० । (४) लापसी के दो नाम-लप्सी १, लप्सिका २ स्त्री० । (५) व्यञ्जन विशेष (कढी आदि) के दो नामनिष्ठान १, तेमन २ नपुं० । (६) आटे के दो नाम-चूर्ण १, क्षोद २ पु० । (७) वड़ी के दो नाम-वटिका १, वटी २, स्त्रो० । (८) वेशन के दो नाम-घारट्ट १ वेशन २ नपुं.। (९) दाल ढोकली के एक १ नाम-पिष्टिका १ स्त्री० (१०) प्रातः कालोक लघु भोजन के दो नाम-प्रातराश १ पुं०, १, पु०, कल्पजग्धि २ स्त्री० । (११) पुड़ी के तीन नाम-शष्कुली १ पुरिका ३ पुरी ३ स्त्री० । (१२) ग्रास के दो नाम ग्रास १, कवल २ पु० । (१३) भोजन के तीन नाम-लेह १, आहार २ पु०, जेमन ३ नपुं. । (१४) उद्गार के दो नाम-उद्गिरण १ नपुं०, उद्गार २ पु० । (१५) कचौरी के दो नाम-कचोरी १, कचोरिका २ स्त्रो० । Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीयकाण्डम् १३७ धान्यादिवर्गः५ क्षुद्' बुभुक्षा क्षुधा तुल्यास्तृत पिपासा तृषास्तथा । सपीतिः सहपानं स्यास्त्रियां सग्धिः सहाशनम् ॥४३॥ भुक्तशिष्ट मथोच्छिष्टं फेला भुक्तोज्झिते खियाम् । चुलुकश्चुलु गण्डूषौ तृप्तौ सौहित्र्यं तर्पणे ॥४४॥ स्याद् घरट्टः शिलाचक्रं तस्य दण्डेतु हस्तकम् । चक्रेला चक्रिका द्वेस्तः साधनी वेलिनी स्त्रियाम् ४५ शिलापुत्रः शिलालोष्टो घर्षणालस्तु पेषणी । (१) भुख के तीन नाम-क्षुध् १, बुभुक्षा २ क्षुधा ३ स्त्री० । (२) प्यास के तीन नाम-तृट् १ पिपासा ३ तृषा ३ स्त्रो० । (३) साथ २ पोने के दो नाम-सपीति १ स्त्री०, सहपान २ नपुं० । (४) साथ २ भोजन के दो नाम--सग्धि १. स्त्री०, सहाशन २ नपुं. । (५) भोजन करके जो शेष बचे उसके दो नाम—भुक्तशिष्ट (रसोइ में बचे) १, उच्छिष्ट (थाली में वचे) २ त्रिलिङ्ग । (६) पहले भोग चुके अब छोड़े हैं ऐसे विषय का एक नाम-फेला १ स्त्रो० । (७) चुलुक के तीन नाम-चुलुक १ चुल २ गण्डूष ३ पु० । (८) तृप्ति के दो नाम--सौहित्य १, तण २ नपुं० (९) चक्की के दो नाम-घरट्ट १ पु०, शिलाचक्र २ नपुं० । (१०) चक्की के दण्ड का एक नाम-हस्तक १ नपुं.। (११) चकला के दो नाम-चक्रला १ चक्रिका २ स्त्री० (१२) वेलन के दो नाम-साधनी १, वेलनी २ स्त्री० । (१३) शिला के ऊपर हल्दो आदि जिस पत्थल के टुकडे से पिसे जाँय उस छोटे टुकडे के दो नाम-शिलापुत्र १, शिलालोष्ट २ पु० । (१४) जिस पर पीसा जाय उस पत्थर के दो नाम-घर्षणाल १ पु०, पेषणी२ स्त्री०। Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वतीयकाण्डम् १३८ धान्यादिवर्गः ५ क्लीबे महानेस पाक- स्थानं रसवती स्त्रियाम् ॥ ४६ ॥ पौरोगवोऽधिकार्यस्य सूपकारस्तु पाचकः । भवेत्कान्दैविकोऽनेक भोज्यवस्तु विधायकः ॥४७॥ हसन्यैङ्गारशकटी हसन्त्यङ्गारधानिका | अङ्गीरस्तूलमुकाऽलाते मँणिकाऽलिजरः समौ ॥४८॥ अम्बरीषं पुमान् भ्राष्टः कर्करीतु गलन्तिका । चुल्लिरचुल्ली स्त्रियां क्लीवेऽश्मन्त मुद्धानमित्यपि ४९. स्वेदेनो स्त्री द्वयोः कन्दुः घटः कुटनिपावपि । (१) पाक घर के तीन नाम - महानस १ पाकस्थान २ नपुं० रसवती ३ स्त्री० । (२) पाक घर के अधिकारी का एक नाम - पौरोगव १ पुं० । ( ३ ) रसोइया के दो नामसुपकार १, पाचक २ पु० । (४) हलुआइ के एक नामकान्दविक १, पु० । ( ५ ) शगडी के चार नाम - हसनी १, अङ्गारशकटी २ हसन्ती ३, अङ्गारधानिका ४ स्त्री० । (६) जलते अंगारे के तीन नाम - अङ्गार १ पु०, उल्मुक २, अलात ३ नपुं० । (७) वडे मोटे घड़े का दो नाम मणिक १, अलिञ्झर २ पु० । (८) जिस बर्तन में चने आदि भूजें जाय ( भाड़) उस कडाही के दो नाम - अम्बरीष १ नपुं० भ्रष्ट २ पु० । (९) झाडे के दो नाम - कर्करी गलन्तिका २ खी० । (१०) चुल्ली के चार नाम - चुल्ली १. चुल्लि २ स्त्री०, अश्मन्त ३, उद्घान ४ नपुं० । (११) कड़ाही के दो नाम स्वेदनो १ स्त्री०, कन्दु २ पु० स्त्री० । (१२) घट के चार नाम-घट १, कुट २ निप ३ पु० स्त्री०, कलश (कलस ) ४ त्रिलिङ्ग । १, - · Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीयकाण्डम् धान्यादिवर्गः २. कलशः पिठरः कुण्डं स्थाल्युखात्रिषु न स्त्रियाम् ॥५०॥ शवः पत्रभेदेस्या तथैव वर्द्धमानकः । स्यात्कटोरं कटोरी स्त्री कटोरातु महत्यसौ ॥ ५१ ॥ दुग्धादीनां हियत् पान - भाजनं सा कुँपी स्त्रिाम् । अस्त्रीकंसः पानपात्र, मृजीकं पिष्टपाचनम् ॥५२॥ पात्रमात्रेऽमंत्र पात्र भाण्डा न्यावपनं तथा । भाजनं दर्विम्बी तु स्त्री तैर्दारुमुष्टिः ||५३|| पिधानपात्रे तु प्रोक्ता वुदचैनमुदञ्चनी । १३९ २, स्थाली नाम - शराव - कटोरे (१) हंडी के चार नाम- पिठर १, कुण्ड ३ उखा (उषा) त्रिलिङ्ग । ( २ ) शराव के दो १ वर्द्धमानक २ पु० नपुं० । (३) कटोरी के दो नामकटोर १ नपुं०, कटोरी २ स्त्री० । ( ४ ) बड़े का एक नाम - कटोरा १ स्त्री० । (५) दुग्धादि पान भाजन का एक नाम - कुपी १ स्त्रो० । (६) ग्लास के दो नाम - कंस १ पु०, पानपात्र २ नपुं० । (७) तवा के दो नाम-ऋजीक १, पिष्टपाचन नपुं० । (८) भाण्डमात्र के पांच नामअमत्र १ पात्र २ भाण्ड ३ आवपन ५ भाजन ५ नपुं० । (९) दव (कालो) के दो नाम-दर्शि (कम्बी) २ स्त्री० । (१०) चाटु (लकड़ी की करछुली) के दो नाम-त १ दारुमुष्टिक २ पु. (११) पिधानपात्र ( ढांकनी ) के दो नाम - उदञ्चन १ नपुं०, उदञ्चनी २ स्त्री० । (दव) १ कम्बि . Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - - द्वितीयकाण्डम् १४० धान्यादिवर्गः ५ चर्मणः स्नेहपात्रं स्यात्कुतूः सा कुतुपोऽल्पिका ॥५४॥ पर्णपात्रे करकोना पर्णधान्युपहन्तिका । उपस्करो वेषवारो राज्यक्तस्तु रसालिका ॥५५॥ ॥ इति धान्यादिवर्गः समाप्तः ।। (१) सीदडे के एक नाम-कुतू १ स्त्री० । (२) छोटे सीदड़े के एक नाम-कुतुप १ पु० । (३) पर्णपत्र (पतराला पडिया) के तीन नाम-करङ्क १ पु०, पर्णधानी २ उपहन्तिका ३ स्त्री० । (४) वेसवार (दाल अथवा शाक के मसाले) के दो नाम-उपस्कर १ वेषवार (बेसवार) २ पु० । ॥०॥ इति धान्यादिवर्ग समाप्त ।।०॥ Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ ० ॥ अथ पशुवर्गः प्रारभ्यते ॥ ● ॥ मृगेधूर्तक गोमायु- फेरवाः फेर-जम्बुकौ । शृगालो वञ्चकः क्रोष्टा भूरिमाय: शिवा स्त्रियाम् ॥ १ ॥ अच्छो भल्लुक भालुको क्षो भल्लश्च भाल्लुकः । वैङ्गी च गण्डकः खङ्गो लुलायो महिषस्तथा ||२|| कासारः सैरिभोवाह - द्विषच्च गोधिकात्मजे । गौधेयैश्चापि गौधेरो गौधारश्च त्रयोमताः ॥ ३ ॥ भूदारः करः कोलो वराहः क्रोड घोणिनौ । घृष्टिर्देष्ट्री किरः पोत्री स्तब्धरोमा किटिस्तथा ||४|| व्याघ्रे द्वौ द्वीपि शार्दलौ स्यात्तरक्षु मृगादने । हिन्दी - ( १ ) सियाल के दश नाम- मृगधूर्तक १, गोमायु २ फेरव ३, फेर ४, जम्बुक ५, शगाल ६, वञ्चक ७, क्रोष्टा( क्रोष्टु ) ८, भूरिमाय ९, पु०, शिवा १० स्त्री ० । (२) रीछ के छ नाम - अच्छ १, भल्लुक २, भालुक ३, ऋक्ष ४, भल्ल ५, भाल्लुक ६ पु० । (३) गेंडा के तीन नाम - खङ्गिन् १, गण्डक २, स्वङ्ग ३ पु० । (४) महिष के पांच नाम - लुलाय १, महिष २, कासार ३, सौरभ ४, वाहद्विषन् (वाहद्विषत् ) ५ पु० । (५) चन्दन गोह के तीन नाम - गौधेय १, गौधेर २, गौधार ३ पु० । (६) सूकर के बारह नाम-भूदार १, सूकर २ ( शूकर), कोल ३ वराह ४, क्रोड ५, घोणिन् ६, घृणि ७, दंष्ट्रिन् ८, किर ९, पोत्रिन् १०, स्तब्धरोमन् ११, किटि १२ पु० । (७) व्याघ्र के तीन नाम - यात्र १, द्वीपिन् २, शार्दूल ३ पु० । (८) व्याघ्र विशेष के दो नाम -तरक्षु १, मृगादन २ पु० । Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीयकाण्डम् ર पशुवर्गः ६ "सिंह पञ्चाननः कण्ठी-रवः पञ्चनखो हरिः ||५|| पुण्डरीको मृगेन्द्रश्व केसरी मृगसूदनः । वानरो मर्कटोवाऽपि वनोंका अपि कथ्यते ॥ ६ ॥ प्लवंगः प्लवगः कीशः शाखामृग वलीमुखौ | बिलालओतु मार्जारौ आखुभुग् वृषदंशकः ॥७॥ शल्यैस्तु शल्लकी वचित्-तल्लोम्नि शलैलं शलम् । ईहामृगा वृकः कोके कुरङ्ग हरिणो मृगः ||८|| रङ्क रेणो रुरु र्न्यकु कृष्णसारश्च शम्बरः । हिन्दी - (१) सिह के नौ नाम सिंह १, पञ्चानन २, कण्ठोरव ३, पञ्चनख ४, हरि ५, पुण्डरीक ६, मृगेन्द्र ७, केसरी ( केशरिन ) ू, मृगसूदन ९ पु० । (२) वानर के आठ नाम - - वानर १, मर्कट २, २, वनौकस ३, प्लवंग ४, प्लवग ५, कीश ६, शाखामृग ७, वलीमुख ८ पु० । (३) बिल्लो के पांच नाम- बिलाल १, ओतु २ मार्जार ३, आखुभुक् (आखुभुज्) 8, वृषदशक ५ पु० । ( ४ ) स्याह । ( साही) के तीन नामशल्य १, शल्लकी २, श्वावित् (विधू) ३ पु० । (५) नाम - (शालली (बाघ से नीची, . होते हैं) के दो । ( ६ ) वृक । स्याही के रोम (जो कांटे हो स्त्री०) शलल १, शल २ नपुं० कुक्कुर से ऊंची जात वाले १ क २ कोक ३ पु० । (७) मृग हरिण २ मृग ३ पु० । 'हुरोड' के तीन नाम - ईहामृग (८) मृग के तीन विशेषके कृष्णसार ३, रेण २, रुरु ३, न्यङ्कु ४, नाम - कुरङ्ग १, नौ नाम- रङ्कु ५, शम्बर ६, Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीयकाण्डम् पशुवर्गः गोकर्णों रोहितश्चैव चमूरुश्चेति द्वादश ॥९॥ गर्वयः सममरो रामो गन्धर्बः शरभः शशः । खनकः स्यादधोगन्ता पुंध्वजो वृष उन्दुरः ॥१०॥ मूषकोऽप्याखु रुन्दुश्च गिरिका बालमूषिका । दिवान्धा दीर्घतुण्डीच गन्धास्या तुच्र्छछुन्दरी ॥११॥ मुसलो गृहगोधायां सरेंटः कृकलासकः । वृश्चिकेऽलिगुणद्रोणाः पत्रिश्येनौ शशादनः ॥१२॥ भवेत्कर्लरवः पुंसि पारावतकपोतको । कौशिको-लूक-काकारि दिवान्ध-धूक पेचकाः ॥१३॥ गोकर्ण ७, रोहित ८, चमूरु ९, पु० । (१) अलग २ जात वाले के नाम-गवय १, समर २, राम ३, गन्धर्व ४, शरभ ५, शश ६ पु० । (२) चूहों के दश नाम-खनक १, अधोगन्ता (अघोगन्त) २, पुंध्वज ३, वृष ३. उन्दुर ५, मूषक ६, आखु ७, उन्दु ८ पु०, गिरिका ९, बालभूषिका १० स्त्रो० । (३) छछंदरी के चार नाम-दिवान्धा १, दोघेतुण्डो २, गन्धास्या ३, छुच्छुन्दरी ४ स्त्री० । (४) पल्ली के दो नाम-मुसली १. गृहगोधा २ स्त्रो० । (५) सरट के दो नाम-सरट १. कृकलास २ पु० । (६) वृश्चिक (वीछी) के चार नाम-वृश्चिक१, अलि २, द्रुण ३, द्रोण ४ पु० । (७) बाज पक्षी के तीन नामपत्री (पत्रिन्) १, श्येन २, शशादन ३ पु० । (८) कबूतर के तीन नाम-कलरव १, पारावत २, कपोत ३ पु० । (९) उलूक (उल्लू) के छ नाम-कौशिक १, उलूक २, काकारि ३, दिवान्ध ४, धूक ५ पेचक ६ पु० । Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीयकाण्डम् पशुवर्मः ६. खजनः खञ्जरीटौ द्वौ चाषेश्वासः किकीदिविः । शारङ्गश्चातकः स्तोको दाव घाटे शतच्छदः ॥१४॥ 'भृङ्गे कलिङ्ग घूम्याटौ गोमय स्थानवासिनौ । कृकवाकुस्ताम्रचूडश्चरणायुध कुक्कुटौ ॥१५॥ करेटौ कर्करेटुः स्यात्करटुः कर्कराटुकः । कृर्कणे अकरः कीरे शुकः परभृते पिकः ॥१६॥ वनप्रियः कोकिलोऽपि काके ध्वांक्षश्च वायसः । बलिभुक्करटाऽरिष्ट बलिपुष्ट सकृत्प्रजाः ॥१७॥ (१) खंजन के दो नाम-खञ्जन १, खञ्जरीट २ पु० । (२) नीलकण्ठ पक्षी के तीन नाम-चाष१, चास २, किकीदिवि ३ पु० । (३) चातक पक्षी के तीन नाम- शारङ्ग १, चातक २, स्तोक ३ पु० । (४) काठ कोरा के दो नामदाघाट १, शतच्छद २ पु० । (५) भृङ्ग के तीन नाम-भृङ्ग १. कलिङ्ग २, घूम्याट ३ पु० । (६) मुरगा के चार नामकृकवाकु १, ताम्रचूड २, चरणायुध ३, कुक्कुट ४ पु० । (७) अशुभवादी पक्षी के चार नाम-करेटु १, कर्करेटु २, करटु ३, कर्कराट्रक ४ पु० । (८) अशुभ पक्षी के दो नाम-कृ कण १. क्रकर २ पु० । (९) शुग्गा (पोपट) के दो नाम-कोर १. शुक २ पु० । (१०) कोयल के चार नाम-परभृत १, पिक २, वनप्रिय ३. कोकिल ४ पु०। (११) कौआ (कागडा) के नौ नाम-काक १. ध्वांक्ष २, वायस ३, बलिभुक् ४, करट ५, अरिष्ट ६, बलिपुष्ट ७, सकृःप्रजा ८, आत्मघोष ९ पु० । Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीयकाण्डम् १४५ पशुवर्गः ६. आत्मघोषोऽथ चटकेः कलविङ्कः स्त्रियां तु सः । चका तदपत्येsपि चटकेरः पुमान् यदि ॥ १८ ॥ दाहः कालकण्ठेsपि कोकोलो द्रोणवायसः । दाक्षाय्यः कथितो गृध्रेऽथ चिल्लाssतायिनौ समौ ॥ १९ ॥ कौवे क्रुइ स्यान्दके कहः सारसे पुष्कराहयः । रथाङ्गश्चक्रवाकः स्यात् कोकश्च कुरेरेस्त्वयम् ||२०|| उत्क्रोशे मार्नेसौकास्तु चक्राङ्गो हंस उज्ज्वलन् । मालः कलहंसोऽपि कादम्बो राजहंसकः ॥२१॥ (१) चटक (ग्राम चटक) पक्षी के दो नाम - चटक १, कलविङ्क २ पु० (२) चटक के स्त्री तथा स्त्री जाति अपत्य का एक नाम - चटका १ स्त्रो० । (३) पुरुष जो अपत्य हो उसका एक नाम - चाटकेर ९ पु० । ( ४ ) धनछूहा (काली चिड़िया) के दो नाम - दात्यूह १, कालकण्ठ २ पु० । (५) काले काक के दो नाम - काकोल १, द्रोण २५० । (६) गीध के दो नाम - दाक्षाय्य: १, गृध्र २ पु० । (७) चोल के दो नाम - चिल्ल १, आतायी: ( आतायिन् ) २ पु० । (८) क्रौंच दो नाम - क्रौञ्च १, क्रुङ् (क्रुञ्च) २ पु० । (९) बक के २५० । (१०) सारस के दो नाम - सारस १, पुष्कराह्वय (पुष्कर) २ पु० । (११) चक्रवाक के तीन नाम - रथाङ्ग १, चक्रवाक २, कोक ३ पु० । (१२) पक्षीविशेष के दो नाम - कुरर १, उत्क्रोश २ पु० । (१३) हंस के तीन नाम - मानसौका ( मानसौकस् ) १, चक्राङ्ग २, हंस ३ पु० । (१४) कलहंस के चार नाम-मराल १, कलहंस २, कादम्ब ३, राजहंस ४ ये श्वेत राजहंस चोच के दो नाम - बक १, कह १० Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीयकाण्डम् पशुवः ६ रक्तोऽधि चञ्चुभिर्योऽथ मलिनो मल्लिकेक्षणः । धार्तराष्ट्रो यदा नीलो ज्ञायते लक्ष्मभिः क्रमात् ॥२२॥ लक्ष्मणा सारसस्य स्त्री हंसस्य वरटा मता । जतुकाऽजिनपत्रायां परोष्णी तैलपायिका ॥२३॥ वर्वणा मक्षिका नीला विशिष्टा मधुमक्षिका । सरघा मधुदात्रिषु पुत्तिका वा पतङ्गिका ॥२४॥ वनमक्ष्यां मतोदंशो देशी तज्जाति रल्पिका । ततोऽपि क्षुद्रदंशे तु मशो मशक इत्युभौ ॥२५॥ अन्यः शुलैशुलः कीटः खट्वाकोटस्तु मत्कुणः । चंगुलों से लाहित न होकर कृष्ण हों तो इन्हें 'मल्लिकेक्षण' तथा नील चञ्चु चरणों से 'धार्तराष्ट्र' समझना पु० । (१) सारस की स्त्री का एक नाम-लक्ष्मणा १, स्त्रा० । (२) हंस की स्त्री का एक नाम-वरटा १ स्त्री० । (३) चामचिरिया (चमगादड़) के दो नामजतुका १, अजिनपत्रा २ स्त्री० । (४) तलचिटा के दो नामपरोष्णो १, तैलपायिका २ स्त्री० । (५) मक्षिका (मक्खी) के तीन नाम-वर्वणा १, मक्षिका २, नीला ३ स्त्री० । (६) मधुमाखा के दो नाम-मधुमक्षिका १, सरधार २ स्त्री० । (७) छोटी मधुमक्षिका के दो नाम-पुत्तिका १, पतङ्गिका २ स्त्री० ।।(८) वनमक्षिका के एक नाम-दंश १ पु० । (९) छोटी वनमक्षिका के एक नाम-दंशी स्त्री० । (१०) मच्छर के दो नाम-मश १, मशक २ पु.।(११)शुलशुल का एक नाम-शुलशुल १पु० । (१२) खट्वाकीट (माकड़) का एक नाम-मत्कुण १ पु० । Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - - द्वितीयकाण्डम् १४७ पशुवर्ग:६ पतङ्गः शलभो झिल्यां चीरी झीरी च झीरुका ॥२६॥ भृङ्गो मधुकरोऽलिश्च मधुपोऽली मधुव्रतः । मधुलि भ्रमरः पुष्पलिड् द्विरेफश्च षट्पदः ॥२७॥ व्याघाटस्तु भरद्वाजे ज्योतिः खद्योत इङ्गणे । । स्त्रीलूता चोर्णनाभोणौँ तथा मर्कटकः पुमान् ॥२८॥ मेघनादानुलासी च नीलकण्ठश्च बहिणः । शिखावलो मयूरोऽपि शिस्त्री केकी भुजङ्गभुक् ॥२९॥ वहीं चाऽस्य शिखाचूडा वाणीकेका निगद्यते । नेत्राकारेषु चिह्नेषु प्रोक्तौ मेकचन्द्रकौ ॥३०॥ (१)पतिङ्गे के दो नाम- पतङ्ग १ शलभरपु०। (२) झिल्ली के चार नाम-झिल्ली १, चोरी२, झारी ३, झोरुका ४ स्त्रा० । (३) भ्रमर के ग्यारह नाम-मृङ्ग १ मधुकर २ अलि ३ मधुप ४ अलिन् ५ मघुवत ६ मधुलिट्र ७ भ्रमर (मिलिन्द) ८ पुष्पलिट् ९ द्विरेफ १० षट्पद ११ पु० । (४) भर्दुल पक्षी के दो नाम व्याघाट भरद्वाज २पु० । (५) जुगनू के तीन नाम-ज्योतिः (ज्योतिष) १ खद्योत २ इङ्गण ३ पु० । (६) मकडा के चार नाम-लूता १ स्त्री०, ऊर्णनाभ२ ऊण ३ मकेट क४ पु० । (७) मयूर के नौ नाम -मेघनादानुलासो १ नीलकण्ठ २बर्हिण ३ शिखावल ४ मयूर ५ शिखी ६ केकी ७ भुजङ्गभूक् ८ बर्हिन् ९ पु० (८) मयूर शिखा के दो नाम-शिखा १ चूड़ा २ बा० । (९) मयूर वाणी के एक नाम- केका १ स्त्री० । (१०) मयूर पाछ में जो चन्द्राकृति है उसके दो नाम --मेचक १ चन्द्रक ३ पु० । Page #161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीयकाण्डम् पशुवर्गः ६ स्याच्छिखण्डः पुमान्बई पिच्छं च स्यान्नपुंसकम् । खंगो द्विजो विहङ्गश्च विहङ्गम विहायसौ ||३१|| विहगः शकुनिः पक्षी शकुन्तिः शकुनोऽण्डजः । पतन् पत्ररथः पित्सन् नगौका नभ संगमः ॥३२॥ गरुत्मान् पतगः पत्री शकुन्तो नीडजोsपि विः । पतत्रिर्विधिक वाजी पतत्री विकिरः पुमान् ॥३३॥ विशेषाः कुक्कुभो मदगु जीर्वं जीवश्च कोरकः । हातस्तित्तिरिः कोयष्टिकष्टिट्टिभकः प्लवः ॥ ३४ ॥ लावः कारण्डवो वर्तकः पुमान् वर्तिकादयः । पक्षतिः पक्षमूलं स्त्री चोटि श्चञ्चुः स्त्रियामिमे ॥ ३५ ॥ १४८ हिन्दी - (१) मयूर पीछ के तीन नाम - शिखण्ड १ पु०, बर्ह २ पिच्छ ३ नपुं० । (२) पक्षी के सत्ताइस नाम - खग १ द्विज २ विहंगम ४ विज्ञायाः (विहायस् ) ५ विहग ६ शत्रुनि ७ पक्षी (पक्षिन् ) ८ शकुन्ति ९ शकुन १० अण्डज ११ पतन् ( पतत् ) १२ पत्ररथ १३ पित्सन् ( पित्सत् ) १४ नगौका (नगौकस् ) १५ नभसंगम १६ गरुत्मान् (गरुत्मत् ) १७ पतंग १८ पत्रो (पत्रिन्) १९ शकुन्त २० नोडज २१ वि २२ पतत्रि २३ विष्किर २४ वाजी ( वाजिन्) २५ पतत्री (पतत्रिन्) २६ विष्किर २७ पु० । (३) इन पक्षियों के मध्य प्रसिद्ध पक्षी के नाम - कुक्कुभ १ मदुगु २ जीवजीव ३ चकोरक ४ हारीत ५ तित्तिर ६ कोयष्टिक ७ टिड्डिभक ८ प्लव ९ लाव १० कारण्डव ११ वर्तक (वर्तिक) १२ पु० वर्तिका ( वर्तका) १३ शारिका १४ आदि स्त्री० । (४) पक्षियों के पक्षमूल के एक नाम -- पक्षति १ स्त्री० । (५) चोंच के दो नाम-त्रोटि १ चञ्चु (चञ्चू) २ स्त्री० । Page #162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीयकाण्डम् १४९ तनूरुहं पतत्रश्च पत्रं पक्षच्छदौ गरुत् । डयेनोड्डीनसंडीन प्रडीनानि नभोगतिः ||३६|| कोपैः कोशं स्त्रियां पेशी पेशिश्चाण्डं नपुंसके । निवासे पक्षिगेहे च कुलायो नीडमस्त्रियाम् ॥३७॥ शिशौ डिम्भोऽर्भकः पोतः शावकः पृथुकोऽपि च । युगले तु युगं युग्मं द्वैन्द्वं स्त्री पुंसयो युतौ ॥३८॥ मिथुनं च 'समूहे तु निवहो व्यूह संचयो । संघात स्तोमनिकर समुदाय चयत्रजाः ॥ ३९॥ संदोह विसरव्राता ओघः समुदयो गणः । " हिन्दी -- (१) पक्षियों के पक्ष के छ नाम- - तनूरुह १ पतत्र २ पत्र ३ नपुं०, पक्ष ४ छद ५ गरुत् ६ ५० । (२) पक्षियों के आकाश में उडने का चार नाम -डयन १ उड्डोन २ संडोन ३ प्रडीन ४ नपुं९ । (३) अंडों के पाँच नाम- -कोष १ कोश २, नपुं० पुं०, पेशी ३ पेशि ४ स्त्रो० अण्ड ५ नपुं० (४) पक्षिगृह के दो नाम –— कुलय १ पु०, नीड़ नपुं०पु० । (५) बच्चो के छ नाम - शिशु १ डिम्भ २ अक ३ पोत (पाक) ४, शावक ५ पृथुक ६ पुं० । (६) युग्न (जुगल जोड़ी) के तान नाम-युगल १ युग २ युग्म ३ नपुं० । (७) स्त्री पुरुष जोड़े के दो नाम द्वन्द्व १ मिथुन २ नपुं० । (८) समूह के बाइस नाम समूह १ निवह २ व्यूह ३ संचय ४ संघात ५ स्तोम ६ निकर ७ समुदाय ८ चय ९ व्रज १० संदोह ११ विसर १२ व्रात १३ ओघ १४ समुदय १५ गण १६ समवाय १७ वार १८ पुं० पशुवर्ग:६ ――― Page #163 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीयकाण्डम् १५० पशुवर्गः ६ समवाय स्तथा वारः संहति स्त्री नपुंसकम् ॥४०॥ निकुरम्बं कदम्ब र वृन्दं वर्गः समः स्मृतः । सजातीयैः कुलं संय सार्थो स्यातां तु जन्तुभिः॥४१॥ समैनः पशुवृन्देना तिरश्चां यूथे मस्त्रियाम् । अन्येषां तु समाजोऽथ निकायः सह धर्मिणाम् ॥४२॥ धान्यादेरुत्करः पुजराशीना कूटमखियाम् । शौकतैत्तिर मायूर कापोतादि स्वके गणे ॥४३॥ छेको वा गृह्यकागेहाऽऽसक्ता ये पक्षिणो मृगाः। ॥ इति पशुवर्गः समाप्तः॥ संहति १९ स्त्रि०, निकुरम्ब २० कदम्ब २१ वृन्द २२ नपुं० । (१)प्राणि वा अप्राणि के समूह को 'वर्ग' कहते हैं। (२) सजातीय समुदाय को 'कुल' कहते हैं नपुं.। (३) समुदाय को संघ' तथा 'सार्थ' कहते हैं पु. । (४) पशुसमुदाय को'समज' कहते हैं पु० । (५) पक्षि समुदाय को 'यूथ' कहते हैं पु.नपुं० । (६) पशु भिन्न मनुष्यदेव आदि के समुदाय को समाज' कहते हैं पु०। (७) एक धर्म वाले समुदाय को 'निकाय' कहते हैं पुं० । (८) धान्य आदि के ढेर को 'उत्कर' १ पुञ्ज२ राशि ३ पु०, कूट ४ पु० नपुं० । (९) शुक, तित्तिर, मयूर,कपोत आदि के अपने अपने समुदाय को क्रमशः- शोक, तैत्तिर, मायूर, कापोत आदि कहते हैं नपुं० । (१०) जिन पशु पक्षियों को मनुध्यों के घर में रहने का अभ्यास (आसक्ति) है उन उन मृगपक्षियों को 'छेक' और 'गृह्यक' कहते हैं पु० । !.०॥ इति पशुवर्ग समाप्त ।।००॥ Page #164 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीयकाण्डम् फ १५१ ॥ अथ मानववर्गः प्रारभ्यते ॥ मानेवो मनुजो मत्यों मनुष्यो मानुषो नरः । ना पुमान् पुरुषः किश्च पुरुषोऽथाऽवला वधूः ॥१॥ नारी सीमन्तिनी योषा योषित् स्त्री बनिता तथा । स्याद्वामा महिलै तस्याः प्रभेदा भीरुरङ्गना || २ ॥ कामिनी ललना कान्ता मानिनी वामलोचना | प्रमदा रमणी रामा सुन्दरी च नितम्बिनी || ३ || उत्तमा तु वरारोहा या प्रोक्ता वरवर्णिनी । मत्तकाशिन्यपि स्यात्सा भामिनी कोपने सम || ४ || "महिषी साभिषेका स्याद् राज्ञोऽन्या 'भोगिनीमता । हिन्दी - (१) मनुष्य के दश नाम मानव १ मनुज२ मर्त्य ३ मनुष्य ४ मानुष ५ नर ६ ना (नृ) ७ पुमान् (पुंस् ) ८ पुरुष ९ पुरुष १० पुं० । (२) स्त्री के बाइस नाम - अबला १ वधू २ नारो ३ सीमन्तिनी ४ योषा ५ योषित् ६ स्त्री ७ बनिता ८ बामा ९ महिला १० भीरु ११ अङ्गना १२ कामिनी १३ ललना १४ मानववर्गः ७ कान्ता १५ मानिनी १६ वामलोचना १७ प्रमदा १९८ रमणी १९ रामा २० सुन्दरी २१ नितम्बिनी २२ श्री० । (३) उत्तम स्त्री के चार नाम - उत्तमा १ वरारोहा २ वरवर्णिनी ३ मत्तकाशिनी ४ स्त्री० । (४) क्रोधवतो के दो नाम - भामिनी १ कोपना २ खो० । (५) जिसके साथ राजा राज्याभिषेक करे उस स्त्री का एक नाम महिषी १ त्रो० । (६) अन्य राजपत्नियों का एक नाम - भोगिनी १ स्त्री० Page #165 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - - द्वितीयकाण्डम् नीयकाण्डम् १२ मानववर्गः ७ 'अध्यूढा चाधिविन्ना च कृतसापत्निका तु या ॥५॥ पत्नी पाणिगृहीती स्याद द्वितीया सहधर्मिणी । जाया भार्या बहुत्वे तु पुंसि दारीः कुटुम्बिनी ॥६॥ पुरन्ध्यूथ सती साध्वी सुचरित्रा पतिव्रता । स्वयंवरा तु वर्यास्यात् सैव प्रोक्ता पतिंवरा ॥७॥ "कुलजा कुलसंपन्ना कुलस्त्री कुलपालिका । कुमारी दारिका कत्या दुहिता च समा इमाः॥८॥ तरुणी युवतिः प्रोक्ता स्नुषायां तु जैनी वधूः। (१) अनेक भार्यावालों के प्रथम परिगृहीता के तीन नामअध्यूढा १ अधिविन्ना २ कृतसापत्निका (कृत सपत्निका, कृतसपत्नका)३ स्त्रो० । (२) नीति के साथ जिस स्त्री से विवाह हो उस स्त्री के दो नाम-पत्नि१ पाणिगृहोतो२ स्त्रो० । (३) दूसरे स्त्री के तीन नाम- सहधर्मिणी १ जाया २ भार्या ३ स्त्रो० । (४) 'दारा' नित्य पुलिङ्ग हैं और बहुवचनांत है । (५) पति पुत्रादि संयुक्त ली के दो नाम- कुटुम्बिनो १ पुरन्ध्री (पुरन्घ्रि) २ स्त्री० । (६) सुचरित्रा स्त्री के चार नाम- सती १ साध्वो २ सुचरित्रा ३ पतिव्रता ४ स्त्री० । (७) जो स्वयं पति को चुनले उसके तीन नाम- स्वयंवरा १ वर्या २ पतिवरा ३ स्त्रो० । (८) कुलाङ्गना के चार नाम कुलजा १ कुलसंपन्ना २ कुलस्त्री ३ कुलपालिका ४ स्त्री० । (९) कन्या के चार नाम-कुमारी १ दारिका २ कन्या ३ दुहिता ४ स्त्री० । (१०)तरुण अवस्थावाली स्त्री के दो नाम-तरुणि१ युवति (युवती) २ स्त्री० । (११) पुत्रवधू के दो नाम-जनी १ वधू २ स्त्रो। Page #166 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - - - - द्वितीयकाण्डम् १५३ मानववर्गः ७ सुवासिनी चिरण्टी स्यात्पार्श्वस्था प्रतिवेशिनी ॥९॥ पुंश्चली पांशुला स्वैरिण्यसती कुलटोच्यते । "विश्वस्ता विधवा रण्डा वीरा स्वामि सुतान्विता ॥१०॥ पतिवत्नी सनाथा स्या पलिँकी जरती मता। किञ्चिद्विज्ञा भवेत् प्राज्ञी प्राज्ञा तुत्कृष्ट धी युता ॥११॥ जातिः शूद्रस्य शूद्री स्याद् भार्या "शुद्री प्रकीर्तिता। स्यादाभीरी गोपपत्नी पोटौं श्मश्नादि चिहिनी ॥१२॥ उपाध्याय्यप्युपाध्याया स्वयं विधोपदेशिका । (१) विवाहिता के दो नाम-- सुवासिनी १ चिरण्टी २ स्त्री० ! (२) पडोस के स्त्रो के दो नाम- पार्श्वस्था १ प्रतिवेशिनी २ स्त्री०। (३) कुलटा के पांच नाम- पुश्चलो १ पांशुला २ स्वैरिणी ३ अपती ४ कुलटा ५ स्त्री०। (४) विधवा के तीन नाम-- विश्वस्ता १ विधवा रण्डा ३ स्त्री० । (५) पतिपुत्र संयुक्ता का एक नाम- वीरा १ स्त्री० । (६) गर्भिणी जीवद्भर्तृका का एक नाम-पतिवत्नी (अन्तर्वत्नी) १ स्त्री०। (७) वृद्धा के दो नाम-पलिनो १ जरती २ स्त्रो० 1(८) किञ्चित् विज्ञ स्त्री का एक नाम प्राज्ञो १ स्त्री०। (९) उत्कृष्ट बुद्धिमती का एक नाम-प्राज्ञा १ स्त्री० । (१०) शूद के जाति का एक नाम-शूद्रा १स्त्री०। (११)शूद्रपत्नी का एक नाम-शूद्री१ स्त्री० । (१२) अहोर पत्नो के दो नाम-आभोरी १ गोपपत्नी २ स्त्री० । (१३) जिस स्त्री को दाढी मुंछ निकले उसका एक नामपोटा १ स्त्री० । (१४) विद्योपदेशिका के दो नाम-उपाध्यायी १ उपाध्याया (उपाध्याय पत्नी को उपाध्यायानो, उपाध्यायी भी कहते हैं)२ स्त्री। Page #167 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीयकाण्डम् १५४ मानववर्गः . आचार्याणी तु पुंयोगाद् आचार्या विदुषी स्वयम् ॥१३॥ अर्याण्यर्या जातिमात्रे क्षत्रिया क्षत्रियाण्यपि । जातापत्या प्रसता च प्रयाता च प्रसूतिका ॥१४॥ कोटवी नग्निका नग्ना वीरमातरि वीरसूः। वीरपत्नी भवेद् वीर-भार्या दृर्तिस्तु दृतिका ॥१५॥ साऽसिक्नीयाऽवरोधस्तथा युवती दूतिकापदे । स्ववशा परमेश्मस्तथा सरन्ध्री शिल्पकारका ॥१६॥ वेश्या वाराङ्गना रूपा जीवा च गणिका जनैः। (१) आचार्य पत्नी अर्थ में 'आचार्याणी' और स्वयं विदुषी को 'आचार्या' कहा जाता है स्त्री० । (२) वैश्यपत्नी अर्थ में 'अर्थी' और जाति मात्र में 'अर्याणी, अर्या' स्त्री० । (३) क्षत्रिय जाति अर्थ में 'क्षत्रिया' और क्षत्रिय पत्नी अर्थ में 'क्षत्रियी' को । (१) प्रसूतिका खी के चार नाम जातापत्या १ प्रसूना २ प्रयाता ३ प्रसूतिका ४ खो० । (५) नग्न खी के तीन नाम-छोटवा १ नग्निका २ नग्ना ३ नो । (६) वोरमाता के दो नाम-बोरमाता १ वीरसू २ स्त्रो०। (७) वीरपत्नी के दो नाम-वीरपत्नी १ वीरभार्या स्त्री० । (८) दूती के दो नाम-दूति (दूनी) १ दुतेका २ स्त्री० । (९) राजमहल में जो युवती दूती है उसका एक नाम-मसिनो १ स्त्री० । (१०) शिल्पकला निपुण स्त्री का एक नाम-सैरन्ध्र) (सैरिन्ध्री) १ स्त्री० । (११) वेश्या के चार नाम-वेश्या ? वाराङ्गना २ रूपाजीवा ३ गणिका ४ स्त्री० । Page #168 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीयकाण्डम् १५५ मानववर्गः ७ सत्कृता वारमुख्यास्याद् शम्भैली कुट्टनी समे ॥१७॥ आत्रेयो मलिनी पुष्पवत्य वि ऋतुमत्यपि । रजस्वला तथोदक्या स्त्री धर्मिण्या मथोर जः ॥१८॥ पुष्पमार्तव मेतस्माद् श्रद्वालु दोहदाथिनी । 'गर्भिण्यापन्न सत्त्वायामन्तर्वत्नी च गुविणी ॥१९॥ निष्कला विगताऽऽतीयां गणिकादेस्तु संहतौ । गाणिक्य गर्भिकं तद्वद् यौवतं च नपुंसकम् ॥२०॥ सौभागिनेय आख्यातः सुभगायाः परस्त्रियाः । (१) जिस गणिका को जनता सत्कार दे उसका एक नाम-वारमुख्या १ स्त्रो० । (२) कुहनी के दो नाम-सम्भलो (शम्भली) १ कुटनी २ स्त्रो० । (३) रजस्वला के आठ नामआत्रेयीं १ मलिनी २ पुष्पवती ३ अवि (मवी) ४ ऋतुमतो ५ रजस्वला ६ उदक्या ७ स्त्रोधर्मिणी ८ स्त्री० । (४) नो ऋतु के तीन नाम-रजस् १ पुष्प २ आर्तव ३ नपुं० । (५) सन्तानार्थिनो के दो नाम-श्रद्धालु १ दोहदार्थि मी२ स्त्रो० । (६) गर्भवती के चार नाम-गर्भिणी १ आपनसत्वा २ अन्तर्वली ३ गुर्विणो ४ स्त्री० । (७) जिसके ऋतुकाल बोत गये उसके दो नाम-निष्कला १ विगताती २ स्त्रो० । (८) गणिका १ गर्भिणी ५ युवतो ३ समूहों के पृथक् पृथक् एक एक नामगाणिक्य १ गार्भिक २ यौवत ३ नपुं० । (९) भाग्यवती के पुत्र का एक नाम-सोभागिनेय १ पु० । Page #169 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५६ द्वितीयकाण्डम् मानववर्गः ७ पारेरणेय एवं य. कानीनोऽनूढ कन्यका ॥२१॥ तस्याः सुतो विमातुस्तु वमात्रेयः पितृष्वसुः । पैतृष्वस्रय पैतृष्य स्त्रीयौ मातृष्वमुस्तथा ॥२२॥ भवेदान्धकिनेयोऽपि कौलटेरश्च बन्धुलः । कौलटेय सुतेऽसत्याः अपि चेद् भिक्षुकी सती ॥२३॥ तस्याः कौलटिनेयः स्यात्कौलटेयः स्वआत्मजः। आत्मजन्मा सुतः सुनुः पुत्रस्तनय आत्मजान् ॥२४॥ प्राहु दुहितं स्त्रीत्वे तोकाऽपत्ये तयोः समे। स्वस्माज्जातः सवर्णाया मुरैस्यः स्यात्तथोरसः ॥२५॥ (१) परस्त्री पुत्र का एक नाम-पारस्त्रेणेय १ पु० । (२) अनूढा कन्या के पुत्र का एक नाम-कानीन १ पु० । (३) अपरमाता के पुत्र का एक नाम-वैमात्रेय १ पु० । (४) पिता के भगिनों के पुत्र के दो नाम-पैतृष्वज्ञेय १, पैतृष्वस्रोय २ पु० । (५) मासी के पुत्र के दो नाम-मातृष्वनय १, मातृष्वस्रोयरपु० । (६) कुलटा के पुत्र के चार नाम-बान्धकिनेय १, कोलटेर २, बन्धुल ३, कौलटेय ४ पु. । (७) भिक्षुकी जो पतिव्रता हो उसके दो नाम-कोलटिनेय १. कौलटेय २पु. । (८) पुत्र के पांच नामआत्मजन्मा (आत्मजन्मन् ) १, सुत २, सुनु ३, पुत्र ४, तनय ५ पु० इनके स्त्रीलिङ्ग रूप में आत्मजा १, आत्मजन्मा २, सुता ३, सूनु४, पुत्रो५, दुहिता ६, तनया ७ ए रूप होंगे। (९) पुत्र पुत्री दोनों के बोधक के दो नाम तोक १, अपत्य २,नपुं. । (१०) अपने से सवर्णा स्त्री में हुए पुत्र के दो नाम--उरस्य १, औरस २ पु.। Page #170 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितोयकाण्डम् १५७ मानववर्ग:७ तातः पिता च जनके माता तु जननी प्रमः। जनयित्री ननन्दा स्याद्भर्तुः स्वस्य तु या स्वैसा ॥२६॥ भगिनी पुत्र पुत्री तु पौत्री नप्त्री सुता मुता। मातुली मातुलानो स्याद्भाति॒र्जाया प्रजावती ॥२७॥ यातरो भ्रातृवर्गस्य भार्याः स्युस्तु परस्परम् । दम्पत्योर्जननीश्वयु जनकः श्वशुरो मिथः ॥२८॥ पत्नीभ्राता भवेच्छयोलः स्वामिभ्राता तु देवरः। स्यात्पितृव्यः पितृोता मातुरेष च मातुलः ॥२९॥ हिन्दी-(१) पिता के तीन नाम-तात १, पिता २, जनक ३ पु० । (२) माता के तीन नाम-जननो १, प्रसु २, जनयित्री ३ स्त्री० । (३) पति के भगिनों (बहन) का एक नाम-ननन्दा (ननान्दा, ननान्द)१ स्त्री० । (४) बहन के दो नाम-स्वसा(स्वस) १, भगिनी २ स्त्रो० । (५) पुत्र के पुत्रो का एक नाम-पौत्री १ स्त्रो० । (६) लड़की के लड़की का एक नाम-नप्त्री १ स्त्री० । (७) मामा के पत्नो के दो नाम-मातुली १, मातुलानी२ स्त्री. । (८) भ्रातृपत्नी (भाभी) के दो नाम-भ्रातृजाया १, प्रजावती २ स्त्री० । (९) भ्रातृवर्गों को पत्नी एक दूसरे को 'याता (यात) कहती हैं स्त्री० । (१०) पति पत्नी के पत्नी पति के माता को 'श्वश्रु' कहते हैं स्त्री० । (११) पिता को 'श्वशुर' कहते हैं पु०॥ (१२) पत्नी के भाई का एक नाम --श्याल १ पु० । (१३) पति के छोटे भाई का एक नाम-देवर १ पु. । (१४) पिता के भाई का एक नाम-पितृव्य १ पु० । (१५) माता के भाई का एक नाम-मातुल १ पु० । | Page #171 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५८ द्वितीयकाण्डम् मानववर्गः ७ जामाता कन्यका कान्तो भागिनेयः स्वसुः सुतः। मातामहो मातृतातः पित्तातः पितामहः ॥३०॥ प्रमातामह आख्यातः पिता मातामहस्य यः । पिता पितामहस्य स्यात्प्रपितामह नामवान् ॥३१॥ उभयोः पितरोवृद्ध विशेषणविशेषितौ । सनाभिस्तु सपिण्डः स्याब्दन्धु संघस्तु बन्धुता ॥३२॥ संगोत्रे बान्धवोबन्धु तिः स्वः स्वजनोऽपि च । सहो देरे सगर्व्यः स्यात्सोदर्यः सहजस्तथा ॥३३॥ . (१) कन्या के पति का एक नाम-जामाता (जामात) १ पु० । (२) बहन के पुत्र का एक नाम-भागिनेय १ पु० । (३) माता के पिता का एक नाम-मातामह १ पु० । (४) पिता के पिता का एक नाम-पितामह १ पु०। (५) मातामह के पिता का एक नाम-प्रमातामह १ पु. । (६) पितामह के पिता का एक नाम-प्रपितामह १ पु. । (७) प्रमातामह के पिता का एक नाम-वृद्धप्रमातामह १ पु० , प्रपितामह के पिता का एक नाम--वृद्धप्रपितामह १ पु० । (८) सात पोढो के मध्यवालो के दो नाम--सनाभि १, सपिण्ड २ पु० । (९) बन्धुसमुदाय का एक नाम-बन्धुता १ स्त्री० । (१०) समान गोत्र वालों के छ नाम--सगोत्र १, बान्धव २, बन्धु ३, स्व ४, स्वजन ५, ज्ञाति ६ स्त्री० । (११) सगे भाई के पांच नाम--सहोदर १, सगh २, सोदर्य ३, सहज ४ पु० । Page #172 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीयकाण्डम् १५९ मानववर्गः ७ उपभर्तरिजारः स्यात् पैत्यो भर्ता प्रियो धवः । जारजो गोलकः पत्यौ मृते कुण्डैस्तु जीविते ॥ ३४ ॥ भ्रात्रीयो भ्रातृजो भ्रातृ-पुत्रे भ्रातृव्य इत्यपि । जंपती दंपतो जाया पती स्त्री पुरुषावुभौ ॥३५॥ गर्भाशयो जरायु द्वै गर्भवेष्टन चर्मणः । कुक्षिस्थस्य भवेदुद्भ्रूणों गर्भे वैजनेनस्तु यः ॥ ३६ ॥ सूतिमासस्तृतीयस्तु शण्डेः क्लीबो नपुंसकः । प्रकृति स्थाविरं वृद्ध संघोऽपि स्याच्च वार्धकम् ||३७|| (१) जार के दो नाम उपभर्त्ता ( उपपति) १, जार २ पु० । (२) पति के नार नाम - पति १, भर्त्ता (भर्तृ) २, प्रिय ३, धव ४ पु० । (३) पति के मर जाने पर जारज पुत्र का एक नाम -- गोलक १ पु० । (४) पति के सत्ता में जारज पुत्र को ' कुण्ड' कहते हैं पु० । (५) भाई के पुत्र के चार नाम - भ्रात्रीय १, भ्रातृज २, भ्रातृपुत्र ३, भ्रातृव्य ४ पु० । (६) जोड़े स्त्री पुरुष के तीन नाम - जंपतो १, दंपता २ जायापती ३ पु० । (७) गर्भवेष्टन चर्मकोथलो के दो नाम - गर्भाशय ९ जरायु २ पुं० । (८) गर्भ के दो नाम - भ्रूण गर्भ २ पुं० । ( ९ ) प्रसव महिने का एक नाम - बैजनन १ पुं० । (१०) नपुंसक के तीन नामशण्ड (शण्ढे, पण्ड ) १ क्लीब २ नपुंसक ३ पुं० । (११) वृद्धों के भाव तथा कर्म के दो नाम - स्थाविर १ वार्धक २ नपुं., वार्धक शब्द का प्रयोग वृद्ध संघ में भी होता है । १ Page #173 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीयकाण्डम् १६० मानववर्गः ७ शिरोजातस्य पलितं शुक्लता विस्रसाजरा । डिम्भोत्तानशया बाला स्तनपाऽपि स्तनन्धयी ॥३८॥ बाले माणवकोहार भेदे कुपुरुषेऽपि च । स्थेविरे प्रवया वृद्धो वयःस्थे तरुणो युवा ॥३९॥ अतिवृद्ध द्वयोज्यायान् ज्येष्ठेस्तः पूर्वनाऽग्रजी । यविष्ठश्चे कनिष्ठश्च जघन्येऽवरजाऽनुजौ ॥४०॥ वलिनो वलिभद्रश्च जरसाश्लथ चर्मणि । "मुकेशो केशिकः केशी हूस्वै खर्वी तु वामनः ॥४१॥ (१) शिर के वाल पक जाने का एक नाम-पलित १ नपुं० । (२) वृद्धावस्था के दो नाम-विनसा १ जरा २ स्त्रो० । (३) बालक के पांच नाम-डिम्भ १ उत्तानशय २ बाल ३ स्तनप ४ स्तनन्धयी ५ पुं०। (४) बाल अर्थ में 'माणवक' शब्द का प्रयोग होता है, हारभेद में तथा 'कुपुरुष' में भो पुं० । (५) वृद्ध के तीन नाम-स्थविर १ प्रवया (प्रवयस्) २ वृद्ध (जीनजरन् जीर्ण) ३ पुं० । (६) युवा पुरुष के तीन नाम-वयस्थ १ तरुण २ युवा(युवन्) ३ पुं० । (७) अतिवृद्ध तथा ज्येष्ठ अर्थ में 'ज्यायान्' होता है पु० । (८) ज्येष्ठ अर्थ में 'पूर्वज, अग्रज' का प्रयोग होता है पु० । (९) छोटे भाई के चार नाम-यविष्ठ १ कनिष्ठ २ अवरज ३ अनुज४ पु० । (१०) वृद्धावस्था के कारण संकुचित चमड़े के दो नाम-वलिन १ वलिभद्र २ पु०। (११) सुन्दर केशवालों के तीन नाम-सुकेश १ केशिक २ केशी (केशिन्) ३ पु० । (१२) वामन के तीन नाम- हस्व १ खर्व २ वामन ३ पु०। Page #174 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - द्वितीयकाण्डम् मानववर्ग: अवैभ्रटोऽवटीटोऽवनाटो यो नतनासिकः। न्यूनाङ्गे स्यादपोगण्डः खरणा स्तीक्ष्णनासिकः ॥४२॥ दुर्बलाऽमासलौ तुल्यौ बलिन्यसलमासली । स ः संहतजानुः स्यात्प्रजु विरल जानुक्कः ॥४३॥ स्यात्कृतनासिको विग्रः खुरेणाः स्थूलनासिकः। एकाक्षे कननः काणः केकरो वलिरस्तथा ॥४४॥ स्यादे'डो बधिरे कब्जे न्युब्जो गड्डल इत्युभौ । रोगाथै दैषिते हस्ते कुँणि मुण्डैस्तु मुण्डिते ॥४५॥ (१) चिपटी नाक वालों के चार नाम-अवभ्रट १ अवटीट २ अवनाट ६ नतनासिक ४ पु० । (२) स्वाभाविक न्यूनाधिक : अङ्ग वालों का एक नाम-अपोगण्ड (पोगण्ड, विकलाङ्ग) १ पु० । (३) तोखो नाकवाले का एक नाम-खरण (खरणसू) १ पु० । (४) दुबळे के दो नाम-दुर्बल १ अमांसल २ पुं० । (५) बलवान् के दो नाम-अंसल १ मांसल २ पुं०। (६) सटी हुई जंघावालों के एक नाम-संजु १ पुं०। (७) अलग २ जंघावाले के एक नाम-प्रक्षु १ पु० । (८) कटी नाकवाले का एक नाम-विग्र १ पु० । (१२) मोटो नाकवाले का एक नाम-खुरणा (खुरण स्) १ पु० । (१०) एक आंख वाले के पांच नाम-एकाक्ष १ कनन २ काण ३ केकर ४ बलिरे ५ पु०। (११) बहिरे के दो नाम-एड १ बधिर २ पु० । (१२) कुबडे के तोन नाम-कुब्ज १ न्युज २ गड्डुल ३ पु० । (१३) रोगादि से जिनके हाथ विगडे हैं एक नाम-कुणि १ पु० । (१४) खण्डित केशवाले का एक नाम-मुण्ड १ पु० । Page #175 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीयकाण्डम् .. १६२ मानववर्गः ७ स्यातां खेज खोणा वृस्तृयजानुके । पशुः श्रोणश्च निर्जले त्रिष्वेते पलितात्परे ॥४६॥ देहोऽस्त्री विग्रहःकायः पुंसि मूर्तिस्तनुः स्त्रियाम् । शरीर वर्म गात्राणि वपुः क्लीबं कलेवरम् ॥४७॥ समाः परिणयोद्वाह विवाहोपयमास्तथा । पाणीपीडनमानन्दपटस्तूढाम्बरे नवे ॥४८॥ छत्रामिषिः स्त्री मौलित्रे स्याद्वरः परिणेतरि । ज्येष्ठेऽनूढे कृतोद्वाहः परिवेत्ताऽनुजः स्मृतः ॥४९॥ (१) अकड गये पाँव वाले के तीन नाम-स्वञ्ज १ खोर २ खोण ३ पु० । (२) ऊंची जङ्घावाले का एक नाम-ऊवं क्षु(ऊर्ध्वजानुक) १ पु० । (३) वृद्धावस्था के विना जचाहीनके तीन नाम-पशु १ श्रोण २ निर्जङ्घ ३ त्रिलिङ्ग । (४) शरीर के दश नाम-देह १ पु० नपुं०, विग्रह २ काय ३ पु०, मूर्ति ४ तनु (तनू) ५ स्त्री०, शरीर ६ वर्म ७ गात्र ८ वा ९ (वपुषु) कलेवर १० नपुं० । (५) विवाह के पांच नाम-परिणय १ उद्वाह २ विवाह ३ उपयम ४ पाणोपडन ५ नपुं० । (६) वैवाहिक वस्त्र का एक नाम-आनन्दपट १ पु० । (७) वरराजा के मौर के दो नाम-छत्रामिषि १ स्त्रि० मौलित्र २ नपुं० । (८) परिणेता के दो नाम-वर १ परि णेता (परिणेतृ) २पु० । (९) ज्येष्ठ भाइ अविवाहित रहते हुए यदि छोटे भाइ विवाहित हो तो उस छोटे भाइ का नाम-परिवेत्ता (परिवेतृ) १ स्त्रो० । Page #176 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६३ द्वितीय काण्डम् मानववर्गः ७ तज्ज्येष्ठः 'परिवित्तिः स्याद् व्यवायः पुंसि मैथुनम् । तिलकस्तिलचिन्हे स्याज्जडुले पिप्लु कालकौ ॥५० चिकित्सा रुकप्रतीकारः आरोग्याऽनामये समे । औपंधं भेषजं किञ्च भैषज्य मगदः पुमान् ॥५१॥ व्यायामयगदाः रोगो-पतापी रुजा स्त्रियाम् । यक्ष्मा शोषः क्षवो राज-रोगाः "स्त्रीक्षुत् क्षवः क्षुतम् ॥ पीनैसः स्यात्प्रतिश्यायः पादैस्फोटे विपादिका । (१) छोटे विवाहित हो बड़े भाइ के रहते हुए तो बड़े भाइ का नाम--परिवित्ति १पु. (२) मैथुन के दो नाम व्यवाय १ पु मैथुन २ नपुं. (३) शरीर में तिल जैसी कालिमा का एक नाम तिलक १ पु. (४) शरीर शामिका (लहसन) के तोन नाम जडुल १ पिप्लु २ कालक ३ पु. । (५) रोगनिवारंग प्रक्रिया के दो नाम-चिकित्सा १ स्त्री०, रुक्तीप्रकार २ नपुं । (६) नोरोगिता के दो नाम-आरोग्य १, अनामय २ नपुं० । (७) औषध १, मेषज २, भैषज्य ३ नपुं०, अगद ४ पु० । (८) रोग के सात नाम-व्याधि १, आमय २, गद ३, रोग ४, उप्रताप ५ पु०, रुक (रुजू) ६, रुजा ७ स्त्रो० । (९) राजरोग के तीन नाम-यदना १ (यदमन्), शोष २, क्षव ३, पु. । (१०) छिक्का के तीन नाम-क्षुत् १ बी०, क्षव २ पु०, क्षुत २ नपुं० । (११) नासा रोग के दो नाम-पीनस १, प्रतिश्याय २ पु० । (१२) चरण (पैरो) के किनारे का फटना उस के दो नाम-पादस्फोट १ पु०, विपादिका २ स्त्रो० । Page #177 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीयकाण्डम् १६४ मानववर्गः ७ खर्जूः कण्डूश्च कण्डूया शोफे शोथौ समावुभौ ॥ ५३ ॥ पुसि स्यात्क्षवैथुः कासः कच्छू पामा विचर्चिका । पिटकैश्चापि विस्फोट स्त्रिषु सिध्मं किलासकम् ||५४ || त्वक्पुष्पी चित्रकुष्ठे द्वे कोठो मण्डलकं पृथक् । त्रेणोऽस्त्री-म-मरुः क्लीब मनाडीव्रणः पुमान् ॥ ५५ ॥ वैमिः प्रच्छर्दिकावन्ति र्मूत्रकृच्छेऽश्मरी” स्त्रियाम् । मूत्राघाते निबन्धो ना ग्रहणीतु प्रवाहिका ॥५६॥ सोलित्य रोगे शेशन स्तापैरोगे ज्वरः पुमान् । - (१) खुजलाहट के तीन नाम- खर्ज १, कण्डू२, कण्डूया ३ स्त्री० । (२) शोथ रोग के दो नाम - शोफ १, सोथ २ पु० । (३) कास रोग के दो नाम-क्षवथु ९, कास २५० । (४) खुजली अथवा दिनाय के तीन नाम - कच्छू १, पामा २, विचर्चिका २ स्त्री० । ( ५ ) फोड़ा के दो नाम-पिटक १, विस्फोट २ त्रिलिङ्ग । (६) सिहुली के तीन नाम - सिध्म १, किलासक २ नपुं०, त्वक्पुष्पी ३ स्त्री० । (७) श्वेत कुष्ठ के दो नाम श्वित्र १, कुष्ठ २ नपुं० । (८) मण्डलाकृति कोढ के दो नाम - कोठ १ पु०, मण्डलक २ नपुं० । ( ९ ) व्रण के तीन नाम - व्रण १ पु०नपुं., ईर्म २ अरु ३ नपुं० । (१०) जिससे विकार प्रवाहित हो उस व्रण को 'नाडीव्रण' कहते है पु० । (११) वमन होने के तीन नाम वमि १, प्रच्छर्दिका २, वान्ति ३ स्त्री० । (१२) बहुमूत्र के दोनाम - मूत्रकृच्छ १ नपुं., अश्मरी २ स्त्रो० । (१३) मूत्राघात के दो नाम - मूत्राघात १ निबन्ध २ पु० । (१४) संग्रहणी के दो नाम - ग्रहणी १, प्रवाहिका २ स्त्रो० । (१५) साहित्यरोग जिससे बाल उड़ जाते हैं उसके दो नाम - सालित्य १, केशन २ पु० । (१६) ज्वर के दो नाम - ताप १, ज्वर २ पु० , ― Page #178 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीयकाण्डम् १६५ मानववर्गः ७ प्रमेहे स् मूत्रमेह मधुमेहादयो भिदाः ॥५७॥ अर्शो दुर्नामक क्लीवं महामाया विसूचिका । भगन्दरादयोऽप्येवं व्याधिभेदा उदाहृताः ॥ ५८ ॥ आतुरो व्याधितो रोगी स्यादुल्लायैस्तु निर्गदः । भिषैग वैद्याऽगदंकार रोगहारि चिकित्सकाः ॥ ५९ ॥ चिल्लो विल्लश्च पिल्लश्च क्लिन्ने नेत्रे च तद्वति । अतिसारोऽप्यतीसारी वातरोगी तु वातेंकी ॥६०॥ अन्धो नेत्रविहीनः स्यादुन्में तोन्मादिनौ समौ । (१) प्रमेह के दो नाम - मूत्रमेह १, मधुमेह २ पु० । (२) मसा के दो नाम - अर्शम् १, दुर्नामक २ नपुं. । (३) महामारी के दो नाम - महामारो १, विसूचिका २ स्त्रो० । (४) रोग विशेष के एक नाम - भगन्दर १ पु० । (५) रोगी के तीन नाम - आतुर १, व्याधित २, रोगो ( रोगिन् ) ३ पु० । (६) रोग निर्मुक होने के दो नाम-उल्लाघ १, निर्गद २ पु० । (७) वैद्य के पांच नाम - भिषक् (भिषजु) १, वैद्य २, अगदङ्कार ३, रोगहारी (रोगहारिन् ) ४, चिकित्सक ५ पु० । (८) पानी भरे हुए नेत्र के और ऐसे नेत्रवालों के तीन नाम - चिल्ल १, विल्ल २, पिल्ल ३ पु० । (९) दस्त रोग रोगी का एक नाम - अतिसार अतोसारो (अतोसारिन्) पु० । (१०) वात रोग रोगीका एक नाम - वातकी (वातकोन्) १ पु० । (११) नेत्रहीन के दो नाम - अन्ध १, नेत्रविहीन २ पु० । (१२) पागल के दो नाम - उन्मत्त १, उन्मादी (उन्मादिन् ) २ पु० । Page #179 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीयकाण्डम् १६६ मानववर्गः ७ मूच्छेलो मूच्छिते न्युजो भुग्ने शोषिणि तु क्षयी॥६१॥ खल्वाटे खलतिया॑धे वृद्धनाभौ च तुन्दिलः । श्लेष्मा कफः श्लेष्मलस्तु श्लेष्मणः कफिनि स्मृतः॥६२॥ सर्कुष्ठ कुष्ठिनौ तुल्यौ त्रिलिङया मातुरादयः । दद्रेणोऽमुग्धेरा चर्म तरलं पिशिताऽमिषे ॥६॥ मांसं क्रव्यं च पललं "शोणिते रुधिराऽमृनौ । क्षतजं लोहितं रक्त मस्र मश्रुणि लोहिते ॥६४॥ (१) मूच्छित के दो नाम-मूर्च्छल १, मूच्छित २ पु० (२) रोग से कुबड़ हुए के दो नाम-न्युब्ज (कुब्ज) १, भुग्न २ पु० । (३) क्षयरोगी के दो नाम-शोषी १, क्षय (इन् ) २ पु० । (४) जिनके शिर से विना रोग के बाल उड़ गये हैं उनके दो नाम-खल्वाट १ पु., स्वलति २ स्त्री० । (५) बड़े पेट वाले के एक नाम-तुन्दिल १ पु० । (६) कफ के दो नाम-श्लेष्मा (श्लेष्मन् ) १, कफ २ पु० । (७) कफवाले के तीन नामश्लेष्मल १, श्लेष्मण २, कफी (कफिन्) ३ पु०। (८) कुष्टरोगी के दो नाम-सकुष्ठ १, कुष्ठी (कुष्ठिन्) २ पु० । आतुरादि स्त्रिलिङ्ग हैं (९) रोग विशेष (दिनाय) वाले का एक नामदद्रुण १ पु. । (१०) चमड़े के दो नाम-असृग्धरा १ स्त्री०, चर्म (चर्मन्) २ नपुं० । (११) मांस के छ नाम-तरल १, पिशित २, आमिष ३, मांस ४, क्रव्य ५, पलल ६ नपुं। (१२) शोणित के सात नाम-शोणित १, रुधिर २, असृक् (असृज) ३, क्षतज ४, लोहित ५, रक्त ५, अस्र ७ नपुं० 'अन' अश्रु लोहित अर्थ में भी है। Page #180 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीयकाण्डम् १६७ मानववर्गः ७ ghrsग्रमांस स्त्री गुल्मैः प्लीहामेदो' बसावया । मायुः पुंसि भवेत्पत्तं स्नायुस्तु वस्नसा स्त्रियाम् ||६५|| कालखण्डं कुल्लीने तिलकं क्लोम फुप्फुसे । गोर्द गोर्दै च मस्तिष्कं क्लीबे किट्टे मलोऽस्त्रियाम् ॥ ६६ ॥ क्लोबे पुंरी तदन्त्रे च लीला तु स्यन्दिनी स्त्रियाम् । स्यात्पषं श्रोत्रमलं सिंघणं नासिकामलम् ॥६७॥ दूषिका स्त्रीनेत्रमलं कुल्य कीकसमस्थिनि । 3 (१) हृदय के बीच के मांस के दो नाम - बुक्का १ स्त्री०, अग्रमांस २ नपुं. पु० । (२) प्लीहा के दो नाम - गुल्म १, प्लीहा (प्लोहन्) २ पु० । (३) चरबी के तीन नाम-मेद (अकारान्त ) १ पु०, वसार, वपा ३, खा. सान्त मेदस् नपुं० । (४) पित्त के दो नाम मायु १ पु०, पित्त २ नपुं. (५) अङ्ग प्रत्यङ्ग सन्धि बन्धन के दो नाम - स्नायु १, वस्नसा २ स्त्री० ० । (६) यकृत् (प्रकाशय) के दो नाम - कालखण्ड १, यकृत् २ नपुं० । (७) हृदय के अन्तर्गत जल कोथली के तीन नामतिलक १, क्लोम २. फुप्फुस ३ नपुं० । (८) मस्तिष्क के तीन नाम - गोद १. गोर्द २ मस्तिष्क ३ नपुं । (९) मल के दो नामकिट्ट १ नपुं. मल २ पु. नपुं० । (१०) आंत के दो नाम पुरीतत् १, अन्त्र २ नपुं. । (११) लार के दो नाम - लाला १, स्यन्दिनी २ स्त्री० । (१२) कान में जो मल हो उसके दो नाम-पिज्जूष १, श्रोत्रमल २ नपुं । (१३) नासा मल के दो नाम - सिंघाण १, नासिकामल २ नपुं. । (१४) नेत्रमल के दो नाम - दूषिका १ स्त्री, नेत्रमल २ पु० । (१५) अस्थिमात्र के तीन नाम-कुल्य १, कीकस २, अस्थि ३ नपुं० । D Page #181 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कङ्काल स्त्री पाश्वा मौली द्वितीयकाण्डम् १६८ मानववर्गः७ प्रस्तावः पुंसि मूत्रस्याद् रेचनं तु विरेचने ॥६८॥ उच्चाराऽवस्करौ पुंसि गूथं च शमलं शकृत् । विष्ठा विट् च स्त्रियामेव वर्चस्कं न स्त्रियां कचित्।।६९॥ कङ्कालः पुंसि कायाऽस्थिन पृष्ठोऽस्थनी स्त्री कशेरुका । स्यात्पर्युका स्त्री पार्वास्नि करोटिः स्त्री शिरोऽस्थान।।७०॥ क्लीबे शीर्ष शिरोमध-मौली पुंस्यस्त्रि मस्तकम् । चक्षु रक्षोक्षणं नेत्रं नयनं लोचनं समम् ॥७॥ हर दृष्टिश्च स्त्रियां क्लीबे श्रोत्रं तु श्रवणं श्रवः । (१) मूत्र के दो नाम--प्रत्राव १ पु०, मूत्र (नृजल) २नपु.। (२) जुलाब के दो नाम-रेचन १, विरेचन २ नपु. । (३) विष्ठा के आठ नाम--उच्चार १, अवस्कार २ पु०, गूथ ३, शमल ४, शकृत् ५ नपुं, विष्ठा ६, विट् (विष् विश) ७ स्त्री०, वर्चस्क ८ पु० नपुं.। (४) चमड़ा मांस आदि से रहित शरीर के समस्त अस्थि संघ के दो नाम--कङ्काल १ पु०, कायास्थि २ नपुं. । (५) पीठ के हड्डी के दो नाम-पृष्ठास्थि १ नपु., कसेरुका २ स्त्री०। (१) पाव के हड्डी के दो नाम--पशुका १ स्त्री०, पास्थि २ नपु० । (७) माथे के हड्डी के दो नाम--करोटि१ स्त्री०, शिरोस्थि २ नपु. । (८) शिर के पांच नाम--शीर्ष १, शिरस् २ नपुं०, मूर्धन् ३, मौली ४ पु०, मस्तक ५ पु०नपुं.। (९) नेत्र के आठ नाम--चक्षुष् १, अक्षि २, ईक्षण ३, नेत्र ४, नयन ५, लोचन ६, नपु०, दृग् (२) ७, दृष्टि ८ स्त्री. । (१०) कान के छ नाम--श्रोत्र १, श्रवण २, श्रवस् ३ नपुं०, शब्द ग्रह ४, कर्ण ५ पु०, श्रुति ६ स्त्री० । Page #182 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीयकाण्डम् मानववर्गः ७ पुंसि शब्दग्रहः कर्णः श्रुतिः स्त्रीलिङ्गमुच्यते ॥७२॥ कटाक्षोऽपाङ्गचेष्टायां नेत्रान्तोऽपाङ्ग उच्यते । तारकाऽक्ष्णः कृष्णगोले भ्रमध्यं कूर्चमस्त्रियाम् ॥७३॥ भ्रूः स्त्रियां चक्षुषो रू- मोष्ठान्ते 'मृक्कि मुक्कणी। गण्डः कपोलः पुंस्योष्ठे त्वधरोरदनच्छदः ॥७४॥ ओष्ठात्परं स्याच्चिबुकं कपोलस्तु हनुः स्त्रियाम् । क्लीबमास्यं मुखं तुण्डं वदनं वक्त्र माननम् ॥७५॥ जं भी जेंभा स्त्रियां जम्भःपुं सि क्लीबे तु जु भणम् । जिह्वा" रसज्ञा रसना समे कोकुद तालुनी ॥७६॥ (१) इसारे का एक नाम--कटाक्ष १ पु० । (२) नेत्रान्त का एक नाम--अपाङ्ग १ पु० । (३) कनोनिका का एक नाम--तारका स्त्रो० । (४) भौहों के संधि (मध्य) का एक नामकुर्च १ पु० नपुं० । (५) नेत्रों से ऊपर धनुषाकार लोमराजिकाएक नाम -भ्रू १ स्त्री० । (६) ओठ के अन्त के दो नाम सृक्ति १, सृक्कन् २ नपुं० । ७ कपोल के दो नाम-गण्ड .. १ कपोल २ पु० । (८) अधः ओष्ठ के तीन नाम-ओष्ठ १ अधर २ रदनच्छद ३ पु० । (९) अधरोष्ठ के नोचे भाग (ठुइडी) के दो नाम-चिबुक १ नपुं० हनु २ स्त्रा० । (१०) मुख के छ नाम-मास्य १ मुख २ तुण्ड ३ वदन ४ वक्त्र ५ आनन ६ नपुं० । (११) जंभाई के चार नाम-जंभा १ जुभा २ सी, जंभ ३ पु०, मुंभण ४ नपुं० (१२) जिह्वा के तीन नाम-जिह्वा १ रसज्ञा २ रसना ३ स्रो० । (१३) ताल के दो माम-काकुद १ तालु २ नपुं० । Page #183 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीयकाण्डम् १७० मानवर्गः ७ ललाटमलिकं भालं घ्राणं घोणाऽपि नासिका । ग्रीवाऽग्रोगलकण्ठौच ग्रीवात् कन्धरा स्त्रियाम् ॥७७॥ कृकाटिकाsदुर्घटा गलवृद्धि गंडः पुमान् । प्रसृतिः स्त्रीकरेकुब्जे युक्तयोर्नाऽञ्जलिस्तयोः ॥७८॥ पाणिः शयः करः पुंसि तच्छाखा त्वङ्गुलिः स्त्रियाम् । पुंस्ये गुष्टस्तैर्जनी स्त्री सैव ख्याता प्रदेशिनी ॥७९॥ मध्यमानामिकी किश्च "कनिष्ठेति क्रमादसौ | हस्ताघातश्च पेटा स्त्री करें र्द्धिः करतालिका ॥८०॥ (१) ललाट के तीन नाम - ललाट १ अलिक २ भाल ३ नपुं० । (२) नाक के तीन नाम - प्राण १ नपुं०, घोणा २ नासिका (नासा) ३ स्त्री० । (३) कंठ के दो नाम -गल १ कण्ठ २ पुं० । (४) गर्दन के दो नाम -- ग्रीवा १ कन्धरा २ स्त्री० । (५) कण्ठ के उन्नत प्रदेश के तीन नाम-कृकाटिका १ अवटु १ घाटा ३ खी० । (६) गलवृद्धी के दो नाम - गलवृद्धि १ स्त्री०, गड्डु २ पु० । (७) हाथ को संकुचित करने का एक नाम - प्रसृति १ स्त्री० । (८) दोनों हाथों को संकुचित करने का एक नामअञ्जलि १ पु० । (९) हाथ के तीन नाम - पाणि १ शय २ कर ३ पु० । (१०) अंगुलि का एक नाम - अङ्गुलि (अङ्गुली) १ स्त्री० । (११) अंगूठे का एक नाम-अङ्गुष्ठ १५० । (१२) दूसरी अंगुली के दो नाम - तर्जनी १ प्रदेशिनी २ स्त्री० । (१३) तीसरी का एक नाम - मध्यमा १ स्त्री० । (१४) चौथी का एक नामअनामिका १ स्त्री० । (१५) पांचवीं का एक नाम - कनिष्ठिका १ बी० । (८) हस्ताघात का एक नाम - चपेटा १ स्त्री० । (१७) चुटकी के दो नाम - करर्द्धि १ करतालिका २ स्त्री० । Page #184 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीयकाण्डम् कफोणिः कूर्परस्तुल्यः प्रगण्डैः कूर्परोपरि । ● प्रकोष्ठ स्तदधः पुंसि भुजबाहु द्वयोः समौ ॥ ८१ ॥ मैध्योऽस्त्री मध्यमं क्लीवं पृष्ठ स्यात्कायपश्चिमम् । पुंसि कक्षो बाहुमूलं तदधः पार्श्वमस्त्रियाम् ॥ ८२ ॥ असे स्कन्धौ समौ तस्य सैंन्धिर्जत्रु नपुंसकम् । स्त्री नपुंसकयोकोडे मुरो" वक्षो भुजान्तरे ||८३ || स्तनाग्रः चूचुकं न स्त्री वक्षोर्जेस्तु कुचः स्तनः । कुक्षिः पुंस्युदरं तुन्दं क्लीब जठरमस्त्रियाम् ॥ ८४ ॥ (१) कूणी के दो नाम - कफोणि १ कूर्पर २ पु० । (२) कूणी से ऊपर का एक नाम - प्रगण्ड १५० । ( ३ ) कुणी से नीचे संधि का एक नाम- प्रकोष्ठ १ पु० । (४) भुजा के दो नाम - भुज १ बाहु २ पुं० स्त्री० । (५) शरीर के मध्यदेश के दो नाम - मध्य १ पु० नपुं० मध्यम २ नपुं. । (६) पीठ के दो नाम - पृष्ठ १ कायपश्चिम २ नपुं० । (७) कांख के दो १ १७१ नाम - कक्ष १०, बाहुमूल २ के एक नाम - पार्श्व १ पु०नपुं नपुं० । (८) पार्श्व ( बगल ] । (९) कन्धे के दो नाम - अंस १ स्कन्ध २ पु० । (१०) शरोर संधि स्थान नाम - सन्धि १५०, जत्रु २, नपुं० । (११) गोद नाम-क्रोड १ स्त्री० नपुं० । (१२) छाता के दो नाम - उरस् १ वक्षस् २ नपुं० । (१३) स्तन के अग्रभाग के दो नामस्तनाग्र १ पु०, चूचुक २ पुन०पुं० । (१४) स्तन के तीन नाम - वक्षोज १ कुच २ स्तन ३ ५० । (१५) पेट के चार नाम - कुक्षि १०, उदर २ तुन्द ३ नपुं०, जठर४ पु० नपुं० मानव वर्गः ७ के दो का एक Page #185 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - द्वितीयकाण्डम् १७२ मानववर्गः ७ योनियो भंगं 'शिश्ने शेफो मेट्रं च मेहनम् । मुंष्कऽण्डकोश वृषणा वुपस्थो भग शिश्नयोः ॥८५॥ स्यान्नितेम्बः पुंसि पश्चात् स्त्रीकटया जघन पुरः। पृष्ठवंशादधोगतदेशः क्लीबं कुकुन्दरम् ॥८६॥ श्रोणिः कटिः स्त्रियां वास्ति यो मूत्राशयः पुमान् क्लोबेऽपान गुदं पुंसि "पायुरुरुस्तु सक्थनि ॥८७॥ जानू रुपवर्णी तुल्ये जंघातु प्रसृता स्त्रियाम् । (१) भग के दो नाम-योनि १ स्त्रो० पु०, भग २ नपुं० । (२) पुरुष के जाननेन्द्रिय के चार नाम-शिश्न १ शेफस् २ (शेष, शेफ पु०)२ मेढ़ ३ मेहन४ पु.नपुं। (३) अण्डकोश के तोन नाम-मुष्क १ अण्डकोष २ वृषण ३ पु० । (४) स्त्री तथा पुरुष दोनों के जननेन्द्रिय का एक नाम-उपस्थ १ पु० । (५) स्त्रोके नितम्ब का एक नाम-नितम्ब १ पु०। (६) पुरोभाग का एक नाम-जघन १ नपुं० । (७) पृष्ठवंश (मेरुदण्ड) के नाचे के गर्त (खड्ढा) का एक नम-कुकुन्दर (गुणवृक्ष पु०) १ नपुं० । (८) कटि के दो नाम-श्रोणि १ कटि २ स्त्री० । (९) मुत्राशय के दो नाम-~-वस्ति १ स्त्री० पु०, मुत्राशय २ पु० । (१०) गुदा के तीन नाम-अपान १ गुद २ न', पायु ३ पु० । (११) जंघा के ऊपरी भाग के दो नामऊरु १ पु०, सक्थि २ नपुं० । (१२) कटि प्रदेश से नीचे चरणतल से ऊंचे जो मध्य सन्धि है उसके दो नाम-जानु १ ऊरुपर्व २ पु०नपुं० । (१३) जंघा के दो नाम- जंघा १ सृपन २ स्त्री० । Page #186 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - द्वितीयकाण्डम् १७३ मानववर्गः ७ ऊरोः सन्धिर्वक्षणः स्या त्पादायप्रपदे समे ॥८८॥ क्रमः पादः पदध्रिश्च चरणोऽस्त्री समा इमे। नरवरोऽपि नखोऽस्त्री, ना करेरुह पुनर्भवौ ॥८९॥ पञ्चशास्वकरेऽङ्गुष्ठे तर्जन्यादि चतसृभिः । साकं तते तत्तदन्त-र्देशाः स्युः क्रमशस्त्विमे ॥९॥ प्रादेशतालगोकर्णा वितस्ति दिशाङ्गुलः । द्वयोश्चपेटः प्रतलः पुंसि पाणौ तताऽगुलौ ॥९॥ वामश्च दक्षिणः पाणिः संहतौ विततौ यदि । तयोर्यः प्रतल: सस्याद् नाम्ना सिहतलः स्मृतः॥९२॥ (१) कटिदेश समिप उरुसन्धि का एक नाम- वहण १ पु० । (२) चरण के अग्रभाग के दो नाम- पादान १ प्रपद २ नपुं० । (३) चरण के पांच नाम-क्रम १ पाद२ पद ३ मड़ घ्रि४ पु०, चरण ५ पु०न'. । (४)नख के चार नाम-नखर १ नख२ पु.नपुं०, करेरुह ३ पुनर्भव ४पु०। (५)पञ्चागुलि वाले हाथ के अङ्गुष्ठ को तर्जनी के साथ फैलाकर जो माप होगा उसको 'प्रादेश' १ पु०, मध्यमा के साथ 'ताल' २ पु. अनामिका के साथ 'गोकर्ण' ३ पु०, कनिष्ठिका के साथ । 'वितस्ति' ४ स्त्री० पु० दशांगुल ५ पु० । (६)एक हाथ के अङ्गुलियों को प्रसारित किया जाय उसके दो नाम-चपेट १ पुं०स्त्री, प्रतल २ पु० । (७) दाहिने और वाम दोनों बाहु. को साथ करके यदि विस्तृत किया जाय तो उस माप के दो नाम- प्रतल १ सिंहतल (संहतल) २ पु०। Page #187 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीयकाण्डम् १७४ मानववर्गः७ केशः शिरोरुहो बालः कश्चिकुर कुन्तलौ । केशवेशस्तु कवरो धम्मैिलः संयतः कचः ॥१३॥ केशपाशी शिखा चूडा तापसानां जटा मता । अलकः कुटिलो बाल स्तद्वन्दं कैश्य केशिकौ ।९४॥ स्त्रीणां शिरः स्थिता वेणिः प्रवेणि मॅटिकाऽऽकृतिः। बाह्वो रङ्गेद केयूरे भूषणं तन्नपुंसकम् ॥१५॥ शैना मेखला काञ्चो कटिसूत्रं च शङ्खलम् । मजीरो नपुरो न स्त्री हंसकश्च पुमानयम् ॥१६॥ १२किङ्किणी क्षुद्रघण्टा स्यात्तले रूतमुभे समे । हिन्दा- (१) केश के छ नाम- केश १ शिरोरुह २ बाल ३ कच ४ चिकुर ५ कुन्तल ६ पु०। (२) विन्यस्त केश का एक नाम- कवरी १ स्त्री० । (३) रचना विशेष से बद्ध केश का एक नाम- धम्मिल १ पु० । (४) चोटी के तीन नाम- केशपाशो १ "शिखा २ चूडा ३ स्त्री० । (५) तापसों के जटा का एक नामजटा १ स्त्रो० । (६) घूधर बाल का एक नाम- अलक १ पुं० (७) केशसमूह के दो नाम- कैश्य १ कैशिक २ नपुं० । (८) स्त्री चोटी के दो नाम- वेणि १ प्रवेणि २ स्त्रो० । (९) बाहू के भूषण के दो नाम-अङ्गद १ केयूर २ नपुं० । (१०) कटि सूत्र के पांच नाम- रशना १ मेखला २ काञ्ची ३ स्त्री०, कटिसूत्र ४ शङ्खल ५ नपुं० । (११) पदभूषण (पांजनी) के तीन नाम-मजोर १ नूपुर २ पु.नपुं०, हंसक ३ पु० । (१२) क्षुद्रघंटिका (धुंधरु) के दो नाम- किङ्किणो १ क्षुद्रघंटिका २ स्त्री० । (१३) सई के दो नाम- तूल १ रूत २ नपुं० । Page #188 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - द्वितीयकाण्डम् १७५ मानववर्गः ७ वस्त्रयोनिः कृमी रोम त्वक् फलं त्रिषु ते दश ॥९७॥ कासिं बादरं फालं कौशेय कृमिकोशजम् । चाल्क क्षौम 'रावन्तु मृगरोमोद्भवाऽम्बरम् ॥९८॥ नववस्त्र निष्प्रवाणि तन्त्रकाऽनाहते अपि । क्लीबे तद्गमनीयं तद् यद् धौताऽऽच्छादनद्वयम् ।।९९॥ क्षौमे "दुकूलं, पत्रोणे धौत कौशेयवाससि । तसर त्रसरौ दिव्य सूत्रनिर्मितमम्बरम् ॥१०॥ दशाः स्त्रियां भूमनि स्यु वस्त्रस्य प्रान्तयो योः । पटच्चरं जीर्णवस्त्रं कन्या स्त्री स्यूत वाससि ॥१०१।। (१) वस्त्र चार वस्तुओं से होता है- कृमिकोश १ रोम २ त्वच् ३ फल ४ । (२) कपास से बनाये गये वस्त्र के तीन नाम- कार्पास १ बादर २ फाल ३ नपुं० । (२) कृमिकोष से निर्मित वस्त्र के दो नाम- कौशेय १ कृमिकोशज २ नपुं० । (४) अतसो आदि के त्वचा से निर्मित वस्त्रों के दो नाम-वाल्क १ क्षोम २ नपुं० । (५) मृगलोम से निर्मित वस्त्र के दो नामराव १ मृगरोभोद्भव २ नपुं०। (६) छेद भोग क्षाल न हीन वस्त्र के चार नाम नववस्त्र १ निष्प्रवाणि २ तन्त्रक ३ अनाहत ४ नपुं० । (७) पहनने ओढने के वस्त्र का एक नाम- उद्गमनीय १ नपुं० । (८) रेशम के वस्त्र का एक नाम- दुकूल १ नपं । (९) कृमि कोष निर्मित वस्त्र का एक नाम-पत्रोर्ण १ नपं०। (१०) चमकीले सूतों से बने कपडे के दोनाम-तसर १ त्रसर २ पु० । (११) कपड़ों के किनारे का एक नाम-दशा १ बहुवचन स्त्रो० । (१२) पुराने कपड़ों का एक नाम-पटच्चर १ नपुं०। (१३) पुराने वस्त्रों को एक साथ सीकर रक्खा जाय अथवा रजाई का एक नाम-कन्था १ स्त्री० । Page #189 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - द्वितीयकाण्डम् १७६ मानववर्गः ७ जीर्णवस्त्रे खण्डिते तु कर्पटो लक्तकः समौ । स्त्रियां मशहरी स्यूत वस्त्रे मशकवारणे ॥१०२॥ स्यास्त्रियां चीरिकाकच्छा कौपीनं मलमल्लकम् । रल्लेकः कम्बल; पुंसि वराशिः स्थूलवाससि ॥१०३। सुचेल: शोभने वस्त्रे निचोलः प्रच्छदः पटः । संख्यानमुत्तरासङ्गोऽथोत्तरीयेष्वधोऽशुकम् ॥१०४॥ परिधानो-पसंख़्यानाऽन्तरीयाण्यथ चोलेकः। कूर्पासकः स्त्रियामूनि वस्त्रं स्यादवगुण्ठेनम् ॥१०५॥ (१) पुराने कपड़े का टुकरा अथवा रुमाल के दो नामकर्पट १ लक्तक (नक्तक) ३ पु० । (२) मच्छरदानी के एक नाम- मशहरी १ स्त्रो० । (३) कछिया (जंघिया) के दो नाम-चीरिका १ कच्छा २ स्त्री० । (४) लंगोटी के दो नाम-कोपीन १ मलमल्लक २ नपुं० । (५) कम्बल के दो नाम-रल्लक १ कम्बल २ पु० । (६) खदर (मोटे कपडे) का एक नाम-वराशि (वरासि) १ पु० । (७) सुन्दर वस्त्र का एक नाम-सुचेल १ पु० । (८) दोला आदि को ढकने का जो कपड़ा है उसके दो नाम-निचोल १ प्रच्छ रपट २ पु० । (९) शरीर के ऊपरी (उत्तरीय) वस्त्र के दो नाम-संख्यान १ नपुं०, उत्तरासग २ पु०। (१०) शरीर के नीचे जो पहने जायं (अधोवस्त्र) उसके चार नाम-अघोऽशुक १ परिधान २ उपसंख्यान ३ अन्तरोय ४ नपुं० । (११) चोली के दो नामचोलक १ कूर्पासक २ पु० । (१२) घूधंट का एक नामअवगुण्ठन १ नपुं० । Page #190 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीयकाण्डम् मानववर्गः ७ चण्डेातकं तु स्याच्छ्रेष्ठं स्त्रीणामर्द्धारुकेंऽबरे । बहुमूल्ये तृर्णवस्त्रे स्याद् द्विशोलो द्वयोरयम् ॥ १०६॥ नीशौरो ना प्रावरणे शोतवातादि वारणे । चैलै माच्छादनं वस्त्रं वासो वसनमंशुकम् ॥१०७॥ दूष्य पटकुटी साऽल्पांऽकुटीरः पुमानयम् । विताने चन्द्रकोल्लोचौ काण्डपट्टे तु कोणिका । १०८ । परदायां जवनिका तिरस्करिणिकाऽपि सा । स्यादुद्वैर्तनमुत्सादो मार्जनौ तु मृजास्त्रियाम् ॥ १०९ ॥ १७७ (२) लहंगा का एक नाम - चण्डातक १ नपुं० । (२) दुशाले का एक नाम - द्विशाल १ पुनपुं० । (३) ठण्डी और हवा से बचाव के लिये शरीर ढाकने के कपड़े (गोदड़ी) के दो नाम - नीशार १ पु०, प्रावरण २ नपुं० । ( ४ ) सामान्यरूप से कपड़ों के छ नाम - चैल १ आच्छादन २ वस्त्र ३ वासस् ४ वसन ५ अंशुक ६ नपुं० । ( ५ ) तम्बू के दो नाम - दूष्या १ पटकुटी २ स्त्री० । (६) राउटी का एक नाम-अंशकुटीर १ पु० । (७) चन्दोवा के तीन नाम - वितान १पुन्नपुं, चन्द्रक २उल्लोच ३ पु० । (८) कनात के दो नाम - काण्डपट्ट १ पु०, कोणिका २ स्त्री० । (९) पर्दे के १ तिरस्करिणो ( तिरस्करिणिका) २ स्त्री० । (१०) उबटन के दो नाम - उद्वर्तन १ नपुं. उत्साद २ पु० । (११) शरीर साफ करने के दो नाम मार्जना १ मृजा २ स्त्री० । दो नाम - जवनिका १२ Page #191 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीयकाण्डम् १७८ मानववर्गः ७ परिकर्माङ्ग संस्कारे स्नानेवाप्लाव आप्लवः । चर्चास्त्री स्थासकः पत्रालेखा पत्राङ्गुली समे ॥११॥ विशेषकं स्यात्तिलकेऽनुबोधस्तु प्रबोधने । यावालक्तौ जतुक्लीबे लाक्षायां स्यादथाऽगुरु ॥११॥ वंशिकं जोङ्गकं च स्यान्न द्वयो रथ यावेनः । सिहोऽथ याधूपस्तु रालः सर्जरसः पुमान् ॥१११।। कोलीयकं जायकं स्या त्कुङ्कुमाऽग्निशिखे समे । (१) शरीर शोभाकार क्रिया के दो नाम -परिकर्म १नपुं., भसंस्कार २ पु० । (२) स्नान के तीन नाम-स्नान १ नपुं०, आप्लाव २ आप्लव ३ पु० । (३) चन्दनादि देह विलेपन के दो नाम-चर्चा १ खी०, स्थासक २ पु० । (४) कपोल आदि में चन्दनादि से निर्मित चित्र के दो नाम-पत्र लेखा १ पत्राङ्कली २ स्त्री० । (५) तिल के दो नाम-विशेषक १ तिलक २ पु० नपुं० । (६) जगाने का या विस्मृत को याद करने के दो नाम-अनुबोध १ पु०, प्रबोधन २ नपुं० । (७) नख रंजन के चार नाम-याव १ अलकक २ पु०, जतु ३ नपुं०, लाक्षा ४ स्त्री०। (८) अगुरु (अगर) के तीन नामअगुरु १ वंशिक २ जोङ्गक ३ नपुं। (९) लोहबान धूपके दो नाम-यावन १ सिद्ध २ पु० । (१०) यक्ष धूपके तीन नामयक्षथप १ राल २ सर्जरस ३ पु० । (११) सुगन्ध द्रव्य विशेष के दो नाम-कालीयक १ जायक २ नपुं० । (१२) कुङ्कम के दो नाम- कुंकुम १ अग्निशिख २ नपुं० । Page #192 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीयकाण्डम् १७९ मानववर्गः ७ कालागुरुणि मङ्गल्या श्रीवासः सरलद्रवः ॥ ११३॥ वृकधूपोऽनेकवस्तु कृते धूपे मनोहरे । कर्पूरो घनसारः स्याच्चन्द्रः स्त्री हिमवालुका ॥११४॥ पाटीरचन्दनोगन्ध-सारो मलयजः समाः । केशesगूरु कर्पूर कस्तूरी कोलकैः कृतम् ॥ ११५ ॥ मिश्रितं सर्वमेकत्र प्रोच्यते यक्षकर्दमः । विलेपन वर्णकं स्याद्वर्तित्रानुलेपनी ॥११६॥ पिष्टार्तः पटवासोऽपि वासयोगोऽथ वोसितम् । (१) मल्लिका पुष्प जैसा गन्धवाले के दो नाम - कालागुरु, १ नपुं०, मङ्गच्या २ खो० । (२) देवदारु रस निर्मित धूर के दो नाम श्रीवास १ सरलद्रव २ पु० । (३) अनेक मनोहर संमिश्रण से निर्मित धूप का एक नाम-वृकधूप १ पु० । (3) कर्पूर के चार नाम - कर्पूर १ घनसार २ चन्द्र ३ पु०, हिमवालुका ४ स्त्री ० । ( ५ ) श्रीखण्ड चन्दन के चार नाम- पाटीर १ चन्दन २ गन्धसार ३ मलयज ४ पु० । (६) केसर अगुरु कपूर कस्तूरी कोलक इनको एक करके बनाये गये धूप का एक नाम - यक्षकर्दम १५० । (७) शरीर के अनुला के लिये घिसा पिसा गया घुगन्धित द्रव्य के चार नाम - विलेन १ वर्णक २ नपुं०, वर्ति ३ गात्रानुलेपनी ९ खा० । (८) निमसे वत्र सुगन्वित हो जाय, उस चूर्ण के तीन नाम-विष्ठात १ पटवास २ वासयोग ३ पु० ( चूर्ण पु० नपुं०) । (९) कस्तूरा आदि द्रव्य से जो भावित हो चुका हो उसका एक नाम -वासित १ त्रिलिङ्ग । Page #193 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीयकाण्डम् मानववर्गः ७ भाविते त्रिषु, माल्यादेः संस्कारस्त्वधिवासनम् ॥११७॥ न्यस्तामूनि भवेन्माल्यं मालास्रक् कुसुमावलिः । गर्भकः केशमध्यस्थं ललाटस्थं ललामकम् ।।११८॥ प्रभ्रष्टकं शिखान्यस्ते प्रार्लम्ब कण्ठलम्बिनि । रचनायां परिस्पन्दः समा वीपीड शेखरौ ॥११९।। शय्यायां शयनं तल्पं स्यादाभोगैस्तु पूर्णता । तूलेतल्पं तल्पभेदे गेन्दु कः कन्दुकः पुमान् ॥१२०॥ उपधाने तूपबों-च्छीर्षों, खट्वा तु खरविका । (१) कार्यारम्भ से पूर्व ही कार्ययोग्य वस्तुओं का संकलन कर लेना अधिवासन ३ नपुं० । (२) माला के तीन नाम-माल्य १नपुं०, माला २ सक् (स्रज्) ३ स्त्री०। (३) केश मध्य में लगाई गई माला का एक नाम-गर्भक १ पु० । (४) ललाट के उपर तिलक आदि का एक नाम-ललामक १ नपुं० । (५) चोटी पर लटकतो माला का एक नाम-प्रभ्रष्टक १ नपुं० । (६) कण्ठ में लटकतो माला का एक नाम-प्रालम्ब १ नपुं० ! (७)शिल्प आदि रचना के दो नाम-रचना १ स्त्री०, परिस्पन्द (परिस्यन्द) २ पु० । (८) शिखा संलग्न वह माल्य के दो नाममापीड़ १ शेखर २ पु० । (९) शय्या के तीन नाम-शय्या १ शयन २ तल्प ३ नपुं० । (१०) प्रत्येक सामान का परिपूर्णता का एक नाम-आभोग १ नपुं० 1 (११) गद्दो का एक नाम- तूलतल्प १ नपुं.। (१२) गेन्द के दो नाम-गेन्दक १ कन्दुक २ पु.। (१३) तकिया के तीन नाम-उपधान १ . नपुं० उपबहे २ उच्छोर्ष ३ पु० । (१४) खटला के दो नाम-खट्वा ११ खद्विका २ स्त्री० । Page #194 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीयकाण्डम् १८१ मानववर्गः ७ निवार शण सूत्राद्याः खवावेष्टन साधने || १२१॥ पल्यङ्कमञ्च पर्यङ्काः सनिवारे तमङ्गकः । प्रदीप दीपौ सदृशौ विष्टरेंः पीठ मासनम् ॥१२२॥ पतै प्रतिग्राहः सम्पुटे' तु समुद्गकः । या स्यात्कंकँतिका सैव कंकती च प्रसाधनी ॥ १२३ ॥ सिक्थकं स्यान्मधूच्छिष्टं सिक्थेिका तस्य वर्तिका । दीपादीपशिखा दीपार्चिस्तु नपुंसकम् ॥ १२४॥ दीपधानी स्त्रियां दीपा -धारे दीपद्रुमः पुमान् । (१) खटला बनाने की डोरी के तीन नाम —निवार १ शण २ सूत्र ३ पु०नपुं० ! (२) पलङ्ग के तीन दीपक के दो १ म २ पर्यङ्क ३ पु० । (३) १ दीप २ पु० । (४) आसन के तीन नामपीठ २ आसन ३नपुं० । (५) पिकदानी के दो नाम - पतद्ग्रह १ प्रतिमाह २ पु० । (६) उबूसा आदि के दो नाम - सम्पुट १ समुद्रक २५० । (७) कंघी के तीन नाम - कंक्रतिका १, कंकती २ प्रसाधनी ३ स्त्री० । (८) मोम के दो नाम सिक्थक १ मधूच्छिष्ट २ नपुं० । (९) मोमबत्ती का एक नाम - सिक्थिका १ स्त्री० । (१०) दीपज्वाला के तीन नाम - दीपज्वाला १ दीपशिखा २ स्त्री०, दीपचिष् ३ नपुं० । (११) दीपक के आधार के दो नाम - दीपधानी १ स्त्री०, दीपाधार २ ( दीपद्रुम) पु० । Shop नाम- पल्यङ्क नाम – प्रदोष - विष्ट र १ पु०, Page #195 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीयकाण्डम् ___ १८२ मानववर्गः७ दीपावली दीपमाला दीपालि दीप शृङ्खला ॥१२५॥ व्यजैन स्यात्तालवृन्तं तुल्ये कज्जल काजले । समा अमीस्युर्मकुंर मुकुराऽऽदर्श दर्पणाः ॥१२६॥ पुंसि दीध्वजो दीप-कीटें स्याद्दीपकज्जलम् । ॥ इति मानववर्गः समाप्तः ॥ (१) दोप समूह के चार नाम-दोपावली १ दीपमाला २ दीपालि ३ दीपशृङ्खला ४ स्त्री. । (२) पङ्के के दो नाम-व्यजन १ तालवृन्त २ नपुं० । (३) आर्द्रकज्जलके दो नाम-कज्जल १ काजल २ नपुं० । (१] ऐनक के चार नाम-मकुर १ मुकुर २ भादर्श ३ दर्पण ४ पु० । (५) दोप कज्जल के तीन नामदीपध्वज १ पु०, दोपकिट्ट २ दीपकज्जल ३ नपुं० । ॥०॥इति मानववर्गः समाप्तः ।।२०।। Page #196 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीयकाण्डम् १८३ वंशवर्गः ८ ॥ अथ वंशवर्गः प्रारभ्यते ॥ वंशोऽन्वयोऽन्ववायश्च सन्तानोऽभिजनः कुलम् । गोत्रं च जननं स्त्री स्या सन्ततिः क्षत्रियोदयः ॥१॥ वर्णाः ब्राह्मण विद शूद्रा राजवीजी तु राजजः । सज्जने साधु सम्याऽर्य कुलीनाश्च महाकुलः ॥२॥ ब्रह्मचारी गृहीवानप्रस्थो भिक्षुश्चतुष्टयम् । चत्वार आश्रमा अस्त्री वर्णी स्याब्रह्मचारिषु ॥३॥ विप्रब्राह्मणभूदेवाऽग्रजन्म द्विजवाडवाः । ज्ञोर्विं प्रश्चित्कृती धीमान् संख्यावान्प्रज्ञ उच्यते ॥४॥ कवि पण्डित दोषज्ञ सुधी विद्वन्मनीषिणः । हिन्दी-(१) वंश के नौ नाम-वंश १ अन्वय २अन्ववाय ३ सन्तान ४ आभजन ५ पु०, कुल ६ गोत्र ७ जनन ८ नपुं०, सन्तति ९ स्त्रा० । (२) वर्ण के चार नाम-ब्राह्मण १ क्षत्रिय २ वैश्य ३ शूद्र ४ पु० । (३) राजवशं का एक नाम-राजज १ पु. । (४)सजन के छ नाम-सज्जन १ साधु २सभ्य ३ आर्य ४ कुलोन ५ महाकुल ६ पु० । (५) ब्रह्मचारी गृही वानप्रस्थ भिक्षु इन चतुष्टयों के पृथक पृथक् चार आश्रम है पु० नपुं० । (६) ब्राह्मचारी को 'वर्णी' कहते हैं पु० । (७) ब्राह्मण के छ नाम विप्र १ ब्राह्मण २ भूदेव ३ अग्रजन्मा ४ द्विज ५ वाडव ६ पु० । (८) पण्डित के बीस नाम-ज्ञ १ विपश्चित् २ कृति ३ धोमान् ४ संख्यावान् ५ प्रज्ञ६ कवि ७ पण्डित ८ दोषज्ञ ९ सुधी १० विद्वान् ११ मनीषी १२ सन् १३ कोविद १४ बुध १५ धीर Page #197 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीयकाण्डम् १८४ वंशवर्गः ८ सन् कोविदो बुधो धोरः परिः प्राज्ञो विचक्षणः ॥५॥ दूरदर्शी श्रोत्रियेस्तु छान्दसो वेदपारगः । स्याद्वादी स्यादाईकोऽथ 'वेदान्त्युपनिषद्विदि ॥६॥ मीमांसको यो मीमांसा ज्ञानवान्सांख्यकापिलौ । वैशेषिकंज्ञः काणादी न्यायो नैयायिक स्तथा ॥७॥ सौगतः शून्यवादीस्या च्चार्वाकाधास्तु तद्विदाः । उपेत्याऽधीयते यस्मा दुपाध्यायो गुरुस्तु यः ॥८॥ मन्त्रदाता पितावाऽपि यष्टोssदेष्टावती मखे । १६ सरि १७ प्राज्ञ १८ विचक्षण १९ दूरदर्शी २० पु.। १) श्रोत्रिय के तीन नाम-श्रोत्रिय १ छान्दस २ वेदपारग ३ पु. (२) जैन के दो नाम-स्थाहादी १ माहेक (आर्हत) २ पु० । (३) उपनिषदवेत्ता के दो नाम-वेदान्ती १ उपनिषद्वित् २ पु०। (४) मीमांसा जानने वाले के दो नाम-मीमांसक १, मीमांसाज्ञानवान २ पु० । (५) सांख्य के दो नान-सांख्य १, कापिल २ पु० । (६) वैशेषिक वेत्ता के दो नाम-वैशेषिकज्ञ १, काणादी २ पु० । (७) न्यायवेत्ता के दो नाम-न्यायो १, नैयायिक २ पु० । (८) शून्यवादी विशेष के दो नाम-सौगत १, शून्यवादी २ पु० । (९) शून्यवादी विशेष के एक नाम-चार्वाक आदि पु० । (१०) जिनके यहां जाकर पढा जाय उनके एक नाम-उपाध्याय (अध्यापक) १ पु० । (११) मन्त्रदाता के एक नाम-गुरु १ (पिता आदि बड़े को भी गुरु कहते हैं) पु.। (१२) यजमान के पांच नाम-यष्टा १, आदेष्टा २, व्रती ३, साजक है, यजमान ५ पु० । Page #198 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीयकाण्डम् वंशवर्गः ८ याजको यजमानश्च यायेजूकोऽतियाजकः ॥९॥ इष्टवान् विधिना येज्वा तथा स आसुतीबलः । अनूचानः प्रवचने सानेऽधोती गणिर्मतः ॥ १० ॥ अनुयोग कृदाचार्यः उपाध्यायस्तु पाठकः । एक ब्रह्मव्रताचारा मिथः सब्रह्मचारिणः ॥ ११ ॥ सतीर्थ्यांस्त्वेक गुरुका आनेोधा अग्निदीपकाः । छात्रान्तेवासिशिष्याः स्यु वेदार्थे गुरु सेवकाः ॥ १२ ॥ उपज्ञात्वादिमं ज्ञानं ज्ञालाssरम्भ उपक्रमः । १८५ - (१) अतियज्ञशील के दो नाम-यायजूक १, अतियाजक २ पु० । ( २) सविधि यज्ञ करने वाले के दो नाम - यज्वा १, आसुतीबल २ पु० । (३) प्रवचन कर्त्ता का एक नामअनुचान १ पु० । (४) साङ्गमूल (वेद) के अध्येता के दो नामसाङ्गेऽधीतो १, गणि २ पु० । ( ५ ) व्याख्याता के दो नाम अनुयोगकृत् १, आचार्य २ पु० । (६) उपाध्याय के दो नामउपाध्याय १, पाठक २ पु० । (७) समान शाखा के अध्येताओं के पारस्परिक का एक नाम सब्रह्मचारो । ( ८ ) एकही गुरु से पढने वालों के दो नाम - सतीर्थ्य १, एकगुरुक २ पु० । ( ९ ) ऋत्विक् ( ऋत्विज ) के दो नाम - आग्नीघ्र १, अग्निदीपक २ पु० । (१०) अध्ययन हेतुक गुरुसेवकों के तीन नाम - छात्र १, अन्तेवासी २. शिष्य ३ पु० । (११) आदि ज्ञान का एक नामउपज्ञा १ स्त्री० । (१२) समझकर आरम्भ किया जाय उसका एक नाम - उपक्रम १ ५० । Page #199 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीयकाण्डम् १८६ वंशवर्गः ८ सत्र बर्हिर्वितानं च संस्तरः क्रतुरध्वरः ॥ १३॥ मखो यज्ञः सवो यागो गोष्ठी तु पवित्सभा | समज्या समितिः संसद् आस्थान सदसी अपि ॥ १४ ॥ स्थण्डिलं चत्वरं सम्ये सामाजिक सभासदौ । भूमि र्या संस्कृता वेदि यृपैः स्याद यज्ञकीलकः ॥ १५॥ संघनाssवरणं कुम्बा निर्मन्थ्यं त्वरणि र्द्वयोः । परमान्नं पायसं च स्यात्क्षीरान्ने नपुंसकम् ॥ १६॥ दीनं वितरणं त्याग उत्सर्गश्च विसर्जनम् । स्पर्शनं चाऽथयाञ्च स्याद् याचना च गवेषणा ॥ १७ ॥ (१) यज्ञ के दश नाम - सत्र १, बर्हिषु २ नपुं०, वितान ३ पु. नपुं०, संस्तर ४, ऋतु ५, अध्वर ६, मख ७, यज्ञ ८, सब ९, याग १० पु० । (२) सभा के आठ नाम-गोष्ठी १, परिषत् २, सभा ३, समज्या ४, समिति ५, संसद ६ स्त्रो०, आस्थान ७, सदस् ८ नपुं० । (३) समान भूमि के दो नामस्थण्डिल १, चत्वर २ नपुं० । ( ४ ) सभासद् के तीन नामसभ्य १, सामाजिक २, सभासद् ३ पु . । ( ५ ) शुद्ध भूमि का एक नाम - वेदो १ स्त्री० । (६) यज्ञस्तंभ के दो नाम-यूप १, यज्ञकीलक २ पु० । (७) आवरण बाड (घेरावा ) का एक नाम कुम्बा १ स्त्रो० । (८) अरणि के दो नाम - निर्मन्थ्य १ नपुं०, अरणि २ स्त्री० । (९) दूधपाक के दो नामपरमान्न १, पायस २ नपुं० । (१०) दान के छ नाम - दान १, वितरण २, बिसर्जन ३, स्पर्शन ४ नपुं०, त्याग ५, उत्सर्ग ६ पु० । (११) याचना के पांच नाम - याचा १, याचना २, गवेषणा ३, अन्वेषणा ४, प्रार्थना ५ स्त्रो० । - Page #200 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीयकाण्डम् १८७ वंशवर्गः ८ अन्वेषणा प्रार्थना च भवेत्प्राघुणिकस्तु सः । अभ्यागतः प्राघुणकोऽतिथिः प्राधूणकस्तथा ॥१८॥ औतिथेयं त्वाऽतिथेय्यां तथाssवेशिक मित्यपि । अर्घार्थमध्ये पादार्थ पाद्यं त्रिषु त्रयोदश ॥ १९॥ अर्हणाsa सपर्याऽपचिति पूजाः समार्थकाः । शुश्रूषोपासना सेवा परिचर्या निगद्यते ॥ २०॥ योगमार्गे स्थितिर्श्वर्याऽटातु पर्यटनं भ्रमः । मुने र्भावोऽथवा कर्म मैनिं नोभाषणं विदुः ॥२१॥ परिपाटित्वानुपूर्वी पर्यायानुक्रमावपि । पर्युपशमना पर्यो सवना पर्युषणा तथा । २२ ।। (१) अतिथि के पांच नाम -- प्राघुणिक १, अभ्यागत २, प्राघुणक ३, अतिथि ४, प्राधूणक ५, पु० । ( २ ) मेहमानी ( आतीथेयी) के दो नाम -- आतिथेय १, आवेशिक २ पु० (आतिथेयी स्त्री० ) | ( ३ ) पाने का पानी का एक नाम - अर्घ्य पु० नपुं० । ( ४ ) पदप्रक्षालन जल का एक (५) सेवा के नाम - अर्हणा १. अर्चा २, ४, पूजा ५, शुश्रूषा ६, उपासना ७, स्त्री० । (६) ध्यान मौनादि का एक (७) पर्यटन के तीन नाम - अटा (अटाय्या) स्त्री० । (८) मुनिकर्म के दो नाम मौन १ नोभाषण (अभाषण ) २ नपुं० । (९) अनुक्रम के चार नाम - परिपाटी १, आनुपूर्वी (आनुपूर्व्य नपुं)०, २ स्त्री०, पर्याय ३, अनुक्रम ४ पु० । (१०) पर्युषण के चार नाम -- पर्युपशमना १, पर्योसवना २, पर्युषणा ३ स्त्री० आष्टाहिक ४ नपुं० । 9 -- नाम - पाद्य पु० नपुं० । अपचिति सपर्या ३, सेवा ८, परिचर्या ९ नाम - चर्या १ स्त्री० । Page #201 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीयकाण्डम् १८८ वशवर्गः ८ पर्वण्याष्टाहिके पक्षे-भवं तु पाक्षिकं स्मृतम् । पर्वसंवत्सरी नाम्ना सांवत्सरिकमुच्यते ॥२३॥ उपात्ययोऽतिपातः स्यात्समेऽभ्युत्थान गौरवे । सावधेभ्यस्तु कर्मम्यो निवृत्तिव्रतमस्त्रियाम् ॥२४॥ पृथगात्मता विवेकः स्यादुपैवास उपोषणम् । पारणे तस्य निस्तार एकभक्तं सकुन्दुजि ॥२५॥ सदाचाराऽध्ययनयो रुत्कर्षों ब्रह्मवर्चसम् । परित्राण मश्करी भिक्षुः सन्न्यासीन्यथ तापसः ॥२६॥ तपस्वी संयमी तु स्याद् दान्तो वाचंयमो मुनिः ।। (१) पक्खी के दो नाम--पक्षेभव (पक्षमव) १ , पाक्षिक २ नपुं० । (२) संवत्सरो के दो नाम- सम्वत्सरी १ बी०, साम्वत्सरिक २ नपुं० । (३) मर्यादा उल्लंघन के दो नाम-उपात्यय १ अतिपात २ पु० (४) सत्कार करने के दो नाम-अभ्युस्थान १ गौरव २ नपुं० । (५) साऽवध कर्मों से निवृत्ति का एक नाम- व्रत १पु० नपुं० । (६) विवेक के दो नाम-पृथगात्मता १ स्त्री०, विवेक २ पु० । (७) उपवास के दो नाम-उपवास १ पु०, उपोषण २ नपुं० । (८) पारणा के एक नाम-पारणा १ स्त्रो० । (९) एक समय भोजन का एक नाम एकभक्त १ नपुं० । (१०) सदाचारे और अध्ययन में उत्कर्षता का एक नाम ब्रह्मवर्चस पु० नपुं० । (११) सन्यासी के चार नाम-परिवाट १ मश्करी २ भिक्षु ३ सन्यासा १ पु० । (१२) तापस के दो नाम-तापस १ तपस्वो २ पु० । (१३) मुनि के नौ नाम- संयमी १ दान्त २ वाचंयम ३ मुनि ४ Page #202 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीयकाण्डम् १८९ वंशवर्गः ८ संयतश्च व्रती साधु निर्द्वन्द्वो विरजस्तमाः ||२७|| पाखण्ड : स्त्री पुमान्वाऽपि वैडाल व्रतिको मतः । कुण्डी कमण्डुलः पात्र - मासनं व्रतीनां बृसी ॥२८॥ मैक्षं भिक्षा चयः 'कृत्तिः स्त्रिया मजिन चर्मणी । अक्षौरे लुंचन लोचः क्षौरे वनमुण्डने ॥ २९॥ उत्कचः केश शून्येस्याद् येम इन्द्रिय निग्रहः । "प्रतिमा नियमश्चाऽभि ग्रहो ज्ञेयः समार्थकः ||३०|| ब्रह्मत्वं ब्रह्म सायुज्यं ब्रह्मभूयं यथा तथा । देवभावस्तु देवत्वं देवभूयं क्रमादनु ||३१|| पण्डितत्वं च मूर्खत्वं तत्तत्सायुज्य मर्थ्यताम् । संयत ५ व्रती ६ साधु ७ निर्द्वन्द्व ८ विरजस्तमाः ९ पु० । (१) ढोंगी के दो नाम पाखण्ड १ बैडालव्रतिक २ पु० । (२) सन्यासी के पात्र के दो नाम - कुण्डी १ स्त्री०, कसण्डलु २ पु०नपुं० । (३) व्रती के आसन का एक नाम - बृसो १ स्त्रो० । ( ४ ) भिक्षा समुदाय का एक नाम - भैक्ष १ नपुं० । (५) चमड़े के तीन नाम - कृत्ति १ स्त्री०, अजिन २ चर्म (चर्मन् ) ३ नपुं० । (६) लोच के दो नाम- लुंचन १ लोच २ पु० । (७) बाल बनाने के दो नाम - वपन १ मुण्डन २ नपुं० । (८) केश शून्यता का एक नाम - उत्कच १ पु० । ( ९ ) इन्द्रिय निग्रह का एक नाम - यम १ पु० । (१०) नियम के तोन नाम: प्रतिमा १ स्त्री०, नियम २ अभिग्रह ३ पु० । (११) ब्रह्मभाव में ब्रह्मत्व- ब्रह्मसायुज्य- ब्रह्मभूय जैसे देवत्व देवसायुज्य देवभूय के क्रम पोछे पण्डितत्व मूर्खत्वादि तत् तत् सायुज्य भा कह सकते हैं सब नपुं० । ** - - Page #203 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीयकाण्डम् वंशवर्गः ८ उपवीतं यज्ञमूत्रं प्रोद्धृते दक्षिणे करे ||३२| अस्वाध्यायस्वनध्यायो वन्दैनात्वभिवादनम् । पुंसि ग्रन्थे पद्धतिः स्त्रो "कृतिः कल्पितवाङ्मये ||३३|| सिद्धान्त आगमः पुंसि शास्त्रं शासनमेव च । तत्र प्रवचनं सूत्रेऽथाऽऽकारो बाह्यमिङ्गितम् ॥ ३४ ॥ कर्मिष्ठ कर्मनिष्ठौ द्वौ त्रिषु पुण्यादि कर्तरि । अभ्यासे खुरली योग्या सङ्केत स्त्विङ्गिते पुमान् ।। ३५ ।। स्यात्कागं करगलं मैंषी स्त्री लेखरञ्जिका । १९० (१) यज्ञोपवीत के दो नाम-उपवीत १ यज्ञसूत्र २ नपुंसक | (२) पाठ निषेत्र के दो नाम - अस्वाध्याय १ अनध्याय २ पु० । (३) वन्दना के दो नाम-वन्दना १ स्त्रो, अभिवादन २ नपुं० । (४) ग्रन्थ अर्थ में 'पद्धति' पु०, मार्ग अर्थ में स्त्री० । (५) निजी कल्पना से विरचित ग्रन्थ का एक नाम - कृति १ स्त्री ० । (६) सूत्र के सात नाम - सिद्धान्त १ आगम २ पु०, शास्त्र ३ शासन ४ तन्त्र ५ प्रवचन ६ सूत्र ७ नपुं० । (७) बाहिरी इशारा के दा नाम - आकार १ पु०, इङ्गित २ नपुं० । (८) पुण्य क्रिया करने वालों के दो नाम-कर्मिष्ठ १ कर्मनिष्ठ २ त्रिति । (९) युद्ध कला शिक्षण के तीन नामअभ्यास १ पु०, खुरली २ योग्या ३ स्त्रो० । (१०) इङ्गित का एक नाम सङ्केत १ पु० । (११) कागज के दो नामकागज १ करगल २ नपु० । (१२) १ खरञ्जिका २ स्त्री० । स्याही के दो नाम -मषी Page #204 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - द्वितीयकाण्डम् १९१ वशवगः८ सञ्चः पत्रे पुमान् सञ्ची पत्रिकाद्वे स्त्रियामिमे॥३६॥ पट्टैः शाणिः शिलापट्टः खटिका कठिनी खटी। पुंसि विद्यालयः पाठ-शाला स्त्री पाठवेश्मनि ॥३७॥ मार्जन्यमयी याऽऽस्ते सा रजोईरण नना । सैवाऽल्पिष्ठा पुंसि गोच्छ: पुजनी च प्रमाणिका ॥३८॥ रजोदरणदण्डस्थ वस्त्रं नैषधमुच्यते।। क्लीबं प्रावरणं पुंसि पावारः शाटिका स्त्रियाम् ॥३९॥ ऊर्ध्ववस्त्रमधोवस्त्रे चोलेपट्ट इति स्मृतः। मुखबद्धे खण्डवस्त्रे स्यात्स्त्रियां मुखवै स्त्रिका ॥४०॥ श्रमणोपासकः श्राद्धः श्रावकश्च समा इमे। (१) समाचार पत्र के तीन नाम-सञ्च १ पु० (पत्र नपुं०), सञ्ची २ पत्रिका ३ स्त्रो० । (२) सिलेट (पाटी) के तीन नामपट्ट १ शाणि २ शिलापट्ट ३ पु० । (३) खड़ी के तोन नामखटिका १ कठिनी २ खटो ३ स्त्री० । (४) पाठ भवन के दो नाम-विद्यालय१ पु०, पाठशाला २ स्त्री. (पाठशालम् नपुं०)। (५) रजोहरण का एक नाम-रेजोहरण १ नपुं० । (६) पुंजनी के तीन नाम-गोच्छ १ पु०, पुञ्जनी २ प्रमाणिका ३ स्त्रो० । (७) रजोहरण दण्ड के वस्त्र का एक नाम-नैषध नपुं० । (८) जैन साधू के शरीर के उपरि वन के तीन नाम'प्रावरण १ नपुं०, प्रावार २ पु०, शाटिका ३ स्त्री० । (९) जैन साध के परिधानीय वन का एक नाम-चोलपट्ट १ पु० । (१०) सदोरक मुहपत्ती का एक नाम-मुखवत्रिका (मुखपत्रिका) १ सी०। (११) श्रावक के तीन नाम-श्रमणोपासक १ श्राद्ध २ श्रावक ३ पु० । Page #205 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीयकाण्डम् १९२ वंशवर्गः ८ आषाढी मवधिं मत्वा पञ्चादशदिन पञ्चमी ॥४१॥ संवत्सरी पर्युषण पर्वाऽन्तः शास्त्रसंमतः । इति वंशवर्गः समाप्तः (१) आषाढो पूर्णिमा के दूसरे दिन से गिनने पर पचासवां दिन की पञ्चमी तिथि को 'संवत्सरी' हो ऐसा शास्त्र का पाठ है स्त्री०, समवायाङ्ग सूत्र में इसी दिन को पर्युषण का अन्तिम दिन मानते हैं । ॥ ० ॥ इति वंशवर्गः समाप्तः ||०|| Page #206 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीयकाण्डम् क्षत्रियवर्ग:९ ॥ अथ क्षत्रियवर्गः प्रारभ्यते ॥॥ मूर्धाभिषिक्त राजन्य विराट् क्षत्रिय बाहुजाः। नृपे पार्थिव राक्ष्माभृद् राज भूप महीक्षितः ॥१॥ सार्वभौमः समुद्रान्त घरेशे चक्रवर्तिनि । मण्डलेश्वर ऊर्येक देशशास्ताऽथ राजकम् ॥२॥ राजन्यकं भवेदेवा सचिवोऽमात्य मन्त्रिणौ । महामात्रः प्रधानं स्याद् द्वा स्थो दौवारिकस्तथा।॥३॥ द्वारपाल: प्रतोहारो द्वारपो वेत्रधारकः । प्रहरी यामिकौ द्वौस्तः प्राविपाकोऽक्षदर्शकः ॥४॥ प्रस्तोता धर्मकृत्यस्य पुरोहित पुरोधसौ । हिन्दी- (१) क्षत्रिय के पांच नाम-मूर्धाभिषिक्त १ राजन्य २ विराट् ३ क्षत्रिय ४ बाहुज ५ पु० । (२) राजा के सातनाम-नृप १ पार्थिव २ राट् ३ माभृत् ४ राजा ५ भूप६ महीक्षित ७ पु० । (३) समुद्र पर्यन्त पृथिवी के तीन नाम-सर्वभौमह १ समुद्रात २ धरेश ३ चक्रवर्ती ४ पु० । (४) पृथिवी के एकके देश शासक का एक नाम-मण्डलेश्वर १ पु० । (५) राजसमह के दो नाम-राजक १ राजन्यक २ नपुं० । (६) मन्त्रियों के तीन नाम-सचिव १ अमात्य २ मन्त्री ३ पु० । (७) बड़ा प्रधान मन्त्री का एक नाम-महानात्र १ पु० । (८) द्वारपाल (दरवाम) के छ नाम-द्वाः स्थ १ दोवारिक २, द्वारपाल ३ प्रतीहार ४ द्वाप ५ वेत्रधारक ६ पु०। (९) चौकीदार के दो नाम-प्रहरी १ यामिका २ पु० । (१०) वक्रील बैरिष्टर के दो नाम-प्राइविपाक १ अक्षदर्शक २ पु० । (विवादानुगतं पृष्ट्वा पूर्वबाक्यं प्रयसतः। विचारयति येनाऽसो प्राविपाकस्ततः स्मृतः ॥) (१२) पुरोहित के दो नाम-पुरोहित १पुरोषस् २ पु० । Page #207 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - द्वितीयकाण्डम् क्षत्रियवर्गः ९ स्यादगर्वनरः कर्म-मन्त्री तदवरस्तु यः ॥५॥ स कर्मेशनरः तप्पोऽधीशस्तु करकूटनः। न्यायाधीशस्त्वक्षपाटो धार्मिकोऽथ मनस्विपः ॥६॥ विवादाधिपतिः स्थेयः प्रान्तेशो मध्यदेशराट् । सेककोऽर्थ्यऽनु जीवीस्यात्कोट्टपाले तु मुद्रकः ॥७॥ मुखतारो मुख्यतरः स्यान्मनस्वा तु मुद्रकः । औदघाटिकः पुलोशैस्तु पुरीशो यामिकाधिपे ॥८॥ पुंस्युदघाटः स्त्रियां स्थानो यामिकाधिपति स्थलम् । (१) गवर्नर का का एक नाम-गर्वरनर १ पु० । (१) इनके अधिकार में काम करने वाले का एक नाम-कर्ममन्त्री १ पु०। ( शिक्षामन्त्री आदि ) (३) कमिश्नर का एक नाम-कर्मेशनर १ पु. । (४) कलेक्टर के दो नाम-तप्पाऽधीश १ करकटन २ पु. । (५) जज के तीन नाम-न्यायाधीश १ अक्षपाट २ धार्मिक ३ पु. । (६) मुन्सीफ का एक नाममनस्विप १ पु. । (७) मजिष्ट्रेट के चार नाम-बिवादाधिपति १ स्थेय २ प्रान्तेश ३ मध्यदेशराटू ४ पु. । (८) सेवक के तीन नाम- सेवक १ अर्थो २ अनुजीवी ३ पु. । (९) कोतवाल के दो नाम-कोट्टपाल १ कोट्टप २ पु. । (१०) मुखतार के दो नाम-मुखतार १ मुख्यतर २ पु.। (११) मुन्शी (मोहरिर) के दो नाम-मनस्वी १ मुद्रक २ पु. । (१२) हवलदार का एक नाम-औद्धाटिक १ पु. । (१३) पुलीश के दो नाम-पुलीश १ पुरीश २ (यामिकाधिपति) पु. । (१४) थाने के तीन नाम उद्बाट १ पु., स्थानी २ स्त्री., यामिकाधिपति स्थल ३ नपुं.। Page #208 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - द्वितीयकाण्डम् १९५ क्षत्रियवर्गः ९ नैष्किको रजताध्यक्षः कोशाध्यक्षस्तु कोशपः ॥९॥ धन पालो धनाध्यक्षः स्वर्णाध्यक्षस्तु भौरिकः । प्रशस्त कर्मकर्तृणां मानदानेऽभिनन्दनम् ॥१०॥ अधिकारिण्यधिकृताऽध्यक्षाऽधिपति मालिकाः । जयपत्र लब्धिपत्रं समौ मध्यस्थ साक्षिणौ ॥११॥ माध्यस्थं साक्षिता प्रातिभाव्य लग्नकते समे । यदावेदनपत्रं तत् प्रार्थनादलमुच्यते ॥१२॥ प्रमाणपत्रं यत्तस्याद् व्यवस्थापत्रमित्यपि । अभियोगैस्तु राजादिष्वपरार्धानवेदनम् ॥१३॥ (१) चान्दो के रुपैया छापने छपवाने वाले अधिकारी के दो नाम-नैष्किक १ रजताऽध्यक्ष २ पु । (२) स्वजाञ्ची के दो नाम-कोशाध्यक्ष १ कोशप २ पु. । (३) धान्य संरक्षण अधिकारों के दो नाम-धनपाल १ धनाध्यक्ष २ पु. । (४) सुवर्ण विभागके अधिकारी का एक नाम - भौरिक १ पु. । (५) सम्मान देने का एक नाम-अभिनन्दन १ नपुं. । (६) अधिकारी के पांच नाम-अधिकारी १ अधिकृत २ अध्यक्ष ३ अधिपति ४ मालिक ५ पु.। (७) दिया हुआ न्यायपत्र के दो नाम-जयपत्र १ लब्धिपत्र २ पु. । (८) साक्षी के दो नाम-मध्यस्थ १ साक्षी २ पु. । (९)माक्षांके वक्तव्यता के दो नाम-माध्यस्थ्य १ नपुं., साक्षिता २ स्त्री. । (१०) जमानत के दो नाम-प्रतिभाव्य १ नपुं. लानकता २ स्त्री । (११) आवेदन पत्र के दो नाम-आवेदन पत्र १ प्रार्थनादल २ नपुं.। (१२) प्रमाणपत्र के दो नाम प्रमाणपत्र १ व्यवस्थापत्र नपुं । (१३) मुकदमा के तीन नाममभियोग १ पु. । अपराध २ निवेदन ३ पु. । . Page #209 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीयकाण्डम् क्षत्रियवर्गः९ शेङ्का तत्त्वाभियोगाभ्यो तभेदो द्विविधो मतः। अभियोगस्य यार्थाथ्याऽन्वेषणे त्वभियोजनम् ॥१४॥ कारी स्त्री बन्धनाऽगार बन्यां तु प्रग्रहः पुमान् । आवेदेकोऽभियोक्ताऽभियोगोवादी च वादकः ॥१५॥ अभियुक्तः प्रतिद्वन्द्वी प्रतिवादी विवादकः । कक्षावेक्षक शुद्धान्त-पालाऽन्तर्वेशिकाः समाः ॥१६॥ कञ्चुकी सौविदल्ल: स्यात् षण्ढ वर्षवरावपि । (१) मुकदमा के दो नाम-शंकाभियोग १ तत्त्वाभियोग २ पुं.। (२) इन्क्वायरी (तहकिकात) का एक नामअभियोजन १ नपुं. । (३) जेल के दो नाम-कारा १ स्त्री., बन्धनाऽगार (बन्धनालय) २ नपुं.। (१) राज्यरक्षा के पुलिस अथवा सेना द्वारा जो पकड़ लिये गये हों, चाहे इनके ऊपर मुकदमा चलाया गया हो अथवा चलने वाला हो, लेकिन जमानत नहीं हुई हो, इनके दो नाम-बन्दी १ स्त्री. प्रग्रह २ पु. । (५) मुकदमा दायर करने वाला (मुईई) के पांच नाम-आवेदक १ अभियोक्ता २ अभियोगी ३ वादी ४ वादक ५ पु. । (६) मुद्दालह (जिसके उपर मुकदमा दायर किया गया है) के चार नाम-अभियुक्त १ प्रतिद्वन्द्वी २ प्रतिवादी ३ विवादक ४ पु. । (७) राजा के अन्तः पुर संरक्षक के सात नाम-कक्षावेक्षक १ शुद्धान्तपाल २ अन्तर्वेशिक ( अन्तर्वशिक ) ३ कञ्चुको ४ सौबिदल्ल ५ घण्ढ ६ वर्षवर ७ पु.! Page #210 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीयकाण्डम् १९७ क्षत्रियवर्गः ९ आस्थानो राजधानी स्त्री हास्यकारी विदूषकः ॥१७॥ भाण्डागारः कोषकोशौ रक्षी स्याद्राजरक्षकः । घण्टायन्त्र घटीनाली यामनाली यमेरुका ॥१८॥ स्वेदेशान्तरितो राजा मित्रं शत्रुरितोऽन्यदृक् । उदासीनस्तृतीयः स्यात्पाणिग्राहोऽनुपृष्ठगः ॥१९॥ समौ स्निग्ध वयसौ स्तः क्लोबे मित्रं सखा सुहृत् । शत्रुस्तु शात्रवाऽमित्राऽहिताऽरि रिपु वैरिणः ॥२०॥ परप्रतीप प्रत्यर्थि विपक्षाऽराति विद्विषः । दुहृद् द्वेषि द्विषद् दस्यु सपत्न परिपन्थिनः ॥२१॥ (१) राजधाना के दो नाम-आस्थानी १ राजधानी २ स्त्री. । (२) विदूषक के दो नाम हास्यकारी १ विदूषक २ पु. । (३) खजाना के तीन नाम-भाण्डागार (भाण्डार) १ कोष २ कोश ३ पु. (४) राज्याधिकृत संरक्षक के दो नाम-रक्षी (रक्षिन) १ राजरक्षक २ पु. । (५) घडियाल के पांच नाम - घण्टायन्त्र १ नपुं., घाटी २ नालो ३ यामनालो ४ यमेरुका ५ स्त्री. (६) अपने अपने देश के पडोसी राजा तोन प्रकार के होते हैं- मित्र १ नपुं० शत्रु २ पु., उदासीन ३ पु.। (७) लडते समय अपने पोछे से होने वाले अचानक हमले को रोकने वाले योद्धाओं के दो नामपाणिग्राह १ अनुपृष्ठक २ पु. । (८) मित्र के पांच नाम-स्निग्ध १ वयस्य २ सख्य ३ सुहृद् ४ पु० मित्र ५ नपुं । (९) शत्रु के उन्नीस नाम-शत्रु १ शात्रब २ अमित्र ३ अदित ४ अरि ५ रिपु ६ वैरी ७ पर ८ प्रतोप ९ प्रत्यर्थि १० विपक्ष ११ अराति १२ विद्विद १३ दुर्हृद् १४ द्वेषी १५ द्विषत् १६ दस्यु १७ सपत्न १८ परिपन्थी १९ पु. । Page #211 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीयकाण्डम् क्षत्रियवर्गः ९ आप्तो विश्वसितो गुप्तचरे चारचरस्पशाः । स्त्री मैत्री मित्रता मैत्र्यं सख्यं साप्तपदीनकम् ||२२|| इष्ट संपादन स्वस्याऽऽराध्यादेरनुवर्तनम् | सैत्री सदावतीदानी सिद्धान्तज्ञस्तु तान्त्रिकः ||२३|| दैवज्ञ गणको ज्योति-विंद भविद् ज्योतिषी स्मृतः । सामुद्रिकस्त्वीक्षणिको दूतेः सन्देशहारकः ||२४|| विविक्तं विजनैकान्ताः उपांशु च रहोऽव्ययः । रहस्यं त्रिषु तज्जाते युक्तौ क्लीबं समर्जेंसम् ||२५|| १९८ हिन्दी - (१) विश्वास पात्र के दो नाम आप्त १ विश्वसित २५. । (२) गुप्तचर ( खोपिया पुलिश) के चार नाम गुप्तचर १ चार २ चर ३ स्पश ४ पु. । (३) (मत्रता (दोस्ती) के चार नाम - मैत्री १ मित्रता २ स्त्री, मैत्र्य ३ सय ४ नपुं. ( यह मित्रभाव 'साप्तपदीन' सात कदम साथ २ चलने पर बन जाता है) । ( ४ ) आराध्य गुरुवर्ग के मनोवाञ्छित संपादन का एक नाम - अनुवर्तन १ नपुं. ( अनुरोध पु.) । (५) दानी के तीन नाम सत्री १ सदाव्रती २ दानी ३ पुं. (६) शास्त्रवेत्ता के दो नाम सिद्धान्तज्ञ १ तान्त्रिक २५. । (७) ज्योतिष शास्त्र ज्ञाता के पांच नाम - दैवज्ञ १ गणक २ ज्योतिर्वित् ३ भवित् ४ ज्योतिषी (ज्योतिषिक) ५ पु, । (८) हस्तरेखा आदि के ज्ञाता के दो नाम - सामुद्रिक १ ईक्षणिक २ पु. । [ ९) दूत के दो नाम दूत १ सन्देशहारक २पु. (१०) एकान्त के पाँच नाम - विविक्त १ विजन २ एकान्त ३ पु. उपांशु ४ रहस्५ अव्यय । (११) गुप्तवातों का एक नाम - रहस्य १ नपुं. । (१२) न्याययुक्त वार्ता का एक नाम - सामञ्जस २ नपुं. Page #212 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीयकाण्डम् - १९९ क्षत्रियवर्गः ९ धर्माधिकरणं धर्मासनं नीति वितर्दिकाः । स्त्रियां न्यायालय: मुसि तथा कचहरीत्यपि ॥२६॥ स्याद्वा"कोऽक्षरकरो लेखकोऽक्षरजीवकः । तथैवाऽक्षर चन्चुश्च लोकेऽक्षर चणोमतः ॥२७॥ स्यात्कागदं करगलं स्त्रियां स्याल्लिपिधानिका । तथा पुंस्युक्षरन्यासोऽक्षरधिः पत्रिका स्त्रियाम् ॥२८॥ लिपि लिबिः स्त्रियां लेखेऽक्षरन्यासोऽक्षराङ्गकम् । जननीत्वक्षरस्य स्याल्लेखन्यक्षरतूलिका ॥२९॥ कलमोऽथ मसीधानी मसीपात्रं मसिप्रमः । नीतिः स्त्रियां न्यायकल्पो शासनं तु निदेशनम् ॥३०॥ (१) न्यायालय के पांच नाम-धर्माधिकरण १ धर्मासन २ नपुं., नीतिवितर्दिका ३ स्त्री. न्यायालय ४. पु., कचहरो ५ स्त्री.। (२) लेखक (लैआ, नकलनवीस) के छ नाम-वार्णिक १ अक्षरकर २ लेखक ३ अक्षरजीवक ४ अक्षरचञ्चु ५ अक्षरचण ६ पु० । (३) कागज के छ नाम-कागद १ करगल २ नपुं० अक्षरन्यास ३ अक्षरधि ४ षु०, लिपिधानिका ५ पत्रिका ६ स्त्री. (४) लेख (लखान) के पांच नाम-लिपि १ लिबि २ स्त्रो०, लेख ३ अक्षरन्यास ४ पु०, अक्षराङ्गक ५ नपुं० । (५) लेखनी (होल्डर) के तीन नाम-लेखनी १ अक्षरतूलिका २ स्त्री. कलम ३पु० । (६) दाबात खड्ढिया के तीन नाम-मसीपात्र १ नपुं०, मसीधानी २ मसीप्रसू ३ स्त्री० । (७) नीति के तीन नाम-नीति १ स्त्री, न्याय२ कल्प ३ पु. । (८) आज्ञा के तीन नाम-शासन १ निदेशन २ नपु., आज्ञा३ पु. । Page #213 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीयकाण्डम् २०० क्षत्रियवर्ग: ९ स्त्रियामाज्ञाऽपराधे तु मन्तु रागो नपुंसकम् । मन्त्रः स्यादषडक्षीणो भ्रष औचित्य पातनम् ॥३१॥ त्रिषु त्वौपायिकं न्याय्य युक्तं बलि करौ समौ । स्यात्तदात्वं तु तत्कालः समे उद्दान बन्धने ॥३२॥ गलहस्तोऽर्धचन्द्रः स्याद् धारो दण्ड प्रणालिका । स्यादुद्भन्धनमुत्प्राशः शूलैदण्डस्तु शूलिका ॥३३॥ प्रक्रियात्वधिकारोऽस्त्रि शुल्कं घट्टादिजः करः। (१) अपराध के तीन नाम-अपराध १ मन्तु २ पु., आगस ३ नपुं. । (२) गुप्तमन्त्र का एक नाम-अषडक्षण १ पु. । (३) उचित से नीचे पड़ने का एक नाम-भ्रष१ नपु.। (४) न्यायसिद्ध के तोन नाम- औपयिक १ न्याय्य २ युक्त ३ त्रिलिङ्ग 1 (५) टेक्सकर के दो नाम-बलि १ कर २ पु. । (६) तत्काल (वर्तमान) काल के दो नाम -तदात्व १ नपुं.। तत्काल २ पु. (७) बन्धन के दो नाम-उद्दान १ बन्धन २ नपु. । (८) अंगूठा और तर्जनी अंगुलो को फैलाकर किसी के गले पर रख्व के धकेलना 'अर्धचन्द्र' है पु. । (९) न्याय कानुन के दो नाम-धारा १ दण्डपणा लका २ स्त्री. । (१०) फांसी के दो नाम-उद्वन्धन १ पु., उप्राश २ पु । (११) शूलीदण्डके दो नाम-शूलदण्ड १ पु. शूलिका २ स्त्री. । (१२) राजा आदि के छतधारण आदि काम को संभालने के दो नामप्रक्रिया १ स्त्री.. अधिकार २ पु.नपु. । (१३) नदि आदि पार उतार ने के टिकट का एक नाम-शुल्क १ पु० नपु. । Page #214 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीयकाण्डम् २०१ क्षत्रियवर्गः९ आयेतिः स्युत्तरेकाले चमेरं चामरं समे ॥३४॥ सुदायो यौतुके देये सज्जन सैन्यरक्षणे । उपग्राह्योपचारौ द्वा वुत्कोच उपहारकः ॥३५।। उपदानं कौशलिकं दौकनाऽऽमिष प्राभृतम् । उपायनं तथा लञ्चो पदा दाने स्वयं कृते ॥३६॥ पुस्यु देकः फलं भावि सद्यः सान्दृष्टिकं तु यत् । हैमं सिंहासन तुल्ये भद्रासन नृपासने ॥३७॥ भृङ्गारः पुसि. झारी स्त्री झरोका कनकालुका । (१) उत्तर (आगल) काल का एक नाम-आयति १ स्त्री. । (२) चामर के दो नाम-चमर १ चामर २ नपु. । (३) कन्या विवाह में व्रतभिक्षा दि में देय द्रव्य के दो नामसुदाय १. यौतुक २ नपु. (४) सेना के पहरेदार का एक नाम-सज्जन [उपरक्षण] नपु. । (५) रिशवत के बारह नाम-उपग्राह्य १ उपचार २ स्कोच ३ उपहार ४ पु., उपदान [उपप्रदान] ५ कौशालक ६ ढोक। ७ आमिष ८ ग्रामृत ९ उपायन १० नपु, लञ्चा ११ उपदा १२ (६) भावी 'फल का एक नाम उदर्क १ पु. ! (७) सद्यःफल (व्यापार आदि) का एक नाम-सान्दृष्टि रू १ नपुं.। (८) सुवर्णसिंहासन का एक नाम -सिंहासन १ नपुं.। (९) मणि घटित नृपासन के दो नाम-भद्रासन १ नृपासन २ नपु. । (१०) सुवर्ण जलपात्र के चार नाम-भृङ्गार १ पु. झारी २ झरिका ३ कनकालुका ४ स्त्री. । Page #215 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीयकाण्डम् २०२ क्षत्रियवर्गः ९ धारयन्त्र मपांयन्त्रे वस्तैिः स्याद्रेचके पुमान् ॥३८॥ स्याद्वेश्यालम्पटः काम-कूट: कूच तु कूचेकम् । वेत्रासनं समावेदी चाऽऽसन्दी कथितास्त्रियाम् ॥३९॥ स्यादासङ्गस्तु सम्बन्ध आसनं तू-पवेशनम् । नागर्दन्ताश्च भूमन्येव पुंसि स्याटकर्कटः ॥४०॥ चक्राऽभ्यासश्चक्रशिला तत्स्थानं तु खलूरिका । "शिबिरं कटकं षण्ढे निवेशोऽप्यथ कुजैरः ॥४१॥ द्विपो दन्तावलो दन्ती द्विरदो वारणो गजः । इभः स्तम्बे रमो नागः करी हस्ती मतङ्गनः॥४२॥ (१) फोहारा का एक नाम-धारायन्त्र [जलयन्त्र] १ नपुं. । [२] पिचकारी का एक नाम -वस्ति १ पु. । [३] वेश्यागामी के दो नाम -वेश्यालम्पट १ कामक्ट पु. । [४] ब्रूस के दो नाम–कुर्च १ कूर्चक २ नपु.। [५] कुरशी के तीन नाम-वेत्रासन १ नपुं. सभावेदी २ आसन्दी ३ स्त्री. । [६] सम्बन्ध के दो नाम -आसङ्ग सम्बन्ध २ पु. । [७] आसन के दो नाम-आसन १ उपवेशन २ नपुं.। [८] खेटी [खूटी जिस पर कपड़े टांगे जाय] के दो नाम-नागदन्त [बहुवचन] १ घटकट २ पु. । [९] चक्र चलाने को शिक्षा के दो नामचक्राभ्यास १ पु., चक्रशिला २ स्त्रो. । [१०] चक्रशिक्षा स्थान का एक नाम-खरिका १ स्त्री.। [११] सेना निवेश [छावनी] के तीन नाम-शिबिर १ कटक २ नपुं., निवेश ३ पु. । [१२] हाथी के उन्नोस नाम-कुञ्जर १ द्विप २ दन्तावल ३ दन्ती ४ द्विरद ५ वारण ६ गज ७ इभ ८ स्तम्बेरम ९ नाग १० करी Page #216 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीयकाण्डम् २०३ क्षत्रियवर्गः ९ मातङ्गोऽनेकपः पद्मी कुम्भी करीट सिन्धुरौ।। मदोत्कटो मदोन्मत्तो मत्तो मदकलः समाः ॥४३॥ यूथेशी गुथनाग स्यात्सलभोऽति शिशुः करी । उद्वन्तो निर्मदो यूथे हास्तिकं गजता स्त्रियाम् ॥४४॥ हस्तिगण्डः कटोऽस्य स्त्री हस्तिनी करिणीवशा । इषो का नेत्रगोल स्था-ल्ललाटं स्यात्वर्वग्रहः ॥४५॥ शुण्डादण्डः करस्तज्जो जलाणुर्वमथुः पुमान् । ११ हस्ती १२ मतङ्गन १३ मातड्ग १४ अनेकप १५ पनी १६ कुम्भो १७ करीट १८ सिन्धुर १९ पु. । हिन्दो-(१) मदमस्त हाथी के चार नाम-मदोत्कट १ मदोन्मत्त २ मत्त ३ मदकल ४ पु० । (२) यूथ में प्रधान हाथी के दो नाम-यूथेश १ यूथनाग २ पु० । (३) हाथी के बच्चों का दो नाम-कलभ ९ करिपोत २ पु० । (४) मदहोन हाथी के दो नाम-उदान्त १ निर्मद २ पु० । (५) गजप्तमूह के दो नाम-हास्तिक २ नपुं गजता २ स्त्री० । (६) गजकपोल के दो नाम-हस्तिगण्ड १ कट २ पु० । (७) हथिनी के तीन नामहस्तिनी १ करिणो २ वशा ३ स्त्री० । (८) नेत्रगोलक के दो नाम-इषोका (ईषिक) १ स्त्री०, नेत्रगोल २ नपुं० । (९) गज ललाट का एक नाम-अवग्रह १ पु. । (१०) हाथी के शुण्डादण्ड से निकलते पानी के दो नाम-जलाणु १ वमथु २ पु० । Page #217 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितोयकाण्डम् . २०४ क्षत्रियवर्गः९ दानं मदः शिरः पिण्डः कुम्भोऽस्याभ्यन्तरं विदुः॥४६॥ आसन स्कन्ध देशोऽस्य बिन्दुजालं तु पद्मकम् । अकुशोऽस्त्री सृणिः स्त्री स्यात्कशायां तोत्र वैणुकौ।४७॥ निगडोऽस्त्र्यन्दुकोनाऽन्दुः स्त्री नना शृंखलं भवेत् । कल्पना सजना कक्ष्या-दृष्ये तूदरबन्धनो ।।४८।। कुथी वर्णः परिस्तोमः प्रवेण्यास्तरणं त्रिषु । आहवो पालितोऽन्येतु द्वयोरेव कुथं विदुः ।।४९।। झलैऽझल्ला तथाऽऽस्फाले हस्तिनी कर्ण चालने । (१) गजमद के दो नाम-दान १ नपुं०, मद २ पु०। [२] ग न शिरः पिण्ड का एक नाम-कुम्भ १ पु. । (३) कुम्भद्वय के भीतर मस्तिष्क को 'विदु' कहते हैं पु० । (४) हाथी के कन्धे का एक नाम-आसन १ नपुं० । (५) हाथो के माथे पर जो रक्तबिन्दु समूह है उसके दो नाम-----बिन्दुजाल १ पद्मक २ नपुं० । (६) अंकुश के दो नाम-अंकुश १ पु०पुं०, सृणि २ स्त्रा० । [७) चाबूक के तीन नाम-कशा १ स्त्रः०, तोत्र २ वैणुक ३ पु० । (८) हस्ति बन्धन बेडी के चार नाम-निगड १ पु० नपुं० अन्दुक २ पु० अन्दु ३ स्त्री. शृङ्खला ४ स्त्री० । (९) चढने के लिये हाथी को सजने के दो नाम कल्पना १ सज्जना २ स्त्री. । (१०) हाथी के पेटकम रस्सा के तोन नामकक्ष्या १ दूष्या २ उदरबन्धनी (रज्जु) ३ स्त्रो. । (११) हाथी के झूल के पांच नाम-कुथ १ (वोपालित मते तु त्रिलिङ्ग, अन्यमते तु पु.नपुं.) वर्ण २ परिस्तोम ३ पु. प्रवेणी ४ स्त्रो. आस्तरण ५ नपुं. । (१२) हथिनी के कर्णचालन के तीन नामझलझल्ला १ स्त्री., आस्फाल २ पु.. हस्तिन कणचालन ३ नपुं. । Page #218 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीयकाण्डम् २०५ क्षत्रियवर्गः९ आलानं बन्धनस्तम्भः स्याद् वारो गजबन्धनी ।।५०॥ हस्तिशाला वरण्डस्तु पुमान् स्त्री गजवेदिका । हस्तिपाऽधोरणौ तुल्यौ वीतं फल्गु हयद्विपम् ॥५१॥ अश्व स्तुरङ्ग तुरग हयवाजि तुरङ्गमाः । घोट घोटकगन्धर्ब सप्तिवाहा सैन्धवाः ॥५२।। पीतिविनीतः संजाता शिक्षा यस्य स आहवे । भिन्नो जह्यान्नयः संज्ञा माजाने यस्तु सत्कुलः ॥५३॥ काम्बोजा वाहिकास्तद्वत् पारसीका वनायुजाः । सवेगो जनः पृष्ठेय स्थौरिणौ भारवाहके ॥५४।। (१) गजबन्धन स्तम्भ के दो नाम-आलान १ नपुं. बन्धनस्तम्भ २ पु. । (२) गजबन्धनशाला (हथिसाड़) के तीन नाम-वारी १ गजबन्धनो २ हस्तिशाला ३ स्त्री. । (३) हाथी के होहे के दो नाम वरण्ड १ पु.. गजवेदिका २ स्त्री. । (४) मह वत के दो नामहस्तिप (हस्तिपक) १ आघोरण २ पु. । (५) कार्याक्षम (नाकाम) हाथी घोड़े के दो नाम-व त १ फल्गु २ नपुं. । (६) घोड़े के चौदह नाम-अश्व १ तुरङ्ग २ तुरग ३ हय ४ वाजी ५ तुरङ्गम ६ घोटक ८ गन्धर्व ९ सप्ति १० वाह ११ अर्वा १२ सैन्धव १३ पीति १४ पु. । (७) शिक्षित घोड़े के एक नामविनीत ९ पु. । (८) उत्तमकुल घोड़े के दो नाम माजानेय (आकीर्ण) १ सत्कुल २ पु.। (९) भिन्न २ देश के घोड़े का पृथक् २ नाम-काम्बोज बाहिक, पारसीक, वनायुज पु । (१०) अधिक वेगशाली घोड़े के एक .म-जवन १ पु. । (११) भारवाही छोडे के दो माम - पृश्य १ स्थौरी २ पु. . . Page #219 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीयकाण्डम् २०६ क्षत्रियवर्गः ९ शुक्लाऽश्वे पुसिकः स्याद् रथ्यस्तु रथवादकः । आश्वीन येन चैकाहा गम्यो गम्येत तत् त्रिषु ॥५५॥ घोर्टेयश्वा वडवा वामो वार्डधं वडवागणः । अश्वस्य नासिका प्रोथं धारापश्च गतिर्यथा ॥५६॥ प्लुतमास्कन्दितं धौरि तकं वल्पितरेचके । हेषां हेषा च शब्देस्त्री कश्यं मध्ये नपुंसकम् ॥५७॥ गलदेशो निगालोऽथाऽऽश्वीय माश्वं हयोच्चयः। खुरः पुंसि शर्फ क्लीबे पुच्छ।ग्रं वालधिः पुमान् ॥५८॥ (१) सफेद घोड़े के एक नाम-कर्क १ पु. । (२) रथ में चलने चाले घोड़े के एक नाम-रथ्य १ पु. (३) जिस घोड़े से एक दिन में ही गन्तव्य देश जाया जा सके उप घोड़े का एक नामआश्वीन १ त्रिलिङ्ग । (४) घोड़ी के चार नाम घट! १ अश्वा २ वडवा ३ वामो ४ स्त्रो. । (५) घोड़ी समुदाय के दो नाम-वाडव १ नपुं, वडागण २ पु. । (६) घोडा के नासिका के एक नाम-प्रोथ १ नपुं.। (७) घोड़े की चाल के दो नाम-धारा १ गति २ स्त्री. । (८) इनके पांच भेद-'लुत १ आस्कन्दित २ धौरितक ३ वल्गित ४ रेचक ५ नपुं. । (९) अश्व शब्द के दो नाम-हेषा १ रुषा २ स्त्री. । (१०) घोड़े के पीठ [मध्यदेश के एक नाम-कश्य १ नपुं. (११) घोडे के गलसमीप देश का एक नाम-निगाल १ पु. (घण्टाबन्ध समोपस्थो निगलः कथिता बुधैः । तस्मिन्नेव मणि मि रोमजः शुभ-कृन्मतः ।।] (१२) अश्व समूह के दो नाम-आश्वीय १ आश्ल २ नपुं.। (१३) खुर के दो नाम-खुर १ पु, शफ २ नपुं. । [१४] पुच्छ के आगे भाग के दोनाम-पुछान १ नपुं., वालधि २ पु. । Page #220 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीयकाण्डम् २०७ क्षत्रियवर्गः ९ लागलं लाङ्गुलं लूमं पूच्छेऽथ कविका स्त्रियाम् । दन्तालिका खलिनोऽस्त्री वल्गा स्त्री प्रग्रहः पुमान् ॥ ५९ ॥ यो युद्धार्थी रथचक्री शताङ्गः स्यन्दनश्च सः । सुखेन भ्रमणार्थी यः सस्यात्पुष्पैरथो रथः ||६०|| स्त्रीणां रथे पुमान् कण रथः प्रवहणं तथा । aatastः शकटो नस्त्री मन्त्री गान्त्री च गाडिका ॥ ६१ ॥ ताम्रयानं चतुर्दोली पाल्यङ्की शिविके समे । प्रेङ्ख हिन्दोलयो दौला दोली तु खर्वयोस्तयोः ॥६२॥ arunga याने स्यात् त्रिषु वस्त्रादयः स्मृताः । वस्त्राद्यावृत साध्यैकलं तु पद्यानं कारयानन्तु मुष्टिलम् ॥६३॥ १ हिन्दी - [१] पुच्छ के चार नाम - लाङ्गूल १ लानु २ लूम ३ नपुं., पुच्छ४ नपुं. । [२] लगाम के पांच नाम - कविका १ दन्तालिका २ स्त्र, खलीन ३ पु. नपुं, वल्गा ४ स्त्री. प्रग्रह ५ पु. । [३] युद्धाथ के तीन नाम - चक्री शताङ्ग २ स्यन्दन ३ पु, । [४] भ्रमणार्थ रथ के एक नाम - पुष्परथ १षु । [५] स्त्री के रथ के दो नाम कर्णी १ पु., प्रवहण २ नपुं. [६] गाड़ी के पांच नाम - अनस् १ नपुं. शकट २ पु. नपुं., मन्त्री ३ गान्त्री ४ गाडिका ५ स्त्री । [७] पालखी के चार नामताम्रयान १ नपुं. चतुर्दोलो २ पाल्यङ्की ३ शिबिका ४ स्त्री । 19 [८] दोला कहने से खा ( पालखी) और हिन्दोला ( हिडोला ) - झूला) ख) । [९] छोटे पालखी हिड्रोला के एक नाम-दोली १ स्त्री । [१०] वखादि से ढके हुए सवार। का एक नाम - वास्त्र १ त्रिलिङ्ग । [११] साइकल के दो नाम-साध्यकील १ पदयान २ नपुं. । [१२] कार मोटर के दो नाम-कारयान १ मुष्टिल २नपुं । - Page #221 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीयकाण्डम् २०८ क्षत्रियवर्गः ९ व्योमैयानं वायुयानं वाष्पयानं तु वह्नयनः । स्थेशनं विश्रमस्थानं गुप्तवाटी तु गुर्वटी ॥६४॥ चिटिकाऽथो वेशपत्रं तद् द्रष्टा चिंटिकेट त्रिषु । वाष्पयान प्रकोष्ठे तु कायंपीठ प्रकोष्ठकम् ॥६५॥ अथ लौहपंथो लौह-कर्म तन्मार्ग उच्यते । उपरिष्टाज्जलादेयों मर्गः स पुलमुच्यते ॥६६। प्रधिः पुंसि स्त्रियां नेमिः चक्रभू स्पशि दारुणि । पिण्डिं का तु स्त्रियां नाभिश्चक्र मध्यस्थ पिण्डिके ॥६॥ [१] हवाई जहाज के दो नाम-व्योमयान १ वायुयान २ नपुं.। (२) रेलगाड़ी के दो नाम-वाष्पयान १ वहन्य नस २ नपुं. । (३) रेल रुकने की जगह (स्टेशन) के दो नाम-स्टेशन १ विश्रामस्थान [वित्र स्थान] नपुं.। [४] धूंगटी के दो नामगुपवाटी १ गुर्वटी २ स्त्री. । (५) टिकिट का एक नाम-चिटिका १ स्त्री०। (६) प्लेट फार्म टिकिट का एक नाम-वेशपत्र १ नपुं० । (७) टिकिट कलेक्टर का एक नाम- चिटीकेट १ त्रिलिङ्ग । (८) रेल गाडी के डब्बे के दो नाम- काम्यपोठ १ प्रकोष्ठक २ नपुं० । (९) रेलगाडो की पटरी (लेन) के दो नाम- लौहपध १पु०, लौहवर्म २ नपुं० । (१०) जलादीके ऊपर से जो लोहकाष्ठ आदि का मार्ग है उसका एक नाम-पुल १ नपुं० ।(११) गाडी के चक्र से लेकर पृथ्वी तक सम्बन्धित काष्ठ के दो नाम-प्रधि १ पु०, नेमिः २ स्त्री० । (१२) रथचक्र के बीच में जो मण्डलाकार है, उसके दो माम-पिण्डिका १ स्त्री०, नाभि २ नपुं० । क . .. Page #222 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीयकाण्डम् क्षत्रियवर्ग: ९ समे रथाङ्गचक्रे तत् कोले त्वाणि रणियोः । काष्ठेऽधः स्थेऽनुकर्षोऽथ वरूँथो रथवेष्टनः ॥६८॥ यानमात्रे स्मृतं युग्यं यानं पत्रं च वाहनम् । वृषादिस्कन्धसंसक्तो युगः प्रासङ्ग ईरितः ॥६९।। अश्वादि बन्धने काष्ठे कूबरश्च युगन्धरः । रथाऽवयवमात्रेतु रथाङ्गाःऽपस्करावुभौ ॥७॥ अस्त्रीवैनीतके तत्स्यान्नसाक्षाद् वाहनचयत् । रथाऽऽरोही रथी योद्धा सेनापोलस्तु सैनिकः ॥७॥ (१) गाडी के चक्र के दो नाम• रथाङ्ग १ चक्र २ नपुं०। (२) गाडी के कील के दो नाम आणि १ अणि २ स्त्री०पु० । (३) गाडी के चक्रधार काष्ठ के ऊपर रक्खे गए, जो कि गाडी नीचे है, उन दोनों काष्ठ का एक नाम-अनुत्कर्ष १ पु० । (४) गाडी पर लदा गया सामान जिस घेडे से रोका गया नीचे नहीं पड़ता है उस आवरण के दो नाम- वरूथ १ रथवेष्टन २ पु०॥ (५) यान मात्र के (प्रत्येक सवारीके) चार नाम- युग्य १ यान २ पत्र ३ वाहन ४ नपुं० (६) गाडी के जो काष्ठ बैल के कन्धे पर रक्खा जाय उस काष्ठ के दो नाम-कूबर १ युगन्धर २पु० । .. (७) रथ के प्रत्येक अवयव को "रथाङ्ग और उपस्कर" कहते हैं पु० । (८) जो साक्षात् वाहन न हो उनका एक नामवैनीतक १ पु. नपुं० । (९). रथ पर बैठने वालों के तीन नाम-रथारोही १ रथो २ योद्धा ३ पु० । (१०) सेनापाल के दो नाम-सेनापाल १ सैनिक २ पु० । Page #223 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीयकाण्डम् २१० क्षत्रियवर्ग:९ अश्वारोऽश्ववाहोऽश्वसादोऽश्वारोह सादिनो। अश्वारोह्यश्च सादी च स्युः सप्तैतेऽश्ववाहकाः ॥७२॥ अश्वशास्त्रं शालिहोत्र मश्वशालासु मन्दुरा। सूतो यन्ता नियन्ता च सारथावथ "सैनिकः ॥७३॥ सेनासंमिलितः सैन्यः बाणवारस्तु कञ्चुकः। सेनापतिस्तु सेनानी भैट योधौ तु योद्धरि ॥७४॥ वेधेन्या स्फोटनी तुल्ये आसफोटो बाहुताडनम् । परिधिस्थः सैन्यनेत नेता परिचरोऽपि सः॥७५॥ क्लीबे सारेसनं बाण-वारवन्ध वत्रिका । (१)घोडे की सवारी करने वालों के सात नाम-अश्ववार १ अश्ववाह २ अश्वसाद ३ अश्वारोह ४ सादी ५ अश्वारोही ६ अश्वसादी ७ पु. । (२) अश्वशास्त्र के दो नाम-मश्व शास्त्र १ शालिहोत्र २ नपुं. । (३) अश्वशाला को 'मन्दुरा' कहते हैं स्त्री. । (४) कोचधान के चार नाम-सृत १ यन्ता २ नियन्ता ३ सारथि ४ पु० । (५) सैनिक के तोन नाम सैनिक १ सेनासम्मिलित २ सैन्य ३ पु. । (६) सैनिक के वी के दो नाम-बाणबार १ काचुक २ पु. । (७) सेनापति को 'सेनानी' कहते हैं पु. । (८) योद्धा के सीम नाम-मट १ योष २ योद्धा ३ पु. । (९) मोती आदि के बेधनयन्त्र के दो नाम- वेषनी १ मास्फोटनी २ स्त्री। (१०) बहुताडन का एक नाम-मोल्फोट १ पु. । (११)सैन्यनेसा के शासक के दो नाम-परिधिस्थ १ परिचर २ पु. । (१२) कमर बांधने के फीते के एक नाम-सारसन १ नपुं: । Page #224 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीयकाण्डम् २११ क्षत्रियवर्गः ९ १ शिर स्याच्छीर्षण्यं शिरस्त्राणे किरीटे मुकुटं तथा ॥ ७६ ॥ कोटीरं च द्वयो मौलिः शिरोवेष्टनकं तु यत् । उष्णीषं शीर्षकं क्लीवे तनुत्रे वर्म दंशने ॥ ७७ ॥ कंकटोर छदावत्री कवचो जगरोऽपि च । नेत्रत्राणं च चक्षुर्मा उपनेत्री - पचक्षुषी ॥७८॥ क्लीवे कावचिकं तु स्याद् गणे कवचधारिणाम् । आडम्बरस्तु संरम्भस्तथैवाऽऽटोप इत्यपि ॥ ७९॥ व्यूढकङ्कट सन्नद्ध सज्ज दंशितवर्मिताः । आमुक्ते प्रतिमुक्तौ द्वावपिनद्धः पिनद्धवत् ॥८०॥ (१) सेनिक पगडी के दो नाम - शीर्षण्य स्त्राण २ नपुं. । (२) मुकुट के चार नाम - किरीट १ मुकुट २ कोटीर ३ नपुं., मौलि ४ पु. स्त्री. । (३) पगडी के तीन नाम - शिरोवेष्टन १ उष्णोष (उष्णिष् ) २ शीर्षक ३ नपुं. । ( ४ ) कवच के सात नाम- तनुत्र १ वर्म ३ नपुं., कंकठ ४ उरश्छद ५ कवच ६ जगर ७ पु. नपुं. (५) चश्मा के चार नाम चक्षुर्माः १ पु०, नेत्रत्राण २ उपनेत्र ३ उपचक्षुः ४ नपुं० । (६) कवच धारी समूह का एक नामकावचिक १ नपुं० । (७) आडम्बर के तीन नाम- आडम्बर १ संरम्भ २ आटोप ३५० । (८) वख्तरधारी संनद्ध योद्धा के पांच नाम - व्यूढकङ्कट १ सन्नद्ध २ सज्ज ३ दंशित ४बर्मित ५ पु० । ((९) कंचुकवारो के चार नाम- आमुक्त ९प्रतिमुक्त २ अपिनद्ध ३ पिनद्ध ४ पु० । २ दंशन Page #225 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१२ द्वितीयकाण्डम् क्षत्रियवर्गः९ गुणाः यानाऽऽसनद्वैध विग्रहोऽऽश्रय सन्धयः । त्रिवर्गस्तु क्षयो वृद्धिः स्थानं दण्डस्तु साहसम् ॥८॥ दमश्चाऽथोपंधाधर्मा-धैभृत्यादि परीक्षणम् । प्रेभावो दण्ड तेजः प्रतापः कोशजं तथा ॥८२॥ उपायाः सामदानं च भेदो दण्डोऽथ शक्तयः। तिखः स्युमन्त्रणोत्साह प्रभाव जनिता इमाः ॥८३॥ रोजामन्त्री सुहृत्कोषो राष्ट्र सैन्यं च दुर्गभूः । राज्याङ्गं प्रकृतिस्तु स्यात् पुरश्रेणि युतं च तत् ॥८४॥ (१) राजाओं में जो छ गुण होते हैं वे ए हैं- यान १ आसन २ द्वैध ३ विग्रह ४ आश्रय ५ सन्धि ६ पु० । (२) त्रिवर्ग के तीन नाम-क्षय १ पु० वृद्धि २ स्त्री०, स्थान ३ नपुं० । (३) दण्ड के तीन नाम- दण्ड १ दम २ पु०, साहस ३ नपुं० । (४) भृत्यादि की धर्म आदि से परीक्षा का एक नाम-उपधा १ स्त्री० । (५) दण्ड से प्रसिद्ध तेज का एक नाम- प्रभाब १पु० (६) भरपूर खजाने की प्रसिद्धि का एक नामप्रताप १ पु० । (७) ए उपाय चतुष्टय हैं-साम१ दान २ नपुं०, भेद ३ दण्ड ४ पु० । (८) राजाओं के पास शक्तियां तोन होती हैं- मन्त्रणाशक्ति १ उत्साहशक्ति २ प्रभावशक्ति३ स्त्री० । (8) राज्याङ्ग सात हैं-राजा १ मन्त्री २ सुहृत् ३ कोष ४ पु०, राष्ट्र ५ सैन्य ६ नपुं०, दुर्गभू ७ स्त्री० [नगर के पृथक् २ दलों के मुखिया के साथ राज्य की प्रजा भी राज्याङ्ग हैं- यों पूर्वोक्त माठ के आठ राज्याङ्ग हैं।) Page #226 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - द्वितीयकाण्डम् २१३ क्षत्रियवर्गः ९ सहाय साधनोपायौ विभागः कालदेशयोः । प्रतीकारो विपत्तीनां सिद्धिः पञ्चाङ्गमिष्यते ॥८५॥ पुंसि भेदोपैजापोस्तः क्लीब साम तु सान्त्वनम् । अध्वगः पथिकः पान्थोऽध्वनीनो यात्रिक त्रिषु ।।८६॥ पदातिः पदिकः पत्तिः पदाजिः पदगस्तथा । पादातिकश्च गर्वाट: “पादातं तत्कदम्बकम् ।।८७।। मन्थरो मन्दगामीस्याज्जडालाऽतिजवौ समौ । पुरोगैमः पुरोगोऽग्रेसरः प्रष्ठः पुरः सरः ॥८॥ तरस्वी त्वरितो वेगी "रथिको रथिनो रथी। (१) सिद्धियों के पांच अङ्ग हैं- सहाय १ साधनोपाय २ देशविभाग कालविभाग ३ विपत्ति प्रतीकार ४ पु०, सिद्धि ५ स्त्री० । (२) भेद के दो नाम- भेद १ उपजार २ पु० । (३) साम के दो नाम- साम [सामन] १ उपशान्त्वन २ नपुं० । (४) पथिक के पांच नाम- अध्वग १ पथिक २ पान्थ ३ अध्वनीन ४ यात्रिक ५ त्रिलिङ्ग । (५) पैदल योद्धा के सात नाम- पदाति १ पादिक २ पत्ति ३ पदाजि ४ पदग ५ पादातिक ६ गईट ७ पु० । (६) ‘पदाति समूह का एक नाम- पादात १ पु० । (७) घोरे धीरे चलने वालों के दो नाम-मन्थर १ मन्दगामी२ पु. । (८) तेज चलनेवालों के दो नाम-जङ्घाल १ अतिजव १ पु. । (९) आगे चलने वालों के पांच नाम-पुरोगम २ पुरोग २ अग्रेसर ३ प्रष्ठ ४ पुरः सर ५ पु. । (१०) वेगशाली के तीन नाम-तरस्थो १ त्वरित २ वेगी ३ पु. । (११) रथारोही के तीन नाम-रथिक १ रथिन २ रथी ३ पु. । Page #227 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीयकाण्डम् २१४ क्षत्रियवर्गः ९. जैत्र जित्वर जेतारो जिष्णौ वुरैसिलस्त्वसौ ॥८९॥ उरस्वान् सांयुगीनस्तु युद्धे शक्तोऽथ धन्वनि । धनुष्म धन्त्रि धानुष्क निषङ्गय स्त्रि धनुर्धरः ॥+॥ शक्त्यस्त्रभृत् शाक्तोको याष्टीको यष्टियोधनः । काण्डीरः काण्डवान् पार-श्वधिकः पवधायुधः ॥९॥ नैस्त्रिशिकोऽसिधारी स्यात्कौन्तिकप्रासिको समौ । फलेकी ढालिकश्चर्मी पताकी वैजयन्तिकः ॥९२।। लघुह स्तः शरक्षेप कुशलः सिद्धहस्तकः । (१) जयशील योद्धा के तोन नाम-जैत्र १ जित्वर २ जेता ३ पु. । (२) विशाल छाती वाले के दो नामउरसिल १ उरस्वान् २ पु. । (३) संग्राम में जिसको देखकर प्रतिपक्षो थर्राते हो उस योद्धा के एक नाम-सांयुगीन १ पु. । (४) धनुर्धर के छ नाम- धन्वा १ धनुष्मान्। २ धन्वी ३ धानुष्क ४ निषङ्गो ५ पु नपुं., धनुर्धर ६. पु. । (५) शक्ति नाम-के अस्त्र के धारक का एक नामशाक्कोक १ पु. । (६) यष्टि लकड़ी] धारो योद्वा के दो नाम-याष्टीक १ यष्टियोधन २ पु. । (७) बाणधारी के दो नाम-काण्डीर १ काण्डवान् २ पु. । (८) फरशाधारी के दो नाम-पारश्वधिक १ पवैधायुध २ पु । (९) खगधारी के दो नान-नैस्त्रिशिक १ असिधारी २ पु. । (१०) मालाधारी के दो नाम-कौन्तिक १ प्रासिक २ पु. । (११) ढाल धारण करने वाले के तीन नाम-फलकी १ ढालिक २ चर्मी ३ पु. । (१२) पताकाधारी के दो नाम-पताकी १ वैजयन्तोक २ पु. ।। (१३) अचुक निशानबाज के तीन नाम-लघुहस्त १ शरक्षेप-- कुशल २ सिद्धहस्तक ३ पु० । Page #228 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीयकाण्डम् २१५ क्षत्रियवर्गः ९ वेध्यच्युत शरस्तुस्या दपराद्धेषु रित्यपि ॥ ९३ ॥ काण्डपृष्ठायुधीयाssयुधिकाः स्युः शस्त्रजीविनः । योग्यो जयस्य जेयः स्याच्छक्यो जय इति स्मृतः ॥ ९४ ॥ अभ्यैमित्रोऽभ्यमित्रोयोऽभ्यमित्रीणोऽभिशत्रुगे । यथेष्टनुकामीनोऽत्यन्तीनोऽत्यन्तगामिनि ॥ ९५॥ वीरः शूरश्च विक्रान्त त्रिविमे मन्थरादयः । नस्त्रियां तौ धनुश्चापौ पुंसीष्वासः शरासनम् ॥९६॥ कोदण्डं कार्मुकं धन्व चत्वार्येतानि न द्वयोः । एतत्पार्थस्य गाण्डीवं गाण्डिवं चाsस्त्रियामुभे ॥ ९७ ॥ लस्तकं धनुषो मध्यं प्रान्ते कोटयटनी - स्त्रियौ | (१) निशान से जिसका हाथ चुका हो उसके दो नाम - वेध्यच्युतशर १ अपराद्रेषु २ पु० (२) शस्त्र से जीने वाले के चार नाम - काण्डपृष्ट १ आयुधीय २ आयुधिक ३ शस्त्रजोवी ४ पु० । (३) जीतने योग्य का एक नाम - जेय १ पु० । (५) जो जीता जा सके उसका एक नाम - जय्य १५० (६) बल से शत्रु संमुख जाने वाले के चार नाम अभ्यमित्र १ अभ्यमित्रोय २ अभ्यमित्रोण ३ अभिशत्रु ४ पु० । (६) स्वेच्छाचारी के दो नाम - यथेष्टग ९ अनुकामीन २ पु० । (७) अतिवेग गामी के दो नाम अत्यन्तीन १ अत्यन्तगामी २ पु० (८) वीर के तीन नाम - वीर ९ शूर २ विक्रान्त ३ पु० [ए मन्थरादि त्रिलिङ्ग हैं ] । ( ९ ) धनुष के सात नाम-धनुष १ चाप २ नपुं०, इष्वास ३ पु,, शरासन ४ कोदण्ड ५ कार्मुक ६ धन्वन् ७ नपुं० । (१०) अर्जुन के धनुष के दो नाम - गाण्डीव १ गाण्डिव २ पु० नपुं० । (११) धनुष के मध्य भाग का एक नाम - लस्तक १ नपुं० । (१२) धनुष के किनारे के दो नाम - कोटी ९ अटनी २ स्त्री. - Page #229 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीयकाण्डम् २१६ क्षत्रियवर्गः ९ ज्याघात वारणे गोधा ज्या मौर्वीत्री गुणः पुमान् ॥ ९८ ॥ शरोत्विषु यो बण विशिखाssशुग मार्गणाः । लौहवाणस्तु नाचो, बाजपक्षावुभौ समौ ॥९९॥ विषाक्ते लिप्तको लिप्तो निरस्तः प्रहिते त्रिषु । निषङ्गः तूण तुणोरो- पास- बुधयः समाः ॥ १०० ॥ खेद्रः कौक्षेय कोरिष्टि स्तखारिः कृपाणकः । चन्द्रहासाऽसि नित्रिंशा ईलिकी तु कटीतलः ॥१०१॥ अज्झेलं फलक ढाल पैरिवे परिघातनम् । (१) धनुष की डोरी के आधात वारण हेतु निर्मित अंगुलित्राण का एक नाम - गोधा १ स्त्री,, ([ तल] तला २ नपुं० स्त्री० ज्याघातवारण ३ नपुं) (२) धनुष के डोरी के तीन नाम -ज्या १ [शिञ्जिनी] मौर्वी २ स्त्री, गुण ३ पु, । (३) बाण के छ नाम -शर १ बाण २ विशिख ३ आशुग ४ मार्गण ५ पु० इषु ६ पु० स्त्री, (४) लोह बाण का एक नाम - नाराच १ पु० । (५) बाण में लगाये गये पंख के दो नाम - बाज १ पक्ष २ पु । (६) विषदिग्ध बाण के तीन नाम - विषाक्त १ लिप्तक २ लिप्त ३ पु, । (७) जो बाण हाथ से निकल गये हो उसका एक नाम - निरस्त १ त्रिलिङ्ग । (८) बाण की थैली के पाँच नाम - निषङ्ग १ तूण २ तूणीर ३ उपासङ्ग ४ इषुधि ५ पु० । (९) तलवार के आठ नाम-स्वन १ कौक्षेयक २ रिष्टि ३ तलवारि ४ कृपाणक ५ चन्द्रहास ६ असि ७ निस्त्रिंश ८ पु० । (१०) कटार के दो नाम - ईलिका [ करवालि का] १ स्त्री, कटीतल २ पु० । (११) ढाल के तीन नाम - अज्कल १ फलक २ ढाल ३ नपुं । (१२) परिघ (अस्त्र विशेष ] के दो नाम परिघ १ पु० परिघातन २ नपुं । Page #230 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीयकाण्डम् क्षत्रियवर्गः १ भिन्दिपालः मृगस्तुल्यौ मुद्गरे दुधणो घनः ॥१०२।। मुष्टिः फलस्य संग्राहः खड्गादीनां तु सात्सरुः । एषां तीक्ष्णं मुखं धारा मेखला मुष्टिबन्धनम् ।।१०३॥ कुठारः परशुः पशुः कुठारी स्त्री परश्वधः । स्त्री वासि स्तक्षणीवास्य-मर्सिपुत्रो छुरी समे ॥१०४॥ शल्यं क्लीवे पुमान् शङ्कु र्वाण ग्रथितमायुधम् । शबली तोमरो न स्त्री प्रासे: कुन्तश्च भल्लवत् ॥१०५॥ (१) गोफन के दो नाम--भिन्दिपाल १ सृग १ पु. । (२) गदा के दो नाम-द्रुघण १ घन २ पु० । (३) ढाल के मूठ का एक नाम - संग्राह १ पु०। (४) तलवार आदि के मूठ का एक नाम- सरु १ पु० । (५) शस्त्र अस्त्रों को धारा (धार) के तोन नाम- तोदश १ मुखर २ नपुं०, धारा ३ स्त्री० । (६) मूठ के बंधन के दो नाम-मेखला १ स्त्री०, मुष्टिबन्धन २ नपुं० । (७) कुठार के आठ नाम- कुठार १ परशु २ पशु ३ पु०, कुठारी ४ स्त्री०, परश्वध ५ पु०, असि (वाऽसिवासी]६ स्त्रो. पु०, तीक्ष्णो ७ स्त्री०, वास्य ८ नपुं । (८) छुरी के दो नाम-असीपुत्रो १छुरो २ नपुं.। (९) लोह से संयुक्त हथियार के दो नाम- शल्य १ नपुं०, शङ्घ २ पु० । (१०) शस्त्र विशेष (गैडासा) के दो नाम-शर्वला १ स्त्री०, तोमर २ पु० नपुं० । .(११) भाला के दो नाम-प्रास १ कुन्त २ (भल्ल, भल्लक) पु०॥ Page #231 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीयकाण्डम् २१८ 'कोटिरभिः स्त्रियौ कोणोऽक्षवाटो मल्लयुद्धभूः । बन्धुकस्तु भुशुण्डी स्त्री तत्प्रभेदे तु नालिका ॥१०६॥ तोपे : पुमान् शतघ्नीत्रीचक्रे चक्रस्वरूपकम् । गोलिका गुलिका गोलो गुटिका च गुटी स्त्रियाम् ॥ १०७॥ पूतना वाहिनी सेनाsनीकिनी ध्वजिनी चमूः । अनीकमस्त्रियां सैन्यं बलं चक्रं च पुंसि तु ॥ १०८ ॥ मण्डलाssलीढ वैशाख प्रत्यालीढानि चाssसने । स्याद्व्यूहः सैन्यविन्यासोऽथपत्यादि क्रमो यथा ॥ १०९ ॥ क्षत्रियवर्गः ९ (१) कोण (खोणा) के तीन नाम- कोटि (कोटी) १ अश्रि २ स्त्री०, (अस्त्र, कोण कच अर्थ में पु०, अश्र शोणित अर्थ में नपुं० ) कोण ३ पु० । (२) अखाडा (जहां मल योद्धा शिक्षण पाते हॉ) के दो नाम- अक्षवाट १ पु०, मल्लयुद्धभु २ स्त्री० । (३) बन्दूक के दो नाम- बन्धूक १ पु०, भुशुण्डी २ स्त्री० । (४) पिस्तौल के एक नाम - नालिका [नाली ] १ स्त्री० । (५) तोप के दो नाम- तोप १ पु०, शत्रुघ्नो २ स्त्री० । (६) चक्र: जैसा आकार वाले शस्त्र का एक नाम - चक्र १ [नानार्थक ] नपुं० | गोली के पांच नाम- गोलिका १ गुलिका २ गोली ३ गुटिका ४ गुटी ५ पु० नपुं० । (७) सेना के दश नाम पृतना १ वाहिनी २ सेना ३ अनीकिनी ४ ध्वजिनी ५ चमू ६ स्त्री, अनीक ७ पु० नपुं., सैन्य ८ बल ९ चक्र १०पु० नपुं. । (८) धनुघरों के आसन के चार नाम - मण्डल १ आलीढ २ वैशाख ३ प्रत्यालीढ ४ नपुं. । ( ९ ) सैन्य रचना के दो नाम - व्यूह १ सैन्यविन्यास २ पु. (१०) पत्ति आदि सैन्य संख्या का कोष्ठक -- । Page #232 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीयकाण्डम् क्षत्रियवर्ग: ९ नाम हस्ती संख्या। रथ संख्या अश्व संख्या | पदाति संख्या पत्तिः सेना सेनामुखम् २७ १३५ वाहिनी ८१ २४३ पृतना २४३ २४३ ७२९ १२१५ चमू ७२९ २१८७ अनीकिनी | २१८७ २१८७ । ६५६१ । १०९३५ ४५ गुल्मः । ८१ द्वितीयकोष्ठक-- सेना नाम गजरथ अश्व पदाति पत्ति सेनामुख गुल्म गण १३५ वाहिणो ४०५ पृतना २४३ ७२९ १२२५ ७२९ २१८७ अनीकिनी २१८७ ६५६१ १०९३५ अक्षौहिनो - २१८७० | ६५६१० । १०९३५० ८१ २४३ चमू Page #233 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीयकाण्डम् २२० पत्तिरेकरथा पञ्च पगात्र्यश्वैक कुञ्जरा । सेनासेनामुखं गुल्मो वाहिनी पृतना चमूः ॥ ११०॥ अनीकिनी त्रिभिर्दिग्भि गुणिताऽक्षौहिणी तया सेनामुखादयोऽक्षौहिण्यन्ता भेदाश्च भूरिशः । संपत्संपत्ति लक्ष्म्यः श्रीविपैदा-पद- विपत्तयः । सेनया शत्रु सार्थाभि-गमनं त्वभिषेणनम् ॥ ११२ ॥ युद्धे शूरस्य शत्रून्प्रत्युपयानमभिक्रमैः । अभिनिर्याण प्रस्थान प्रयाण गमनानि च ॥११३॥ व्रज्या यात्रा गमः पुंसि मागधो वंशवर्णकः । संकेतज्ञः सुधीर्वन्दी तथा वैतालिको मतः ॥११४॥ वैजयन्ती पताका च केतेनं त्रिषु तु ध्वजः । क्षत्रियवर्गः ९ हिन्दा - (१) सेनामुख आदि अक्षौहिणी पर्यन्त सैन्य संख्या के अनेक भेद हैं- (२) संपत्ति के चार नाम-संपत् १ संपत्ति २ लक्ष्मी ३ श्री ४ स्त्री । (३) विपत्ति के तोन नाम - विपत् [ विपदा ] २ आपत् [ आपदा ] २ विपत्ति ३ स्त्रो । (४) शत्रु संमुख जाने का एक नाम -- अभिषेणन १ नपुं. । (५) वोर संमुख जाने का एक नाम - अभिक्रम १ पु. । (६) यात्रा के सात नाम - अभिनिर्याण ? प्रस्थान २ प्रयाण ३ गमन ४ नपुं., व्रज्या ५ यात्रा ६ स्त्री, गम ७ पु . । (७) चारण (ब्रह्मभट्ट) के छ नाम - मागध ४ वन्दी ५ वैतालिक ६ पु० । वैजयन्ती १ पताका २ स्त्रो०] । ( ९ ) ध्वजा के दो नाम - १ वंशवर्णक २ संकेतज्ञ ३ सुधी (८) पताका के दो नाम बेतन १ नपुं. ध्वज २ त्रिलिङ्ग । Page #234 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीयकाण्डम् २२१ क्षत्रियवर्गः ९ पांशुः' पुमान्द्वयौ रेणु र्धृलिः स्त्री न द्वयो रजः ॥ ११५ ॥ क्षोदच्चूर्णेऽथ वीरैराऽऽशंसनं भूर्भूरि भीतिदा । अहं पूर्वं क्रियाऽऽशंसा स्याददं पूर्विकामिथः ॥ ११६ ॥ आत्मसंभावना दर्पा दाहोपुरिषिका मता । शक्तिः पराक्रमः प्राणः स्थामशौर्ये सहोबलम् ||११७॥ तरोद्रविण शुष्माणि विक्रमोऽत्यन्त शक्तिता । चार्लोट्टने वीर - पण पश्चात्पुरायुधः ॥ ११८ ॥ जन्मायोधनं युद्धं प्रधनाssस्कन्दने मृधम् । - (१) धूल के चार नाम-पांशु १ पु०, रेणु २ स्त्री. पु० धूलि ३ स्त्री, रजस् ४ नपुं । (२) आटे के दो नाम क्षोद १ चूर्ण २ पु० । (३) घोर युद्धभूमि का एक नाम वीराशंसन १ नपुं. । (४) पहले मैं करूँगा का एक नाम अहंपूर्विका १ स्त्री० । (५) सामर्थ्य रहते हुए वीरावेश में उस कार्य को पूरा करने का भार लेने का एक नाम आहोपुरुषिका १ स्त्री० । (६) पराक्रम के दश नाम-शक्ति १ स्त्री, पराक्रम २ प्राण ३५०, स्थामन् ४ शौर्य ५ सहस् ६ बल ७ तरस् ८ द्रविण ९ शुष्मन् १० नपुं. । ( ७ ) अत्यंत संचित शक्तिका एक नाम - विक्रम १ पु० । (८) चालन के दो नाम - चालन १. उद्घट्टन २ नपुं । (९) उत्साह बढाने के लिये संग्राम से पहले अथवा परिश्रम दूर करने के लिये युद्ध के बाद जो नारिकेल आदि के जल का पान है उसका एकनाम - वीरपाण ९ नपुं. । (१०) युद्ध के एकतीस नाम- जन्य १ आयोधन २ युद्ध ३ प्रधन ४ आस्कन्दन ५ मृध ६ प्रविदारण ७ संख्य ८ ६ Page #235 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीयकाण्डम् क्षत्रियवर्गः ९ प्रविदारण संख्ये च समीकं सम्परायकम् ॥ ११९॥ अस्त्रियां कलहाsनीक - रणाः समरविग्रहौ । समुदाय समाघाताऽभ्यामर्दाऽभ्यागमाऽऽहवाः ॥ १२० ॥ संग्राम संप्रहाराभि- संपात कलि संयुगाः । संस्फोटः स्त्री समित्याऽऽजि समित्संयद्युधः स्मृताः ॥ १२१ ॥ बाहुयुद्धं नियुद्धं स्यात्तुमुलं भयदो रणः । धनुर्ध्वनौ तु विस्फारो बृंहितं गजगर्जितम् ॥ १२२ ॥ सिंहनादः स्त्रियां क्ष्वेडा गर्जेसंघट्टनं घटा | मोहोना कश्मलं क्लीबे मूर्छाया मथपीडनम् ॥ १२३॥ २२२ समीक ९ सम्पराय १० नपुं०, कलह ११ अनीक १२ रण १३ समर १४ विग्रह १५ समुदाय १६ समाघात १७ अभ्यामर्द १८ अभ्यागम १९ आहव २० संग्राम २१ सम्प्रहार २२ अभिसंपात २३ कलि २४ संयुग २५ संस्फोट २६ पु. नपुं०, समिति २७ आजि २८ समित् २९ संयत् ३० युध ३१ स्त्री. । (१) बाहुयुद्ध के दो नाम - बाहुयुद्ध १ नियुद्ध २ नपुं० । (२) भयंकर संग्राम का एक नाम-तुमुल (लोमहर्षण) १ नपुं० (विशेषण होने पर पु०, जैसे सशब्द स्तुमलोऽभवत्) । ( ३ ) धनुष ध्वनि का एक नाम - विस्फार १ पु० । ( ४ ) हाथी के चिक्कार के दो नाम - बृंहित १ गजगर्जित २ नपुं० । (५) अभिमान से गरज ने के दो नाम - सिंहनाद १ पु०, क्ष्वेडा २ खी० । (६) गज- संघट्टन (समूह) के दो नाम - गजसंघट्टन १ नपुं०, घटा २ स्त्री. (७) मूर्छा के तीन नाम — मोह १ पु०, कश्मल २ नपुं०, मूर्छा ३ स्त्री० । Page #236 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीयकाण्डम् २२३ अवमर्दो रणध्वाने पहाडम्बरौ समौ । उत्पात स्तूपसर्गोऽथ मर्यादा स्खलनं छलम् ॥ १२४ ॥ छलादाक्रमणं यत्त-दभ्यवस्कन्दनं मतम् । आक्रोशपूर्वके शब्दे 'क्रन्दनं विजये जयः ॥ १२५॥ तिरोहितस्तु नष्टः स्याद् युद्धभङ्गः पराजयः । पराजितः पराभूतो विजितो निर्जित स्त्रिषु ॥ १२६॥ "वरनिर्यातनं वैर-शुद्धि र्वैरविशोधनम् । प्रतीकारोऽथ संद्रा Isपक्रमौ च पलायनम् ॥ १२७॥ क्षत्रियवर्गः ९ (१) परसैन्य द्वारा देश के लूट पाट के दो नाम - पीडन १ नपुं०, अवमर्द २ पु० । (२) युद्धस्थल में वाथ बजाने के तीन नाम - रणध्वान १ पटह २ आडम्बर ३ पु० ( आडम्बरः सहारम्भे घनगर्जित सूर्ययोः) | (३) उत्पात के दो नाम उत्पात १ उपसर्ग २५. । (४) छल के दो नाम- मर्यादास्खलन १ छल२ नपुं० । (५) छल से आक्रमण का एक नाम - अभ्यवस्कन्दन १ नपुं० । ( ६ ) निन्दावचनों से उत्तेजित करने का एक नाम - क्रन्दन १ नपुं० । (७) विजय के दो नाम - विजय १ जय २ पु० । (८) छुप गए के दो नाम - तिरोहित १ नष्ट २ पु० । (९) पराजय के दो नाम युद्धभंग (भङ्ग) १ पराजय२ पु० । (१०) हारे हुए के चार नाम पराजित २ पराभूत २ विजित ३ निर्जित ४ त्रि० । (११) बैहन विशोषन (वैर प्रतिबदल) के चार नाम - बैरनिर्यातन १ वैरविशोषन २ नपुं०, बैरशुद्धि ३ स्त्री०, प्रतिकार ४ पु० । (१२) संग्राम से भागने के तीन नाम - संदावर उपक्रम २ पु०, पलायन ३ नपुं. 7 Page #237 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीयकाण्डम् २२४ - क्षत्रियवर्ग:९ बलात्कारो हठः पुंसि क्लीवं तु प्रसभं भवेत् । निधनोऽस्त्री द्वयोमृत्यु नाशाऽन्त प्रलयाऽत्ययाः॥१२८॥ कथाशेषश्च मरणं पञ्चत्वं पञ्चताऽपि च । घाताऽऽलम्भवधोन्माथा निषूदन निबर्हणे ॥१२९॥ मारण हननं चोज्जासन प्रमथने अपि । प्रमीतः प्राप्तपश्चत्वः परामुः प्रेतसंस्थितौ ॥१३०॥ नामशेषः परेतश्च मृतःस्यु दशः त्रिषु । कबन्धोऽस्त्री स यो नृत्य निर्मस्तक कलेवरः ॥१३॥ स्त्रियां चिताचितिश्चित्या श्मशानं तु चितास्थलम् । शंबोऽस्त्री कुणपः पुंसि शबयानं तु खाटिका ॥१३२॥ (१) हठ (बलजोरी) के तीन नाम-बलात्कार १ हठ२ पु०, प्रसभ ३ नपुं० । (२) मृत्यु के सोलह नाम-निधन १ पु० नपुंसक, मृत्यु २ स्त्री० पु०, नाश ३ अन्त ४ प्रलय ५ अत्यय ६ कथाशेष ७ पु०, मरण ८ पञ्चत्व ९ नपुं०, पश्चता १० स्त्री घात ११ आलम्भ १२ वध १३ उन्माथ १४ पु०, निषूदन १५ निबर्हण १६ नपु०। (३) मृतक शब के बारह नाम-मारण १ हनन २ उज्जासन ३ प्रमथन ४ प्रमीत ५ प्राप्तपञ्चत्व ६ परासु ७ प्रेत ८ संस्थित ९ नामशेष १० परेत ११ मृत १२त्रिलिङ्ग । (४) शरीर मस्तक कट जाने पर युद्धभूमि में तलवार को चलाता हुआ नाच रहा है उसका एक नाम-कबन्ध१ पु.नपुं० । (५) चिता के तोन नाम-चिता १ चिति २ चित्या ३ स्त्री. (६) चितास्थल का एक नाम-श्मशान १ नपुं० । (७) शब के दो नाम-शब १ . पु. नपुं०. कुणप २: पु० ।(6) शबवाहिनी (साटली) का एक नाम-खाटिका१.सी०। .. . Page #238 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीयकाण्डम् २२५ क्षत्रियवर्गः९ पुं भूमन्यसवः प्राणाः जीवस्तु प्राणधारणम् । आयु जीवनकालः स्याज्जीवातुः पुंसि जीवदः ॥१३३॥ नीराजना स्त्रियामारात्रिक मारार्तिकं यथा । अर्हः पूज्ये सपर्याया महणाऽहाऽहणं तथा ॥१३४॥ ॥ इति राजन्यवर्गः समाप्तः ॥ (१) प्राण के दो नाम-असु १ प्राण २ पु० बहुवचन । (२) जीने के दो नाम-जीव १ पु०, प्राणधारण २ नपुं० । (३) जीवनकाल के दो नाम-जीवातु.१ जोवद २ पु० । (४) आरती उतारने के तीन नाम-नीराजना १ स्त्री० नपुं, आरात्रिक २ आरार्तिक ३ नपुं० । (५) पूज्य अर्थ में "अर्ह" पु.। (६) सपर्या के चार नाम-सपर्या १ अर्हणा २ अर्हा ३ स्त्री० अर्हण ४ नपुं० । ॥ इति राजन्यवर्ग समाप्त ।। Page #239 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२६ द्वितीयकाण्डम् पणिग्वर्गः १० ॥ अथ वणिग्वर्गः प्रारभ्यते ॥ वणिगू विडय वैश्यो रुजा वार्तेषान्तु जीविका । पुंस्या जीवः स्त्रियां वृत्ति स्तथा जीवनवर्तने ॥१॥ वृत्ति भेदास्तु वाणिज्यं कृषिः स्त्री पशुपालनम् । कुसीदं न द्वयो रथे प्रयोगो वृद्धिजीविका ॥२॥ . पुंस्युद्धार ऋणं, सत्यानृतं तु क्रय विक्रयौ । परिप्राप्तं व्यतीहाराद् यन्तदेवाऽऽपमित्यकम् ॥३॥ ऋणदातोत्तमर्णः स्या दधमों ग्रहीतरि । हिन्दी-(१) वैश्य के पांच नाम – वणिक् १ विश् (विट्विड्) २ अर्य ३ वैश्य ४ उरुज ५ पु० । (२) वैश्य के जीविका के छ नाम-वार्ता १ वृत्ति २ जीविका ३ स्त्री०, आजीव ४ पु०, जीवन ५ वर्तन ६ नपुं० । (३) जीविका के मुख्य तीननाम-वाणिज्य नपुं०, कृषि २ स्त्री०, पशुपालन ३ नपुं० । (४) जिस द्रव्य से व्याज आता हो उसके तीन नाम-कुसीद १ नपुं०, अर्थप्रयोग २ पु०, वृद्धजोविका ३ स्त्रो० । (५) कर्जके दो नाम-उद्धार १ पु०, ऋण २ नपुं०। (६) खरीद और विक्री इन दोनों का एक ही नाम-सत्याऽनृत १ नपुं०, । (७) खरीद और विक्री के एक नाम-क्रय, १ विक्रय पु० । (८) अदल बदल से प्राप्त वस्तु का एक नाम-आपमित्यक १ रापुं० । (९) ऋणदाता के दो नाम-ऋणदाता १ उत्तमर्ण २ पु० । (१०) ऋण लेनेवाले के दो नाम-अधमणे १ ग्रहोता (ग्राहक) २पु० । Page #240 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२७ द्वितीयकाण्डम् वणिवर्गः १० अथ वाधुषिको' वृद्धया जीवस्तद्वत्कुसीदिकः ॥४॥ कर्षकः कृषकः क्षेत्रा जीवः क्षेत्री कृषीवलः । स्यात्क्षेत्र वप्रकेदारावस्त्री सेतुस्तु संवरः ॥५॥ आलिः पाल्यपि शाकस्य क्षत्रं स्यात् शाकशाकटम् । शाकशाकीन मोमीन मुम्यं यव्यं यवक्यवत् ॥६॥ तैलीनमपि तिल्यं च माषीणं माष्यमुच्यते । बेहेयं चापि शालेयं व्रीहि शाली बिवृद्धिमत् ॥७॥ मौद्गीनं भाङ्गय भाङ्गीने अणैवीन मणोस्तथा । अणव्यमथ षाष्ठिक्यं" कौद्रवीणमनुक्रमात ॥८॥ (१)व्याज पर जीने वाले के तीन नाम-वार्धषिक (वाघुकि-वाधुकिन्) १ वृद्धजीव २ कुसीदिक ३ पु० । (२) कृषक (किसान) के पांच नाम-कर्षक १ कृषक २ क्षेत्राजीव ३ क्षेत्री ४ कृषीवल ५ पु० । (३) क्षेत्र (खेतर) के तीन नाम-क्षेत्र १ वा २ केदार ३ पु० नपुं० । (४) खेत के किनारे इर्द गिर्द में घेडावा के चार नाम-सेतु १ संवर २ पु०, आलि (आली) ३ पालि (पाली) ४ स्त्री० । (५) भाजी खेत के दो नाम-शाकशाकट १ शाकशाकीन २ नपुं० । (६) अलसी क्षेत्र के दो नाम--ओमीन१ उम्य२ नपुं० । (७) यव (जौ) क्षेत्र के दो नाम-यव्य १ यवक्य २ नपुं० । (८) तिल क्षेत्र के दो नाम--तैलीन१ तिल्य२ नपुं० । (९) उड़द क्षेत्र के दो नाम-माषीण १ माष्य २ नपुं० । (१०) बोहि क्षेत्र का एक नाम-वैहेय १ नपुं० । (११) शालि क्षेत्र का एक नाम-शालेय १ नपुं० । (१२) मुंग क्षेत्र का एक नाममौद्गोन १ नपुं०। (१३) शैण क्षेत्र के दो नाम-भाग्य १ भांगीन २ नपुं० । (१४) कौनो क्षेत्र के दो नाम-अणवीन १ अणव्य २ नपुं० । (१५) साठी क्षेत्र का नाम-पाष्ठिक्य १ नपुं० । (१६) कोदो क्षेत्र का एक नाम-कौद्रवीण १ नपु० । Page #241 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीयकाण्डम् २२८ वणिग्वर्गः १० हल्यं' सीत्यं च कृष्टंस्या क्षेत्रं कृष्टं यदेकधा । शम्बाकृतं द्विहल्यं च द्विसीत्यं द्विगुणाकृतम् ।।९।। त्रिहल्ये तु त्रिसीत्यं स्यात् त्रिगुणाकृतमित्यपि । उप्त्वा कृष्टं भवेदुप्त कृष्टं बीजाकृतं तथा ॥१०॥ वापे द्रोणाऽऽढकादेः स्यु द्रोणिकाऽऽढेकिकादयः । खारोवापोऽपि खारीक स्त्रिविमा अमृतादयः ॥११॥ स्युः कैदारिक कैदायें क्षेत्र कैदारकं गणे। (१) जो खेत एक बार खेया गया उसके तीन नाम-हल्य १ सीत्य २ कृष्ट ३ नपुं० । (२) दो वार खेये गये क्षेत्र के चार नाम-शम्बाकृत १ द्विहल्य २ द्विसीत्य ३ द्विगुणाकृत ४ नपुं० । (३) तिवारे खेडे गए खेत के तीन नाम-त्रिहल्य १ त्रिसीत्य २. त्रिगुणाकृत ३ नपुं० । (४) बीजवपन के साथ खेडे क्षेत्र के दो नाम-उप्तकृष्ट १ बीजाकृत २ नपुं. (५) द्रोण परिमित (दश सेटक) मात्रबोज वपन योग्य के दो नाम-द्रोणिक १ द्रोणवाप २ अथवा दस सेर अन्नपाक योग्य तपेली आदि वर्तन का भी नाम 'द्रौणिक' है त्रिलिङ्ग । (६) आढक (अढाई सेर) मात्र बीज बोए जाय ऐसे क्षेत्र के दो नाम-आढकिक १ आढकवाफ २ आढकिक नाम पाचन स्थापन आदि वर्तन का भी होता है त्रिलिङ्ग । (७) खारी (एक मन) वपन योग्य क्षेत्र के दो नामखारीवाप १ खारीक २, खारी मापक वर्तन पाचन स्थाली आदि अर्थ में खारीक का ही प्रयोग होता है (अमृतादि त्रिलिङ्ग । (८) क्षेत्र समूह के चार नाम-कैदारिक १ कैदार्य २ क्षैत्र ३ कैदारक ४ नपुं०। Page #242 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीयकाण्डम् वणिग्वर्गः १० लोष्टोऽस्त्रियां पुमाल्लेष्टुः कुद्दालैस्त्ववदारणम् ॥ १२॥ खनित्रमपि दात्रं तु लवित्रं तत्प्रभेदजम् । लोष्टभेदन हेतुत्वात्कोटिशो लोष्टभेदनः ॥ १३॥ आन्धो योक्त्र योत्रेस्त स्तोत्रं प्राजन तोदने । गोदारणं हलं सीरो लाङ्गलं हलपेद्धतिः ॥ १४ ॥ सीता कृषिक" फालौ तु निरीशं कुटकं फलम् हयष्टिः स्त्रियामीशा हलीशा युगकीलकम् ॥१५॥ I २२९ हिन्दी - ( १ ) ढेले के दो नाम-लोष्ट १ पु० नपुं०, लेष्ट २५० । (२) कोदाली के दो नाम - कुद्दल १ पु०, अवदारण २ नपुं० । (३) स्वंती ( खन्ता) गैनी, खोदने का औजार) का एक नाम - स्वनित्र १ नपुं० । ( ४ ) दात्र के दो नाम - दात्र १ लवित्र २ नपुं० । ( ५ ) हेंगा (मेडा चावर ) के दो नाम - कोटिश १ लोष्टभेदन २ पु०, । (६) बैल के गछे में जुआ ( युगकाष्ट) बांधने के तीन नाम - आबन्ध १ पु०, योक्त्र २ योत्र ३ नपुं० । (७) हल जोतने समय में बैल चलाने की छोटी लकड़ो (आड़) के तीन नाम - तोत्र १ प्राजन २ तोदन ३ नपुं० । (८) हल के चार - नाम - गोदारण १ हल २ लाङ्गल ३ नपुं०, सीर ४ पु० । (९) इलपद्धति (सिराउड़) के दो नाम - हलपद्धति १ सीता २स्त्री० । (१०) फाल के पांच नाम - कृषिक १ फाल २ पु०, निरीश ३ कुटक ४ फल ५ नपुं० । (११) हरिश के तीन नाम-हलयष्टि १ ईशा २ हलीषा ३ स्त्री० । Page #243 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीयकाण्डम् २३० वणिग्वर्गः १० 1 शम्या मेधिः पुमान् दारु कणमर्दनभूः खलम् । खलिनो च स्त्रियां खल्या खष्टः शङ्कुश्व कीलकम् ॥ १६॥ कुसूलोsस्त्री स्त्रियां कोष्टी तुषभेदेऽवगुण्डितम् । धान्यादि गुच्छे काण्डस्तु नाली स्त्री नालमित्यपि ॥ १७ ॥ अवचूर्णः पलालः स्याद धान्य काण्डेऽति निष्फले । धान्यत्वचि बुसे दलीबे तुषः पुंसि कडङ्गरः ||१८|| सस्यस्य शुक किशारु मञ्जय कणिशोऽस्त्रियाम् । (१) युगकाष्ट की खोली का एक नाम - शम्या १ स्त्री ० । (२) कणमर्दन के समय में जिस काष्ट में बैलों को बाँधकर चलाते हैं उस लकड़ी का एक नाम-मेधि १ पु० । (३) कणमर्दन स्थल के तीन नाम - स्वल १ नपुं० स्खलनी २ खल्या ३: स्त्री० (४) शङ्कु (खूंटा) तीन नाम - खण्ट १ शङ्कु २ पु०, कीलक ३ नपुं० । (५) मिट्टी की कोठी के दो नाम - कुसूल १५० नपुं०, कोष्टी २ खो० । (६) गूंडा (जो कि तुष के बाद चावल को विन्यस्त करते समय निकालता है) के दो नाम - तुषभेद १ पु० अवगुण्डित २ नपुं० । (७) धान्य स्तम्भ (सस्य होन भाग ) के तीन नाम-काण्ड १ पु०, नाली २ स्त्री०, नाल ३ नपुं० । (८) पलाल के दो नाम अवचूर्ण १ पलाल २ पु० । ( ९ ) धान्य त्वचा (भूसा) के चार नाम - धान्यत्व १ स्त्री बुस २ नपुं०, तुष ३ कडङ्गर ४ पु० । (१०) तीक्ष्ण (तीखे) अग्रभागवाले धान्य के दो नाम - शुक्र किशारु २५० नपुं० । (११) १ सस्य मञ्जरी के दो नाम - मञ्जरी १ स्त्रो०, कणिश २ पु० नपुं० Page #244 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीयकाण्डम् २३१ वणिग्वर्गः १० स्तम्बो' गुच्छ स्तृणादीनां 'शमी शिम्बे स्त्रियामुभे ॥ १९ ॥ मर्दितं निस्तृणं धान्य मृद्धमावसितं स्मृतम् । राशीकृतं तु पूतं स्यात् तदेव बहुली कृतम् ||२०|| पदार्थः पुंसि वस्तु स्यात् क्लीवे 'उरख्यं तु पैठरम् । संमृष्ट गोधिते तुल्या 'मसृण स्निग्ध चिकणाः ॥ २१ ॥ सुसंस्कृतः प्रयस्तोऽथ समे विजिल पिच्छिले । dbaल्यो " प्रणीतसम्पन्नौ त्रिपूरव्याद्यास्त्रयोदश ॥२२॥ ७ १० (१) तृणादि काण्ड के दो नाम- स्तम्ब १ गुच्छ २ ५० नपुं० । ( २ ) सस्य फली के दो नाम - शमी १ शिम्बा २ स्त्री ० । (३) जो धान्य मदिंत हो गया और उससे तृणादि दूर कर दिये गये हों लेकिन परिष्कृत न हुआ हो, उस धान्य के दो नामऋद्ध १ आवसित २ नपुं० । ( ४ ) फोतरा ( भूसा ) धूली आदि से हीन धान्यराशि के तीन नाम - राशीकृत १ पूत २ बहुलीकृत ३ नपुं० । (५) वस्तु मात्र के दो नाम-पदार्थ १ पु०, वस्तु २ नपुं० । (६) हंडो में पके हुए अनाज के दो नाम - उख्य १ पैठर २ त्रि० । (७) शोधित स्थल के दो नाम संसृष्ट १ शोधित २ त्रि० । (८) चिकने के तीन नाम-मसृण १ स्निग्ध २ चिक्कण ३ ० । (९ ) छोके हुए शाक आदि के दो नाम सुसंस्कृत १ प्रयस्त २ त्रि० । (१०) मण्ड से संयुक्त भात के तथा जल से संयुक्त भाजी शाक के दो नाम - विजिल १ पिच्छिल २ त्रो० । (११) अग्निी संयोग से सिद्ध द्रव्यान्तर संयोग से हीन व्यञ्जनादि के दो नाम-प्रणीत १ सम्पन्न २ त्रि० । - Page #245 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीयकाण्डम् वणिग्वर्गः १० 'बल्लवाssभीर गोपाला गोपोऽथ "वृषभो वृषः । बलीवर्दर्षभो क्षाणा अनड्वांसोऽथ गौर्द्वयोः ॥ २३ ॥ माहेयी सौरभेय्युत्राऽर्जुन्यधन्या सुरभिर्गवि । योत्तमा नैचिकी, भेदाः शबैली धवलादिकाः ||२४|| धेनूनां धैनुक गव्या गोत्रा च स्त्री गवीगुणः । गोरसो दुग्ध दध्यादिः समे गोकुलंगोधने ॥ २५ ॥ तदाशितं गवीनं गौः पूर्वं यत्राऽऽशिता त्रिषु । वत्सानां वात्संकं तद्वदुक्ष्णामौ कमित्यपि ॥ २६ ॥ २३२ ( १ ) अहीर के चार नाम-वल्लव १ आभीर २ गोपाल ३ गोप पु० । (२) बैल के सात नाम - वृषभ १ वृष २ बलीवर्द ३ ऋषभ ४ उक्षा (उक्षन् ) ५ अनड्वा (अनडुह ) ६ पु०, गौ (गो) ७ पु० स्त्री० । (३) गाय के छ नाम - माहेयी १ सौरभेयो २ उना ३ अर्जुनी ४ उन्या ५ सुरभि ६ श्री ० । ( ४ ) उत्तमा धेनु के एक नाम-नैचिकी १ त्रो० । (५) वर्णादि भेद से गाय के दो नाम - शबली १ घवला २ आदि अनेक नाम हैं । (६) धेनु समूह के चार नाम - धैनुक १ नपुं०, गव्या २ गोत्रा ३ स्त्री०, गवीगण ४ पु० । (७) गोरस के मुख्य तीन नाम - गोरस १ पु०, दुग्ध २ दधि ३ नपुं० । (८) गो संघात के दो नाम - गोकुल १ गोधन २ नपुं० । (९) जिस तृणादि युक्त स्थल-वन को गाय चर चुकी है उसका एक नाम - आशितंगवीन नपुं० । (१०) बछड़े के समूह का एक नाम वात्सक १ नपुं० । (११) बैल समूह का एक नाम - औक्षक नपुं० । Page #246 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीयकाण्डम् २३३ वणिग्वर्गः १० 'जरद्रवः स्याद्वृद्धोश्रो महोक्षंस्तु महावृषः । जातोक्षस्वरुणः सद्यो जाते तु तैर्णकः स्मृतः ||२७|| वत्सः शकृत्करि बल्ये "दम्य बत्सतरौ ततः । आर्षभः स्पृष्ट तारुण्ये 'इष्टवरः षण्ड गोपती ||२८|| गोस्कन्धः स्याद्वहः " सास्ना स्त्रियां ना गलकम्बलः । "प्रासङ्गया शाकटा युग्या युगादीनान्तु वोढरि ॥ २९ ॥ एवं हलादि वोढारो हालिकाद्या विदेलिमाः । १२ (१) बूढे बैल का एक नाम - जरद्रव १ पु० । (२) बडे बैल का एक नाम - महोक्ष १५० । (३) तरुण बैल का एक नाम - जातोक्ष १ पु० । ( ४ ) तत्क्षण उत्पन्न बैल का एक नाम - वर्णक १ पु० । (५) गो के बछडे के दो नाम - वत्स १ शकृत्करि २ पु० । ( ६ ) शिक्षणयोग्य वृष वत्स के दो नामदम्य १ वत्सतर २ पु० । (७) अभी अभी ज़वान होते हुए वृषवत्स का एक नाम - आर्षभ १ पु० । (८) सांढिया के तान नाम - इष्ट्वर षण्ड ( षण्ढ ) २ गोपति ३ पु० । (९) युग कोष्ट - से कुचले गए बैल के कन्धा का एक नाम-वह १५० । (१०) - गाय बैल के गले के नीचे लटकते हुए के दो नाम - सास्ना १ स्त्री०, गलकम्बल २ पु० । (११) जूआ वहन करने वाले बैल के तीन नाम - प्रासङ्गय १ शाकट २ युग्य ३ पु० । (१२) हल वहन करने वाले बैल का एक नाम - 'हालिक' आदि हैं पु० । Page #247 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीयकाण्डम् २३४ वणिग्वर्गः १० धुरिणो धूर्वहो धूर्यो धौरेयश्च धुरन्धरः ॥३०॥ नस्योतो नस्यितः स्युत-नासिको ये तु केवलम् । वोढारः शकटस्यैक-धुरीणैक धुरौ समौ ॥३१॥ समौसमीना सागौर्या वर्षे वर्षे प्रसूयते । एकहायनवत्सायाः संज्ञा वष्कयिणी गवी ॥३२॥ नव प्रसूता धेनुः स्यात्सुखदोह्या तु सुव्रता । सुकरी गौरचण्डी स्याद्वहेपत्या परेष्टुका ॥३३॥ गृष्टिः सकृत्प्रस्तायां 'वैशावन्ध्या नगर्भ भाक् । हिन्दी- (१) गाडी वहन करने वाले बैल के पांच नामधुरीण १ धूर्वह २ धुर्य ३ धौरेय ४ धुरन्धर ५ पु० । (२) नाथ लगाये गये बैल के तोन नाम- नस्योत १ नस्यित २ स्यूतनासिक ३ पु० । (३) केवल हल में केवल गाडा में अथवा दाएं या वाएं एक हो युग में वहने वाले बैल के दो नाम- एकधुरोण १ एक धुर २ पु० । (४) प्रतिवर्ष व्याने वाली गाय का एक नामसमासमोना १ स्त्रो० । (५) जो गाय एक वर्ष का बछडा होने पर पुनः गर्भवती हो उस गाय का एक नाम- वष्कयिनो १ स्त्री०। (६) नई व्याई गाय को 'धेनु' कहते हैं स्त्री० । (७) जिस गाय से आसानी के साथ दूध दुहे जाय उस गाय के दो नामसुखदोह्या १ सुव्रता २ स्त्री० । (८) सुशील गाय के दो नाम सुकरा १ अचण्डी २ स्त्री० । (९) बहुत वच्चे हों जिसको उस गाय के दो नाम- बहपत्या १ परेष्टुका २ स्त्री० । (१०) पहला ही प्रसव जिसको हुआ हो उस गाय का एक नाम- गृष्टि १ स्त्री . (११) बन्ध्या गाय के दो नाम- वशा १ बन्ध्या २ स्त्री० । Page #248 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीयकाण्डम् २३५ वणिग्वर्गः १० धेनुष्या पीतदुग्धाया संस्थिता दुग्धबन्धके ॥३४॥ क्लीबे द्वे ऊँध आपीने रज्जुः सन्दान दामनी । दोरं तु दोरकं दोघे दोग्धारो दोह कर्मकृत् ॥३५॥ मन्यास्तु मन्थमन्थान वैशाखाः खञ्जकस्तथा । दधिमन्थान पात्रन्तु गर्गरो मन्थनी मता ॥३६॥ मेषैड़को-रणो-रभ्रोर्णायु-मेंद्राऽविवृष्णयः । बस्ताऽज-च्छागलस्तभा छागी त्वजास्त्रियाम्।।३७।। गडेरे' गड्डरौं पाले चाले मेपस्य गड्डेलिः रिः । (१) ऋण लेने वाले को व्याई गाय इस वर्ष का दूध ऋणदाता को देकर अपने मालिक को ऋग से मुक करा सके ऐसे गाय के दो नाम-धेनुष्या १ पीतदुग्धा २ स्त्री० । (२) गाय के ऊधस् (उवारे) के दो नाम- ऊधसू १ पीन २ नपुं० । (३) पशु आदि के बन्धन डोरी के तान नाम-रज्जु१ (दामनी, दामा) स्त्री० सन्दान २, दाम ३ नपुं० । (४) डारे के सामान्य दो नामदोर १ दोरक २ नपुं० (५) दूध दूहने वाले के दो नाम-दोघ १ दोग्धा २ पु० । (६) रवैया [दधि विलोडन] के पांच नाममन्था १ मन्थ ३ मन्थान ३ वैशाख ४ खञ्जक ५ पु० (७) जिसमें दही वलोवें उस वर्तन के दो नाम-गर्गरी १ मन्थनी २ स्त्रो० । (८) मेष [भेंड, गाडर] के आठ नाम- मेष १ एडक २ उरण ३ उरभ्र ४ ऊर्णायुस् ५ मेढू ६ अवि ७ वृष्णि ८ पु०। (९) छोग (बकरे) के पांच नाम-वस्त १ अज २ छागल ३ छाग ४ स्तम्भ ५ पु०। (१०) बकरी के दो नाम- छागी १ अजा २स्त्रो० । (११) गाडर (मेष) पाल के दो नाम- गडेर १ गड्डर २ पु० । (१२) भेंड चराने वाले के एक नाम-गड्डलि (गड्डरि) १ पु० । Page #249 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीयकाण्डम् २३६ वणिग्वर्गः १० शशोणं शशलोमानि ऊर्गायु मेष कम्बलः ॥३८॥ चिरैमेही च वालेय खर रासभ गर्दभाः। चक्रोवान् शकुकर्णोऽपि तथा वैशाखनन्दनः ॥३९॥ उष्ट्र-क्रमेलको तुल्यौ करभस्वस्य बालकः । नैगमो वाणिनः सार्थवाही वैदेहको वणिक् ॥४॥ क्रयविक्रयिकः पण्याजोव आपणिकस्तथा । वस्तु गृह्णाति मूल्येन क्रयिकः क्रायिकः क्रयी॥४१॥ विक्रीणीते स विक्रेता तथा विक्रयिकः स्मृतः । वणिज्या चाऽपि वाणिज्यं वणिनां कर्म कीर्त्यते॥४२॥. (१) शशला के लोम के दो नाम- शशोर्ण १ शशलोमक २ नपुं०। (२) मेषादि लोम के दो नाम-ऊर्णायुम् [ऊर्णा स्त्रो०] १ मेषकम्बल २ [रल्लक पक्ष्नकम्बल को भी कहते हैं] पु० । (३) गदहे के आठ नाम-चिरमेह। १ वालेश २ खर ३ रासभ ४ गर्दभ ५ चक्रीवान् ६ शकुवण ७ वैशाखनन्दन८ पु० । (४)ऊँट के दो नामउष्ट्र १ क्रमे ठक २ पु० । (५) ऊँट के [त्रिहायण] वच्चे का एक नाम- करभ १ पु० । (६) व्यापारी के आठ नाम- नैगम १ वाणिय २ सार्थवाही ३ वैदेहक ४ वणिक् ५ कपविक्रयिक ६ पण्याजोव ७ आपणिक ८पु० । (७) मूल्य (कीमत) से सामान खरीदने वाले के तीन नाम-क्रयिक १ ऋयिक २ क्रयो ३ पु० । (८) वेचने वाले के दो नाम-- विक्रेता १ विक्रयक २ पु० । (९) व्यापार के दो नाम-वाणिज्या १ स्त्री०, वाणिज्य २ नपुं.। Page #250 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीयकाण्डम् २३७ वणिग्वर्गः १. 'मूल्येऽर्थोऽवक्रयो वस्न; फैल लाभोऽधिकं तु यत् । क्लीबे मूलधनं नीवी स्त्रियाः परिपणः पुमान् ॥४३।। पुस्याधिर्बन्धकं भाटो भाटकः पण आपणः । उपधियास निक्षेपौ प्रतिदानं तदर्पणम् ॥४४॥ परिवर्त परावर्त नैमेय निमया अपि । विनिमयव्यतीहारौ परिदानेऽन्यवस्तुनः ॥४५॥ क्रस्य स्यादापणद्रव्यं पण्यं विक्रेय वस्तुनि । क्रेय क्रेतव्यमानेऽपि पणिकाऽऽपणिको समौ ॥४६॥ (१) मूल्य (कीमत) के चार नाम-मूल्य १ नपुं०, अर्घ र भवक्रय (वक्रय) ३ वस्न ४ पु० । (२) नफा (मुनाफा) के तीन नाम- फल १ अधिक २ नपुं०, लाभ ३ पु० । (३) मूलधन (पूंजी) के तीन नाम- मूलधन १ नपुं० नीवी २ स्त्री०, परिपणा ३ पु० । (४) गिरवी के दो नाम-आधि१ पु०, बन्धक २ नपुं०। (५) भाड़े के दो नाम- भाट १ भाटक २ पु० । (६) दुकान के दो नाम- पण १ आपण २ पु० । (७) धरोहर (थापण) के तीन नाम-उपधि १ न्यास २ निक्षेप ३ पु०। (८) धरोहर लोटाने का एक नाम- प्रतिदान १ नपुं० । (९) अदला बदला के सात नाम- परीबर्त १ परावर्त २ नेमेय ३ निमय ४ विनिमय ५ व्यतीहार ६ पु०, परिदान ७नपुं० । (१०) मुल्य लेकर बेचे नाय ऐसे दुकान के सामान का एक नाम-क्रय्य १ नपुं० । (११) बेचने योग्य वस्तुओं का एक नाम- पण्य १ नपुं० (१२) खरीदने योग्य वस्तु का एक नाम- क्रेय २ नपुं० । (क्रय्यादि त्रिलिङ्ग)। (१३)दुकानदार के दो नाम-पणिक २ आपणिक २ पु०॥ Page #251 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीयकाण्डम् २३८ वणिस्वर्गः १० सत्यङ्कारः स्त्रियां सत्या - कृतिः सत्यापनं तथा । धारेशोधर्ण शोधौच त्रिषु द्वावृणि धारिणौ ॥४७॥ ऋर्णे धारोऽथैनिष्कोऽस्त्री स्वर्णमुद्राऽथ टङ्कटः । रूप्यं च कार्षिकः कार्षापणः स्यात्ताम्रिकः पणः ॥४८॥ वराटिका कपर्दी स्याद् विंशतिः सातु काकिणी । तुयशः कुडवः पादोऽथार्ध - प्रस्थोऽर्द्ध शेटकः ॥४९॥ समौ स्तः शेटे कः प्रस्थो द्विशेटि तु द्विशेटिका । औंढको भाजनं कंसः पात्रं सार्द्धद्विशेटिका ॥५०॥ १३ (१) व्याना ( लेन देन की निश्चित बात) के तीन नाम - सत्यङ्कार १ नपुं०, सत्याकृति २ स्त्री०, सत्यपाल ३ नपुं० । (२) लहना तगादा के दो नाम-धारशोध १ ऋणशोध २ पु० । (३) खदुका (जो कि उधार लिए हों) के दो नाम - ऋणी १ घारी २ पु० । ( ४ ) ऋण के दो नाम ऋण १ नपुं०, धार २ पु० । (५) अशर्फी के दो नाम - निष्क (दीनार) १५. नपुं०, स्वर्ण मुद्रा २ स्त्री० । ( ६ ) रूपैया के चार नाम - टंकक १ पुं०, रुप्य २ नपुं०, कार्षिक ३ कार्षापण ४ पु० । (७) पैसा के दो नाम - ताम्रिक १ पण २ पु० । (८) कौडी के दो नाम वराटिका १ कपर्दी २ स्त्री० । ( ९ ) बीस कौडी की एक 'काकिणी' होतो है स्त्री० । (१०) चौथाई हिस्से के तीन नाम तुर्याश १ कुडव -२ पाद ३ पु० । (११) अर्धा सेर वजन के दो नाम - अर्धप्रस्थ २ अर्धशेट २ पु० । ( १२ ) सेर वजट के दो नाम-शेटक २ प्रस्थ २ पु० (१३) दो सेर वजन के दो नाम-द्विशेटी १ द्विशेटोका २ स्त्री० । (१४) ढाई सेर वजन के पांच नाम - आढक १ कंस २ पु०, भाजन३ पात्र ४ नपुं०, सार्द्धद्विशेटोका ५ स्त्री० । - Page #252 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीय काण्डम् २३९ वणिग्वर्गः १० दशेशेटी घटी पञ्च - प्रस्थी स्यात्प्रचशेटिका | दशशेटी भवेद् द्रोणः स्त्रियां खारी मणः पुमान् ॥ ५१ ॥ वोहो द्वादश खारी स्याद् वकय पृपाकरा । अक्षक तु तोळाया मक्षः षोडशमाषकः ॥५२॥ गुञ्जानामष्टकं माषो मानार्थे क्रम आहतः । स्वापतेय वसुद्रव्य रिक्थवर्थ द्रविणानि च ॥५३॥ हिरण्य द्युम्न वित्तानि रा अर्थ विभवा वपि । एको दश शतं तद्वत् सहस्र मयुतं तथा ॥ ५४ ॥ ― हिन्दी - (१) धारा (दश सेर वजन) के दो नाम - दशसेटी १, घटी २ स्त्री० । (२) पसेरी (पान सेर) वजन के दो नामपञ्चप्रस्थी १, पञ्चशेटी २ ( पञ्चशेटिका ) स्त्री० । (३) मापविशेष (घाड़ा दश सेर वजन ) का एक नाम - द्रोण १ पु० । (४) एक मन वजन के दो नाम - खारी १ स्त्री०, मण २ पु० । (५) एक गाड़ी पर सामान्य रूप से बारह मन वजन रक्खा जाता है उस का एक नाम - वाह १ पु० । ( ६ ) वटवारा विभाजन करनेवाले के दो नाम - वण्टकरी १, पृषाकरा २ स्त्री० (अंश, भाग पु० ) । (७) तोला के तीन नाम - अक्ष १ (सोलह माष [ उड़द ] का बराबर 'अक्ष' का माप माना गया है) कर्ष २ पु०, तोला ३ स्त्री. 1 (८) आठ माष का बराबर 'गुञ्जा' होती है स्त्री० । (९) धन के बारह नाम - स्वापतेय १, वसु २, द्रव्य ३, रिक्थ ४, ऋक्थ ५, द्रविण ६, हिरण्य ७, घुम्न ८, वित्त ९ नपुं०, रा [] १०, अर्थ ११, विभव १२ पु० । (१०) व्यवहार के लिए संख्याएंएक १ त्रि०, दश १० नपुं, शत १००, सहस्र १००० पु. नपुं., Page #253 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीयकाण्डम् २४० वणिग्वर्गः १० लक्ष च प्रयुतं कोटि र्बुद चाऽजमेव च । खों निखर्व: पद्मोऽपि शकुश्च सागरस्ततः ॥५५॥ अन्त्यं मध्यं पराध च संख्या दशगुणोत्तराः । संख्या संख्येययो विंश-त्याद्या एकत्व वाचिनः ॥५६॥ संख्यायते चेत्संख्यैव द्वित्वाद्यपि तदा भवेत् । ॥ इति वणिग वर्गः समाप्तः ॥ अयुत १०००० नपुं०, लक्ष १०००००, प्रयुत १०००० नपुं, कोटि १००००००० त्रिलिङ्ग, अर्बुद १०००००० अब्ज नपुं. १००००००००० खर्व १००००००००० निखर्व पु०, १००००००००००० पद्म १०००००००००० ०० पु० नपुं०, शङ्कु १०००००००००००००, सागर १०००००००००००००० पु०, अन्त्य १०००००००००००००००, मध्य १००००००००००००००००, परार्ध १००००००००००००००००० ए संख्याएं आगे आगे दश गुणा अधिक होती जाती है विंशति को लेकर आगे आगे की संख्याएं एकवचनान्त होती हैं (चाहे संख्या में वा संख्येय में हो) जहाँ संख्या ही गिनी जाय वहां द्वित्वादि भी हो सके । ॥ इति वणिग् वर्ग समाप्त ॥ Page #254 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीयकाण्डम् २४१ अन्त्यषणवर्ग:११ ॥ अन्त्यवर्णवर्गः प्रारभ्यते ॥ शुद्रा जघन्यजाः पद्या वृषला अन्त्यवर्णकाः । मोऽभिषिक्ता द्रथकृज्जात्यन्ता मिश्रजातयः ॥१॥ क्षत्रियायां द्विजाज्जातो मूर्धावसिंक्त उच्यते। . निषादो यदि शूद्रायां वेश्यायां द्विजजो यदि ॥२॥ अम्बष्ठोऽथ निषादेनाऽम्बष्ठायां बुक्कसः सुतः। मतपश्चैष विज्ञेयः क्षत्ता वैश्यासु शुद्रजः ॥३॥ शुद्रायां नृपजश्वोः करणो वैश्यतो यदि । क्षत्रियायां तु सूरतः स्याद् भवेद्वैदेहिकस्तु यः ॥४॥ ब्राह्मण्यां यदि वा शूद्राच्चाण्डालोऽयक्षमा भुजोः । हिन्दी-(१) शूद्र के पांच नाम-शूद्र १, जघन्यज २, पध 3. वपल ४. अन्त्यवर्णक ५ पु० । (२) मिश्र जातियों में ब्राह्मण से क्षत्रिया में उत्पन्न हुआ का एक नाम-मूर्धाभिषिक्त १ पु०। (३) ब्राह्मण से शूद्रा में उत्पन्न को 'निषाद' कहते हैं पु० । (४) ब्राह्मण से वैश्या में उत्पन्न को 'अम्बष्ठ' पु० । (५) अम्बष्ठा में निषाद से उप्तन्न को 'वुक्कस' १ मृतप २' पु. । (६) शुद्र से वैश्या में उत्पन्न को 'छत्ता' कहते हैं पु. । (७) शुद्रा में क्षत्रिय से उत्पन्न का नाम-उग्र १ पु. । (८) शुद्रा में वैश्य से उत्पन्न का नाम-करण १ पु. । (९) वैश्य से क्षत्रिया में उत्पन्न का नाम-सूत १ पु. । (१०) वश्य से ब्राह्मणी में उत्पन्न का नामवैदेशिक १ पृ. । (११) ब्राह्मणी में शुद्र से उत्पन्न का नामचाण्डाल १ पु. । - - Page #255 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीयकाण्डम् २४२ अन्त्यवर्णवर्गः ११ माहिष्यः कुलकः शिल्पि मुख्येऽथ कारु शिल्पिनौ ॥५॥ माली तु माहिको माला - कारस्ता तु वर्धकिः । काष्ठत रथकारथ माहिष्यात्करणी सुतः ॥ ६ ॥ nirasaaraस्थो ग्रामतक्षो वशे स्थितः । 'सौचिकस्तुन्नवायोश्च दरजिद्दरजिस्तथा ॥७॥ शाणेकृत्त्वसिधावः स्यात्कुलीलः कुम्भकारकः । at कृद्राजकारिच पलगण्डः सुधाकरः ॥ ८॥ अथ चित्रकैरो रङ्गराजो रजैकधावकौ । (१) वैश्य कन्या में क्षत्रिय से उत्पन्न का एक नाम - माहिष्य १ पु. १ (२) शिल्पकारों में मुखिया का नाम - कुलक १ पु . । (३) [चित्रकार, कारीगर ] के दो नाम-कारु १ शिल्पी २ पु . । (४) माली के तीन नाम - माली १, मालिक २ मालाकार ३ पु. । (५) बढइ के चार नाम - तक्षा [तक्षन् ] १ वर्धक २, काष्ठतद् ३, रथकार ४ पु. [ए माहिष्य से करणी में उत्पन्न हुए हैं ] । ( ६ ) स्वतन्त्र बढइ का एक नाम - कोटतक्ष १ पु. । (७) ग्रामवासी काममें लगे हुए बढइ का एक नाम - ग्रामतक्ष १ पु. । (८) दर्जी के चार नाम - सौचिक १, तुन्नवाय २, दरजित् ३, दरजि ४ पु . । (९) सगलीगर [राराणिआ] के दो नाम-शाणकृत् १, असिधावक २ पु. । (१०) कुम्भकार के दो नाम - कुलाल १, कुम्भकार २ पु. । (११) पलस्तर [ चूना आदि - लगाने वाले ] करनेवाले कारीगर के चार नाम - लेपकृत् १, राजकारि २. पलगण्ड ३, सुधाकर ४ पु. 1 ( १२ ) चित्रकार के दो नाम-चित्रकर १ रङ्गराज २ ० । (१३) धोबी के दो नामरजक १ धावक २ पु० । Page #256 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीयकाण्डम् अन्त्यवर्णवर्गः ११ व्योकारो कोहकृत्प्रोक्तः कल्पैपालस्तु शौण्डिकः || ९ || रुमैकृत्स्वर्णकारोऽपि कलादः पश्यतोहरः । नाडिन्धमः कुविन्दैस्तु तन्तुवायोऽथ शौल्विकैः ॥ १०॥ ताम्रिक स्ताम्रकुटोऽथ ना काम्बैविक शाखिकौ । चर्मकारस्तु पादूकुदिवा' कीर्तिस्तु नापितः ॥११॥ 'अजाजीवस्तु जावालो देवेंलो देवजीवकः । पाणिधेस्तालकृत्तुल्यौ मार्दङ्गिकैमृदङ्गिनौ ॥ १२ ॥ भरिको भारवाहः स्यात् तथा वाहक इत्यपि । २४३ (१) लोहार के दो नाम-व्योकार १ लोहकृत २ पु० । (२) कळवार कलाल (दारु बनाने वाले) के दो नाम - कल्याल १ शौण्डिक २ पु० । (३) सुनार के पांच नाम - रुक्मकत् १ स्वर्णकार २ कलाद ३ पश्यतोहर ४ नाडिन्धम ५ पु० । (४) जुलाहे ( कपड़ा) बुनने वाले) के दो नाम - कुविन्द १ तन्तुवाय २ पु० । ( ५ ) ताम्बा के वर्तन बनाने वालों के तीन नाम-शौल्विक १ ताम्रिक २ ताम्रकुट ३ ५० । (६) शंख सीप कम्बुमणि आदि के आभूषण बनाने वालों के दो नाम - काम्बविक १ शाङ्खिक २ ( कङ्कणादिकृत् पु० । (७) चमार के दो नाम चर्मकार १ पदूकृत् २ पु० । (८) नाई के दो नाम - दिवाकीर्ति १ नापित २ पु० । ( ९ ) बकरी से आजीविका वाले के दो नाम-अजाजीव १ जावाल २५० । (१०) पुजारी के दो नाम - देवल १ देवजीवक २ पु० । (११) तालो बजाने वाले के दो नाम - पाणिघ १ तालकृत् २ पु . । (१२) मृदङ्ग बजाने वालों के दो नाम - मादङ्गिक १ मृदङ्गी २ पु० । . (१३) भारवाहो के तीन नाम-भारिक१ भारवाह२ वाहक ३५. । Page #257 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीयकाण्डम् २४४ अन्त्यवर्णवर्गः ११ कुहेकं विन्द्र जालं च मायाकर्माऽथ शाम्बरी ॥१३॥ माया मायो तु मायावी मयिकश्चन्द्रजालिकः।। चारण: कथकस्तद्वत् स्यात्कुशीलव इत्ययम् ॥१४॥ नंट शैलालि शैलूष भरतास्तु कृशाश्विनि । वेणुध्या वैणुको वैणविकः स्यु र्वेणुवादके ॥१५॥ कार्मणज्ञवशीकारौ तुल्यौ भाणि प्रहासिनौ । भृतको भृविभुक् कर्मकर वैतनिकाः समा ॥१६॥ "भर्जको भ्राष्टिको भ्राष्ट्री स्तोवागुरिक जालिकौ । (१) मन्त्र यन्त्र तन्त्र वा ओषधि प्रयोगों से असंभव को संभव करने के तीन नाम-कुहका १ इन्द्रजाल २ मायाकर्म ३ नपुं. । (२) माया के दो नाम-शाम्बरी १ माया २ स्त्री. । (३) माया करने वाले के चार नाम-मायी १ मायावी २ मायिक ३ इन्द्रजालिक ४ नपुं०। (४) चारण के तीन नाम-चारण १ क्रथक २ कुशीलव ३ पु०। (५) नट के पांच नाम-नट १ शैलालि २ शैलष ३ भरत कृशाश्वी ५ पु० । (६) बांसुरी बजाने वाले के चार नाम-वेणुध्मा १ वैणुक २ वैणविक ३ वेणुवादक पु०। (७) ओषधी जड़ीबूटी से वश करने वाले के दो नाम-कामणज्ञ १ वशीकार २ पु० । (८) हास्य रस के अभिनेता के दो नाम-भाणी (भाणिन्) १ प्रहासी (प्रहासिन्) २ पु. । (९) वेतन से काम करने वाले के चार नाम-भृतक १ भृतिभुक् २ कर्मकर ३ वैतनिक ४ पु० । (१०) भरभुजा के तीन नामभार्जक १ भ्राष्ट्रिक २ भ्राष्ट्रो (भ्राष्ट्रिन् ३ पु० । (११) जाल मादि से पक्षियों को पकड़ने वाले के दो नाम-वागुरिक १ जालिक २ पु० । Page #258 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितोयकाण्डम् २४५ अन्त्यवर्णवर्ग:११ पुंसि वैवधिको' वार्तावाही वार्तावहोऽपि च ॥१७॥ चौक्रिको धूसरस्तैली तैलिकश्च तिलन्तुदः। पक्षिहन्तरि जीवान्तकः शाकुनिक इष्यते ॥१८॥ मांसिकः कौटिको वैतंसिको यो मांसविक्रमी । प्राकृतोऽपसदो जाल्मो नीचो हीनश्च पामरः ॥१९॥ पृथग्जनो विवर्णश्च क्षुल्लकोऽपि तथेतरः। अनाथ भिक्षुको रङ्केऽथान्तेवासी च वुक्लसौ । २०॥ निषादप्लव चण्डाल चाण्डालश्वपचोपि च । मातङ्गो वांशिको वंशजीवी हाडिमहत्तरौ ॥२१॥ किराताः शबला भिल्ला पुलिन्दा वरुटाः समाः। (१) संदेशा ले जाने वाले के तीन नाम-वैवधिक १ वार्तावाही २ वार्तावाह ३ (संदेशहर) पु. । (२) तेली के पांच नाम-चक्रिक १ धूसर २ तैली (तैलिन्) ३ तैलिक ४ तिलन्तुद ५ पु० । (३) पक्षी मारने वालों के तीन नाम-पक्षिहन्ता १ नीवान्तक २ शाकुनिक ३पु. । (४) मांस बेचकर जीविकाचलाने वाले के चार नाम-मांसिक १ कौटिक २ वैतंसिक ३ मांसविक्रयी ४ पु०। (५) नीच के दश नाम-प्राकृत १ अपसद २ जाल्म ३ नोच ४ होन ५ पामर ६ पृथग्जन ७ विवर्ण ८ क्षुल्लक ९ इतर १० पु. । (६) रङ्क के तीन नाम-अनाथ, भिक्षुक २ र ३ पु० । (७) चण्डाल के बारह नाम-अन्तेवासो १ वुक्कस २ निषाद ३ प्लव ४ चण्डाल ५ चाण्डाल ६ श्वपच ७ मातङ्ग ८ वांसिक (डोम के) ९ वंशजीवी १० हाड। (मेहत्तर के) ११ महत्तर १२ पु०। (८) भिल्ल के पांच नाम-किरात १ शबर २ भिल्ल ३ पुलिन्द ४ वरुट ५ पु० । Page #259 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितोयकाण्डम् २४६ अन्त्यवर्णवर्ग:१६ मृगयु लुब्धको व्याधोऽथ भृत्यो दास किंकरौ ॥२२॥ नियोज्य प्रैष्य दासेय दासेर परिचारकाः । भुजिष्यो गोप्य चेटौ च सूत्थानस्सूष्णपेशलौ ॥२३॥ चतुरश्च पटुर्दक्षो मन्दस्तु यद्भविष्यकः । तुन्द परिमृजाऽऽलस्या वलसाऽनुष्ण शीतकाः ॥२४॥ क्षुरभैण्ड क्षुहाधायः क्षुरधानी क्षुरालिका । विष्टि राज ठान्तीत भृत्ये तत्कर्म विष्टिता ॥२५॥ तन्त्रं तु चर्मतन्तुः स्याद् भिक्षापात्रं तु खेपरः । तैलयन्त्र तु चक्रं स्यात् स्त्रियां गाली तु गालिका ॥२६॥ (१) व्याध के तीन नाम-मृगयु १ लुब्ध २ व्याध पु. (२) भृत्य के ग्यारह नाम-भृत्य १ दास २ किंकर ३ नियोज्यप्रैष्य ५ दासेय ६ दासेर ७ परिचारक ८ भुजिष्य ९ गोप्य १० चेट ११ पु० (३) चतुरजनो के छ नाम-सूत्थान १ उष्ण २ पेशल ३ चतुर ४ पटु ५ दक्ष ६ पु०। (४) आलसी जन के सात नाम-मन्द १ यद्भिविष्यक २ तुन्दपरिमृज ३ आलस्य ४ व्यालस ५ अनुष्ण ६ शीतक ७ पु० । (५) नाई के पेटो के चार नाम-क्षुरभाण्ड नपुं०. क्षुराधार २ पु० क्षुरधानी १ क्षुरालिका ४ स्त्री० । (६) बलपूर्वक बनाये गये भृत्य के दो नाम-विष्टि १ आजू २ स्त्री० । (७) इसके काम के एक नाम-विष्टिता १ स्त्री० । (८) तांत के दो नाम-तन्त्र १ नपुं०, चर्मतन्तु २ पु० । (९) भिक्षा पात्र के एक नाम-खर्पर १ पु० । (१०) तेलयन्त्र के एक नाम-चक्र १ नपुं.। (११) गालो के दो नामगाली १ गालिका २ स्त्री० । Page #260 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४७ । द्वितीयकाण्डम् अन्त्यवर्णवर्ग: ११ कुक्करो भषकः सारमेयः श्वा मृगदंशकः । कुकुरः शुनकोऽलेक स्तून्मत्तो यः प्रयोगतः ॥२७॥ शुनी स्यात्सरमा विश्व कद्रुः श्वा मृगया पटुः । आखेटो मृगयाऽऽच्छोदनं मृगव्यं नपुंसकम् ॥२८॥ विट्चरो ग्राम्य घोणा स्याद् वै करो यो युवा पशुः । परैरनिच्छतां वस्तु हरण लुण्ठनं बलात् ॥२९॥ वेष्ट काऽऽवेशिकौ वीराऽऽवेशः संरंभ ईरितः । "स्तेनै कागारिको चौर दस्यु मोषक तस्कराः ॥३०॥ पाटच्चर परास्कन्दि प्रतिरोधि मलिम्लुचाः। "पेटा स्त्रियां च मञ्जूष पिटकः पेटकः पुमान् ॥३१ (१) कुक्कुर के सात नाम-कुक्कुर १ भषक २ सारमेय ३ श्वा (श्वन्) ४ मृगदंशक ५ कुकुर ६ शुनक ७ पु० । (२) पागल कुत्ते के एक नाम-अलर्क १ पु० । (३) कुत्ती के दो नाम-शुनी१ सरमा २ स्त्री० (४) शिकारी कुत्ते का एक नाम-विश्वकद्रु १ पु. (५) शिकार के चार नाम-आखेट १पु०, मृगया २स्त्री०, आच्छोदन ३ मृगव्य १ नपुं० । (६) ग्राम सूकर के दो नाम-विट्चर ४ ग्राम्यघोणी २ पु० । (७) जुवान पशु के एक नाम-वर्कर १ पु० । (८) लूटने के एक नाम-लुण्ठन १ नपु० । (९) वीर के आवेश के चार नाम-वेष्टक १ आवेशिक २ वोज्ञवेश ३ संरम्भ ४ नपुं.। (१०) चोर के दश नाम-स्तेन १ एकागारिक २ चौर ३ दस्यु ४ मोषक ५ तस्कर ६ पाटच्चर ७ परास्कन्दो ८ प्रतिरोधी ९ मलिम्लुच १० पु. । (११) पेटी के चार नाम-पेटा १ मञ्जूषा २ स्त्री., पिटक ३ पेटक ४ पु० । Page #261 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीयकाण्डम् ર૪૮ अन्त्यवर्णवर्ग:११ नना शुल्वं वराटः स्त्री-रज्जु स्त्रिषु वटी गुणः । चौयं तु चोरिका स्तेयं स्थाल्लो चौरिका धनम् ॥३२॥ *सूत्रं तन्तौ वायदेण्डो वेमा व्युतिस्तु वाणिषु । अरहट्टो घटी यन्त्रे कूपात्सलिलवाहने ॥३३॥ पुंसि पेषण यन्त्र स्याद् घरट्टोऽञ्जी तथा स्त्रियाम् । कूटयन्त्रं तदुन्माथो मृगपाशस्तु वागुर। ॥३४॥ बन्धने लोभ हेतुस्तु पीतंसो मृगपक्षिणाम् । पाञ्चाली पुत्रिके तुल्ये भारयष्टि विहंगिका ॥३५॥ हिन्दी-(१) रस्सी (डोरी) के पांच नाम-शुल्व १ स्त्री०, नपुं०, वराट २ पु०, रज्जु ३ स्त्री०, वटी ४ त्रि०, गुण ५ पु० । (२) चोरी के तीन नाम-चौर्य १ स्तेय क नपुं०, चोरिका३ स्त्रो.। (३) चोरो से आये धन के एक नाम-लोत्र १ नपुं। (४) सूत के दो नाम-सूत १ नपुं०, तन्तु २ पु० । (५) वेमा (जुलहे की कंघी) के दो नाम-वायदण्ड १ वेग (वेमन्) २ पुः । (६) रूई धुनने के डंडे के दो नाम-व्यूति १ वाणि २ जी० । () अरहट्ट के एक नाम-मरहट्ट १ पु० । (८) चक्की (जिससे आंटा पीसते है) के दो नाम-घट्ट-१ पु०, अज्जो २ स्त्री० । (९) कंपा (कंपास वांस का छोटा धनुष जिसमें लासा लगाकर चिड़ियों को पकड़ते है) के दो नाम-कूटयन्त्र १ नपुं०, उन्माथ२ पु० । (१०) फंदा (रस्सी का घेरा) के दो नाम-मृगपाश १ पु० वागुरा २स्त्री। (११) मृगपक्षियों को पकड़ते समय में ललचाने के वस्तु को 'वोतंस' कहते हैं पु० । (१२) पुतली स्त्री की आकृति का वस्त्रादि निर्मित पुतला के दो नाम-पंचाली १ पुत्रिका २ स्त्री० । (१३) भार की लकड़ी के दो नाम-भारयष्टि १ बिहंगिका २ स्त्री० । Page #262 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 'द्वितीयकाण्डम् २४९ अन्त्यवर्णवर्गः ११ 'शिक्यं काचो वरत्रातु वीं नन्नी स्त्रियामिमाः। उपानत्पादुका पादूः कशात्वश्वादि ताडनी ॥३६॥ पाषाण भेदनस्टंको भनी चर्मप्रसेविका । काष्ठादि भेदनी त्वारा शलाका तूलिकैषिकाः । ३७।। केषः स्यानिकषः शाणः कर्तरीतु कृपाणिका । "मृषी त्वावर्तनी मृषा वश्चनः पत्रदारणः ॥३८॥ हस्तकुट्टः शिलाकुट्टोऽयोधनः कूटमस्त्रियाम् । (१) सीका(रस्सी का फन्दा, जिस पर दही आदि टांगा हुआ रहता है) के दो नाम-शिक्य १ नपु०, काच २ पु० । (२) चमड़ा से बने रस्सी के तीन ताम-वस्त्रा १ वध्री२ नध्री३स्त्री० । (३) जूते के तीन नाम-उपानत् १ पादुका२ पादू ३ स्त्री० । (४) चाबूक का एक नाम-कशा १ स्त्री० । (५) छेनी (जिससे लोहे काटे जाय) का एक नाम--टन्क १ पु० । (६) भाथी के दो नाम-भस्रा १ चर्मप्रसेविका २ स्त्री० । (७) लकड़ी चीरने का औजार का एक नाम--आरा १ स्त्रो०। (८) चित्र बनाने की लेखनो के तीन नाम--शलाका १ तुलिका २ एषिका ३ स्रो० । (९) स्वर्णपरीक्षण की कसौटी के तीन नाम-कष १ निकष२ शाण३ पु०। (१०) कैचो के दो नाम-कर्तरी १ कृपाणिका २ स्त्री० । (११) सुवर्ण गलाने के मिट्टीपात्र के तीन नाम-मूषी १ आवर्तनी २ मूषा ३ स्त्री० । (१२) सुवर्ण पात्र छेदन की कैंची के दो नाम-व्रश्चन १ पत्रदारण २ पु० । (१३) हथोड़ा हथौड़ी के दो नाम-हस्तकुट्ट १ शिलाकुट्ट २ पु० । (१४) एरण (नेहाई) के दो नाम-अयोधन १ पु०, कूट २ पु०, नपुं० ।। Page #263 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीयकाण्डम् अन्त्यवर्णवर्गः ११ संदेशिका' तु संदेशो 'यो मूर्ति रेवतु ॥ ३९ ॥ शिल्पं कलादिकं कर्म नाराचयेषणिके समे । स्त्रियां प्रति कृतिवाच प्रतिमा प्रतियातना ||४०|| प्रतिच्छाया प्रतिच्छन्दः पुमान्प्रतिनिधि स्तथा । कायमानं रूपे बिंबे प्रत्यन्ताः प्रतिमार्थकाः ॥ ४१ ॥ उपमानोपमेयौ तु यस्य यस्मिन्क्रमात्स्थितौ । उपमोपमिती तुल्ये वाच्यलिङ्गा व्यवस्थिताः ॥ ४२ ॥ 'साधारणः सरूपोऽपि सवर्णः सन्निभः समः । सधर्मा तुल्य सदृक्ष समान सदृशाः सदृक् ॥४३॥ (१) सांडसी के दो नाम - संदंशिका १ स्त्री०, संदेश २ पु० । (२) लोहे की स्त्रीमूर्ति का एक नाम - सूर्मी १ स्त्री० । (३) कलात्मक काम के एक नाम शिल्प १ नपुं० । ( ४ ) सोना तौलने की तुल के दो नाम - नाराची १ एषणिका २ स्त्री० । (५) प्रतिमा के ग्यारह नाम प्रतिकृति १ अर्चा २ प्रतिमा ३ प्रतियातना ४ प्रतिच्छाया ५ स्त्री प्रतिच्छन्द ६ प्रतिनिधि ७. प्रतिकाय ८ पु०, प्रतिमान ९ प्रतिरूप १० प्रतिबिम्ब ११ नपुं० । (६) जिसकी उपमा ली जाती हो उसका एक नाम-उपमान १ त्रि० । (७) जिसमें उपमा दी जाय उसका एक नाम-उपमेय १ त्रि० । (८) उपमा के दो नाम - उपमा १ उपमिति २ स्त्री० । (९) तुलना बोधक शब्द के ग्यारह नाम - साधारण १ सरूप २ सवर्ण ३ सन्निभ ४ सम ५ सधर्मा ५ सधर्मा ( सधर्मन् ) ६ तुल्य ७ सदृक्ष ८ समान ९ सदृश १० सदृकू (सदृशू) ११. ए. सब वाच्यलिङ्ग । • २५० Page #264 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीयकाण्डम् २५१ अन्त्यवर्णवर्ग:११ मदिरा' तु सुरा मधं कश्यं हाला परिस्रुताः। सीध्वासवौ तु मैरेय शुण्डा पानं तु मद्यभूः ॥४४॥ सरको मधपानो स्या च्चकः पानभाजनम् । पार्शको देवनोऽक्ष: स्यात्कैतवं द्यूतमस्त्रियाम् ॥४५॥ समिकः कितवो धृतोऽक्षधृतों इतकारकः । शारी स्यागुटिका गोटी प्रतिज्ञा तु पणः पुमान् ॥४६॥ शारिधिः शारिफलकं स्यादष्टापदमित्यपि । (१) मदिरा (दारु) के छ नाम-मदिरा १ सुरा २ स्त्री०, मद्य ३ कश्य ४ नपुं०, हाला ५ परिसुता ६ स्त्री० । (२) ईख (सेलडो) शाक (भाजी) आदि से बनाये गये मद्य के तीन नामसीधु १ आसव २ पु०, मैरेय ३ नपुं० । (३) मद्य घर के तीन नाम-शुण्डा १ नो०, पान २ नपुं०, मद्यभूः ३ स्त्री० । (४) मद्यपान का एक नाम-सरक १ पु० । (५) मद्यपान के प्याला के दो नाम-चषक १ पु०, पानभाजन २ नपुं. (६) जूआ खेलने के पासा के पांच नाम-पाशक १ देवन २ अक्ष ३ पु०, कैतव ४ धूत ५ पु., नपुं० । (७) द्यूतकार के पांच नाम-समिक १ कितव २ धूर्त ३ अक्षधूर्त ४ घतकारक ५ पु० । (८) पाशा खेलने को गोटी के तीन नाम-शारी १ गुटिका २ गोटी ३ स्त्री० । (९) शर्त लगाने के तीन नाम-प्रतिज्ञा १ स्त्री०, पण (ग्लह) २ पु० । (१०) जुआ खेलने के पट के तीन नाम-शारिधि १ पु., शारिफलक २ अष्टापद ३ नपुं० । Page #265 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीयकाण्डम् २५२ अन्त्यवर्ण वर्ग:११ शुककुक्कुटमेषादि प्राणि क्रीडा समाह्वयः॥४७॥ सेंगऽत्र ये यथा प्रोक्ता यौगिकाः शिल्पकादयः। लिङ्गान्तरेऽपि ताद्धा भविष्यन्ति भवन्ति ते ॥४८॥ ॥*॥ इत्यन्त्यवर्णवर्गः समाप्तः ॥॥ ।। इति द्वितीयः काण्डः समाप्तः ॥ (१) कुक्कुट आदि प्राणी की क्रीडा के एक नाम-समाह्वय १ पु० । (२) इस वर्ग में जो योगिक शिल्पक आदि शब्द कहे गए हैं वे सब योग मर्यादा से लिङ्गान्तर में भी होते है होंगे। ॥॥ इति अन्त्यवर्ण वर्ग समाप्त ॥॥ ॥ इति द्वितीय काण्ड समाप्त ।। - - Page #266 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयकाण्डम् २५३ प्रकीर्णवर्गः१. ॥ श्रीः ॥ ॥ अथ तृतीयकाण्डम् ॥ ॥ अथ प्रकीर्णवर्गः प्रारभ्यते ॥ प्रेकीर्णवर्गे लिङ्गोहः प्रकृति प्रत्ययादिभिः। संचयोऽपचयो तुल्यौ सैक्षयाऽपचयो क्षये ॥१॥ निष्ठीवने तु थुत्कार उदेजः पशुचालनम् । विरामो-पशमौ तुल्यौ-चान्तिस्तु वमनं वमिः ॥२॥ छर्युद्गाराऽऽविधस्तु स्याद् वेधनी भृङ्गसचिका । स्तम्बेध्नस्तु क्षुरपे स्यात्प्रत्याख्यानं निराकृतौ ॥३॥ हिन्दा-(१)लिङ्गबोधक विशेष प्रत्यय के अभाव में प्रकृति से, कहीं पर प्रत्यय से, कहीं पर रूपभेद से साहचर्य से लिङ्ग निर्णय संक्षिप्त वर्ग में होगा । (२) समुदाय अर्थ में-'संचय और अपचय पु० । (३) क्षय के दो नाम-संक्षय १ अपचय २पु० । (४) मुख से कफ फेंकना-थूकना अर्थ में दो नाम-निष्ठीवन (निष्ठेवन) १ नपुं., थूकार २ पु० । (५) प्रेरणा अर्थ में (उदज) होता है पु० (यहां अज धातु को वी आदेश नहीं होता है)। (६) विराम (समाप्ति) अर्थ में-विराम १ और उपशम २ पु०। (७) उल्टी के पांच नाम-वान्ति १ वमि २ स्त्रो०, वमन ३ नपुं०। छर्दि ४ उद्गारा ५ स्त्रो० । (८) सूई के तीन नाम-आविध १ पु, वैधनी २ भृङ्गसुचिका ३ ली । (९) हसिया खुरपा के दो नाम-स्तम्बध्न १ क्षुरप्र २ पु. (मुकुटने क्षुरप्र के स्थान पर 'खुरप्र' लिख के बाण भेद अर्थ बताया है)। (१०) निराकरण के दो नाम-प्रत्याख्यान (निरसन) १ नपुं०, निराकृति (प्रत्यादेश पु०) २ स्त्री। | Page #267 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयकाण्डम् २५४ प्रकीर्णवर्गः १ विपर्यय विपर्यासो व्यत्यास व्यत्ययावपि । प्रतिशासनमाहूय दूतादि प्रेषणे स्वतः || ४ || परिरम्भ परिष्वङ्गाऽऽश्लेषा आलिङ्गनार्थकाः । दर्शनंवीक्षणं वीक्षा निर्वर्णन मुदीक्षणम् ||५|| समौ प्रारम्भः आरम्भ स्त्वरायां वेगसंभ्रमौ । प्रतिबन्धोऽन्तरायः स्यात्समीपे विलेपनम् ||६|| प्रतिज्ञायां च वचने स्थित आस्रवे इष्यते । सामीप्ये सन्निधिः पुंसि धान्यादिवपनः पवे ॥७॥ (१) व्यतिक्रम ( उलटफेर ) के चार नाम - विपर्यय १ विपयस २ व्यत्यास ३ व्यत्यय ४ पु० । ( २ ) सेव कादि से बुलवाकर जो शासन हो उसका एक नाम-प्रतिशासन १ नपुं० । (३) आलिङ्गन के चार नाम - परिरम्भ १ परिष्वङ्ग २ आश्लेष ३ (संश्लेष) पु०, आलिङ्गन (अगून ) ४ नपुं० । ( ४ ) ईक्षण (देखने के) पाँच नाम-दर्शन १ ईक्षण २ निर्वर्णन ३ उदीक्षण ४ नपुं०, वीक्षा ५ स्त्री० । (५) प्रारम्भ के दो नाम - प्रारम्भ १ आरम्भर पु० । ( ६ ) त्वरा ( जल्दोवाजो) अर्थ में तीन नामत्वरा स्त्री०, वेग २ संभ्रम ३ पु० । (७) विघ्नबाधा ( रुकावट ) के दो नाम - प्रतिबन्ध १ अन्तराय २ नपुं. (८) अङ्गराग के अथवा सुधालेप आदि के दो नाम - समालेप १ पु०, विलेपन २ नपुं० । ( ९ ) प्रतिज्ञा और वचनस्थिति अर्थ में - 'आश्रव' पु० । (१०) समोप अर्थ में - सन्निधि १ पु० । (८) धान्य आदि को शोधन करना - पव १ पु 90 ० । Page #268 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयकाण्डम् २५५ अभिप्रायाऽऽशयच्छन्दाः प्रस्तावेऽवसरः स्मृतः । विहे व्यास विस्तारौ विस्तरः शब्दविग्रहः ॥ ८ ॥ प्रसेरो वस्तु विस्तारे संवाहस्त्वङ्गमर्दने । धीशक्ति निष्क्रमः सूत्रवेष्टने त्रसरः स्मृतः ॥९॥ प्रणयप्रश्रय प्रेम्णि प्रजनोपसरौ समौ । समौ समाससंक्षेपौ स्या स्यादासना स्थितौ ॥१०॥ प्रणवः १ (१) अभिप्राय के तीन नाम - अभिप्राय १ आशय २ छन्द ३ ( मत १ आकूत २ भाव ३) पु० नपुं० । ( २ ) प्रस्ताव के दो नाम - प्रस्ताव १ अवसर २ (प्रसङ्ग) पु० । (३) विस्तार ( फैलाव ) के तीन नाम - विग्रह १ व्यास २ विस्तार ३ पु० । (४) शब्द विग्रह के एक नाम - विस्तर १ पु० । (५) वस्तु के विस्तार का एक नाम - प्रसर १ पु० । (६) सुखकारक मर्दन के दो नाम -संवाह ( अङ्गमर्द) १ पु०, अङ्गमर्दन २ नपुं० । (७) बुद्धि के शक्ति के दो नाम - धीरशक्ति १ स्त्रो० (धी शक्ति के आठ भेद-शुश्रूषा १ श्रवणं २ चैव ग्रहणं ३ धारणं ४ तथा । ऊहापोहो ६ च विज्ञानं ७ तत्त्वज्ञानं ८ च धीगुणाः ||) निष्क्रम २ पु० । (८) सूत (धागा) को गोली बने हुए के दो नामसूत्रवेष्टन १ नपुं०, त्रसर २ पु० । (९) प्रेम करने के दो नामप्रणय १ प्रश्रय २ पु० । (१०) प्रथम गर्भ ग्रहण करने के दो नाम - प्रजन १ उपसर २ पु० । (११) संक्षेप के दो नामसमास १ संक्षेप २ पु० । (१२) मर्यादा के दोन नाम- आस्या १ आसना २ स्थिति ३ स्त्री० । Page #269 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयकाण्डम् २५६ प्रकीर्णवर्गः १. Ardrat धनधान्यादेः प्रयामेऽथक्षतौ व्ययः । संक्रमो दुर्गसंचारोऽवेक्षा स्त्रीवस्त्ववेक्षणे ॥११॥ विरहे विप्रलम्भः स्याद् विप्रयोगोऽपि रागिणः । विधुरं स्यात्प्रविश्लेषे परिसपे परिक्रिया ॥१२॥ प्रक्रमः प्रथमारम्भ उन्नतौ तु समुन्नयः । मेलायें मेलको मेल: संमेलः सङ्गसंगमौ ॥ १३ ॥ भूरिदीने विलम्भः स्याद् विख्योतिस्त्वति विश्रुतिः । उद्घनः परिकाष्ठं च यत्राssधायाऽऽशुतक्ष्यते ॥ १४ ॥ १३ (१) धन धान्य आदि संग्रह के दो नाम - नीवाक १ प्रयाम २ २ पुं० । (२) धन हानि के दो नाम - अर्थक्षति १ स्त्री०, व्यय २ पु० । (३) दुर्गभूमि में संचरण क्रिया के दो नाम - संक्रम (संक्राम) १ दुर्गसंचर ( दुर्गसंचार) २ पु० नपुं । ( ४ ) सावधानी के दो नाम - अवेक्षा १ स्त्री०, बस्तववेक्षण २ नपुं० ( प्रतिजागर पु० ) । (५) विरह के तीन नाम-विरह १ विप्रलम्भ २ विप्रयोग ३ पु० ॥ (६) सदा के लिये वियोग के दो नाम-विधुर १ नपुं० प्रविश्लेष २ पु० । (७) परिजनादि से वेष्टन के दो नाम परिसर्प १ पु०, परिक्रिया २ स्त्री० । ( ८ ) प्रथम आरम्भ के दो नामप्रक्रम १ प्रथमारम्भ २ पु० । ( ९ ) उन्नति के दो नामउन्नति १ स्त्री०, समुन्नय २ पु० । (१०) सम्मिलित होने के छ नाम - मेला १ बी०, मेलक २ मेल ३ सम्मेल ४ सङ्ग ५ संगम ६ पु० । (११) अतिदान के दो नाम - भूरिदान १ नपुं० विलम्भ २ पु० । (१२) अतियशस्वी के दो नाम - विख्याति १९ विश्रुति २ स्त्री० । (१३) जिस काष्ठ पर रखकर काष्ठ छोला जाय उस आधार काष्ठ के दो नाम - उद्धन१ पु०, परिकाष्ठ २नपुं० ॥ Page #270 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयकाण्डम् २५७ . प्रकीर्णवर्गः१ परिसर्या परीसारे उपघ्नस्त्वन्तिकाश्रये । उपभोगे तु निवेशो मदहर्षों प्रमोदने ॥१५॥ अभिचारस्तु हिंसादि क्रिया सन्धिस्तु मेलनम् । समुच्चये समाहारोऽपंहारोऽपहृतौ मतः ॥१६॥ पादचारे विहारः स्यात् प्रवाहो जलनिर्गमे । अनुहारेऽनुकारः स्यात् स्यान्निरोधस्तु निग्रहः ॥१७॥ विप्लवो डमरो डिम्बो बन्धेने बन्ध इत्यपि । विप्रकोरी निकारे स्याद् आधारे विषयाऽऽश्रयौ ॥१८॥ (१) प्रतिदिशा में गमन के दो नाम-परिसर्या १ स्त्रो. परीसार २ पुं० । (२) पडोसी के घर के दो नाम-उपस्न १ अन्तिकाश्रय २ पुं । (३) उपभोग के दो नाम-उपभोग १ निर्वेश २ पु०। (४) प्रमोद आनन्दातिशय के तीन नाम-मद १ हर्ष २ पु०, प्रमोदन ३ नपुं० । (५) हिंसादि क्रिया के एक नाम-अभिचार १ पु०। (६) मिला देने के दो नामसन्धि १ पु०, मेलन २ नपुं० । (७) राशीकरण के दो नामसमुच्चय १ समाहार २ पु. । (८) दूर करने के दो नामअपहार (अपचय) १ पु०, अपहृति २ स्त्रो०। (९) पेरी से चलने के दो नाम-पादचार १ विहार २ पु०। (१०) जल निकालने के दो नाम-प्रवाह १ जलनिगेम २ पु० । (११) अन. करण के दो नाम-अनुहार १ अनुकार २ पु० । (१२) रोकने के दो नाम-निरोध १ निग्रह २ पु० । (१३) लटपाट उपदव के तीन नाम-विप्लव १ डमर २ डिम्ब ३ पु० । (१४) बन्धन के दो नाम -बन्धन १ नपुं०, बन्ध २ पु० । (१५) उपकार के दो नाम-विप्रकार १ निकार २.प, (१६) देश के तीन नाम-आधार १ विषय २ आश्रय ३ प । Page #271 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सृतीयकाण्डम् २५८ प्रकीर्णवर्गः१ वृतौ वरो हैवो हूतौ, निगादैः परिभाषणे । अनुहोऽनुकम्पाया-मभियोगस्त्वभिग्रहे ॥१९॥ परिणामः फले श्रीयः श्रयणे जयने जयः । इङ्गितेत्विङ्ग आकारो विकारो विक्रियार्थकः ॥२०॥ "प्रसूतौ प्रसवो दोन्तौ दमः शान्तौ शमस्तथा । उत्कर्षाऽतिशयौ तुल्यौ क्लेमो ग्लानौ स्न: स्तवे॥२१॥ (१)वाड़ (वेष्टन) के दो नाम-वृत्ति १ स्त्री , वर२पु०। (२) बुलाने के दो नाम-हव १ पु०, हुति२ स्त्रो० । (३) निन्दा के साथ उपालम्भ के दो नाम-निगाद (नगद) १ पु. परिभाषण २ नपु.। (४) अनुकम्पा के दो नाम-अनुग्रह १ पु, अनुकम्पा २ बी० । (५) आरोप (दाबा) के दो नाम-अभियोग १ अभिग्रह २ पु० । (६) परिणाम के दो नाम- परिणाम १ पु०, फळ २नपुं० । (७) सेवा के दो नाम-श्राय १ पु०, श्रयण २ नपुं०। (८) जय के दो नाम-जयन १ नपुं०, जय (विजय) २ पु०। (९) अन्दर की चेष्टा के तीन नाम-इङ्गित १ इङ्ग २ आकार ३ पु०। (१०) प्रकृति का अन्यथा भावहोना 'विकार' है पु० । (११) प्रसव के दो नाम-प्रसूति १ स्त्री प्रसव २ पु० । (१२) तपस्या के क्लेशों को सहन करने के दो नाम-दान्ति १ स्त्री. दम २ पु० । (१३) काम क्रोध आदि के अभाव के दो नामशान्ति १ स्त्री०, शम २ पु० ।(१४) अतिशय के दो नामउत्कर्ष १ अतिशय २ पु० । (१५) ग्लानि के दो नाम-क्लम १ पु०, ग्लानि (ग्लनि) २ स्त्री० । (१६) स्तुति के दो नाम-स्नव १ स्तव २ पु० । Page #272 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - तृतीयकाण्डम् २५९ प्रकीर्णवर्गः १ परस्परं मिथोऽन्योऽन्य मितरेतर मित्यपि। घृतादीनां द्रवीभावे आधारो द्रव इत्युभौ ॥२२॥ न्यायो नीतौ भ्रमोभ्रान्तौ व्यधो वेधे रणः कणे। न्याय्यं न्यायपथोपेते 'प्लोषो दाहे वैरः पतिः॥२३॥ परम्परोपदेशे स्या-दाम्नायो 'ग्रहणे ग्रहः। स्फुरणा स्फुरणं स्फूतयदृच्छा स्वैरिते समे ॥२४॥ ... स्फोति वृद्धौ क्षियोहासे जागैर्या जागरे समे । (१) एक दूसरे से तुल्य अर्थ में चार नाम-परस्पर १, नपुं०, मिथस् २ अव्यय, अन्योन्य ३ इतरेतर ४ नपुं० (२) पिघले हुए घी आदि के दो नाम-आधार १ द्रव २ पु. (३) न्याय देशकालोचित के दो नाम-न्याय १ पु०, नीति २ स्त्री० । (४) भ्रमात्मक ज्ञान के दो नाम-भ्रान्ति (मिथ्यामिति) १ स्त्री०, भ्रम २ पु० । (५) वेधन के दो नाम-व्यध १ वेध २ पु० । (६) शब्दायमान अर्थ में दो शब्द-रण १ कण २ पु० । (७) अकाटय न्याय के एक नाम-न्याय १ त्रि० । (८) दाह अर्थ में प्लोष पु० । (९) पति अर्थ में 'वर' १ पु० । (१०) गुरुपरम्परा से आगत उपदेश के एक नाम-आम्नाय १ (११) ग्रहण करने के दो नाम-ग्रहण १ नपुं०, ग्रह २ पु० । (१२) स्फूर्ति के तीन नाम-स्फुरणा १ स्फूर्ति २ स्त्री०, स्कुरण ३ नपुं० । (१३) मन चाहे करने के दो नाम-यहच्छा १ स्वैरिता २ स्त्री० । (१४) वृद्धि अर्थ में 'स्फाति' है स्त्रो० । (१५) हास अर्थ में 'क्षिया' है स्त्री० । (१६) जागते रहने के दो नाम-जागर्या १ जागरा २ स्त्री० ! | Page #273 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयकाण्डम् २६० प्रकीर्णवर्गः १ प्रथा ख्याती प्रमा सम्यग् ज्ञाने प्रमिति रित्यपि ॥२५॥ तर्पण प्रीणनं तुल्ये कम्पनं तु विधूननम् । व्याप्तौ संमृर्छन छेदे वर्द्धन गदने गदः ॥२६॥ शुभकर्माऽवदाते स्तः कार्मणं मूलकर्मणि । शकुंल्यादि समूहे स्या देकैकं वक्ष्यमाणकम् ॥२७॥ क्रमाच्छाष्कुलिकं पृष्ठ्यं ब्राह्मण्यं शाक्तुकं तथा । आपूपिकच साहस्रं भक्ष्यं कारीष्य धैनुके ॥२८॥ काकं मानुष्यकं बाकं स्त्रैण पौंस्नं च यौवतम् । (१) ख्याति अर्थ में 'प्रथा' स्त्री० । (२) प्रमाण के दो नाम-प्रमा १ प्रमिति २ स्त्री० । (३) तृप्त होने के दो नाम-तर्पण १ प्रीणन २ नपुं० । (४) डोलना (मान्दोलित) अर्थ में दो नाम-कम्पन १ विधूनन २ नपुं० । (५) सब तरफ व्याप्त के दो नाम-व्याप्ति १ समर्छन २ (अभिव्याप्ति) स्त्री० । (६) छेद अर्थ में भी एकनाम-बर्धन १ नपुं० । (७) स्पष्ट बोलने के दो नाम-गदन १ नपुं० गद २ पु० । (८) शुभकर्म के दो नाम-शुभकर्म (शुभकर्मन्) १ अवदान २ नपुं० । (९) मुलकर्म के दो नाम-कार्मण १ मूलकर्म (न्) २ नपुं०। (१०) शष्कुली आदि. समूह का एक नाम-शष्कुली १ समूहमें शाष्कुलिकम् १, पृष्ठ समूह का-पृष्ठय, ब्राह्मण समूह का-ब्राह्मण्य, शक्तु समूहका-शाक्तुकम् , अपूप समूह का-आपूपिकम्, सहस्त्र समूह का-साहस्रम्, भिक्षा समूह का-भैशम्, करीष समूह का कारीज्य.धेनु समूह का-धेनुकम्, काक समूह का-काकम, मनुष्य समूह का-मानुष्यकम्, बकसमूह का-बाकम्. स्त्रो समूह का- स्त्रैणम्, पुंस समूह का-पैस्निम्, युवती समूह का-योवतम् ये सब नपुं०. | Page #274 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीय काण्डम् २६१ प्रकीर्णवर्गः १ पाश्या सहायता खल्या हल्यैवं जनतादिकम् ॥२९॥ एवमन्येपि संकीर्णाः शब्दा बोध्या यथामति । ॥ इति प्रकीर्णवर्गः समाप्तः ॥ पशु समूह का - पाश्य, सहाय समूह का - सहायता, स्खल समूह का - स्वल्या ( स्खलिनी) हल समूह का हल्या, जनसमूह का जनता ये सब स्त्रो० । ऐसे और २ भी संकोर्ण शब्द स्वस्व मति अनुसार जानने योग्य हैं । ॥ इति प्रकीर्णवर्ग समाप्त ॥ Page #275 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयकाण्डम् २६२ विशेषणवर्गः २ ॥ अथ विशेषणवर्गः प्रारभ्यते ॥ विशेष्ये' यादृशे यादृक् स्यालिङ्गवचनादिकम् । गुणद्रव्यक्रियारूपे तत्तादृक् तद् विशेषणे ॥ १ ॥ दानशौण्डौ वदान्यश्च दानशूरो बहुप्रदः । निपुणो विज्ञ निष्णात प्रवीणाऽभिज्ञ शिक्षिताः ||२|| वैज्ञानिकः कृती किश्च कुशलोऽथ पॅरीक्षकः । हैतुको हृदैयालुस्तु यः स्यात्सुहृदयः पुमान् ॥ ३॥ उन्मैना उत्क उत्कण्ठा वाञ्जनौऽन्तर्मनास्तु यः । दुर्मना विमना हृष्टचेता हर्षित मानसे ||४|| प्रमनाचाऽपि दुवैचि दुर्वक्ताऽपिच कद्वदः । हिन्दी - ( १ ) नोट- केवल अजहलिङ्गो को छोडकर गुण - द्रव्य क्रियावाचक विशेषणों में विशेष्य के समान लिङ्ग संख्या विभकियां होती हैं । (२) दानशूर के चार नाम - दानशौण्ड १ वदान्य २ दानशूर ३ बहुप्रद ४ त्रि० । (३) चतुर के नौ नाम - निपुण १ विज्ञ २ निष्णात ३ प्रवोण ४ अभिज्ञ ५ शिक्षित ६ वैज्ञानिक ८ कृती ८ कुशल ९ । ( ४ ) परीक्षा करने वालों के दो नामपरीक्षक १ हैंतुक २ (कारणिक) । (५) दयालु के दो नाम - हृद - यालु १ सुहृदय (सहृदय) २ । (६) उत्कण्ठित के तीन नामउन्मनाः १ उत्क२ उत्कण्ठावान् ( उत्सुक) ३ । (७) दुःखी के तीन नाम - अन्तर्मना १ दुर्मनाः २ विमना ३ । (८) हर्षयुक्त मनवाले के चार नाम - हृष्टचेताः १ हर्षित २ मानस ३ प्रमना ४ (९) दुर्वक्ता के तीन नाम - दुर्वा १ दुर्वक्ता २ (दुर्वक्तृ ) कद ३ ॥ Page #276 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयकाण्डम् २६३ विशेषणः२ पुण्यवान् सुकृती धन्योऽथ महेच्छमहाशयौ ॥५॥ महोद्योगी महोत्साहे प्रतीक्ष्याऽऽराध्य पूज्यकाः । स्याज्जैवाटके आयुष्मान् शास्त्रज्ञः शास्त्रवित्समौ ॥६॥ दक्षिण्यो दक्षिणा] स्याद्वरंदो वरदायकः । सुकलो दातृभोक्ता स्यात्सेवकोपासकौ समौ ॥७॥ सन्दिहानः सांशयिके सरैलोदारदक्षिणाः । विख्यात वित्तविज्ञात प्रतीतप्रथिताः समाः॥८॥ स्याद्गुण्यो गुणसम्पनो नियों दृढकार्यकृत् । (१) भाग्यशाली के तीन नाम-पुण्यवान् १ सुकृति (सिन्) २ धन्य ३ । (२) महापुरुष के दो नाम-महेच्छ १ महाशय २ । (३) दुःसाध्य में भी उद्योगी के दो नाम-महोयोगी १ महोत्साह २ । (४) ज्य के तीन नाम-प्रतीक्ष्य १ आराध्य २ पूज्य ३ । (५) आयुष्मान् के दो नाम-जवातृक १ आयुष्मान् २ । (६) शास्त्रवेत्ता के दो नाम-शास्त्रज्ञ १ शास्त्रवित् २ । (७) दक्षिणा देने योग्य के दो नाम-दक्षिण्य १ दक्षिणाई (दक्षिणेय) २।(८) वरदाता के दो नाम-वरद १ वरदायक (समर्थक) २ । (९) दाताभोक्ता के दो नाम-सुकल १ दातृभोक्ता २। (१०) सेवक के दो नाम-सेवक १ उपासक २ । (११) सन्देहशील के दो नाम -सन्दिह १ सांशयिक २ । (१२) उदार के तीन नाम-सरल १ उदार २ दक्षिण ३ । (१३) प्रसिद्ध के पांच नाम-विख्यात १ वित्त २ विज्ञात ३ प्रतीत ४ प्रथित ५ । (१४) गुणसम्पन्न के दो नाम-गुण्य १ गुणसम्पन्न २। (१५) दृढकार्यकर्ता के दो नाम--निर्वार्य १ दृढकर्मकृत २ Page #277 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयकाण्डम् २६४ विशेषणवर्गः २ प्रसिताऽऽसत तल्लोनोत्सुकाऽऽविष्टास्तु तत्परे ॥९॥ कुटुम्बैव्यापृतोऽभ्यागारिकोऽथ निरवग्रहः । स्वैरी स्वतन्त्रः स्वच्छन्द इभ्याऽऽन्यधनिनः समाः॥१०॥ प्रभुः परिवृढ़ो नेता नायकः पतिरीश्वरः । अधिपस्वामीनौ चाऽथ संमृद्धोऽत्यधिकद्धिकः ॥११॥ श्रीलंः श्रीमांश्च लक्ष्मीवाल्लक्ष्मणश्चाऽथ वत्सलः। स्निग्धो मूकस्त्ववाक् कार्मः कर्मशालिनिर्कमठे ॥१२॥ कर्मशुरः कृपालुस्तु दयालुः सूरतस्तथा । भवेत्कारुणिको यस्तु परतन्त्रः स नाथवान् ॥१३॥ (१) कार्य में तत्पर व्यक्ति के छह नाम-प्रसित १ आसक्तर तल्लीन ३ उत्सुक ४ आविष्ट ५ तत्पर ६ । (२) कुटम्ब में आसक्त के दो नाम-कुटम्बव्यापृत १ अभ्यागारिक २ । (१२) स्वच्छन्द के चार नाम-निरवग्रह १ स्वैरी २ स्वतन्त्र ३ (अपावृत) स्वच्छन्द ४ । (४) धनवान के तीन नाम-इभ्य १ आढय २ धनी ३ । (५) मधिपति के आठ नाम-प्रभु १ परिवृढ २ नेता ३ नायक ४ पति ५ इश्वर ६ अधिप ७ स्वामी ८ । (६) अत्यन्त धनवान के दो नाम-समृद्ध १ अत्यधिकर्द्धिक २ । (७) शोभा अथवा सम्पत्ति युक्त के चार नाम-श्रोल १ श्रीमान् २ लक्ष्मीवान् ३ लक्ष्मण ४। (१७) पुत्रादि स्नेह पात्र में अभिलाष रखने के दो नाम-वत्सल १ स्निग्ध २ । (९) मूक के दो नाम-मूक १ अवाक २ । (१०) कर्मशीलके एक नाम-कार्म १ । (११) कर्मशूर के दो नाम-कर्मठ १ कर्मशूर २ । (१२) दयालु के चार नाम-कृपालु १ दयालु २ सुरत ३ कारुणिक ४ । (१३) पराधीन के चार नाम-परतन्त्र १ नाथवान् २ पराधीन ३ परवान् ४। Page #278 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयकाण्डम् २६५ पराधीनश्च परवान् क्रियावांस्तु क्रियापरः * आयत्ताऽधीननिघ्नाः स्युरस्वच्छन्दश्च गृहचकः ॥१४॥ क्षी शौण्डोत्कटाः मत्ते "गृध्नौ लुब्धोऽभिलाषुकः । तृष्णक्य गर्धनो लिप्सु लेर्लुभो लोलुपः समौ ॥ १५ ॥ 'उन्मदिष्णू-मदौ तुल्यौ जिघत्सु रशनायितः । बुभुक्षितोऽपि क्षुधित आघूनोऽदरिकावथ || १६ | 'परान्नः परपिण्डाद भक्षेकेऽमर घस्मरौ । परलोकोऽस्ति नाऽस्तीति मतिमन्तौ क्रमादमू ||१७|| आस्तिको नास्तिको दिष्टं मन्वानो दैष्टिको मतः । दुर्विनीतोऽविनीतौ द्वौ सर्वान्नीनोऽखिलानभुक् ॥ १८॥ - (१) किया करने वाले के दो नाम - क्रियावान् १ क्रियापर २ । (२) अधान सामान्य के पांच नाम- आयत्त विशेषणवर्गः २ १ अघोन २ निघ्न ३ अस्वच्छन्द ४ गृह्यक ५ । (३) उन्मत्त के चार नाम - क्षीब १ शौण्ड २ उत्कट ३ मत्त ४ । (४) लोभी के छ नाम- गृध्नु १ लुब्ध २ अभिलाषुक ३ तृष्णकू ४ गर्धन ५ लिप्सु ६ । (५) अत्यन्त लोभा के दो नाम - लोल्लुभ १ लोलुप २ । (६) उन्मादशील के दो नाम - उन्मदिष्णु १ उन्मद २ । ( ७ ) भुखे के छ नाम-जिघत्सु १ अशनायित २ बुभुक्षित ३ क्षुधित ४ आंधून ५ औदारिक ६ । (८) परान्नजीवी के दो नाम - परान्न १ परपिण्डाद २ । ( ९ ) भक्षण करने वाले के तीन नाम- भक्षक १ अमर २ घस्मर ३ । (१०) परलोक मानने वालों को 'आस्तिक' नहीं मानने वालों को 'नास्तिक' भाग्य मानने वालों को 'दैष्टिक' कहते हैं । (११) दुर्विनीत के दो नाम - दुर्विनीत १ अविनीत ३ । (१२) जिस किसी के अन्न स्वाने वाले के दो नाम सर्वान्नीन १ अखिलान्नभुक् २ | - Page #279 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयकाण्डम् २६६ विशेषणवर्गः २ कर्मण्यं च भरण्यं च वेतनं कर्मकुन्नरः । भुङ्क्ते कर्मकरोऽतः स्यात् कर्मकारस्तु तत्क्रियः ॥ १९ ॥ पिपत्यत्मम्भरिः कुक्षि-म्भरिः स्वमुदरम्भरिः । मृतस्नातस्त्वपस्नात आमिषाशिनि शौष्कैलः ॥२०॥ "कामुकः कमनः कम्रः कामनः कमिताऽभिकः । कामयित्र्यनुकाऽभीका गोष्टश्वो गृहनिन्दकः ॥२१॥ 'बाधाशुन्यो निराबाधो निष्कामस्तु निरामिषः । " निरीहो निरपेक्षः स्यान्निर्विकारे निरञ्जनः ||२२|| कर्मinisङ्कर्मीणो "जाल्मो यस्त्वसमीक्ष्यकृत् । वाले के एक (१) जो काम करके वेतन लेते हैं उनके चार नामकर्मण्यभुक् १ भरण्यभुक् २ वेतनभुक् ३ ये तीनों का नामकर्मकर ४ । ( ४ ) विना वेतन से काम करने नाम - कर्मकार १ । (५) अपने ही पेट को भरने वाले के तीन नाम - आत्मभरि ९ कुक्षिम्भारे २ उदरम्भरि ३ । (६) मृतक के उदेश्य से स्नान के दो नाम - मृतस्नात १ अपस्नात २ । (७) आमिष (मांस) भोक्ता के एक नांम शौष्कल १ । (८) कामुक ( अभिलाषा वाले) के नौ नाम- कामुक १ कमन २ कम्र ३ कामन ४ कमिता ५ अभिक ६ कामयिता ७ अनुक ८ अभीक ९ । (९) मिन्दक के दो नाम -गोष्ठवा १ गृहनिन्दक २ । (१०) निरोगी के दो नाम - बाधाशून्य १ निराबाध २ । (११) शाकाहारी के दो नाम - निष्काम १ निरामिष २ । ( १२ ) इच्छा रहित के दो नाम - निरह १ निरपेक्ष २ । (१३) विकार होन के दो नाम - निर्विकार १ निरञ्जन २ । (१४) कार्य करने में समर्थ के दो नामकर्मक्षम १ अलङ्कमण २ । (१३) विना विचार से काम करने वाले के दो न म- जाल्म १ असमीक्ष्यकृत् २ | Page #280 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयकाण्डम् २६७ विशेषणवर्गः २ 'द्वयो बहुकरा किञ्च खलपूः खलशोधकः ॥२३॥ चिरैक्रियो दीर्घसूत्रो मन्दः कुण्ठः क्रियालसः । अत्यन्त कोपनश्चण्डः क्रोधनः कोप्य मर्षणः ॥२४॥ स्त्री दोहदिन्यां श्रद्धालुः श्रद्धायुक्तस्तु वाच्यवत् । ईष्यालु रीयक स्तन्द्रा युक्त स्तन्द्रालघूणितौ ॥२५॥ समौ शयोल निद्रालू जागरूँकस्तु जागरी । यदुन्नताऽऽनतं तत्तु बन्धुरं "दीर्घमायते ॥२६॥ (१) स्खलिहान नीपने पोतने के तीन नाम-स्खलप १ खलशोधक २ बहुकर ३ (स्त्रीलिङ्ग में बहुकरा बहुकरी तो बहुकर की स्त्री मर्थ में होगा)।(२) अति विलम्ब से काम करने वाले के दो नाम: चिरक्रिय १ दीर्घसूत्र २ । (३) काम में अलसाने वाले के तीन नाममन्द १ कुण्ठ २ क्रियालस३ । (४) अत्यन्त क्रोधी के दो नामअत्यन्तकोपन १ चण्ड २ । (५) क्रोधो के तीन नाम-क्रोधन १ कोपी २ अमर्षण ३ । (६) श्रद्धायुक्त के एक नाम- श्रद्धालु (दोहदिनी अर्थ में केवल स्त्री०) (७) ईर्ष्या करने वाले के दो नामईर्ष्यालु १ इय॑क २1 (८) निद्रा आने से पहले जो सुस्ती आती है उसके तीन नाम- तन्द्रायुक्त १ तन्द्रालु २ घूर्णित ३ । (९) निद्रा आरही हो उसके दो नाम- शयालु १ निद्रालु २ । (१०) जागते हुए के दो नाम- जागरुक १ जागरी २। (११) कुछ एक भाग ऊँचा और नीचे का एक नाम- बन्धुर १ (नानार्थ) । (१२) लम्बाई के दो नाम- दोर्घ १ आयत २ । Page #281 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - तृतीयकाण्डम् २६८ विशेषणवर्गः २ 'प्रोच्छ्रितो-दग्र प्रांशूच्च तुङ्गा, निस्तैलवर्तुले । वृत्ते वामन नीच न्यक् खर्व हस्वा अधोमुखे ॥२७॥ आनताऽवनताऽवग्रा 'नेदोयोऽत्यन्तमन्ति के । सवेश निकटाऽभ्याश समोपाऽऽसन्न पाचकाः ॥२८॥ सनिकृष्ट समर्याद- सदेश सविधानि च । संनिधानो- पकण्ठे चाऽभ्यग्रो-पान्त सनीडवत् ॥२९॥ संनिकर्षाऽन्तिकाऽभ्यः संनिधिः सविधेऽभितः। पुङ्गव-र्षभ शार्दूल-सिंह व्याघ्रादि कुजराः ॥३०॥ नृपुङ्गवादयः शब्दाः पुंसि प्राशस्त्यवाचकाः । पाः शतादयो ये स्यु स्ते संख्येयाः शतात्परे ॥३१॥ (१) ऊँचे के पांच नाम-प्रोच्छित १ उदग्र २ पांशु ३ उच्च ४ तुङ्ग ५ (मोत्तुङ्ग, उत्तुङ्ग)। (२) गोलाकार के तीन नाम- निस्तल १ वर्तुल २ वृत्त ३ । (३) छोटे (कद) के पांच नाम- वामन १ नीच २ न्यक् ३ खर्व ४ इस्व ५। (४) अधोमुख वाले के तीन नाम- आनत १ अवनत २ अवन ३ । (५) अतिसमोप का एक नाम-नेदीयम् (नेदिष्ठ) १ । (६) समीप के इकोस नाम- सवेश १ निकट २ अभ्यास ३ समोप १ आसन्न ५ पार्श्व ६ संनिकृष्ट ७ समर्याद ८ सदेश ९ सविध १. संनिशान ११ उपकण्ठ १२ अभ्यग्र १३ उपान्त १४ सनीड १५ संनिकर्ष १६ अंतिक १७ अभ्यर्ण १८ संनिधि १९ सविध २० अभितः २१ (२१ वां अव्यय हैं) । (७) पुंगव १ ऋषभ २ शार्दूल ३ सिंह ४ व्याघ्र ५ कुञ्जर ६ आदि उत्तरपद में रह कर प्रशस्त अर्थ के बोधक है जैसेनृपुंगव आदि । (८) सो से आगे के संख्येय परः शत आदि हैं। Page #282 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६९ तृतीयकाण्डम् विशेषणवर्गः २. निविडं'तु घनं सान्द्रं विरले पेलवं तनु । समौ विरक्त निविण्णौ स्याद्विकासी विकस्वरः ॥३२॥ क्षमाशीलः क्षमिक्षान्त सहिष्णु सहनाः समाः। निद्राणः शयितः सुप्तः स्निग्धसान्द्रे तु मेंढुरः ॥३३॥ ‘क्षिप्नु निराकरिष्णुः स्या त्प्रसारी तु विसृत्वरः । भैविष्णु भविता भूष्णु विदुर ज्ञात बिन्दवः ॥३४॥ लज्जाशिलेऽपत्रपिष्णु वन्दारु वन्दकः समौ । "मण्डनोऽलङ्करिष्णुः स्याद् हिंसके हिंस्रघातुको ॥३५॥ (१) अधिक मात्रा में एकत्रित के तीन नाम-निबिड १ घन २ सान्द्र ३ । (२) दूर दूर पर ओछी संख्या वाले के तीन नामविरल १ पेलव २ तनु ३। (३) पुरुषार्थ नष्ट होने पर अपमानीत के दो नाम- निर्विष्ण १ विरक्त २ (नानार्थ)। (४) विकासोन्मुख के दो नाम- विकासी १ विकस्वर २ । (५) क्षमाशील के पांच नाम- क्षमाशील १ क्षमी २ क्षान्ता ३ सहिष्णु ४ सहन ५ । (६) सोए हुए के तीन नाम- निद्राण १ शयित २ सुप्त ३। (७) चिकने धन का एक नाम- मेदुर १ । (८) निकालने वाले के दो नाम-क्षिप्नु १ निराकरिष्णु २। (९) फैलाने फैलनेवाले के दो नाम- प्रसारी १ विसृत्वर २ । (१०) होनहार के तीन नाम- भविष्णु १ भविता २ (भवित) मूष्णु ३ । (११) जानकार के तीन नाम-विदूर १ ज्ञाता (ज्ञात)२ बिन्दु ३ ।(१२) लज्जाशील के एक नाम- अपत्रपिष्णु १। (१३) वन्दना करने वाले के दो नाम- वन्दारु १ वन्दक २ । (१४) अलङ्कारप्रिय के दो नाम- मण्डन २ अलङ्क रेष्णु १। (१५) हिंसक के तीन हिसक १ हिंस्र २ घातुक ३ । Page #283 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७० तृतीयकाण्डम् विशेषणवर्गः १ 'उत्पति त्रुत्पतिष्णू द्वौ भ्राजिष्णुः सुषमाऽन्वितः। रोचिष्णू रोचको विभ्राडू अविनोते समुद्धतः ॥३६॥ घृष्ट घृष्णग वियाताः स्यु रधीरे त्रस्तकातरौ । वश्यः प्रणेये प्रश्रित विनीत निभृताः समाः॥३७॥ 'प्रगल्भः प्रतिभायुक्तो भीरुके भीरुभीलुकौ । त्रस्नु विस्मय मापन्ने विलक्षो विस्मितो मतः ॥३८॥ लजिताऽधृष्ट शालीना आशंसाऽऽशंसिनौ समौ । तुल्यौ वाक्पति वागीशौ वदवक्त"वदावदाः ॥३९॥ (१) ऊपर उछलने के दो नाम-उत्पतिता (उत्पतित् १) उत्पतिष्णु २ । (२) चमकने वाले के पांच नाम-भ्राजिष्णु १ सुषमान्वितर रोचिष्णु ३ रोचक ४ विभ्राट ५ । (३) अविनीत के दो नामअविनीत १ समुद्धत २। (४) धोठ निर्लज्ज अविनीत के तीन नामधृष्ट(धृष्णु) १ धृष्णक २ वियात्त ३ । (५) अधीर (घबराये हुए) के तीन नाम-अधीर १ त्रस्त २ कातर ३ । (६) अधीनस्थ के दो नाम-वश्य १ प्रणेय २। (७) विनय युक्त के तीन नाम-प्रश्रित १ विनीत २ निभृत ३ । (८) प्रत्युत्पन्नमति के दो नाम-प्रगल्भ १ प्रतिभायुक्त २ । (९) कायर के चार नाम-भीरुक १ भीरु २ भीलुक ३ त्रस्नु ४ । (१०) आश्चर्य चकित के दो नाम-विलक्ष १ विस्मित २ । (११) लज्जाशील के तीन नाम-लज्जित १ अधृष्ट २ २ शालीन ३ (सलज्ज)। (१२) मन वाञ्छित की इच्छा-इच्छावान् के दो नाम-आशंसा १ आशंसी २ । (१३) वागाचार्य के दो नाम-वाक्पति १ वागीश २ । (१४) वक्ता के तीन नामवद १ वका (वक्त) २ वदावद ३ । Page #284 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - तृतीयकाण्डम् २७१ विशेषणवर्गः २ 'वावदूकोऽतिवक्ता स्याद् वाग्मी तूचित वाक्पटुः । चाचाटः स्यात्त जल्पाको वाचालो बहु गवाक् ॥४०॥ यस्तु प्रियवंदैः शक्ल प्रियवादी स एव हि । मुखरो दुर्मुखो गहर्य-वादी दुर्वाक्यकद्वदः ॥४१॥ 'लोहलोऽस्फुटवाक् काकस्वरोऽसौम्यस्वरोऽस्वरः। 'कुवादः कुचरस्तुल्यौ 'शब्दनो रवणः समौ ॥४२॥ आश्रवो विनयग्राही विधेयवचने स्थितौ । "अतिमूढो जडश्वाऽज्ञः पराचीने पराङ्मुखः ॥४३॥. (१) प्रौढ वक्ता के दो नाम-वावदूक १ अतिवक्ता २ । (२) न्याय बोलने वाले के दो नाम-वाग्मी १ उचितवाक्पटु २ । (३) बहुनिन्ध भाषण करने वाले के चार नाम-वाचाट १ जल्पाक २ वाचाल ३ वहुगवाक् ४ । (४) प्रियवक्ता के तीन नामप्रियंवद १ शक्ल २ प्रियवादी ३ । (५) निन्ध कटुवचन बोलने वाले के पांच नाम-मुखर १ दुर्मुख २ गर्यवादी ३ दुर्वाक १ कद्वद ५ । (६) तुतली बोली वाले के दो नाम-लोहल १ अस्फुटवाक् २। (७) रूखा बोलने वाले के तीन नाम-काकस्वर १ असौम्यस्वर २ अस्वर ३ । (८) कुवचन शील के दो नाम-कुवाद १ कुचर २। (९) शब्द करने वाले के दो नामशब्दन १ रवण २ । (१०) जिसकी प्रवृत्ति निवृत्ति का विधान किया जा सके उसके चार नाम-आश्रव १ विनयग्राही २ विधेय ३ वचनेस्थित ४ (शिष्य आदि)। (११) अनपढ़ के तीन नाम -मतिमूढ १ जड २ अज्ञ ३। (१२) विमुख हुए के दो नाम-पराचोन १ पराङ्मुख । Page #285 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - तृतीयकाण्डम् २७२ विशेषणवर्गः १ 'एडमूकस्ववाकर्ण स्तूष्णीको मौनमास्थितः । प्रत्याख्यातो निरस्तोऽपि प्रत्यादिष्टो निराकृतः ॥४४॥ शठेऽनृजु विप्रलब्धे वश्चितो नाटकादिषु । भेर्यादि वादके नान्दीवादी नान्दीकरो मतः ॥४५॥ नग्नो दिगम्बरोऽवासा अपध्वस्ते तु धिकृतः। व्यसनि न्युपरक्तः स्यात्समौ संकसुकाऽस्थिरौ ॥४६॥ निष्कासितेऽवकृष्टः स्याद् विवे शारिष्टदुर्मतिः। व्यासक्तो व्याकुलो व्यग्रस्तुल्यो विलविक्लवौ ॥४७॥ (१) जो न बोले न सुने का एक नाम-एडमूक १ । (२) मौन हो जाने का एक नाम-तुष्णीक १। (३) जिसका प्रस्ताव लौटा दिया हो उसके चार नाम-प्रत्याख्यात १ निरस्त २ प्रत्यादिष्ठ ३ निराकृत ४ । (४) शठ अर्थ में एक नाम-अनृजु १ । (५) ठगे गये के दो नाम-विप्रलब्ध १ वञ्चित २ (६) नाटकादि मङ्गल वादक पाठक के दो नाम-नान्दीवादो १ नान्दीकर २। (७) जिसने वस्त्रधारण छोड़ दिया है उसके तीन नाम - नग्न, १ दिगम्बर २ अवासाः३ । (८) धिक्कारे गए के दो नाम-अपध्वस्त १ धिक्कृत २ (न्यक्कृत) । (९) व्यसनी के दो नामव्यसनी १ उपरक्त २ । (१०) अस्थिर के दो नाम-संकसुक १ मस्थिर २ । (११) बाहर निकाले गये के दो नाम-निष्कासित १ अवकृष्ट २ । (१२) विगड़ी बुद्धि वाले के दो नाम-विवश १ मरिष्टदुर्मति २ । (१३) व्याकुल के तीन नाम-व्यासक्त १ व्याकुल २ व्यग्र ३ । (१४) उमंग छोडे हुए के दो नाम-विह्वल: १ विक्लव २। Page #286 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयकाण्डम् २७३ विशेषणवर्गः २ क्षारिताऽऽक्षारितौ वाच्योऽभिशस्तोऽथ मनोहतः । हतः प्रतिहतश्चैव प्रतिबद्धोऽमनोरथे ॥४८॥ देष्यस्तिरस्करिण्यादिः कशा कश्यं इष्यते । पिशुनो दुर्जनो वाऽपि खलो भेदक्रियापटुः ॥४९॥ गुप्तसंबचनात्कणे जपः सूचक इत्युभौ । हननीयः स्मृतो बध्ये धुत व्यंसकवञ्चकौ ॥५०॥ 'क्रूरे पापे नृशंसश्च चिकुरश्चञ्चलेऽपि च । "दरिद्रे दुर्गतो दीनो रङ्को नि:स्वश्च दुर्विधः ॥५१॥ प्रोच्यते कृपणे क्षुद्रः कदर्यस्तु मितंपच । (१) पुरुष दोष से मिथ्याकलंकित किये गये के चार नामक्षारित १ आक्षारित २ वाच्य ३ अभिशस्त ४ । (२) भङ्ग मनोरथ के चार नाम-मनोहत १ हत २ प्रतिहत ३ प्रतिवद्ध ४ । (३) तिरस्करिणी (पड़दा) आदि को 'दूष्य' कहते हैं (नानार्थ) (४) चाबूक (कोडा) मारने योग्य के दो नाम-कशाह १ कश्य २ । (५) एक दूसरे में भेद (फूट) करवाने वाले के तीन नाम-पिशुन १ दुर्जन २ खल ३ । (६) विपक्षी को गुप्त सूचना देनेवाले (चुगलखोर) के दो नाम-कर्णेजप १सूचक २। (७), फांसी देने योग्य के दो नाम-हननीय १ वध्य २। (८) धूर्त के तीन नाम-धूर्त १ व्यंसक २ वञ्चकः ३ । (९) कर के तीन नाम-कूट १ पाप२ नृशंस ३ । (१०) चञ्चल अर्थ में भी एक नाम-चिकुर १ (११) दारिद्र के छ नाम-दरिद्र १ दुर्गत २. दीन ३ रङ्क ४ निःस्व ५ दुर्विध (१२) । कृपण अर्थ में एक नाम-क्षुद्र १ । (१३) कदर्य के दो नाम-कदर्य १ मितंपचर। Page #287 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयकाण्डम् २७४ विशेषणवर्ग:२ मूर्खे मूढाज्ञः वैधेय यथा जाताथ बालिशः ॥ ५२॥ अर्युः स्यादहंकारी शुभंयुर्यः शुभाऽन्वितः । स्वेदजा मत्कुणाद्याः स्यु र्गों नराधा जरायुजाः ॥५३॥ अण्डजाः पक्षि सर्पाद्या उद्भिजा वृक्षगुल्मकाः । प्रतिश्रुतं परिज्ञात मूरीकृत मुरीकृतम् ||५४ || संगीर्णो-पश्रुते चैव विदितं चोररीकृतम् । संश्रुतो - पगते अंगीकृतं चाऽपि समाहितम् ॥ ५५॥ आश्रुते रक्षिते त्राण त्रात गोपायिताऽविताः । शोभनं मब्जुल मन्जु मनोज्ञं चारु सुन्दरम् ||५६ || कान्तं मनोहरं साधु रुचिरं चाऽथ वल्लेभम् । । (१) मूर्ख के छ नाम - मूर्ख ९ मूढ २ अज्ञ ३ वैधेय ४ यथाजात ५ वालिश ६ । ( २ ) अहंकारी के दो नाम - अहंयु १ अहङ्कारी २ । (३) शुभयुक्त के दो नाम - शुभंयु १ शुभान्वित २ । ( ४ ) खटमल आदि 'स्वेदज' कहे जाते हैं । (५) गो तथा मनुष्य आदि ' जरायुज' कहलाते हैं । (६) वृक्ष लता गुल्म आदि उद्भिज (उद्भिज्ज, उद्भिद, उदभिद) । (७) पक्षी सर्प आदि 'अण्डज' कहलाते हैं । (८) प्रतिज्ञा सुकृत के तेरह नाम - प्रतिश्रुत १ प्रतिज्ञात २ ऊरीकृत ३ उरीकृत ४ संगोर्ण ५ उपश्रुत ६ विदित ७ उररीकृत ८ संश्रुत ९ उपगत १० अङ्गीकृत ११ समाहित १२ ओश्रुत १३ । ( ९ ) रक्षित के पाँच नाम-रक्षित १ त्राण २ त्रात ३ गोपायित ४ अवित ५ । (१०) सुन्दर के दश नाम - शोभन १ मञ्जुल २ मञ्जु ३ मनोज्ञ ४ चारु ५ सुन्दर ६ कान्त ७ मनोहर ८ साधु ९ रुचिर १० । (११) प्रिय व्यक्ति वा वस्तु के पांच नाम - वल्लभ १ अभीप्सित Page #288 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - - तृतीयकाण्डम् २७५ विशेषणवर्गः २ अभीप्सितं प्रियं हृद्यअभीष्ट मथ 'शोधितम् ॥५७॥ निःशोध्यं मृष्ट निर्णिक्ते अनवस्करमित्यपि । मलीमसे स्यान्मलिनं मलदूषितकच्चरे ॥५॥ पवित्र मेध्य-पूतानि पावनं पुण्यमुज्ज्वले । विमलाऽनाविले वीध्राऽवदात विशदानि च ॥५९।। विशुद्रं शुचि, शून्यन्तु रिक्तं तुच्छ मथाऽधर्मः । अवमश्च निकृष्टोऽपि गहथै निन्धश्च कुत्सितः ॥६॥ प्रमुख च प्रधानं तु सर्दकत्वे नपुंसकम् । प्रवेक उत्तमो वयों वरेण्योऽनुत्तमोऽग्रियः ॥६१॥ परार्ध्याऽनवरााग्राऽग्रीय प्राय्यऽग्रयमुख्यवत् । वरः प्राग्रहरश्वाऽपि प्रवहोऽथाऽतिशोभनः ॥६॥ २ प्रिय ३ हृद्य ४ अभीष्ट ५ । (१) शोधित के पाँच नामशोधित १ निः शोध्य २ मृष्ट ३ निर्णिक्त ४ अनवस्कार ५ । (२) मलिन के चार नाम-मलीमस १ मलिन २ मलदूषित ३ कच्चर ४ । (३) पवित्र के पांच नाम-पवित्र १ मेध्य २ प्त३ पावन ४ पुण्य ५ । (४) उज्ज्वल के आठ नाम-उज्ज्वल १ विमल २ अनाविल ३ वीध्र ४ अवदात ५ विशद ६ विशुद्ध ७ शुचि ८ । (५) शून्य के तीन नाम-शून्य १ रिक्त २ तुच्छ ३ । (६) अधम के तीन नाम-अधम १ अवम २ निकृष्ट ३ । (७) निन्द्य के तीन नाम-गर्दा १ निन्द्य २ कुत्सित ३ । (८) श्रेष्ठ के अठारह नाम-प्रमुख १ नपुं०, प्रधान २ (एकवचन में ही सदा रहे नपुंसक मेदिनो) प्रवेक ३ उत्तम ४ वर्य ५ वरेण्य ६ अनुत्तम ७ मग्रिय८ पराय॑९ अनवराये १० अग्र ११ अग्रीय १२ प्राग्रय १३ अय्य १४ मुख्य १५ बर १६ प्राग्रहर १७ प्रबह १८ Page #289 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयकाण्डम् २७६ विशेषणवर्गः सत्तमः पुष्कलः श्रेयान् श्रेष्ठोऽसारं तु फल्गुनि । विशङ्कटं विशालो-रु विपुलानि बृहन्महत् ॥ ६३॥ पृथुलं पृथु वज्रं च पीनैस्तु स्थुलपीवरौ । केल्प क्षुल्ल सूक्ष्माणि दत्रं श्लक्ष्णं कृशं तनु ॥ ६४ ॥ त्रुटिर्मात्रा स्त्रियां पुंसि कणलेश लवाऽणत्रः । अल्पीयोऽत्यल्पमल्पिष्ठं भूरितु प्रचुरं बहु ॥६५॥ अदभ्रं बहुलं प्राज्यं भूरिष्ठं स्फार भूयसी । स्फिरं पुरु प्रभूतं च पुरुहं 'चाऽखिले समम् ॥६६॥ समग्राऽखण्ड कृत्स्नानि सकलाऽशेष विश्ववत् । सर्व पूर्ण समस्ताडनून निःशेषाण्यथो नम् ॥६७॥ (१) अतिशोभन के पांच नाम - अतिशोभन १ सत्तम पुश्कल ३ श्रेयान् ४ श्रेष्ठ ५। ( २ ) असार के दो नाम - असार १ फल्गु २ । ( ३ ) विशाल के नौ नाम - विशंकट १ विशाल २ उरु ३ विपुल ४ बृहत् ५ महत् ६ पृथुल ७ पृथु ८ वडू ९ । (४) स्थूल के तीन नाम-पीन १ स्थूल २ पीवर ३ । ( ५ ) सूक्ष्म के चौदह नाम - स्तोक अल्प २ क्षुल्ल ३ सूक्ष्म ४ द ५ श्लक्ष्ण ६ कृश ७ तनु ८ ' त्रुटि ९ मात्रा १०' ये दो स्त्री०, कूण ११ लेश १२ लव १३ अणु १४ ये चार पुं० । (६) अल्फ के तीन नाम - अल्प यस १ अत्यल्प २ अल्पिष्ट ३ (७) बहुत (अधिक ) के तेरह नाम-भूरि १ प्रचुर २ बहु बहुल ५ प्राज्य ६ भूरिष्ठ ७ स्फार ८ भूयस् ९ ११ प्रभूत १२ प्ररुह १३ । (८) संपूर्ण के तेरह १ सम २ समग्र ३ अखण्ड ४ कृत्स्न ५ सकल ६ ८ सर्व ९ पूर्ण १० समस्त ३ अदभ्र ४ स्फिर १० पुरु नाम - अखिल अशेष ७ विश्व ११ अनून १२ निःशेष १३ । Page #290 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७७ जमिमप शाश्वतचा स्त्यन्तो यः। तृतीयकाण्डम् विशेषणवर्गः२ वेल्लितं वक्रमाविद्ध माभुग्नं जिह्म कुञ्चिते । ऊर्मिमत्कुटिलं भुग्न मशलेऽनश्वरे ध्रुवः ॥६८॥ नित्योऽपि शाश्वतश्चाऽपि सनातनसदातनौ । किमसेचनकं तृप्तेनाऽस्त्यन्तो यस्य दर्शनात् ॥६९॥ चरस्त्रसश्चरिष्णुश्च जंगमे-ङ्ग चराचरः। कालव्यापी तु कूटस्थ एकरूपतया स्थितः ॥७॥ स्थेयान् स्थिरतरः स्थाष्णु देवीर्यस्त्वतिदरके । चलनं चञ्चलं लोलं चलं क्रम चलाचलम् ॥७१॥ तरलं चटुलं पारिप्लवं चाऽपि परिप्लवम् । न द्वयोः कम्पनं क्रमु-कम्पयोर्मेदिनी त्रिषु ॥७२॥ (१) वक्र के ग्यारह नाम-नत१ वेल्लित २ वक्र ३ आविद्ध ४ माभुग्न ५ जिह्म ६ कुञ्चित ७ ऊर्मिमत् ८ कुटिल ९ भुग्न १० भराल ११ । (२) ध्रुब के छ नाम-अनश्वर १ ध्रुव २ नित्य ३ शाश्वत ४ सनातन ५ सदातन ६ । (३) जिसको देखने से तृप्ति नहीं हो उसका एक नाम-असेचनक (आसेचनक) । (४) त्रस के छ नाम-चर १ त्रस २ चरिष्णु ३ जंगम ४ इङ्ग ५ चराचर ६ । (५) त्रिकाल में एक समान रहनेवाले के दो नाम-कालव्यापी १ कूटस्थ २। (६) स्थिरे के तीन नामः- स्थेयान् १ स्थिरतर २ स्थाष्णु ३ । (७) अतिदर सुदूर के दो नामदवीयस् १ दविष्ठ २ । (८) चश्चल के ग्यारह नाम-चलन १ चश्चल २ लोल ३ चल ४ कम्र ५ चलाचल ६ तरल ७ चटुल ८ पारिप्लव ९ परिप्लव १० कम्पन ११ । (कम्पन को नपुं. ही माना है, अगर कम्र वा कम्प अर्थ में हो तो मेदिनीकार ने त्रिलिङ्ग कहा है) Page #291 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयकाण्डम् २७८ विशेषणवर्गः २ संहते दृढसन्धिः स्याद् अवाग्रेऽवनताऽऽनतौ । अतिरिक्तोऽधिकेतु स्यात्तथा समधिकोऽपि च ॥७३॥ प्रौढेधित प्रवृद्धानि प्रतनैस्तु पुरातनः । चिरन्तनः पुराणश्च प्रत्न ऐन्द्रियकं तु यत् ॥७४॥ प्रत्यक्षमिन्द्रियैर्ज्ञात मप्रत्यक्षमतीन्द्रियम् । मोघें निरथर्क व्यथं स्पष्टे प्रव्यक्त मुल्बणम् ॥७५ स्फुटं साधारणं तु स्यात्सामान्यं च निरर्गलम् निर्वाधमसहायेऽर्थे एकीकी चैक एककः ॥७६॥ ग्रन्थिले ग्रन्थि तं दृब्धं गुम्फितं संदितं तथा । (१) दृढ सन्धिवाले के दो नाम - संहत १ दृढसंधि २ । ( २ ) अधोमुख के तीन नाम - अवाग्र १ अवनत २ आनत ३ । (३) अधिक के दो नाम-अतिरिक्त १ समधिक २ | (४) वढे हुए के तीन नाम - प्रौढ १ एधित २ प्रवृद्ध ३ । (५) पुराने के पांच नाम - प्रतन १ पुरातन २ चिरंतन ३ ( चिरत्न) पुराण ४ प्रत्न ५ । (६) प्रत्यक्ष के दो नाम - ऐन्द्रियक १ प्रत्यक्ष २ । (७) अज्ञात के दो नाम - अप्रत्यक्ष १ अतीन्द्रिय २ । (८) निष्पन्न के तीन नाम-मोघ १ निरर्थक २ व्यर्थ ३ । ( ९ ) स्पष्ट के चार नाम - स्पष्ट ९ प्रव्यक्त २ उल्वण ३ स्फुट ४ (१०) साधारण के चार सामान्य २ निरर्गल ३ निर्बाध ४ । (११) असहाय के तीन नाम - एकाकी १ एक २ एकक ३ । (१२) गुथे गए के पांच नाम - ग्रन्थिल १ ग्रन्थित २ ( प्रथित) दृब्ध ३ गुम्फित ४संदित ५ नाम - साधारण १ Page #292 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयकाण्डम् २७९ विशेषणवर्ग:२ 'जघन्याऽन्ताऽन्त्य पाश्चात्याश्चरमः पश्चिमोऽस्त्रियाम्७७ संकटं पुंसि संबाधो वपुः सैव्यं तु वामकम् । दक्षिणं त्वपसैव्यं स्याद् विस्मृतान्तर्गते समे ॥ ७८ ॥ अन्योऽन्यतर एकस्त्व इतरस्त्वोsन्य वाचिनि । स्युर्वलयित संवीत रुद्धान्यावृत वेष्टिते ॥ ७९ ॥ मुर्ति चोरिते विश्व- कोष आहत्यमूषितम् । निर्वृतं तु परिक्षिप्तं प्रवर्द्धप्रसृते समे ॥ ८०॥ "अरुन्तुदं यन्मर्मस्पृग् विस्तृते विततं ततम् | 99 (१) अन्तके छ नाम - जघन्य १ अन्त (अन्तिम) २ अन्त्य ३ पाश्चात्य ४ चरम ५ पश्चिम ६ पुं० नपुं० । (२) संकुल के दो नाम - संकट १ त्रि०, संबाध २ पु० । (३) शरीर के वाम अङ्ग का एक नाम - सव्य १ । (४) दक्षिण भाग का एक नाम - अपसव्य १ । (५) भूल जाने के दो नाम - विस्मृत १ अन्तर्गत २ । (६) भिन्न के छ नाम - अन्य १ अन्यतर २ एक ३ व ४ इतर ५ स्व ( त्वत्) ६ ए सर्वनाम हैं इनके नपुंसक में अन्यत् १ अन्यतरत् २ एकम् ३ त्वम् ४ इतरत् ५ त्वम् होंगे । (७) नदी आदि से घिरे हुए के पांच नाम - वलयित १ संवीत २ रुद्ध ३ आवृत्त ४ वेष्टित ५ । (ढ) चौराये गये के तीन नाम - मुषित १ चोरित २ मूषित ३ [विश्वकोष में सीना जोड़ी से चोराये गये को 'भूषित' कहा है ] । (९) परिस्वा से वेष्टित के दो नाम - निवृत १ परिक्षिप्त २ । (१०) फैले हुए के दो नाम - प्रवृद्ध १ प्रसृत २ । (११) मर्मवेधी के दो नाम - अरुन्तुद १ मर्मस्पृक् २ । ( १२ ) विस्तृत के तीन नाम - विस्तृत १ वितत २ तत ३ । Page #293 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयकाण्डम् २८० विशेषणवर्गः २ चलिते कम्पिताऽऽधृत धुतप्रेखितवेल्लिताः ॥८॥ द्वताऽवदीर्णे न्यस्तं तु निसृष्टे गुणिताऽऽहते । निदिग्धोपचिते घाते घ्राण मुद्र्ण उद्यतम् ॥८२॥ "गुण्डितो रूषितो लिप्तो दिग्धे" मीड़े तु मूत्रितम् । नुन्ननिष्ठयूत-नुताऽस्त क्षिप्ताऽऽविद्ध-रिता अथ ॥८३। "शिक्यितं काचितं शिक्ये हीत होणौ तु लज्जिते । "निशितं तेजितं शातं क्ष्णुतेऽथ "पूजितेऽश्चितम् ।८४। (१) कम्पित के छ नाम-चलित १ कम्पित २ आधूत ३ धुत ४ प्रेलित ५ वेल्लित ६ । (२) गरमो से पिघले हुए के दो नाम-द्रुत १ अवदीर्ण.२ । (३) त्यक्त के दो नाम-न्यस्त १ निसृष्ट २ (प्रत्याख्याता)। (४) गुणित के दो नाम-गुणित १ आहत २.। (५) पुष्ट के दो नाम-निदिग्ध १ उपचित २ । (६) सुंघे गए के दो नाम-घ्रात २ घ्राण २। (७) उद्यत के दो नाम-उदगर्म १ उद्यत २ । (८) धूली आदि से भरे हुए के दो नाम-गुण्डित १ (गुण्ठित) रूषित २ । (९) गीले चन्दन मादि से लिप्त के दो नाम-लिप्त १ दिग्ध २ । (१०) मूत्रित के दो नाम-मीढ १ मूत्रित २। (११) प्रेरित के सात नामनुन्न १ निष्ठयुत २ नुत ३ अस्त ४ क्षिप्त ५ माविद्ध ६ ईरित । (१२) छोक्के पर रखे गए के दो नाम-शिक्कित १ काचित २ । (१३) लज्जित के तीन नाम-हीत १ ह्रीण २ लज्जित३ । (१४) साण पर घिस कर तेज किये गये के चार नाम-निशित १ तेजित २ शात ३ क्ष्णुत ४ । (१५) संमानित के दो नाम-पूजित १ अश्चित २ । Page #294 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८१ तृतीयकाण्डम् विशेषणवर्ग २ भवेद् याचितकं याचा प्राप्ते प्रार्थित याचिते । प्राप्तेऽप्राप्तेऽदिते भिन्ने दीर्ण दारित भेदिताः ८५ दैग्वे प्लुष्टो-षित-अष्टः समाप्तेऽवसितः सितम् । हप्तं तु ज्ञपिते रुग्णं भुग्ने विद्धेतु वेधितम् ।८६। छिद्रं निर्वाण मग्नौ च मुन्यादौ च तनू कृते । तष्टस्त्वष्टोऽथशे मिते शान्तः संदोनिते सितः॥८७। मृतं मुदित बद्धे च सन्दितं "स्यात्तिरोहितम् । विलीनेऽन्तर्हितं चापि निलीनं "क्लिशिते पुनः।८८ (१) मांगने पर मिले हुए वस्तु का एक नाम-याचितक १ । (२) मांगे गए वस्तु के दो नाम-प्रार्थित १ याचित २ । (३) फाडे गए के चार नाम-भिन्न १ दोर्ण २ दारित ३ मेदित ४ । (४) जले हुए के चार नाम-दग्ध १ प्लुष्ट २ उर्षित २पृष्ट ४ । (५) समाप्त हुए के तीन नाम-समाप्त १ अवसित २ सित ३ (६) बोष प्राप्त कराये गये के दो नाम-ज्ञप्त १ ज्ञपित २ । (७) रोगी तथा चक्र के दो नाम-रुग्ण १ भुग्न २ । (८) शर आदि से वेधे गए के तोन नाम-विद्ध १ वेधित २ छिद्र ३ (९) निर्वाण के एक नाम-निर्वाण १ । (१०) छोटे या दुबले। के तीन नाम-तनूकृत १ तष्ट २ त्वष्ट ३ । (११) उपशान्त के दो नाम-शमित १ शान्त २ । (१२) बद्ध के छ नाम-सन्दानित १ सित २मूत ३ मुद्धित ४ वद्ध ५ सन्दित ६ त्रि० (मेदिनीकार अवसित अर्थात् समाप्त अर्थ में, सितं नपुं० शर्करा अर्थ में सिता स्त्री०, श्वत और बद्ध अर्थ में विशेषण मान-लिया हैं । (१३) छिपे हुए के चार.नाम-तिरोहित १ विलीन २ अन्तर्हित ३ निलीन ४ । (१४) क्लेश पार करते हुए के दो नाम-क्लिशित१ क्लिष्ट२। Page #295 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयकाण्डम् ૨૮૨ विशेषणवर्ग:२ क्लिष्टं 'कथितनिष्पक्वे *स्वनित ध्वनिते, अथ, । विविधस्तु बहुविध नानारूप पृथग्विधाः ॥८९॥ पुष्टे स्यात्पुषितं 'संगूढेतु संकलितः स्मृतः । 'मृगिताऽन्वेशिताऽन्विष्ट मागितानि गवेषिते ॥९०॥ पक्वं परिणते सोढे क्षान्तं पूर्ण तु पूरितम् । दान्तः स्यात् शमिते हन्नगुने निष्कासिते गुदात् ९१ ध्वस्त भ्रष्ट च्युत सस्त गलित स्कन्न पन्नकाः। "निन्दिते त्ववगीतं स्याद् वृणे कृत्तं छितं दितम् ।९२। (१) पकाए गए के दो नाम-कथित १, निष्पक २। (२) अस्फुट शब्द करते हुए के दो नाम-स्वनित १ ध्वनित २ । (३) अनेक रूप के चार नाम-विविध १ बहुविध २ नानारुप ३ पृथग्विध ४ । (४) जिसका पोषण किया गया है उसके दो नाम-पुष्ट १ पुषित २ । (५) अनेक अंको के सारांश खींचकर बनाए गए एकांकी नाटक आदि के दो नाम-संगूढ १ संकलित २ । (६) अन्वेषण के पांच नाम-मृगित १ अन्वेषित २ मन्विष्ट ३ मार्गित ४ गवेषित ५ । (७) परिणाम के दो नाम-पक १ परिणत २। (८) क्षमापित के दो नाम-सोढः १ क्षान्त २ । (९) पूर्ण के दो नोम-पूर्ण १ प्रेत २ । (१०) स्वाभाविक तेज को दबाकर रखने का अभ्यासी के दो नामदान्त १ शमितः २ ! (११) निकाले गए पुरीष के दो नामहन्न १ गुन २ । (१२) च्युत (पड़ते हुए) के सात नामध्वस्त १ भ्रष्ट २ च्युत ३ स्रस्त ४ गलित ५ स्कन्न ६ पन्नक (पन्न) (१३) जन अपवोद के दो नाम-निन्दित १ अक्गीत २ नपुं०, (निर्वाद अर्थ में 'अवगीत' पु० है मेदिनी)। | Page #296 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयकाण्डम् विशेषणवर्गः २ छिन्नं छातं वनदाते संयोजित उपाहिते । स्यूँत मृतमुतं चेति तितयं तन्तु संहते ||१३|| संतापिते तु सन्तप्तं दूनं धूपिततापिते । विधुत व्यक्त होनास्तु घृतोत्सृष्ट समुज्झिताः ॥ ९४ ॥ आख्याताऽभिहितोक्ताः स्युर्लपितोदितजल्पिताः । भाषिते प्रतिपन्ने तु मानितं बुधितं तथा ॥ ९५ ॥ बुद्धं चाऽवसित ज्ञात विदिताऽवगतानि च । - २८३ - तीन नाम- स्यूत १ (१) कटे हुए के आठ नाम-वृक्ण १ कृत्तर छित ३ दित ४ छिन्न ५ छात ६ लुन ७ दात ८ । (२) मिलाए गए के दो नाम - संयोजित १ उपाहित २ ( आकाशादि में अग्नि विकार का नाम भी होता है) । (३) सीए गए तन्तु विस्तार के ऊत २ उत ३ । (४) तपाए गए के पांच नाम - सन्तापित १ सन्तप्त २ दून ३ धूपित ४ तापित ५ । (५) छोड़े हुए के छ नाम - विधूत १ त्यक्त २ हीन ३ धूत ४ उत्सृष्ट ५ समुज्झित ६ । (६) कहे गए के सात नाम- आख्यात १ अभिहित २ उक्त ३ लपित ४ उदित ५ जल्पित ६ भाषित ७ । ( ७ ) समझे गए के आठ नाम - प्रतिपन्न १ मानित २ बुधित ३ बुद्ध ४ अवसित ५ ( अवसित समाप्ति अर्थ में भी है) ज्ञात ६ विदित ७ अवगत ८ Page #297 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयकाण्डम् २८४ विशेषणवर्ग:२ भुक्तेऽभ्यवहृतं जयमशितं भक्षितं तथा ॥१६॥ चर्वितं गिलितं लोहें खादितं ग्रस्तमित्यपि । 'तृप्ते प्रमुदितः प्रीतो हृष्टस्तुष्टश्च हर्षितः ॥९७॥ ॥०॥ इति विशेषणवर्गः समाप्तः ॥०॥ (१) भुक्त के दश नाम-भुक्त १ अभ्यवहृत २ जग्ध ३ अशित ४ भक्षित ५ चर्वित ६ गिलित ७ लोढ ८ खादित९ ग्रस्त १० । (२) हर्षित के छ नाम- तृप्त १ प्रमुदित २ प्रीत ३ हृष्ट ४ तुष्ट ५ हर्षित ६। ॥०॥ इति विशेषणवर्ग समाप्त ॥००॥ Page #298 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयकाण्डम् २८५ नानार्थवर्गः २ ॥ ० ॥ अथ नानार्थवर्ग: प्रारभ्यते ॥ ० ॥ पर्यायवृत्त्या नानार्थाः केचनोक्ताश्च शेषिताः । अर्थान्तरे प्रयुजानाः पुनरुक्तिं न विभ्रति ॥ १ ॥ त्रिदिवाऽऽकाशयोनको नाकु र्वल्मीक शैलयोः । भूवनेऽपि जने लोकैः श्लोकः पद्ये यशःसुच ॥ २ ॥ कैः समीराssत्मदक्षाऽग्नि यमब्रह्मसु बर्हिषु । ब्रध्ने पुमान् सुखे शीर्षे जलेकंतु नपुंसकम् ||३|| नागे वा वर्धकौ तक्ष-कोऽर्कः स्फटिक सूरयोः । जम्बुको वरुणे क्रोष्टौ खङ्गेवा सायेंकः शरे ॥४॥ कोऽङ्केऽपवादेऽथाश्विहोत्सङ्गयोः पुमान् । हिन्दी - (१) कितनेक नानार्थ शब्द स्थल स्थलपर अपने २ पर्यायों के साथ कहे जा चुके हैं फिर भी वे यहां अर्थान्तर में कहे जायंगे अतः पुनरुक्ति दोष से दुष्ट नहीं होगें । (२) स्वर्ग और आकाश अर्थ में 'नाक' है पु० । (३) वल्मीक और पर्वत को 'नाकु' कहते हैं पु० (नाकिन से 'देव' जाने) । (४) भुवन और जनबोधक 'लोक' है पु० । (५) पद्य व यश अर्थ में 'श्लोक' है पु० । (६) वायु आत्मा दक्ष अग्नि यम ब्रह्मा मयूर सूर्य अर्थ में 'क' है पु. और सुख मस्तक जल अर्थ में नपुं० (७) नाग और बढाई का नाम 'तक्षक' है पु० । (८) स्फटिक और सूर्य को 'अर्क' कहते हैं पु० । (९) वरुण और क्रोष्टा अर्थ में 'जम्बुक' है पु० । (१०) खड्ग और बाण का नाम - 'सायक' है पु० । (११) अङ्क और अपवाद अर्थ में 'लक' है पु० । (१२) चिह्न और क्रोड (गोद) अर्थ में 'अङ्क' है पु० । Page #299 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयकाण्डम् २८६ नानार्थवर्ग३ आनेकः पटहे भेर्या प्रयुकश्चिपिटे शिशौ ॥५॥ आलोको दर्शने वन्दि भाषणोद्योतयोरपि । पेचकः करिणां पुच्छ मूलोपान्तेऽप्युलूकके ॥६॥ पुलोको भक्तसिक्थेऽपि संक्षेपे तुच्छ धान्यके । द्वयो मैघोपले, पक्षि विशेषे दाडिमे पुमान् ॥७॥ करकः कमण्डलौ नस्त्री करके०००००। ००००००००००००००ऽथ विनायकः ।। गुरौ ताक्ष्ये जिनेविघ्ने हेरम्बे वृश्चिको द्रणौ ॥८॥ राश्योषधि भिदोः शूक, कीटे किंष्कुर्वित स्तिषु । हस्ते च गैरिक धातु रुक्मयो रनृतेऽप्रिये ॥९॥ (१) पटह और भेरी अर्थ में 'आनक' है पु० । (२) कच्चे धान्य का पौआ अथवा लाजा और शिशु अर्थ में 'पृथुक है पु०। (३) दर्शन वन्दि भाषण और उद्योत अर्थ में आलोक है पु० (४) हाथियों के पुच्छ मूल किनारा और उलूक अर्थ में 'पेचक' है पु० । (५) तपेली के नीचे का जला हुआ भात और संक्षेप और तुच्छ धान्य अर्थ में 'पुल्लक' है पु० । (६) मेंघ से पड़ने वाले ओले अर्थ में 'करका' पु० स्त्री०, पक्षि विशेष तथा दाडिम अर्थ में पु०, कमण्डलु और करङ्क (त्वङ् मांस रहित हड्डो) अर्थ में पु० नपुंसक । (७) गुरु गरुड जिन विधन गणेश (शिवजी के छोटे पुत्र) अर्थ में 'विनायक' है पु० । (८) दुणि (अम्बु द्रोणी और कच्छपी) राशि ओषधिमित् शूककीट (विच्छू) अर्थ में 'वृश्चिक' है पु. । (९) वितस्ति (बारह अंगुल का वित्ता) हस्त अर्थ में 'किष्कु' पु० नपुं० (१०) धातु और सुवर्ण अर्थ में 'गैरिक' है नपुं०। Page #300 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीय काण्डम् २८७ नानार्थवर्ग: ३ अलीकं यातना कृत्योः कारिके भकरेऽङ्गुलौ । कर्णयो भूषणे पद्म बीजकोश्यां च कैर्णिका ॥१०॥ स्यात् सिते खदिरसोमर्वेल्लकः कट्फलेऽपि च । शालवृका: कपौ क्रोष्टु शुनोरप्यथ कालिका ॥११॥ वृश्चिके मेघ जालेsपि करिण्यां गवि धेनुका । सोमे जैवातृकः पुंसि दीर्घायुषि कृशे त्रिषु ॥१२॥ विहङ्गमे द्वयोः पुंसि खुरेत्वश्वस्य वर्तकः व्याघ्रादौ पुण्डरीकं ना यवान्यादिषु दीपैकः ॥ १३ ॥ (१) अमृत अप्रिय अर्थ में 'अलीक' है नपुं० । (२) यातना और कृति अर्थ में 'कारिका' है स्त्री० । (३) हाथी की सूढ अंगुली कर्णभूषण कमलकोष अर्थ में 'कर्णिका' है स्त्री० (सुपारी के गुच्छा, सूक्ष्मवस्तु अत्यन्त, आग्न मन्थ में भी है) । (४) श्वेत स्वदिर कायफल अर्थ में 'सोमवल्क' है पु० । (५) क्रोष्टा कपि कुक्कुर (कुत्ता) अर्थ में 'शालाक' है पु० । ( ६ ) मेघ समूह अर्थ में 'कालिका' हैं स्त्री० और चण्डिका भेद १ का २ वृश्चिक ३ पत्र ४ क्रमदेयवस्तु मूल्य ५ धूसरीमेव ६ नवमेघ ७ पटोल शाखा ८ रोमाली ९ मांसी १० काकी ११ शिवा १२ घूसरी योगिनी भेद १३ उमा १४ अर्थ में भी है। (७) करिणी और धेनु अर्थ में 'धेनुका' (वशा) अर्थ हो तो स्त्री०, राक्षस दानव विशेष में पु० । (८) चन्द्र अर्थ में 'जैवातृक' पु०, दीर्घायुस् कृश (कृषक) अर्थ में त्रिलिङ्ग । (९) विहङ्गम अर्थ में 'वर्तक' पु० त्रो०, अश्व खुर अर्थ में पु० । (१०) व्याघ्र अग्नि दिङ्नाग कोशकार अर्थ में 'पुण्डरीक' पु०, सिताम्भोज सितच्छत्र भेषज अर्थ में भी नपुं । (११) वागलङ्का [वाणीके अलङ्कार ] दीप्तिकारक अर्थ में 'दीपक' वाच्यलिङ्ग है और अजमोदा यवानी बर्डिचूड़ा अर्थ में पु० है । Page #301 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयकाण्डम् २८८ नानार्थ वर्ग: आतङ्को रोगसन्ताप शङ्कामु मुरजध्वनौ । नैकदेशे प्रतीकं तु प्रतिलोमविलोमयोः ॥१४॥ भूनिम्बे भूस्तृणेऽपि स्यात्कटफलेऽपि च भूतिकैम् । हेम्न्युरोभूषणे साष्टशते दीनार कर्षयोः ॥१५॥ अस्त्री निष्क सुवर्णानां 'शल्के शकलवल्कले । दम्भैनः शमलेष्वस्त्री कल्कः शीलाऽन्वयादिषु ॥१६॥ अनूक, गुग्गुलूलूक व्याल ग्राहिष्वृभुक्षि च । कौशिकोऽथ च पिण्याक स्तिलकल्केऽपि सिहके ॥१७॥ रुद्रचापे पिनाकोऽस्त्री पांशुवर्ष त्रिशूलयोः। (१) सद्य; धाती रोग सन्ताप शङ्का में और मुरजध्वनि में 'आतङ्क' पु०। (२) एकदेश अर्थ में प्रतीक' पु०, प्रतिलोम विलोम अर्थ में नपुं० । (३] भूनिम्ब भूस्तृण [एक प्रकार का घास कायफल अर्थ में 'भूतिक' नपुं० । (४) सुवर्ण में, उरोभूषण में, एक सो आठ सुवर्ण में दीनार (मोहर) और कर्ष में निष्क पु० नपु० । (५) खण्ड अर्थ में शल्क शकलावल्कल (अर्ध भित्त नेम दल) नपुं० । (६) शब्द दम्भ ऐनसू (पाप) शमल अर्थ में 'कल्क' नपुं० । (७) शील कुल (अन्यजन्म) अर्थ में 'अनुक' नपुं० । (८) गुगुलु उलुक (उल्लू) सपेरा और अर्थ में 'कौशिक' पु० । (९) तिल कल्क सिल्हक और हिङ्गु बाह्रीक (उत्तरप्रदेश विशेष) अर्थ में 'पिण्याक' पु० नपुं० (बह्वीक वह्निक धीर हिगु में अश्वदेश में पु० । (१०) रुद्रचाप, पांशुवर्ष (धूली की वर्षा) त्रिशूल अर्थ में 'पिनाक' पु०, नपुं० । Page #302 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयकाण्डम् मानार्थवर्ग: सुरे वृन्दारकः श्रेष्ठे मनोज्ञे त्रिषु दाम्भिकः ॥१८॥ तथा कोक्कुटिकोऽपि स्याद् योऽदूरे प्रहिते क्षणः । मुख्याऽन्य केवलेष्वेकं त्रिषु वृन्दारकादयः ॥१९॥ इति कान्ता । कार्याऽक्षमः प्रभो लाभदर्शी लालाटिकः स्मृतः। शंखोऽस्त्री निधिभालास्योः कम्बोजा खं' पुरादिषु ॥२०॥ "शिलीमुखोऽलौबाणे च शिखी ज्याला घणी अपि । मयूखः किरणे ज्याला शोभयोः शैलवृक्षयोः ॥२१॥ इति खान्ताः । नगाऽगौ स्याद्भगः सूयें श्रीकामादौ नपुंसकम् । (१) सुर अर्थ में 'वृन्दारक' पु०, श्रेष्ठ मनोज्ञ में त्रिलिङ्ग । (२) अदूरदर्शी (मूर्ख) अर्थ में 'दाम्भिक और कौक्कुटिक' है प्रिलिङ्ग । (३) मुख्य अन्य केवल अर्थ में 'एक' है त्रि० । (४) कार्य करने में असमर्थ होते हुए भो स्वामी का लाभ मार्ग ढूढ़ कर निकालने वाले का नाम-लालाटिक है ॥इति कान्ता॥ (५) निधि, ललाट, अस्थियों में पु०, नपुं० कम्बु में पु. शंख है। (६) पुर इन्द्रिय क्षेत्र शून्य विन्दु विहायस् (आकाश) संवेदन देवलोक शर्मन् में 'खं' है नपुं० । (७) भ्रमर बाण में 'शिलीमुख' है पु० । (८) ज्वाला किरण शाखा बर्हिचूड़ा लाङ्ग लिकी (करिहारी) अग्रमात्रा चूडामात्र शिफा प्रपद (पादान) अर्थों में 'शिवा' हैं स्त्री० । (९) किरण ज्वाला शोभा अर्थों में 'मयूख' है पु० । ॥इति वान्ताः । (१०) शैल (पर्वत) वृक्ष अर्थ में नग और भग' पु० (११) सूर्य अर्थ में 'भग' पु०, मोक्ष श्री योनि वीर्य इच्छा ज्ञान वैराग कोर्ति माहत्म्य ऐश्वर्य यत्न धर्म में नपुं० ।। Page #303 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयकाण्डम् २९० नानार्थवर्गः ३ सबले त्रिषु सारङ्गो हरिणे चातके पुमान ॥२२॥ आदित्य भूमि स्वर्गादौ ना स्त्री गौन नपुंसकम् । मृगाः पशौ कृतादौ च यानाधङ्गेऽस्त्रियां युगम् ॥२३॥ लिङ्ग चिह्नाऽनुमानादौ शृङ्ग प्राधान्य सानुनोः । गुह्य मुध्नों वराङ्गं च पतङ्गः सूर्य पक्षिणोः ॥२४॥ पराभवेऽभिषङ्गो नाऽऽक्रोशेऽथ प्लेवगः कपो । अहे: काये फणायां च भोगैः ख्यादि भृतौ मुखे ॥२५॥ (१) शबल(नानावर्ण) अर्थ में 'सारङ्ग त्रि०, हरिण चातक मतङ्गमें पु०। (२) आदित्य बलीव किरण क्रतुभेद में 'गौ' पु०, सौरभेयी (गाय) दृक् बाणादिक वाक् भू अप् समन् में स्त्री०, केशव कोष स्वर्ग वत्र अम्बु रश्मि दृक् बाण लोमन् में पु०, स्त्री. कहा है। (३)पशु अर्थ मैं कुरङ्ग करो नक्षत्र भेद अन्वेषण यज्वा में पु०, वनितामृग स्त्री में 'मृगी' है स्त्री०। (४) शब्द रथ हल आदि अंग में 'युग' पु०, कृत आदि युग्म हस्त चतुष्क वृद्धि नामन् ओषधि में नपुं० । (५) शब्द चिह्न अनुमान सख्यि को मानी हुइ प्रकृति शिवमूर्ति विशेष मेहन अर्थ में 'लिङ्ग' नपुं० । (६) प्रभुत्व शिखर चिह्न क्रीड़ा अम्बुयन्त्र विषाण उत्कर्ष में 'शङ्ग' नपुं० । कूर्च कुच्ची दाढी शीषक में पु०, विषा स्वर्ण मीन भेद ऋषभ ओषधि में स्त्री० । (७) योनि मस्तक मातङ्ग गुडत्वक (इख की छाल) अर्थ में 'वराङ्ग' नपुं० । (4) पक्षी सूर्य शलभ शालि प्रभेद में 'पतङ्ग, पु० । (९) पराभव आक्रोष (शपथ) में 'अभिपन' पु० । (१०) कपि मेक सूर्य सारथि में 'प्लवग' पु० । (११) सर्प काय फणा (पालन अभ्यवहार) स्त्री. हाथी घोड़े आदि के भरण पोषणसुखमें 'भोग' पु० । | Page #304 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीय काण्डम् २९१ नानार्थवर्गः ३ बाण सूर्ये विहङ्गादौ खेगो वेगो रयादिषु । स्नानीये कौसुमे रेणौ परागैः स्याद्रजः स्यपि ॥ २६ ॥ सँग निश्चय निर्मोक्ष स्वभावाऽध्याय सृष्टिषु । मातङ्गः श्वपचे नागे नागोनातु गजादिषु ॥ २७॥ योगः कवचः सामादि ध्यानसङ्गति युक्तिषु । अपाङ्गस्तिलकेऽप्यङ्ग होन नेत्रान्तयोरपि ॥२८॥ पूर्गः स्याक्रमुके वृन्दे आसुँगो वायु बाणयोः । इति गान्ता ॥ अर्थः पूजाविधौ मूल्ये पॅरिघोऽर्गल घातयोः ॥ २९॥ योगभेदे विशेषाऽस्त्रे दुःखांहो व्यसनेष्वधैम । (१) बाण सूर्य विहङ्गम (देवग्रह ) में 'खग' पु० । (२) रय प्रवाह में 'वेग' पु० । (३) उबटन एवं पुष्ष के रेणु धुली गिरी प्रभेद विख्याति उपराग चन्दन में 'पराग' पु० । (8) निश्चय त्याग स्वभाव अध्याय सृष्टि मोह उत्साह में 'स्वर्ग' पु० ० । (५) श्वपच नाग में 'मातङ्ग' पु० । (६) पन्नग मातङ्ग क्रूराचार तोयद नागकेशर पुंनाग नागदन्तक मस्तक देहानिलप्रभेद श्रेष्ठ 'नाग' पु०, रङ्ग सोसक करणान्तर में नपुं० । (७) संहनन (कवच ) उपाय ( सामादि ) ध्यान अपूर्वाध संप्राप्तिवपुः स्थैर्य प्रयोग विष्कम्भ भेषज विस्रन्ध घातक द्रव्य कार्मण में 'योग' पु० । (८) तिलक अङ्गहीन नेत्रान्त में 'अपाङ्ग' पु० । ( अजयकोष ने चित्रक प्रधान में भी कहा हैं) । (९) क्रमुक (सुपारी) और वृन्द में 'पूग' पु० । (१०) वायु ओर बाण अर्थ में 'आग' पु० । ११) पूजाविधि और मूल्य में योगमेद अनविशेष में 'परिष' व्यसन में 'अघ' नपुं० । - इति गान्ताः । 'अर्थ' पु० । (१२) अर्गल घात पु० । (१३) दुःख अंहस् (पाप) Page #305 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतोयकाण्डम् २९२ नानार्थवर्गः ३ पृक्कायां स्त्रीलघुः शीघ्र कृष्णागुरुणि न द्वयोः ॥३०॥ मनोज्ञेऽल्पे च निः सारे गुरौ स्याद्वाच्यलिङ्गवत् । ओघोऽम्भसा रये वृन्दे काचः शिक्ये मृदन्तरे। ३१॥ इति धान्ताः । नेत्ररोगे प्रपञ्चस्तु विपर्यासेऽपि विस्तरे । रुचि गभस्ति स्पृहयो रभिष्वङ्गे स्त्रियां शुचिः ॥३२॥ इति चान्ताः । पावकेऽत्युपधाऽमात्ये मासिना त्रिष्वतोऽधिके । निज त्रिषु स्वके नित्ये नाऽजः शङ्खशशाङ्कयोः ॥३३॥ समभूमौ रणेऽप्योजिः सन्तानेऽपि जने प्रजी । हरे विष्णौ विधौ काम छागेऽजो"वह गोष्ठयोः ॥३४॥ [१] पृक्का ओषधि में 'लघु' स्त्री०, शीघ्र कृष्णगुरु नपुं०, मनोज अल्प निःसार गुरु में त्रि० । (२) अम्भोवेग और वृन्द परम्परा द्रुत नित्योपदेश में 'मोघ' पु० । ।।इति घान्ता । (३) शिक्य मृदन्तर नेत्ररोग भेद [मणि] में 'काच' पु०। (४) विपर्यास विस्तर संचय प्रतारण में 'अपञ्च' पु० । (५) दोप्ति शोभा अभिष्वङ्ग में 'रुचि' स्त्री० । (६) ग्रीष्म अग्निशङ्गार आषाढ शुद्धमन्त्री ज्योष्ठमास में 'शुचि' पु०, धवल शुद्ध अनुपहत में त्रि० । ॥इति चान्ता । (७) आत्मीय नित्य अर्थ में 'निज' त्रि० । (८) शङ्ख शशाङ्क निचुल वेतस धन्वन्तरि में 'अब्ज' पु०, पद्म में नपुं, मेदिनी कोष में शंख अर्थ में पु० नपुं० । (९) समभूमि समर भूमि में 'आजि स्त्री० । (१०) 'सन्तति और राष्ट्रवासी जनसमूह में प्रजा' स्त्री० । (११) हर विष्णु विधु काम छाग रघुपुत्र में 'अज' पु० । , Page #306 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयकाण्डम् २९३ नानार्थवर्गः ३ ૩ मार्गे 'जो द्विजो दन्त विप्रादावण्डजेहि भुक् । तार्क्ष्य के किनि कुजोऽस्त्री दन्तेऽपि बलैजा तुया ॥ ३५ ॥ यूथिका वरयोषा वा बलजं गोपुरादिषु । धर्मराजो यमे बुद्धे जिने राज्ञि युधिष्ठिरे ॥ ३६ ॥ इति जान्ताः । क्षेत्रज्ञो वाच्यलिङ्गः स्यात्प्रवीणे नाऽऽत्मनि स्थिरः । नाम चेतनयोः संज्ञा स्वाङ्गाद्यै रथे सूचने ॥ ३७ ॥ १० पटु" र्दक्षादिके कष्टं" कृच्छ्रेऽपि गहने (१) वह अर्थात् [ वृषस्कन्ध गन्धवह अश्त्र ] गोष्ठ मार्ग में 'वर्ज' पु० । (२) दन्त ब्राह्मण क्षत्रिय विश् अण्डज पक्षी में [ साधु में भी ] 'द्विज' पु० । ( ३ ) गरुड मयूर अर्थ में 'अहिभुक्' पु० । ( ४ ) निकुञ्ज हस्तिदन्त हनु में 'कुञ्ज' पु० नपुं । (५) यूथिका वरयोषा अर्थ में 'बलजा' स्त्री० । ( ६ ) गोपुर क्षेत्र सस्य संग़र अर्थ में 'बलज' नपुं० । (७) यम बुध जिन राजा युधि - ष्ठिर अर्थ में 'धर्मगज' पु० । इति जान्ताः । (८) प्रवीण अर्थ में वाच्यलिङ्ग (विशेष्य लिङ्ग) और आत्म बोधक अर्थ में 'क्षेत्रज्ञ' पु० । (९) नाम में चेतना में अङ्गादियों से अर्थ सूचन में 'संज्ञा ' स्त्री० । इति झान्ताः । (१०) तीक्ष्ण स्फुट दक्ष निष्ठुर निर्दय नोरोग चतुर में 'पटु' त्रि० पटाल में पु. नपुं० । छत्रा लवण में नपुं । (११) कृच्छ और गहन में 'कष्ट' नपुं०, । इति झान्ताः । जटा | Page #307 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयकाण्डम् २९४ नानार्थवगः ३ मूले लग्नेकचे माझ्या मिष्टि' यगेच्छयोरपि ॥ ३८ ॥ ज्ञानेऽक्षिण दर्शने दृष्टि बहूनि त्रिषु निश्चिते । सृष्टिः संशय कालाऽल्प सूक्ष्मैलासुत्रुटि: स्त्रियाम् ॥३९॥ अरिष्टं सूतिकागारे आसवादौ शुभेऽशुभे । समृद्धि फलयो युष्टि दैवते दिष्ट मद्वयोः ||४०|| तक्षाऽऽदित्य भिदोस्त्वष्टो देवशिल्पिनिना कटुः । रसे कार्येऽद्वयोस्तीक्ष्णे मत्सरे त्रिषु कोटयेः ॥ ४१ ॥ संख्या" भेदे प्रकर्षे च कोणेऽग्र धनुषः स्त्रियः । खतौ शिपिविष्टः स्याद्दुश्चर्मणि महेश्वरे || ४२ ॥ ( १ ) लग्नकच ( केश समूह ) मूल मांसी में 'जटा ' स्त्री०, लक्ष (पीपल विशेष ) में 'जटो' । (२) यागमत अभिलाष ( संग्रह श्लोक) में 'इष्टि' खो० । (३) ज्ञान अक्षि दर्शन अर्थ में 'दृष्टि' स्त्री० । (१) प्राज्य अतिशय निश्चित अर्थ में 'सृष्टि' स्त्री० । (५) संशयकाल अल्प सूक्ष्मैला अर्थ में ' त्रुटि' खी० । (६) सूतिकागार आसन (मथ) शुभ अशुभ तक्र मरणचिह्न अर्थ में 'अरिष्ट, नपुं०, लशुन निम्त्र फेनिल काक कङ्क में पु० । (७) फल समृद्धि अर्थ में 'व्युष्टि' स्त्रो० । (८) दैव (भागधेय भाग्य) अर्थ में 'दिष्ट' नपुं. 'काल' पु० । (९) तक्षा (तक्षन् ) आदित्यभित् देवशिल्पी अर्थ में 'स्वष्टा ( त्वष्टृ ) ' पु० । (१०) रस (मात्र) अर्थ में 'कटु' पु० अकार्य में नपुं०, तद्वान् में सुगन्धि मत्सर स्वरो में त्रि०, (११) कटुरोहिणी लता राजिक में स्त्री० । (१२) संख्याभेद प्रकर्ष अश्रि (कोण) धनुष के अग्र अर्थ में 'कोटी' स्त्री० । (१३) खलति दुधम (न) शिव शौरी (विष्णु आदि) अर्थ में 'शिपिविष्ट ' पु० । Page #308 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २९५ तृतीयकाण्डम् नानार्थवर्गः ३ काके-भगण्डौ करटो नागगण्डे कटौ कटः । कैतवाऽनृत मायासु यन्त्र निश्चल राशिषु ॥४३॥ सीराङ्गे शैलशृङ्गे चाऽयोघने कूटमस्त्रियाम् । रिष्टं स्यादशुभाभावे पुंसि फेनिलखङ्गयोः॥४४॥ इति टान्ताः । नीलकण्ठः सितापाले हरेऽपि पीतसारके । दात्यूहे कलविङ्के च खञ्जने कालकंठवत् ॥४५॥ कोष्ठोऽन्तर्जठरे पुंसि कुसूलेऽन्त,हे स्वके । युवाऽल्पयोः कनिष्ठोना कनिष्ठा दुर्बलाङ्गुलिः ॥४६॥ नक्षत्रे गृहगोधायां ज्येष्ठा मासान्तरे पुमान् । त्रिषु श्रेष्ठे च वृद्धे च काष्ठोत्कर्षे दिशिस्थितौ ॥४७॥ हिन्दी-(१) काक इभगण्ड कुसुम्भ निन्द्य जीवन एकादशाहादिश्राद्ध दुर्दरूढ वाद्यमेद मर्थ में 'करट' पु० । (२) श्रोणि नितम्ब अर्थ में 'कट' स्त्री०पु०, क्रियाकार कलिज अतिशय शव समय गजगण्ड कपोल में पु० । (३) कैतव अनृत माया यन्त्रनिश्चल राशि सीराङ्ग शैलशृङ्ग अयोधन अर्थ में 'कूट' नपुं० । (४) अशुभाऽभाव (शुभ) अर्थ में 'रिष्ट' नपुं, फे ने छ खा में पु०। इति टान्ताः । (५) 'नीलकण्ठ और कालकण्ठ' सितापाङ्ग हर पीतसारक दात्यूड कलविङ्कमें पु० । (६) 'कोष्ठ' अन्तर्जठर कुसूल अन्तगृह आत्मीय में पु०। (७) 'कनिष्ठ' युवा और अन्य अर्थ में पु. दुबलो अंगुली अर्थ में 'कनिष्ठा' (छोटी अंगुली) कहते हैं स्त्रो० । (८) 'ज्येष्ठा' नक्षत्र और गृहगोधा अर्थ में स्त्रो०, मासान्तर अर्थ में 'ज्येष्ठा' पु०, श्रेष्ठ और वृद्ध में त्रि०। (९) 'काष्ठा' उत्कर्ष और दिशास्थिति अर्थ में स्त्री० । Page #309 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयकाण्डम् २९६ नानार्थवर्गः ३ निष्ठा नाशाऽन्तनिष्पत्ति याचा निर्वहणेषु च । इति ठान्ताः । अभिमानग्रहव्यूह मौन सैन्य दमादिषु ॥४८॥ कोण प्रकाण्ड मन्धान यमाऽश्यलगुङादिषु । पारिपाश्विक भेदेऽपि चण्डांशोर्दण्ड इष्यते ॥४९॥ इक्षु पाके भसन्नाह गोलकेषु गुंडो गुडा। स्नुही योषिच्च गुडिका स्यादि। बुधयोषिति ॥५०॥ गोभू वाक्ष्वपि भाण्डस्तु पात्रे भूषाऽश्वभूषयोः । वणिङ् मूलधक्ष्वेडो' विषे कर्णामयेध्वनौ ॥५१॥ रक्ताऽस्य फले पर्णे घोषपुष्पे नपुंसकम् । स्त्रियां वंशशलाकायां सिंहनादेऽथ वाच्यवत् ॥५२॥ दुरासदे च कुटिले काण्डो वर्गाऽश्व वारिषु । बाण स्कन्ध रहः स्तम्ब नाडीवृन्देषु कुत्सिते ॥५३॥ (१) 'निष्ठा' नाश अन्त निष्पत्ति याञ्चा निर्वहण अर्थ में पु० । इति ठान्ताः । (२) 'दण्ड' अभिमान ग्रह व्यूह मोन सैन्य दम आदि में एवं कोण प्रकाण्ड मन्थान यम अश्व लगुड आदि में, एवं सूर्य के पारिपविक भेद में प्रयोग होता है पु०। (३) 'गुड' इक्षुपाक हस्तिसंनाह गोलक में पु०, 'गुडा' तो स्नुही योषित् गुडिका अर्थ में स्त्री० । (४) 'इडा' बुध ग्रहयोषित् गो भू वाक् अर्थ में स्त्रो० । (५) 'भाण्ड' पात्र भूषा अश्वभूषण चणिमूलधन अर्थ में नपुं० । (६) 'वेड' विष कर्णरोग ध्वनी रक्तार्क वृक्षके फल पत्ते घोषपुष्प में नपुं०, वंशशलाका सिंहनाद में स्त्री०, दुरासद कुटिल में त्रि० । (७) 'काण्ड' वर्ग अश्व वारिवाण स्कन्ध रहस् स्तम्ब नाडीवृन्द कुत्सित् वृक्षभित् अर्थ में पु.नपुं। Page #310 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २९७ नानार्थवर्गः ३ वृक्षभिद्यपि न स्त्री स्यात् नाडी कालेऽपि षट्क्षणे। __ इति डान्ताः । नितान्त बलवत् स्थूल प्रगाढेषु दृढे स्त्रिषु ॥५४॥ प्रतिज्ञाऽतिशयौ बाढं प्रगाढं दृढकृच्छ्योः । 'व्यूढः पृथुल विन्यस्त संहतेष्वभिधेयवत् ॥५५॥ इति ढान्ताः । स्त्रैण गर्भेऽर्भके भ्रंणो बाणो वलि सुते शरे । स्पृहा पिपासयो स्तृष्णा जुगुप्सा करुणे घृणा ॥५६॥ भ्रूवो यदन्तराऽऽवते जी मेषादि लोमनि । "हरिणी हरिता हेम प्रतिमान मृगीष्वपि ॥५७॥ (१) 'नार्ड' नाल व्रणान्तर शिरा गण्डदूर्वा खर दूर्वा विशेष दम्भचर्या और षट्क्षणकाल अर्थ में स्त्री. । इति डान्ताः । (२) 'दृढ' नितान्त बलवान् स्थूल और प्रगाढ अर्थ में त्रि० । (३) 'बाद' प्रतिज्ञा अतिशय अर्थ में नपुं० । (४) 'प्रगाढ' दृढ और कृच्छ अर्थ में नपुं० । (५) 'व्यूढ' पृथुल विन्यस्त संहत में वाच्य'लिङ्ग (विशेष्यलिङ्ग) पु० । इति ढान्ताः। (६) 'भ्रण' गर्भ शिशु अर्थ में पु० । (७) 'बाण' बलिसुत 'एवं शर अर्थ में पु० । (८) 'तृष्णा' स्पृहा और पिपासा अर्थ में स्त्री० । (९) 'घृणा' जुगुप्सा और करुणा अर्थ में स्त्री० । (१०) "ऊर्णा' भौहों के अन्तराय में आवर्त में मेष शश उष्ट्र मृग आदि लोम अर्थ में स्त्रो० । (११) 'हरिणो' हरिता हेम प्रतिनिधि मृगी अर्थ में स्त्री। Page #311 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - तृतीयकाण्डम् २९८ नानार्थधर्गः २ 'स्थूणा स्तम्भेऽपि सा च हरिणः पाण्डुरे त्रिषु । त्रिषु ग्रामाधिपे श्रेष्ठे नापिते ग्रामणीः पुमान् ॥५८॥ समरेऽस्त्री कणे कोणे नापिते ना रेणो मतः । क्षणो व्यापारहीनत्वे मुहूर्तोत्सव पर्वसु ॥५९।। कार्षापणे वराटानां माने मूल्ये घणे पणः। द्यूते विक्रय्य शाकादे बद्धमुष्टो भृतौ ग्लहे ॥६॥ मौर्य प्रधानरूपादि सन्ध्याचा वृत्ति एज्जुषु । शुक्ल सूदेन्द्रिय त्याग सत्त्व सौर्यादि धीषु च ।६१॥ गुणः पोऽग्नि मन्थाने 'श्रीपर्ण हस्तिनो भयोः। करेणु द्रविण वित्ते काश्चने च पराक्रमे ॥६२॥ (१) 'स्थूगा' गृहस्तम्भ और सूर्मी अर्थ में स्त्री० । (२) 'हरिण पाण्डु और शवल अर्थ में त्रि०। (३) 'ग्रामणी' ग्रामनायक श्रेष्ठ नापित अर्थ में पु० । (४) 'रण' शब्द समर कण कोण अर्थ में पु.नपुं०, नापित में पु० । (५) 'क्षण' व्यापारहीनत्व और मुहूर्त उत्सव पर्व अर्थ में नपुं० । (६) 'पण' कार्षापण सिक्का वराट क मान मल्य धन शाकादि बेचनार बद्धमुष्टि भृति ग्लह (जुआ) अर्थ में पु० । (७) 'गुण' मौर्वी (धनुर्गुण) अप्रधान रूपादि सन्ध्यादि वृत्ति रज्जु शुल्क सूद इन्द्रिय त्याग सत्त्व सौर्यादि धी अर्थ में पु० । (८) 'श्रीपर्ण' कमल अग्निमन्थ (अरणि) अर्थ में नपुं०, 'श्रीपर्णी' कुम्भी गम्भारी अर्थ में स्त्रो० । (९) 'करेणु' हस्तिनी अर्थ में स्त्री०, इभ में पु० (रन्तिदेवतो "करेगुश्च गरेणुश्च करिणी कर्णिकारयोः' कहे गये हैं ।) (१०) 'द्रविण' वित्त काञ्चन पराक्रम अर्थ में नित्य नपुं० Page #312 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयकाण्डम् २९९ नानार्थवर्गः ३. आपणे विपणिः पण्यवीथिका पण्ययो स्त्रियाम् । प्रतीची सुरयो गण्ड दूर्वायां वारुणी रिणम् ॥६३॥ निराश्रये भूवो भागे ऊपरे प्रर्वणः क्षणे । निम्नोवीं क्रम आयत्ते क्षीणे प्रगुणप्रह्वयोः ॥६४॥ - चतुष्पथेधुना तीक्ष्ण विषेऽभिमर लोहयोः । क्लीबं पुंसि यवाग्रेस्या त्तिग्माऽऽस्मत्यागिनो स्त्रिषु ॥६५॥ द्रोणा काष्ठाम्बु वाहिन्यां गवादन्यां च नीवृति । पुमान् कृपीपतौ काकेऽस्त्र्याढकादि चतुष्यपि ॥६६॥ गणः प्रमथ संघात संख्या सैन्य प्रभेदवान् । मक्षिका पिप्पली नक जीरकेषु कणा कणः ॥६७। हिन्दी- (१) “विपणि' आपण पण्यवीथी और पण्य अर्थ में स्त्री० । (२) वारुण' प्रतोची सुरा गण्डदूर्वा अर्थ में स्त्री० । (३) 'ईरिण इरिण' निराश्रय भूभाग में ऊपर भूभाग में नपुं. । (४) 'प्रवण' क्षण निम्नोर्वीक्रम आयत्त क्षीण प्रगुण प्रह्व में त्रि०, चतुप्पथ में पु० । (५) तीक्ष्ण' विष अभिमर अर्थात् युद्धबल स्वबलसाघसलोह (अजिमुष्कक) में नपुं०, यवान पु०, तिग्म आत्मत्वागिन् में त्रि० । (६) 'द्रोणा' काष्ठम्बुवाहिनी गवादनी नीवृत् (जनपद) स्त्री०, कृपीपति (द्रोणाचार्य) में पु०, काक आढक आढकादि चतुष्टय (आढक १ द्रोण २ वारी ३ वाह ४) में 'द्रोणः' पु० नपुं० (आढकी तु तुवयां स्त्री परिमाणान्तरे त्रिषु मेदिनी) । (७) 'गण' प्रमथ आदि रुद्रगण संघ संख्या सैन्य प्रभेद में पु० । (८) 'कण' मक्षिका पिप्पली कुम्भीर जोरक में स्त्री०, अतिसूक्ष्म धान्यांश में 'कण' पु०। Page #313 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयकाण्डम् ३०० नानार्थवर्गः ३ अतिसूक्ष्मे च धान्यांशे 'स्थाणुः कीले हरे पुमान् । अस्त्री ध्रुवे प्रमाणं तु शास्त्रे यन्ता प्रमातृषु ॥६८॥ मर्यादा हेतु नित्येषु चैकत्वं सत्यवादिनि । कायकारण कायस्थ साधनेन्द्रिय कर्मसु ॥६९।। व्रतबन्धे नाटयगीत भेदयोः करणं यदि । वधरक्षण रक्षित गृहेषु शरणं भवेत् ॥७॥ वाच्यवद् निचितेऽशुद्ध संकीर्ण वर्णसङ्करे । पशुशृङ्गे-भ-दन्तादौ विषाणं त्रिषु न स्त्रियाम् ॥७॥ वों द्विजादा 'वरुणो वर्ण भेदादिषु त्रिषु । मौर्वी सन्ध्या सत्त्व शुक्ल द्रव्य धीषु गुणः पुमान् ॥७२॥ (१) 'स्थाणु' कील हर में पुं०, ध्रुव में पु० नपुं० । (२) 'प्रमाण' शास्त्र इयत्ता प्रमाता (तू) मर्यादा हेतु नित्य सत्यवादी (इन्) में नपुं० एकवचन है । (३) 'करण' काय कारण काय स्थ साधन इन्द्रिय कर्मन् व्रतबन्ध नाट्यभेद गीतभेद में नपुं०, शूद्रा विश के पुत्र में वानर आदि में पुं०। (१) 'शरण' वध रक्षण रक्षिता (त) गृह में नपुं० । (५) 'संकीर्ण' संकट, वर्णसंकर में नपुं०, व्याप्त अशुद्ध में वाच्यलिङ्ग । (६) 'विषाण' पशुशृङ्ग हस्तिदन्त में त्रि०, क्षोरिकाकोली अजशृङ्गी में स्त्रो०, कुष्ठनामकः ओषधि में नपुं० । (७) 'वर्ण'द्विज आदि, शुक्ल आदि, यशः कथा, गुण कथा, स्तुति में पु०, भेद रूप अक्षर विलेखन में पु० नपुं० । . (८) 'अरुण' गुणी में त्रि०, अव्यक राग अर्क सन्ध्याराग अर्क सारथि निः शब्द कपिल कुष्ठभेद में पु०, 'अरुणा' अतिविषा श्यामा मञ्जिष्ठा त्रिवृता में स्त्री० । (९) 'गुण' मौवी सन्ध्यादि सत्त्वादि शुक्लादि द्रव्याश्रित धी त्यागादि शौर्यादि रूपादि अप्रधान सुद इन्द्रिय आवृति रज्जु में पु० । Page #314 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीय काण्डम् ३०१ नानार्थवर्गः ३ घण्टापथे संसरणं प्राण्युत्पादे चमूगतौ । मुक्तोज्झितोन्मूलितयोः समुद्धरणमुन्नतौ ॥७३॥ इति णान्ताः । कृतान्तौ दैव सिद्धान्त यमाsकुशलकर्मसु । प्रकारेऽपि प्रकरणे वृत्तान्तः कास्यं वार्तयोः ॥७४॥ आनंत देशभेदे स्या न्नृत्य स्थाणे जने रणे । श्लेष्मादि रस रक्तादि महाभूतानि तद्गुणाः ॥ ७५ ॥ शब्दयोनीन्द्रिये प्रस्थ विकृति धातवः स्मृताः । शैक्तिरायुधकास्वाः स्यान्मूर्ति काठिन्य काययोः ॥ ७६॥ शुद्धान्तो नृपनारीणां वेश्म कक्षान्तरोऽपि च । क्षयेऽपचिति रचायां सोति दनाऽवसानयोः ॥७७॥ विस्तारे व्रतति र्वल्यां वसति र्वास वेश्मनी । (१) 'संसरण' घण्टापथ प्राण्युत्पाद चमुगति में नपुं० । (२) 'समुद्धरण' भुंक्तोज्झित (वान्त में ) उन्मूलित उन्नय में नपुं० । इति वान्ताः । (३) 'कृतान्त' दैव सिद्धान्त यम अनिष्टकर्म कर्मन् में पु० । (४) 'वृतान्त' प्रकार प्रकरण कायै वार्ता में पु० । (१०) 'आनर्त' देशमेद नृत्यस्थान जनरण में पु० । (६) 'धातु ' श्लेष्मन् पित्तादि भुक्त आहार के प्रथम अवस्थारूप रस रक्तः मज्जा शुक्रादि, तद्गुण इन्के गन्धादि, महाभूत, शब्दोत्पत्ति, मूलकारण, इन्द्रिय, प्रस्थविकृति गैरिकादि में पु० । (७) 'शक्ति सामर्थ्य कासू (विकल्पना) में स्त्री० । (८) 'मूर्ति' काठिन्य काय में स्त्री० । (९) 'शुद्धान्त' राजाओं के अन्त पुर और गुप्तकक्षा (मंत्रण करने का स्थान ) भेद में पु० । (१०) 'अपचिति' पूजा और क्षय अर्थात् व्यय निष्कृति हानि में स्त्री० । (११) 'साति' दान और अवसान में स्त्री० । (१२) 'व्रतति' विस्तार और वल्ली में स्त्री० । (१३) ' वसति' वास भवन रात्रि में स्त्री० । 2 Page #315 -------------------------------------------------------------------------- ________________ * तोयकाण्डम् ३०२ नानार्थवर्गः ३ रात्रिर्वार्धनुष्कोटयां पीडायां हेति रचिपि ॥ ७८ ॥ रवेज्वला वा वह्नेः शस्त्रेऽथ जगती क्षितौ । छन्दो भेदेऽपि दशमं पेंक्ङ्क्तिच्छन्दोऽपि च स्त्रियाम् ७९ प्रभावेऽप्यायेतिः पैत्ति न गतौ स्त्रीषु पक्षतिः । पक्षमूले तिथेर्वाऽपि पक्षिणां वेद कर्णयोः ॥ ८० ॥ वार्तायां च 'श्रुतियनि लिङ्गादौ प्रकृति धृति । धारणाऽध्वर तुष्ट्यादौ " गुप्तिर्भू विवरेऽपि च ॥८१॥ १० २ (१) 'अर्ति ' पीडा और धनुषकोटि में स्त्री० । (२) 'हेति' सूर्य के अर्चि में वह्निज्वाला में शस्त्र में स्त्री० । ( ३ ) ' जगती' पृथिवी छन्दोभेद भुवन जन में प्राकार में स्त्री०, 'जगत्' विष्टप (स्वर्ग में) नपुं०, 'जगत् (जगन्' वायु में पु. जंगम में त्रि० । ( ४ ) 'पति' (उक्ताऽत्युक्ता तथा मध्या प्रतिष्ठाऽन्याएँ पूर्विका गायत्र्युणि गनुष्टुप् च वृहतो पङ्क्तिरेव" च] इस गणना में दशवां छन्द को 'पङ्क्ति' (दशाक्षरचरण) कहते हैं और दश संख्यादि में भी स्त्री० । (9) 'आयति' संयम दैर्ध्य आगामिकाल और प्रभाव में स्त्री० । (८) 'पत्ति' चरणचारी अर्थ में पु०, और एक हाथी एक रथ तीन घोडे, पांच पदाति हों जिसमें वह स्त्री० है । (९) 'पक्षति' पक्षियों और तिथियों के पक्षमूल (प्रतिपद) में स्त्री० । (८) 'श्रुति' श्रोत्रकर्म वार्ताओं में स्त्री० । (९) 'प्रकृति' लिङ्ग - योनि पौरवर्ग अमात्यादि स्वभावों में स्त्री० । (१०) 'धृति' धारणा - अध्वर तुष्टि योगान्तर धैर्य में स्त्री० । (११) 'गुप्ति' भू विवर रक्षा कारा (अवकर स्थान जहां कि कूडा कचरा डाले जाते हों) इन • अर्थो में स्त्री० । Page #316 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयकाण्डम् ३०३ नानार्थधर्गः ३ वनिता जातरागायां स्त्रियां स्त्री त्रिषु याचिते । वालुका 'सिकता भूम्नि कैशिक्यादिषु वृत्तयः ॥८२॥ रीति स्यन्द प्रचारादि रीति डिम्बाऽतिवृष्टिषु । प्राप्तिमहोदये लाभे जाति जन्मादिषु स्त्रियाम् ॥८३॥ अग्नि त्रये युगे त्रेता' 'भूतीरक्षादि संपदि । पुरी नद्यो रहे भोग-वतीनाहौ, "क्षितिः क्षये ॥८४॥ वासादौ समितिः संधे सभायां 'महती पुमान् । (१) 'वनिता' दर्शिता अत्यन्ता अनुरागा स्त्री और स्त्री में स्त्री०, याचित अर्थ में त्रि० । (२) 'सिकता' सिकतिल में स्त्रो०, वालु का बहुवचनान्त । (३) 'वृत्ति' भरत शास्त्र प्रसिद्ध कैशिकी आरभटी भारती सात्वती ए चार वृत्तियां हैं जिन पर नाटय शास्त्र प्रतिष्ठित हैं, विवरण जीव्य में भी है, वैयाकरण तो कृत् तद्धित समास एकशेष सनाद्यन्त धातुरूपों को कहते हैं स्त्री० । (४) 'रोति' प्रचार स्यन्द अरकूट लोहकिट में स्त्री० । (५) 'ईति' डिम्ब अर्थात् भयध्वनि पुष्कस प्लीहन् विप्लव और अतिवृष्टि अनावृष्टि मूषक शलभ शुक प्रत्यासन्न राजगण इन अर्थों में स्त्री० । (६) 'प्राप्ति' महोदय (अधिगम) लाभ में स्त्री० । (७) 'जाती' जन्म गोत्र मालतो सामान्य छन्द जातीफल आमलकी चुल्ली कम्पिल्ल में स्त्री० । (८) 'ता' अग्नित्रय (जठराग्नि वाडवाग्नि दहराग्नि) और युग में स्त्री०। (९) 'भूति' भस्म [रक्षा सम्पत्ति हस्तिशङ्गार में स्त्री० । (१०) 'भोगवती' नागपुरी और नदी अर्थ में स्त्री०, 'भोगवान्' सर्प में पु० । (११) 'क्षिती' क्षय क्षिति कालमेद निवास में बी० । (१२) 'समिति' संघ सभा में स्त्री० । Page #317 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयकाण्डम् ३०४ नानार्थवर्गः३ तत्त्वभेदे स्त्रियां वीणा भेदे माज्ये नपुंसकम् ॥८५॥ वृत्तेऽन्यलिङ्गं वृत्तं तु छन्दश्चारित्र वृत्तिमु । त्रिषु रूप्ये सिते हेम्नि रजतं सलिले घृतम् ॥८६॥ अमृतं कलधौतं तु रूप्य हेम्नोः कृत युगे। पर्याप्तेऽपि श्रृंत शास्त्रे चाऽवधारण कर्मणि ॥८॥ 'निमित्तं लक्षणे हेतौ रक्तं नील्यादि रागिणि। क्लीवं खगादि सवादी स्त्री करिण्योस्तु "वासिता 1८८॥ फल्गु न्यरोगयो वर्ति वृत्तौ वार्ता जनश्रुतौ । (१) महती' तत्वभेद में पु० [महान] है, वल्लकी वोणा] भेद में स्त्री०, राज्य प्राज्य में नपुं, श्रेष्ठ वृद्ध में विशेष्यलिङ्ग । (२) 'वृत्त' अधीत अतीत वर्तुल मृत वृत्त स्वीकृत] में पु०, और वृत्त में [सम्पन्न में अन्यलिङ्ग छन्द चारित्र वृत्ति में नपुं० । (३) 'रजत' रूप्य सित हेमन् रञ्जन शोणित हृद हार में त्रि०। (४) 'घृत' माज्य जल में नपुं०, प्रदीप्त में अभिधेयवत् यज्ञशेष पोयूष सलिल घृत अप जिन में चित मोक्ष में नपुं, और देव जिन धन्वन्तरी में अमृत में पु० । (५) कलधौत' सुवर्ण रजत में नपुं० । (६) 'कृत' युग पर्याप्त में नपुं०, विहित हिंसित में त्रि० । (७) 'श्रुत' शास्त्र और अवधृति में नपुं०। (८) निमित्त हेतु और लक्षण में नपुं० । (९) क' अनुरक्त नोल्यादि रखित लोहित में त्रि०, कुंकुम ताम्र प्राचीनामलक असृक् में नपुं। [१०] 'वासिता' खाराव ध्यानमात्र सुरभीकृत वस्त्रवेष्टित में नपुं, करिणी नारी में स्त्री० (स्वामोके मत से वाशिता' तालव्यान्त है] । (११) 'वार्ता' नीरुन नोरोगि वृत्तिमान् में पु०, फल्गु अरोंग में नपुं० वातिङ्गण वृत्ति जनश्रुति वार्ता कृष्णाधुदन्त में स्त्री० । Page #318 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - तृतीयकाण्डम् नानार्थवः बृहेती क्षुद्रवार्ताक्यां छन्दो वसनयोरपि ॥८९।। जीवाऽनपेक्षिकर्माऽत्याहितं यच्च महद्भयम् । भूतं जन्तु पिशाचादौ पुमान्देवे त्रिचिते ॥९॥ जनापवाद निर्वाद दुष्ट गहित वस्तूनि । अङ्कगीतस्त्रिषु श्वेत रूप्ये स्यादन्यवत्सिते ॥११॥ शुद्ध सितेऽवदातः स्यात्पीते बद्धार्जुनौ सितः। उत्थिता स्तुद्यतोत्पन्न वृद्धिमन्तः त्रिच्छ्रिता: ॥१२॥ प्रवृद्धोगद्ध संजाता "आदृतः सादरेऽर्चिते। मूच्छितो"मूढः सोच्छायो प्रतीतः ख्यातहृश्योः ॥१३॥ (१) 'वृहती' क्षुद्रवार्ता की (बैगन) कण्टकारि (मोरिङ्गिनी) वाकु वारिधानी (पानी की कोठो) महती छन्दोभेद वसनभेद में स्त्रो० । (२) 'अत्याहित' जीवानपेक्षिक्रम में महाभिति में नपुं० । (३) 'भूत' जन्तु पिशाचादिवमादि में नपुं०, देवयोनि विशेष में पु० , उचित प्राप्त वृत्त सम सत्य में त्रि० । (४) 'अवगोत' जनारवाद निर्वाद दुष्ट (दृष्ट) और गर्हितवस्तुओं में त्रि० । (५) 'श्वेत' द्वीपभेद आदिभेद में पु०, श्वेता'. वराटिका काष्ठ पाटला शंखिनी में श्रो०, शेतं' रूप्य में नपुं०, सित में अन्यत्रत् हैं । (६) 'अवदार' शुद अर्थात् निर्मल में श्वेत में पातमें त्रि० । (७) 'सित' अवसित अर्थात् बुद्ध बद्ध धवल त्रि०, शर्करा में स्त्री० । (८) 'उत्थित' प्रोद्यत उत्पन्न वृद्धिमान् में त्रि० । (९) 'उच्छ्रित प्रवृद्ध समुन्नद् संजात में त्रि० । (१०) आदृत' सादर व्यवहार में अर्चित अथांत सम्मानित में त्रि. । (११) 'मूञ्छित' मुढ और सोच्छाय में त्रि० । (१२) 'प्रतीत' ज्ञात प्रज्ञात हृष्ट सादर में त्रि० । २० Page #319 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीय काण्डम् ३०६ नानार्थवर्गः ३ विविक्तो' विजने पूतेऽभिजातः कुलजे बुधे । कृत्रिमे भूषिते रास्ते संस्कृतोऽप्यन्यलिङ्गकः ॥ ९४॥ पाणिन्यादि कृते सूत्रे क्लीबं युक्तेऽस्ति संस्कृते । मण्यिप्यभिनीतोऽथाऽनेन्तो निरवधौ त्रिषु ॥ ९५ ॥ निवासे ढ सन्नाहे निवातो वातवर्जिते । कृतेऽग्रतोऽभियुक्तानां पूजने वाऽग्रतः कृते ॥ ९६॥ पुरस्कृतोऽम्ल परुषौ तनुतेशु मुच्यते । साध्वभ्यर्हित' सत्येषु विद्यमान प्रशस्तयोः ॥९७॥ (१) 'विविक्त' असंपृक्त रहः पूत विवेकी में त्रि० । (२) 'अभिजात' कुलीन न्याय्य पण्डित में त्रि० । (३) 'संस्कृत' कृत्रिम भूषित शस्त (प्रशंसा योग्य) अर्थ में अन्यलिङ्ग है पाणिन्यादि कृत सूत्र में नपुं० । (४) 'अभिनीत ' युक्त अतिसंस्कृत म (मर्षि) में त्रि० । (५) 'अनन्त निरवधि में त्रि०, केशव शेष में पु०, विशल्या शारिवा दूर्वा कणा दूरालमा पथ्या पार्वती आमलकीं विश्वम्भरा गुडची में स्त्री०, सुखवहमें में नपुं० । (६) 'निवास' 'निवास दृढ़कवच वातवर्जित में पु० । (७) 'पुरस्कृत ' आदरणीयो में सर्वप्रथम आदर पाने वाले एवं शत्रुओं से लड़ने के समय में आगे लडने वाले अर्थ में त्रि० । (८) 'शुक्त आयुर्वेद प्रक्रिया से जब गुड सहद अम्ल परुष हो जाय तब उसका नाम शुक्त होता है नपुं० (मृन्मयादि शुचौ भाण्डे सगुडां क्षुद्रमाक्षिकं । धान्यराशौ त्रिरात्रस्थं शुक्तं चुक्रं तदुच्यते ॥ वैद्यकम् (९) 'सत्' साधु अभ्यर्हित सत्य विद्यमान प्रशस्त में साधु धीर प्रशस्त में पु०, मान्य सत्य विद्यमान में त्रि०, साध्वी में स्त्री० । Page #320 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतोयकाण्डम् ३०७ नानार्थवर्गः ३ सद भूजेंना 'शितिः श्वेते मेचके निशिते त्रिषु । मनापि स्फुटयो र्व्यक्तो दृष्टान्तस्तु निदर्शनम् ॥९८॥ शास्त्र क्षत्ता क्षत्रियायां शूद्राद् द्वाः स्थेऽपि सारथौ । हरौ हरे 'जिनेऽव्यक्ताऽजितौ मूर्तस्तु तक्षिणि ॥९९॥ भूपालभूधरौ भूभृत् स्त्रोपुष्पे मासयो ऋतुः । स्याद्भूपालेऽपि मूर्धाऽभिषिक्तो राजन्यमण्डले ।१०। स्थपति नर्ना सुतेः पुत्रे पार्थिवे तनया सुता । सूते हस्तिपके यन्ता भैा स्वामिनिना त्रिषु ॥१०१॥ (१) 'शिति' भूज में पु०, श्वेत मेचक निशित (काल अर्थात् सर्प में) त्रि० । (२) 'व्यक्त' मनोषि [मनोषिन) और स्कुट में त्रि० । (३) 'दृष्टान्त' निदर्श (उदाहरण) शास्त्र मरणमें पु० (४) 'क्षत्ता' (क्षत) शूद्र से क्षत्रिया में उत्पन्न को द्वारपाल को सारथि को भजिष्यातनय (दासीपुत्र) नियुक्त प्रजासूद को भी कहते हैं पु० । (५) 'अजित अव्यक्त' हरि हर जिन में पु०, अनिर्जित में त्रि०, महत् (महान) आदि आत्मा में नपुं०. अस्फुट में त्रि० । (६) सूत' सारथि तक्षा क्षत्रिय से ब्राह्मणीसुत में, बन्दी पारद में पु०, प्रसूत प्रेरित में त्रि० । (७) 'भूमृत्' से तृप अदि समझे जाते है पु० । (८) ऋतु स्त्रो पुष्प वसन्तादि दो दो महिने धोर में पु० । (९) 'मूर्धाभिषक्त' भूपाल में 'मन्त्री में क्षत्रिय में पु० । (१०) 'स्थपति' कञ्चुकी शिल्पिभेद में पु०, सत्तम [अतिश्रेष्ठ में त्रि० । (११) 'सुत' पुत्र में पार्थिव में पु० स्त्री अपत्य में 'सुता' तनया बोधक है स्त्रो० । (१२) 'यन्ता' [यन्त' हस्तिपक महावत सुत [सारथी] पु० । (१३) 'भर्ता' स्वामी अर्थ में पु०, पोष्टा (पोष्ट्र) धाता (धात) में त्रि० । Page #321 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयकाण्डम् ३०८ नानार्थवर्गः२ पोष्टधातोः, अथोयान पात्रे पोतः शिशावपि । मृते प्राण्यन्तरे प्रेतो हेस्तो भे-भकरादिषु । १०॥ केतु लक्ष्मपताकारु ग्ग्रहोत्पाताऽरिषु स्मृतः। उत्पातेऽग्नौ धूमकेतु जीमूतोऽद्रौ च वारिदे ॥१०३॥ तदेऽर्णवे सरस्वान् स्याद् गरुत्मान् तार्क्ष्य पक्षिणोः । भासे खगे शकुन्तोऽथ विवस्वान् देवसूर्ययोः ॥१०४॥ इति तान्ता माने सानुनि प्रस्थोऽस्त्री स्यादास्थाऽऽस्थानयत्नयोः। (१) 'पोत' यानपात्र छोटी नौका वहिन) शिशु गृहस्थान वासस् में पु० । (२) 'प्रेत' भूतान्तर में पु०, मृत में त्रि० । (३) 'हस्त' भ (नक्षत्र) इभकर हाथी के सूद] कर में सप्रकोष्ठकर में ऋक्ष आदि से भिन्न केश व्रात में पु० [ (४) 'केतु' लक्ष्म पताका रुज् ग्रह उत्पात अरि में पु० । (५) 'धूमकेतु' उत्पात ग्रहभेद अग्नि को कहते हैं पु० । (६) 'जीमूत' अदि धृतिकार देवताड़ देवताल] पयोधर [मेध] में पु०। (७) 'सरस्वान्' नद अब्धि में पु० रसिक में अन्यवत् वाणी स्त्री रत्न वाक् देवी गो नदी नदीभित् में स्त्री० । (८) 'गरुत्मान' पक्षी और गरुड में पु०। (९) शकुन्त' भास में अर्थात् भाः गोष्टकुक्कुट गध्र में और खग में पु० । (१०) 'विवस्वान्' देव में सूर्य में पु०, [विवस्वतपुर। का नाम 'विवरवता' स्त्री०, विवस्वदपत्य में वैवस्वती वैवस्वत: वैवस्वनम् त्रिलिङ्ग । इति तान्ता । (११) 'प्रस्थ' (एक सेर) म नभेद सानु उन्मितवस्तु में पुं० नपुं० । (१२) 'आस्था' आलम्बन आस्थान यत्न श्रद्धा में स्त्री Page #322 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयकाण्डम् नानार्थवर्गः३ रै प्रयोजनयो रौँ' निवृत्तावपि वस्तुनि ॥१०५॥ संबद्धार्थे च शक्तिस्थे समथस्स्याद्धितेऽपि च । तावन्तो नियमाः संघो भगवान् गौतमप्रभुः॥१०६।। आधो गणधरश्चातुर्वण्ये तीर्थङ्करस्तथा । अरिहन्ताऽपि तीर्थानि स्तुर्येऽन्येऽप्यागमादयः॥१०७।। दशमीस्थो नष्टबीजे वृद्धौ वीथी सरण्यपि । इति थान्ताः । जीमूतवत्सरावब्दौ सूदस्तु व्यजने त्रिषु ॥१०८॥ वशाऽभिप्राययोश्छन्दो दायादो बन्धु पुत्रयोः । गोष्ठाध्यक्षोऽपि गोविन्द प्रसादोऽनुग्रहादिषु ।।१०९।। त्रातर्याक्रन्दे आरावे दारुणे रुदिते रणे । (१) 'अर्थ' विषय याचना रै (धन) कारण दस्तु, शब्दों का अभिधेयार्थ निवृत्ति प्रवृत्ति में पुं० । (२) 'समर्थ' संबद्धार्थ में शक्तिस्थ में हित में त्रि० । (३) 'तीर्थ' नियम चतुर्विध संघ भगवान् गौतमप्रभु आदि गणधर चातुर्वर्ण्य तीर्थकर अरिहन्ता ए तीर्थ हैं और अवतार ऋषि जुष्ट (मिला हुआ) अम्बुपात्र उपाध्याय मन्त्री आगम गुरु में नपुं० । (४) 'दशमीस्थ क्षीणराग में वृद्धि में त्रि० । (५) 'वीथा' पङ्क्ति गृहाङ्ग रूपकान्तर वर्म में स्त्री० । इति थान्ताः । (६) 'अब्द' संवत्सर मेघ गिरिभेद मुस्तक (मोथा) पु० (७) 'सूद' सूप सूपकार व्यञ्जन में त्रिक। (८) 'छन्द' वश अभिप्राय में पुं० । (९) 'दायाद' बन्धु और पुत्र में पु० । (१०) 'गोविन्द' वासुदेव गवाध्यक्ष बृहस्पति में पुं० । (११) 'प्रसाद' अनुग्रह काव्य प्राण स्वास्थ्य प्रसत्ति में पुं० । (१२) 'आक्रन्द' रक्षार्थ रक्षको को पुकारने में भयङ्कर संग्राम रोदन में पु० । Page #323 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयकाण्डम् नानार्थ वर्गः ३ तमोनुदोऽग्निचन्द्रार्कौ स्युस्तुयांशांऽह्नि रश्मयः ॥ ११० पौदा विश्रम्भ निन्दाऽऽज्ञा अपवादोऽथ गोष्पदम् । सेविते चाऽपि मानेऽथ ऋतु वत्सरयोः शत् ॥ १११ ॥ मन्दाः निर्भाग्य मूढाऽल्पाsपटवोऽतीक्ष्ण कोमलौ । मृदुः विशारदो विद्वत्प्रगल्भा वथाssस्पेदम् ॥ ११२ ॥ प्रतिष्ठा कृत्ययोः स्वदु मधुरे ष्टौ त्रिषु स्त्रियाम् । संविदे आजि क्रियाकार संभाषा ज्ञान नामसु ॥ ११३ ॥ ककुच्चैककुदं श्रेष्ठ वृषाङ्ग राजलक्ष्मसु । शब्दे वाक्ये पदे पाद चिह्नाऽपदेश वस्तुषु ॥ ११४ ॥ व्यवसाय श्लोकपाद त्राण स्थानेषु लक्ष्मणि । पदं क्लीase किरणे मेदिनी कृन्मते पुमान् ।। ११५ ।। ३१० (१) 'तमोनुद' अग्नि चन्द्र अर्क में पुं० । (२) 'पाद' चतुर्थाश अह्नि रश्मि में पुं० । ( ३ ) ' अपवाद' विश्रम्भ आज्ञा निन्दा में पुं० । ( ४ ) ' गोष्पदं' गोपद में गोपदाङ्कितभूगत (गाय के खुर के चिह्न) अवकाश में नपु० । (५) 'शरत्' ऋतु और वत्सर में स्त्रो० । (६) 'मन्द' निर्भाग्य मूढ अल्प अपटु अतोक्ष्ण स्वैर रोगी में त्रि०, हस्तिजात्यन्तर में शनि में पुं० । (७) 'मृदु' अतीक्ष्ण कोमल में त्रि० । (८) 'विशारद' सुप्रगल्भ (घृष्ट) विद्वान् में त्रि० । (९) 'आस्पद' प्रतिष्ठास्थान कृत्य में नपुं० । (१०) 'स्वादु' मधुर में मनोज्ञ में त्रि० । (११) 'संविद' समर क्रियाकार (क्रिया का नियम ) संभाषा ज्ञान नाम प्रतिज्ञा आचार संकेत तोषण में स्त्रो० । (१२) ' ककुद कुकुद ककुद' श्रेष्ठ (प्राधान्य) वृषाङ्ग राजलक्ष्म (नू) में पुं० नपुं० । (१३) 'पद' शब्द वाक्य पद पादचिह्न अपदेश वस्तु व्यवसाय श्लोकपाद त्राण स्थान लक्ष्म (चिह्न) में नपुं०, मेदिनीकार के मत से किरण में पुं० । Page #324 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयकाण्डम् ३११ मदे आमोदवद् हर्षे रहस्युपनिषत् स्त्रियाम् । नानाथवर्गः ३ इति दान्ताः । ७ प्रत्यग्रेऽप्रतिभेऽपि स्था च्छीरद.... काय उन्नतौ ॥ ११६ ॥ उत्सेधो व्याम वटयो र्न्यग्रोधोऽथाऽवलम्बिते । अविदूरेऽप्यवष्टब्धः स्नुषा जाया स्त्रियो वधूः ॥११७॥ मधे क्षौद्रे पुष्परसे मध्वन्धे तु तमस्यपि । गर्विते पण्डितं मन्ये " समुन्नद्धोऽथ भूषिते ॥ ११८ ॥ ख्याते प्रसिद्धः " श्रद्धा" तु स्पृहा संप्रत्ययोः स्त्रियाम् । त्रिषु रम्येsपि साधु स्यात्प्रकारे च विधौ विधै ।११९ । सिन्धुर्नद" विशेषोऽब्धि देशोना स्त्री सरिद्यदि । (१) 'मद' आमोद के जैसे हर्ष में रेतस् कस्तूरी गर्व इमदान में पुं० । (२) 'उपनिषद्' विजन वेदान्त और धर्म में स्त्री० । (३) 'शारद' नूतन अप्रतिम (अप्रतिम) में पुं० । इति दान्ताः । (४) 'उत्सेध' काय उन्नति में पुं० । (५) 'न्यग्रोध' व्याम वट और शमीतरु में पुं० । (६) 'अवष्टब्ध' अवलम्बित अविदूर आक्रान्त में पुं० । (७) 'वधु' स्नुषा जाया स्त्री में स्त्री० । (८) 'मधु' नोर क्षीर मध क्षौद्र पुष्परस में नपुं०, दैत्य चैत्र वसन्त जीवकोश मधुद्रुम में पुं० । (९) 'अन्ध' तमस् अर्थात् तिमिर में । नपुं०, चक्षु होन में त्रि० । (१०) 'समुन्नद्ध' समुद्भूत दृप्त पण्डितं मन्य में त्रि० । (११) 'प्रसिद्ध' भूषित तथा ख्यात में त्रि० । (१२) 'श्रद्धा' स्पृहा संप्रत्यय ( आदर ) में स्त्री० । (१३) 'साधु वाधुषिक (सद से जीविका वाला) रम्य ( चारु मनोज्ञ सुन्दर ) सज्जन में त्रि० । (१४) 'विधा' गजान्न (हाथी के खोराक ) ऋद्धि प्रकार वेतन विधि में स्त्री० । (१५) 'सिन्धु' नद विशेष, अब्धि देश (विश्व कोश के मत से 'इभदान' मेदिनी कोश के मत से 'वमथु ' Page #325 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सृतीयकाण्डम् ३१२ नानार्थवर्ग:३ स्कन्ध स्तरू प्रकाण्डादौ स्नुही लेपोऽमृतं सुधा १२० मर्यादायां प्रतिज्ञायां संधाऽथ प्रार्थने चरे। प्रणिधि बुध वृद्धौ च पण्डितेऽप्यधि विले ॥१२१॥ परिच्छेदे 'विधि दैवे विधानेऽपि 'विधुर्हरौ। सोमेऽश्वभारयोः पर्याहारे "विवधवीवधी ॥१२२॥ बन्धे विनश्वरे दोषोत्पादे मुख्याऽनुयायिनि । बाले च प्रकृतस्याऽऽस्ते "योऽनुबन्धोऽनिवर्तने ॥१३॥ अर्थात् वमन गजकर शीकर में पुं०, सरित् (नदी) में स्त्रो० । (१) 'स्कन्ध' तरु प्रकाण्ड काय मद्रादि छन्दो भेद संपरा य (संसार युद्ध) समुदाय (समूह) अंस नृपति में पुं० । (२) 'सुधा' स्नुही (थुहर) टेप (रूण्डिका चूर्ण) अमृत में स्त्री० । (३) 'संधा' प्रतिज्ञा मर्यादा में स्त्री० । (४) 'प्रणिधि' प्रार्थना चर में पुं०, (अवधान में भी) । (५) 'बुध' चन्द्रसुत में पुं०, पण्डित में त्रि० । (६) 'वृद्ध' जीर्ण प्रवृद्ध ज्ञ में त्रि० । (७) 'भवधि' अवधान सीमा का अर्थ 'अण्डकोश' भी है काल बिल में पुं० । (८) 'विधि' नियति काल विधान परमेष्ठी (ष्ठिन् ) में पुं० (विरही को व्यथित करने वाला) । (९) 'विधु' शशाङ्क कपुर हृषीकेश राक्षस में पुं०। (१०) 'विवध वीवध' स्कन्धवाह्य काष्ठ जिस में दोनो ओर शिक्ये बंधे हों ऐसी जो (विहंगिका भारयष्टि) जिसे हिन्दी में 'कावड़' कहते हैं ऐसे पर्याहार में और पर्याहार संबन्धित मार्ग में भार में पुं० । (११) 'अनुबन्ध' बन्ध में विनश्वर में दोषोत्पाद में मुख्याऽनुयायी बाल में प्रकृत के अनिवर्तन में पु० । Page #326 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीय काण्डम् ३१३ नानार्थवर्गः ३ ...... स्याद् यज्ञियतरोः शाखा पेरिधिश्चोपसूर्यकम् । समाधिर्ध्यान नीवाक नियमेषु समर्थने ॥ १२४॥ प्रत्याशा बन्धके चित्त पीडा व्यसनयोः पुमान् । अधिष्ठाने स्थितश्चाऽऽधिः इति धान्ताः । पैत्री तु शरपक्षिणौ ॥१२५॥ ' हयनोऽचि व्रीहि वर्षों पक्ष्यश्व वाजिनः स्मृताः । " शिखरी तरु शैलैस्त साद्य श्वारोह सारथी ॥ १२६ ॥ अभिपन्नोऽपराद्धाऽभिद्रुतग्रस्त विपद्गताः । अधिष्ठानं प्रभावाऽध्यासन चक्रपुरेष्वपि ॥ १२७॥ ! तैलिनं स्तोकविरलौ वेनें कानननीरयोः । स्वश्रेष्ठेऽपि मणौ रत्नं संस्थानं स्याच्चतुष्पथे ॥ १२८ ॥ (१) 'परिधि' यज्ञिय तरु की शाखा में उपसूर्यक में पु० । (२) 'समाधि' ध्यान नीवाक नियम समर्थन और काव्य के गुणान्तर में पु० । (३) 'आधि' प्रत्याशाबन्धक चित्तपीडा व्यसन अधिष्ठान में पु० । इति धान्ताः । ( ४ ) ' पत्री ( पत्रिन्) ' श्येन रथ शर गाधिष्ठित तरु रथिक अद्वि में पु० । (५) 'हायन' अद्व में पु० नपुं०, अर्चिष् (रश्मि ) व्रीहि (वर्ष में एक बार फलनेवाला धान्य) में पु० । ( ६ ) 'वाजिन्' अश्व बाण पक्षी में पु० । ( ७ ) 'शिखर' (रिन) तरु में पर्वत में पु० । (८) 'सादी (न्) ' अश्वारोही सारथि में पु० । (९) 'अभिपन्न' अपराद्ध अभिद्भुत ग्रस्त विपत में पु० । (१०) 'अधिष्ठान' प्रभाव अध्यासन रथाङ्ग (चक्र) पुर (नगर) में नपुं० । (११) 'तलिन' स्तोक विरल और स्वच्छ में नपुं० । (१२) 'वन' कानन नीर निवास निलय (कुलयघर) में त्रि० । (१३) 'रत्न' स्वजातिश्रेष्ठ में मणि में नपुं० । (१४) 'संस्थान' चतुष्पथ संनिवेश मृत्यु आकृति में नपुं० । Page #327 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतोयकाण्डम् ३१४ नानार्थवर्गः३ आकृत्यां सभिवेशे च मरणेऽप्यथ लक्ष्म च । चिह्न प्रधानयो नि बहिणौ शिखिनौ मतौ ॥१२९॥ विरोचैनोऽग्निश्चन्द्राऽकौं ग्रावा प्रस्तरपर्वतौ । प्रतियत्नस्तु संस्कारो लिप्सोपग्रह एव च ॥१३०॥ केशेना वृजिनो जन्म भूम्यामभिजनः कुले । ऋदैन रोदनाऽऽह्वाने सूनाऽधो जिहिकादिषु ॥१३॥ वेदाविप्रस्तपस्तत्वं ब्रह्मब्रह्मा प्रजापतिः। तनुस्त्वकाययोः क्रीडा व्यवसायादि देवनम् ॥१३२॥ कृत्ये निमन्त्रणे केतौ केतन भीरु वन्दयोः। (१) लक्ष्म (न्)' चिह्न और प्रधान में नपुं० । (२) 'शिखी (न्)' वह्नि मयूर बलोवर्द शर केतुग्रह द्रुम कुक्कुट में पु०, और अन्य शिवानों में त्रि० । (३) 'विरोचन' अग्नि चन्द्र अर्क (सूर्य) और प्रह्लादपुत्र (बलि) में पु० । (४) 'ग्रावा (न्)' प्रस्तर (पत्थल) पर्वत में पु० । (५) प्रतियत्न' संस्कार लिप्सा उपग्रहण में पु० । (६) 'वृजिन्' केश में पु०, कल्मष में नपुं०, कुटिल में त्रि० । (७) 'अभिजन' जन्मभूमि कुल ख्याति कुलवन में पु० । (८) 'दन' रोदन में आह्वान में नपुं० । (९) 'सून' प्रसव पुष्प में नपुं० , 'सूना' पुत्री वधस्थान निहातल में स्त्री० । (१०) ब्रह्मन्' वेदतत्त्व तपस्या में नपु०, 'ब्रह्मा' वेधा ऋत्विक योगभित् में पु० । (११) 'तनु' त्वक् (त्वचा) देह में स्त्रो० (अल्प विरल कृश में त्रि० । (१२) 'देवन' कीडा व्यवसाय (व्यवहार) जिगीषा में नपुं०, अक्ष में पु० । (१३) 'केतन' कार्य ध्वज निमन्त्रण निवास में नपुं० । Page #328 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीय काण्डम् नानार्थवर्ग:३ कामिनो वज्र तडितो हादिन्यथ च वाहिनी ॥१३३॥ सैन्यं तरङ्गिणी सेना मूर्ख नीची पृथग्जैनः । चित्रभानुस्तु सूर्यऽग्नौ भानू रश्मि दिवाकरः ॥१३४॥ भूतात्मा धातृदेहौस्तो वाऽक्षिच्छद्रमार्गयोः । ग्रहदेहः प्रभावस्त्विइ धामानि पिशुनः खले ॥१३५।। गुहयेऽकार्येऽपि कौपीनं क्षणे पर्व तिथापि । अवकाशे स्थितौ स्थान निर्धेनं कुलनाशयोः ॥१३६॥ (१) कामिनो' भीरु और वन्दा (अर्थात् वृक्ष विशेष अथवा विदारीकन्द) में स्त्रो०, कामुक चक्रवाक पारावत् में पु० 'कामी' । (२) 'हादिनी' वज्र और विद्युत् में स्त्री० । (३) 'वाहिनी' सैन्य तरङ्गिणी (स्रवती) सेना मे स्त्रो० । (३) 'पृथग्जन' (पृथकृगेजन) मूर्ख नोच में पु०। (५) 'चित्रभानु' सूर्य वह्नि में पु० । (६) 'भानु' रश्मि दिवाकर में पु० । (७) 'भूतात्मा' धाता देह में पु० (८) 'वर्ल्स' नेत्रच्छद मार्ग में नपुं० । (९) 'धामन्' गृह देह (जम्न) प्रभाव (शक्ति) स्विट (तेजस्) में नपुं०। (१०) 'पिशुन' कपिवक्र काक में पु०, पृक्का में स्त्री०, कुङ्कुम में नपुं०, खल और सूचक (चुगलखोर) में त्रि० । (११) 'कौपान' गुह्यचीर अकार्य में नपुं० । (१२) 'पर्व' उत्सव प्रन्थि प्रस्ताव विषुव आदि अमावस्या और प्रतिपद का संधि तथा तिथिपञ्चकान्तर अर्थात् चतुर्दश्यष्टपी अमावस्यच पूर्णि: । इन अर्थों में नान्त नपुं० । (१३) स्थान' वृद्धि क्षयेतर सादृश्य अवकाश स्थिति में नपुं०, उचित अर्थ में अव्यय । (१४) 'निधन' कुल नाश में नपुं० । Page #329 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयकाण्डम् ३१६ नानार्थवर्गः ३ उधान वनभेदः स्या निःमृतिश्च प्रयोजनम् । समानः सत्समैकेषु तरैस्वी वेगि शूरयोः ॥१३७॥ साधनाऽवाप्ति तोषष्वाराधन बुद्धिचिह्नयोः । प्रज्ञानमभिमानस्तु दर्प प्रणयहिंसयोः ॥१३८॥ पुस्तकाऽऽहव तन्त्रेषू त्यानं पौरुषेऽपि च शक्र धातुकमत्तभ वषुकाब्दा घनाघनः ॥१३९॥ दाने न्यासार्पणेऽरीणां शुद्धौ निर्यातनं स्मृतम् । व्यसनं भ्रंश विपदो दोषे कामजकोपजे ॥१४॥ मेधे निरन्तरे मूर्ति गुणे मूर्ते धनस्त्रिधु । (१) 'उद्या।' वनभेद निः सृति प्रयोजन में नपुं० । (२) 'समान' मत् सम एक में त्रि०, नाभि वायु में पु०। (३) 'तरस्वी' वेगवान् भर में त्रि० । (४) 'आराधन' माधन अवाप्ति तोषण में नपुं० । (५) 'प्रज्ञान' बुद्धि और चिह्न में नपुं० । (६) 'अभिमान' अर्थ आदि के दर्प में अज्ञान प्रणय हिंसा में नपुं० । (७) — उत्थान' तन्त्र में अर्थ त् कुटुम्ब कृत्य मिद्धांत औषधोत्तम प्रधान तन्तुवाय (तन्तुवान) शस्त्रभेद परिच्छद श्रुतिशाखांतर उभयार्थप्रयोजक हेतु में पुस्तक रण में (मेदिनीकोष के मत से प्राङ्गण उद्गम हर्म्य मलवेग में) नित्य नपुं० । (८) 'धनाघनः' शुक्र घातुक मत्तेभ (पागल हाथी) वर्ष काब्द अर्थात् वर. सनेवाला बादल अथवा संवत्सर में पु०, (धरणि कोषने अन्योन्य घट्टन और धातुक में ही 'धनाधन' है ऐसा माना है) । (९) 'निर्यातन' दान में न्यासापर्ण में वैरशुद्धि में नपुं० । ( १० ) 'व्यसन' भ्रंश में अर्थात् अधः पतन में दैवानिष्ठ फल में निष्फलोद्यम में पाप में अशुभ में सक्ति में कामजदोष मृगया धूत पानादि में कोपजदोष वाक्पारुष्य दण्डपारुष्य अर्थ दूषण आदि में नपुं। Page #330 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयकाण्डम् नानार्थवर्गः ३ विरोधाऽऽचरणेऽपि स्याद् व्युत्थानं प्रतिरोधने ॥१४१॥ सूर्ये 'प्रभाविनो राजा नृपे क्षत्रिय सोमयोः । सूचनोत्साह हिंसासुगन्धनं सुरर्शािल्पनि ॥१४२॥ सूर्ये च 'विश्वकर्माऽथ वर्मदेहप्रमाणयोः । ‘परमात्मनि बुद्धौ च प्रधानं मद्तुच्छयोः ॥१४३॥ वितानं त्रिषु विस्तार क्रत्वोन "साधनं गतौ । मारणे मृतसंस्कारे द्रव्योपपादनेऽपि च ॥१४४॥ "आतञ्चनं प्रतीवापे वेग तर्पणयो रथ । (१) 'घन' निरन्तर (सान्द्र) मूर्तिगुण (काठिण्य संघात) मूर्त (मूर्छाल) मेघ मुस्त विस्तार लोह मुद्गर में त्रि० । (२) 'व्यूत्थान' विरोधाचरण में प्रतिरोध में स्वतन्त्रता में नपुं० (विरुद्धमुत्थानम्)। (३) 'इन' सुर्य नृप पति में पुं० । (४) 'राजा' (न्) नृप क्षत्रिय चन्द्र प्रभु यक्ष शक में पुं० । (५) 'गन्धन' सूचन उत्साह हिसा प्रकाशन में नपुं० । (६) विश्वकर्मा (न्) सुरशिल्पी सहस्रांशु (मुनिभित) में पुं। (७) 'वर्म' देह प्रमाण अति सुन्दराकृति में नपुं० । (८) 'प्रधान' महामात्र प्रकृति परमात्मा प्रज्ञा में नपुं, उत्तम में तो एकवचनान्त ही होता है। (९) 'वितान' यज्ञ उल्लोच विस्तार में पुं नपुं वृत्तविशेष में नपुं, मंद में तुच्छ में त्रि. (१०) 'साधन' गतिमारण मृतसंस्कार सैन्य सिद्धौषध निर्वतन उपाय मेढ़ दापन अनुगम धनोपपादन में नपुं० । (११) 'आतञ्चन' दध्यादिभाव हेतुक दुग्धादि में तकादि प्रक्षेप अथवा निक्षेत्र मात्र को संज्ञा प्रतीवाप है प्रतीवाप में जवनवेग में आप्यायन तर्पण में नपुं० । Page #331 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयकाण्डम् ३१८ नानार्थवर्ग:३ 'आत्मा बुद्धौ धृतौ यत्ने स्वभावे ब्रह्मवर्मणोः ॥१४५ आच्छादनं संपिधाने वस्त्रेऽपवृति मात्रके । कौलीनमपवादेऽपि पशु पक्ष्य हि योधने ॥१४६॥ व्यन्जनं श्मश्रु निष्ठानाऽवयवेष्वपि लान्छने । किन्जलकेऽणा वक्षि लोमिन "पक्षमाऽथ सङ्गतौ रते ।१४७ मथुनं वाणिनी दूती नर्तकी फलपुष्पयोः । "प्रसूनं न्यून हीनेस्त ऊने गहथे........इति नान्ताः । ...............ऽथकच्छपी" ॥१४८॥ का वीणा प्रभेदेऽग्नि रीशविष्ण वृषाकपिः । (१) आत्मा (न्) वृद्धि धृति यत्न स्वभाव ब्रह्म परमात्मा वर्म कलेवर चित्त में और व्यावर्तन में पुं० । (२) 'आच्छादन' संपिधान वस्त्र अपवृतिमात्र में अर्थात छुपने छुपाने के साधनों में नपुं०। (३) 'कौलीन' लोकवाद में पशु अहि पक्षियों के युद्ध में नपुं० । (४) 'व्यञ्जन' निष्ठान अर्थात् तेमन (व्यजन) में श्मश्रु के अवयव में चिह्न में नपुं० । (५) पक्षम' सूत्रादि सूक्ष्मांश में किंजल्क [केसर में अक्षिलोम में नपुं० । (६) 'मिथुन' संगत [संबन्ध में सुरत युग्म में राशि में नपुं० । (७) 'वाणिनी' नर्तकी दूतीमत्ता अथवा विदग्धा स्त्री में स्त्र ०, वाणिनी और वाहिनो शब्द मेदिन्य दि कोष में पवर्गीयादि हेमकोश में अन्तस्थादि देखे जाते हैं । (८) 'प्रसून' फल और पुष्प में नपुं० । (९) 'न्यून' तथा हीन गद्य और ऊन में नपुं० । इति नान्ताः । (१०) 'कच्छपी' डुलि वल्लकी भेद क्षुद्रगदान्तर छोटी गदा] में स्त्री० । [११) 'वृषाकपि' जातवेदाः [अग्नि] शंकर विष्णु में पु० । Page #332 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सृतीयकाण्डम् ३१९ नानार्थवगेः ३ कलापोबर्ह तूणीर भूषणेषु च संहते ॥१४९।। प्राप्तरूपोऽभिरूपःस्वरूपो बुध मनोज्ञयोः । गोधुग गोष्ठपतिगोपः परीवापस्त्वपां स्थितिः ॥१५०॥ परिच्छदे च पर्युप्तौ विटेंप: पल्लवेऽपि च । शय्याऽद्यालकदारेषु तल्पमाच्छदनाऽन्नयोः ॥१५१॥ कशिपुर्न स्त्रिया मूष्माऽश्रुणीवाष्पं ................ इति पान्ताः । ............................रवर्ण के। इति फान्ताः । ना कुत्सितेऽन्यवद् रेफेः................ ..................."कम्बुवलय शंखयोः ॥१५२॥ (१) 'कलाप' बर्ह तुणोर भूषण [काञ्ची] संहति में पु० मेदनी कोष की विशेषता है कि चन्द्र विदग्ध व्याकरण में कहा है । (२) 'प्राप्तरूप' अभिरूप स्वरूप बुध और मनोज्ञ में त्रि० । (३) गोपः [गोपाः] गोष्ठपति [गोशाला के स्वामी गोदोग्धा [गाय दूहने वाला गोपाल में पु० । (४) 'परीवाप' जलस्थिति परीच्छद [परिवार] पर्युप्ति में पु० । [५] विटप' स्तम्ब शाखा विस्तार पल्लव [अल्प जलाशय] पु० नपुं, विटाधिप में पुं० । (६) 'तल्प' शय्या भट्टालक दारा में पु० नपुं० । (७) 'किशिपु' आच्छादन अन्न [भक्त में पु० नपुं० । (८) 'बाष्प' ऊ म अश्रु में नपुं० [अमर हैम भी स्पर्शादि ही मानते हैं । गोवर्धनाचार्य ने मेदिनी कोष के आधार पर 'वाष्प पर्याकुलम्' ऐसा अन्तस्थ वकार रक्खा है। इति पान्ता । (९) 'रेफः' रवर्ण में पु०, कुत्सित में त्रि० । इति फान्ता । (१०) कम्बु' वलय गज शम्बूक में पु०,शंख में स्त्री० । Page #333 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयकाण्डम् ३२० नानार्थवर्गः ३ पुंस्कोकिलेऽपि गन्धर्वः खेवरे दिव्यगायने । अन्तराभवसत्त्वेऽश्वे द्विजिहः सर्पसूचकौ ॥१५३॥ पूर्बजे नरि भूम्नि स्युः पूर्व प्रागग्रत स्त्रिषु । त्रिषु विक्रम होने स्याकोब पण्ढे पुमानपि ॥१५४।। इति बान्ताः बालिशो वा शिशुडिम्भः सभा सभ्येऽपि संसदि । कुसुम्भः करके क्लीवं स्यान्महारजनेऽपि च ॥१५५॥ कुम्भो घटे भ मूनों नी शम्भु ब्रह्माऽईतोः शिवे । कुक्षे भ्रणेऽभके गर्मों "विसम्भः प्रणयादिपु ॥१५६॥ (१) 'गन्धव' पुंस्कोकिल खेचर दिव्यगायन अन्तराभवसत्व अश्व पशुभेद में पु० । (२) 'द्विजिह' सर्प में सूचक [चुगलखोर विशेष्यलिङ्ग । (३) ' पूर्वन में पु० बहुव बनान्त है, 'पूर्व' प्राक् अग्रत में त्रि० । 'कलीबं विक्रम हान में त्रि० षण्ढ में पु० नपुं० । इति बा.न्ता । (५) 'डिम्भ' बालिश अज्ञ और शिशु में पु० । (६) 'सभा' सामाजिक गोष्टि चूत मन्दिर में स्त्री० । (७) 'कुसुम्भ' करक अर्थात् पक्षिविशेष दाडिम एला (इलायची) मेघोपळ करङ्क कमण्डलु में पु०, महारजन में हेम में नपुं० । (८) 'कुम्भ' घट इभमस्तक राशिभेद वेश्यापति कुम्भकर्णसुन में पु०, त्रिवृत् अर्थात् शुक्ल त्रिधारा में गुग्गुल में नपुं० । (९) 'शंभु' महादेव परमेष्ठी अर्हत् विष्णु में पु० । (१०) 'गर्भ' कुक्षि भ्रूण अर्भक सन्धि पनसकण्टक में पु० । (११) 'विसम्भ' के ल कलह विश्वोस प्रणय वध में पु० (अमरमाला कोष ने परिचय प्रार्थना में भी माना है)। Page #334 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२१ ............. तृतीयकाण्डम् नानार्थवर्गः ३ स्त'म्भः स्थूणा जडीभावः स्त्रियान्तु सुरभिवि । 'दुन्दुभिः पुंसि भेर्या स्यात्स्यक्षे बिन्दु त्रिकद्वये१५७ बल्लभो दयिताऽध्यक्ष सल्लक्षण तुरङ्गमाः । क्षत्रियेऽपि पुमान्नाभिः....... इति भान्ताः । ............... रश्मिः किरण प्रग्रहौ ॥१५८॥ परिभुक्तोज्झिते जीणे यातयाम ‘प्लवंगमः। कपि भेको हरिकृष्णौ श्यामः स्त्री शारिवा निशा । वृन्दे स्तोत्रेऽध्वरे स्तोमः शौयों द्योगौ "पराक्रमः । (१) 'स्तम्भ' गृहस्तम्भ स्थूणा सूर्मी जडीभाव में पु० । (२) 'सुरभि शल्लकी (साही सेली)मातृभूमि गो सुरगो में स्त्री०, चम्पक वसन्त जातीफल विख्यात सचिव धीर चैत्र में पु०, स्वर्ण गन्धोत्पल में नपुं, सुगन्धिकान्त में त्रि० । (३) 'दुन्दुभि' वरुण दैत्य मेरी में पु०, अक्ष बिन्दु त्रिकद्वय में नपुं० (दुन्दुभ्या खलु तत्कृतं पतितया यद् द्रौपदी हारिता) । (४) 'वल्लभ' दयित अध्यक्ष सल्लक्षणतुरङ्गम में त्रि० । (५) 'नाभि' मुख्यनृप चक्रमध्य क्षात्रय में पु०, प्राणि प्रतीक में पु० नपुं०, कस्तूरिकामद में स्त्र'. । इति भान्ताः । (६) 'रश्मि' किरण प्रग्रह (पक्ष्म) में पु०। (७) 'यातायाम' परिभुक्तोज्झित में जीर्ण में त्रि० । (८) 'प्लवंगम' कपि भेक में पु० । (९) 'श्याम' प्रयागवट वारिद वृद्धदारक पिक हन्त् िकृष्ण में पु०, तद्वान् में त्रि०, सिन्धु लवण में नपुं०, शरिवा अप्रसूताङ्गना प्रियङ्गु यमुना त्रियामा कृष्ण त्रिवृतिका नोलिका में स्त्री० । (१०) 'स्तोम' वृन्द स्तोत्र अध्वर में पु० । (११) 'पराक्रम, सामर्थ्य शौर्य उद्योग में पु०। Page #335 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तीयकाण्डम् ३२२ नानार्थवर्गः३ मनोभवेच्छ योः कामो नैगमो निगमो वणिक ॥१६॥ ग्रामो वृन्देऽपि शब्दादि पूर्वः क्रान्ती तु विक्रमः । निगमा वणिक पथो वेदः पुरं स्वम कुलस्त्रियोः।।१६।। जामी रुक्सेनयोः स्तम्बे गुल्मः क्षान्तौ क्षितौक्षमा । अलसे कुटिले जिह्मो न्यूनेऽपि कुत्सितेऽधः ॥१६२।। क्षमः शक्ते हिते युक्ते वाम वल्गु प्रतीपयोः। रोमो बले नील चारु सितेऽपित्रिष्वुपक्रमः॥१६३॥ उपाय पूर्व आरम्भः उपधाऽथाऽध्यात्मकतवो। (१) 'काम' स्मर इच्छा में पु., रेतस् निष्काम काम्य में नपुं०। (२) 'नैगम' उपनिषद् वणिक् नागर में पु० । (३) 'ग्राम' स्वर संवसथ वृन्द शब्दादिपूर्वक में पु० । (४) 'विक्रम' शक्ति सम्पत्ति और कान्तिमात्र में पु० । (५) 'निगम' वणिपथ वेद कट पुरी वाणिज में पु० । (६) 'जामि' स्वसा कुलस्त्रो में स्त्री० । (७) 'गुल्म' स्तम्ब प्लीहा घट्ट सैन्य सैन्यरक्षण वल्ली वृक्षविशेष समूह में पु० । (८) 'क्षमाः क्षान्ति तितिक्षा] क्षिति [पृथ्वी] में स्त्री० । (९) 'जिम' अलस कुटेल में त्रि० । (१०) 'अधम' न्यून कुत्सित में त्रि० । (११) क्षम'शक्त में हित में युक्त में त्रि० । (१२) 'वाम' सव्य प्रतीप द्रविण अतिसुन्दर पयोधर हर काम में त्रि०, इसका स्त्रालिङ्गरूप 'वामा' ही होता है । 'वामी' तो शृगाली अश्वा रासभो करभी अर्थ में ही होता है । (१३) 'राम' पशुविशेष जामदग्न्य बलराम दाशरथि सित श्वेत मनोज्ञ में त्रि० । (१४) 'उपक्रम' चिकित्सा आरम्भ विक्रम उपधा में पु. । (१५), 'सुक्ष्म' अध्यात्म कैतव में नपुं०, अग्नि में पु०, अल्प में त्रि। Page #336 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - - तृतीयकाण्डम् ३२३ नानार्थवर्ग:३ "सूक्ष्म ललाम पुच्छाऽश्व भूषा प्राधान्यकादिषु।।१६४॥ ललाम धर्म आचार स्वभाव न्याय सोमपाः । प्रथमस्तु प्रधानादी................इति मान्ताः । ................वान्यो दातृ वाग्मिनाः ॥१६५॥ समुच्छयो विरोधेऽपि द्रव्यं भव्य गुणाश्रयो । तुरंगे गरुडे ताक्ष्यों मन्यु दैन्ये क्रुधि क्रतौ ॥१६६॥ समयः काल सिद्धान्त शयथाऽऽचारसंविदः । श्वशुर्यों देवरः श्यालः पर्यधपि प्रतिश्रयः ॥१६७॥ प्रेम विश्रम्भ याश्चासु प्रणयो यच्छुभाऽशुभम् । (१) 'ललाम [न] ललाम' प्रधान ध्वज शृङ्ग पुण्डू अर्थात् अश्वादि ललाट चित्र अश्वभूषा अश्व प्रभाव में नपुं० । (२) 'धर्म' आचार स्वभाव न्याय पुण्य उपमा क्रतु अहिंसा उपनिषद् में पु. नपुं०, धनुष यम सोमपमें पु० । (३) 'प्रथम' प्रधान आदि बोधक में विशेष्यलिङ्ग । इति मान्ताः । (४) 'वदान्य' दाता वाग्मी में त्रि० (५) 'समुच्छ्रय' वैर उन्नतो में पु० । (६) 'द्रव्य' द्रविण भव्य पृथिव्यादि पित्तल भेषज विलेप रीति जतु द्रुम विशेष में नपुं० । (७) 'तार्थ्य' तुरंग सर्प गरुडाग्रज गरुड में पु०, रसाञ्जन में नपुं० । (८) 'मन्यु' दैन्य क्रोधकतु शोक में पु० । (९) 'समय' काल सिद्धान्त शपथ आधार संविद (ज्ञानधो) क्रियाकार निर्देश संकेत भाषा में पु० (१०) 'श्वशुर्य' क्रमशः पति पत्नी देवर और श्याल में पु० । (११) 'प्रतिश्रय' आश्रय अभ्युपगम सभा में पु० । (१२). प्रणय' विश्रम्भ प्रेम याञ्चा प्रसर निर्वाण परिचय विश्वास विप्रलम्म में पु० । Page #337 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयकाण्डम् ३२४ नानार्थवर्गः ३ कर्म भाग्यं रहस्योप स्थयो गुइयं कलौ युगे ॥१६॥ पुष्ये तिष्यो विशल्यातु दन्तिका नाम शोभयोः । अभिख्या विषयो ज्ञातो यस्तु शब्दादिकेष्वपि॥१६९।। अग्न्यक्षस्थानगेहेषु "धिष्ण्यं शपथतथ्ययोः । सत्य कायो निर्यासे वीर्य बलप्रभावयोः ॥१७॥ स्थूलोस्चयस्त्व साकल्ये गण्डोपलकरण्डयोः । कक्ष्या प्रकोष्ठ मध्येभ बन्धकाचीषु मध्यमम् ॥१७॥ न्याय्ये हेप्यं प्रशस्तेऽपि रूपे पुण्यं तु चापि । (१) 'भाग्य' शुभाऽऽवह विधि में शुभाशुभ कर्म में नपुं० । (२) 'गुहय' रहस्य उपस्थ में नपुं०, कमठ दम्भ में पु० । (३) तिष्य' कलियुग पुष्य नक्षत्र में पुं०, 'तिष्या' घात्री में स्त्री । (४) 'विशल्या' दन्ती अग्नि शिखा (इन्द्रपुष्पी) गुडुची त्रिपुटा (छोटी इलायची) में स्त्री० । (५) 'अभिख्या' नाम (अभिधान) शोभा यश में स्त्रो० । (६) 'विषय' गोचर देश जनपद (जनावास) जिसके प्रबन्ध से जो ज्ञात होसके उस रूपादिक में पु० । (७) 'धिष्ण्य' अग्नि ऋक्ष स्थान गृह शक्ति में नपुं० । (८) 'सत्य' सत्ययुग शपथ तथ्य में नपुं० तद्वान् में त्रि० । (९) कषाय' रसभेद अङ्गराग विलेपन निर्याप्त में पु० नपुं., सुरभि लोहित् में अन्यवत् । (१०) 'वीर्य' सामर्थ्य प्रभाव शुक्र तेज में नपुं. । (११) 'स्थूलोच्चय' असाकल्य गण्डोपलकरण्ड में पु.. (१२) 'बहती' अर्थात् क्षुद्रवार्ता की आदि में हादि प्रकोष्ठ में मध्ये भबन्धन अर्थात् हाथी का पेटकस में और काञ्ची में स्त्री. । (१३) 'मध्य' न्याय्य अवलग्न अन्तर अधम में त्रि. । (१४) 'रूप्य' आयत स्वर्ण रजत में नपुं., सुन्दर में त्रि. । (१५) 'पुण्य' मनोज्ञ में त्रि०, सुकृत धर्म में नपुं. । Page #338 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयकाण्डम् ३२५ नानार्थवर्गः३ अर्थानपेत आत्मज्ञोऽर्थः सौम्यं सुन्दरादिषु ॥१७२॥ वक्तव्यं कुलिटे होने कल्यः शज्जे निरामये । छायात्वना तपेऽपि स्यात्प्रतिबिंबायोषिताः॥१७३॥ जनवादेऽपि जन्योऽथ जयन्य श्चामेऽधमे । व्यसनेऽनिष्ट देवेपि विपद्यप्यनयः क्रमे ॥१७४॥ पैर्यायोऽवसरेऽप्येयः स्याद् वैश्य स्वामिनोरपि । त्रिषु क्रिया देवतयो भैये कृत्या धनादिमिः॥१७५॥ कशेरौ हेम्नि गांगेयं भ्रातृव्यो भ्रातृजे द्विषि । हिन्दी-(१) 'अर्थ्य' अर्थयुक्त आत्मवान् न्याय्य में त्रि०, शिला जतु में नपुं० । (२) 'सौम्य' सोमात्मज अनुप्र मनोज्ञ सोमदैवत में त्रि०, मृगशिरः शिरःस्थ पञ्चतारकः (इल्वला) में बहुवचन स्त्री० । (३) 'वक्तव्य' कुत्सित होन वंचनाह में त्रि० । (४) 'कल्य' प्रभात में नपुं०, वाक्श्रुति वर्जित सज्ज नीरोग दक्ष कल्याणवचन उपायवचन में त्रि०, मध में स्त्री०। (५) 'छाया' अनातप 'प्रतिबिंब सूर्यपत्नी में स्त्री० । (६) 'जन्यं' हट्ट जनवाद (परीवाद) संग्राम में नपुं०, 'जन्या' मातृवयस्या में स्त्री०, 'जन्यः' जनक में पु०, 'जन्य' उत्पाद्य जनित नवोढा ज्ञात भृत्य वस्निग्ध में त्रि । (७) 'जघन्य' चरम शिशन में नपुं०, अधम (निन्ध) में त्रि० । (८) 'अनय' व्यसन अनिष्टदेव विपत् में पु०। (९) 'पर्याय' प्रकार निर्माण अवसर क्रम में पुं० । (१०) 'अर्थ' स्वामी वैश्य में पु० । (११) 'कृत्या' क्रिया देवता धनादि भेद्य विद्विद विद्वान में त्रि० । (१२) 'गाङ्गेय' स्वर्ण कशेरु में नपुं०, भीष्म में धु० । (१३) 'भ्रातृव्य भातृज और हिट में पु० । Page #339 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयकाण्डम् ३२६ नानार्थवर्गः ३ भूमन्यन्तगमने प्रायः पूज्यस्तु श्वशुरादिषु ॥१७६॥ प्रत्ययः शपथज्ञानाऽधीन विश्वासहेतुषु । शब्दे रन्ध्रेऽथ संस्त्यायः संघात सनिवेशयोः ॥१७७॥ ध्वनन्मे घाऽब्दशब्देन्द्राः पर्जन्योऽतिक्रमेऽत्ययः । वृषापायी श्री गौरी वरी जीवन्तिकासु च ॥१७८॥ भवेदनुशयो द्वेषे पश्चात्तापाऽनुबंधयोः । आपदायति युद्धेषु संपरीयोऽथ संनयः ॥१७९॥ पश्चादवस्थायि बले समवायेऽप्यथ क्षयः । निलयेऽपचयेऽपि स्यात्................इतियान्ताः । .............बल्यंशु पाणयः करैः ॥१८०॥ ध्वान्ताऽरी दानवो वृत्र आकार स्त्विगिताऽऽकृती । (१) 'प्रायः (स), अनशन मृत्यु बाहुल्य तुल्य में अव्यय । (२) 'पूज्य श्वसुर आदि श्रेष्ठ में त्रि. । (३) 'प्रत्यय' शपथ ज्ञान अधीन विश्वास आचार हेतु सन् आदि रन्ध्र शब्द में पु० । (४) 'संस्त्याय' संघात सन्निवेश विस्तृति में पु० । (५) 'पर्जन्य ध्वनन्मेघ मेघ-शब्द इन्द्र में पु० । (६) 'अत्यय' अतिक्रम कृच्छ उत्पात दोष नाश दण्ड में पु० । (७) 'वृषाकंपायी' श्री गौरी वरी जीवन्ति का में स्त्री० । (८) 'अनुशय' द्वेष पश्चात्ताप अनुबन्धन में पु० । (९) 'संपराय आपत् उत्तरकाल युद्ध में पु० । (१०) 'संनय पश्चादव स्थायो सेना और समवाय में पु० । (११) 'क्षय रोगान्तर वेश्मकल्प अन्त अपचय में पु० । इति यान्ताः । (१२) 'कर बलि अंशु पाणि (वर्षोपल प्रत्याय राजस्व शुण्ड) में पु० । (१३) 'वृत्र' प्रगाढाऽन्धकार अरि दानव शैलभेद मेघ में पु. । (१४) 'आकार इङ्गित (चेष्टा) आकृति (अवयवसंस्थान) में पु० । Page #340 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मन्द्राऽपि च हैरिनानेकर्ण विष्वपि तृतीयकाण्डम् ३२७ नानार्थवर्गः ३ कालेऽप्यजातशृङ्गोगौ रश्मश्रुर्नाऽपि तूबरः ॥१८१॥ यमेन्द्राऽर्काऽनिलाश्चन्द्र वाजि सिंहांशु विष्णावः । कप्यहीशुकभेकौ च हैरिर्ना कपिले त्रिषु ॥१८२॥ मात्रा परिच्छदे वित्त मानेकर्ण विभूषणे । तीथाषधि जलव्योम पद्मखड्ग फलेष्वपि ॥१८३॥ वाध भाण्डमुखे हस्ति हस्ताऽग्रे पुष्कर मतम् । अंग्र पुरस्तादुपरि परिमाणेऽप्यथो दरः ॥१८४॥ श्वभ्रे भयेऽक्षर मोक्षेऽपवर्गेऽप्यथ चाऽम्बरम् । व्योम्नि वाससि,गोत्रंतु नाम्नि,तन्त्रं परिच्छ दे॥१८५।। सूत्रवायेऽपि सिद्धान्ते प्रधाने चाऽथ गहरः । (१) 'तूबर' प्रौढ उमर में शींगहीन, पशुओं में, श्मश्रुहीन उमरवाले पुरुषों में कषायरस में पु० । (२) 'हरि यम इन्द्र अर्क अनिल चन्द्र वाजा सिंह अंशु विष्णु कपि अहि शुरु भेक में पु०, कपिल में त्रि० । (३) 'मात्रा' परिच्छद वित्तमान कर्ण. विभूषण अक्षरावयव स्वल्प में स्त्री०, कर्म्य अवधारण में नपुं० । (४) 'पुष्कर' तीर्थ औषधि जल व्योम कमल स्वङ्गफल वाद्यभाण्ड. मुख हस्तिहस्ताग्र (द्वीप विहग राग उरगान्तर) में नपुं० । (५) 'अग्र पुरस्तात् उपरि फलपरिमाण आलम्बन समूह प्रान्त में नपुं०, अधिक प्रधान प्रथम में त्रि० । (६) 'दर' श्वभ्र (गर्त) भय (साब्वस्) में नपुं०, 'दरी कन्दर में स्त्री०, 'दर मनाक् अर्थ में अव्यय । (७) 'अक्षर' मोक्ष अपवर्ग ओं में नपुं० । (८) 'अम्बर व्योम वस्त्र कार्पास सुगन्धक में नपुं० । (९) 'गोत्र' नाम कुल (संभावनीयबोध कानन क्षेत्र कर्म) में नपुं शैल में पु०, 'गोत्रा' भूमि गो में स्त्री० । (१०) 'तन्त्र' परिच्छद तन्तुवाय सिद्धान्त प्रधान कुटुम्बकृत्य औषधोत्तम शास्त्रभेद श्रुति शाखान्तर उभयार्थक हेतु में नपुं० । नपुं०, अधम में नपुर मोक्ष में नपुं० Page #341 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयकाण्डम् ३२८ नानार्थवर्गः ३ गुहा दम्भौ, सिते पीतेऽरुणे गौरोऽथ शार्वरम् ॥१८६ । घातुकेऽप्यन्धतमसे वज्रस्तु हीरके पवौ । मुस्तके पिठर" राज कशेरुणि च नागरम् ॥१८७॥ सत्रं वने सदादाने यशाऽऽच्छादनयोः रहः । उपहरं समीपेऽपि द्वारमात्रेऽपि गोपुरम् । १८८॥ मन्दिरं नगरेऽगारे पुरं च हल कोडयोः । मुख ग्रे पोत्र मौशीरं दण्ड स्वापाऽऽसनादिषु ॥१८९॥ (१) 'गहर' गुहा दम्भ निकुञ्ज गहन में पु० नपुं० । (२) 'गौर सित (विशुद्ध) पीत अरुण में त्रि. श्वेत सर्षप चन्द्र में पु०, 'गौरी' असंजातरजाः कन्या में शंकरभार्या, रोचनी रजनी पिङ्गा प्रियङ्गु वसुधा नदीविशेष सिन्धु पत्नी में स्त्री० । (३) शार्वर, घातुक अन्धतमस में त्रि० । (४) 'वज्र हीरक' पवि, त्रपु, वस्त्र में पु०, नपुं० बाधक धात्री में नपुं० । योगान्तर में पु०, 'वज्रा' स्नुही गुड्चो में स्त्री०, 'वज्री' स्नुहयन्तर में स्त्री० । (५) 'पिठर' मुस्ता मन्थानदण्ड में नपुं०, स्थाली में पु० । (६) 'नागर' कशेरू (पोठ की अस्तिओर घास) मुस्तक शुण्ढ। विदग्ध नगरोद्भव में त्रि० । (७) 'सत्र' वन सदादन यज्ञ आच्छादन कैतव में नपुं० । (८) 'उपह्वर' एकान्त समीप में नपुं० । (९) 'पोपुर' द्वार पर (कैवर्ती मुस्तक) में नपुं० । (१०) 'मन्दिर' नगर अगार में नपुं०, मकरालय समुद्र में पु० ।(११) 'पुर' शरोरगृहोपरगृह में नपुं०, गुग्गुल में पु०, नगर में नपुं०, 'पुरी' स्त्री० । (१२) पोत्र' हलमुखाग्र सुकरमुखाग्र (वस्त्रमुखाग्र) में नपुं० । (१३) 'औशीर दण्ड चामर शयन आसन में नपुं० । Page #342 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयकाण्डम् ३२९ नानार्थवर्ग: ३ प्रदेरो बाण नारी रुग् भङ्गा अस्त्राः क्वचित्कचाः । वंशांकुरे कॅरीरोऽस्त्री वृक्षभिद्धटयोश्च ना ॥ १९०॥ आश्चर्याssलेख्ययोचित्रं यात्रा गत्युत्सवादिषु । प्रमीला निद्रयो स्तन्द्रा स्याद् धात्री तूपमातरि ॥ १९९ ॥ सुराब्वग्भूष्विरी, कर्परांशेऽपि शेकरा वरः । त्रिषु देवाहते श्रेष्ठे क्लीं स्यात्तु मनाविप्रये ॥ १९२॥ "उदारस्तु महद्दात्री नीचाऽन्या वितरः स्मृतः । (१) 'प्रदर' बाण रोगभेद विकाय भङ्गा में पु०, । (२) 'अस्त्र' कोण क में पु०, अश्रुशोणित में नपुं० । (३) 'करीर' वंशाङ्कुर में पु० नपुं०, वृक्षमित् घंटे में पु०, 'करवीरा' चीरिका हस्तिदन्तमूल में स्त्री० । (४) 'चित्रा' आखुपर्णी (ओषधि) गोडुम्बा सुभद्रा दन्तिका माया सर्प नक्षत्र नदी भेद में स्त्री०, चित्रं 'तिलक आलेख्य कर्बुर अदभुत में नपुं०, तद्युक्त में त्रि०, चित्री झिल्ली में स्त्री० गोस्तन वस्त्रभेद रेखालि खननभेद में नपुं० । (५) 'यात्रा' यापनोपाय गति देवार्चनोत्सव में स्त्री० । ( ६ ) 'तन्हा' 'प्रमीला (नींद थकावट आदि) स्त्री० । ( ७ ) ' धात्री' उपमाता माता वसुमति आमलि में स्त्री । (८) 'इरा' सुरा अवाक भू में श्री. । (९) 'शर्करा' कर्परांश उपल ( पत्थल) खण्ड विकृति शर्करा - न्तित देश रुग्भेद [ रागभेद ] शकल में स्त्रो० || (१०) 'वर' जामाता वृति देवतादेराभिप्सितं षिद्ध में पु०, श्रेष्ठ में स्त्री०, कुंकुम में नपुं०, वरी शतावर में स्त्री०, 'वरा' त्रिफला में स्त्री०, मनाक् प्रिय में नपुं. । (११) 'उदार' महत् दाता में पु० दक्षिण (अर्थात् कुशल चतुर दक्ष) में त्रि० । (१२) 'इतर' नीच और अन्य में त्रि० । Page #343 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीय काण्डम् ३३० नानार्थवर्गः ३ बः स्यान्नकुले विष्णौ विपुले पिङ्गले त्रिषु ॥ १९३॥ प्रातीहारी प्रतीहारो द्वाःस्थे द्वार्यथ मैत्सरः । त्रिषु तद्वत्कृपणयोः शुभद्वेषे परस्य च ॥ १९४ ॥ परीवारैः खङ्गकोशे जङ्गमे च परीच्छदे | क्षुद्रा व्यङ्गा नटीकण्ठ कारिका सरघासु च ॥ १९५ ॥ क्षुद्रोऽधमेऽल्पेरेsपि कलत्रं श्रोणि भार्ययोः । आडम्बरः समारम्भे गजगर्जित तूर्ययोः ॥ १९६॥ द्यूतकारे पणे पुंसि द्यते क्लीवं दुरोदरम् । मुक्ता शुद्धौ पुमाँस्तारः शारो वायौ च कर्बुरे ॥१९७॥ अभिहारस्तु चौर्याsभियोग संहननेष्वपि । (१) 'बभ्रु' नकुल बिष्णु विपुल में पु० पिङ्गल में त्रि० (विश्वकोषकार कृशानु अजमेष मुनि शूली में भी माना हैं) । (२) प्रतीहारी प्रतीहार, द्वा: स्थ ( द्वारपाल ) द्वार में स्त्री० पु० । ( ३ ) 'मत्सर' मात्सर्य क्रोध परशुभद्वेष में पु०, अन्यशुभद्वेषवान् कृपण में त्रि० । 'मत्सरा' मक्षिका में स्त्री० । ( ४ ) ' परीवार' स्वड्ग कोश जङ्गम परिजन परिच्छद (उपकरण) में पुं० । (५) 'क्षुद्रा' व्यङ्गा (अङ्गहीना ) नटी वेश्या कण्ठकारिका सरघा चाङ्गोरो हिंस्रा मक्षिकामात्र में स्त्री०, अधम कल्प क्रूर कृपण में त्रि० । (६) 'कलत्र' श्रोणी और भार्या में नपुं० । (७) 'आडम्बर' समारम्भ गजगर्जित सूर्यघोष में पु० । (८) 'दुरोदर' द्यूतकार धूतपण में पु० द्यूत में नपुं० । (९) 'तार' मुक्तादि संशुद्धि तरण शुद्धमौक्तिक में पु०, रजत अत्युच्च स्वर में त्रि०, नक्षत्र नेत्रगोलक बालिपत्नी बुद्धदेवो में नो० । (१०) 'शार' वायु में पु०, कर्बुर (शबल) में त्रि० । (११) अभिहार चौर्य अभियोग संहनन में पु० । Page #344 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयकाण्डम् ३३१ नानार्थवर्गः ३ भवेत्प्रतिसरः पुंसि चमू जघनयोरपि ॥१९८॥ कौन्तारः स्यान्महारण्ये तथा दुर्गपथे स्त्रियाम् । गृह्येऽप्यवस्करो यूपखण्डे यज्ञे स्वरुः पुमान् ॥१९९॥ बल स्थिरांशयोः सारः क्लीबं न्याय्ये वरे त्रिषु । विटपि न्यासने दर्भमुष्टयां स्याद् विष्टरः पुमान्।।२००॥ संगरस्तु प्रतिज्ञाऽऽजि संविदापत्स्वेथो रवौ । मित्र: स्वर्णेऽपिराः स्त्रीणां स्तनौ वन्दः पयोधरः।।२०१॥ मैंन्त्रो गुह्यादिवादेऽथ क्षेत्र" पत्नी शरीरयोः । व्यासक्ताऽऽकुलयोर्व्यः स्वैरें: स्वच्छन्दमन्दयोः॥२०२॥ (१) 'प्रतिसर' चमू पृष्ठ मन्त्रभेद माल्य कङ्कण व्रणशुद्धि में पु०, मण्डल में पु० नपुं०, आरक्ष करसूत्र जघन्य अर्थात् नियोज्य में त्रि० । (२) 'कान्तार' अरण्यानी बिल दुर्गमार्ग में पु० नपुं०, इक्षुविशेष में पु० । (३) 'अवस्कर अवस्कार' वर्चस्क (विष्ठा) गुह्य में पु०। (४) 'स्वरु' यूपस्खण्ड यज्ञ भिदुर में पु० । (५) 'सार' बल स्थिरांश मज्जा (लज्जावद्राजवनमज्जा) मांस साराऽस्थि सारयोरिति भागुरे राबन्तोऽपि) में पु० न्याय्य जल धन में नपुं० वर में त्रि. 'शार' तो वायु में पु०, सबल में विशेष्यलिङ्ग । (५) 'विष्टर' विटपीदर्भमुष्टि पोठफल कादि आप्सन में पु० । (६) 'संगर' प्रतिज्ञा युद्र संविद् (अर्थात्-आचार ज्ञानयुद्ध संभाषण नियम संकेत नाम तोषण) विष आपत् में पु. शमीफल नपुं० । (७) 'मित्र' आदित्य में पु० सुहृद में नित्य नपुं० । (८) राः (रै) स्वर्ण वित्त में पु० । (९) पयोधर' स्तन मेघ नारिकेर कशेरु कोषकार में पु० । (१०) 'मन्त्र' वेदविशेष देवादिसाधन गुह्यवाद में पु० । (११) 'क्षेत्र' शरीर केदार सिद्धस्थान कलत्र में नपुं० । (१२) 'व्यग्र' व्यासक्त आकुल में त्रि० । (१३) 'स्वैर' मन्द स्वच्छन्द में पु० स्वैरी स्त्री० । Page #345 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीय काण्डम् ३३२ नानाथवर्गः ३ उद्दीप्त शुल्कयोः शुभ्रः क्रूरः कठिन निर्दयौ । पक्षेपि वाहने पत्र पात्रं भाजन योग्ययोः ॥२०३॥ स्वर्णेऽपि चन्द्रो भूरि कायेऽपि विषयेऽजिंरम् । जटाया मंशुके नेत्र शास्त्रं ग्रन्थनिदेशयोः || २०४ || देशोपद्रवोरख राष्ट्रं स्यात्क्षीरमप्सु च । rsssयो एकाग्रः स्यादनाकुलः ॥ २०५ ॥ उत्तरस्तू परिश्रेष्ठो दीच्येष्वन्यो ह्यनुत्तरः । त्रिं लोहाssयुधे क्लीवं पैरो दूरोत्तमाऽरयः ॥ २०६ ॥ (१) 'शुभ्र' उद्दीप्त शुक्ल में त्रि अभ्रक में नपुं० । (२) 'क्रूर' कठिन नृशंस (निर्दय ) घोर (भयङ्कर) में त्रि० । (३) 'पत्र' वाहन पक्ष शर पर्ण में नपुं० । (४) 'पात्र' भाजन योग्य तीरइयान्तर सुवादि पर्ग राजमन्त्री में नपुं० । (५) चन्द्र' कर्पूर काम्पि ल्य (कामिल) सुधांशु स्वर्ण चारु में पु० । (६) 'भूरि' वासुदेव हरे परमेष्ठी में पु० सुवर्ण प्राज्य में नपुं० । (७) अजिर काय विषय प्राङ्गण वात दर्दर में नपुं० चण्डी में त्रो० । (८) 'नेत्र' मथिग्रण वस्त्रभेद वृक्षमूल रथ चक्षुष में नपुं० नाड। नदा में खो० नेता में त्रि० । (९) 'शास्त्र' ग्रन्थ निदेश (आज्ञ ) में नपुं० । (१०) 'राष्ट्र' देश और उपद्रव में पु० नपुं० । (११) 'क्षीर' दुग्धजल में नपुं० । (१२) 'अधर' ओष्ठ में पु० हीन में अनुर्ध्व में त्रि० । (१३) 'एकार्ग' एकतान अता कुल में त्रि० । (१४) 'उत्तर' प्रतिवाक्य में नपुं० विराटतनय में पु० विराटननया में स्त्रो० उत्तरा ऊर्ध्व उदोच्य उत्तम में त्रि० । (१५) 'अनुत्तर' उत्तरविरुद्ध सर्वश्रेष्ठ अनुत्तर विमान में विशेष्यचिङ्ग । (१६) 'शत्रु' लोह आयुध में नपुं० ' शस्त्र' छुरिका में स्त्री० । (१७) 'पर' दूर उत्तम अरि उत्तर में पु० केवल में नपुं० । Page #346 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयकाण्डम् ३३३ नानार्थवर्गः ३ मेधुरो यः प्रियः स्वादु जेठरः कठिनेऽपि च । भेदे प्रकारः सादृश्ये द्वापर : संशये युगे ॥२०७॥ विशिखे श(स) स्य शुकेsपि किशारु गर्ति गुरुः । पर्यङ्के परिवारे वा वाते परिकरः स्मृतः ॥ २०८॥ अंद्रिरर्क दु शैलाः स्यु व्रणकारिण्य रुष्करः । farasat वा नामेरु गिरि धन्वनोः ॥ २०९ ॥ अन्तर्षि भेदतादर्थे च्छिद्राssत्मीय विना बहिः । मध्येsaकाशावसर परिधानान्तरात्मसु ॥२१० । अवधावन्तरं संस्तरोऽध्वरे प्रस्तरेऽपि च । इति रान्ताः । द्रु (१) 'मधुर' प्रिय स्वादु शोभन रस रसवत् विष में त्रि० । (२) 'जठर' कुक्षि बद्ध कक्खट (कठोल) में पु नपुं० । ( ३ ) 'प्राकार' भेद सादृश्य में पु० । ( ४ ) द्वापर युग संशय में पु० ; (५) 'किंशारु' शस्य शूक बाण कङ्कपत्री में पु० । ( ६ ) गीति ( गीष्पति) बृहस्पति में पु० । ( ७ ) परिकर वात पर्यङ्क परिवार प्रगाढ गात्रिकाबन्ध विवेक आरम्भ में पु० ( त्रिकाण्डशेष ने तो 'आरम्भ यत्न' को परिकर माना है) । (८) 'अद्रि' अर्क म शैल में पु० । ( ९ ) ( अरुप्कर' व्रणकृति में त्रि० भल्लातक ( भिलावा) पुं० । (१०) 'वार' सूर्यादि दिवस में अवसर वृन्द कुब्जवृक्ष हर हार में पु० मद्यभाजन में नपुं० । (११) ' मरु गिरि विशेष मेंधन्वा ( धन्वन् ) में पु० । (१२) 'अन्तर' अन्तर्धि भेद ताद छिद्र आत्मीय विना बर्हिस मध्ये अवकाश अवसर परिधान अन्तरात्मा अवधि में त्रि० । (१३) 'संस्तर प्रस्तर और अध्वर में पु० । (१४) 'प्रस्तर' मणि पाषाण में पु० । इति रान्ताः । Page #347 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयकाण्डम् ___ २३४ नानार्थवर्गः ३ स्थौल्ये स्थामनि सैन्ये च नाबल काकसीरिणोः।।२११॥ मातङ्ग पुष्पकाण्डद्रु प्रभेदाः पीलवः कला । शिल्पेऽपि काल भेदेऽथ प्रावारेऽप्यस्ति कम्बलेः॥२१२॥ त्रिषु व्याले: शठे नातु सर्प श्वापदयोः कलिः । युगेऽपि कमलः पुंसि कुरङ्गेऽन्यन्नपुंसकम् ॥२१३॥ मल विट् पाप किद्वेष्व स्त्रियां शूलो रुगायुधम् । अङ्कुरेऽपि प्रवालोऽस्त्री पेशलेश्वारु दक्षयोः ॥२१४॥ (१) 'बल' स्थौल्य स्थामा (सामर्थ्य) सैन्य गन्धरस रूप में नपुं० बलराम दैत्यभेद बली वायस में पु० । (२) 'पिलु' मातङ्ग पुष्प तालकाण्ड पादपवृक्षमेद अत्थिखण्ड परमाणु में पु० पिलुवृक्ष के फल अर्थ में नपुं० । (३) 'कला मूल रै वृद्धि शिल्पादि अंशमात्र चन्द्रकी सोलमीकला कलना कालमान में स्त्रो० । (४) कम्बल नागराज सास्ना प्रावार कृमि उत्तरासंग में पु. सलिल में नपुं० । (५) 'व्याल' शठ में त्रि० दुष्टगज सर्प श्वापद सिंह में पु० । (६) 'कलि' कलिका में स्त्री० शुरों के संग्राम में युग में पु० । (७) 'कमल' सलिल ताम्र जलन व्योम भेषन में नपुं० कुरङ्ग में पु० । (८) 'मल' विट् [विष्ठा पाप किट में पु० नपुं० कृपण में त्रि० [वसा शुक्र मसृग् मज्जा मूत्रं विट् कर्ण त्वङ् नखाः । श्लेष्माऽश्रुदूषिका स्वेदो द्वादशैते मला नृणाम् ।। । (९) 'शूल' रोग आयुध मृत्यु कतन योग में पु० नपुं. पण्यस्त्रो [गणिका) में स्त्री०। (१०) 'प्रवाल' बीणादण्ड विद्रुम किसलय [नूतन रक्त पल्लव अङ्कर] में पु० नपुं० । (११) 'पेशल' चार दक्ष में त्रि० Page #348 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३३५ तृतीयकाण्डम् नानार्थवर्गः ३ क्रिया विलासयो लीलाऽस्त्रो तेलोऽधः स्वरूपयोः । क्षेम पर्याप्ति पुण्येषु कुशलं शिक्षिते त्रिषु ॥२१५॥ सतृष्ण चलयो लोलो बोलो मूर्खर्भकेऽपि च । कृत्तिकासु स्त्रियां भूम्नि बर्हलोऽग्नौ शिते त्रिषु ।।२१६॥ श्वभ्रे कुंकूलं कीर्ण स्यात् शकुभिर्ना तुषाऽनले । गवाक्षाऽऽनायवृन्देषु क्षारे जाल मथोपला ॥२१७ । शर्कराऽपि च कीलालं शोणितेऽम्भसि च पलम् । आमिषे मौल यचूडा किरीटं संयताः कचाः ॥२१८॥ हिन्दी-(१) 'लीला' केलि विलास खेला शङ्गारभाव क्रिया में स्त्री० । (२) 'तल' स्वरूप अनुर्ध्व में पु० नपुं०, ज्याघातवारण (गोधा) कानन कार्यबीन में नपुं०, तालवृक्ष चपेट सरु (तलवार की मूठ) तन्त्रोघात (वीणा वजाना) में पु० । (३) 'कुशल' क्षेम पयोप्ति पुण्य में नपुं०, शिक्षित में त्रि० । (४) 'लोल' सतृष्ण चल में पु०, लोला स्त्री में रसना में स्त्री०, अन्यत्र में नपुं० । (५) 'बाल' मूर्ख अर्भक में त्रि० । वनस्पति विशेष में पु. नपुं०, कुन्तल गज एवं अश्वके बालधि में पु०, अलङ्कार मेध्य में 'बाली बाला' त्रुटि में स्त्रो० । (६) 'बहुला' नोलिका एला गो स्त्री में स्त्री०, कृत्तिकाओं में बहुवचनान्त स्त्रो०; विहायस् में नपुं०, अग्नि कृष्णपक्ष में पु०, प्राज्य कृष्ण में त्रि० । (७) 'कुकूल' खड्ढा में नपुं०, तुषाऽग्नि में पु० । (८) जाल' गवाक्ष आनाय वृन्द (समूह) क्षार (जन्म) में नपुं०, नोपद्रुम में पु० । (९) “उपल' प्रस्तर रत्न में पु०; शर्करा में स्त्री० । (१०) 'कोलाल' शोणित अम्भस् में नपुं० । (११) 'पल' उन्मान मांस में नपुं० । (१२) मौलि चूडा किरीट (मुकुट) धम्मिल्ल (संयतकेश) में पु० (कोषकारों Page #349 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयकाण्डम् नानार्थवर्गः ३ वात्यायां ना तु वातूल त्रिषु वातासहे बैलिः । करोपहारयो दैत्ये ना स्त्री प्राण्यङ्गजा सखी ।।२१९॥ सेत्वाबली स्त्रियामाली स्त्रिषु स्याद् विशदाशये । वेला वाय॑म्बु विकृतौ मर्यादा कालयोरपि ॥२२०॥ पालिरस्त्यङ्क पक्तयादौ कीलः शङ्कादिषु द्वयोः । कृतान्ताऽनेहसौ कालः कराल स्तुङ्ग दन्तुरौ २२१॥ चेलं वस्त्रेऽधमे "स्थूलं जडेऽपि त्रिषु, केवलम् । निर्णीतेऽथ त्रिलीङ्गं तु स्यादेक कृत्स्नयोः, फैलम्॥२२२॥ .- में रभस मेदिनीकारों ने अनपुंसक कहा है) अशोक पादप वृक्ष में पु० । (१) 'वातुल' वात्या (ववण्डर) पु. (क्षीरस्वामि के मत से 'वातल') वातासह में त्रि. । (२) बल दैत्यप्रभेद कर चामरदण्ड (यम) उपहार में पु० जरा से लथचर्म में ग्रहदारुप्रभेद (सोढी) उदराऽवयव में स्त्री० । (३) 'आलि' (आलो) क्यस्या (सखी) सेतु पंक्ति में स्त्री०, विशदाशय में त्रि० । (४) 'वेला' समुद्रविकृति समुद्र तट काल सीमा आक्लिष्टमरण (सुख से मरणा) रोग ईष्टभोजन में स्त्री० । (५) 'पालि (पाली)' (पाल वान्धना) यूका सश्मश्रुयोषित में स्त्री०; अङ्क प्रभेदपंक्ति अश्रि (अस्ति) कर्णलता प्रस्थ प्रदेश छात्रादि देय में त्रि०। (६) 'कीलः (कीला) शंकु कफोणि ज्वाला स्तम्भ लेश स्थाणु में पु० स्त्री० । (७) 'काल' समय महाकाल मृत्यु यम कृष्ण में पु० । (८) 'कराल' दन्तुर तुङ्ग भोषण में त्रि०, कृष्णकुटेरक में नपुं०; सर्जरसतैल में पु० । (९) 'चेल' वस्त्र अधम में त्रि० । (१०) 'स्थूल' क्ट निष्प्रज्ञ पीवर में त्रि० । (११) 'केवल' निर्णीत में नपुं०, एक कृत्स्न में त्रि० । (१२) 'फल' समय हेतु समुत्थ फलक व्युष्टि लाभ जातीफल कक्कोल (शीतल मिर्च) वाणान में नपुं० । Page #350 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयकाण्डम् नानार्थवर्गः ३. सस्ये हेतुकृते, शीलं सवृत्त सत्स्वभावयोः । नेत्ररुट् छदिषोः क्लीबं वृन्दे ने पटैलं पुमान् ॥२२३॥ और्वाग्नावपि पातालं मूल भाऽऽध शिफासु च । इतिलान्ताः। ध्रुवं स्यान्निश्चिते भेना शाश्वते त्रिष्वथोत्सवः ॥२२४॥ इच्छायाः प्रसवेऽमर्पोत्सेकादिषु महे,दवः । दावश्व वन वन्याग्नी आह्वानाऽऽज्ञाऽध्वरा हवाः ॥२२५॥ मन्त्री सहायः सचिवो धवः पति नृ शाखिनः । शैलोऽर्कमेषा वयः सत्ताऽभिप्राय जन्मसु ॥२२६॥ भावश्चेष्टादिके गौरी केरवेतु शिवा भवः ।। (१) 'शोला सद्वृत्त सत्स्वभाव में नपुं०। (२) 'पटल' पिटक परिच्छद छदिष (गृहाच्छादन) नेत्ररुट् तिलक में नपुं०, वृन्द में स्त्री० नपुं०। (३) 'पाताल' नागलोक विवर वडवानल में नपुं०। (४) 'मूल' नक्षत्र आदि जटा मूलधन में नपुं०, अन्तिक में पुः । इति लान्ताः।। (५) 'ध्रुव' कील शिव शंकु वसु योग वट मुनि में पु०, मूर्वा शालिपर्णी गीति सुरभेद में स्त्री०, निश्चित तर्क निश्चल में नपुं०, शाश्वत में त्रि० । (६) 'उत्सव' इच्छा प्रसव अमर्ष उत्सेक (घमण्ड) मह में पु० । (७) 'दवदाव' वन और वनाग्नि में पु० । (८) 'इव' माह्वान आज्ञा अधर में पु० । (९) 'सचिव' मन्त्री सह य में पु० । (१०) 'धव' पति नर (धूर्त) वृक्षविशेष में पु० । (११) 'अवि' शैल मर्क मेष (नाथ मुषिककम्बल) में पु०, भू पुष्पवती में स्त्री० । (१२) 'भाव' सत्ता अभिप्राय जन्म स्वभाव चेष्टा आत्मा क्रिया ल ला पदार्थ विभूति बन्धु जन्तु इत्यादि में पु० । (१३) 'शिवा' गौरी कोष्ट्री ... २२ Page #351 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीय काण्डम् ३३८ नानार्थवर्ग: ३ हरो जन्म च नोवो तु स्त्रीकटी वस्त्रबन्धने ॥ २२७ ॥ तथा परिपणे मूल द्रव्ये पारशवस्तु यः । द्विजात् शूद्रा सुते शस्त्रे र्द्वन्द्वं युग्म विवादयोः ॥ २२८॥ व्यवसायासु द्रव्येषु सत्वं जन्तुषु न स्त्रियाम् । ज्ञात्यात्मनोः स्वआत्मीये त्रिष्वस्त्री तु धनेष्वथ ॥ २२९ ॥ उत्पादे प्रसँवो गर्भमोचने फलपुष्पयोः । अनुभावः प्रभावेऽपि निश्चये भावसूचके ॥ २३०॥ स्यात्स्थानं प्रभवो जन्म हेतु राघोपलब्धये । सक्तुफला अभया अमलकी झाटमलौषधि (भूम्यामलकी) पुण्डरीकन में स्त्रो मेदिनीकार ने पुण्डरीकद्रुम ( पुण्डरीया ) में शिवा को शिव पु० माना है मुकुट ने पु०, शुगाल में भो शिवा को बो. हो माना है) । (१) 'भव' हर जन्म प्राप्ति सत्ता संसार क्षेमेश में पु० । (२) नोवी स्त्री कटो बस्त्रबन्धन में परेषण ( जमानत देना) मूल्यद्रव्य में स्त्री० । (३) 'पारशव' द्विज से शूद्रासुत में शास्त्र में परस्त्रोतनय में पु० । (४) द्वन्द्व युग्म कलह रहस्य मिथुन (मर्यादा व्युत्क्रमण अर्थात् पृथग्वस्थान यज्ञपात्र प्रयोग अभिव्यक्त अर्थात् (साहचर्य) में नपुं० पुलिङ्ग भी ( चार्थद्वन्द्वः) । (५) 'सत्व' व्यवसाय असु द्रव्य वित्त आत्मत्व स्वभाव बल गुण पिशाच आदि में नपुं० जन्तु में पु० नपुं० । (६) 'स्व' ज्ञाति आत्मा में पु०, आत्मीय में त्रि०; धन में पु० नपुं० । (७) 'प्रसव' उत्पाद गर्भमोचन फल पुष्प अपत्य में पु० । (८) 'अनुभव' प्रभाव निश्चय भावसूचक में पु० । ( ९ ) ' प्रभव, प्रथमज्ञानोपलब्धि के लिए स्थान जडमूल पराक्रम जन्महेतु में पु० । د Page #352 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नानार्थवर्गः ३ 'निवोsपह्नवेऽविश्वासेऽपि ना निकृतावपि ॥ २३९ ॥ ॥ इति वान्ताः ॥ तृतीयकाण्डम् ३३९ शिश्est बालिशो, रौशीपुञ्ज मेषौ कुश जले | आशादिक तृष्णयो, र्वर्शः कुले वा मस्करे रहः ||२३२|| प्रकाशेऽपि च वीकाशः कठोरादौ तु कर्कशः । : निर्देशो भोग भृत्योच कीनाशः क्षुद्रकर्षयोः ॥२३३॥ कृतान्ते यदि पुंस्येव स्थिति वर्त्त्यादयो दशीः । ज्ञाने ज्ञातरि हगें वैश्य मनुजौ तु विशे स्पर्शेः ॥२३४॥ संपराय चरौ ख्याते प्रकाशः स्फुट् आतपे । (१) 'निह्नत्र अपह्नव ( छुपाना) अविश्वास निकृति [ कलह ] अपलाप [प्रस्तुत विषय को बदलकर प्रकारान्तर से संगत जैसा समाचान करना ] में पु० । इति वान्ताः । 9 (२) 'बालिश' शिशु अज्ञ में पुं० । (३) 'राशि' धान्य आदि के पुञ्ज में मेष वृष आदिलग्न में पु० । ( ४ ) 'कुश' जल में नपुं० रामपुत दर्भ योक्त्र दोप में पु० । (५) 'आशा' दिशा तृष्णा में बो० । (६) 'वंश' कुल वेणु वर्ग मेरुदण्ड में पु०, । (७) 'वीकारा' विकाश विजन प्रकाश [ व्यक्त ] में पु० । (८) 'कर्कश' कठोर [ परुष] क्रूर कृपण निर्दय दृढ इक्षु साहसिक कासमर्द कामिल्ल में पु० । (९) 'निर्वेश' भोग वेतन मूर्च्छन में बु० । (१०) "कीनाश' कर्षक क्षुद्र उपांशु घाती में त्रि० कृतान्त में पु० ] ( ११ ) 'दशा' अवस्था दोपवर्ति में स्त्रो०, वस्त्रान्त में बहुवचन | (१२) 'दृक्' श, दर्शन नेत्र बुद्धि में त्र े०, वोक्षक में त्रि० । (१३) 'विश्' वैश्य मनुप्रवेश में पु० । (१४) 'स्पर्श' संपराय चर [ प्रणिधि] में पु० । (१५) 'प्रकाश' अतिप्रसिद्ध आतप स्फुट प्रहास में पु० । Page #353 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयकाण्डम् ३४० नानाथवर्गः ‍ अपदेशो निमित्ते स्यात् पदे लक्ष्ये वशी स्त्रियाम् ॥ २३५ ॥ ॥ करिण्यपि .. . इति शान्ताः । सुरे मत्स्येऽनिमिषो विषैमप्सु च । आकर्ष: शारिफलके छूतेऽक्षेऽप्यथ किल्विषैम् ॥ २३६ ॥ अपराधेऽपि पक्षस्तु सहायेऽथात्ममानवौ । पुरुषोऽधिकृतेऽध्यक्षः प्रत्यक्षेऽप्यथ वीरुधि ॥ २३७॥ कक्ष स्तृणेsपि, काको मत्स्यात्वगोध्वांक्षे इष्यते । भारतादावन्द वृष्टयो वर्ष * मस्त्र्यथ पौरुषम् || २३८ ।। भावे तत्क्रियायां च भिक्षा सेवार्थना भृती | (१) 'अपदेश' निमित्त व्याज पद लक्ष्य में पु० । (२) 'वशा वन्ध्या सुता' स्त्री गवी करिणी में स्त्री ० । इति शान्ताः । ू (३) 'अनिमिष' सुर मत्स्य में पु० । ( ४ ) 'विष' गरल जल में नपुं० । (५) ' आकर्ष' द्यत इन्द्रिय पाशक शारिफलक कोदण्डाभ्यास वस्तु आकर्षण में पु० । (६) 'किल्विष' पाप रोग अपराष में नपुं० । (७) 'पक्ष' मासार्ध पार्श्व ग्रह साध्य अविशेष केशादिवृन्द बल सखि सहाय चुल्लीरन्ध्र पतत्र वाजी कुञ्जर के पार्श्व में पु० । (८) 'पुरुष' पूरुष सांख्यज्ञ पुन्नागवृक्ष में पु० । (९) 'अध्यक्ष' अधिकृत प्रत्यक्ष में पुं० । (१०) 'वक्ष' भुजामूल अरण्य वीरुध (लता) शुष्कतृण और कच्छ में पु०, 'कक्षा' स्पर्धापद काञ्च रथ गेह प्रकोष्ठ गजरज्जु वस्त्र के अञ्चल में स्त्री० । (११) 'ध्वांक्ष' काक मत्स्य भक्षकपक्षा भिक्षुक तक्षक में पु० । (१२) 'वर्ष' जम्बू द्वीपदी भारतादि अन्द वृष्टि में पु० नपुं०, 'वर्षा:' प्रावृदकाल में बहुवचनान्त स्त्री० । (१३) 'पौरुष' पुंभाव पुरुषकर्म पुरुषतेज मेंनपुं०, ऊर्ध्ववस्तृत दो पाणि नृपन में तो त्रि० विशेषण है । (१४) 'भिक्षा' मृति (वेतन) याचना सेवा भिक्षतवस्तु में स्त्री० । ........ Page #354 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयकाण्डम् ३४१ नानार्थवर्गः ३ वृषभे सुकृते श्रेष्ठे मूषिके शुक्रले वृषेः ॥२३९॥ कलिद्रो व्यवहारोऽक्षी द्यूताङ्गचक्रकर्षयोः । क्लीबं स्यादिन्द्रिये प्रेक्षा प्रज्ञा नृत्येक्षणे, अथ ॥ २४०॥ कुड्मलाथैीघ दिव्येषु कोषोऽस्त्री खड्गगोपने । के वार्ता करीषाग्न्यो र्ना कुल्या मात्रकेऽस्त्रियाम् ॥ २४१ ॥ मर्दने प्रेषणे प्रैष स्विट् शोभा रश्मिप्रग्रहौ । अभीषु सामिषं तु स्यादुपादानेऽस्त्रिया मथ ॥ २४२ ॥ निः स्नेहाsमसृणारुक्षः शिरोवेष्ट किरीटयोः । उष्णीषं स्यान्निष्कृटेऽपि कात्स्न्येन्य क्षो.... इतिषान्ताः । (१) 'वृष' धर्म श्रेष्ठ मूषिक बाहुवो यवान् वृषभ शृङ्गी पुंभेद राशिभेद में पु० । (२) 'अक्ष' कालिदु (बहेड़ा) कर्ष (आय व्यय को चिन्ता) तुष चक्र शकट व्यवहार आत्मज्ञ पाशक में पु०, तूथ ( तूतिया) सौवर्चल ( लवण मे :) इन्द्रिय में नपुं० । (३) 'प्रेक्षा' बुद्धि नृत्येक्षण में स्त्री० (४) 'कोष (कोश ) ' कुडमत्र अर्थसंघात दिव्य खङ्गगोपन पात्र जातिकोश पैशो शब्दादिसंग्रह में पु० नपुं० । (५) 'कर्पू:' वार्ता करीषाग्नि में पु०, कुल्या ( कृत्रिम नदी) में स्त्रो० । (६) 'प्रैष' मर्दन प्रेषक क्लेश उन्माद में पु० । (७) 'विष' शोभा रुचि वाक् कान्ति में स्त्री० । (८) 'अभषुः ' रश्मि प्रग्रह अश्वादिरज्जु तथा लगाम में पु० । (९) 'आमिष ' उपादान (इन्द्रियों का विषयों से निवर्त्तन) भोग्यवस्तु संभोग उत्कोच (आयन भेट घूम) 'पलल में पु० नपुं० । (१०) 'रूक्ष' निःस्नेह (अप्रेय ) अमसृण में त्रि० । (११) 'उष्णीष (उष्णिक् ) ' शिरोवेष्टन ( पगडी साका) किरिट (मुकुट) में नपुं० । (१२) 'न्यक्ष' निकृष्ट काल्स्न्य परशुराम में त्रि० । इति षान्ताः । Page #355 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तीयकाण्डम् ३४२ नानार्थवर्ग: ३ ................विभावसुः ॥२४३॥ सूर्येऽग्नौ स्याद्धिताशंसाऽहि दंष्ट्राऽऽशी, दिवौकशः। सारङ्गा लालसात्सुक्य प्रार्थने वर्षतर्णको ॥२४४॥ वत्सो, वसु धने रत्ने नाऽनले रश्मि देवयोः । बाढ साध्वोऽस्तु साधीयान् ज्यायो वृद्ध प्रश स्ययोः।२४५॥ पयोऽम्बुक्षीरयो, स्तेजः शुक्रदोप्ति बलादिषु । पद्याऽभिलाषयोछैन्दस्तैपः कृच्छादि कर्म यत् ।।२४६॥ वरीया नूरु वरयोः कनीयांस्तु युवाऽल्पयोः । (१) 'विभावसु' सूर्य पावक हारभेदमें पु० । (२) 'माशीस्' हिताऽऽशंसा (हित संभावना) अहिदंष्ट्रा (सर्प का दांत) में स्त्री० (आशी इकारान्त भी) । (३) 'दिवोकस् दिवोकस्' देव चातक रूप सारङ्ग (हिरण चातक मतङ्गन शबल) में बहुवचनान्त पु० । (४) 'लालस ललसा' उत्सुकता याचना तृष्णाधिक्य में स्त्री० पु० । (५) 'वत्स' तर्णक (गोवत्स) वर्ष पुत्र अहि में पु०, वक्षस् में नपुं (६) 'वसु' रै रत्न शाल वृद्धयौषध में नपुं०, मधुर में त्रि०, मनल भा देवविशेष योकत्र बक राजा में पु० । (७) 'साधीयस्' अतिशयित दृढ अतिशोभन में त्रि०(८) ज्यायस्'अतिवृद्ध अतिप्रशस्य में त्रि० (९) 'पयस्' जल दुग्ध में नपुं०। (१०) 'तेजसू' शुक्र दीप्ति बल प्रभाव पराक्रम धाम में नपुं० । (११) 'छन्दस्' पद्य अभिलाष वेद स्वैराचार में नपुं०, अकारान्त भी छन्द है । (१२) 'तपसू' लोकान्तर आदि व्रत धन में नपुं०, शिशिर ऋतु और माघ महिना में पु० । (१३) 'वरीयस्' योगभित् श्रेष्ठ वरिष्ठ अतियुवा में त्रि (१४) 'कनीयस्' अतियुवा अल्प अनुज में त्रि० । Page #356 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयकाण्डम् नानाथवर्गः ३ भ द्योत दृष्टिषु ज्योतिः' खं नमः श्रावणे नभाः।२४७॥ वयः खगेऽपि बाल्यादा वेधा विष्णौ च रोदेसी । रोदस्यौ चाऽपि भू द्यावौ प्रसरश्वाऽप्यथो रजः ॥२४॥ स्त्रीपुष्पे च गुणे, बों रूपे तेजः पुरीषयोः । विदेन विद्वान् निम्न गाया वेगे स्रोत स्तथेन्द्रिये।।२४९॥ तमो राहौ गुणे ध्वान्ते सही मार्गः सहोबले । अचिर्मयुखं शिखयो नैना चौर्यादि कर्मणि ॥२५॥ (१) 'ज्योतिस अग्नि दिवाकर में पु०, दृष्टि नक्षत्र प्रकाश में नपुं०। (२) नभस्' व्योम में नपुं०. श्रावण मेघ घ्राण वर्षा विप्ततन्तु पतद्गह (पात्र)में पु०, नभस अदन्त भो है 'नभसः पुसि' इत्युणादि वृत्ती (नभसस्तु) नदी पतौ। गगने प्रावृषि ।।) । (३) 'वयस्' पक्षी वाल्य पौगण्ड कैशोर तारुण्य वार्धक में पुं० । (४) 'वेधस्' हृषीकेष बुध परमेष्ठी में पु० । (५) 'रोदसी रोदस्यो' संमिलित पृथ्वी आकाश में रोदस् द्विवचनान्त नपुं० स्त्री० । (६) 'प्रसू' जननी कदली लता अश्वा में स्त्री० । (७) 'रजस्' स्त्रीपुष्प (आर्तव) गुणान्तर पराग रेणुमात्र में नपुं०, रज शब्द अकारान्त भी है (रजोऽयं रजसा साधै स्त्रीपुष्पगुणधूलिषु, अजयः) । (८) 'वर्चस्' रूप तेजस् विष्ठा बोधक नपुं०, चन्द्रतनय में पु० । (९) 'विद्वस् (विद्वान् विद्वन्)' आत्मवित् प्राज्ञ पण्डित में त्रि० । (१०) 'श्रोतस्' अम्बुवेग इन्द्रिय में नपुं० । (११) 'तमसू' वान्त गुण शोक में पु० नपुं, विधुन्तुद में पु० । (१२) 'सहस्' बल ज्योतिसू में नपुं०, हेमन्त ऋतु में और मार्गशीर्ष महिने में पु० । (१३) 'अर्चिस' मयूम्ब और शिखा में प्रायः नपुं० पु. नहीं। (१४) 'हिंसा' चोरकर्म बन्धन त्रासन ताडन वध में स्त्री० Page #357 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयकाण्डम् ३४४ नानार्थवर्गः ३ हिंसा, हिंस्रेऽपि बीभत्से, ओजो दीप्तौ बले, मुँहः । तेज उत्सवयो रोकः ओकाः सद्माऽऽश्रयो रसः ।। २५१ ।। शृङ्गारादौ द्रवे वीर्ये गुण राग विषेष्वपि । पापाsपराधा वागैः स्या त्कर्ण पूरे च शेखरे ॥ २५२ ॥ उत्ततश्चाऽवतंसश्च हंसः श्वेतच्छदो रविः । इतिसान्ता । निर्यूहो द्वार आपीडे निर्यासे नागदन्तके ॥ २५३॥ दारा गृही गृहं वृत्रेऽप्येहि बर्ह दले ग्रहाः । : १२ । (१) 'बोस' विकृत पार्थ कर हिंस्र पाप घृणात्मा में पु० । (२) 'ओजस्' दीप्ति बल प्रकाश अवष्टम्भ में नपुं०, ( विषम संख्यावाची ओजस् तो अकारान्त भी है) । (३) 'महस्' उत्सव तेजस् में नपुं०, महः अदन्त भी है 'मही नद्यन्तरे भूमौ मह उत्सव तेजसो : ' मेदिनो । ( ४ ) 'ओकसू ' सद्म (घर) में नपुं०, आश्र - यमात्र में पु० । (५) 'रस' शुङ्गार आदि साहित्य रस में द्रव में वीर्य में स्वाद में विक्तादि गुण में विष में राग में देहधातु में जल में पारद पु०, शल्लकी पाठा जिह्वा घरणि क में 'रसा' स्त्री० । (६) 'आगस्' पाप और अपराध में नपुं० । (७) 'उत्तंस अवतंस' कर्णाभरण शेखर (भूषण) में पु० । (८) 'हंस' विहङ्गभेद अर्क विष्णु अश्वविशेष योगि मन्त्रादि भेद परमात्मा अमत्सर निर्लोभ राजा शरोरान्तः प्राणवायु में पु० । इतिसान्ताः । (९) 'निर्यूह' द्वार आपीड (भूषण) निर्यास ( रस काथ ) नागदन्त ( खूँटी) में पु० । (१०) 'गृहा: ' कलत्र में सद्म में पु० बहुवचनान्त, 'गृह' भवन अर्थ बोधक हो तो नित्य नपुं० । (११) अहि सर्प वृत्रासुर में पु० । (१२) 'बर्ह' पिच्छ दल में पु. नपुं० । (१३) 'ग्रह' निर्बन्ध अर्कादि उपराग सैंहिकेय पूतनादि ग्रहण अनुग्रह रणोद्यम में पु० । Page #358 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - सृतोयकाण्डम् ३४५ नानार्थवर्गः३ निर्बन्धाऽर्को-परागाद्या नृपाहेऽर्थे परिग्रहे ॥२५४॥ परिबहे स्तुलासूत्र सप्तिरश्म्योश्च प्रहः । तमोपहोऽर्कश्चन्द्राऽग्नी व्यहो वृन्दे परिग्रहः ॥२५५॥ शापमूल परीवार राहुक्क्त्रस्थ भास्कराः । आरोहस्त्ववरोहेऽपि नानार्था अव्यया इतः ॥२५६॥ इति हान्ताः । ॥ नानार्थ अव्यय ॥ धातुयोगज सीमाऽभिव्याप्तीपत्स्वाङ् सकृत्सहे । एकबारेऽप्येङिद् वाक्यस्मृत्यो, रालङ्घनेऽप्यति॥२५७॥ 'हेन्तहर्षे विषादे च वागारम्भाऽनुकम्पयोः । (१) 'परिवह' राजयोग्यवस्तु परिच्छद सामान में पु० । (२) प्रवाह (घअन्त) प्रग्रह (अर प्रत्ययान्त) तुलासूत्र हयादि रश्मि वन्दी नियमन भुज सुवर्ण हली पादक (वृक्ष) में पु० । (३) 'तमोपह' सहस्रांशु मृगाङ्क जिनवह्नि में पु० । (४) 'व्यूह' बलविन्यास निर्माण वृन्द तर्क में पु० । (५) 'परिग्रह' शपथ मूल आदान पत्नी परिजन राहुमुखगत भास्कर में पु० । (६) 'आरोह' अवरोह वराऽऽरोहकटि आरोहण गजारोह दीर्घत्व समुच्छय में पु० । इति हान्ताः ॥ नानार्थ अव्यय ॥ (७) 'आङ्' धातुयोगज (आगच्छति) ईषदर्थ (ओप्णम्) सीमा (आषोडशात् पन्द्रह वर्ष तक अभिव्याप्ति आसमुद्रात् में । (८) 'सकृत्' सहार्थ एकवारम् में । (९) 'आ' वाक्य स्मृति अङित् में । (१०) 'अति' प्रशंसा प्रकर्ष लंघन में । (११) 'हन्त' हर्ष विषाद वागारम्भ अनुकम्पा में । Page #359 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - तृतीयकाण्डम् नानार्थवर्गः ३ 'इति प्रकरणे हेतु प्रकाशादि समाप्तिषु ॥२५८॥ तिर्यगर्थे तिरोऽन्तों प्रौदुर्नामप्रकाशयोः । अंल वारण पर्याप्ति शक्ति भूषणवाचकम् ॥२५९॥ रहस्यापि मिथोऽन्योन्य मधे सामि जुगुप्सिते । वाक्यालङ्कार जिज्ञासा निषेधाऽनुनयाः खलु ॥२६॥ तर्केऽर्थ निश्चये नूनं किं पृच्छा वा जुगुप्सनम् । विस्तारेऽकृतौ चोरी चोररी चोरी, किले ॥२६॥ संभाव्यवार्तयोः, "कस्यात्सखे मर्धनि वारिणि । नाम संभाव्य क्रोधोपगम प्राकाश्य कुत्सने ॥२६२॥ परे च लोके स्वर्गे स्वैर भेदाऽप्रमथयोः पुनर । भेदेऽवधारणे तु स्यात् पापे-ष-त्कुत्सनासु कु ॥२६३॥ (१) 'इति' प्रकरण हेतु प्रकाशादि समाप्ति निदर्शन दृष्टान्त प्रकार अनुकर्ष में। (२) 'तिरस्' तिर्यक् अर्थ में अन्तर्षि में। (३) 'प्रादुस्' नाम प्राकाश्य में । (४) 'अलं' वारण पर्याप्ति शक्ति भूषण निरर्थक में। (५) 'मिथस्' अन्योन्य रहस्य में। (६) 'साम' अर्घ जुगुप्सा में। (9) 'खलु' वाक्यालंकार जिज्ञासा निषेत्र अनुमय (सान्त्वन वीप्सा मान निषेध वाक्य पद के पूर्ति में । (८) 'नूनं' तर्क अर्थ निश्चयमें । (९) 'कि' प्रश्न कुत्सा वितर्क निषेत्र में (१०) 'ऊर' उररी ऊररी ए तीनों विस्तार अङ्गाकार अर्थ में हैं। (११) 'किल' वार्ता संभाव्य अनुनयार्थ अरुचि में । (१२) 'के' सुख शिरस् तोय पादपूरणमें । (१३) 'नाम' संभावना क्रोध अभ्युपगम प्रकाशन कुत्सा विस्मय स्मरण काम विकल्प में। (१४) 'स्वर' परलोक स्वर्ग में । (१५) 'पुनर' अप्रथम अधिकार भेद पक्षान्तर में । (१६) 'तु' पादपूरण भेद समुच्चय अवधारण पक्षान्तर वियोग प्रशंसा विनिग्रह में । (१७) 'कु' पाप ईषत् कुत्सा निवारण में । Page #360 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयकाण्डम् नानार्थवर्गः ३ वितर्क प्रश्नयोः स्वित् धिक निन्दा भर्त्सनयोः उत। विकल्पाऽप्यर्थयो पश्चात् प्रतीच्यां चरमे वृथा ॥२६४॥ निरर्थकेऽविधौ पश्चात सादृश्येऽप्यनु निश्चये । निःशेषे निर" विषादाऽति शुक्षु हा वोपमोदिषु ॥२६५।। शङ्का समुच्चय प्रश्न गर्दा संभावनाः अपि । अबधारण हेत्वो "हिं परिप्रश्न वितर्कयोः ॥२६६॥ हु प्रबन्धे च निकटेऽतीते वाऽऽगामिके पुरा । पुरार्थे प्रथमे प्राच्यां पुरस्तादग्रतो, बत् ॥२६७॥ (१) स्वित्' वितक प्रश्न पादपूर्ति में । (२) 'धिक्' निन्दा (दोष कीर्तन) भर्त्सन (अपकार शब्द से भयोत्पान) में । (३) 'उत' समुच्चय रूप प्रश्नरूप अप्यर्थ में विकल्प में । (४) 'पश्चात्' प्रतीची चरेम (सप्तम्यन्त पञ्चम्यन्त प्रथमान्त 'अवर' शब्द से निपातित है।) (५) 'वृथा (वृषा)' प्रयोजन विना वन्ध्य विधि विवर्जित में । (६) 'अनु' होन सहाथै पश्चात् सादृश्य आयाम समोप लक्षणादि अनुक्रम में । (७) 'निर निस्' निःशेष निषेध कान्ता आदि अर्थ में निश्चय में 'नि' हैं। (८) 'हा' विषाद दुःस्व शोक कुत्सा में । (९) 'वा व' उपमां विकल्प वितर्क एवार्थ इवार्थ पादपुरण समुच्चय में। (१०) 'अपि' शङ्का समुच्चय प्रश्न गर्दा संभावना में। (११) 'हि' अवधारण हेतु पादपूर्ति विशेष प्रश्न हेत्वपदेश संभ्रम असूया में, 'हो' दुःखहेतु विषाद विस्मय में । (१२) 'हु' परिप्रश्न विकल्प में। (१३) 'पुरा' प्रबन्ध निकट अतीत आगामिक में । (१४) 'पुरस्तात् अग्रतसू' प्राची पुरार्थ प्रथम में । (१५) 'बत' खेद अनुग्रह संतोष मनुकम्पा आमन्त्रण में । Page #361 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीय काण्डम् ३४८ नानार्थवर्गः ३ खेदानुग्रह संतोषाऽनुकम्पामन्त्रणे नतु । प्रश्नेऽवधारणेऽनुज्ञाऽऽमन्त्रणाऽनुनयादिषु ॥ २६८ || मङ्गलाऽनन्तर प्रश्नाऽऽरम्भ कृत्स्नेष्वथो अथ । यावत्तावच्च साकल्याऽवधि मानाऽवधारणम् ॥ २६९ ॥ तु पृच्छायां विकल्पे च नानाऽनेको भयार्थयोः । पुनैः सहार्थता शश्वत् आशद् दूर समोपयोः ॥ २७० ॥ आ: कोपेऽपि च पोडायां साक्षात् तुल्य सनक्षयोः । चान्वाचय समाहारे तरेतर समुच्चये ॥२७१ ॥ आमन्त्रण अनुनय विकल्प समुच्चय (१) 'ननु' प्रश्न अवधारण अनुज्ञा में । (२) 'अथो अर्थ' संशय अधिकार मङ्गल अनन्तर प्रश्न आरम्भ कृत्स्न (समस्त ) में । ( ३ ) ' यावत् तावत्' साकच्य अवधि मान अवधारण में (मेदिनी कार, प्रशंसा परिच्छेद मान अधिकार संचन पक्षान्तर कार्न अवधारण अर्थ बतलाए हैं ।) । (४) 'नु' प्रश्न विकल्प अतोत अनुनय में । (५) 'नाना' अनेक उभयार्थ विता के अर्थ में । (६) 'पुनर्' अथम अधिकार भेद पक्षान्तर में और 'शाश्वत' पुनर के अर्थ में सह अर्थ में। ( ७ ) ' आरात् ' दूर समीप में । (८) 'अ' स्मरण अकारण कोन पोडा में । (९) 'साक्षात् ' तुल्य समझ में । (१०) 'च' प्रधानकार्य के अविरोध से कर्यान्तर अवावय में (भिज्ञानट गाँ चाssतय) समाहार (समूह) में यथा संज्ञा परिभावम् मिचितों का अन्वय करना रूप इतरेतर योग में (यथा-धव खदेरौ ) परस्पर निरपेक्ष किसी एक को किसी एक में अन्वयरून समुच्चय में (यथा ईश्वरं गुरुं च भजस्व | पादपूरण में पक्षान्तर में विनिश्चय में । f. Page #362 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयकाण्डम् ३४९ नानार्थवर्गः ३: स्वैस्त्याशीः क्षेम पुण्येषु जोषं तूष्णों सुखार्थयोः । - लक्षणादौ च वीप्सायां तथा प्रतिविधौ प्रति ॥२७२।। अमी सह समीपेऽपि अहहाऽद्भुत खेदयोः । शीघ्राऽभिमुख साकल्य समीपो भयतोऽभितः ॥२७३।। मध्येऽन्तिकेऽपि समया एवंम् इत्थमिवार्थयोः। ॥ इति नानार्थवर्गः समाप्तः ॥ (१) 'स्वस्ति' मङ्गल आशीर्वाद पापनिर्णेजन आदि में (२) 'जोषम्' तूष्णीं अर्थ में सुख में प्रशंसा में लङ्घन में (३) 'प्रति' लक्षित हो जिससे ऐसे लक्षण में इत्थंभूताख्यान अर्थात् मुख्य सदृश प्रतिनिधि में भाग में व्याप्तुम् इच्छारूप वीप्सा में प्रतिविधि अर्थात् प्रतिदान में स्तोक में । (४) 'अमा' सहार्थ, समीप में । (५) 'अहह, अहहा' अद्भुत खेद परिक्लेश प्रहर्ष संबोधन में । (६) 'अभितस्, अभिमुख साकल्य समीप उभयतस में। (७) 'समया निकषा हिरुक्, मध्य में समीप में । (८) 'एवम्, इत्थम् और एव अर्थ में (धरणि कोष ने प्रकार उपमा इङ्गकार अवधारण में रह कर स्पष्ट किया है।) । ।। इत्यनेकार्थ अध्ययवर्गः ॥ ॥ नानार्थवर्ग समाप्त ॥ Page #363 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - - ॥ अथ अव्ययवर्गः प्रारभ्यते ॥ अतीते 'ह्योऽनि विज्ञेयं भाविनि श्वस्तु कीर्तितम् परेधवि परेऽह्नि स्यात् परश्वस्तु परेऽहनि ॥१॥ तदा तदानीं वै तस्मिन् काल द्वयमुदीरितम् । युगपदेकदैकस्मिन् सर्वस्मिन् सर्वदा सदा ॥२॥ अस्मिन साम्प्रतमेतर्हि सम्प्रति चाधुना तथा । इदानी चेति विज्ञेय मयात्राह्नि प्रकीर्तितम् ॥३॥ पूर्वेऽहनि च पूर्वेयुत्तरेघुरादयः क्रमात् । उत्तरान्यतरान्यस्मादितराधर परादहः ॥४॥ हिन्दी-(१) 'ह्यः' अतीत कल दिन में ( 'हय' इसका वीता हुआ कल अर्थ होता है)। (२) 'श्वः, भावी कल दिन में (आगामी कल अर्थ होता है)। (३) 'परेद्यवि' परसों दिन में (वीता हुआ परसों होता है)। (४) 'परश्वः, भावो परसों दिन में (आनेवाला परसों अर्थ होता है) । (५) 'तदा, तदानीम्' ये दोनों उस काल में कहा हुआ है । (६) 'युगपत्, एकदा, ये दोनों एक काल के लिये प्रयुक्त होते हैं । (७) 'सर्वदा सदा,' ये दोनों हमेंशा के लिये प्रयुक्त होते हैं । (८) 'साम्प्रतं, एतहि, सम्प्रति, अधुना, ये चारों इस काल के लिये प्रयुक्त होते हैं। (९) 'इदानीम्, यह भी अभो अर्थ में प्रयुक्त होता है । (१०) 'अय' यह शब्द आज इस दिन अर्थ में प्रयुक्त होता है । (११) "पूर्वेधः' यह पूर्व दिन अर्थ में प्रयुक्त होता है । (१२) 'उतरेयुः' यह उत्तर दिन अर्थ में प्रयुक्त होता है । इसी प्रकार 'अन्यतरेयुः' अन्ये युः, इतरेयुः, अबरेयुः, परेयुः, ये स । भो क्रमशः किसी एक Page #364 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३५१ सुनोयकाण्डम् अव्ययवर्गः४ पूर्वे पूर्वतरेऽन्देऽस्मिन् परुत्परा Jषमः पुनः । अतीते स्म बेहि बर्बाह्ये प्रश्ने ॐ चानुनये त्वयि ॥५॥ उषा रात्र्यवसाने स्याद् हुतर्के च नतौ नमः । निन्दायां "दुष्ठु वै"सुष्टु प्रशंसायामुदीरितम् ॥६॥ प्रातः प्रगे प्रभाते स्यात् साये सायं प्रकीर्तितम् । प्रागैतीते सनी नित्ये कच्चित् काम प्रवेदने ।।७॥ युक्तार्थे साम्प्रतं स्थानेऽभीक्ष्णं शश्वन्निरन्तरे । अभावे हि नो न स्यात् प्रसोति हठार्थकम् ॥८॥ दिन में, दूसरे दिन इत्यादि अर्थों में प्रयुक्त होते हैं। (१) 'परुत यह शब्द गत वर्ष के लिये प्रयुक्त होता है। (२) 'परारि' यह शब्द तीसरे वर्ष के लिये प्रयुक्त होता है । (३) 'ऐषमः' यह शब्द इस वर्तमान वर्ष के लिये प्रयुक्त होता है। (४) 'स्म' यह बीते हुए काल के लिये प्रयुक्त होता है । (५) 'बहिः' यह बाहर अर्थ के लिये आता है। (६) 'ॐ' यह प्रश्न अर्थ में है। (७) 'अयि, यह अनुमान (खुशामद) अर्थ में है। (८) 'उषा' यह रात्रिका अन्त अर्थ में है। (९) 'हैं। यह तर्क वितर्क अर्थ में है। (१०) 'नमः' यह नमस्कार अर्थ में है। (११) 'दुष्टु' यह निन्दा अर्थ में । (१२) 'मुष्ठु' यह प्रशंसा अर्थ में । (१३) 'प्रातः प्रगे' ये दोनों प्रातः काल अर्थ में । (१४) 'सायं' यह सायंकाल अर्थ में । (१५) 'प्राक' यह अतीतकाल अर्थ में । (१६) 'सना' यह नित्य अर्थ में। (१७) 'कच्चित्, यह इष्ट प्रश्न में । (१८) 'साम्प्रतम्, स्थाने' यह दोनों युक्त अर्थ में । (१९) 'अभीक्ष्णम्, शश्वत, ये दोनों लगातार अर्थ में । (२०) 'नहि, नो, न' ये तीनों अभाव अर्थ में । (२१) 'प्रसह्य' यह हठ अर्थ में प्रयुक्त होता है। Page #365 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीय काण्डम् ३५२ अव्ययवर्गः तत्वार्थेऽञ्जसा प्रोक्तं प्रादुराविः प्रकाशने । असत्ये च मृषा मिथ्याऽवश्यं नूनश्च निश्चिते ॥९॥ निःषेमं दुःषमं निन्द्ये एव इत्यवधारणे । आमेवं तु पुनर्वैवा निश्चयार्थे प्रकीर्तिताः ॥ १० ॥ निकामानुमतौ कामम् ओमेवं परमं तथा । कदाचिज्जातु कस्मिंश्चित्काले द्वयमुदाहृतम् ॥ ११॥ सहार्थे तु समं सार्क सार्धं सत्रा सहेति च । भोः" प्यार पाट् अङ्गहै है स्युः सम्बोधनस्य द्योतकाः ॥१२॥ "हिरुग् वर्जनं सामीप्ये सहसा स्यादतर्किते । १० (१) 'अद्धा, अञ्जसा, ये दोनों तत्त्व यथार्थ अर्थ में प्रयुक्त होते हैं । (२) 'प्रादुः आविः, ये दोनों प्रकाशन स्फुट अर्थ में प्रयुक्त होते हैं । (३) 'मृषा, मिथ्या, ये दोनों असत्य अर्थ में प्रयुक्त होते हैं । ( ४ ) अवश्यम्, नूनम्, ये दोनों निश्चित अर्थ में । ( ५ ) 'निः षमम् दुःषमम्, ये दोनों निन्दा करने योग्य अर्थ में । (६) 'एव' यह अवधारण (अन्य की व्यावृत्ति ) अर्थ में । ( ७ ) 'आम्, एवं, तु, पुनः, वै, वा, ये सभी निश्रय अर्थ में कहे हुए हैं । (८) 'कामम्' ओम् एवं परमम् ये चार अत्यन्त अनुमति (स्वीकृति ) अर्थ में ( ९ ) 'कदाचित् जातु' ये दोनों किसी भी अनिश्चितकाल अर्थ में कहा गया है । (१०) 'समं, साकं, सार्धं, सत्रा, सह, ये सब सहार्थ में प्रयुक्त होते हैं । (११) 'भोः प्याट् पाद, अङ्ग हैं, है, ये सब सन्बोधन अर्थ के द्योतक हैं । (१२) 'हिरुक्' यह वर्जन समीप अर्थ में है । (१३) 'सहसा अतर्कित एकाएक अचानक अर्थ में है । यह Page #366 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृयीयकाण्डम् ३५३ अव्ययवर्गः ४ 'स्वाहा स्यात्तु हविर्दाने वौषट्श्वौषट्वषट् स्वधा ॥१३॥ तूष्णीं मौने मनागल्पे किञ्चिदीपत्तथैव च । तु हि चह तथा वै स्यात् किलापि पादपूरणे ॥१४॥ "प्राध्वं स्यादानुकूल्यार्थे व्यर्थके तु मुधा वृथा । दोषा नक्तं रजन्यां स्यात् दिवसे तु दिवा स्मृतम् ॥१५॥ विकल्पार्थे तु आहो स्याद् उताहो किमुतापि वा । वक्रे साचि" तिरः प्रोक्तं "प्रेत्यामुत्र भवान्तरे ॥१६॥ पौनः पुन्ये "मुहुः शश्वद् अभीक्ष्णमसकृत् पुनः । "दाग झटित्यजसा मंच सधः सपदि तत्क्षणे ॥१७॥ चिरार्थे चिररात्राय" चिरायादि प्रकीर्तितम् । (१) स्वाहा वोषद्, श्रीषद्, वषट्, स्वधा, ये सब हविष क्षेप अर्थ के लिये प्रयुक्त होते हैं । (२) 'तूष्णीम्' यह मौन अर्थ में। (३) 'मनाक किञ्चित्, ईषत, ये तीनों अल्प अर्थ, में । (४) तु, हि, च, ह, वै, किल, अपि, ये सब लोक की पा पूर्ति के लिये आते हैं। (५) प्राध्वम्, यह अनुकूल अर्थ में प्रयुक्त होता है । (६) 'मुधा, वृथा' ये दोनों व्यर्थ अर्थ में प्रयुक्त हैन है । ७) 'दोषा नक्तं' ये दोनों रात्रि अर्थ में हैं। (८) 'दिवा' यह शब्द दिन अर्थ में प्रयुक्त होता है । (९) 'आहो, उताहो, किमुत, वा' ये चारों विकल्प अर्थ में प्रयुक्त होते हैं । (१०) 'साचि, तिर:' ये दोनों टेढा अर्थ में है । (११) 'प्रेत्य, अमुत्र' ये दोनों दूसरे भवरूप अर्थ में प्रयुक्त होते हैं । (१२) 'मुहुः शश्वत्, अभीक्ष्णम्, अस-. कृत, पुनः,, इतने शब्द वारम्बार अर्थ में (१३) द्राक्, झटिति, अञ्जमो, ,मंक्षु, सद्यः, सपदि इतने शब्द तुरत अर्थ में प्रयुक्त होते है । (१४) 'चिररात्राय चिराय, चिरं, चिरेण, चिरात्, चिरे ये सब देर काल के लिये प्रयुक्त होते हैं । २३ Page #367 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयकाण्डम् ३५४ अव्ययवर्गः ५ सादृश्यार्थे 'यथेवैवं तथा वा व प्रकीर्तितम् ॥१८॥ विस्मयार्थे 'अहो हीचा नन्दे दिष्टया शमीरितम् । पुनश्चा प्रथमे भेदे निनिश्चय निषेधयोः ॥१९॥ अन्तरे चान्तरा मध्ये चान्तरेण तथैव च । परितः सर्वतो विष्वक् समन्तात्तु समन्ततः ॥२०॥ अभितो विश्वतोऽर्थे स्यात् मास्म मालं च वारणे। (१) 'यथा इव', एवं, तथा, वा, व, ये सब सादृश्य अर्थ में प्रयुक्त होते हैं । (२) 'अहो ही 'ये दोनों आश्चर्य अर्थ में । (३) 'दिष्टया, शम्' ये दोनों आनन्द अर्थ में । (४) 'पुनः', वार वार तथा भेद अर्थ में (५) 'निः' यह निश्चय तथा निषेध अर्थ में । (६) अन्तरे; अन्तरा अन्तरेण ये तानों मध्य अर्थ में । (७) परितः सर्वतः विष्वक् समन्तात् समन्ततः अभितः ये सब सभी तरफ से इस अर्थ में प्रयुक्त होते हैं । (८) मास्म मां अलं ये तीनों मना करना अर्थ में प्रयुक्त होते है। ॥ इति अव्ययवर्गः समाप्तः ।। Page #368 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयकाण्डम् ३५५ लिङ्गदिनिर्णयवर्ग:५ ॥ अथ लिङ्गादि निर्णयवर्गः प्रारभ्यते ॥ 'लिङ्गनिर्देशकः शास्त्रैः नानासूत्रसमन्वितैः । सन्नादि निर्मितैः शब्दैः कृत्तद्धितसमासः ॥१॥ लिङ्गादि संग्रहत्वेन संक्षेपवर्गनामके । पूर्वानुक्तै लिङ्गादान प्रकीर्णवदिहोन्नयेत् ॥२॥ लिङ्गोत्सैगविधिज्ञेयः काण्डत्रय उदाहृतः।। विशेष विधिना नोचेत् कदाचिद् बाधितो भवेत् ॥३॥ ईदैन्तः स्त्रियामेकाच् सयोनि प्राणि नामनि । हिन्दी-(१) इस लिङ्गादि निर्णय वर्ग में जिन शब्दों के पुंल्लिङ्गादि लिङ्गों का पूर्व में प्रतिपादन नहीं किया गयाहै उन शब्दों में लिङ्गादि का ज्ञान प्रकीर्ण वर्ग के समान ही स्त्रियां तिन् पुंसि संज्ञायां घः प्रायेण, नपुंसके भावेक्तः स नपुंसकम् अदन्तोत्तरपदो द्विगुः स्त्रियामिष्टः' इत्यादि अनेक सूत्रों से युक्त लिङ्ग निर्देशक व्याकरण शास्त्रों एवं सन् प्रत्ययादि सहित कृदन्त तद्धि. तान्त समासादि शास्त्रों से निष्पन्न 'पाकः, त्यागः, रागः, श्रुतिः, स्मृतिः, मतिः, गतिः, स्तुतिः' इत्यादि शब्दों द्वारा करना चाहिये । (२) किन्तु तीनों काण्डों में किसी विशेष अपवाद विधि से नहीं बाधित होने पर सामान्य उत्सर्ग विधि से ही लिङ्गों का बोध कर लेना चाहिये । (३) यहां से 'स्त्रियाम्' इसका अधिकार चालु होता है ईकारान्त ऊकारान्त एक अच् स्वर] वाला शब्द स्त्री लङ्ग होता हैं जैसे श्रीः, हीः, धीः, भ्रः, दूः, लः, भूः, नीः' इत्यादि यहां लवनं लूः, इस प्रकार भाव में किप् प्रत्ययान्त है किन्तु लूनातीति लः, यह कर्तरि किप् प्रत्ययान्त तो त्रिलिङ्ग समझा जाता हैं। Page #369 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयकाण्डम् ३५६ लिङ्गादिनिर्णयवर्गः ५ वाणी वल्ली निशा विद्युन्नदी दिग्भूधियां तथा ॥४॥ अदन्तोत्तर शब्दश्चेद् द्विगुरेकार्थबोधकः । नो चेद् भुवनपात्राथै रदन्तै र्जातु संयुतः ॥५॥ समूहे येनिकैटय त्रास्तलू वैरमिथुनादिवुः । स्त्रियां क्तिन्ननिण्वुल्ण्वुज णज् युच् क्यवङिज निशाः स्मृताः ॥६॥ (४) योनि सहित प्राणिवाचक शब्द भी स्त्रीलिङ्ग होता है जसे माता, दुहिता, याता, स्त्री, इत्यादि किन्तु दार शब्द योनि प्राणी स्त्रीवाचक होने पर भी पुंलिङ्ग ही हैं। (१) वाणी, वल्लो, निशा, विद्युत्, नदी, भू, धी वाचक शब्दों के पर्याय स्त्रीलिङ्ग हैं जैसे-वाणी, वाक्, गौः, गो, वल्ली, लता, वीरुत्, निशा, रात्रि, रजनि इत्यादि । (२) अदन्तोत्तर पद द्विगु एकार्थक शब्द त्रिलोकी, दशमूली इत्यादि स्त्रीलिङ्ग हैं । किन्तु त्रिभुवन, पञ्चपात्र इत्यादि नपुंसक है। (३) समूह अर्थ में य, इनि, कटय, त्र, तल्, वैर, मिथुनार्थक वु प्रत्यय क्तिन् , अनि, ण्वुल्, ण्वुच, णच, युच, क्यप, अङ् इञ् निश और अ प्रत्ययान्त शब्द स्त्रोलिङ्ग होते है । जैसे-य-पाश्या, इनि लिनी, डाकिनी, शाकिनी, कटय-रथकटया, त्र, गोत्रा, तलु देवता, ग्रामता, जनता, वैर मिथुन बु-अश्वमहिषिका काकोलूकिका, अत्रि भरद्वाजका आदि शब्द से द्विपदिका गार्गिका काठिका शैष्योपाध्यायिका इत्यादि क्तिन्-मतिः, श्रुतिः, स्मृतिः, गतिः, कृतिः इत्यादि अनि अजननिः, अकरणिः ण्वुल्लू-प्रछदिका, प्रचर्चिका, प्रवाहिका, ण्वुच् आसिका शायिका, इक्षुभक्षिका णच्-व्यावक्रोशी व्यावहासी Page #370 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयकाण्डम् ३५७ लिङ्गादिनिर्णयवर्ग: ५ उणादावी निरुश्चोक्त ऊङ् ड्यावन्तं स्थिरं चलम् । प्रहरणं तत्क्रीडायां दाण्डा मौष्टा णदिक् स्मृता ॥७॥ सा क्रियाऽस्यां घना बः स्याद् दाण्डापातातिथिः स्मृता । मृगया स्यैनंपातास्यात् तैलंपाता स्वधा स्मृता ॥८॥ विवक्षाऽपचये चेत् स्त्री मृणाल्यादि रुदाहृता । युच्-कारणा, कामना, क्यपू-बज्या, इज्या, समज्या, निषद्या अङ भिदा, छिदा, इब कारिः गणिः निः ग्लानिः हानिः म्लानिः श-- 'क्रिया, इच्छा; अ-चिकीर्षा, ईहा, ऊहा इत्यादि । (१) उणादि गण में ई प्रत्यय निप्रत्यय ऊ प्रत्ययान्त शब्द स्त्रोलिङ्ग होते हैंजैसे-अवोः, तरी:, श्रेणिः, श्रोणिः, चमूः इत्यादि, अङ्-ङी आपू प्रत्ययान्त-वामोरुः गौरी, रमा इत्यादि स्त्रीलिङ्ग है। (२) प्रहरण अर्थ में क्रीडा के लिए प्रत्युक्त ण प्रत्ययान्त शब्द स्त्रीलिङ्ग होते हैं जैसे-दण्डा मौष्टा इत्यादि । (३) 'दण्डपात इस तिथि में है' इस अर्थ में घनन्त क्रिया वाचक दण्डपात शब्द से स्त्रीलिङ्ग में अप्रत्ययान्त 'दण्डपाता तिथिः' ऐसा प्रयोग होता है । (४) श्येनपात इस मृपया में है ।। इस अर्थ में घञन्त क्रियावाचक श्येनपात शब्द से स्त्रीलिङ्ग में प्रत्ययान्त 'श्यैनपाता मृगया' ऐसा प्रयोग होता है । (५) 'तेलपात इस स्वधी में हैं। इस अर्थ में घनन्त क्रियावाचक तेलपात शब्द से स्त्रीलिङ्ग में अप्रत्ययान्त 'तैलं पाता स्वधा' ऐसा प्रयोग होता है। (६) अल्पता की विवक्षा करने पर मृगालो आदि से कुम्भा, प्रणाली, मुसली, पटो, तटी इत्यादि प्रयोग स्त्रीलिङ्ग में होता है । छोटा मृणाल, छोटा घड़ा, छोटो नालो, छोटा मुसल, छोटा कपड़ा' छोटा तट ऐसा अर्थ होता है। Page #371 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयकाण्डम् ३५८ लिङ्गादिनिर्णयवर्गः ५: टीका शेफालिका लङ्का घातकी पग्जिकाढकी ॥९॥ सारिको सिघ्रका हिक्का प्राचिकोल्का पिपीलिका । कणिका तिन्दु की भङ्गिः सुरङ्गामाढि सूचयः ॥१०॥ कन्था साति रथा सन्दी नाभिराज सभा तथा । वितण्डा काकिणो पिच्छा शाणी चूणि ट्रेणी दरत् ॥११॥ चर्चरी झल्लरी होरा पारी लट्वा च सिद्मला । लिक्षा लाक्षाऽथ गण्डूषा चमसी गृध्रसी मसी ॥१२॥ इत्येवं स्त्रीत्वसंयुक्ताः शब्दाः स्त्रीत्वे प्रकीर्तिताः । हिन्दो-(१) टीका शेफालिका, लङ्का, घातको पञ्जिका आढकी ये शब्द खोलिङ्ग में प्रयुक्त होते हैं । शेफालिका सिंहर. हार फूल को कहते हैं । जो कि रात में खिलते ही जमीन पर पड़ जाता है । (२) सारिका (मेना) शब्द स्त्रीलिङ्ग है। सिध्र का (सीध नाम का वृक्ष विशेष शब्द एवं हिक्का (हिचकी) शब्द प्राचिका (वनमक्षिका) शब्द, उल्का (टूट तारा) शब्द, पिपीलिका (छोटीकीट पतङ्ग) शब्द, कणिका (अत्यन्त छोटा कण) शब्द, तिन्दुकी शब्द, भङ्गि (छटा विच्छित्ति विशेष) शब्द, सुरङ्गा (सुरङ्ग) शब्द, माढि (बाण पत्र का अग्रभाग) शब्द, आसन्दी (कुर्सी), नाभि राजसभा वितण्डा, काकिणी (कौरो) पिच्छा (मयर पिच्छ) शाणी (शाण) चूर्णि, द्रुणो (कच्छप') दरत् (प्रपात) चर्चरो (गीतवाद्य) झल्लरी (झाल) होरा (लाल) पारो (दहनपात्र) लट्वा (लटवा) सिद्मला लिशा लाक्षा गण्डूषा चमसो गृध्रसी (वात व्यात्रि विशेष) मसा (स्याही) ये सब स्त्रीलिङ्ग में प्रयुक्त हते हैं । स्त्रीलिङ्ग समाप्त । Page #372 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयकाण्डम् ३५९ लिङ्गादिनिर्णयवर्ग:५ पुंस्त्व इत्यधिकारेऽस्मिन् सभेदानुचरास्तथा ॥१३॥ पर्यायसहिताः सर्वे देवा दैत्या उदाहृताः। स्वर्गाद्विमेघ यागाब्धि वृक्षकालारिशरासयः ॥१४ । एते हि नित्य पुंल्लिङ्गा यथा शास्त्रं प्रकीर्तिताः । हिन्दो-(१) अब यहां से पुंल्लिङ्ग के अधिकार में भेदों (विशेष) तथा अनुचरों के साथ एवं पर्यायों के साथ सभी देव तथा दैत्यवाचक शब्द पुंल्लिग में प्रयुक्त होते हैं, जैसे-सुरभेद (सुरविशेष) तुषिताः, साध्याः, आभास्वराः, इन्द्रः, शक्रः, सूर्यः, आदित्यः चन्द्रः इन्द्रः इत्यादि, देवानुचर हाहाः, हहूः, तुम्बरुः, नारदः, मातलिः इत्यादि, सुरपर्याय-अमराः, निर्जराः, देवाः, त्रिदशाः, विबुधाः सुराः इत्यादि । दैत्यभेद-बलिः, नमुचिः, जम्भः इत्यादि दैत्यानुचर-कूष्माण्डाः, मुण्डाः कुम्भाण्डाः इत्यादि दैत्यपर्याय-दैत्याः, दैतेयाः, दानवाः इत्यादि शब्द पुंल्लिङ्ग माने जाते हैं। किन्तु दैवतानि,देवताः, ये दोनों क्रमशः नपुंसक स्त्रीलिङ्ग हैं । (२) स्वर्ग अद्रि मेघ याग अन्धि वृक्ष काल अरि शर और असि इतने शब्द भेदों (विशेषो) तथा पर्यायों के सहित नित्य पुल्लिङ्ग होते हैं जैसे-स्वर्गः, नाकः, त्रिदिवः, अद्रिः, गिरिः पर्वतः मेरुः, हिमवान्, सह्यः, मेघः, घनः, जलदः, पुष्करः, आवतेः यागः, यज्ञः मखः क्रतुः उकथः, अश्वमेघः, अग्निष्टोमः, अब्धिः, समुद्रः, सागरः क्षीरोदः, लवणोदः वृक्षः तरुः दुः, प्लक्षः कालः, समयः, दिष्टः मासः पक्षः ऋतुः, अरिः, शत्रुः अशतिः आततायो : शरः बाणः विशिखः नाराचः भल्लः काण्डः असि, खगः नन्दकः चन्द्रहासः इत्यादि शब्द पुंल्लिग होते हैं । किन्तु द्यो दिव् ये दोन स्वर्गवाचक शब्द स्त्रीलिंग हैं तथा त्रिविष्टप शब्द नपुंसक है, एवं Page #373 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीय काण्डम् ३६० लिङ्गादिनिर्णयवर्गः ५ कपोलाधरदोर्दन्त कोश कण्ठकरस्तनाः ॥ १५॥ 'अह्नादान्ताः नखक्ष्वेडा : रात्रान्ताः प्रागसंख्यकाः । " सरलाद्याश्च निर्यासा अन्नसन्ता अबाधिताः || १६ || 1 मेघवाचक अभ्रशब्द नपुंसक है । एवं दिन तिथि ये दोनो शब्द काल विशेषवाचक नपुंसक तथा स्त्रीलिंग भी माने जाते हैं । (१) कपोल अधरोष्ठ बाहु दन्त केश कण्ठ कर (टेक्स मालगुजारी वगैरह राजग्राह्य भाग एवं किरण हाथ और स्तन वाचक शब्द पुल्लिंग होते हैं । जैसे - कपोल: गण्डः अधरः ओष्टः, दन्तच्छदः दो बाहुः प्रवेष्टः दन्तः दशतः रदः जम्भः, केशः, कचः, कुन्तलः, चिकुरः, बालः, स्तनः, कुचः, पयोधरः इत्यादि शब्द पुल्लिंग है । (२) अह्न और अहः शब्दान्त शब्द पुल्लिंग होते है पूर्वाह्न, पराह्न द्वहः त्र्यहः इत्यादि। (३) नख और वेड (जहर) शब्द पर्याय पुल्लिंग हैं । नखः पुनर्भावः क्ष्वेड : गरलः । (४) असंख्या पूर्वक रात्र शब्दान्त शब्द पुल्लिंग है । सर्वरात्र: पूर्वरात्रः इत्यादि । (५) सरः आध शब्द से श्रो वेष्टः द्रवः श्रीवासः वृकधूपः गुग्गुलुः सिह्नकः इत्यादि निर्यास वृक्ष द्रव वाले वृक्षों का वाचाक शब्द पुल्लिंग है । (६) अनू अन्तवाले शब्द और असूअन्तवाले शब्द पुल्लिंग है-जैसे कृष्णवर्मा, प्रतिदिवा' मत्रवा अङ्गिराः वेधाः चन्द्रमा इत्यादि, किन्तु अनन्त और अनन्त शब्द भी यदि किसी विशेष अपवाद से बाधित होने पर पुल्डिंग नहीं होते जैसे - लोम, सम, वर्ग, वर्त्म, अप्सरसः जलौकसः सुमनस इत्यादि शब्द यथाक्रम नपुंसक स्त्रोलिंग है । Page #374 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयकाण्डम् ३६१ जतु कशेरु वस्तूनि त्यक्त्वा 'तुर्ववसानकाः । * कणभमरषोपान्त्या अदन्ताश्वेदमी तथा ॥ १७॥ टथन पय सोपान्त्या गोत्रा चरणाह्वयाः । लिङ्गादिनिर्णयवर्गः ५ ( १ ) जतु वस्तु और कशेरुशब्द को छोड़कर तु शब्दान्त और रुशदान्त शब्द पुल्लिंग होते है - जैसे- हेतु, सेतुः धातुः कुरुः, मेरुः, सरुः इत्यादि तु वस्तु और कशेरु ये तीन शब्द तो तु और रु शब्दान्त होने पर भी पुल्लिंग नहीं है अपि तु नपुंसक लिंग हो माने जाते है | यहां पर यद्यपि किसी विशेष अपवाद से बाधित नहीं होने पर हो सामान्यरूप से पुल्लिंगादि लिंगों का संग्रह किया गया है तथापि उसी विशेष अपवाद का फलितार्थ ही जतु वस्तु कशेरु का निषेध किया हुआ समझना चाहिये । (२) ककार णकार भकार मकार रेफ षकार उपान्त्यवाले अदन्त शब्द तथा टकार थकार नकार पकार यकार सकार उपान्त्य वाले अदन्त शब्द पुल्लिंग होते है। जैसे- अङ्कः अर्कः लोकः शोकः कोकः गुणः घुणः, पाषाणः दर्भः गर्दभः सरभा होमः धूमः ग्रामः काम; वासः, शीकरः झझरः समीरः कीरः माषः तुषः रोषः, पटः घटः सरटः करटः नाथः सार्थः शपथः जनः इनः अपघनः कूपः यूपः सूपः, कलापः विनयः प्रणयः अपनयः रसः हासः अर्थात् वंश के आदि पुरुष वाचक शब्द गौतमः भरद्वाजः, वसिष्ठः काश्यपः -इत्यादि । (४) चरण अर्थात् वेद शास्त्रा वाचक शब्द पुल्लिङ्ग पनसः इत्यादि । (३) गोत्र पुल्लिङ्ग होते हैं जैसेशाण्डिल्यः, कात्यायनः होते हैं जैसे-कठः, कलापः, बहुवृचः इत्यादि । " Page #375 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयकाण्डम् ३६२ लिङ्गादिनिर्णयवर्गः ५ संज्ञायां कारके कर्तृ भिन्ने भावे च प्रत्ययाः ॥ १८ ॥ तदन्ताः पुंसि विज्ञेया घञ् जब् नङथुज् णघाः । 'कर्तरियुस्तथा भावे केमनिज् घोकिरुदाहृतः ॥ १९ ॥ (१) संज्ञा में कतृ भिन्न कारक तथा भाव में जो प्रत्यय होते हैं तदन्त शब्द पुल्लिङ्ग होते हैं जैसे घञ् प्रत्ययान्त, अच् प्रत्ययान्त, अप प्रत्ययान्त, नङ् प्रत्ययान्त, अथुच् प्रत्ययान्त, णप्रत्ययान्त, घरत्ययान्त शब्द पुल्लिङ्ग समझना चाहिये उदाहरण - प्रासादः अधिकरण में घञ् प्रत्ययान्त हैं, एवं प्रासः, वेदः, प्रपातः, इत्यादि कर्म-करण अपादानमें घञ् प्रत्ययान्त हैं, भाव में - पाकः, त्यागः, रागः, रोगः, दायः, धायः, चयः, अच्प्रत्ययान्त हैं 1 करः, गरः, लवः, स्तवः अप् प्रत्यायान्त हैं । स्वप्नः, यत्नः, यज्ञः इत्यादि नङ् प्रत्ययान्त हैं । श्वपथुः वपथुः, अथुच् प्रत्ययान्त हैं | न्यादः प्रत्ययान्त है । प्रच्छदः, उरश्छदः रदच्छदः घप्रत्ययान्त हैं ये सभी घञ् अच् अप् नङ् अथुच्णघ प्रत्ययान्त शब्द पुल्लिङ्ग में प्रयुक्त होते हैं । (२) कर्ता अर्थ में ल्यु प्रत्ययन्ति शब्द पुल्लिङ्ग होते हैं जैसे- नन्द्यादिभ्यो ल्युः - नन्दनः रमणः, मधुसूदनः इत्यादि । (३) भाव अर्थ कप्रत्ययान्त तथा इमनिच् प्रत्ययान्त शब्द पुल्लिङ्ग होते हैं जैसे - आखून मुत्थानम् जयः, " आखूत्थः प्रस्थः इत्यादि, एवं प्रथिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, द्रढिमा इत्यादि इमनिच् प्रत्ययान्त शब्द पुल्लिङ्ग में प्रयुक्त होते " प्रत्ययान्त शब्द पुल्लिङ्ग हैं । (६) घुसंज्ञक दा धा धातु से कि होते हैं जैसे - विधिः, निधि, उदधिः, आधिः, व्याधिः, समाधिः, सन्धिः इत्यादि । Page #376 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीय काण्डम् ३६३ 'इतरेतरयोगे तु द्वन्द्वेऽश्ववडवौ स्मृतौ । तथाऽश्ववडवा वाप्यश्ववडवं समाहते ॥२०॥ सूर्य चन्द्र समायुक्तः कान्तोऽयः पूर्व एव च । रल्लकञ्चानुवाकश्च वटकश्च कुडङ्गकः ॥ २१ ॥ न्युङ्खः पुंखः समुद्रश्च खट पट्टविटाः घटः । घट्ट कोहार हट्टाच पिचण्ड गोण्ड पिण्डवत् ||२२|| किणो घुणो वरण्डश्च करण्डो लगुडो गडुः । लिङ्गादिनिर्णयवर्गः ५. (१) इतरेतरयोगद्वन्द्व में अश्ववडवो, अश्ववडवाः, अश्ववडवान् इस प्रकार पूर्वपद के अनुसार पुल्लिङ्ग में प्रयुक्त होते हैं किन्तु पर पद के अनुसार स्त्रीलिङ्ग में नहीं होते । परन्तु समाहार द्वन्द्व में अश्ववडवं ऐसा हो नपुंसक में प्रयुक्त होता है । (२) सूर्य शब्द पूर्वक, एवं चन्द्रशब्दपूर्वक तथा अयः शब्द पूर्वक कान्त शब्द पुल्लिङ्ग में प्रयुक्त होते हैं जैसे- सूर्यकान्तः, चन्द्रकान्तः, अयस्कान्तः इत्यादि । (३) रल्लक ( पक्ष्म कम्बल) शब्द अनुवाक (ऋग्वेद-यजुर्वेदसमूह) शब्द, वटक (वाड़ा) शब्द, कुडङ्गक (वृक्षलतागृह) शब्द, न्युङ्ख (मनोज्ञ, सामवेद) का छेप्रणव) शब्द. पुङ्ख (धनुष्काण्डमूल) शब्द समुद्र (संपुट) शब्द, खट (टङ्की, कूप शब्द, पड ( पाटा शिला) शब्द, विट ( लम्पट ) शब्द घट (घड़ा) शब्द, घट्ट (घाट, अरघट्ट) शब्द, कोट्टार (नागरकूप) शब्द, हड्ड (दुकान) शब्द, पिचण्ड गोण्ड पिण्ड शब्द के समान पुल्लिङ्ग में प्रयुक्त होते हैं । एव किण (मांस ग्रन्थि ढेला) शब्द घुण (धूप) शब्द वरण्ड (मुख का रोग विशेष) शब्द, करण्ड (मधुकोष) शब्द, एवं लगुड (यष्टि) शब्द, तथा गड्डु (गले का घेघ) शब्द पुल्लिङ्ग में प्रयुक्तः होते हैं । Page #377 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयकाण्डम् ३६४ लिङ्गादिनिर्णयवर्गः ५ 'रोमन्थो दृति सीमन्तौ हरिदुद्गीथ बुदबुदाः॥२३॥ स्तूपः फेनोऽर्बुदः कुन्दः कासमर्दश्च पूपकः । कण पक्षुर चुक्राश्च क्षत्रिये नाभिरातपः ॥२४॥ क्षरप्रः केदरः पूरो गोल पुद्गल हिंगुलाः । मल्लो भल्लश्च वेतालः पुरोडाशस्तु पट्टिशः ॥२५॥ रभसश्चैव कुल्माषः कटाहश्च पतद्ग्रहः। क्लीब इत्यधिकारेऽस्मिन् उक्तान्येत् समुदाहृतम् ॥२६॥ (१) रोमन्थ (चर्चित चर्वण) शब्द, दृति (चर्मपुट मशक) शब्द, सीमन्त (केश विन्यास) शब्द, हरित् (दिशा) शब्द, उद्गोथ, (सामवेद ध्वनि प्रणव) शब्द, बुदबुद (जल बुदबुदे परपोटे) शब्द स्तूप (ऊंचा भाग) शद्ब, फेन शब्द, अर्बुद (दशकरोड़) शब्द, कुन्द, (फूलविशेष) शब्द, कानमर्द (वेशवारविशेष) शब्द, पूषक (मालपूरा) शब्द, कणप (प्रास तलवार) विशेष) शब्द, क्षुर (छुरदा) शब्द, चुक (स्वटाइ) शब्द एवं क्षत्रिय विशेष अर्थ में नाभि शब्द एवं आतप (तरका धूप) शब्द, क्षुरप्र (बाण विशेष) शब्द, केदर (तरु विशेष) शब्द, पूर (जल प्रवाह) शब्द, गोल (मण्डल) शब्द, एवं पुद्गल (परमाणु) शब्द, और हिङ्गल (होङ्ग) शब्द पुल्लिंग में प्रयुक्त होते हैं । (२)मल्ल (पहलवान) शब्द, भल्ल (भाया) शब्द. वेताल (भूतयोनि विशेष) शब्द, एवं पुरोडाश (हवि विशेष) शब्द एवं पटिश (शस्त्र विशेष) शब्द, रभस (वेग) शब्द, कुल्माघ (कांजी) शब्द, कटाह (कराह, पात्रविशेष) शब्द , एवं पतद्ग्रह (पिकदानी) शब्द पुंल्लिङ्ग में प्रयुक्त होते हैं। पुल्लिङ्ग समाप्त । (३) अब यहां से नपुसक का अधिकार किया जाता है जिसमें कि उपरोक शब्द Page #378 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयकाण्डम् ३६२ लिङ्गादि निर्णयवर्गः ५ अरण्यं खं तथा पर्ण हिमं श्वभ्रं तथोदकम् । 'उष्णं शीतं बलं मांसं रुधिराक्षि द्रविणं मुखम् ॥२७॥ हेम शुल्वं फलं लोहं सुख दुःखं शुभाशुभम् । जलजानि च पुष्पाणि व्यञ्जनं लवणं तथा ॥२८॥ अनुलेपनं तथा पुण्यं पापश्च समुदाहृतम् । कोटि विहाय संख्याऽन्या शतादि परमावधिः ॥२९॥ लक्ष लक्षेति विज्ञेयमसिसुसन्तं स्वरद्वयम् । अन् अन शब्दान्तमाख्यातं कर्तृभिन्नार्थवाचकम् ॥३०॥ से भिन्न शब्द समझना चाहिये। जैसे-अरण्य (जंगल) शब्द खं (आकाश) शब्द तथा पर्ण (पत्ता) शब्द, एवं हिम (वर्फ) शब्द तथा श्वभ्र (बिल) शब्द एवं उदक शब्द नपुंसक लिङ्ग में प्रयुक्त होते हैं । (१) उष्ण शब्द, शीत शब्द, बल शब्द, मांस शब्द, रुधिर शब्द, अक्षि (आँख) शब्द, द्रविण (धन) शब्द, मुखशब्द हेमन् (सुवर्ण) शब्द, शुल्व (ताम्र) शब्द, फल शब्द, लोह शब्द, सुखशब्द तथा जल में उत्पन्न होने वाले फूल विशेष वाचक कमल कुमुद कल्हार उत्पल वगैरह शब्द एवं व्यञ्जन तथा लवण शब्द, एवं अनुलेपन शब्द एवं पुण्य तथा पाप शब्द नपुंसकलिङ्ग में प्रयुक्त होते हैं। (२) कोटि शब्द को छोड़करे शत शब्द से लेकर अन्तिम अवधि परार्ध पर्यन्त संख्या वाचक शब्द नपुंसक होते हैं जैसे-शतम् सहस्रम्, अयुतम्, अर्बुदम् इत्यादि । (३) किन्तु लाख संख्या वाचक लक्ष शब्द' नपुंसक तथा स्त्रीलिंग होता है जैसे- लक्षम्, लक्षा इति । (४) दो स्वर (अच्) वाला असन्त उसन्त शब्द नपुंसक होता है। जैसे यशः पयः, तेजः, तमः, सर्पिः, हविः ज्योतिः, शाचः, वपुः, यजुः धनुः इत्यादि । Page #379 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीय काण्डम् ३६६ लिङ्गादिनिर्णयवर्गः ५ 'सलोपान्त्यं त्रशब्दान्तं नो चेत् पूर्वेण बाधितम् । * संख्या पूर्वपदं रात्र शब्दान्तं समुदाहृतम् ॥३१॥ पात्राद्यन्तो यथा लक्ष्यं द्विगुरेकार्थवाचकः । द्वन्द्वैकार्थ समाहारोऽव्ययीभावस्तथैव च ॥ ३२ ॥ "संख्याऽव्ययात्परः पन्थाः समासान्तान्वितो भवेत् । (१) कर्ता से भिन्न अर्थ का वाचक अन शब्दान्त शब्द नपुंसक होता है, जैसे-गमनम्, रमणम् दानम्, कथनम् इत्यादि एवं अन् शब्दान्त शब्द भी नपुंसक होता है जैसे - सर्म, चर्म, वर्म, - नाम, धाम इत्यादि । (२) सकार और लकार उपान्त्य वाले त्र शब्दान्त शब्द नपुंसक होते है । जैसे- दात्रम्, पात्रम् वस्त्रम्, विसं, नम्, अन्धतमसम्, कूलम्, मूलम्, शूलम्, तूलम् इत्यादि किन्तु किसी पूर्व अपवाद से बाधित नहीं हो सका हो तो जैसेपुत्रः, वृत्रः इत्यादि । (२) संख्यावाचक शब्द पूर्वपद तथा रात्र शब्दान्त शब्द नपुंसक होता है । जैसे - त्रिरात्रम्, पञ्चरात्रम्, सप्तरात्रम् इत्यादि । ( ३ ) किन्तु एकार्थ वाचक तथा पात्रादि शब्दान्त द्विगु समास लक्ष्यानुसार नपुंसक होता है । जैसे- पञ्चपात्रम् त्रिभुवनम् इत्यादि किन्तु त्रिलोकी त्रिपुरी पञ्चपूली त्रिवली इत्यादि शब्द स्त्रीलिंग ही होता है । (४) एकार्थ वाचक समाहार द्वन्द्व समास तथा अव्ययीभाव समास नपुंसक होते हैं जैसे -पाणिपादम् अधिहरि, अधिगोपम्, अपदिशम् इत्यदि । (५) संख्यावाचक तथा अव्यय शब्द से परमें समासान्त प्रत्यययुक्त पथिन् शब्द नपुंसक होता हैं । जैसे- द्विपथम् त्रिपथम्, चतुष्पथम् विप, थम्, अपथम् कापथम् इत्यादि, किन्तु धर्मपथः अतिपन्थाः, सुपन्थाः यहां पर पुल्लिंग ही होता हैं क्योंकि संख्याव्ययादि नहीं हैं एवं समासान्त प्रत्यय नहीं हैं। Page #380 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - - - तृतीयकाण्डम् ३६७ लिङ्गादिनिर्णयवर्गः ५ षष्ठयन्ताच्चेत्परा छाया बहुत्वे संगता यदि ॥३३॥ तत्पुरुष समूहाथै सभा शब्दान्त एव च । शालार्थाऽपि सभाराजाऽमनुष्यार्था दराजकात् ॥३४॥ षष्ठयन्ताच्चेत्परा सा स्यात् दासी सममुदाहृतम् । उपज्ञोपक्रमान्तश्च प्राथम्यस्य प्रकाशने ॥३५॥ कन्थोशीनरदेशस्य संज्ञायां समुदाहृता । हिन्दी- (१) षष्ठी विभक्तयन्त से पर में स्नेह वाले बहुत्व अर्थ में प्रयुक्त छाया शब्द नपुंसक होता है जैसे- इक्षुच्छायम्, विच्छायम् इसी प्रकार समूह अर्थ में प्रयुक्त सभा शब्दान्त तत्पुरुष समास नपुंसक होता है जैसे स्त्रीसभम् इत्यादि । स्त्री समूह ऐसा अर्थ समझना चाहिये । (२) शाला (गृह) अर्थ वाला तथा समूह अर्थ वाला सभा शब्द यदि राज शब्द भिन्न राजपर्याय इन वगैरह षष्ठ्यन्त के बाद में हों तथा मनुष्यभिन्न राक्षस पिशाचादि वाचक षष्ठ्यन्त शब्द के बाद में हों तो नपुंसक होता है जैसेदासीसभम्, इनसभम्, प्रभुसभम्, पिशाचसभम् रक्षः सभम् इत्यादि किन्तु राज शब्द के बाद सभा शब्द स्त्रीलिङ्ग हो होता है जैसेराजसभा चन्द्रगुप्तसभा यहां पर चन्द्र गुप्त से राजविशेष का बोध होता है अतः स्त्रीलिङ्ग ही माना जाता हैं । (३) उपज्ञा और उप. क्रम शब्दान्त तत्पुरुष नपुंसक होता है उस वस्तु का आरम्भ करना मर्थ प्रकट करना हो तो, जैसे- पाणिन्युपज्ञम्, अष्टकम्, नन्दोपक्रमम् द्रोणः इत्यादि । पाणिनि ने सब से पहले अष्टाध्यायी व्याकरण को प्रकाशित किया । (४) उशीनर देश की संज्ञा में कन्था शब्दान्त तत्पुरुष नपुसक होता है जसे- सौशमिकन्थम्, बाल्हिकन्थम् । Page #381 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयकाण्डम् ३६८ लिङ्गादिनिर्णयवर्गः ५ भावे 'कणनचिद् भिन्नाः समूहे भावकर्मणोः ॥३६॥ अदन्त प्रत्ययान्ताश्च शब्दाः क्लीवे प्रकीर्तिता । "पुण्याहं सुदिनाहञ्च द्वयमेतत्तथैव च ॥ ३७॥ क्रियाणामव्ययाना०चैकत्वं भेदके स्मृतम् । * उक्थं च तोडकं चोचं तिरीटं मर्म योजनम् ||३८|| गृहस्थूणं तथा पिच्छं गद्यं पद्यं कवेः कृतौ । (१) भाव में कण न और चित् (चकार संज्ञक ) प्रत्ययों से भिन्न अदन्त कृदन्त प्रत्ययान्त शब्द तथा समूह अर्थ तथा भाव कर्म अर्थ में विहित अदन्त तद्धित प्रत्ययान्त शब्द नपुंसक होते हैं जैसे भूतम्, भवितव्यम्, भवनोयम्, ब्रह्मभूयम् सांबराविणम्, सांकुटितम्, भैक्षम्, काकम्, वाकम्, कैदार्यम्, गोलम्, मौनम्, मार्दवम् मानोज्ञकम्, स्तेयम्, शौक्ल्यम् इत्यादि, किन्तु विघ्नः, स्वप्नः चयः, जयः, श्वपथुः इत्यादि । (२) पुण्याहं तथा सुदिना - हम्, ये दोनों शब्द नसक में प्रयुक्त होते हैं । (३) क्रिया तथा अव्ययों के विशेषण एक वचनान्त तथा नपुंसक होते हैं । जैसेमृदुपचति, प्रातः कमनीयम् इत्यादि । एवं शोभनं पठति, रमणीयं वदति इत्यादि स्थलों में मृदु शोभन तथा रमणीय ये किया के विशेषण होने से नपुंसक में प्रयुक्त हुए हैं। एवं प्रातः कमनीयम् यहां पर कमनीयं यह 'प्रातः ' इस अव्यय का विशेषण होने से नपुंसक में प्रयुक्त हुआ है । (४) उक्थ (सामवेद विशेष) शब्द, तोटक ( कलह करने वाला) शब्द, चोच (कदली फल-तालफल ) शब्द, तिरीट (वेष्टन) शब्द मर्म (प्राणसंस्थान) शब्द, योजन (परमात्मलीनता) शब्द, गृहस्थूल ( घर के बीच का स्तम्भ ) शद, एवं पिच्छ ( मोर का पांख) शद्व, एवं कवि की कृति विशेष रूप गद्य तथा पद्य शब्द नपुंसक में प्रयुक्त होता है । " Page #382 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयकाण्डम् ३६९ लिङ्गादिनिर्णयवर्गः ५. राजसूयं तथा यज्ञे वाजपेयश्च संस्मृतम् ॥ ३९ ॥ भाष्य सिन्दूरमाणिक्य चीरचीवरपब्जरम् | विदलं हरिताश्च लोकायत मुदाहृतम् ॥४०॥ स्थालं बाइलवमित्येते क्लीवे शब्दाः प्रकीर्तिताः । पुंनपुंसक इत्यस्मिन् अधिकारे प्रदर्शिताः ॥ ४१ ॥ शब्दा अधस्ताद् विख्याताः पिण्याकार्धर्चकण्टकाः । तण्डको मोदकष्टङ्कः खर्वटः शाटकोऽर्बुदः ॥ ४२ ॥ पातकश्चरकोद्योग तमालामलकौ नडः । (१) यज्ञ विशेष के लिये प्रयुक्त राजसूय शब्द तथा वाजपेय शब्द नपुंसक माना जाता है । (२) भाष्य (बृहदव्याख्यान) शब्द, सिन्दूर शब्द, माणिक्य (पद्मरागादिमणि) शब्द, चीर (वस्त्र) शब्द, चीवर (फटा पुराणा) कपड़ा) पञ्जर (पिंजग) शब्द बिदल (वांस का पात्र) शब्द, हरिताल ( दूर्वा) शब्द, लोकायत( चार्वाक ) शब्द, एवं स्थाल (थाली) शब्द, तथा बाह्रव (बहवदेशोद्भव) शङ्ख नपुंसक में प्रयुक्त होते हैं । (३) पुल्लिंग तथा नपुंसक इन दोनों के अधिकार में निम्न प्रदर्शित शब्द माने जाते हैं जैसे-पिण्याक (सरसों के स्खली) शब्द, एवं अर्धर्च (आधी ऋचा ) शब्द तथा कण्टक (कांटा) शब्द एवं तण्डक (स्वञ्जनफेन) शब्द, तथा मोदक (लड्डु) शब्द एवं टङ्क (टङ्की) शब्द एवं खर्वट (नदी - पर्वत मध्यवर्ती ग्राम) शब्द एवं शाटक ( मारी) शब्द, अर्बुद (दश करोड़) शब्द, पातक (पाप विशेष) शब्द, चरक (वैद्यकशास्त्र विशेष ) शब्द उद्योग शब्द तथा तमाल (पर्वतीय वृक्ष विशेष) शब्द, आमलक (आमला) शब्द तथा नड शब्द ( सरकण्डा ] पुल्लिंग तथा नपुंसक माने जाते हैं । २४ - Page #383 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयकाण्डम् ३७० लिङ्गादिनिर्णयवर्ग:५ बुस्तं मुण्डं शीध्र कुष्ठं क्षेमं वेडितसगमम् ॥४३॥ कुट्टिमं शतमानार्म ताण्डवाव्ययशम्बलम् कसं कवियं कन्दं यूषं यूपं युगन्धरम् ॥४४॥ प्रग्रीवं चमसं पारावारं पात्रीव चिक्कसौ । अर्धर्चा दिगणेऽन्येषां घृतादीनां च संग्रहः ॥४५॥ तस्याकृतिगणत्वाद्धि बोद्धव्यो विबुधैः सदा । स्त्री पुंसयोस्तु विज्ञेया अपत्यत्ययान्तकाः ॥४६॥ (१) बुस्त (शष्कुलि, पकमांस, पनसफल) शब्द, मुण्ड (मुण्डितशिर) शब्द शोधु (शराव) शब्द, कुष्ठ (रोग विशेष) शब्द, क्षेम (कल्याण) शब्द, वेडित (चिक्कण) शब्द, संगम (मिलन) शब्द, कुट्टिम (फर्श) शब्द, शतमान (रूप्य का परिमाण विशेष) शब्द, अर्म (नेत्रगेग) शब्द, ताण्डव (ताण्डव नाच) शब्द, अव्यय (नाश रहित) शब्द, शम्बल (पाथेय) शब्द कार्पास (कपास) शब्द, कविय (घोड़े का मुख भाण्ड) शब्द, (कन्द कांदा) शब्द, युष (मांड चावल का ओसावन) शब्द, यूप शब्द, युगन्धर (कूवर) शब्द, प्रग्रीव (खिरकी] शब्द, चमस शब्द, पारावार शब्द, पात्रोव यज्ञपात्र विशेष] शब्द, चिक्कस [चिक्कन] शब्द पुल्लिंग एवं नपुंसक हैं। (२) घृत वगैरह शब्द अर्घर्चादि गण में पढे हुए होने से पुल्लिंग तथा नपुंसक हैं। (३)-यहां से स्त्रीपुंस इन दोनो का अधिकार चलता है अर्थात् निम्न प्रकार के शब्द स्त्रीलिंग तथा पुंल्लिङ्ग समझे जाते हैं जैसे-अपत्य (पुत्रपौत्रादि) अर्थ में विहित अण् इञ् वगैरह प्रत्ययान्त शब्द पुलिङ्ग तथा स्त्रीलिज होते हैं उदाहरण औपगवः औपगवी, दाक्षिः, दाक्षी, गागीः गार्गी इत्यादि । Page #384 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयकाण्डम् ३७१ लिङ्गादिनिर्णयवर्गः ५ द्विचतुष्पद' पदव्याला जातिभेदाः प्रकीर्तिताः । स्त्रिया योगे पुमाख्यास्तेऽपवादैश्चेन्न बाधिताः ॥४७॥ मल्लकश्चापि विज्ञेयः स्त्रीपुंसोभयलिङ्गकः । झाटलिर्वर्णकः स्वाति मुनिर्मनुर्वराटकः ४८ यष्टिः सृपाटी कर्कन्धूः शाटिर्मृषा कुटीकटी । स्त्री नपुंसकयोश्चाथाधिकारेऽत्रोचितादयः ॥४९॥ व्यञ् वुञ् प्रत्ययरूपान्ताः भावे कर्मणि च कचित् । (१) द्विपद वाचक चतुष्पदवाचक, षट्पदवाचक शब्द तथा सर्पवाचकशब्द जाति विशेष का बोध कराने वाला पुंलिङ्ग तथा स्त्रीलिङ्ग होता है जैसे मानुषः मानुषो, विप्रः, विप्रा, शूद्रः, शूद्रा, बकः, बकी, हंसः, हंसी भ्रमरः, भ्रमरी, उरगः, उरगी, व्यालः, व्याली, इत्यादि । ये सब पुल्लिङ्ग के योग होने पर स्त्रीलिङ्ग हो जाते हैं । किन्तु अपवाद से बाधित होने पर ईकारान्त न होकर आकारान्त होते हैं । (२) मल्लक शब्द (मालो) पुल्लिङ्ग स्त्रीलिङ्ग है मल्लकः, मल्लिका एवं झाटलि (वृक्ष विशेष) शब्द, वर्णक ( चन्दन विलेपन) शब्द स्वाति ( नक्षत्र विशेष ) शब्द, मुनिशब्द, मनुशब्द, वराटक (कौड़ी) शब्द, यष्टि शब्द, सृपाटी शब्द ( परिमाण विशेष ) कर्कन्धू (बदरीफल ) शब्द शाटो शब्द ( सारी) मृषा (स्वर्णादि विलेपन भाण्ड) कुटी शब्द एवं कटी शब्द पुल्लिङ्ग तथा स्त्री० है । (३) यहां स्त्रीनपुंसक का अधिकार चलता है जिसमें ष्यञ् प्रत्ययान्त तथा वुञ् प्रत्ययान्त उचित वगैरह शब्द भाव तथा कर्म अर्थ में नपुंसक एवं स्त्रीलिङ्ग होते हैं जैसे- औचित्यम् औचिती सामग्रयम्, सामग्री आहोपुरुषिका शैष्योपाध्यायिका इत्यादि, मानोज्ञकम रामणी कम् इत्यादि । Page #385 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीय काण्डम् ३७२ लिङ्गादिनिर्णयवर्गः ५ षष्ठ्यन्तेभ्य परे चेत्स्यु शालाच्छाया निशा सुराः ॥ ५०॥ सेना शब्दाश्च विज्ञेयाः गोशालमित्युदाहृतम् । " आवन्तोत्तर शब्दश्चान्नंन्तोत्तरपदो द्विगुः ॥५१॥ अनो नस्य च लोपोऽन्ते पञ्च खट्व मुदाहृतम् । त्रिलिङ्गेषु पुटी वाटी पेटी पात्री च दाडिमी ॥ ५२ ॥ कुवलीत्यादि शब्दा वै विद्वद्भिः समुदाहृताः । इतरेतरयोगे च द्वन्द्वे तत्पुरुषे तथा ॥ ५३॥ लिङ्गं परपदस्यैव प्रायशः समुदाहृतम् । (१) षष्ठयन्त से परे शाला, छाया - निशा - सुरा तथा सेना शब्दान्त शब्द नपुंसक तथा स्त्रीलिङ्ग होते हैं जैसे- गोशालम्, गोशाला, इक्षुच्छायम्, इक्षुच्छाया, श्वनिशम्, श्वनिशा, यवसुरम्, यवसुरा, नृसेनम्, नृसेना इत्यादि । ( २ ) आबन्त उत्तरपद वाला एवं संख्यावाचक पूर्व पद वाला द्विगु समास, एवं अन् अन्त उत्तरपद वाला द्विगु समास स्त्रीलिङ्ग तथा नपुंसक होता है किन्तु अन्त में अन् शब्द के नकार का लोप हो जाता है जैसे पश्च स्वट्वम् पश्चखवीं पञ्चतक्षं पश्चक्षी इत्यादि । ( ३ ) त्रिलिंग (पुल्लिंग स्त्रीलिंग नपुंसक) में पुटी (संपुट) शब्द, वाटी (वास्तु- गृहोद्यान) शब्द, पेटी (मञ्जूषा) शब्द, पात्री (वर्तन) शब्द, (दाडिमी) शब्द, एवं कुवली ( बदरीफल कमल मुक्ताफल) शब्द प्रयुक्त होते हैं । उदाहरण पुट: पुटी, पुटम्, वाटः वाटी, वाटम् पेट, पेटी, पेटम् पात्रः, पात्री, पात्रम्, दाडिम: दाडिमी, दाडिमम्, कुबलः, कुवली, कुवलम् इत्यादि । ( ३ ) इतरेतरयोग द्वन्द्व तथा तत्पुरुषसमास में उत्तरपद के अनुसार ही लिङ्ग प्रायः होता है जैसे - कुक्कुटमयूर्यै, मयूरीकुक्कुटौ कुलब्राह्मणः ब्राह्मणकुलम्, पिप्पली इत्यादि । Page #386 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयकाण्डम् ३७३ लिङ्गादिनिर्णयवर्गः ५ प्राधपत्याधवादिभ्यः पर्यादिभ्यस्तथैव च ॥५४॥ निरादिभ्यश्च पूर्वेभ्यः पूर्व लिङ्गता । आपन्नप्राप्त पूर्वाश्चालमाधास्तथैव च ॥५५॥ अर्थान्तास्तद्धितार्थे च द्विगुः संख्यास्तदन्तकाः। सर्वादयस्तदन्ताश्च शब्दा मुख्यानुसारिणः ॥५६॥ (१) किन्तु प्रादि अपत्यादि भवादि पर्यादि तथा निरादि उपसर्ग पूर्वपदों से परे तत्पुरुष समास में पूर्वपद के अनुसार ही लिङ्ग होता है जैसे-प्रगत आचार्यः प्राचार्यः आचार्य प्रगतो वा प्राचार्यः दुराचारः दुष्टो वा पुरुषः दुष्पुरुषः, खट्वामतिकान्तः अतिखट्वः मालामतिक्रान्तः अतिमालः, अभिगतो मुखम् अभिमुखम्, वेलामुद्गतः उद्वेलम्, अवक्रुष्टः कोकिल्या-अवकोकिलः कोकिलया आहूतो वसन्त. इत्यर्थः, परिणद्धो वीरुधा-परिवीरुत् संनद्धो वर्मणा संवर्म,परिग्लानोऽध्ययनाय पर्यध्ययनः उद्युक्तः संग्रामाय उत्संग्रामः निष्क्रान्तः कौशाम्या निष्कौशाम्बिः उत्क्रान्तः कुलादः उत्कुलः । निर्गतमङ्गुलिभ्यो निरङ्गुलम् इत्यादि । (२) प्राप्त पूर्वपद तथा आपन्न पूर्वपद एवम् अलम् पूर्वपद और अर्थ शब्दान्त तत्पुरुष एवं तद्धितार्थ विषय में द्विगु समास तथा संख्यावाचक शब्द एवं संख्या शब्दान्त शब्द, एवं सर्वादिगण पठित शब्द तथा सर्वाद्यन्त शब्द विशेष्य (मुख्य) के लिङ्गानुसार पुल्लिङ्गादि में प्रयुक्त होते हैं जैसे-प्राप्त जीविकः आपन्न जीविकः, अलं जीविक, द्विजार्थ सूपः, द्विजाी माला, द्विजार्थ पयः पञ्च कपालः पञ्चकपाली, एकः पुरषः, एका स्त्री, एकं वस्तु, द्वौ, द्वे, त्रयः,तिनः, त्रीणि, चत्वारः चतस्रः,चत्वारि बहवः, बह्यः,बहूनि, सर्वः सर्वा सर्वम् ऊनत्रयः ऊनतिनः ऊनत्रीणि, परम सर्वः परमसर्वा, परमसर्वम् इत्यादि । Page #387 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयकाण्डम् ૨૭૪ लिङ्गादिनिर्णयवर्गः ३ आदि नाम्नां बहुव्रीहि रन्यलिङ्गः प्रकीर्तितः । गुणि दैव्य क्रिया शब्दा विशेष्यस्यानुगामिनः ॥ ५७ ॥ कर्तृकर्मणि कृत्याच कृतः कर्तर्यनामनि । अर्णादि प्रत्ययान्ताश्च रक्ताद्यर्थे समागताः ॥ ५८ ॥ शब्दा नानार्थसम्पन्ना वाच्यलिङ्गा उदाहृताः । शब्दाः पैट् संज्ञका युष्मदस्मदी च तिङव्ययम् ॥ ५९ ॥ त्रिलिङ्गेषु समानास्ते विरोधे परमेव तत् । (१) दिगवाचक शब्द से भिन्न शब्द वाला बहुव्रीही समास अन्य पदार्थ के लिङ्गानुसार प्रयुक्त होता है जैसे- बहुधनः पुरुष: बहुधना स्त्री बहुधनं कुलम् इत्यादि (२) शुक्लादि गुणवाचक शब्द गुणी परक होने पर विशेष्य के लिङ्गानुसार प्रयुक्त होते हैं जैसे - शुक्लः पटः शुक्ला शाटी, शुक्लं वस्त्रम् इत्यादि एत्रं द्रव्य वाचक तथा क्रिया वाचक शब्द भी विशेष्य के लिङ्गानुसार होते है जैसे दण्डी पुरुष दण्डिनी शाला दण्डिकुलम् एवं पाचकः पुरुषः पाचिका स्त्री पाचकं कुलम् इत्यादि (३) कर्ता तथा कर्म वाध्य में प्रयुक्त कृत्प्रत्ययान्त शब्द एवं संज्ञा से भिन्न स्थल में कर्ता वाच्य में प्रयुक्त कृदन्त प्रत्ययान्त शब्द तथा रक्ताद्यर्थ में प्रयुक्त अणादि प्रत्ययान्त तद्धितान्त शब्द नानार्थ में सम्पन्न होने से प्रधानवाच्यार्थ के लिङ्गानुसार प्रयुक्त होते है। जैसे- भव्यः भव्या भव्यम् कार्यः कार्या कार्यम् कर्ता कर्त्री कर्तृ कौङ्कुमं वस्त्रम् कौकुमी शाटी कौकुमः पटः वासिष्टौ मंत्रः वासिष्ठी ऋक् वासिष्ठं साम इत्यादि । (४) षट् संज्ञक शब्द तथा युष्मद् शब्द एवं अस्मद् शब्द तथा तिङन्त एवं अव्यय शब्द तीनों (पुल्लिङ्ग, स्त्रीलिङ्ग तथा नपुंसक) लिङ्गों में समान हो रूप में प्रयुक्त होते हैं जैसे-पञ्च Page #388 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयकाण्डम् ३७५ लिङ्गादिनिर्णयवर्ग:३ शिष्टानां चैव शब्दानां लिङ्गस्य च विनिर्णयः ॥६०॥ शिष्ट प्रयोगतो नूनं कर्तव्यः पण्डितैरिति । ।। इति लिङ्गादि निर्णयवर्गः समाप्तः ॥ तृतीयः काण्डः समाप्तः॥ पुरुषाः, पञ्च स्त्रियः, पञ्च फलानि एवं षट् सप्त अष्ट नव दश वा पुरुषाः, स्त्रियः फलानि च इत्यादि । एवं त्वं पुरुषोऽसि,त्वं स्त्री वर्तसे, त्वं वनं वर्तसे एवं अहं पुरुषः,अहं वनम् इत्यादि । एवं पुरुषः पति स्त्री पचति कुलं पचति इत्यादि । एवं उच्चैः प्रासादः उज्चैः पाठः शाला, उच्चैः गृहम् इत्यादि । किन्तु लिङ्ग प्रतिपादक व वनों के परस्पर विरोध होने पर वचन के अनुसार ही लिङ्ग होना चाहिये जैसे-नीः लूः यहां पर केवल पुंलिङ्ग अथवा स्त्रीलिंङ्ग न होकर तीनों लिङ्ग माने जाते हैं । (१) उपरोक्त शब्दों से बचे हुए शब्दों के लिङ्गों की व्यवस्था शिष्ट प्रयोगों के अनुसार समझ लेनी चाहिये जैसे तितडः तितड, ताटङ्कः कौरकः कोरकं इत्यादि क्योंकि 'चालनी तितडः पुमान्' ऐसा शिष्टों के वचनानुसार तितड शब्द पुल्लिङ्ग माना जाता है किन्तु 'तितड परिवपनं भवति' इस प्रकार पतजलि के पस्पशालिक भाष्य वचन के अनुसार तितड शब्द नपुंसक भो माना जाता है । एवं 'ताटङ्कस्ते' इस प्रकार आचार्य के प्रयोग से तोटङ्क शब्द पुल्लिङ्ग हा माना जाता है । किन्तु 'कालिका कोरकः पुमान' ऐसा वचन के अनुसार कोरक शब्द पुल्लिङ्ग होने पर भी 'कोरकाणि' ऐसा माघ कवि के प्रयोग के अनुसानपुंसक भी माना जाता है। ॥ इति लिङ्गादि निर्णयवर्गः समाप्तः ॥ ॥ इति तृतीयः काण्डः समासः ॥ ॥ सम्पूर्णम् ॥ Page #389 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #390 -------------------------------------------------------------------------- ________________