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तृतीयकाण्डम् ___ २३४ नानार्थवर्गः ३
स्थौल्ये स्थामनि सैन्ये च नाबल काकसीरिणोः।।२११॥
मातङ्ग पुष्पकाण्डद्रु प्रभेदाः पीलवः कला । शिल्पेऽपि काल भेदेऽथ प्रावारेऽप्यस्ति कम्बलेः॥२१२॥ त्रिषु व्याले: शठे नातु सर्प श्वापदयोः कलिः । युगेऽपि कमलः पुंसि कुरङ्गेऽन्यन्नपुंसकम् ॥२१३॥ मल विट् पाप किद्वेष्व स्त्रियां शूलो रुगायुधम् । अङ्कुरेऽपि प्रवालोऽस्त्री पेशलेश्वारु दक्षयोः ॥२१४॥
(१) 'बल' स्थौल्य स्थामा (सामर्थ्य) सैन्य गन्धरस रूप में नपुं० बलराम दैत्यभेद बली वायस में पु० । (२) 'पिलु' मातङ्ग पुष्प तालकाण्ड पादपवृक्षमेद अत्थिखण्ड परमाणु में पु० पिलुवृक्ष के फल अर्थ में नपुं० । (३) 'कला मूल रै वृद्धि शिल्पादि अंशमात्र चन्द्रकी सोलमीकला कलना कालमान में स्त्रो० । (४) कम्बल नागराज सास्ना प्रावार कृमि उत्तरासंग में पु. सलिल में नपुं० । (५) 'व्याल' शठ में त्रि० दुष्टगज सर्प श्वापद सिंह में पु० । (६) 'कलि' कलिका में स्त्री० शुरों के संग्राम में युग में पु० । (७) 'कमल' सलिल ताम्र जलन व्योम भेषन में नपुं० कुरङ्ग में पु० । (८) 'मल' विट् [विष्ठा पाप किट में पु० नपुं० कृपण में त्रि० [वसा शुक्र मसृग् मज्जा मूत्रं विट् कर्ण त्वङ् नखाः । श्लेष्माऽश्रुदूषिका स्वेदो द्वादशैते मला नृणाम् ।। । (९) 'शूल' रोग आयुध मृत्यु कतन योग में पु० नपुं. पण्यस्त्रो [गणिका) में स्त्री०। (१०) 'प्रवाल' बीणादण्ड विद्रुम किसलय [नूतन रक्त पल्लव अङ्कर] में पु० नपुं० । (११) 'पेशल' चार दक्ष में त्रि०
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