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प्रथमकाण्डम्
देववर्ग: एकादश गणधरनामानिएकादश गणाधीशा स्त्रयो गौतम गोत्रजा । इन्द्रभू-त्यग्निभूतिः द्वौ वायुभूतिः क्रमादिमे ॥१९॥
व्यक्तः सुधर्ममण्डित मौर्यपुत्रा अकम्पितः । अचलभ्रातृमेतायौं प्रभासोऽमी पृथक्कुलाः ॥२०॥
श्रुत केवलिनः षट् नामानिचरमः केवली जम्बू स्वाम्यथ प्रभवः प्रभुः । शय्यम्भव यशोभद्रौ सम्भूति विजयस्तथा ॥२१॥ भद्रबाहु स्थूलभद्रो श्रुतकेवलिनश्च षट् ।
हिन्दी-(१)श्रेयांस के दो नाम-श्रेयांस १, श्रेयान् २ पु० । (२) अनन्त के दो नाम-अनन्त १, अनन्तजित् २ पु० । (३) सुविधि के दो नाम-सुविधि१, पुष्पदन्त२ पुं० । (४) ऋषभदेव के दो नाम ऋषभ १, वृषभ २ पुं० । (५) मुनि सुव्रत के दो नाम मुनिसुव्रत १, सुव्रत२ पु० । (६) नेमि के दो नाम-अरिष्टनेमि १, नेमि २ पु० । (७) वीरजिन भगवान् के छ नाम-वीर १, चरमतीर्थ कृत् २, बर्द्धमान ३, महावीर ४, देवार्य ५, ज्ञातनन्दन ६ पु०
हिन्दी-मुनि समुदाय को गण कहने हैं, श्रीमहावीर स्वामी के नौ गण थे, जो सब के सब अनगार थे । ग्यारह गणधर थे-इन्द्रभूति १, अग्निभूति २, वायुभूति ३, ये तीनों गौतम गोत्री थे, व्यक्त ४, सुधर्मन् (सुधर्मा) ५, मण्डित (मण्डितपुत्र) ६, मौर्यपुत्र ७, अकम्पित ८, अचलभ्रातृ ९, मेतार्य १०, प्रभास ११ ये आठ गणधर पृथक् २ कुल के थे क्रमशः नाम जाने
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