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* तोयकाण्डम्
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नानार्थवर्गः ३
रात्रिर्वार्धनुष्कोटयां पीडायां हेति रचिपि ॥ ७८ ॥ रवेज्वला वा वह्नेः शस्त्रेऽथ जगती क्षितौ । छन्दो भेदेऽपि दशमं पेंक्ङ्क्तिच्छन्दोऽपि च स्त्रियाम् ७९ प्रभावेऽप्यायेतिः पैत्ति न गतौ स्त्रीषु पक्षतिः । पक्षमूले तिथेर्वाऽपि पक्षिणां वेद कर्णयोः ॥ ८० ॥ वार्तायां च 'श्रुतियनि लिङ्गादौ प्रकृति धृति । धारणाऽध्वर तुष्ट्यादौ " गुप्तिर्भू विवरेऽपि च ॥८१॥
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(१) 'अर्ति ' पीडा और धनुषकोटि में स्त्री० । (२) 'हेति' सूर्य के अर्चि में वह्निज्वाला में शस्त्र में स्त्री० । ( ३ ) ' जगती' पृथिवी छन्दोभेद भुवन जन में प्राकार में स्त्री०, 'जगत्' विष्टप (स्वर्ग में) नपुं०, 'जगत् (जगन्' वायु में पु. जंगम में त्रि० । ( ४ ) 'पति' (उक्ताऽत्युक्ता तथा मध्या प्रतिष्ठाऽन्याएँ पूर्विका गायत्र्युणि गनुष्टुप् च वृहतो पङ्क्तिरेव" च] इस गणना में दशवां छन्द को 'पङ्क्ति' (दशाक्षरचरण) कहते हैं और दश संख्यादि में भी स्त्री० । (9) 'आयति' संयम दैर्ध्य आगामिकाल और प्रभाव में स्त्री० । (८) 'पत्ति' चरणचारी अर्थ में पु०, और एक हाथी एक रथ तीन घोडे, पांच पदाति हों जिसमें वह स्त्री० है । (९) 'पक्षति' पक्षियों और तिथियों के पक्षमूल (प्रतिपद) में स्त्री० । (८) 'श्रुति' श्रोत्रकर्म वार्ताओं में स्त्री० । (९) 'प्रकृति' लिङ्ग - योनि पौरवर्ग अमात्यादि स्वभावों में स्त्री० । (१०) 'धृति' धारणा - अध्वर तुष्टि योगान्तर धैर्य में स्त्री० । (११) 'गुप्ति' भू विवर रक्षा कारा (अवकर स्थान जहां कि कूडा कचरा डाले जाते हों) इन • अर्थो में स्त्री० ।
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