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तृतीयकाण्डम् ३०३
नानार्थधर्गः ३ वनिता जातरागायां स्त्रियां स्त्री त्रिषु याचिते । वालुका 'सिकता भूम्नि कैशिक्यादिषु वृत्तयः ॥८२॥
रीति स्यन्द प्रचारादि रीति डिम्बाऽतिवृष्टिषु । प्राप्तिमहोदये लाभे जाति जन्मादिषु स्त्रियाम् ॥८३॥ अग्नि त्रये युगे त्रेता' 'भूतीरक्षादि संपदि । पुरी नद्यो रहे भोग-वतीनाहौ, "क्षितिः क्षये ॥८४॥ वासादौ समितिः संधे सभायां 'महती पुमान् ।
(१) 'वनिता' दर्शिता अत्यन्ता अनुरागा स्त्री और स्त्री में स्त्री०, याचित अर्थ में त्रि० । (२) 'सिकता' सिकतिल में स्त्रो०, वालु का बहुवचनान्त । (३) 'वृत्ति' भरत शास्त्र प्रसिद्ध कैशिकी आरभटी भारती सात्वती ए चार वृत्तियां हैं जिन पर नाटय शास्त्र प्रतिष्ठित हैं, विवरण जीव्य में भी है, वैयाकरण तो कृत् तद्धित समास एकशेष सनाद्यन्त धातुरूपों को कहते हैं स्त्री० । (४) 'रोति' प्रचार स्यन्द अरकूट लोहकिट में स्त्री० । (५) 'ईति' डिम्ब अर्थात् भयध्वनि पुष्कस प्लीहन् विप्लव और अतिवृष्टि अनावृष्टि मूषक शलभ शुक प्रत्यासन्न राजगण इन अर्थों में स्त्री० । (६) 'प्राप्ति' महोदय (अधिगम) लाभ में स्त्री० । (७) 'जाती' जन्म गोत्र मालतो सामान्य छन्द जातीफल आमलकी चुल्ली कम्पिल्ल में स्त्री० । (८) 'ता' अग्नित्रय (जठराग्नि वाडवाग्नि दहराग्नि) और युग में स्त्री०। (९) 'भूति' भस्म [रक्षा सम्पत्ति हस्तिशङ्गार में स्त्री० । (१०) 'भोगवती' नागपुरी और नदी अर्थ में स्त्री०, 'भोगवान्' सर्प में पु० । (११) 'क्षिती' क्षय क्षिति कालमेद निवास में बी० । (१२) 'समिति' संघ सभा में स्त्री० ।
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