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द्वितीयकाण्डम्
लोकवर्गः१ शङ्गाटेकं पथायोगे चतुर्णा स्याच्चतुष्पथः ॥१६॥ घण्टामार्गों राजमार्गे क्लीबं संसरणं विदुः ।
दुर्गे मार्गे तु कान्तारं प्रान्तर शून्यवमनि ॥१६॥ एक नाम- गोष्ठीन १ नपुं० । [३] जलासन्न प्रदेश के दोनामकच्छ १ पु०, अनूप २ नपुं० [नानार्थ] । [४] पर्वत प्रासाद
आदि के समीपवर्ती प्रदेशके दो नाम-परिसर १, पर्यन्त २ पु० । (५) नदी के ऊपर पूल (वांध) के दो नाम-सेतु १ पु०, आलि २ स्त्री० । (६) वल्मीका (उढइ) के तोन नाम-वल्मीक १ पु०, नपुं० वामलूर २ नाकु २ पु०। (७) मार्ग के बारह नाम-वर्म(वर्मन्) १, अयन २ नपुं०, एकपात् (एकपदी) ३, वर्तनी ४, पद्धति ५, पद्या' ६, पदवो७, सरणि ८, सृति ९ स्त्री० । मार्ग १०, अध्या (अध्वन्) ११, पन्था (पथिन्) १२ पु० । (८) सुन्दर मार्ग के तीन नाम-सत्पथ १ सुपन्था (सुपथिन्) २, अतिपन्था (अतिपथिन्) ३ पु० । (९) अयोग्य मार्ग के आठ नाम-कापथ १, नपुं०. विपथ २, अपथ ३, अपन्था अपथिन् ४, कदध्वा कदध्वन् ५, दुरध्व ६, व्यध्व ७, कत्पथ ८ पु०।
हिन्दी-(१) चार मार्ग जहां मिलते हैं उसके दो नामशृङ्गाटक १ नपुं., चतुष्पथ २ पु० । (२) राजमार्ग के तीन नामघण्टामार्ग १ राजमार्ग २ नपुं० । संसरण ३ नपुं० (३) विषम मार्ग के दो नाम-दुर्गमार्ग १ पुं०, कान्तार २ नपुं० । (४) छाया आदि विश्राम कारण शून्य मार्ग के दो नाम-प्रान्तर १, शून्यवर्त्म (शून्यवर्मन्) २ नपुं० । (५) दो हजार धनुष मानवाले
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