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________________ द्वितीयकाण्डम् नगरवर्ग:२ द्वाभ्यां धनुःसहस्राभ्यां गव्यतं क्रोश उच्यते । क्रोशद्वयं स्त्री गंव्यति नल्वो हस्त चतुःशती ॥१८॥ भूद्यावौ रोदसी पुर्या अध्वास्यादुपनिष्करम् । ॥ इति लोकवर्गः समाप्तः ॥ ०॥ अथ नगरवर्गः प्रारभ्यते ॥०॥ नगर नगरी पू: स्त्री पुरी वा पत्तनं पुरम् । चणिजां सति वासेतु निगमः पुटभेदैनम् ॥१॥ सर्ववस्तृपलब्धौ तद भेदे ग्रामस्ततस्ततः। वसंतेर्वास भेदाः स्युः खेट कर्बटकादयः ॥२॥ मार्ग के दो नाम-गव्यूत १ नपुं०, क्रोश २ पु० । (६) दो कोश की 'गन्यूति' संज्ञा है स्त्रीलिङ्ग और 'गव्यूत' भी। (७) चार सौ हाथ के मान को 'नल्व' कहते हैं पु० । (८) पृथिवो सहित आकाश के दो नाम-धावाभूमी १ स्त्रीलिङ्ग द्विवचन, रोदसी २ नपुं० द्विवचनान्तः । नगर मार्ग का नाम-उपनिष्कर नपुं० (पुरोमार्ग पु०)। ॥ लोकवर्ग समाप्त ।। हिन्दी-(१) नगर के छ नाम-नगर १ नपुं०, नगरी २, पु. ३ पुरो ४ स्त्री०, पत्तन ५, पुर ६ नपुं० (२) व्यापारी निवासस्थान का एक नाम-निगम १ पु० । (३) जहां सब वस्तु मिले उसका एक नाम-पुटभेदन (पत्तन) १ नपुं० । (४) कण्टकादि बाड़वेष्टित जननिवास का एक नाम -ग्राम १ पु० (५) वसति मेद में-खेट (धूलि प्राकारयुक्त नगर) कर्बट (कुत्सितनगर) मडंब Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016064
Book TitleShivkosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherKarunashankar Veniram Pandya
Publication Year1976
Total Pages390
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size13 MB
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