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तृतीय काण्डम्
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नानार्थवर्गः ३
बाण सूर्ये विहङ्गादौ खेगो वेगो रयादिषु । स्नानीये कौसुमे रेणौ परागैः स्याद्रजः स्यपि ॥ २६ ॥ सँग निश्चय निर्मोक्ष स्वभावाऽध्याय सृष्टिषु । मातङ्गः श्वपचे नागे नागोनातु गजादिषु ॥ २७॥ योगः कवचः सामादि ध्यानसङ्गति युक्तिषु । अपाङ्गस्तिलकेऽप्यङ्ग होन नेत्रान्तयोरपि ॥२८॥ पूर्गः स्याक्रमुके वृन्दे आसुँगो वायु बाणयोः । इति गान्ता ॥ अर्थः पूजाविधौ मूल्ये पॅरिघोऽर्गल घातयोः ॥ २९॥ योगभेदे विशेषाऽस्त्रे दुःखांहो व्यसनेष्वधैम ।
(१) बाण सूर्य विहङ्गम (देवग्रह ) में 'खग' पु० । (२) रय प्रवाह में 'वेग' पु० । (३) उबटन एवं पुष्ष के रेणु धुली गिरी प्रभेद विख्याति उपराग चन्दन में 'पराग' पु० । (8) निश्चय त्याग स्वभाव अध्याय सृष्टि मोह उत्साह में 'स्वर्ग' पु० ० । (५) श्वपच नाग में 'मातङ्ग' पु० । (६) पन्नग मातङ्ग क्रूराचार तोयद नागकेशर पुंनाग नागदन्तक मस्तक देहानिलप्रभेद श्रेष्ठ 'नाग' पु०, रङ्ग सोसक करणान्तर में नपुं० । (७) संहनन (कवच ) उपाय ( सामादि ) ध्यान अपूर्वाध संप्राप्तिवपुः स्थैर्य प्रयोग विष्कम्भ भेषज विस्रन्ध घातक द्रव्य कार्मण में 'योग' पु० । (८) तिलक अङ्गहीन नेत्रान्त में 'अपाङ्ग' पु० । ( अजयकोष ने चित्रक प्रधान में भी कहा हैं) । (९) क्रमुक (सुपारी) और वृन्द में 'पूग' पु० । (१०) वायु ओर बाण अर्थ में 'आग' पु० । ११) पूजाविधि और मूल्य में योगमेद अनविशेष में 'परिष' व्यसन में 'अघ' नपुं० ।
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इति गान्ताः । 'अर्थ' पु० । (१२) अर्गल घात पु० । (१३) दुःख अंहस् (पाप)
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