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तृतीय काण्डम्
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नानार्थवर्ग: ३
हरो जन्म च नोवो तु स्त्रीकटी वस्त्रबन्धने ॥ २२७ ॥ तथा परिपणे मूल द्रव्ये पारशवस्तु यः । द्विजात् शूद्रा सुते शस्त्रे र्द्वन्द्वं युग्म विवादयोः ॥ २२८॥ व्यवसायासु द्रव्येषु सत्वं जन्तुषु न स्त्रियाम् । ज्ञात्यात्मनोः स्वआत्मीये त्रिष्वस्त्री तु धनेष्वथ ॥ २२९ ॥ उत्पादे प्रसँवो गर्भमोचने फलपुष्पयोः । अनुभावः प्रभावेऽपि निश्चये भावसूचके ॥ २३०॥ स्यात्स्थानं प्रभवो जन्म हेतु राघोपलब्धये । सक्तुफला अभया अमलकी झाटमलौषधि (भूम्यामलकी) पुण्डरीकन में स्त्रो मेदिनीकार ने पुण्डरीकद्रुम ( पुण्डरीया ) में शिवा को शिव पु० माना है मुकुट ने पु०, शुगाल में भो शिवा को बो. हो माना है) । (१) 'भव' हर जन्म प्राप्ति सत्ता संसार क्षेमेश में पु० । (२) नोवी स्त्री कटो बस्त्रबन्धन में परेषण ( जमानत देना) मूल्यद्रव्य में स्त्री० । (३) 'पारशव' द्विज से शूद्रासुत में शास्त्र में परस्त्रोतनय में पु० । (४) द्वन्द्व युग्म कलह रहस्य मिथुन (मर्यादा व्युत्क्रमण अर्थात् पृथग्वस्थान यज्ञपात्र प्रयोग अभिव्यक्त अर्थात् (साहचर्य) में नपुं० पुलिङ्ग भी ( चार्थद्वन्द्वः) । (५) 'सत्व' व्यवसाय असु द्रव्य वित्त आत्मत्व स्वभाव बल गुण पिशाच आदि में नपुं० जन्तु में पु० नपुं० । (६) 'स्व' ज्ञाति आत्मा में पु०, आत्मीय में त्रि०; धन में पु० नपुं० । (७) 'प्रसव' उत्पाद गर्भमोचन फल पुष्प अपत्य में पु० । (८) 'अनुभव' प्रभाव निश्चय भावसूचक में पु० । ( ९ ) ' प्रभव, प्रथमज्ञानोपलब्धि के लिए स्थान जडमूल पराक्रम जन्महेतु में पु० ।
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