________________
द्वितीयकाण्डम् २०८
क्षत्रियवर्गः ९ व्योमैयानं वायुयानं वाष्पयानं तु वह्नयनः । स्थेशनं विश्रमस्थानं गुप्तवाटी तु गुर्वटी ॥६४॥ चिटिकाऽथो वेशपत्रं तद् द्रष्टा चिंटिकेट त्रिषु । वाष्पयान प्रकोष्ठे तु कायंपीठ प्रकोष्ठकम् ॥६५॥ अथ लौहपंथो लौह-कर्म तन्मार्ग उच्यते । उपरिष्टाज्जलादेयों मर्गः स पुलमुच्यते ॥६६। प्रधिः पुंसि स्त्रियां नेमिः चक्रभू स्पशि दारुणि । पिण्डिं का तु स्त्रियां नाभिश्चक्र मध्यस्थ पिण्डिके ॥६॥
[१] हवाई जहाज के दो नाम-व्योमयान १ वायुयान २ नपुं.। (२) रेलगाड़ी के दो नाम-वाष्पयान १ वहन्य नस २ नपुं. । (३) रेल रुकने की जगह (स्टेशन) के दो नाम-स्टेशन १ विश्रामस्थान [वित्र स्थान] नपुं.। [४] धूंगटी के दो नामगुपवाटी १ गुर्वटी २ स्त्री. । (५) टिकिट का एक नाम-चिटिका १ स्त्री०। (६) प्लेट फार्म टिकिट का एक नाम-वेशपत्र १ नपुं० । (७) टिकिट कलेक्टर का एक नाम- चिटीकेट १ त्रिलिङ्ग । (८) रेल गाडी के डब्बे के दो नाम- काम्यपोठ १ प्रकोष्ठक २ नपुं० । (९) रेलगाडो की पटरी (लेन) के दो नाम- लौहपध १पु०, लौहवर्म २ नपुं० । (१०) जलादीके ऊपर से जो लोहकाष्ठ आदि का मार्ग है उसका एक नाम-पुल १ नपुं० ।(११) गाडी के चक्र से लेकर पृथ्वी तक सम्बन्धित काष्ठ के दो नाम-प्रधि १ पु०, नेमिः २ स्त्री० । (१२) रथचक्र के बीच में जो मण्डलाकार है, उसके दो माम-पिण्डिका १ स्त्री०, नाभि २ नपुं० ।
क
.
..
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org