________________
द्वितीयकाण्डम्
क्षत्रियवर्ग: ९ समे रथाङ्गचक्रे तत् कोले त्वाणि रणियोः । काष्ठेऽधः स्थेऽनुकर्षोऽथ वरूँथो रथवेष्टनः ॥६८॥ यानमात्रे स्मृतं युग्यं यानं पत्रं च वाहनम् । वृषादिस्कन्धसंसक्तो युगः प्रासङ्ग ईरितः ॥६९।। अश्वादि बन्धने काष्ठे कूबरश्च युगन्धरः । रथाऽवयवमात्रेतु रथाङ्गाःऽपस्करावुभौ ॥७॥ अस्त्रीवैनीतके तत्स्यान्नसाक्षाद् वाहनचयत् । रथाऽऽरोही रथी योद्धा सेनापोलस्तु सैनिकः ॥७॥
(१) गाडी के चक्र के दो नाम• रथाङ्ग १ चक्र २ नपुं०। (२) गाडी के कील के दो नाम आणि १ अणि २ स्त्री०पु० । (३) गाडी के चक्रधार काष्ठ के ऊपर रक्खे गए, जो कि गाडी नीचे है, उन दोनों काष्ठ का एक नाम-अनुत्कर्ष १ पु० । (४) गाडी पर लदा गया सामान जिस घेडे से रोका गया नीचे नहीं पड़ता है उस आवरण के दो नाम- वरूथ १ रथवेष्टन २ पु०॥ (५) यान मात्र के (प्रत्येक सवारीके) चार नाम- युग्य १ यान २ पत्र ३ वाहन ४ नपुं० (६) गाडी के जो काष्ठ बैल के कन्धे पर रक्खा जाय उस काष्ठ के दो नाम-कूबर १ युगन्धर २पु० । .. (७) रथ के प्रत्येक अवयव को "रथाङ्ग और उपस्कर" कहते हैं पु० । (८) जो साक्षात् वाहन न हो उनका एक नामवैनीतक १ पु. नपुं० । (९). रथ पर बैठने वालों के तीन नाम-रथारोही १ रथो २ योद्धा ३ पु० । (१०) सेनापाल के दो नाम-सेनापाल १ सैनिक २ पु० ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org