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तृतीयकाण्डम्
३६९ लिङ्गादिनिर्णयवर्गः ५.
राजसूयं तथा यज्ञे वाजपेयश्च संस्मृतम् ॥ ३९ ॥ भाष्य सिन्दूरमाणिक्य चीरचीवरपब्जरम् | विदलं हरिताश्च लोकायत मुदाहृतम् ॥४०॥ स्थालं बाइलवमित्येते क्लीवे शब्दाः प्रकीर्तिताः । पुंनपुंसक इत्यस्मिन् अधिकारे प्रदर्शिताः ॥ ४१ ॥ शब्दा अधस्ताद् विख्याताः पिण्याकार्धर्चकण्टकाः । तण्डको मोदकष्टङ्कः खर्वटः शाटकोऽर्बुदः ॥ ४२ ॥ पातकश्चरकोद्योग तमालामलकौ नडः ।
(१) यज्ञ विशेष के लिये प्रयुक्त राजसूय शब्द तथा वाजपेय शब्द नपुंसक माना जाता है । (२) भाष्य (बृहदव्याख्यान) शब्द, सिन्दूर शब्द, माणिक्य (पद्मरागादिमणि) शब्द, चीर (वस्त्र) शब्द, चीवर (फटा पुराणा) कपड़ा) पञ्जर (पिंजग) शब्द बिदल (वांस का पात्र) शब्द, हरिताल ( दूर्वा) शब्द, लोकायत( चार्वाक ) शब्द, एवं स्थाल (थाली) शब्द, तथा बाह्रव (बहवदेशोद्भव) शङ्ख नपुंसक में प्रयुक्त होते हैं । (३) पुल्लिंग तथा नपुंसक इन दोनों के अधिकार में निम्न प्रदर्शित शब्द माने जाते हैं जैसे-पिण्याक (सरसों के स्खली) शब्द, एवं अर्धर्च (आधी ऋचा ) शब्द तथा कण्टक (कांटा) शब्द एवं तण्डक (स्वञ्जनफेन) शब्द, तथा मोदक (लड्डु) शब्द एवं टङ्क (टङ्की) शब्द एवं खर्वट (नदी - पर्वत मध्यवर्ती ग्राम) शब्द एवं शाटक ( मारी) शब्द, अर्बुद (दश करोड़) शब्द, पातक (पाप विशेष) शब्द, चरक (वैद्यकशास्त्र विशेष ) शब्द उद्योग शब्द तथा तमाल (पर्वतीय वृक्ष विशेष) शब्द, आमलक (आमला) शब्द तथा नड शब्द ( सरकण्डा ] पुल्लिंग तथा नपुंसक माने जाते हैं ।
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