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द्वितीयकाण्डम्
पणिग्वर्गः १० ॥ अथ वणिग्वर्गः प्रारभ्यते ॥ वणिगू विडय वैश्यो रुजा वार्तेषान्तु जीविका । पुंस्या जीवः स्त्रियां वृत्ति स्तथा जीवनवर्तने ॥१॥ वृत्ति भेदास्तु वाणिज्यं कृषिः स्त्री पशुपालनम् । कुसीदं न द्वयो रथे प्रयोगो वृद्धिजीविका ॥२॥ . पुंस्युद्धार ऋणं, सत्यानृतं तु क्रय विक्रयौ । परिप्राप्तं व्यतीहाराद् यन्तदेवाऽऽपमित्यकम् ॥३॥ ऋणदातोत्तमर्णः स्या दधमों ग्रहीतरि ।
हिन्दी-(१) वैश्य के पांच नाम – वणिक् १ विश् (विट्विड्) २ अर्य ३ वैश्य ४ उरुज ५ पु० । (२) वैश्य के जीविका के छ नाम-वार्ता १ वृत्ति २ जीविका ३ स्त्री०, आजीव ४ पु०, जीवन ५ वर्तन ६ नपुं० । (३) जीविका के मुख्य तीननाम-वाणिज्य नपुं०, कृषि २ स्त्री०, पशुपालन ३ नपुं० । (४) जिस द्रव्य से व्याज आता हो उसके तीन नाम-कुसीद १ नपुं०, अर्थप्रयोग २ पु०, वृद्धजोविका ३ स्त्रो० । (५) कर्जके दो नाम-उद्धार १ पु०, ऋण २ नपुं०। (६) खरीद और विक्री इन दोनों का एक ही नाम-सत्याऽनृत १ नपुं०, । (७) खरीद
और विक्री के एक नाम-क्रय, १ विक्रय पु० । (८) अदल बदल से प्राप्त वस्तु का एक नाम-आपमित्यक १ रापुं० । (९) ऋणदाता के दो नाम-ऋणदाता १ उत्तमर्ण २ पु० । (१०) ऋण लेनेवाले के दो नाम-अधमणे १ ग्रहोता (ग्राहक) २पु० ।
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