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द्वितीयकाण्डम् १७८
मानववर्गः ७ परिकर्माङ्ग संस्कारे स्नानेवाप्लाव आप्लवः । चर्चास्त्री स्थासकः पत्रालेखा पत्राङ्गुली समे ॥११॥ विशेषकं स्यात्तिलकेऽनुबोधस्तु प्रबोधने । यावालक्तौ जतुक्लीबे लाक्षायां स्यादथाऽगुरु ॥११॥ वंशिकं जोङ्गकं च स्यान्न द्वयो रथ यावेनः । सिहोऽथ याधूपस्तु रालः सर्जरसः पुमान् ॥१११।। कोलीयकं जायकं स्या त्कुङ्कुमाऽग्निशिखे समे ।
(१) शरीर शोभाकार क्रिया के दो नाम -परिकर्म १नपुं., भसंस्कार २ पु० । (२) स्नान के तीन नाम-स्नान १ नपुं०, आप्लाव २ आप्लव ३ पु० । (३) चन्दनादि देह विलेपन के दो नाम-चर्चा १ खी०, स्थासक २ पु० । (४) कपोल आदि में चन्दनादि से निर्मित चित्र के दो नाम-पत्र लेखा १ पत्राङ्कली २ स्त्री० । (५) तिल के दो नाम-विशेषक १ तिलक २ पु० नपुं० । (६) जगाने का या विस्मृत को याद करने के दो नाम-अनुबोध १ पु०, प्रबोधन २ नपुं० । (७) नख रंजन के चार नाम-याव १ अलकक २ पु०, जतु ३ नपुं०, लाक्षा ४ स्त्री०। (८) अगुरु (अगर) के तीन नामअगुरु १ वंशिक २ जोङ्गक ३ नपुं। (९) लोहबान धूपके दो नाम-यावन १ सिद्ध २ पु० । (१०) यक्ष धूपके तीन नामयक्षथप १ राल २ सर्जरस ३ पु० । (११) सुगन्ध द्रव्य विशेष के दो नाम-कालीयक १ जायक २ नपुं० । (१२) कुङ्कम के दो नाम- कुंकुम १ अग्निशिख २ नपुं० ।
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