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तृतीयकाण्डम्
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प्रकीर्णवर्गः १. Ardrat धनधान्यादेः प्रयामेऽथक्षतौ व्ययः । संक्रमो दुर्गसंचारोऽवेक्षा स्त्रीवस्त्ववेक्षणे ॥११॥ विरहे विप्रलम्भः स्याद् विप्रयोगोऽपि रागिणः । विधुरं स्यात्प्रविश्लेषे परिसपे परिक्रिया ॥१२॥ प्रक्रमः प्रथमारम्भ उन्नतौ तु समुन्नयः । मेलायें मेलको मेल: संमेलः सङ्गसंगमौ ॥ १३ ॥ भूरिदीने विलम्भः स्याद् विख्योतिस्त्वति विश्रुतिः । उद्घनः परिकाष्ठं च यत्राssधायाऽऽशुतक्ष्यते ॥ १४ ॥
१३
(१) धन धान्य आदि संग्रह के दो नाम - नीवाक १ प्रयाम २ २ पुं० । (२) धन हानि के दो नाम - अर्थक्षति १ स्त्री०, व्यय २ पु० । (३) दुर्गभूमि में संचरण क्रिया के दो नाम - संक्रम (संक्राम) १ दुर्गसंचर ( दुर्गसंचार) २ पु० नपुं । ( ४ ) सावधानी के दो नाम - अवेक्षा १ स्त्री०, बस्तववेक्षण २ नपुं० ( प्रतिजागर पु० ) । (५) विरह के तीन नाम-विरह १ विप्रलम्भ २ विप्रयोग ३ पु० ॥ (६) सदा के लिये वियोग के दो नाम-विधुर १ नपुं० प्रविश्लेष २ पु० । (७) परिजनादि से वेष्टन के दो नाम परिसर्प १ पु०, परिक्रिया २ स्त्री० । ( ८ ) प्रथम आरम्भ के दो नामप्रक्रम १ प्रथमारम्भ २ पु० । ( ९ ) उन्नति के दो नामउन्नति १ स्त्री०, समुन्नय २ पु० । (१०) सम्मिलित होने के छ नाम - मेला १ बी०, मेलक २ मेल ३ सम्मेल ४ सङ्ग ५ संगम ६ पु० । (११) अतिदान के दो नाम - भूरिदान १ नपुं० विलम्भ २ पु० । (१२) अतियशस्वी के दो नाम - विख्याति १९ विश्रुति २ स्त्री० । (१३) जिस काष्ठ पर रखकर काष्ठ छोला जाय उस आधार काष्ठ के दो नाम - उद्धन१ पु०, परिकाष्ठ २नपुं० ॥
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