________________
तृतीयकाण्डम्
२५७ .
प्रकीर्णवर्गः१ परिसर्या परीसारे उपघ्नस्त्वन्तिकाश्रये । उपभोगे तु निवेशो मदहर्षों प्रमोदने ॥१५॥ अभिचारस्तु हिंसादि क्रिया सन्धिस्तु मेलनम् । समुच्चये समाहारोऽपंहारोऽपहृतौ मतः ॥१६॥ पादचारे विहारः स्यात् प्रवाहो जलनिर्गमे । अनुहारेऽनुकारः स्यात् स्यान्निरोधस्तु निग्रहः ॥१७॥ विप्लवो डमरो डिम्बो बन्धेने बन्ध इत्यपि । विप्रकोरी निकारे स्याद् आधारे विषयाऽऽश्रयौ ॥१८॥
(१) प्रतिदिशा में गमन के दो नाम-परिसर्या १ स्त्रो. परीसार २ पुं० । (२) पडोसी के घर के दो नाम-उपस्न १ अन्तिकाश्रय २ पुं । (३) उपभोग के दो नाम-उपभोग १ निर्वेश २ पु०। (४) प्रमोद आनन्दातिशय के तीन नाम-मद १ हर्ष २ पु०, प्रमोदन ३ नपुं० । (५) हिंसादि क्रिया के एक नाम-अभिचार १ पु०। (६) मिला देने के दो नामसन्धि १ पु०, मेलन २ नपुं० । (७) राशीकरण के दो नामसमुच्चय १ समाहार २ पु. । (८) दूर करने के दो नामअपहार (अपचय) १ पु०, अपहृति २ स्त्रो०। (९) पेरी से चलने के दो नाम-पादचार १ विहार २ पु०। (१०) जल निकालने के दो नाम-प्रवाह १ जलनिगेम २ पु० । (११) अन. करण के दो नाम-अनुहार १ अनुकार २ पु० । (१२) रोकने के दो नाम-निरोध १ निग्रह २ पु० । (१३) लटपाट उपदव के तीन नाम-विप्लव १ डमर २ डिम्ब ३ पु० । (१४) बन्धन के दो नाम -बन्धन १ नपुं०, बन्ध २ पु० । (१५) उपकार के दो नाम-विप्रकार १ निकार २.प, (१६) देश के तीन नाम-आधार १ विषय २ आश्रय ३ प ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org