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प्रथमकाण्डम्
अव्ययवर्गः १०
सम्बोधनेऽङ्ग हे है भोः किल सम्भाव्य वार्तयोः॥१३॥ उताहो किमुताऽऽहोच तु विकल्पे निश्चये । नीचाहाने त्वरेरे च त्वराच सम्भ्रमः समौ ॥१४॥ प्रसह्य तु हठार्थे स्या प्रतिक्षण मनुक्षणम् । वर्जने स्तो हिरुक् नाना हेतौ यत्तद् यतस्ततः॥१५॥ मुदि शुक्ले दले कृष्णे वैदि संवत्तु वत्सरे । अह्रीत्यर्थे दिवा नक्त दोषा च रजनाविति ॥१६॥ स्वयं स्यादात्मनेत्यर्थे तत्त्वेऽद्धार्वाक तथाऽवरे । निश्चये पादपूतौं च तुहि च स्म ह वै इति ॥१७॥
(१) अन्य पक्ष के बोधक 'यदि, चेतू' है। (२) आज से अव्यवहित पूर्व दिन को 'ह्यसू , पूर्वेधुस्' कहते हैं । (२) किसी समय अर्थ में 'एकदा, युगपत् , सधस् सपदि' हैं । (४) यहां पर अर्थ में 'अत्र, इह' हैं । (५) उस समय का बोधक 'तदानीं, तदा' हैं। (६) परभव अर्थ में 'अमुत्र' है ।(७) अल्प अर्थ में 'किञ्चित्, ईषत्, मनाक्' हैं। (८) व्यर्थ (विना प्रयोजन के) अर्थ में 'मुधावृथा' हैं। (९) चिर (बहुत देर तक) अर्थ में सात शब्द हैं'चिरम् १, चिररात्राय २, चिरस्य३, चिराय ४, चिरात्५, चिरे६, चिरेण७, । (१०) किसी समय अर्थ में 'कदाचित् , जातु हैं। (११) अचानक (अतर्कित) अर्थ में 'सहसा है। (१२) विना अर्थ में और मध्य अर्थ में-'अन्तरेण, अन्तरे, अन्तरा' हैं । (१३) तिरछा अर्थ में 'तिर्यक्, तिरस् , साचि' हैं । (१४) आनन्द अर्थ में 'दिष्टया' है । (१५) सत्कार सम्मान अर्थ में 'सु, अति' हैं।
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