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प्रथमकाण्डम्
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अव्ययवर्गः १०
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यदि चेद् अन्यपक्षे द्वे : पूर्वेद्युः समावुभौ । एकदा युगपत्सद्यः सपत्रविहार्थकम् ॥९॥ तदानीं तदा तस्मिन्कालेऽत्र भवान्तरे । किंञ्चिदीषन्मनागल्पे, स्याद् व्यर्थेतु मुधावृथा ॥ १०॥ चिरं च चिररात्राय चिरस्य च चिराय च ।
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चिराच्चिरे चिरेणाऽपि चिरार्थे योजिताः पुरा ॥ १११ ॥ कदाचिज्जातु तुल्येद्वे सहे सातर्किते मतम् । विनामध्यार्थयोः प्रोक्ता व्यन्तरेणाऽन्तरेऽन्तरा ॥ १२ ॥ तिर्यगर्थे तिरः साचि दिष्टें याऽऽनन्देऽर्चने स्वैति । (२) मन्द अर्थ में 'शनैस्' है । (३) बाहुल्य अर्थ में 'प्रायस् है । (४) कोमल संबोधन में 'अयि' है । (४) स्वीकार अर्थ में 'ओम्, आम्, एवम्' हैं । (६) स्वीकृति अर्थ में 'कामं' है । (७) विकल्प में 'वा' है । (८) बाहिर अर्थ में 'बहिस्' है । (९) दृष्टि से परे को 'अस्तम्' कहते हैं । (१०) अनेक अर्थ में और निश्चय में 'स्यात् ' है । (११) ऊपर अर्थ में 'उच्चैस्' है । (१२) नित्य अर्थ में 'सना' है । (१३) नीचे अर्थ में 'अवसू, नोचैस्' है । (१४) फिर से अर्थ बोधक 'पुनर्मुहुस्' है । (१५) निरोध अर्थ में 'मामा स्म अलं' है । (१६) आगे अर्थ में 'पुरस्तात्, अग्रतस् पुरस्' है । (१७) निषेध अर्थ में 'न नो नहीं' हैं । (१८) खेद अर्थ में 'हा' है । (१९) विस्मय में 'अहो' के प्रयोग होते हैं । (२०) सह के अर्थ में 'सत्रा, साकं समं, सार्धम्' हैं । (२१) भर्त्सन में 'धिक्' है ।
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