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प्रथमकाण्डम् . ७५ अव्ययवर्गः १०
बैतहर्षे विषादे च स्याद् यथार्थे यथातथम् । कच्चित्कल्याण पृच्छाया मुधोऽस्मिन्नहनीष्यते ॥४॥ ह्यो' गतेऽहन्य द्रुतेतु शनैः प्रायस्तु भूमनि । अयि कोमल संबुद्धा वोमा मेवं च सम्मतौ ॥५॥ स्वीकृता वस्तु पर्याप्ते काम वा स्याद्विकल्पने । बाह्ये बहिरदृष्टे स्तं "स्यादनेके च निश्चये ॥६॥ उच्चै रूा सेनानित्ये,ऽध स्तान्नीचैः पुनर्मुहुः । मामास्माऽलं निरोधे स्युः पुरस्तादयतः पुरः ॥७॥ नैं नो नहि निषेधेऽर्थे ही खेदेऽ होतु विस्मये । संत्रा साकं समं साधं सहार्थेधिकच भर्सने ॥८॥
हिन्दी-[१] प्रकाश अर्थ में दो शब्द-प्रादुस् १ आविस् । २ आगामी दिन में 'श्वसू । [३] तीसरे दिन के बोधक परेधुः, परश्वः, दो शब्द हैं। [४] चौथे दिवस को 'प्रपरश्व' कहते हैं। [५] जुगुप्सा अर्थ में 'दुष्ठु' है। [६] प्रशस्तबोधक अर्थमें 'सुष्टु' है। [७] अभो अर्थ में 'अधुना, सम्प्रति, इदानीम्, एतहिं साम्प्रतम्, हैं। [८] आसन्न 'समीपवर्ती' अर्थ में 'समया निकषा' , है। [९] सवेरा अर्थ में 'प्रभात, प्रातर' हैं। [सन्ध्या अर्थ में 'सायम्' है । [११] रात्रि का अन्त बोधक 'उषा' है । [१२] हर्ष या विषाद अर्थ में 'बत' है। [१३] यथार्थबोधक 'यथातथम्' है। [१४] कल्याण सूचक प्रश्न में 'कच्चित्' है । [१५] आज के दिन में 'अद्य' है।
(१) आज से अव्यवहित पूर्व दिन का बोधक 'ह्यस्' है ।
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