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तृतीयकाण्डम् २७१ विशेषणवर्गः २
'वावदूकोऽतिवक्ता स्याद् वाग्मी तूचित वाक्पटुः । चाचाटः स्यात्त जल्पाको वाचालो बहु गवाक् ॥४०॥ यस्तु प्रियवंदैः शक्ल प्रियवादी स एव हि । मुखरो दुर्मुखो गहर्य-वादी दुर्वाक्यकद्वदः ॥४१॥ 'लोहलोऽस्फुटवाक् काकस्वरोऽसौम्यस्वरोऽस्वरः। 'कुवादः कुचरस्तुल्यौ 'शब्दनो रवणः समौ ॥४२॥ आश्रवो विनयग्राही विधेयवचने स्थितौ । "अतिमूढो जडश्वाऽज्ञः पराचीने पराङ्मुखः ॥४३॥.
(१) प्रौढ वक्ता के दो नाम-वावदूक १ अतिवक्ता २ । (२) न्याय बोलने वाले के दो नाम-वाग्मी १ उचितवाक्पटु २ । (३) बहुनिन्ध भाषण करने वाले के चार नाम-वाचाट १ जल्पाक २ वाचाल ३ वहुगवाक् ४ । (४) प्रियवक्ता के तीन नामप्रियंवद १ शक्ल २ प्रियवादी ३ । (५) निन्ध कटुवचन बोलने वाले के पांच नाम-मुखर १ दुर्मुख २ गर्यवादी ३ दुर्वाक १ कद्वद ५ । (६) तुतली बोली वाले के दो नाम-लोहल १ अस्फुटवाक् २। (७) रूखा बोलने वाले के तीन नाम-काकस्वर १ असौम्यस्वर २ अस्वर ३ । (८) कुवचन शील के दो नाम-कुवाद १ कुचर २। (९) शब्द करने वाले के दो नामशब्दन १ रवण २ । (१०) जिसकी प्रवृत्ति निवृत्ति का विधान किया जा सके उसके चार नाम-आश्रव १ विनयग्राही २ विधेय ३ वचनेस्थित ४ (शिष्य आदि)। (११) अनपढ़ के तीन नाम -मतिमूढ १ जड २ अज्ञ ३। (१२) विमुख हुए के दो नाम-पराचोन १ पराङ्मुख ।
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