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द्वितीयकाण्डम्
नगरवर्गः २ वलभी चन्द्रशाले द्वे तस्यैवोद्धे तु वेश्म यत् ॥१०॥ प्रपा पानीयशालायां गञ्जायन्मदिरागृहम् । ग्रामे गेहे च गोपस्य घोषः पल्लिरितिद्वयम् ॥११॥ धर्मशालं धर्मशाला शालान्तो न कचित्पुमान् । मन्दुरावाजिनः शालाऽऽवेशन शिल्पिवेश्मनि ॥१२॥ श्मशाने यज्ञशालायां चैत्यमायतनं गृहे । वातायनं गवाक्षोऽस्त्री क्षोममट्टः शिरोगृहम् ।।१३।। विष्कम्भोनाऽर्गलानान कपाट मररं त्रिषु ।
तालं च तालिका ताला मोचेनोद्धाटने समे ॥१४॥ के दो नाम-वलभी १ चन्द्रशाला २ स्त्रो० । (७) प्याऊ के दो नाम प्रपा १ पानोयशाला २ स्त्री० । (८) मदिरा (दारु) घर के दो नाम-गञ्जा १ स्त्री०, मदिरागृह २ नपुं० । (९) गोपाल के घर के और ग्राम के दो नाम-घोष १पु० । पल्लि (पल्ली) २ स्त्री० । (१०) धर्मशाला के दो नाम-धर्मशाल १ नपुं०, धर्मशाला २ स्त्री।
हिन्दी-(१) घोड़सार (अस्तवल) के दो नाम-मन्दुरा १, वाजिशाला २ स्त्री० । (२) चित्रकारों के घर का एक नाम-आवेशन (शिल्पिशाला)१ नपुं० । (३) यज्ञशाला के दो नाम-आयतन १ चैत्य २ नपुं० । (४) खिड़की के दो नाम - वातायन १ नपुं०, गवाक्ष २ पु० । (५) ऊपर महल के दो नाम-क्षोम १, अ २ पु० नपुं०। (६) सांकल (कपाट बन्द करने वाला जंजीर वा कील) के दो नाम-विष्कम्भ १ पु०, अर्गला २ स्त्री० । (७) कपाट के
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