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तृतीयकाण्डम्
२८८
नानार्थ वर्ग: आतङ्को रोगसन्ताप शङ्कामु मुरजध्वनौ । नैकदेशे प्रतीकं तु प्रतिलोमविलोमयोः ॥१४॥ भूनिम्बे भूस्तृणेऽपि स्यात्कटफलेऽपि च भूतिकैम् । हेम्न्युरोभूषणे साष्टशते दीनार कर्षयोः ॥१५॥ अस्त्री निष्क सुवर्णानां 'शल्के शकलवल्कले । दम्भैनः शमलेष्वस्त्री कल्कः शीलाऽन्वयादिषु ॥१६॥ अनूक, गुग्गुलूलूक व्याल ग्राहिष्वृभुक्षि च । कौशिकोऽथ च पिण्याक स्तिलकल्केऽपि सिहके ॥१७॥ रुद्रचापे पिनाकोऽस्त्री पांशुवर्ष त्रिशूलयोः।
(१) सद्य; धाती रोग सन्ताप शङ्का में और मुरजध्वनि में 'आतङ्क' पु०। (२) एकदेश अर्थ में प्रतीक' पु०, प्रतिलोम विलोम अर्थ में नपुं० । (३] भूनिम्ब भूस्तृण [एक प्रकार का घास कायफल अर्थ में 'भूतिक' नपुं० । (४) सुवर्ण में, उरोभूषण में, एक सो आठ सुवर्ण में दीनार (मोहर) और कर्ष में निष्क पु० नपु० । (५) खण्ड अर्थ में शल्क शकलावल्कल (अर्ध भित्त नेम दल) नपुं० । (६) शब्द दम्भ ऐनसू (पाप) शमल अर्थ में 'कल्क' नपुं० । (७) शील कुल (अन्यजन्म) अर्थ में 'अनुक' नपुं० । (८) गुगुलु उलुक (उल्लू) सपेरा और अर्थ में 'कौशिक' पु० । (९) तिल कल्क सिल्हक और हिङ्गु बाह्रीक (उत्तरप्रदेश विशेष) अर्थ में 'पिण्याक' पु० नपुं० (बह्वीक वह्निक धीर हिगु में अश्वदेश में पु० । (१०) रुद्रचाप, पांशुवर्ष (धूली की वर्षा) त्रिशूल अर्थ में 'पिनाक' पु०, नपुं० ।
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