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द्वितीयकाण्डम्
२३१
वणिग्वर्गः १०
स्तम्बो' गुच्छ स्तृणादीनां 'शमी शिम्बे स्त्रियामुभे ॥ १९ ॥ मर्दितं निस्तृणं धान्य मृद्धमावसितं स्मृतम् । राशीकृतं तु पूतं स्यात् तदेव बहुली कृतम् ||२०|| पदार्थः पुंसि वस्तु स्यात् क्लीवे 'उरख्यं तु पैठरम् । संमृष्ट गोधिते तुल्या 'मसृण स्निग्ध चिकणाः ॥ २१ ॥ सुसंस्कृतः प्रयस्तोऽथ समे विजिल पिच्छिले । dbaल्यो " प्रणीतसम्पन्नौ त्रिपूरव्याद्यास्त्रयोदश ॥२२॥
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(१) तृणादि काण्ड के दो नाम- स्तम्ब १ गुच्छ २ ५० नपुं० । ( २ ) सस्य फली के दो नाम - शमी १ शिम्बा २ स्त्री ० । (३) जो धान्य मदिंत हो गया और उससे तृणादि दूर कर दिये गये हों लेकिन परिष्कृत न हुआ हो, उस धान्य के दो नामऋद्ध १ आवसित २ नपुं० । ( ४ ) फोतरा ( भूसा ) धूली आदि से हीन धान्यराशि के तीन नाम - राशीकृत १ पूत २ बहुलीकृत ३ नपुं० । (५) वस्तु मात्र के दो नाम-पदार्थ १ पु०, वस्तु २ नपुं० । (६) हंडो में पके हुए अनाज के दो नाम - उख्य १ पैठर २ त्रि० । (७) शोधित स्थल के दो नाम संसृष्ट १ शोधित २ त्रि० । (८) चिकने के तीन नाम-मसृण १ स्निग्ध २ चिक्कण ३ ० । (९ ) छोके हुए शाक आदि के दो नाम सुसंस्कृत १ प्रयस्त २ त्रि० । (१०) मण्ड से संयुक्त भात के तथा जल से संयुक्त भाजी शाक के दो नाम - विजिल १ पिच्छिल २ त्रो० । (११) अग्निी संयोग से सिद्ध द्रव्यान्तर संयोग से हीन व्यञ्जनादि के दो नाम-प्रणीत १ सम्पन्न २ त्रि० ।
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